प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 27 ☆

☆ सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव ☆

 

सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव

जिनकी निधि बस झोपड़ी औ” बरगद की छांव

बसते आये हैं जहां अनपढ़ दीन किसान

जिनके जीवन प्राण पशु खेत फसल खलिहान

 

अपने पर्यावरण से जिनको बेहद प्यार

खेती मजदूरी ही जहाँ जीवन का आधार

सबके साथी नित जहां जंगल खेत मचान

दादा भैया पड़ोसी गाय बैल भगवान

 

जन मन में मिलता जहां आपस का सद्भाव

खुला हुआ व्यवहार सब कोई न भेद दुराव

दुख सुख में सहयोग की जहां सबों की रीति

सबकी सबसे निकटता सबकी सबसे प्रीति

 

आ पहुंचे यदि द्वार पै कोई कभी अनजान

होता आदर अतिथि का जैसे हो भगवान

हवा सघन अमराई की देती मधुर मिठास

अपनेपन का जगाती हर मन में विश्वास

 

मोटी रोटी भी जहां दे चटनी के साथ

सबको ममता बांटता हर गृहणी का हाथ

शहरों से विपरीत है गावो का परिवेश

जग से बिलकुल अलग सा अपना भारत देश

 

मधुर प्रीति रस से सनी बहती यहां बयार

खिल जाते मन द्वार सब पा मीठा व्यवहार

गांव खेत हित के लिये  रहें सदा जो तैयार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर रचना