(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – लघुकथा – परिवर्तन, सोच और प्रयास।)
मेरी डायरी के पन्ने से # 46 – लघुकथा – परिवर्तन, सोच और प्रयास
उसकी रोटियाँ थाली में पड़ी ठंडी हो गई थीं।
घर परिवार को भोजन परोसते -परोसते जब वह भोजन करने बैठी तो दाल-सब्ज़ियाँ भी ठंडी हो गई। घर के लोग भोजन करके टेबल से उठ गए। बस साथ कोई बैठा रहा तो वह थी छोटी ननद। उसका भी भोजन करना हो चुका था। वह अपनी डेलीवरी के लिए मायके आई हुई थी।
उसने पूछा – दाल सब्ज़ी गरम करके ला दूँ भाभी? आपका खाना ठंडा हो गया।
– नहीं रे ! थैंक्स, मुझे तो रोज़ ही ठंडा खाने की आदत है।
– और अकेले भी न भाभी? ननद ने पूछा।
उसने एक म्लान -सी मुस्कान दी और भोजन करने लगी।
-हमारी हालत एक – सी है भाभी। मैं समझ सकती हूँ आप अकेले भोजन करती हुई कैसा महसूस करती होंगी!
– है कोई उपाय इसका तो बोलो?
– है न भाभी! मेरी सास ने ही यह उपाय निकाला है।
– अच्छा! मुझे भी बताओ?
– टेबल पर अचार, पापड़, सलाद, चटनी, नमक, पानी का जग पहले से लाकर रख देती हैं मेरी सास। फिर दाल भात सब्ज़ियों के बर्तन और गरम रोटियों का कैसरोल भी रख देती हैं। थाली, कटोरियाँ, गिलास, चम्मच भी सुबह ही टेबल पर रखे जाते हैं। सासुमाँ ने तो घर पर ऐलान ही कर दिया है कि पाश्चात्य संस्कृति को मानकर चलना है तो सब कुछ टेबल पर रखा रहेगा। स्वयं परोसो और खाओ। बहुएँ भी तो नौकरी करती हैं। फिर वे क्यों ये ज़िम्मेदारी उठाएँ और ठंडा खाना खाएँ?
बस फिर क्या था हम दोनों देवरानी -जेठानी का काम अब हल्का हो गया। भोजन के बाद सब अपने जूठे बर्तन बेसिन में पानी डालकर रखते हैं। बाकी काम हम तीनों महिलाएँ कर लेतीं हैं।
-यह तो बहुत अच्छा है। तुम्हारी सास बहुत अच्छी हैं। पर अम्मा नहीं मानेगी।
– वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए भाभी।
दूसरे दिन सुबह रविवार की छुट्टी थी। सभी देर से उठे। कोई नहाने – शेव करने में जुटा था तो कोई दो कप चाय गुटक कर समाचार पत्र के अक्षर -अक्षर पढ़ने में मग्न था।
ननद -भाभी मिलकर आलू के पराठे बना रही थीं।
सारे पराठे बनाकर, चाय/ कॉफी बनाकर मक्खन, अचार और दही लेकर टेबल पर रख आईं।
सभी नाश्ते की प्रतीक्षा में थे। एक आवाज़ देते ही साथ सभी टेबल पर हाज़िर हुए।
माँ ने कहा- यह क्या चाय -कॉफी भी केतली में लेकर आई बहू? ठंडी हो जाएगी न?
बेटी ने तुरंत उत्तर देते हुए कहा – माँ पाश्चात्य देशों की संस्कृति अपना कर अगर मेज़ कुर्सी पर भोजन करना है तो सब साथ मिलकर एक टेबल पर भोजन करें न! भाभी भी साथ बैठ सकेगी। कैसरोल क्रॉकरी शेल्फ की शोभा बनी हुई है। उसका उपयोग भी तो हो! है न भाभी? अब सब कुछ टेबल पर है जिसे जो चाहिए ले लो और नाश्ते का आनंद लो।
बहुत दिनों के बाद घर के सभी सदस्यों ने मोबाइल, समाचार पत्र सब अलग रखकर मिलकर एक साथ नाश्ता किया। खूब देर तक हँसी -मज़ाक की बातें हुईं।
दोपहर के भोजन के समय पर भी सब कुछ मेज़ पर रख दिया गया। रात को भी यही उपाय अपनाया गया।
अब क्या था ननद की योजना काम आई। घर का अब यही नियम बन गया। कल तक ठंडी रोटी खानेवाली बहू ने भी सबके साथ गरम भोजन खाने का आनंद लेना प्रारंभ किया।
परिवर्तन तो एक अनिर्मित दृश्य मात्र है उसके पूर्व उसमें केवल एक सोच और एक प्रयास ही तो चाहिए होता है।
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक कविता – “छतनारा… ” ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 337 ☆
कविता – छतनारा… श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “पुष्पांजलि ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 218 ☆
🌻लघुकथा🌻 🪷पुष्पांजलि 🪷
मंदिर में अल पहरी भोर से ही पूजा की तैयारी होने लगी। पूजा में लगने वाले सारे सामानों का एक-एक कर एकत्रित करके, जाने कब वह मंदिर में रख आती, किसी को पता नहीं चलता। सभी मोहल्ले वालों को लगता कि सार्वजनिक रूप से तैयारी की गई है ।नामी गिनामी लोग यह सोचकर भी खुश होते कि चलो काम कोई भी करें, नाम तो अपना हो रहा है।
विधि विधान से गौरीशंकर का विवाह। महिलाओं का श्रृंगार देखते ही बनता है, पुरुष वर्ग भी भक्ति भाव से भगवा वस्त्र में अपने को धर्म साधक बना देख प्रसन्न हो रहे हैं।
बढ़-चढ़कर आरती वंदन और पुष्पांजलि। सभी के हाथ आगे ही आगे। कोई चूक न हो जाए।
पीछे साधारण साड़ी, सिर पर पल्लू और मुखड़े पर तेज, हाथों में पुष्प लिए, साधना- भाव में लीन– बस कुछ कहती। इसके पहले पुष्पांजलि एकत्रित करते पंडित जी पर उसकी नजर पड़ी।
साधना का पूरा शरीर सफेद हो चला। सिर पर पल्ला खींचकर अपनी पुष्पांजलि उनके चरणों में समर्पित करते पीछे मुड़कर जाने लगी।
सभी कहने लगी हद कर दी इसने पुष्पांजलि भगवान की जगह पं जी महाराज के चरणों पर चढ़ा दी। यह भगवान का अपमान कर रही।
पं बने साधु कहने लगे—
जाकी रही भावना जैसी।
प्रसाद का दोना लिए पंडित जी आवाज देते रहे। अब कौन समझ पा सकता था। पति परमेश्वर के बरसों का इंतजार और साधना की – – – पुष्पांजलि इस रूप में समाप्त होगी।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 120 ☆ देश-परदेश – जब जागो तब सबेरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
महाकुंभ का अंतिम सप्ताह हो चला है, हम दो मित्रों ने भी निश्चय किया कि सपत्नीक प्रयागराज जाते हैं। हमारे जो परिचित यात्रा कर वापिस आ गए थे, उनसे पूरी जानकारी प्राप्त कर, ट्रैवल एजेंट्स से संपर्क भी करा है। सभी लुभावने सपने दिखा रहे हैं।
एक ट्रैवल एजेंट से जब हमने पूछा के स्लीपर कोच की क्षमता से अधिक यात्री तो नहीं बैठाते हो ? उसने कहा आप के शयन में कोई खलल नहीं होगी। हमारे एक परिचित ने बताया था, कि ये एजेंट बस की सीटों के मध्य गली में भी रात को यात्रियों को लिटा देता है, और शयन करते हुए यात्रियों को बहुत कठिनाई होती हैं।
हमने भी उस एजेंट से जब ये बात बताई, तो बोला कुछ लोग हाइवे पर प्रयागराज के लिए बसों का इंतजार करते है, उनको पुण्य से वंचित ना रहना पड़े, तभी बैठाते हैं।
विषय को लेकर वाद विवाद हुआ, तब वो बोला यदि आपको सस्ते में जाना है, तो बस की छत पर लेट कर चले, आधे पैसे लूंगा। हमने कहा यदि छत से गिर गए तो क्या होगा ? उसने बताया आप को रस्सी से बांध देंगे, जब भी मार्ग में चाय आदि के लिए बस रुकेगी, तो आपकी रस्सी खोलकर ऊपर ही चाय की व्यवस्था कर देंगे।
हमने कहा गलत काम क्यों करते हो, वो लपक कर बोला साहब अभी तक सैकड़ों लोगों को अमेरिका भिजवा चुके हैं, वो तो आजकल थोड़ी सख्ती है। हम ये चिंदी के काम नहीं करते, आपकी जैसी मर्जी। हम समझ गए, ये अवश्य पहले “डंकी रूट” में कार्य करता होगा।
हम ने भी अब ट्रेन से जाने का मानस बना लिया है। बिना टिकट कहीं भी प्रवेश ले लेंगे यदि कहीं पकड़े गए तो पेनल्टी भर देंगें। जाने से पहले कुछ पाप (बिना टिकट) तो कर लेवें।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 226 – कथा क्रम (स्वगत)…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “नई नई है धरती–...”)
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “मधुर गीतकार- स्व. कृष्णकुमार श्रीवास्तव ‘श्याम’”के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
वर्षों पहले कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में कृष्णकुमार श्रीवास्तव “श्याम” के गीतों की धूम मची थी । सहज – सरल हिन्दी में रचित, भावना की आंच में पके – पगे उनके गीत सीधे लोगों के ह्रदय में उतरते थे।
रोटी हूं
मैं हूं रोटी
मैं मजदूर की रोटी ।
गुंथी हुई पसीने से मजदूर की
रोटी ।
और प्रिय के प्रति –
आनंद अनंत हो गया ।
तुम मेरे वसन्त हो गये
मैं तेरा वसन्त हो गया ।
मेरा प्यार और रूप तुम्हारा
माहिर हैं दोनों प्रतिद्वंदी
आओ करें जुगलबंदी । आओ..
अपने असरदार गीतों और मधुर आवाज के कारण श्याम महफिलों की जान बन जाते थे –
मैं कहीं भी चला जाऊं,
कहीं से चला आऊं,
तेरे ही पास आता हूं,
तुझी में खो जाता हूं ।
मीरा को गाऊं या मीर को,
तुलसी या कबीर को
किसी को गुनगुनाऊं,
किसी के गीत गाऊं,
तुझे ही मैं गाता हूं,
तुझी में खो जाता हूं ।
18 अप्रैल 1941 में जबलपुर में जन्में कृष्णकुमार श्रीवास्तव “श्याम” ने हिंदी साहित्य में एम. ए. किया । कल्याण (मुम्बई), कटनी तथा प्रतिनियुक्ति पर ईराक में रेलवे स्टेशन मास्टर तथा जबलपुर में रेलवे स्टेशन अधीक्षक के पद पर रहे । श्याम भाई ने अपने विद्यार्थी जीवन से ही काव्य लेखन प्रारंभ कर दिया था और अपने समय के चर्चित साहित्यकारों से प्रशंसित होने लगे थे ।
तुम सितार, अंगुलियाँ मैं हूं
खुशबू तुम, पंखुरियां मैं हूं
तुम में मुझमें क्या स्पर्धा
तुम लय-स्वर, बांसुरिया मैं हूं।
रूप है राधा कृष्ण भावना
प्यार भक्ति की चरम बुलंदी ।
1974 में उनकी प्रथम कृति “श्याम के गीत” प्रकाशित हुई । इस कृति ने और देश के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों व काव्य गोष्ठियों में उनके भाव भरे गीतों ने उनकी यश – कीर्ति में वृद्धि की और वे अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो गए । विविध पत्र – पत्रिकाओं में उनके हिन्दी और बुंदेली गीत, ग़ज़ल, नज़्म, भजन निरंतर प्रकाशित हो रहे थे । वे आकाशवाणी के द्वारा गायन – प्रसारण के लिए अधिकृत कवि थे । मर्मस्पर्शी कंठ से आकाशवाणी तथा विविध मंचों पर उनके स्वरचित हिंदी एवं बुंदेली गीतों ने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया था ।
अपने समय के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. रामेश्वर शुक्ल “अंचल” ने लिखा था कि “श्याम का निश्छल, सहज-प्रसन्न मन अपने कथ्य के प्रति आश्वस्त और निष्ठा पर अडिग रहता है ।”डॉ. शिवमंगल सिंह “सुमन” ने लिखा था – “श्याम के गीत बड़े विदग्ध और विलोलित हैं । कवि की पीड़ा विभिन्न आयामों से गुजरती हुई अनुभूति के विरल क्षणों को समेटने में समर्थ हुई है। ” सुप्रसिद्ध कहानीकार ज्ञानरंजन का कथन है – “खास बात कवि “श्याम” के गीतों की मुझे यह लगती है कि उन्होंने जड़ और पारंपरिक ढांचे को तोड़ा है तथा लोकजीवन के ताजे छंद उद्वेगों से उन्हें जोड़ा है। ” डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” के अनुसार – “मेरा मत है कि “श्याम” के गीत प्रेम, पीड़ा और सौंदर्य का त्रिवेणी – संगम है।”
“तुम थे तो छोटे थे,
तुम बिन बड़े हो गए दिन”
28 नवंबर 2008 को मधुर गीतकार कृष्णकुमार श्रीवास्तव “श्याम” का देहावसान हो गया किंतु वे अपनी कृतियों “श्याम के गीत” और “यादों की नागफनी” तथा अपने सरस गीतों के लिए सदा याद किए जाएंगे।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “संत रैदास…”।)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता ‘आसमां से गिरकर कहां जाएंगी…‘।)
☆ कविता – आसमां से गिरकर कहां जाएंगी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆