श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक भावप्रवण मुक्तक ।।खुशियाँ खरीदने का कोई बाजार नहीं होता है।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 32 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। खुशियाँ खरीदने का कोई बाजार नहीं होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

अमृत जहर एक जुबां पर,  निवास   करते  हैं।

इसीसे लोग व्यक्तित्व का,  हिसाब  करते  हैं।।

कभी नीम कभी शहद,  होती   जिव्हा हमारी।

इसीसे जीवन का हम सही, आभास करते हैं।।

[2]

बहुत  नाजुक  दौर  किसी  से,  मत  रखो  बैर।

हो   सके   मांगों   प्रभु  से,  सब की ही     खैर।।

तेरी  जुबान  से ही तेरे दोस्त,और दुश्मन बनेंगें।

हर बात बोलने से पहले, जाओ कुछ देर ठहर।।

[3]

तीर  कमान  से निकला, वापिस नहीं आ पाता है।

शब्द  भेदी वाण सा फिर, घाव करके  आता है।।

दिल  से  उतरो  नहीं  पर,  दिल  में  उतर  जाओ।

गुड़ दे नहीं सकते मीठा, बोलने में क्या जाता है।।

[4]

जान लो खुशी देना खुशी पाने, का आधार होता है।

वो  ही  खुशी  दे  पाता जिसमें, सरोकार होता है।।

खुशी   कभी  आसमान   से, कहीं  टपकती  नहीं।

कहीं पर खुशी का लगता, बाजार नहीं होता है।।

[5]

मन   की आँखों से भीतर का,   कभी  दीदार  करो।

मिट  जाता  हर  अंधेरा   सुबह,  का इंतज़ार करो।।

मीठी   जुबान  खुशियों   का,  गहरा   होता है नाता।

छोटी सी जिन्दगी बस तुम, हर किसी से प्यार करो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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