हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆

 

अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किं स्विद इत्य उन्मुखीभिर

दृष्टोत्साहश चकितचकितं मुग्धसिद्धाङ्गनाभिः

स्थानाद अस्मात सरसनिचुलाद उत्पतोदङ्मुखः खं

दिङ्नागानां पथि परिहरन स्थूलहस्तावलेपान॥१.१४॥

 

यहां से दिशा उत्तर प्रति उड़ो

इस तरह से कि लख तेज गति यह तुम्हारी

सिद्धांगनायें भी अज्ञान के वश

भ्रमित हों कि यह वायु गिरितुंगधारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ मौन  ☆

उनके शब्दों से

उपजी वेदना

शब्दों के परे थी

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 7.09 बजे, 7 जनवरी 21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 76 ☆ कविता – स्वागत ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवणकविता “स्वागत। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 76 – साहित्य निकुंज ☆

☆ स्वागत ☆

बीस गया है बीत

जीवन की है रीत

रात के बाद आता है प्रभात

आने वाले का करना है स्वागत।

नव वर्ष का है स्वागत

साथ लाए खुशियों की बौछार।

छिने न कभी किसी का प्यार।।

बीस में सबने बहुत कुछ खोया।

मन बार बार है सभी का रोया।

बीती बातों का दिल में नहीं है रखना।

बस मन में मधुरिम याद ही संजोना।।

आने वाला हर पल होगा नवनीत।

नव जीवन नव सृजन से होगा सृजित।।

विगत को जाने दो ससम्मान

नहीं करो अपमान।

क्योंकि बीस के बाद आता है इक्कीस।

मन में जगाता है उम्मीद उमंग

भरता है प्यार के रंग।।

करो स्वागत करो स्वागत

शुभ स्वागत….

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 66 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 66 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

जीवन में उत्कर्ष की, एक यही है राह

सत्य, अहिंसा, प्रेम की, रखें सदा ही चाह

 

सदा वक्त पर लीजिये, कर्मों का संज्ञान

चलें धरम की राह जो, उसको मिलता मान

 

जिसने जीवन में रखा, मर्यादा का मान

सदाचरण शालीनता, देते तब सम्मान

 

दिन भर देता रोशनी, सांझ ढले विश्राम

सुबह सुहानी लालिमा, दिनकर तुझे प्रणाम

 

नई सदी के दौर में, मोबाइल वरदान

घर बैठे ही कीजिये, सभी रसों का पान

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१३॥ ☆

 

मर्गं तावच चृणु कथयतस त्वत्प्रयाणानुरूपं

संदेशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि श्रोत्रपेयम

खिन्नः खिन्नः शिहरिषु पदं न्यस्य गन्तासि यत्र

क्षीणः क्षीणः परिलघु पयः स्रोतसां चोपभुज्य॥१.१३॥

 

तो घन सुनो मार्ग पहले गमन योग्य

फिर वह संदेशा जो प्रिया को सुनाना

थके और प्यासे , प्रखर गिरि शिखर पर

जहां निर्झरों से तृषा है बुझाना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ हरापन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆  हरापन ☆

 

बहुत कठिनाई से

रुकता है बहता जल,

अथक संघर्ष के बाद

स्थिर होता है मन,

उसका फिर उछालना

छोटा-सा एक कंकड़,

प्रवाह को बांधे रखने की

असाध्य अभीप्सा,

अप्सरा के मदनोत्सव से

तिरोहित होती तपस्या,

तरंगों का अट्टहास

उसकी खिलखिलाहट,

थमे पानी का

धीरे-धीरे रिसना,

सूखे घाव का

हर बार कुछ हरा होना,

लाख जतन कर लो

वेदना का शमन नहीं होता,

कितना ही दिलासा दे लो

हरापन हमेशा सुखद नहीं होता!

©  संजय भारद्वाज

(10:28 बजे, 30.11.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 73 – हस्ताक्षर सेतु ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “ हाइबन – हस्ताक्षर सेतु। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 73☆

5 Interesting Facts To Know About Delhi's Iconic Signature Bridge

☆  हाइबन- हस्ताक्षर सेतु ☆

मनुष्य को अद्वितीय चीजों से प्यार होता है। यही कारण है कि वह एफिल टावर पर खड़े होकर शहर की खूबसूरती का नजारा देखने में आनंद का अनुभव करता है। अब यही सुखद अनुभव आप हस्ताक्षर सेतु के सबसे ऊंचे हिस्से में जाकर आप भी उठा सकते हैं। इसके लिए आप को भारत से बाहर जाने की जरूरत नहीं है।

11 साल के लंबे इंतजार के बाद उत्तरी दिल्ली को उत्तर-पूर्वी दिल्ली से जोड़ने वाला दिल्ली का सबसे ऊंची इमारतों से भी ऊंचा सेतु बनकर तैयार हो गया है । इस सेतु की 154 मीटर ऊंचाई पर स्थित दर्शक दीर्घा से आप दिल्ली के लौकिक और अलौकिक नजारे को देख सकते हैं। 15 तारों पर झूलते हुए इस सेतु में ऊंचाई पर जाने के लिए 4 लिफ्ट लगाई गई है।

350 मीटर लंबे इस सेतु की दर्शक दीर्धा से पर झूलते हुए सेतु को एक साथ 50 दर्शक यहां का खुबसूरत नजारा देख सकते हैं। इस सेतु की ऊंचाई दिल्ली के कुतुब मीनार से भी ऊंची है । इस सेतु के निर्माण ने दिल्ली के हजारों व्यक्तियों के रोजमर्रा के जीवन के 30 मिनट बचा दिए हैं। यमुना नदी पर बना अनोखा हस्ताक्षर सेतु है । इसे सिग्नेचर ब्रिज भी कहते हैं।

चांदनी रात~

सिग्नेचर की लिफ्ट

में फंसे वृद्ध।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-12-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 56 ☆ राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं   “राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 56 ☆

☆ राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे ☆ 

राष्ट्र हित  में सदा हम  जिएँगे।

हिन्द पर प्राण अर्पित करेंगे।।

आन इसकी सदा हम रखेंगे,

शत्रु से हम न हरगिज डरेंगे ।।

 

कर्म पथ पर कदम हम बढ़ाकर।

भाग्य की रेख अपनी बना कर।।

भूल अपनी सभी हम सुधारें,

ईश का नाम हर पल पुकारें ।।

 

वक्त थोड़ा मिला हम सभी को,

व्यर्थ – बातों में क्यों कर लड़ेंगे।।

 

मान सम्मान दें गुरुजनों को।

ख़त्म कर दें सभी दुश्मनों को।।

कार्य शुभ हो शुभम कामना हो,

आँधियों से नहीं सामना हो।।

 

शूल से पथ अगर ये पटा हो।

मंजिलों को सदा हम बढ़ेंगे।।

 

आपसी बैर से जंग जारी।

तोड़ती दम मनुजता बिचारी।।

दिल मिला लें, दिलों से चलो हम,

प्यार हो क्यों धरा पर कभी कम।।

 

पौध क्यों कीकरों की उगाएँ,

हम बदी से नहीं अब डरेंगे।।

 

नित्य हँसना सभी को सिखाएँ।

स्वर्ग हम मिल धरा को बनाएँ।।

जग भलाई करें जिंदगी में।

बीत जाए उमर सादगी में।।

 

नाम हरजीत अपनी लिखा कर,

हम उड़ानें गगन की भरेंगे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१२॥ ☆

आपृच्चस्व प्रियसखम अमुं तुङ्गम आलिङ्ग्य शैलं

वन्द्यैः पुंसां रघुपतिपदैर अङ्कितं मेखलासु

काले काले भवति भवतो यस्य संयोगम एत्य

स्नेहव्यक्तिश चिरविरहजं मुञ्चतो बाष्पमुष्णम॥१.१२॥

जगतवंद्य श्रीराम पदपद्म अंकित

उधर पूततट शैल उत्तुंग से मिल

जो वर्ष भर बाद पा फिर तुम्हें

विरह दुख से खड़ा स्नेहमय अश्रुआविल

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अनुरागी दोहे ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी के अनुरागी दोहे। )

☆ अनुरागी दोहे ☆ 

श्री गणेश के संग में, श्वेत वसना वीणा!

मात शारदा कर गहो, लेखनी यश देना!!

 

प्रेम प्रेम सगरें कहें, मरम न जाने कोय!

दिय-बाती सँग-सँग जलें, जग उजियारा होय

 

कान्हा की मथुरा कहें, या वृंदावन धाम!

नेह रीति दिखती नहीं, प्रेम बसे बस नाम!!

 

कान्हा की मोहे रटन, कान्हा मेरी आस!

कान्हा मेरे ह्रद बसें, राधा रुक्मिणी साथ!!

 

जड़ से भारी डार है, उससे भारी पात!

सृष्टि नेह सम्मान है, वायु बरखा ताप!!

 

महल दुमहले सर हुये, कलस कँगूरे भाल

नींव नेह पहचानिये, अटल रहे जुग काल

 

देहरी बंजारन भई, आँगन नाहीं आस

जौं लों घर में पी नहीं, पीहर ही बस आस

 

रागी अनुरागी रटें, राम नाम की तान!

राम नाम रचना रचे, ज्यों विधना की आन!!

 

© श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र 440010

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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