हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 112 ☆ ग़ज़ल – “जिंदगी…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “जिन्दगी …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #112 ☆  ग़ज़ल  – “’जिन्दगी …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सुख दुखों की एक आकस्मिक रवानीं जिंदगी

हार-जीतों की की बड़ी उलझी कहानीं जिंदगी

व्यक्ति श्रम और समय को सचमुच समझता बहुत कम

इसी से संसार में धूमिल कई की जिंदगी ।।1।।

 

कहीं कीचड़ में फँसी सी फूल सी खिलती कहीं

कहीं उलझी उलझन में, दिखती कई की।

पर निराशा के तमस में भी है आशा की किरण

है इसीसे तो है सुहानी दुखभरी भी जिंदगी ।।2।।

 

कहीं तो बरसात दिखती कहीं जगमग चाँदनी 

कहीं हँसती खिल-खिलाती कहीं अनमन जिंदगी।

भाव कई अनुभूतियाँ कई, सोच कई, व्यवहार कई

पर रही नित भावना की राजधानी जिंदगी ।।3।।

 

 सह सके उन्होंने ही सजाई है कई की जिंदगी

कठिनाई से जो उनने नित रचा इतिहास

सुलभ या दुख की महत्ता कम, महत्ता है कर्म की

कर्म से ही सजी सँवरी हुई सबकी जिंदगी ।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (2 जनवरी से 8 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (2 जनवरी से 8 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

हश्र कुछ यूँ हुआ जिन्दगी की किताब का,

मैं जिल्द संवारता रहा और पन्ने बिखरते गये !।

आपकी जिंदगी में ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप उसको संभालने का प्रयास करें और वह निरंतर बिखरती जाए। आपकी जिंदगी को संवारने के लिए मैं पंडित अनिल कुमार पाण्डेय आपके पास 2 जनवरी से 8 जनवरी 2023 अर्थात विक्रम संवत 2079 ई शक संवत 1944 के पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी से माघ कृष्ण पक्ष की  द्वितीया तक के सप्ताह का सप्ताहिक राशिफल लेकर उपस्थित हुए हुआ हूं।

इस सप्ताह चंद्रमा पहले मेष राशि का रहेगा। 2 तारीख को 11:02 रात से  वृष राशि में प्रवेश करेगा। 5 तारीख को 8:23 दिन से मिथुन राशि में गोचर करेगा। अंत में 7 तारीख को 7:30 रात्रि से कर्क राशि का हो जाएगा।

इस सप्ताह सूर्य धनु राशि में, मंगल वृष राशि में वक्री, बुध धनु राशि में वक्री, गुरु  मीन राशि में,शनि और शुक्र मकर राशि में, और राहु मेष राशि में रहेंगे।

आइए अब हम राशिफल की चर्चा करते हैं

मेष राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका विशेष रूप से साथ देगा। आपके कई कार्य केवल भाग्य की वजह से हो जाएंगे। शासकीय कार्यालयों में आपको सफलता प्राप्त होगी। अगर आप चाहेंगे तो आप कोई बड़ा कार्य भी कर सकते हैं। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। आपका व्यय विशेष रूप से बढ़ेगा। सुख के सामानों की खरीदी हो सकती है।   धन आने का योग है।  इस सप्ताह आप के लिए 2 और 8 जनवरी उत्तम है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं।  सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। धन आने का उत्तम योग है। भाग्य अच्छी तरह से आपका साथ देगा।। आपके कई कार्य केवल भाग्य की वजह से हो जाएंगे। आपको अपने कार्यों को संपन्न कराने में कम परिश्रम करना पड़ेगा। छोटी मोटी दुर्घटना का योग है।  इस सप्ताह आपके लिए 3 और 4 जनवरी सफलता दायक है। 2 जनवरी को आपको कई कार्यों में असफलता प्राप्त हो सकती है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रातः काल स्नान के उपरांत एक तांबे के पात्र में जल अक्षत और  लाल पुष्प लेकर भगवान  सूर्य को मंत्रों के साथ जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। व्यापार में उन्नति होगी। गलत रास्ते से धन हानि का योग है। कचहरी के कार्य में सफलता प्राप्त होगी। आपके  प्रयासों के कारण आपके शत्रु पराजित हो सकते हैं।  छोटी मोटी दुर्घटना का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 5, 6 और 7 जनवरी लाभदायक हैं।  3 और 4 जनवरी को आपको कोई भी कार्य  सोच समझ कर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार का व्रत रखें एवं  शनिवार को शनि देव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

कर्क राशि के अविवाहित जातकों के विवाह की उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। मामूली धन आने का योग है। कार्यालय में आपकी अपने अधिकारी से लड़ाई हो सकती है। कृपया सावधान रहें।। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा।आपके प्रयासों से आपके शत्रु पराजित हो सकते हैं। आपको अपने संतान से कम सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 2 और 8 जनवरी लाभप्रद हैं। 2 और 8 जनवरी को आपके अधिकांश कार्य सफल होंगे। 5, 6 और 7 जनवरी को आपको सभी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए। अगर आप सावधानीपूर्वक कार्य नहीं करेंगे तो कार्य सफल नहीं हो पाएगा। आपको चाहिए क्या आप इस सकता शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

आपको अपने संतान से इस सप्ताह पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। आपके संतान की उन्नति हो सकती है। उनके और आपके बीच में अच्छा प्रेम संबंध रहेगा।आपका और आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य मैं थोड़ा परेशानी आ सकती है।  इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर यकीन करना चाहिए। भाग्य पर नहीं। भाग्य  इस सप्ताह कम साथ देगा। भाइयों से भी संबंध खराब हो सकता है।  इस सप्ताह आपके लिए 3 और 4 जनवरी उत्तम और फलदायक हैं।। 8 जनवरी को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए।। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार के दिन मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी तथा मंगल देव की पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आप अगर अविवाहित हैं तो  इस वर्ष विवाह हेतु अच्छे प्रस्ताव आएंगे। इस वर्ष आपका विवाह हो जाना चाहिए। प्रेम संबंधों में लाभ होगा। भाग्य आपका साथ देगा। संतान के साथ उत्तम संबंध रहेंगे।। छात्रों की पढ़ाई अच्छी चलेगी। माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 5, 6 और 7 जनवरी उत्तम और लाभदायक है। 5,  6 और 7 जनवरी को आप सभी कार्यों में सफल रहेंगे। 2 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  स्वयं या किसी विद्वान ब्राह्मण से गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ  करवाएं।सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई और बहनों से बहुत अच्छे संबंध रहेंगे।  भाई और बहनों का आपको सहयोग प्राप्त होगा। माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आप  सुख की सामग्री खरीद सकते हैं।  घर में कोई अच्छा कार्य भी हो सकता है।जिसमें काफी धनराशि व्यय होगी।  पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है।  कार्यालय में आपकी स्थिति में गिरावट आ सकती है।  भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 2 और 8 जनवरी शुभ परिणामदायक हैं।  3 और 4 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं।आपको चाहिए कि  पिताजी के स्वास्थ्य के लिए तथा कार्यालय में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का प्रतिदिन दूध और जल से अभिषेक करें।  इस अभिषेक के कार्य में किसी विद्वान ब्राह्मण से ही  मदद लें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

आपके जीवनसाथी के लिए यह सप्ताह उत्तम है।भाई बहनों से आपके अच्छे संबंध रहेंगे। धन आने का अच्छा योग है।। व्यापार में लाभ होगा। आप अपने शत्रुओं को अपने प्रयास से समाप्त कर सकते हैं। संतान आपके साथ सहयोग करेंगी। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपके कार्य आपके परिश्रम के कारण आराम से हो जाएंगे।छोटी मोटी दुर्घटना का भी योग है। इस सप्ताह आपके लिए 3 और 4 जनवरी अति उत्तम है।  3 और 4 जनवरी को आपके सभी कार्य अच्छे ढंग से हो जाएंगे।  2, 5,6 और 7 जनवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

आपके प्रयासों से इस सप्ताह आपके सभी शत्रु परास्त हो सकते हैं। शत्रु को परास्त करने के लिए यह आपको अच्छा समय प्राप्त हुआ है।  माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है।  धन आने का अच्छा योग है।  आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।  व्यापार में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 5,6 और 7 जनवरी उत्तम और फलदायक है। इन तारीखों में आपके कार्य सफल होंगे। 3, 4 और 8 जनवरी को आपके कम कार्य सफल  होंगे।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप बुधवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके लिए  उत्तम है। मुकदमों में आपको सफलता मिलेगी। व्यापार बढ़ेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। संतान के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। भाई बहन के साथ अच्छे संबंध रहेंगे।  छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी।  इस सप्ताह आपके लिए 2 और 8 जनवरी श्रेष्ठ और लाभदायक है।  5, 6 और 7 जनवरी को  कार्य को करने के पूर्व कार्य के बारे में आपको विचार करना चाहिए और सावधानीपूर्वक कोई भी कार्य करना चाहिए।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें।

सप्ताह का शुभ दिन बुध है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह  कचहरी के कार्यों में सफलता का उत्तम योग है। धन प्राप्ति का भी अच्छा योग है। व्यापार में सफलता प्राप्त होगी। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा।। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है।   अपनी संतान के साथ आपका अच्छा संबंध रहेगा। संतान आपकी मदद करेंगे इस सप्ताह आपके लिए 3 और 4 जनवरी अत्यंत उत्तम है 3 और 4 जनवरी को आप द्वारा किए गए सभी कार्य सफल होंगे 8 जनवरी को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह व्यापार में आपकी अच्छी उन्नति हो सकती है। अगर आप नौकरी में हैं तो आपको अच्छी पदस्थापना मिल सकती है।  आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप  अविवाहित हैं तो इस वर्ष विवाह होने के अच्छे अवसर आएंगे।आपका विवाह इस वर्ष हो भी सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य थोड़ी तकलीफ आ सकती है। भाग्य कम साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 5,6 और 7 जनवरी उत्तम और लाभदायक है।   आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह  राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 133 – तो चंद्र सौख्यदायी ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 133 – तो चंद्र सौख्यदायी ☆

तो चंद्र सौख्यदायी सोडून आज आले।

ते भास चांदण्याचे विसरून आज आले।

 

प्रेमात रगलेल्ंया माझ्याच मी मनाला

वेड्या परीस येथे तोडून आज आले।

 

होता अबोल नेत्री होकार दाटलेला।

खंजीर जीवघेणे खुपसून आज आले।

 

मागू नकोस आता ते प्रेम भाव वेडे।

वेड्या मनास माझ्या जखडून आज आले।

 

देऊ कशी तुला मी खोटीच आर राजा।

आभास जीवनाचे विसरून आज आले।

 

जाणीव वेदनांची सांगू कशी कुणाला।

माझ्याच जीवनाला गाढून आज आले

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ कवितासंग्रह : “नाही उमगत ‘ती’ अजूनही“ – डाॅ. सोनिया कस्तुरे ☆ परिचय – डाॅ.स्वाती  पाटील ☆

? पुस्तकावर बोलू काही ?

 ☆कवितासंग्रह : “नाही उमगत ‘ती’ अजूनही“ – डाॅ. सोनिया कस्तुरे ☆ परिचय – डाॅ.स्वाती  पाटील ☆ 

कवयित्री – डॉक्टर सोनिया कस्तुरे

प्रकाशक – मनोविकास प्रकाशन, पुणे. 

पृष्ठसंख्या – १६०

किंमत – रु. ३००/-

अतिशय सुंदर मुखपृष्ठ, ,,’ती ‘च्या स्वप्तरंगी मनोविश्वाचे जणु प्रतीकच, तिच्या भरारीच्या अपेक्षेत असणारे आभाळ आणि झेप घेणारी पाखरे, तिच्या मनात असणारे पंख लावून केव्हाच ती आकाशात स्वैर प्रवाहित होत आहे परंतु त्याचवेळी जमिनीवरील घट्ट बांधून ठेवणाऱ्या साखळ्या आणि पर्यायाने बेडीमध्येही तिने ‘ती’ चं अस्तित्व टिकवून ठेवले आहे. अतिशय अर्थवाही असं हे या कवितासंग्रहाचे मुखपृष्ठ असून संग्रहाच्या नावाप्रमाणेच सखोल आणि विचार प्रवृत्त करायला लावणारे आहे.

अतिशय संवेदनशीलतेने  लिहिलेल्या या संग्रहाला प्रस्तावना ही तेवढीच वस्तुनिष्ठपणे, तरलतेने, आणि अतिशय अभ्यासपूर्ण व डोळसपणे लिहिलेली आहे ती प्राध्यापक आर्डे सरांनी.

डॉ सोनिया कस्तुरे

मनोगतामध्येच कवयित्री डॉक्टर सोनिया यांनी या कवितांची जडणघडण कशी झाली आहे हे सांगितले आहे. अत्यंत उत्कृष्ट प्रतीचे सामाजिक मूल्य असणाऱ्या या कविता लिहिताना त्यांना त्यांच्या वैद्यकीय व्यवसायातील अनुभवांचा, आजूबाजूच्या सामाजिक परिस्थितीचा, तात्कालीक घटनांचा खूप उपयोग झाला आहे. तरीही कवयित्रीची मूळ संवेदनशील वृत्ती, समाजाकडे डोळसपणे पाहण्याची दृष्टी आणि केवळ स्त्री म्हणून नाही तर एकूणच माणसांकडे पाहण्याची समदृष्टी ही जागोजागी आपल्याला ठळकपणे जाणवते. म्हणूनच केवळ स्त्रीवादी लाटांमध्ये आलेले आणखी एक साहित्य असे याचे स्वरूप न राहता यापेक्षा अतिशय दर्जेदार ,गुणवत्तापूर्ण, उच्च सामाजिक मूल्य व अभिरुचीपूर्ण असा हा वेगळा कवितासंग्रह आहे. 

हा कवितासंग्रह जरी पहिला असला तरी तो पहिला वाटत नाही. प्रत्येक कवितेमागे असणारी विचारधारा ही गेली अनेक वर्ष मनात, विचारात ,असणारी वाटते. सजगतेचे भान प्रत्येकच कवितेला आहे, म्हणूनच त्यांच्यामध्ये फार अलंकारिकता नाही परंतु जिवंतपणा 100% आहे. या कविता वाचणाऱ्या सर्व वयोगटातील स्त्रियांना ती आपली वाटणारी आहे. कारण या सर्वच जणी वेगवेगळ्या प्रकारे व्यवस्थेच्या बळी ठरलेल्या आहेत , ठरत आहेत आणि ही विषमता दूर झाली पाहिजे, समाजव्यवस्था बदलली पाहिजे, याचं भान जवळपास प्रत्येक कवितेत आहे. स्त्री आणि पुरुष यापलीकडे जाऊन व्यक्तीकडे एक माणूस म्हणून बघण्याची किती गरज आहे, हे हा कवितासंग्रह जाणवून देतो. स्त्रीवादी म्हणाव्या अशा या कविताच नाही, तर त्या आहेत एक उत्तम समाजव्यवस्था कशी असली पाहिजे. त्यामध्ये माणूस हा माणसाप्रमाणे वागला पाहिजे न की रुढी परंपरा, लिंगभिन्नता, दुय्यमतेच्या ओझ्याखाली वाकलेल्या, जातीपाती, धर्म अधर्म, सुंदर कुरुपतेच्या  स्वनिर्मित काचामध्ये अडकून स्वतःचे आणि इतरांचे जीवन असह्य बनवलेल्या  राक्षसाप्रमाणे– सुंदर कोण या कवितेत या सगळ्या जीवन मूल्यांचा त्यांनी मागोवा घेतला आहे. अतिशय सोप्या, सुबोध आणि छोट्या शब्दांमध्ये सुंदर या शब्दाचा अर्थ सांगताना सध्या समाजात जे समज झाले आहेत सुंदरतेचे, त्यावर त्यांनी अचूकपणे भाष्य केले आहे आणि ते अगदी आपल्याला तंतोतंत पटतेही .

‘मिरवू लागले’, या कवितेत ‘पुरोगामी’ या आजकाल प्रत्येकाने स्वतःला लावून घेतलेल्या बिरुदाचा फोलपणा दर्शवून दिला आहे. प्रत्येक स्वतःला विसरलेल्या बाईने वाचलाच पाहिजे असा हा संग्रह आहे. ‘ती’च्या उपजत निसर्गदत्त शक्तीचे यथायोग्य वर्णन कोणत्या न कोणत्या स्वरूपात प्रत्येक कवितेत वाचायला मिळते. उदाहरणार्थ :-

एक वाट सुटली तिची तरी

दुसरी तिला मिळत राहते

तिच्या उपजत कौशल्याने

ती वळण घेईल नव्याने जिकडे

नवी वाट तयार होते तिकडे…!

समतेचे धडे शिकवण्याची तीव्र गरज या कविता व्यक्त करतात. ते ही अतिशय सौम्य शब्दात. स्त्री पुरुष समानता या विषयावर कोणीही हल्ली उठून सवंग लिहीत असतो परंतु मुळात हा विषय समजून एक उत्तम सहजीवन कसं असावं आणि त्यामध्ये पुरुषांनी कसा पुढाकार घेतला पाहिजे ही शिकवणारी कविता म्हणजे,’ शब्दाबाहेर’ अर्थात ती तुम्ही स्वतःच वाचली पाहिजे. याबरोबरच तडजोड आणि स्वतःत बदल या दोन गोष्टीचे महत्त्व ही  ‘प्रपंच ‘ नावाच्या कवितेत व्यक्त करून कुटुंब व्यवस्थेचे महत्त्व त्या निर्विवादपणे स्वीकारतात. तिची आय. क्यु. टेस्ट कराल का? ही कविता तर डोळ्यात पाणी आल्याशिवाय वाचून पूर्ण होतच नाही. कारण आपल्या भारतातली प्रत्येक बाई यातल्या कोणत्या आणि कोणत्या ओळीत स्वतःला पाहतेच. यापेक्षा अधिक संवेदनशीलता काय असते ?’आरसा ‘ही कविता तर सर्वांनाच डोळ्यात अंजन घालणारी आहे. समान हक्क आणि वागणूक न देता, सन्मानांच्या हाराखाली जखडून ठेवणारी ही समाजव्यवस्था कधी कधी ‘ती’च्याही लक्षात येत नाही आणि हे स्वभान जागवण्याचं काम ही कविता करते. म्हणूनच ‘माणूस ती’ या कवितेत त्या म्हणतात :–

लक्ष्मी ना सरस्वती। ना अन्नपूर्णा।

सावित्रीची लेक। माणूस ती ।

दुर्गा अंबिका। कालिका चंडिका।

देव्हारा नको। माणुस ती…

सावित्रीचे ऋणही त्यांनी अगदी चपखल शब्दात फेडले आहे. जनावरांपेक्षा हीन,दीन लाचार होतो माणूस, आम्ही झालो माई तुझ्यामुळे । –या शब्दांची ओळख करून देणाऱ्या माईला शब्दफुलांच्या ओंजळीने कृतज्ञता वाहिली आहे, आपल्या सर्वांच्याच वतीने.

‘जोडीदार’ या कवितेत तर प्रत्येक स्त्रीला हा माझ्याच मनातला सहचर आहे असे वाटावे इतपत हे वर्णन जमले आहे आणि शेवटी या कल्पनाविलासातून बाहेर येत  ‘हे सत्यात उतरवण्याचा कायम प्रयत्न करत राहतो तो खरा जोडीदार’ असे सांगून एक आशादायक वास्तव शेवटी आपल्यापुढे मांडतात.

तर एका लेकीच्या नजरेत बाप कसा असावा हे बाप माणूस– हे तर मुळातूनच वाचण्यासारखं. अशी ही कवयित्री विठ्ठलाला सुद्धा जाब विचारायला घाबरत नाही. सर्व जनांचा, भक्तांचा कैवारी पण त्याला तरी जोडीदाराची खबर आहे का? खरंतर रूपकात्मकच ही कविता. ज्याने त्याने जाणून घ्यावी अशी. ‘मैत्री जोडीदाराशी’  या कवितेत सुद्धा एक खूप आशादायी चित्र त्या निर्माण करतात, जे खूप अशक्य नाही . क्षणाची पत्नी ही अनंत काळची मैत्रीण तसेच क्षणाचा नवरा हा अनंत काळचा मित्र झाला तर नाती शोधायला घराबाहेर जाण्याची गरजच पडणार नाही असं आदर्श सहजीवन त्या उभं करतात. आणि शेवटी अतिशय समर्पक असा शेवट करताना कवयित्री म्हणते—-

‘तिचं शिक्षण बुद्धिमत्ता शक्ती युक्तीचीच गाळ करून चुलीत कोंबले नसते ….

लग्नानंतर त्याच्या इतकं तिच्या करिअरचा विचार झाला असता…. वांझ म्हणून हिणवलं नसतं, विधवा म्हणून हेटाळलं नसतं… तिच्या योनीपावित्र्याचा बाऊ झाला नसता… तर कदाचित  मी कविता केली नसती.

हा कदाचित खरोखर अस्तित्वात येण्यासाठी समाजाच्या प्रत्येक घटकाचे योगदान येथे गरजेचे आहे .आपल्या बरोबरीने जगणाऱ्या एका माणसाला केवळ समाजव्यवस्था म्हणून रूढी परंपरा, जाती व्यवस्था, इत्यादी विषमतेच्या जोखडाखाली चिरडून टाकून ‘पुरोगामी’ म्हणून शिक्का मारून घेण्याचा कोणालाच अधिकार नाही. किमान याचे भान जरी समाजाच्या प्रत्येक घटकांमध्ये अल्प प्रमाणात का होईना जागे करण्याचे बळ या संग्रहामध्ये आहे. त्याबरोबरच जिच्या पंखांना ताकद देण्याची गरज आहे , जिच्या पंखावरचे जड ओझे भिरकावून द्यायची गरज आहे, अशा सर्व ‘ती’ ना आणि  सर्व जगातल्या  ‘ती’च्यावर आईपण व बाईपण याचे ओझे वाटू देणाऱ्या व्यवस्थेवर लेखणीने प्रहार करणारा हा कविता संग्रह निश्चितच समाजमन जागे करणारा आणि मानवतेच्या सर्व मूल्यांची जोपासना करण्याची शिकवण देणारा आहे, असे थोडक्यात याचे वर्णन करता येईल. बऱ्याच दिवसातून काही आशयसंपन्न वाचल्याचे समाधान देणारा कवितासंग्रह.

मी अभिनंदन करते कवयित्रीच्या शब्दभानाचे,  सौम्यवृत्तीचे, माणूसपण जपणाऱ्या भावनेचे आणि विवेकपूर्ण संयमी विचाराचे.

© डॉ.स्वाती पाटील

सांगली

मो.  9503628150

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #163 ☆ प्रार्थना और प्रयास ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख प्रार्थना और प्रयास। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 163 ☆

☆ प्रार्थना और प्रयास ☆

प्रार्थना ऐसे करो, जैसे सब कुछ भगवान पर निर्भर है और प्रयास ऐसे करो कि जैसे सब कुछ आप पर निर्भर है–यही है लक्ष्य-प्राप्ति का प्रमुख साधन व सोपान। प्रभु में आस्था व आत्मविश्वास के द्वारा मानव विषम परिस्थितियों में कठिन से कठिन आपदाओं का सामना भी कर सकता है…जिसके लिए आवश्यकता है संघर्ष की। यदि आप में कर्म करने का मादा है, जज़्बा है, तो कोई भी बाधा आपकी राह में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती। आप आत्मविश्वास के सहारे निरंतर बढ़ते चले जाते हैं। परिश्रम सफलता की कुंजी है। दूसरे शब्दों में इसे कर्म की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘संघर्ष नन्हे बीज से सीखिए, जो ज़मीन में दफ़न होकर भी लड़ाई लड़ता है और तब तक लड़ता रहता है, जब तक धरती का सीना चीरकर वह अपने अस्तित्व को साबित नहीं कर देता’– यह है जिजीविषा का सजीव उदाहरण। तुलसीदास जी ने कहा है कि यदि आप धरती में उलटे-सीधे बीज भी बोते हैं, तो वे शीघ्रता व देरी से अंकुरित अवश्य हो जाते हैं। सो! मानव को कर्म करते समय फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कर्म का फल मानव को अवश्य प्राप्त होता है।

कर्म का थप्पड़ इतना भारी और भयंकर होता है कि जमा किया हुआ पुण्य कब खत्म हो जाए, पता ही नहीं चलता। पुण्य खत्म होने पर समर्थ राजा को भी भीख मांगने पड़ सकती है। इसलिए कभी भी किसी के साथ छल-कपट करके उसकी आत्मा को दु:खी मत करें, क्योंकि बद्दुआ से बड़ी कोई कोई तलवार नहीं होती। इस तथ्य में सत्-कर्मों पर बल दिया गया है, क्योंकि सत्-कर्मों का फल सदैव उत्तम होता है। सो! मानव को छल-कपट से सदैव दूर रहना चाहिए, क्योंकि पुण्य कर्म समाप्त हो जाने पर राजा भी रंक बन जाता है। वैसे मानव को किसी की बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए, बल्कि प्रभु का शुक्रगुज़ार रहना चाहिए, क्योंकि प्रभु जानते हैं कि हमारा हित किस स्थिति में है? प्रभु हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हैं। इसलिए हमें सदैव सुख में प्रभु का सिमरन करना चाहिए, क्योंकि परमात्मा का नाम ही हमें भवसागर से पार उतारता है। सो! हमें प्रभु का स्मरण करते हुए सर्वस्व समर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि वही आपका भाग्य-विधाता है। उसकी करुणा-कृपा के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। दूसरी ओर मानव को आत्मविश्वास रखते हुए अपनी मंज़िल तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इस स्थिति में मानव को यह सोचना चाहिए कि वह अपने भाग्य का विधाता स्वयं है तथा उसमें असीम शक्तियां संचित हैं।  अभ्यास के द्वारा जड़मति अर्थात् मूढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है, जिसके अनेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं। कालिदास के जीवन-चरित से तो सब परिचित हैं। वे जिस डाली पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। परंतु प्रभुकृपा प्राप्त होने के पश्चात् उन्होंने संस्कृत में अनेक महाकाव्यों व नाटकों की रचना कर सबको स्तब्ध कर दिया। तुलसीदास को भी रत्नावली के एक वाक्य ने दिव्य दृष्टि प्रदान की और उन्होंने उसी पल गृहस्थ को त्याग दिया। वे परमात्म-खोज में लीन हो गए, जिसका प्रमाण है रामचरितमानस  महाकाव्य। ऐसे अनगिनत उदाहरण आपके समक्ष हैं। ‘तुम कर सकते हो’– मानव असीम शक्तियों का पुंज है। यदि वह दृढ़-निश्चय कर ले, तो वह सब कुछ कर सकता है, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सो! हमारे हृदय में शंका भाव का पदार्पण नहीं होना चाहिए। संशय उन्नति के पथ का अवरोधक है और हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। हमें संदेह, संशय व शंका को अपने हृदय में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए।

संशय मित्रता में सेंध लगा देता है और हंसते-खेलते परिवारों के विनाश का कारण बनता है। इससे निर्दोषों पर गाज़ गिर पड़ती है। सो! मानव को कानों-सुनी पर नहीं; आंखिन- देखी पर विश्वास करना चाहिए, क्योंकि अतीत में जीने से उदासी और भविष्य में जीने से तनाव आता है। परंतु वर्तमान में जीने से आनंद की प्राप्ति होती है। कल अर्थात् बीता हुआ कल हमें अतीत की स्मृतियों में जकड़ कर रखता है और आने वाला कल भविष्य की चिंताओं में उलझा लेता है और उस व्यूह से हम चाह कर भी मुक्त नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में मानव सदैव इसी उधेड़बुन में उलझा रहता है कि उसका अंजाम क्या होगा और इस प्रकार वह अपना वर्तमान भी नष्ट कर लेता है। सो! वर्तमान वह स्वर्णिम काल है, जिसमें जीना सर्वोत्तम है। वर्तमान आनंद- प्रदाता है, जो हमें संधर्ष व परिश्रम करने को प्रेरित करता है। संघर्ष ही जीवन है और जो मनुष्य कभी बीच राह से लौटता नहीं; वह धन्य है। सफलता सदैव उसके कदम चूमती है और वह कभी भी अवसाद के घेरे में नहीं आता। वह हर पल को जीता है और हर वस्तु में अच्छाई की तलाशता है। फलत: उसकी सोच सदैव सकारात्मक रहती है। हमारी सोच ही हमारा आईना होती है और वह आप पर निर्भर करता है कि आप गिलास को आधा भरा देखते हैं या खाली समझ कर परेशान होते हैं। रहीम जी का यह दोहा ‘जै आवहिं संतोष धन, सब धन धूरि समान’ आज भी समसामयिक व सार्थक है। जब जीवन में संतोष रूपी धन आ जाता है, तो उसे धन-संपत्ति की लालसा नहीं रहती और वह उसे धूलि समान भासता है। शेक्सपीयर का यह कथन ‘सुंदरता व्यक्ति में नहीं, दृष्टा की आंखों में होती है’ अर्थात् सौंदर्य हमारी नज़र में नहीं, नज़रिए में होता है इसलिए जीवन में नज़रिया व सोच को बदलने की शिक्षा दी जाती है।

जीवन में कठिनाइयां हमें बर्बाद करने के लिए नहीं आतीं, बल्कि हमारी छुपी हुई सामर्थ्य व  शक्तियों को बाहर निकालने में हमारी मदद करती हैं। ‘कठिनाइयों को जान लेने दो कि आप उनसे भी कठिन हैं। कठिनाइयां हमारे अंतर्मन में संचित सामर्थ्य व शक्तियों को उजागर करती हैं;  हमें सुदृढ़ बनाती हैं तथा हमारे मनोबल को बढ़ाती हैं।’ इसलिए हमें उनके सम्मुख पराजय नहीं स्वीकार नहीं चाहिए। वे हमें भगवद्गीता की कर्मशीलता का संदेश देती हैं। ‘उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने/ औरों के वजूद में नुक्स निकालते- निकालते/ इतना ख़ुद को तराशा होता/ तो फ़रिश्ते बन जाते।’ गुलज़ार की ये पंक्तियां मानव को आत्मावलोकन करने का संदेश देती हैं। परंतु मानव दूसरों पर अकारण दोषारोपण करने में प्रसन्नता का अनुभव करता है और निंदा करने में उसे अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वह पथ-विचलित हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘अगर ज़िन्दगी में सुक़ून चाहते हो, तो फोकस काम पर रखो; लोगों की बातों पर नहीं। इसलिए मानव को अपने कर्म की ओर ध्यान देना चाहिए; व्यर्थ की बातों पर नहीं।’ यदि आप ख़ुद को तराशते हैं, तो लोग आपको तलाशने लगते हैं। यदि आप अच्छे कर्म करके ऊंचे मुक़ाम को हासिल कर लेते हैं, तो लोग आपको जान जाते हैं और आप का अनुसरण करते हैं; आप को सलाम करते हैं। वास्तव में लोग समय व स्थिति को प्रणाम करते हैं; आपको नहीं। इसलिए आप अहं को जीवन में पदार्पण मत करने दीजिए। सम भाव से जीएं तथा प्रभु-सत्ता के सम्मुख समर्पण करें। लोगों का काम है दूसरों की आलोचना व निंदा करना। परंतु आप उनकी बातों की ओर ध्यान मत दीजिए; अपने काम की ओर ध्यान दीजिए। ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती/ लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती।’ सो!  निरंतर प्रयासरत रहिए– मंज़िल आपकी राहों में प्रतीक्षारत रहेगी। प्रभु-सत्ता में विश्वास बनाए रखिए तथा सत्कर्म करते रहिए…यही जीवन जीने का सही सलीका है।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #162 ☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “हे मां मातृभूमि तुझे नमन।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 162 – साहित्य निकुंज ☆

☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆

(30 दिसंबर, 1943 को पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर के रॉस द्वीप में आजाद हिंद फौज का झंडा फहराया था। अब इस स्थान को सुभाष दीप कहा जाता है।)

हे मां मातृभूमि तुझे नमन

शत शत नमन मेरे वतन

तेरे स्नेह में किए अर्पित

किए तुमने प्राण समर्पित।

 

सन तेतालीस पोर्ट ब्लेयर में

आजादी का झंडा लहराया।

भारत माता विजय दिवस

दिसंबर 30  याद आया।

 

याद आते हरदम सुभाष

उन्हें थी बस वतन की आस

पराक्रमी देशभक्त को था

आजादी मिलने का विश्वास।

 

 सुभाष पर वतन को गुमान

बच्चे बच्चे पर है इनका नाम

कहां खो गए ये भी भान नहीं

याद कर वतन करता सम्मान।

 

वतन आज आजाद नहीं

कहीं तबाही कहीं आतंकी

कहीं सुलगता है इन्सान

दे रहे कितने शहीद बलिदान।

 

तुम मुझे खून….किया जयघोष।

स्वाधीनता का किया उदघोष

वतन याद कर रहा आज भी

आजादी के लिए किया संघर्ष

 

तेरे लहू का कतरा कतरा

वतन के काम है आया ।

जो आप कह गए सुभाष

वहीं देश ने बार बार दोहराया।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #149 ☆ संतोष के दोहे – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 149 ☆

☆ संतोष के दोहे  – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 

अपनों ने ही कर दिया, घायल जब अहसास

गैरों पर करते भला,  हम कैसे विश्वास

 

मुँह पर मीठा बोलते, मन कालिख भरपूर

ऐसे लोगों से रहें, सदा बहुत हम दूर

 

कथनी करनी में नहीं, जिनकी बात समान

कभी भरोसा न करें, उन पर हम श्रीमान

 

दिल के रिश्तों में सदा, कभी न होता स्वार्थ

मतलब के संबंध बस, होते हैं लाभार्थ

 

रिश्ते-नाते हो रहे, आज एक अनुबंध

जब दिल चाहा तोड़ते, रहा न अब प्रतिबंध

 

प्रेम समर्पण में रखा, शबरी ने विश्वास

कुटी पधारे राम जी, रख कायम अहसास

 

तकलीफें मिटतीं मगर, रह जाता अहसास

छीन सके न कोई भी, जो दिल के है पास

 

रहता है जो सामने, पर हो ना अहसास

उस ईश्वर को समझिए, जिसका दिल में वास

 

पकड़ न पायें जिसे हम, जिसकी ना पहचान

मैं अंदर की चीज हूँ, समझो तुम नादान

 

गलती को स्वीकारिये, हो जब भी अहसास

मिलता है संतोष तब, कभी न हो उपहास

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #155 ☆ निरोप…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 155 – विजय साहित्य ?

☆ निरोप…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

मनस्पर्शी जाणिवांची

आठवांची पत्रावळ

दूर जाते कुणी एक

मागें उरे सणावळ…!  १

 

डोळ्यातील मोती माला

निरोपाचे मूर्त रूप

नको चिंता नि काळजी

तन मन सुखरूप….! २

 

काढ माझी आठवण

घाल ईरसाल शिवी

निरोपाच्या खुशालीत

त्याची होईल रे ओवी…! ३

 

आभाळाच्या आरशात

आठवांची पानगळ

निरामय संवादाने

दूर कर मरगळ…! ‌४

 

भेट नसतो शेवट

भेट प्रवास आरंभ

निरोपाने जोडलेला

जीवनाचा शुभारंभ…! ५

 

गुरू,मित्र, आप्तेष्टांचा

असे निरोप हळवा

हात हलता सांगतो

वेळ येण्याची कळवा…! ६

 

नाही टळले कुणाला

निरोपाचे देणें घेणे

दिनदर्शिकेचे पानं

नियोजित शब्द लेणे…! ७

 

निरोपाचा हेतू सांगे

आला भावनिक क्षण

हासू आणि आसू तून

वाहे खळाळते मन…! ८

 

दुरावते कधी तन

कधी दुरावते नाते

श्रृती स्मृती येणे जाणे

मन निरोपाचे जाते…! ९

 

जुन्या वर्षाला निरोप

नव्या वर्षाचे स्वागत

ध्येय संकल्प इच्छांचे

हळवेले मनोगत…!  १०

 

निरोपाचा येता क्षण

मन राहिना मनात

शब्द शब्द कवितेचा

एका एका निरोपात..! ११

 

कधी बाप्पाला निरोप

कधी कुणा श्रद्धांजली

होतो स्थानात बदल

अंतरात स्नेहांजली….! १२

 

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२ (अग्नि सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२  (अग्नि सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२ ( अग्नि सूक्त )

ऋषी – मेधातिथि कण्व : देवता – अग्नि 

ऋग्वेदातील पहिल्या मंडलातील बाराव्या सूक्तात मधुछन्दस वैश्वामित्र या ऋषींनी अग्निदेवतेला आवाहन केलेले आहे. त्यामुळे हे सूक्त अग्निसूक्त म्हणून ज्ञात आहे. 

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

अ॒ग्निं दू॒तं वृ॑णीमहे॒ होता॑रं वि॒श्ववे॑दसम् । अ॒स्य य॒ज्ञस्य॑ सु॒क्रतु॑म् ॥ १ ॥

समस्त देवांचा अग्नी तर विश्वासू दूत

अर्पित हवि देवांना देण्या अग्नीचे हात 

अग्नी ठायी वसले ज्ञान वेदांचे सामर्थ्य

आवाहन हे अग्निदेवा होउनिया आर्त ||१||

अ॒ग्निम॑ग्निं॒ हवी॑मभिः॒ सदा॑ हवन्त वि॒श्पति॑म् । ह॒व्य॒वाहं॑ पुरुप्रि॒यम् ॥ २ ॥

मनुष्य जातीचा प्रिय राजा पवित्र  अनलाग्नी

सकल देवतांप्रती नेतसे हविला पंचाग्नी

पुनःपुन्हा आवाहन करितो अग्नीदेवतेला

सत्वर यावे सुखी करावे शाश्वत आम्हाला ||२||

अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह जज्ञा॒नो वृ॒क्तब॑र्हिषे । असि॒ होता॑ न॒ ईड्यः॑ ॥ ३ ॥

दर्भाग्रांना सोमरसातून काढूनिया सिद्ध

अर्पण करण्याला देवांना केले पूर्ण शुद्ध

हविर्भाग देवांना देशी पूज्य आम्हासी 

सवे घेउनी समस्त देवा येथ साक्ष होशी ||३|| 

ताँ उ॑श॒तो वि बो॑धय॒ यद॑ग्ने॒ यासि॑ दू॒त्यम् । दे॒वैरा स॑त्सि ब॒र्हिषि॑ ॥ ४ ॥

जावे अग्निदेवा होउनिया अमुचे दूत

कथन करी देवांना अमुच्या हवीचे महत्व

झणी येथ या देवांना हो तुम्ही सवे घेउनी

यज्ञवेदिवर विराज व्हावे तुम्ही दर्भासनी ||४||

घृता॑हवन दीदिवः॒ प्रति॑ ष्म॒ रिष॑तो दह । अग्ने॒ त्वं र॑क्ष॒स्विनः॑ ॥ ५ ॥

सख्य करूनीया दैत्यांशी रिपू प्रबळ जाहला

प्राशुनिया घृत हवनाने तव प्रज्ज्वलीत ज्वाला 

अरी जाळी तू ज्वालाशस्त्रे अम्हा करी निर्धोक 

सुखी सुरक्षित अम्हास करी रे तुला आणभाक ||५||

अ॒ग्निना॒ग्निः समि॑ध्यते क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ । ह॒व्य॒वाड् जु॒ह्वास्यः ॥ ६ ॥

स्वसामर्थ्ये प्रदीप्त अग्नी वृद्धिंगत होई 

प्रज्ञा श्रेष्ठ बुद्धी अलौकिक गृहाधिपती होई

चिरयौवन हा सर्वभक्षक याचे मुख ज्वाळांत 

मुखि घेउनी सकल हवींना देवतांप्रती नेत ||६|| 

क॒विम॒ग्निमुप॑ स्तुहि स॒त्यध॑र्माणमध्व॒रे । दे॑वम॑मीव॒चात॑नम् ॥ ७ ॥

अग्नी ज्ञानी श्रेष्ठ देतसे जीवन निरामय

ब्रीद आपुले राखुनि आहे विश्वामध्ये सत्य

यज्ञामध्ये स्तवन करावे अग्नीदेवाचे

तया कृपेने यज्ञकार्य हे सिद्धीला जायचे ||७||

यस्त्वाम॑ग्ने ह॒विष्प॑तिर्दू॒तं दे॑व सप॒र्यति॑ । तस्य॑ स्म प्रावि॒ता भ॑व ॥ ८ ॥

अग्निदेवा तुला जाणुनी  देवांचा दूत

पूजन करितो हवी अर्पितो तुझिया ज्वाळात

यजमानावर कृपा असावी तुझीच रे शाश्वत

रक्षण त्याचे तुझेच कर्म प्रसन्न होइ मनात ||८||

यो अ॒ग्निं दे॒ववी॑तये ह॒विष्माँ॑ आ॒विवा॑सति । तस्मै॑ पावक मृळय ॥ ९ ॥

प्रसन्न करण्या समस्त देवा तुम्हालाच पुजितो

यागामाजी यज्ञकर्ता तुमची सेवा करितो

सकल जनांना पावन करिता गार्हपत्य देवा 

प्रसन्न होऊनी यजमानाला शाश्वत सुखात ठेवा ||९||

स नः॑ पावक दीदि॒वोऽ॑ग्ने दे॒वाँ इ॒हा व॑ह । उप॑ य॒ज्ञं ह॒विश्च॑ नः ॥ १० ॥

विश्वाचे हो पावनकर्ते आवहनीय देवा

यज्ञामध्ये हवी अर्पिल्या आवसस्थ्य देवा

यज्ञ आमुचा फलदायी हो दक्षिणाग्नी देवा

सवे घेउनिया यावे यज्ञाला या समस्त देवा ||१०||

स नः॒ स्तवा॑न॒ आ भ॑र गाय॒त्रेण॒ नवी॑यसा । र॑यिं वी॒रव॑ती॒मिष॑म् ॥ ११ ॥

अग्निदेवा तुमची कीर्ति दाही दिशा पसरली

गुंफुन स्तोत्रांमाजी मुक्तकंठाने गाइली

आशीर्वच द्या आम्हा आता धनसंपत्ती मिळो

तुझ्या प्रसादे आम्हापोटी वीर संतती मिळो ||११||

अग्ने॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ विश्वा॑भिर्दे॒वहू॑तिभिः । इ॒मं स्तोमं॑ जुषस्व नः ॥ १२ ॥

प्रज्ज्वलित तुमची आभा ही विश्वाला व्यापिते

हवी अर्पितो समस्त देवांना तुमच्या ज्वालाते

प्रसन्न होउन अर्पियलेले हविर्भाग स्वीकारा

देऊनिया आशीर्वच आम्हा यज्ञा सिद्ध करा ||१२||

हे सूक्त व्हिडीओ  गीतरुपात युट्युबवर उपलब्ध आहे. या व्हिडीओची लिंक येथे देत आहे. हा व्हिडीओ ऐकावा, लाईक करावा आणि सर्वदूर प्रसारित करावा. कृपया माझ्या या चॅनलला सबस्क्राईब करावे. 

https://youtu.be/2_RrKUNjD7s

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 108 ☆ लघुकथा – मान जाओ ना माँ ! ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील, हृदयस्पर्शी एवं विचारणीय लघुकथा ‘मान जाओ ना माँ !’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा  रचने   के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 108 ☆

☆ लघुकथा – मान जाओ ना माँ !  ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

मम्माँ किसी से मिलवाना है तुम्हें।

अच्छा, तो घर बुला ले उसे, पर कौन है? 

मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है।

मुझसे भी अच्छा? सरोज ने हँसते हुए पूछा।

इस दुनिया में सबसे पहले तुम ही तो मेरी दोस्त  बनी। तुम्हारे जैसा तो कोई हो ही नहीं सकता मम्माँ, यह कहते हुए विनी माँ के गले लिपट गई।

अरे ! दोस्त है  तो फिर पूछने की क्या बात है इसमें, आज शाम को ही बुला ले।  हम  सब  साथ में ही चाय पियेंगे।

सरोज ने शाम को चाय – नाश्ता  तैयार कर लिया था और बड़ी बेसब्री से विनी और उसके दोस्त का इंतजार कर रही थी। हजारों प्रश्न मन में उमड़ रहे थे। पता नहीं किससे मिलवाना चाहती है? इससे पहले तो कभी ऐसे नहीं बोली। लगता है इसे कोई पसंद आ गया है। खैर, ख्याली पुलाव बनाने से क्या फायदा, थोड़ी देर में सब सामने आ ही जाएगा, उसने खुद को समझाया। 

तभी दरवाजे की आहट सुनाई दी। सामने देखा विनी किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ चली आ रही थी।

मम्माँ ! आप  हमारे कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर  हैं – विनी ने कहा।

नमस्कार, बैठिए – सरोज ने विनम्रता से हाथ जोड़ दिए। विनी बड़े उत्साह से प्रोफेसर  साहब  को अपनी पुरानी फोटो  दिखा रही थी। काफी देर तक तीनों बैठे बातें  करते रहे। आप लोगों के साथ बात करते हुए समय का पता ही नहीं चला, प्रोफेसर  साहब ने घड़ी देखते हुए कहा – अब मुझे चलना चाहिए।

सर ! फिर आइएगा विनी बोली।

हाँ जरूर आऊँगा,  कहकर वह चले गए।

सरोज के मन में उथल -पुथल मची हुई  थी। उनके जाते ही विनी से बोली – तूने प्रोफेसर  साहब की उम्र देखी है? अपना दोस्त कह रही है उन्हें? कहीं कोई गलती न कर बैठना विनी – सरोज ने चिंतित स्वर में कहा।

विनी मुस्कुराते हुए बोली – पहले बताओ तुम्हें कैसे लगे प्रोफेसर  साहब? 

बातों से तो भले आदमी लग रहे थे पर – 

तुम्हारे लिए रिश्ता लेकर आई हूँ प्रोफेसर साहब का, बहुत अच्छे इंसान हैं। मैंने उनसे बात कर ली है। सारा  जीवन तुमने मेरी देखरेख में गुजार दिया। अब अपनी दोस्त को  इस घर में अकेला छोड़कर मैं  तो शादी नहीं  कर सकती।  मान जाओ ना माँ !

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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