हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 208 ☆ व्यंग्य – चूं चूं का मुरब्बा… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य – चूं चूं का मुरब्बा

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 208 ☆  

? व्यंग्य – चूं चूं का मुरब्बा ?

वे सारे लोग झूठे हैं जो सोचते हैं की चूं चूं का मुरब्बा वास्तविकता न होकर, सिर्फ एक मुहावरा है। अपनी उम्र सीनियर सिटीजन वाली हो चुकी है, पर वयस्क होते ही वोटिंग राइट्स के साथ उठा सवाल कि चूं चूं का मुरब्बा वाले मुहावरे का अर्थ, आखिर क्या होता है ? राज का राज ही रहा। बस यही लगा कि चूं चूं का मुरब्बा किसी बेहद भद्दे, बेमेल मिश्रण को कहते हैं . मसलन  कश्मीरी दम आलू में कोई कच्चा कद्दू मिला दे, या  रबड़ी-मलाई में प्याज-लहसुन का तड़का लगा दिया जाए, तो जो कुछ बनाता हो शायद वैसा होता होगा चूं चूं का मुरब्बा। शादी हुई तो जीवन का सारा भार रसोई शास्त्र ही नही हरफन मौला मैने तो पहले ही बता दिया था, या मैं तो जानती थी कि यही होगा जैसे जुमले जब तब उछालने में निपुण पत्नी से इस रहस्यमय रेसिपी के संदर्भ में पूछा। पत्नी जी ने भी मुस्कराते हुए पूरी व्यंजन विधि ही बता दी। उसने कहा कि सबसे पहले चूंचूं को धोकर एक सार टुकड़ो में काट ले,नमक लगाकर चांदनी रात में दो रात तक सूखा ले। चीनी की चाशनी एक तार की तैयार कर चांदनी में सूखे चूंचूं डाल कर ऊपर से जीरा पाउडर डालें। फिर अगली आठ रातों को पुनः आठ आठ घंटे चांदनी रात में रखे।

आठवें दिन चूंचूं का मुरब्बा खाने के लिए तैयार हो जाता है। रेसिपी मिल जाने के बाद से मेरी समस्या बदल गई अब मैं चूं चूं कहा से लाऊं, देश विदेश, भाषा विभाषा, धर्म जातियों, शास्त्रों उपशास्त्रों के अध्ययन, नौकरी की अफसरों के आदेशों, मातहतों  की फाइलों को पढ़ा समझा पर चूं चूं को समझ ही नही पाया।

थोड़े बहुत बाल सफेद भी हो गए हैं, मिली-जुली सरकारें देखी, चौदह के, उन्नीस के परिवर्तन देखे, अब पक्ष विपक्ष की चौबीस की तैयारी देख कर मन में संशय उभरता है कि जिस प्रकार उसूल की घरेलू गौरय्या सियासत के जंगल में गुम हो रही है। कहीं कभी इतिहास में इसी तरह  सत्ता का स्वाद चखने के लिए राजाओं, बादशाहों की लड़ाइयों में उन शौकीन सियासतदानों ने कही चूं चूं के मुरब्बे का इतना इस्तेमाल तो नहीं कर डाला कि चूं चूं की प्रजाति ही डायनासोर सी विलुप्त हो गई है। अस्तु अपनी खोज जारी है। आपको चूं चूं मिले तो जरूर बताइए, मेरे चूं चूं के मुरब्बे वाले यक्ष प्रश्न को अनुत्तर रहने से बचाने में मदद कीजिए।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल उपन्यास ‘गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य‘ – डॉ. शशि गोयल ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है डॉ. शशि गोयल जी  के बाल कहानी संग्रह “गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ बाल उपन्यास ‘गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य‘ – डॉ. शशि गोयल ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’  ☆

उपन्यासगोलूभोलू और जंगल का रहस्य 

उपन्यासकार डॉ. शशि गोयल 

प्रकाशक जीएस पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर, एफ7, गली नंबर 1, पंचशील गार्डन एक्सटेंशन, नवीन शाहदरा, दिल्ली110032 मोबाइल नंबर 99717 33123

पृष्ठ संख्या52 

मूल्य₹195

समीक्षकओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ समीक्षा- रहस्य से भरपूर उपन्यास है यह ☆

बच्चों के उपन्यास में रहस्य-रोमांच हो तो पढ़ने का मजा दुगुना हो जाता है। उसके साथ रोचक संवाद हो तो उपन्यास की पठनीयता में वृद्धि हो जाती है।

बाल उपन्यास में चंचल बालपात्र हो तो वह बच्चों को बहुत ज्यादा अच्छा लगता है। उसकी चंचलता और चपलता उपन्यास के आनंद का मजा बढ़ा देती है।

इस कला में उपन्यासकार डॉ. शशि गोयल को महारत हासिल है। इनका नवीनतम उपन्यास गोलू-भोलू और जंगल का रहस्य, इस कसौटी पर खरा उतरता है। उपन्यास के शीर्षक के अनुसार उपन्यास में जंगल का रहस्य और रोमांच भरा पड़ा है।

गोलू एक चंचल और चपल बाल पात्र है। वह शहर से गांव अपनी नानी के यहां आता है। यहां वह अपने साथी भोलू के साथ जंगल, नदी, गुफा, पहाड़ आदि की सैर करता है।

सैर-सपाटा के दौरान वह संदिग्ध गतिविधियों को पकड़ लेता है। उसी से दो-चार होता है। परिस्थितियां ऐसी निर्मित होती है कि वह उन सभी का रहस्योद्घाटन करता चला जाता है।

मगर अंत में जाकर वह एक घटना में उलझ जाता है। तब वह और उसके पिताजी एक नई तरकीब अपनाते हैं। इससे गोलू-भोलू के साथ अन्य पात्रों पर आई मुसीबत टल जाती है। इस तरह पूरा उपन्यास रहस्य रोमांच के साथ आगे बढ़ता है।

उपन्यास की भाषा सरल व सीधी है। इसी के साथ ठेठ ग्रामीण भाषा के उपयोग से उपन्यास में रोचकता का समावेश होता है। इसकी यह भाषा उपन्यास की रोचकता में वृद्धि करती है। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ उपन्यास को पढ़ता चला जाता है।

बाल सुलभ जिज्ञासा का असर पूरे उपन्यास में है। इसी जिज्ञासा की वजह से उपन्यास के पात्र निरंतर जोखिम उठाते हुए आगे बढ़ते हैं। फलस्वरुप उसके रहस्य को उजागर करते हुए एक नई मुसीबत का सामना करते हैं।

इस तरह उपन्यास के साथ-साथ मुख्य कथा के साथ उपन्यास उत्तरोत्तर आगे बढ़ता है। अंततः उसकी रोचकता का अंत उपन्यास के अंत के साथ हो जाता है।

उपन्यास का परिवेश ग्रामीण नदी के किनारे फैले हुए जंगल का है। इसी परिवेश में कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती है उपन्यास के पात्रों के सामने नई-नई चुनौतियां आती जाती है।

चुनौतियों का सामना करने में मुक पशु-पक्षी का प्रयोग बखूबी किया गया है। पृष्ठ संख्या के हिसाब से दाम कुछ ज्यादा है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। वैसे उपन्यास की साज-सज्जा व पृष्ठ सज्जा के साथ त्रुटि रहित छपाई ने उपन्यास की गुणवत्ता में श्री वृद्धि की है।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-04-2023

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़,  जिला- नीमच (मध्य प्रदेश), पिनकोड-458226 

मोबाइल नंबर 7024047675, 8827985775

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 156 ☆ बाल कविता – जागो-जागो हुआ सवेरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 156 ☆

☆ बाल कविता – जागो-जागो हुआ सवेरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

         आया अपने द्वार

जागो-जागो हुआ सबेरा

         लुटा रहा है प्यार

 

पंछी चहके, बगिया महके

     शीतल मन्द चले पुरवाई

उठो लाल अब आँखें खोलो

       वासंती सुषमा मुस्काई

 

दर्शन कर लो शुभ है बेला

            देखो सृष्टि अपार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

           आया अपने द्वार

 

 

बुलबुल गाए नए तराने

       सौरभ सुख भर जाता

कोयलिया गाती हैं स्वर में

       शुक भी गीत  सुनाता

 

लावण्या इस वसुंधरा का

         दुल्हन-सा शृंगार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

         आया अपने द्वार

 

 

योग कर रहे दादा- दादी

        स्वस्थ मना मुस्काते

खेलें-कूदें योग करें हम

       आलस कभी न लाते

 

पढ़ लें, लिख लें, हँसें-हँसाएँ

        तन-मन हो उजियार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

           आया अपने द्वार

 

 

सरसों महके, गेंहूँ सरसे

       जौ की नर्तित बालें

महक रही हैं आम्र डालियाँ

        बजा रहीं करतालें

 

सैर करें हम बिन अलसाए

        मिलता जीवन-सार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

        आया अपने द्वार

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #157 ☆ माणसाने माणसे जपावी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 157 ☆ माणसाने माणसे जपावी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

माणसाने माणसे जपावी

भीमशक्ती जगाला कळावी…|| धृ. ||

 

शिकावे लढावे  धम्मवाणी

दीन दलितांची जिंदगानी

नको अस्पृश्य विश्वात कोणी

मान सन्मान जागा मिळावी…|| १. ||

 

माणसें वाचली कौतुकाने

सुख दुःखे झेलली भीमाने

तोडली बंधने कर्मठांची

ध्येयवादी धोरणे दिसावी…|| २. ||

 

रमाई भीमाई ध्यास सारा

संविधानी दिला एक नारा

विश्व केले खुले नीलरंगी

लोकशाही घटना रूजावी…|| ३. ||

 

नको संकटे वळचणीला

दिशा लाभली चळवळीला

काय सांगू थोरवी भीमाची

नाव घेता मस्तके झुकावी….|| ४. ||

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ मोगरा… कवयित्री : सुश्री ज्योती कुलकर्णी ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– मोगरा… कवयित्री : सुश्री ज्योती कुलकर्णी – ? ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆

निळ्या आकाशात चांदण्यांची आभा

अलगद झेलून अंगणात मोगरा उभा

लावियला दारी मोगर्‍याचा वेल

म्हटले त्याला पुरे अवकाश झेल

उन्हाची लखलख झाली भारी

मोगरा दरवळला रंगत न्यारी

चांदण्यांचे मोती उधळले आकाशाने  

अलगद झेलले ओंजळीत धरतीने

सौंदर्य त्यांचे झाले सुगंधाविना उणे

मोगर्‍यात फुलवले धरतीने चांदणे

चांदणे पिऊन मोगरा खूप फुलला

पानोपानी कसा बहरून आला

बहर कानात काही सांगून गेला

तुझ्या घरी आलो  मी फुलायला

निळ्या आकाशात चांदण्यांची आभा

अलगद झेलून अंगणात मोगरा उभा …… 

कवयित्री : सुश्री ज्योती कुलकर्णी

अकोला

संग्रहिका  : सुश्री मीनल केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #178 – कविता – जड़ों पर हो वार… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण  कविता “जड़ों पर हो वार…)

☆  तन्मय साहित्य  #178 ☆

☆ जड़ों पर हो वार…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जिन जड़ों से पुष्ट-पोषित,

फूल, फल, पत्ते विषैले

उन जड़ों पर वार हो।

 

केक्टस से गर करें उम्मीद

करुणा, दया औ’ संवेदना की

म्रत पड़े हैं हृदय, उनसे

मानवीय संचेतना की

फिर नहीं विष बीज फैले

फिर न खरपतवार हो।….

 

एक दिन तो है सुनिश्चित अंत,

मुरझा कर धरा पर गिरेंगे ही

ये चमक उन्माद-मस्ती

राख बन फिर सिरेंगे ही

आत्मघाती कृत्य क्यों

फिर व्यर्थ नर संहार हो।….

 

जन्म से अवसान तक के खेल

खेले निरंकुश होकर निराले

कब कहाँ सोचा कि इनमें

कौन उजले, कौन काले,

जी सकें तो जिएँ ऐसे

ना किसी पर भार हों।….

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हम चंदन के पेड़ हुये न

तुमने सारी गंध चुराई।

 

आदम युग से

अब तक जाने

कितने जन्म लिये

हम में जीवित

रही सभ्यता

ले उपहास जिये

 

हम तो चतुर सुजान हुये न

तुमसे हारी हर चतुराई।

 

भूख जगाते

रहे रात दिन

पेट लिये खाली

बने बिजूका

खड़े खेत में

करते रखवाली

 

हम गुदड़ी के लाल हुये न

तुमने ओढ़ी भरी रज़ाई।

 

मौसम वाले

ख़त पढ़-पढ़ कर

उम्र गई है ऊब

तिनका-तिनका

कटे ज़िंदगी

सदी रही है डूब

 

हम अक्षर से शब्द हुये न

तुमने रच डाली कविताई।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 178 ☆ मन झाले ओलेचिंब… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? कवितेच्या प्रदेशात # 178 ?

💥 मन झाले ओलेचिंब… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

तुझ्या आठवाने आज

झाले पुरती घायाळ

मनी दाटले काहूर

कोण हृदयी वाचळ?

किती काळ हा लोटला

रंग प्रीतीचा गहिरा

रिती रिवाजाची चाड

रात्रंदिन तो पहारा

आले दाटून मनात

तुझे राजबिंडे रूप

क्षण एक तो प्रेमाचा

किती अप्रुप अप्रुप

आता सांजावल्या दिशा

साक्षीदार जुना लिंब

एक एक सय येता

मन झाले ओलेचिंब

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकावर बोलू काही  ☆ अग्निशिखा, कादंबरी ☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆

सौ. नीला देवल

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ अग्निशिखा, कादंबरी  ☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆ 

पुस्तक – अग्निशिखा, कादंबरी.

लेखिका – नीला देवल.

प्रकाशक – मिलिंद राजाज्ञा, नवदुर्गा प्रकाशन, कोल्हापूर.

पृष्ठे – २८०

किंमत – ५१० रु .

☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆

माझी अग्निशिखा ही ऐतिहासिक कादंबरी प्रकाशित झाली आहे त्यात तिचे हे मनोगत.

गुजरात मधील राजकुमारी आणि देवगिरीच्या शंकर देवांची राणी देवल देवी हिचे काळजाला भिडणारे चरित्र यामध्ये आहे.

इतिहासातील अज्ञात अनेक वीरांगणा पैकी ही एक देवल देवी जी अनंत आपदा संकटे अंगावर झेलते. प्रचंड स्व धर्माभिमानी, राष्ट्राभिमानी, मुच्छद्दी, धोरणी अशी स्त्री अल्पकाळ का होईना भारताची सम्राज्ञी म्हणून दिल्ली सिंहासनाधिष्ठित होते. अखंड भारताचे स्वप्न साकारते. अल्लाउद्दीन खिलजीच्या स्वप्नांचा चक्काचूर करून.

अशा शूरवीर, धुरंदर स्त्रिया ज्या अज्ञात इतिहासातील पानापानात दडलेल्या. आहेत. पुढील अनेक पिढ्यांना प्रेरणा देणारी नारी शक्तींची ही चरित्रे जी भारतीय ना अज्ञात आहेत त्यांना न्याय मिळवून देण्यासाठी देवल देवीची ही कथा नक्कीच प्रेरणादायी होऊन अनेक लेखिका अशा ऐतिहासिक स्त्रियांना न्याय मिळवून देण्यासाठी उद्युक्त होतील. तेच या कादंबरीचे यश होईल.

स्वातंत्र्यवीर सावरकरांच्या सहा सोनेरी पाने या पुस्तकातील देवल देवी व खुशरूकान या वरच्या स्वतंत्र प्रकरणावरून प्रेरणा मिळवून केवळ त्या प्रकरणाचा विस्तारित भाग म्हणजे ही कादंबरी आहे. स्वदेशासाठी जोहार करणाऱ्या रजपूत स्त्रिया इतकी प्राणपणाने स्वधर्म व स्वदेश राष्ट्र रक्षणारी राजकारणी, मुच्छद्दी आदर्श आशा स्त्रीचे चरित्र म्हणजे ही कादंबरी आहे.1857

सारखेच खुशरूकान व देवलदेवीने केलेले हे स्वातंत्र्य समरच आहे.

© सौ. नीला देवल

९६७३०१२०९०

Email:- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे…

1 धूप

तेज धूप में झुलसता, मानव का हर अंग।

छाँव-छाँव में ही चलें, पानी-बाटल संग।।

 

2 कपोल

कपोल सुर्ख से लग रहे, ज्यों पड़ती है धूप।

मुखड़े की यह लालिमा, लगती बड़ी अनूप।।

3 आखेट

आँखों के आखेट से, लगे दिलों पर तीर ।

मृगनयनी घायल करे, कितना भी हो वीर।।

4 प्रतिदान

मानवता कहती यही, करें सुखद प्रतिदान

बैर बुराई छोड़ कर, प्रस्थापित प्रतिमान ।।

5 निकुंज

आम्र-निकुंज में डालियाँ, झुककर करें प्रणाम।

आगत का स्वागत करें, चखें स्वाद चहुँ याम।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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