हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – दीपोत्सव ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  काशी निवासी लेखक श्री सूबेदार पाण्डेय जी द्वारा  रचित दीप पर्व पर विशेष रचना “दीपोत्सव। ) 

साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – दीपोत्सव 

 

इन दुख की काली रातों में, दीपों से धरा सजाना है।

कोई कोना छूटे ना, इस तम को हमें ही  मिटाना है।

तन मन आलोकित कर,जग आलोकित कर जाना है।

जो अंधेरों में मन मारे बैठे हैं, आस का दीप जलाना है।।१।।

इन दुःख।।

 

जीवन की अंधेरी ‌राहों में,  कांटों के ऊपर चलना है।

उम्मीदों का दीप जला‌ कर, खतरे से बच निकलना है ।

ना ठोकर खाये कोई राह में ,दीपक बाती सा जलना है।

कर्मों के पथ आलोकित हो, जग में उजाला करना है।।२।।

इन दुख की।।

 

नीले अंबर की छांव में, दुख से कातर हर गांव में।

बांधे घुंघरू पांवों में, झम झम कर नाच दिखाना है ।

ना दुखिया हो जीवन में कोई, खुशियों के गीत सुनाना है।

हर तरफ खुशी के रेले हो, हर दिल का साज‌ बजाना है।।३।।

इन दुख की।।

 

खेतों में खलिहानों में, झोपड़ियों महलों के कंगूरों पे।

हर मंदिरों के कलशों पे, हर मस्जिद की मीनारों पे।

हर तरफ रोशनी फैली हो, दीपों से टिम टिम लड़ियों में।

कहीं  भी अंधेरे ना रह ना पायें, चर्चों और गुरूद्वारों में ।।४।।

इन दुःख।।

 

हर तरफ खुशी के मंजर हो,ना जंग में गम का अंधेरा हो।

आशा की किरणें फूट पड़े, हर जीवन में नया सबेरा हो।

आओ मिलकर खुशियां बांटें, सहस दें  सबको बधाई हो।।५।।

इन दुःख की।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 15 ☆ दीपावली विशेष – लक्ष्मी स्तवन ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  दीपावली पर्व पर एक  विशेष कविता  लक्ष्मी स्तवन।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 15 ☆

☆ लक्ष्मी स्तवन 

कल्याण दायिनी, धनप्रदे, माँ लक्ष्मी कमलासने

संसार को सुखप्रद बनाया, है तुम्हारे वास ने

चलती नहीं माँ जिंदगी, संसार में धन के बिना

जैसे कि आत्मा अमर होते हुये भी, तन कर बिना

निर्धन को भी निर्भय किया, माँ तुम्ही के प्रकाश ने

हर एक मन में है तुम्हारी, कृपा की मधु कामना

आशा लिये कर सक रहा, कठिनाईयों का सामना

जग को दिया आलोक हरदम, तुम्हारे विश्वास ने

संगीत सा आनन्द है, धन की मधुर खनकार में

संसार का व्यवहार सब , केंन्द्रित धन के प्यार में

सबके खुले हैं द्वार स्वागत में, तुम्हें सन्मानने

मन सदा करता रहा, मन से तुम्हारी साधना

सजी है पूजा की थाली , करने तेरी आराधना

माँ जगह हमको भी दो,अपने चरण के पास में

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ दिपावली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ दिपावली 

अमावस बन

अंधेरा मुझे डराता रहा,

हर अंधेरे के विरुद्ध

एक दीया मैं जलाता रहा,

रोशनी की मेरी मुहिम

शनैः-शनैः रंग लाई,

अनगिन दीयों से

रात झिलमिलाई,

सर पर पैर रख

अंधेरा पलायन कर गया

और-इस अमावस

मैंने दीपावली मनाई।

 

आपको एवं आपके परिवार को शुभ दीपावली। आरोग्य, यश, संपदा, संतोष के दीपक सदा प्रज्ज्वलित रहें।

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ हथेलियाँ/My Palms – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poem हथेलियाँ  with title  “My Palms” .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निर्देश निधि

 ☆ हथेलियाँ ☆ 

मेरी हथेलियाँ थीं रीति

जैसे होता है रीता कोई कच्चा कोरा कुम्भ

 

कसते ही तुम्हारी हथेली मेरी उन रीती हथेलियों में

खो गयी थीं सब रिक्तियाँ यूँ

जैसे सुरमई बादलों में खो जाती हैं बिजलियाँ

 

भर गई थीं हथेलियों की सब रिक्तियाँ 

जैसे भर जाते हैं प्यासी धरती के सारे गड्ढे बरसात के अमृत से

 

मेरी हथेलियाँ थीं कोरी

जैसे होता है सफ़ेद कोरा मारकीन

 

कसते ही तुम्हारी हथेली मेरी हथेलियों में 

मेरी रंगरहित हथेलियों पर चढ़ गया था गुलाबी रंग

जैसे चढ़ा दे रंगरेज कोई

प्रेयसी के रंगरहित कोरे दुपट्टे पर अपनी चाहतों के बूटे 

 

बड़ा फबा था बरसों – बरस वह गुलाबी रंग

मेरी रंगरहित, रिक्त हथेलियों पर

 

आज भी मेरी हथेलियों से

कपोलों तक का सफ़र करता है निर्बाध 

तुम्हारी क्षणिक छुअन का छोड़ा वह नरम गुलाबी रंग

 

मेरी हथेलियाँ थीं गंध रहित

जैसे होता है निर्गंध फूल केसुडे का

तुम्हारी हथेली की गंध का इत्र

आज भी महकाता है मेरी निर्गंध हथेलियाँ

 

उदास थीं बहुत मेरी हथेलियाँ

जैसे उदास रहती है रात्रि भर प्रियतम के बिना चकवी

मचल उठी थी एक विरल मुस्कान उन पर

तुम्हारी हथेली आते ही मेरी हथेलियों में

 

सुनो

तबसे अब तक नदियों के बीच बह गया है अगाध जल

सुबह दोपहर साँझ को लाद – लाद अपनी पीठ पर

सूरज लगा चुका है अनगिन चक्कर

अब रिसने लगा है अमृत पल – पल

रीतने लगी हैं हथेलियाँ फिर

कुछ – कुछ हल्का पड़ने लगा है

मेरी हथेलियों पर छपा गुलाबी रंग

 

अब कुछ कम महकता है तुम्हारा इत्र मेरी हथेलियों में

और उनकी मुस्कान चाहती है पुनर्जीवन

 

© निर्देश निधि

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

 

☆ My Palms☆

My palms were empty like

a raw hollow earthen pot…

As soon as your palms clasped my palms

All the emptiness vanished

Just as the lightning gets lost in the dark clouds…

 

All the gaps of the palms

were filled like all the pits-n-ponds of the

thirsty earth get

filled with the nectarly

water of the rain…

 

My palms were blank

As blank as a

spotless white paper

But, my colourless palms

tightly clasped in your

palms turned pink

like someone dyed

the choicest dupatta

of his beloved

with the rainbow

hues of the wishes…

 

It was a perfectly matched

pink colour after ages,

on my spotless, empty palms…

 

Even now, my palms

Sneak past my cheeks

repeatedly, ceaselessly

making them blush with the

soft pink colour left

by your momentary but brief touch…

 

My palms were odourless

like Kesuda flower

Even today fragrance of

your palms makes my palms

enchantingly fragrant…

 

My palms were so

full of gloom

like a Chakva,*

the bird of solitude,

remained sad

without the company

of her beloved…

But, they got

enlivened with the

ever joyful smile

Soon as your palms came into my palms…

 

Listen!

Since then,

a lot of water has flowed

under the bridge

Sun has done  countless

rounds around the earth,

carrying the morning-noon -evening  on its back…

The elixir is draining

out  drip  by  drip

moment by moment

Palms have started

getting empty again

Even, your pink colour

imprint etched on palms

has started to fade…

Now, your fragrance has

subdued  in my palms

As, they are losing their

smile and ebullience

They desperately need

a refill to revive again as

they long for your heavenly

touch with all its warmth..!

 

*Kesuda flower

Butea monosperma, the jungle fire flower, which brightly red but bereft of any fragrance…

*Chakva bird

A waterfowl famous for being separated from its pair at night…

*Dupatta

A long piece of cloth worn around the head, neck, and shoulders by women

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीपावली विशेष – व्यंग्य कविता – एक दीये ही हैं ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी  दीपावली पर्व पर  विशेष व्यंग्य कविता एक दीये ही हैं )

दीपावली विशेष – व्यंग्य कविता – एक दीये ही हैं

 एक दीये ही हैं

जो

रात में जलते हैं,

वरना

जलने वाले तो

दिन – रात जलते हैं । ”

 

आप पहली किस्म के हैं

आपको

सलाम करता हूँ,

दीवाली की अपनी शाम

आपके नाम करता हूँ ।

 

मेरा क्या  ?

मुझे जब भी

रोशनी को जरूरत होती

आपको याद कर

रोशन हो जाता हूँ,

जब मूड आये

दीवाली मनाता हूँ ।

(इससे इम्युनिटी बढ़ती सो अलग ! )

 

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीपावली विशेष – दीपावली ☆ सुश्री हरप्रीत कौर

सुश्री हरप्रीत कौर

(आज प्रस्तुत है  सुश्री हरप्रीत कौर जी  की एक समसामयिक भावप्रवण कविता  “दीपावली”।)   

☆ दीपावली विशेष – दीपावली  

जगमग दीपों से करते

अमावस्या की काली रात्रि

में उजियारा.

हो सबके जीवन में प्रकाश

है ईश्वर से यही प्रार्थना.

हर लो मेरे मन का तम भी

भगवन्,

दूर करो अज्ञान रूपी अंधेरे को,

परोपकार और करुणा के

दीप से प्रज्ज्वलित करो उर को.

श्रेष्ठ अपना जग को दे जाए

आओ,

इस दीपावली को

अहंकार को तिलांजलि दे

नवजीवन की ज्योति जलाए.

 

©  सुश्री हरप्रीत कौर

ई मेल [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सुदर्शन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सुदर्शन 

जब नहीं रहूँगा मैं

और बची रहेगी सिर्फ़ देह,

उसने सोचा….,

सदा बचा रहूँगा मैं

कभी-कभार नहीं रहेगी देह,

उसने दोबारा सोचा…,

विचार पहले से दूसरे

पड़ाव तक पहुँचा

उसका जीवन बदल गया…,

दर्शन क्या बदला

कल तक जो नश्वर था

आज ईश्वर हो गया..!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 59 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 59☆

☆ संतोष के दोहे ☆

अरुण रश्मियाँ नेह की, फैला रहीं प्रकाश

तिमिर सिमट कर भागता, नभ में हुआ उजास

 

हटता मन का जब तिमिर, तब आता है ज्ञान

गुरू भक्ति से दूर हो, अंतर का अभिमान

 

रोशन अब सारा शहर, झालर ज्योतिर्मान

दीप नेह के जल उठे, लक्ष्मी का सम्मान

 

बिजली बिन सूना लगे, सारा घर संसार

आदत इसकी पड़ गई, बिन बिजली लाचार

 

सूरज अपनी ताप से, देता है बरसात

जल-थल-नभचर पालता, उसकी यह सौगात

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ प्रयोग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ प्रयोग 

अदल-बदल कर

समय ने किये

कई प्रयोग पर

निष्कर्ष वही रहा,

धन, रूप, शक्ति,

सब खेत हुए

केवल ज्ञान

चिरंजीव रहा!

 ©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 12:08  21-10-2018.

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ यह पृथ्वी रहेगी/Earth will be there… – स्व केदारनाथ सिंह ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Late Kedarnath Singh’s  Classical Poem यह पृथ्वी रहेगी  with title  “Earth will be there… ” .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

स्व केदारनाथ सिंह 

☆ यह पृथ्वी रहेगी ☆   

मुझे विश्वास है

यह पृथ्वी रहेगी

यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में

यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में

रहते हैं दीमक

जैसे दाने में रह लेता है घुन

यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर

यदि और कहीं नहीं तो मेरी जबान

 

और मेरी नश्वरता में

यह रहेगी

और एक सुबह मैं उठूँगा

मैं उठूँगा पृथ्वी-समेत

जल और कच्छप-समेत मैं उठूँगा

मैं उठूँगा और चल दूँगा उससे मिलने

जिससे वादा है

कि मिलूँगा।

  ☆ Earth will be there… ☆

 I do believe this earth,

if nowhere else,

will remain in my bones

Like termites living

in a tree trunk

Like weevils living in grain

It will remain inside me

even after the holocaust…

If nowhere else

It’ll live in my tongue

and in my mortality…!

 

And, one fine morning,

I will wake up

with the earth

And rise up with the

water and turtle

I’ll get up and walk

to meet him

whom I have

promised to meet!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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