English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ खिड़की…/The Window… – Ms. Neelam Saxena Chandra ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s mesmerizing poem  “खिड़की ….  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this awesome translation.)

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division.

☆ खिड़की … ☆

वो कच्चा सा मिट्टी का घर,

और उसपर टंगी हुई वो खिड़की…

 

ऐसा लगता था जैसे

उसे किसी का इंतज़ार है…

 

किसका इंतज़ार था उसको?

उस घर के आसपास

न ही कोई मकाँ थे, न कोई सड़क…

 

जब मैंने उसे छूते हुए, उससे पूछा यह सवाल,

उसने मेरी आँख में आँख डालते हुए कहा,

“मुझे इंतज़ार है रास्ते का!”

मैं आश्चर्य से भरी लौट गयी…

 

पर अगले साल जब फिर उधर जाना हुआ

तो मेरी आँख खुली की खुली रह गयीं…

एक कच्चा रास्ता वहाँ वाकई बन गया था!

उस रास्ते को वो खिड़की बड़ी मुहब्बत से

देख रही थी, मानो वो दोनों ख़ामोशी में ही,

कुछ बातें कर रहे हों!

 

कई साल तक उधर जाना ही नहीं हुआ,

पर जब अब कई बरसों बाद फिर पहुंची तो देखा

कि उस कच्चे रास्ते की जगह,

कंक्रीट का पक्का रास्ता बन गया था

और छुप गया था वो कच्चा रास्ता उसके नीचे…

 

मुझे लगा शायद अब खिड़की बहुत खुश होगी-

आखिर उसके पास से ही एक नया रास्ता गुज़र रहा था…

पर उस खिड़की को मैंने बहुत उदास पाया!

उससे जब मैंने पूछा कि “क्या हुआ है उसे”

तो वो तुनककर बोली,

“पहली मुहब्बत को भुलाया जा सकता है क्या भला?

वो रास्ता भले ही कच्चा था,

पर वो सिर्फ और सिर्फ मेरा था

और केवल मुझसे ही मुहब्बत करता था-

अब इस पक्के रास्ते के चारों तरफ

हज़ारों पक्के मकाँ बन चुके हैं,

उनकी खिड़कियाँ भी बहुत खूबसूरत हैं,

और वो नया रास्ता मुझे देखता भी नहीं!”

 

उस रास्ते पर चलकर जब मैं वापस आने लगी,

तो कहीं से उस दबे हुए कच्चे रास्ते की हलकी सी आवाज़

आ तो रही थी, पर वो पक्का रास्ता उसे दबा दे रहा था,

उसपर बेधड़क चली जा रही स्टाइलिश गाड़ियों से!

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

☆ The Window….

 That mud clay house,

adorn with the ageless window, precariously hanging on it …

As if, endlessly

waiting for someone…

 

Always wondered,

what could it be waiting for?

Since, around that house

Neither were there any houses, nor were any roads…

Delicately tapping it,

I asked quizzically about the reason,

It said, staring straight into my eyes,

“I’m waiting for the pathway!”

Bewildered, I returned with astonishment…

 

But the next year,

when I visited it again

My eyes were literally

awestruck to see…

A rough dusty road was indeed there!

And, the smitten window was chitchatting with it gladly

As if, they were both greatly in love with each other,

oblivious of the passersby!

 

Time flew off,

Couldn’t visit the place for a long time,

But soon, got the chance to visit it again,

Found that instead of  dusty pathway,

a concrete road was laid majestically,

And that rustic pathway was hidden somewhere under it…

 

Thinking, maybe the window must be very happy now-

After all, a new flashy road was passing below it …

Alas! I found the window to be very sad…

Curious about the reason of its sombre state, I inquired: “What happened to you?”

It retorted nonchalantly,

“Can you ever forget your first love?

Even though that path was raw-and-rustic,

It was mine and mine only…

And it used to love me only-

Now around this concrete path thousands of new houses have been made,

with plenty of enchanting windows which are way beautiful than me,

And that new path doesn’t even care to look at me!”

 

Dumbfounded, I started my return journey…,

The meek sound of that buried rustic road

was barely audible

As if, the new concrete road had choked its throat, excruciatingly…

With swanky dashing vehicles  zooming past, deafeningly revving over it…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३८॥ ☆

 अप्य अन्यस्मिञ जलधर महाकालम आसाद्य काले

स्थातव्यं ते नयनविषयं यावद अत्येति भानुः

कुर्वन सन्ध्यावलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम

आमन्द्राणां फलम अविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम॥१.३८॥

कहीं शाम के पूर्व जो मेघ पहुंचो

वहां सूर्य के अस्त तक विरम जाना

त्रिशूली महाकाल के सांध्यवंदन

समय गर्ज दुन्दुभि बजा पुण्य पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

व्रत टूटे तप भंग हो, किया नहीं कुछ यत्न।

बिखरे जाने किस तरह, संबंधों के रत्न ।।

 

संयम की सिल हृदय पर, भावों का उपवास।

विवश कामना पढ़ रही, आंसू का इतिहास ।।

 

नहीं रूप है आपका, नहीं वेश विन्यास ।

किंतु आपके हृदय का, बहुत बड़ा है व्यास ।।

 

नाराजी क्या आपकी, जल पर खींची लकीर।

खुश होने पर सौंप दी, सांसों की जागीर ।।

 

नखत सरीखे आप हैं, अपना धरती वास।

रेत भरी है मुट्ठियां, जुगनू सा विश्वास।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 35 – क्या कोई अधिशेष … ?☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “क्या कोई अधिशेष … ? । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 35 ।। अभिनव गीत ।।

☆ क्या कोई अधिशेष … ? ☆

डर कर छिपी किसी

चिड़िया के झीने पर में

आ बैठे जैसे उड़ान

फिर किसी नजर में

 

झुका-झुका सा लगा

चाँद का – टेढ़ा चेहरा

बाँध थका बादल का

टुकड़ा ऐसा सेहरा

 

जो न दे सका साथ

रात के किसी प्रहर में

 

खिड़की से जा सटे

पूछते सारे तारे

“क्या कोई अधिशेष

बचा है अभी हमारे-

 

खाते में, विश्वास व

उजियारा चादर में?”

 

थकी रात को,

आसमान हाथों में थामे

चिड़िया व उड़ान का

होना जिसके नामे

 

था आया वह सुबह

हमारे इसी शहर में

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #28 ☆ पतन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “पतन”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 28 ☆ पतन ☆ 

इस सर्द मौसम में

हमारे शरीर का खून भी

जम सा गया है

नाड़ियों  में

रक्त का प्रवाह

धीरे धीरे

थम सा गया है

अब गर्मी हो या सर्दी

धूप हो या बारिश

हमें फर्क नहीं पड़ता है

हमारा निर्जीव शरीर

अब कहां लड़ता है

आंखें पथरा सी गई है

कान सुन्न है

जिव्हा लकवाग्रस्त है

लगता है जीते जी

हमारे जीवन का सूर्य

हो रहा अस्त है

हर रोज हमारा शरीर

एक नया जख्म खा रहा है

जख्म से खून के साथ

मवाद भी

बाहर आ रहा है

हम इसे चुपचाप

सह रहे हैं

सदा की तरह

किसी से कुछ नहीं

कह रहे हैं

शायद,

हम मर तो

कब के चुके हैं

पर हमें जीवित

होने का भरम है

सांसें तो

कब की थम चुकी है

पर शरीर अब भी गरम है

हमारा जीवन मूल्यों को बचाने

यह व्यर्थ जतन है

क्योंकि,

हर पल

हर घड़ी

यहां पर

जीवन मूल्यों का

हो रहा पतन है ।

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३७॥ ☆

भर्तुः कण्ठच्चविर इति गणैः सादरं वीक्ष्यमाणः

पुण्यं यायास त्रिभुवनगुरोर धाम चण्डीश्वरस्य

धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर गन्धवत्यास

तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तैर मरुद्भिः॥१.३७॥

स्वामी सदृश कंठ , छबिवान तुम

गण समावृत महाकाल के धाम जाना

नदी स्नान क्रीड़ा निरत युवतिजन की

कमल धूलि मिस्रित पवन गंध पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 39 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 39 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 39) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 39☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इश्क था इसलिए

सिर्फ तुझसे किया,

फरेब  होता  तो

सबसे किया होता…

 

It  was  love, that’s why

Just  did  it  with  you  only ,

If it was a fraud, then would

have done it with everyone!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मेरे  दिल से निकलने का

रास्ता भी ना ढूंढ पाये वो…

और कहते थे कि तेरी

रग-रग से वाकिफ हैं हम…

 

Could not even find a way

To come out of my heart…

Who used to claim to be

Knowing me inside out…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गिरते रहे सजदों में हम

अपनी ही हसरतों की ख़ातिर

इश्क़ ए ख़ुदा में गिरे होते तो

कोई हसरत ही बाक़ी ना रहती..

 

Kept on falling in  prostration

For the sake  of own  desires

Had only fallen in love of God

No desires would ever be left

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

पैर में कांटा क्या चुभा,

ये तस्सली सी बंध गई

कि इस अनजान गली में,

ज़रूर कोई  गुलाब  होगा…

 

With a prick of thorn in foot,

it was more of tranquil relief

That, of course, in this street,

There must be living a rose..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – त्रासदियां ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “त्रासदियां। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  त्रासदियां ☆

काँप रही है धरा, डोल उठा है गगन ।

देख तांडव मौतों का, सिहर उठा है ‌जीवन।

महामारियां हैं आ रही, टूटते पहाड़ हैं।

कभी बादल फट रहे, ये मौत की दहाड़ है।

ध्वस्त‌ हुई बस्तियां, बिखर रही हैं लाशें।

मानवता रो रही, थम रही हैं सांसें।

प्रकृति क्रुद्ध हो रही, अपना धैर्य खो रही।

मानव की नादानियों का दंड प्रकृति दे रही।

अपने ही कुकर्मों का दंश, ये मानव झेल रहा।

समझ बूझ लुप्त हुई, मौत से वो खेल रहा।

काटता है बन जंगल, पर्वतों को तोड़ रहा।

बड़े बड़े बांध बना जल धारा मोड़ रहा।

रोक रोक जलधारा, नदियों को मार रहा।

पानी बिन मर रहा, मदद को पुकार रहा।

वन जंगल कटने से, वन्य जीव मर रहे।

खत्म हुई हरियाली, सपने बिखर रहे।

नित आंधियां है चल रही, बज्रपात हो रहा।‌‌ ‌

फ़ूटी सी किस्मत ले, ये मानव रो रहा।

प्रकृति और इंसान में, जंग मानों छिड़ गई।

प्रतिघात घात चल रहा, धरा अखाड़ा बन रही।

प्रकृतिजन्य आपदा का जनक मानव ही बना।

मिट रहा निज कर्म से, कर्म फल है भोगना।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३६॥ ☆

जालोद्गीर्णैर उपचितवपुः केशसंस्कारधूपैर

बन्धुप्रीत्या भवनशिख्जिभिर दत्तनृत्योपहारः

हर्म्येष्व अस्याः कुसुमसुरभिष्व अधवखेदं नयेथा

लक्ष्मीं पश्यंल ललितवनितापादरागाङ्कितेषु॥१.३६॥

 

वहां केशगंधी अगरु धूम्र से हृष्ट

पा गृहशिखी से मिलन नृत्य उपहार

सुमन गंधसज्जित चरमराग रंजित

भवन श्री निरख, भूल श्रम, मार्ग कर पार

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 27 ☆ सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 27 ☆

☆ सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव ☆

 

सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव

जिनकी निधि बस झोपड़ी औ” बरगद की छांव

बसते आये हैं जहां अनपढ़ दीन किसान

जिनके जीवन प्राण पशु खेत फसल खलिहान

 

अपने पर्यावरण से जिनको बेहद प्यार

खेती मजदूरी ही जहाँ जीवन का आधार

सबके साथी नित जहां जंगल खेत मचान

दादा भैया पड़ोसी गाय बैल भगवान

 

जन मन में मिलता जहां आपस का सद्भाव

खुला हुआ व्यवहार सब कोई न भेद दुराव

दुख सुख में सहयोग की जहां सबों की रीति

सबकी सबसे निकटता सबकी सबसे प्रीति

 

आ पहुंचे यदि द्वार पै कोई कभी अनजान

होता आदर अतिथि का जैसे हो भगवान

हवा सघन अमराई की देती मधुर मिठास

अपनेपन का जगाती हर मन में विश्वास

 

मोटी रोटी भी जहां दे चटनी के साथ

सबको ममता बांटता हर गृहणी का हाथ

शहरों से विपरीत है गावो का परिवेश

जग से बिलकुल अलग सा अपना भारत देश

 

मधुर प्रीति रस से सनी बहती यहां बयार

खिल जाते मन द्वार सब पा मीठा व्यवहार

गांव खेत हित के लिये  रहें सदा जो तैयार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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