हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆ # पुरुषार्थ… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पुरुषार्थ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆

☆ # पुरुषार्थ… # ☆ 

यह फूलों से भरी वाटिका

कितनी नयनाभिराम है

महक रही खुशबू से

प्रसन्न हर खास और आम है

 

रंगबिरंगे खिले खिले फूल

आंखों को को भा रहे हैं

भ्रमर भी मस्ती में

झूमते जा रहे हैं 

 

मौसम खुशगवार है

कली कली मे प्यार है

प्रीत है बिखरी हुई

बहार ही बहार है

 

हर किस्म के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

हर रंग के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

भिन्न भिन्न प्रजातियां हैं

हर सुगंध के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

 

पर अब यह कैसी

हवा चल रही है

हम सबसे

कुछ कह रही है

 

क्यों मसलें जा रहे हैं फूल ?

क्यों मसली जा रही है

हर अधखिली फूल या कली ?

 

हर कली फरियाद कर रही है

अनजाने भय से डर रही है

न्याय सलाखों के पीछे

छुप गया है

हर आवाज बिन सुने

मर रही है

 

यह सब अनर्थ है

मानवीय मूल्य व्यर्थ है

सम्मान कर पूजा

जा रहा है जिन्हें

क्या उनका यही

पुरूषार्थ है ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 108 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 108 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 108) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him. हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 108 ?

☆☆☆☆☆

सुकुँ से…

इसलिए भी हूँ,

कि धोका सिर्फ़

खाया है दिया नहीं…

 

Always at peace, I am

because, despite being

repeatedly deceived…

I’ve never cheated anyone

☆☆☆☆☆

आओ, सिर्फ नज़रों से

ही बात करते हैं…,

लफ़्ज़ अक्सर उलझनों

में डाल देते हैं…

Come, let’s just talk

by eyes only,

Words often create

confusions only…!

☆☆☆☆☆

 रात क्या होती है

हमसे पूछिए ना,

आप तो सोये और…

बस सुबह हो गई…

 

What is the night,

just ask me,

You just sleep

and it’s morning…  

☆☆☆☆☆

हर तरफ से…

सिर्फ वाह वाह मिले,

जिन्दगी …

कोई शायरी तो नहीं…!

Accolades would shower

from all over…,

Life is jus not ‘Shayari’,

– a poetic recital…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 107 ☆ गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 107 ☆ 

☆ गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ… ☆

भाग्य निज पल-पल सराहूँ,

जीत तुमसे, मीत हारूँ.

अंक में सर धर तुम्हारे,

एक टक तुमको निहारूँ…..

 

नयन उन्मीलित, अधर कंपित,

कहें अनकही गाथा.

तप्त अधरों की छुअन ने,

किया मन को सरगमाथा.

दीप-शिख बन मैं प्रिये!

नीराजना तेरी उतारूँ…

 

हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,

मदिर महुआ मन हुआ है.

विदेहित है देह त्रिभुवन,

मन मुखर काकातुआ है.

अछूते प्रतिबिम्ब की,

अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ…

 

बाँह में ले बाँह, पूरी

चाह कर ले, दाह तेरी.

थाह पाकर भी न पाये,

तपे शीतल छाँह तेरी.

विरह का हर पल युगों सा,

गुजारा, उसको बिसारूँ…

 

बजे नूपुर, खनक कँगना,

कहे छूटा आज अँगना.

देहरी तज देह री! रँग जा,

पिया को आज रँग ना.

हुआ फागुन, सरस सावन,

पी कहाँ, पी कहँ? पुकारूँ…

 

पंचशर साधे निहत्थे पर,

कुसुम आयुध चला, चल.

थाम लूँ न फिसल जाए,

हाथ से यह मनचला पल.

चाँदनी अनुगामिनी बन.

चाँद वसुधा पर उतारूँ…

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५-६-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #139 ☆ गण पति वंदना ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 139 ☆

☆ ‌ कविता ☆ ‌गण पति वंदना ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

हे! लंबोदर गिरजा नंदना ।

देवा सिध्द करो सब कामना।

मंगल मूर्ति आप पधारो।

जीवन के सब  दुखों को टारो।

हे!  गौरी सुत  गजवदना

देवा सिद्ध करो मनकामना।।१।।

 

शुभ मंगल के प्रभु  प्रतीक हो,

शिव जी के वंशज गणेश हो।

हे! लंबोदर गौरी नंदना,

हे! सिद्ध विनायक गजवदना।

देवा सिद्ध करो सब कामना ।। २।।

 

रिद्धी सिद्धी के प्रभु तुम दाता,

बुद्धि ज्ञान के तुम अधिष्ठाता।

ध्यान धरूं सुख शांति पाऊं,

कहां लौं तुम्हरी कीर्ति गांऊ।

देवा सिद्ध करो मनकामना,

मूषक सवार  गज बदना।।३।।

 © सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #155 – ग़ज़ल-41 – “गुल ही गुल कब माँगे थे हमने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “गुल ही गुल कब माँगे थे हमने…”)

? ग़ज़ल # 41 – “गुल ही गुल कब माँगे थे हमने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

म अकसर अपनी ज़िन्दगी से ऐसे मिले,

एक अजनबी जैसे किसी अजनबी से मिले।

 

गुल ही गुल कब माँगे थे हमने ख़ैरात में

ख़ार ही ख़ार बेशुमार  मुहब्बत से मिले।

 

मिलना मजनू का लैला से सुनते आए हैं,

काश उसी तरह मेरा हमदम मुझसे मिले।

 

एक रेखा में मिलते सूरज चाँद और धरती

छा जाता ग्रहण जब वो इस तरह से मिले।

 

अकसर उपदेशों की बौछारों से नहलाते दोस्त,

बेहतर है आदमी कभी न ऐसे दोस्तों से मिले।

 

निकलना जन्नत से आदम-ईव का सुनते आए,

बाद उसके आदमी-औरत आकर जमीं से मिले।

 

मुहब्बत में मिलना भी जुर्म हो गोया ‘आतिश’

जानलेवा हुआ जिस बेरुख़ी से वो हम से मिले।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 32 ☆ मुक्तक ।। खुशियाँ खरीदने का कोई बाजार नहीं होता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक भावप्रवण मुक्तक ।।खुशियाँ खरीदने का कोई बाजार नहीं होता है।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 32 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। खुशियाँ खरीदने का कोई बाजार नहीं होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

अमृत जहर एक जुबां पर,  निवास   करते  हैं।

इसीसे लोग व्यक्तित्व का,  हिसाब  करते  हैं।।

कभी नीम कभी शहद,  होती   जिव्हा हमारी।

इसीसे जीवन का हम सही, आभास करते हैं।।

[2]

बहुत  नाजुक  दौर  किसी  से,  मत  रखो  बैर।

हो   सके   मांगों   प्रभु  से,  सब की ही     खैर।।

तेरी  जुबान  से ही तेरे दोस्त,और दुश्मन बनेंगें।

हर बात बोलने से पहले, जाओ कुछ देर ठहर।।

[3]

तीर  कमान  से निकला, वापिस नहीं आ पाता है।

शब्द  भेदी वाण सा फिर, घाव करके  आता है।।

दिल  से  उतरो  नहीं  पर,  दिल  में  उतर  जाओ।

गुड़ दे नहीं सकते मीठा, बोलने में क्या जाता है।।

[4]

जान लो खुशी देना खुशी पाने, का आधार होता है।

वो  ही  खुशी  दे  पाता जिसमें, सरोकार होता है।।

खुशी   कभी  आसमान   से, कहीं  टपकती  नहीं।

कहीं पर खुशी का लगता, बाजार नहीं होता है।।

[5]

मन   की आँखों से भीतर का,   कभी  दीदार  करो।

मिट  जाता  हर  अंधेरा   सुबह,  का इंतज़ार करो।।

मीठी   जुबान  खुशियों   का,  गहरा   होता है नाता।

छोटी सी जिन्दगी बस तुम, हर किसी से प्यार करो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समग्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी तदनुसार बुधवार 31अगस्त से आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार शुक्रवार 9 सितम्बर तक चलेगी।

इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें। उसी अनुसार अथर्वशीर्ष पाठ/ श्रवण का अपडेट करें।

अथर्वशीर्ष का पाठ टेक्स्ट एवं ऑडियो दोनों स्वरूपों में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – समग्र ??

जब कभी

मेरा लिखा

आँका जाए,

कहन के साथ

मेरा मौन भी

बाँचा जाए !

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 98 ☆ ’’हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 98 ☆ हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

 हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी, संसार तुम्हारे हाथों में

हम मानव विवश खिलौने हैं, अधिकार तुम्हारे हाथों में ॥ 1 ॥

 

जग रंग मंच है माया का, द्विविधा इसकी हर बातों में

हम कठपुतली से नाच रहे, सब तार तुम्हारे हाथों में ॥ 2 ॥

 

अनगिनत कामनायें पाले, उलझे ढुलमुल विश्वाशों में

सब देख रहे अपना अपना, संचार तुम्हारे हाथों में ।। 3 ।।

 

आकुल व्याकुल मन आकर्षित हो माया के बाजारों में

भटका फिरता मधु पाने को, रसधार तुम्हारे हाथों में ॥ 4 ॥

 

बुझ पाई न मन की प्यास कभी, रह शीतल कूल कछारों में

सुख दुख, यश अपयश, जन्म मरण व्यापार तुम्हारे हाथों में ॥ 5 ॥

 

जग है एक भूल भुलैया, हम भूले जिसके गलियारों में

हर बात में धोखा चाल में छल, उद्धार तुम्हारे हाथों में ॥ 6 ॥

 

जीवन नौका भवसागर में, अधडूबी झंझावातों में

तुम ही एक नाथ खिवैया हो, पतवार तुम्हारे हाथों में ॥ 7 ॥

 

दिखती तो रूपहली हैं लहरें, बढ़ती हुई पारावारों में

पर इन्द्र धनुष सा आकर्षक, उपहार तुम्हारे हाथों में ॥ 8 ॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – काला पानी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी तदनुसार बुधवार 31अगस्त से आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार शुक्रवार 9 सितम्बर तक चलेगी।

इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें। उसी अनुसार अथर्वशीर्ष पाठ/ श्रवण का अपडेट करें।

अथर्वशीर्ष का पाठ टेक्स्ट एवं ऑडियो दोनों स्वरूपों में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – काला पानी ??

सुख-दुख में

समरसता,

हर्ष-शोक में

आत्मीयता,

उपलब्धि में

साझा उल्लास,

विपदा में

हाथ को हाथ,

जैसी कसौटियों पर

कसते थे रिश्ते,

परम्पराओं में

बसते थे रिश्ते,

संकीर्णता के झंझावात ने

उड़ा दी सम्बंधों की धज्जियाँ,

रौंद दिये सारे मानक,

गहरे गाड़कर अपनापन

घोषित कर दिया

उस टुकड़े को बंजर..,

अब-

कुछ तेरा, कुछ मेरा,

स्वार्थ, लाभ,

गिव एंड टेक की

तुला पर तौले जाते हैं रिश्ते..,

सुनो रिश्तों के सौदागरो!

सुनो रिश्तों के ग्राहको!

मैं सिरे से ठुकराता हूँ

तुम्हारा तराजू,

नकारता हूँ

तौलने की

तुम्हारी व्यवस्था,

और स्वेच्छा से

स्वीकार करता हूँ

काला पानी

कथित बंजर भूमि पर,

तुम्हारी आँखों की रतौंध

देख नहीं पाई जिसकी

सदापुष्पी कोख…,

जब थक जाओ

अपने काइयाँपन से,

मारे-मारे फिरो

अपनी ही व्यवस्था में,

तुम्हारे लिए

सुरक्षित रहेगा एक ठौर,

बेझिझक चले आना

इस बंजर की ओर,

सुनो साथी!

कृत्रिम जी लो

चाहे जितना,

खोखलेपन की साँस

अंतत: उखड़ती है,

मृत्यु तो सच्ची ही

अच्छी लगती है..!

© संजय भारद्वाज

प्रातः 10:16 बजे, 10 जुलाई 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #148 ☆ भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 148 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ☆

प्रथम पूज्य हैं आप तो, हे गणपति महराज।

विघ्न विनाशक देवता, बना रहे हर काज।।

श्री गणेश को पूजते, हैं वो ही सर्वेश।

विघ्नविनाशक देवता, देते है आदेश।।

करते गणपति वंदना, आज  पधारो आप।

धन्य धन्य हम हो रहे, दूर करो संताप।।

करते हैं हम आचमन, पंचामृत गणराज।

मोदक भोग लगा रहे, स्वीकारो प्रभु आज।।

तुम दाता इस सृष्टि के, हे गणपति महराज।

विनती इतनी मैं करूँ, करो सफल सब काज।।

मन मंगलमय हो रहा, झूम उठा है चंद।

हुआ आगमन आपका, छाया है आनंद।।

मन आनंदित हो गया, देख आपका रूप।

करते वंदन आपका, रोज जलाकर धूप।।

गणपति की आराधना, करते उनका ध्यान।

पूर्ण मनोरथ हो रहे, करते हैं गुणगान।।

रिद्धि सिद्धि के देवता, देवों के सरताज।

हरते विघ्न अपार वो, पूरे करते काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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