हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #84 ☆ आलेख – ऊर्जा संरक्षण के नये विकल्प ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक विचारणीय एवं सार्थकआलेख   ‘ऊर्जा संरक्षण के नये विकल्प.  इस सार्थक एवं अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 84 ☆

☆ लघुकथा ऊर्जा संरक्षण के नये विकल्प ☆

अंग्रेजी में बी का अर्थ होता है मधुमख्खी.  सभी जानते हैं कि मधुमख्खी किस तरह फूल फूल से पराग कणो को चुनकर शहद बनाती हैं,  जो मीठा तो होता ही है, स्वास्थ्यकर भी होता है.  मधुमख्खखियो का छतना पराग के कण कण से संरक्षण का श्रेष्ठ उदाहरण है. मधुमख्खी अर्थात बी की स्पेलिंग बी ई ई होती है. भारत सरकार के संस्थान ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी का एब्रिवियेशन भी बी ई ई ही है.  उर्जा संरक्षण के नये वैश्विक विकल्पों पर ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है. ऊर्जा दक्षता ब्यूरो अर्थात ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी का लक्ष्य ऊर्जा दक्षता की सेवाओं को संस्थागत रूप देना है ताकि देश के सभी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो.  इसका गठन ऊर्जा संरक्षण अधिनियम,  २००१ के अन्तर्गत मार्च २००२ में किया गया था.  यह भारत सरकार के विद्युत मन्त्रालय के अन्तर्गत कार्य करता है.   इसका कार्य ऐसे कार्यक्रम बनाना है जिनसे भारत में ऊर्जा के संरक्षण और ऊर्जा के उपयोग में दक्षता  बढ़ाने में मदद मिले.  यह संस्थान ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सौंपे गए कार्यों को करने के लिए उपभोक्ताओं,  संबंधित संस्थानो व संगठनों के साथ समन्वय करके संसाधनों और विद्युत संरचना को मान्यता देने,  इनकी पहचान करने तथा इस्तेमाल का आप्टिमम उपयोग हो सके ऐसे कार्य करता है.

हमारे मन में यह भाव होता है कि बचत का अर्थ उपयोग की अंतिम संभावना तक प्रयोग है,  इसके चलते हम बारम्बार पुराने विद्युत उपकरणो जैसे पम्प,  मोटर आदि की रिवाइंडिंग करवा कर इन्हें सुधरवाते रहते हैं,  हमें जानकारी ही नही है कि हर रिवाइंडिंग से उपकरण की ऊर्जा दक्षता और कम हो जाती है तथा  चलने के लिये वह उपकरण अधिक ऊर्जा की खपत करता है.  इस तरह केवल आर्थिक रूप से सोचें तो भी नयी मशीन से रिप्लेसमेंट की लागत से ज्यादा बिजली का बिल हम किश्तों में दे देते हैं. इतना ही नहीं बृहद रूप से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सोचें तो इस तरह हम ऊर्जा दक्षता के विरुद्ध अपराध करते हैं.  देश में सेकेंड हैंड उपकरणो का बड़ा बाजार सक्रिय है.  यदि सक्षम व्यक्ति अपने उपकरण ऊर्जा दक्ष उपकरणो से बदलता भी है तो उसके पुराने ज्यादा खपत वाले उपकरण इस सेकेंड हैंड बाजार के माध्यम से पुनः किसी न किसी उपयोगकर्ता तक पहुंच जाते हैं और वह उपकरण ग्रिड में यथावत बना रह जाता है.  आवश्यकता है कि ऐसे ऊर्जा दक्षता में खराब चिन्हित उपकरणो को नष्ट कर दिया जावे तभी देश का समग्र ऊर्जा दक्षता सूचकांक बेहतर हो सकता है.

आत्मनिर्भर भारत के कार्यक्रम से देश में उर्जा की खपत बढ़ रही है.  ऐसे समय में ऊर्जा दक्षता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.  ऐसे परिदृश्य में ऊर्जा संसाधनों और उनके संरक्षण का कुशल उपयोग स्वयं ही अपना महत्व प्रतिपादित करता है.  ऊर्जा का कुशल उपयोग और इसका संरक्षण ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सबसे कम लागत वाला विकल्प है.  देश में ऊर्जा दक्षता सेवाओं के लिए वितरण तंत्र को संस्थागत बनाने और मजबूत करने के लिए और विभिन्न संस्थाओं के बीच आवश्यक समन्वय प्रदान करने का काम ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंशी कर रहा है.  आज का युग वैश्विक प्रतिस्पर्धा का है,   ऊर्जा की बचत से भारत को एक ऊर्जा कुशल अर्थव्यवस्था बनाने में लगातार समवेत प्रयास करने होंगे ताकि न केवल हम अपने स्वयं के बाजार के भीतर प्रतिस्पर्धी बने रहें बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी प्रतिस्पर्धा कर सकें.

अक्षय ऊर्जा स्रोत वैकल्पिक ऊर्जा के नवीनतम विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैं.  हर छत बिजली बना सकती है.  सौर ऊर्जा उत्पादन पैनल अब बहुत काम्पेक्ट तथा दक्ष हो गये हैं.  इस तरह उत्पादित बिजली न केवल स्वयं के उपयोग में लाई जा सकती है,  वरन अतिरिक्त विद्युत,  वितरण ग्रिड में बैंक की जा सकती है,  एवं रात्रि में जब सौर्य विद्युत उत्पादन नही होता तब  ग्रिड से ली जा सकती है.  इसके लिये बाईलेटरल मीटर लगाये जाते हैं.  ऊर्जा दक्ष एल ई डी प्रकाश स्त्रोतो का उपयोग,  दीवारो पर ऐसे  हल्के रंगो का उपयोग जिनसे प्रकाश परावर्तन ज्यादा हो,  घर का तापमान नियंत्रित करने के लिये छत की आकाश की तरफ की सतह पर सफेद रंग से पुताई,   ए सी की आउटर यूनिट को शेड में रखना,  फ्रिज को घर की बाहरी नही भीतरी दीवार के किनारे रखना,

वाटर पम्प में टाईमर का उपयोग,  टीवी,  कम्प्यूटर आदि उपकरणो को हमेशा  स्टेंड बाई मोड पर रखने की अपेक्षा स्विच से ही बंद रखना आदि कुछ सहज उपाय प्रचलन में हैं.  एक जो तथ्य अभी तक लोकप्रिय नही है,  वह है भू गर्भीय तापमान का उपयोग,  धरती की सतह से लगभग तीन मीटर नीचे का तापमान ठण्ड में गरम व गर्मी में ठण्डा होता है,  यदि डक्ट के  द्वारा इतने नीचे तक वायु प्रवाह का चैम्बर बनाकर उसे कमरे से जोड़ा जा सके तो कमरे के तापमान को आश्चर्यकारी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है.

ऊर्जा दक्षता और संरक्षण पर जन सामान्य में जागरूकता उत्पन्न करना एवं इसका प्रसार करना समय की आवश्यकता है.  इसके लिये बी ई ई लगातार काम कर रही है.  ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण के लिए तकनीक से जुड़े कार्मिक और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था और उसका आयोजन करना,  ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में परामर्शी सेवाओं का सुदृढ़ीकरण,  ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास कार्यो का संवर्द्धन,  विद्युत उपकरणो के परीक्षण और प्रमाणन की पद्धतियों का विकास और परीक्षण सुविधाओं का संवर्द्धन करना,  प्रायोगिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन का सरलीकरण करना,  ऊर्जा दक्ष प्रक्रियाओं,  युक्तियों और प्रणालियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना,  ऊर्जा दक्ष उपकरण अथवा उपस्करों के इस्तेमाल के लिए लोगों के व्यवहार को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाना,  ऊर्जा दक्ष परियोजनाओं की फंडिंग को बढ़ावा देना,  ऊर्जा के दक्ष उपयोग को बढ़ावा देने और इसका संरक्षण करने के लिए संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना, ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करना,  ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण से सम्बन्धित अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना आदि कार्य ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी लगातार अत्यंत दक्षता से कर रहा है.

आज जब भी हम कोई विद्युत उपकरण खरीदने बाजार जाते हैं जैसे एयर कंडीशनर,  फ्रिज,  पंखा,  माइक्रोवेव ओवन,  बल्ब,  ट्यूब लाइट या अन्य कोई बिजली से चलने वाले छोटे बड़े उपकरण तो उस पर स्टार रेटिंग का चिन्ह दिखता है.  अर्ध चंद्राकार चित्र में एक से लेकर पांच सितारे तक बने होते हैं.  यह रेटिंग दरअसल सितारों की बढ़ती संख्या के अनुरूप अधिक विद्युत कुशलता का बीईई प्रमाणी करण है.  विभिन्न उपकरणों की स्टार रेटिंग आकलन के लिए मानकों और लेबल सेटिंग के कार्य में बी ई ई परीक्षण और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं के विकास और परीक्षण सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर कार्यशील रहती है.  विद्युत उपकरणों के सभी प्रकार के परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं को परिभाषित करने का कार्य बी ई ई ही  करती है.   यंत्र उत्पादन संस्थान जब भी किसी विद्युत उपकरण के नये मॉडल का निर्माण करता हैं वह यह जरूर चाहता है की उसका उत्पाद प्रमाणित हो जाए,  जिससे उपभोक्ता के मन में उत्पाद के प्रति विश्वसनीयता की भावना उत्पन्न हो सके.  इसके लिये निर्माता बीईई द्वारा डिजाइन प्रक्रियाओं के अनुसार अपने उपकरणों का परीक्षण करने के उपरान्त,  प्राप्त आंकड़ों के साथ स्टार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं,  परीक्षण के आंकड़ों के आधार पर बीईई इन उपकरणों के लिए एक स्टार रेटिंग प्रदान करता है.  बीईई समय-समय पर मानकों और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं को परिष्कृत भी करता रहता है. आज जब ई कामर्स लगातार बढ़ता जा रहा है इस तरह की स्टार रेटिंग खरीददार के मन में बिना भौतिक रूप से उपकरण को देखे भी,  केवल उत्पाद का चित्र देखकर, उसके उपयोग तथा ऊर्जा दक्षता के प्रति आश्वस्ति का भाव पैदा करने में सहायक होता है.

देश में उर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये व जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा दक्षता ब्यूरो तथा ऊर्जा दक्ष अर्थव्यवस्था हेतु गठबंधन द्वारा मिलकर,  भारत का पहला ‘राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक’ जारी किया है.  यह सूचकांक देश के सभी राज्यों में ऊर्जा उत्सर्जन के प्रबंधन में होने वाली प्रगति की निगरानी करने,  इस दिशा में राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और कार्यक्रम कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करता है.  ऊर्जा दक्षता सूचकांक इमारतों,  उद्योगों,  नगरपालिकाओं,  परिवहन,  कृषि और बिजली वितरण कंपनियों जैसे क्षेत्रों के 63 संकेतकों पर आधारित है.  ये संकेतक नीति,  वित्त पोषण तंत्र,  संस्थागत क्षमता,  ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने और ऊर्जा बचत प्राप्त करने जैसे मानकों पर आधारित हैं.  बीईई के अनुसार,  ऊर्जा दक्षता प्राप्त करके भारत 500 बिलियन यूनिट ऊर्जा की बचत कर सकता है.  वर्ष 2030 तक 100 गीगावाट बिजली क्षमता की आवश्यकता को कम किया जा सकता है.  इससे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 557 मिलियन टन की कमी की जा सकती है.  इसके अन्य मापकों में विद्युत वाहनों के माध्यम से भारत के विकास की गतिशीलता को फिर से परिभाषित करना तथा विद्युत उपकरणों,  मोटरों,  कृषि पम्पों तथा ट्रैक्टरों और यहां तक कि भवनों की ऊर्जा दक्षता में सुधार लाना शामिल है.  राज्यों को उनके प्रदर्शन के आधार पर अग्रगामी (फ्रंट रनर),  लब्धकर्ता (एचीवर),  प्रतिस्पर्धी (कंटेंडर) व आकांक्षी (ऐस्पिरैंट) चार श्रेणियों में बांटा गया है.  सूचकांक में 60 से अधिक अंक पाने वाले राज्यों को ‘अग्रगामी’,  50-60 तक अंक पाने वाले राज्यों को ‘लब्धकर्ता’,  30-49 तक अंक पाने वाले राज्यों को ‘प्रतिस्पर्धी’ और 30 से कम अंक पाने वाले राज्यों को ‘आकांक्षी’ श्रेणी में चिन्हित किया गया है.

नये भवनो के निर्माण में प्रथम चरण में  100 किलोवॉट और उससे अधिक या 120 केवीए और इससे अधिक  संबद्ध विद्युत लोड वाले बड़े व्यावसायिक भवनों पर ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता लागू की गई  है.  ईसीबीसी अर्थात इनर्जी कंजरवेशन बिल्डिंग कोड बनाया गया है.  यह कोड भवन आवरण,  यांत्रिक प्रणालियों और उपकरणों पर केंद्रित है.  जिसमें हीटिंग,  वेंटिलेटिंग और एयर कंडीशनिंग प्रणाली,  आंतरिक और बाहरी प्रकाश व्यवस्था,  विद्युत प्रणाली और नवीकरणीय ऊर्जा शामिल हैं. इसमें भारत के मौसम के अनुरूप पांच जलवायु क्षेत्रों गर्म सूखे,  गर्म गीले,  शीतोष्ण,  समग्र और शीत,   को भी ध्यान में रखा गया है.  मौजूदा आवासीय और व्यावसायिक भवनों में ऊर्जा दक्षता लाने की भी महत्वपूर्ण आवश्यकता है.   विभिन्न अध्ययनों में यह देखा गया है कि मौजूदा वाणिज्यिक भवनों की उर्जा दक्षता क्षमता मात्र 30से40% ही है.  ब्यूरो,  ऊर्जा सघन इमारतों की अधिसूचना जारी करता है.   राज्य के अधिकारियों द्वारा अनिवार्य ऊर्जा ऑडिट के लिए अधिसूचना और मौजूदा बहुमंजिला इमारतों में ऊर्जा दक्षता उन्नयन के कार्यान्वयन हेतु वाणिज्यिक भवनों के लिए स्टार लेबलिंग कार्यक्रम का दायरा व्यापक बनाने के विभिन्न कार्य भी ब्यूरो कर रहा है.   कम लागत वाले आवास के ऊर्जा दक्ष डिजाइन के लिए भी ब्यूरो द्वारा दिशानिर्देश तैयार किये जाते हैं.

सरकार ने मार्च 2007 में  नौ बड़ें औद्योगिक क्षेत्रों को चिन्हित किया था जिनमें ऊर्जा की सर्वाधिक खपत दर्ज होती है.  ये क्षेत्र हैं एल्यूमीनियम,  सीमेंट,  क्षार,  उर्वरक,  लोहा और इस्पात,  पल्प एंड पेपर,  रेलवे,  कपड़ा और ताप विद्युत संयंत्र.   इन इकाइयों  में ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए लक्ष्य निर्धारित कर समयबद्ध योजना बनाकर ऊर्जा संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं.  इसी तरह लघु व मध्यम उद्योगों में भी उर्जा दक्षता हेतु व्यापक प्रयास किये जा रहे हैं.

विद्युत मांग पक्ष प्रबंधन अर्थात डिमांड साइड मैनेजमेंट को सुनिश्चित करते हुए ऊर्जा की मांग में कमी के लक्ष्य प्राप्त करने के व्यापक प्रयास भी किये जा रहे हैं. डीएसएम के हस्तक्षेप से न केवल बिजली की पीक मांग को कम करने में मदद मिली है, बल्कि यह उत्‍पादन, पारेषण और वितरण नेटवर्क में उच्च निवेश को कम करने में भी सहायक होता है.

कृषि हेतु विद्युत मांग के प्रबंधन से  सब्सिडी के बोझ को कम करने में मदद मिलती है.  हमारे प्रदेश में कृषि हेतु बिजली की मांग बहुत अधिक है.  कृषि पंपों की औसत क्षमता लगभग 5 एचपी है पर इनकी ऊर्जा दक्षता का स्तर 25-30% ही है.  यदि समुचित दक्षता के पंप लगा लिये जावें तो इतनी ही बिजली की मांग में ज्यादा पंप चलाये जा सकते हैं.  जिस पर काम किया जा रहा है. किसानों की आय दोगुनी करने के समय बद्ध लक्ष्य को पाने के लिये ऊर्जा दक्षता का योगदान महत्वपूर्ण है.  कृषि पंपसेट,  ट्रैक्टर और अन्य मशीनों का उपयोग न्यूनतम ईंधन से करने और सिंचाई का प्रयोग प्रति बूंद अधिक फसल की कार्यनीति के अंतर्गत करने की योजना को प्रभावी बनाया जा रहा है.  नगरपालिका मांग पक्ष प्रबंधन के द्वारा स्ट्रीट लाइट प्रकाश व्यवस्था,  जल प्रदाय संयत्रो में विद्युत उपयोग में ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है.

बिजली के क्षेत्र में अनुसंधान की व्यापक संभावनायें हैं.  हम आज भी लगभग उसी आधारभूत तरीके से व्यवसायिक बिजली उत्पादन,  व वितरण कर रहे हैं जिस तरीके से सौ बरस पहले कर रहे थे.  दुनिया की सरकारो को चाहिये कि बिजली के क्षेत्र में अन्वेषण का बजट बढ़ायें.  वैकल्पिक स्रोतो से बिजली का उत्पादन,  बिना तार के बिजली का तरंगो के माध्यम से  वितरण संभावना भरे हैं.  हर घर में शौचालय होता है,  जो बायो गैस का उत्पादक संयत्र बनाया जा सकता है,  जिससे घर की उर्जा व प्रकाश की जरूरत  पूरी की जा सकती है.   रसोई के अपशिष्ट से भी बायोगैस के जरिये चूल्हा जलाने के प्रयोग किये जा सकते हैं.   बिजली को व्यवसायिक तौर पर एकत्रित करने के संसाधनो का विकास,  कम बिजली के उपयोग से अधिक क्षमता की मशीनो का संचालन,  अनुपयोग की स्थिति में विद्युत उपकरणो का स्व संचालन से बंद हो जाना,  दिन में बल्ब इत्यादि प्रकाश श्रोतो का स्वतः बंद हो जाना आदि बहुत से अनछुऐ बिन्दु हैं जिन पर हमारे युवा अनुसंधानकर्ता ध्यान दें,  विश्वविद्यालयों व रिसर्च संस्थानो में काम हो तो बहुत कुछ नया किया जा सकता है.   वर्तमान संसाधनो में सरकार बहुत कुछ कर रही है जरूरत है कि विद्युत व्यवस्था को अधिक सस्ता व अधिक उपयोगी बनाने के लिये जन चेतना जागृत हो.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 72 – फिर कुछ दिन से…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  “फिर कुछ दिन से… । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 72 ☆ फिर कुछ दिन से… ☆  

फिर कुछ दिन से घर जैसा

है, लगने लगा मकान

खिड़की दरवाजों के चेहरों

पर लौटी मुस्कान।

मुस्कानें कुछ अलग तरह की

आशंकित तन मन से

मिला सुयोग साथ रहने का

किंतु दूर जन-जन से,

दिनचर्या लेने देने की

जैसे खड़े दुकान।

फिर कुछ दिन से घर जैसा

है लगने लगा मकान।।

बिन मांगा बिन सोचा सुख

यह साथ साथ रहने का

बाहर के भय को भीतर

हंसते – हंसते, सहने का,

अरसे बाद हुई घर में

इक दूजे से पहचान।

फिर कुछ दिन से घर जैसा

है लगने लगा मकान।।

चहकी उधर चिरैया

गुटर-गुटरगू करे कबूतर

पेड़ों पर हरियल तोतों के

टिटियाते मधुरिम स्वर,

दूर कहीं अमराई से

गूंजी कोयल की तान।

फिर कुछ दिन से घर जैसा

है लगने लगा मकान।।

इस वैश्विक संकट में हम

अपना कर्तव्य निभाएं

सेवाएं दे तन मन धन से

देश को सबल बनाएं,

मांग रहा है हमसे देश

अलग ही कुछ बलिदान

फिर कुछ दिन से घर जैसा

है लगने लगा मकान

खिड़की दरवाजों के चेहरों

पर लौटी मुस्कान।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 23 ☆ मंजर शहीद के घर का ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता मंजर शहीद के घर का। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 23 ☆मंजर शहीद के घर का

कैसा मंजर होगा उस शहीद के घर का,

जिस घर से माँ का आशीर्वाद लेकर वो सरहद पर गया था ||

 

टिकट था मगर रिजर्वेशन नही मिला,

सरहद पर तत्काल पहुंचो कैप्टन का पैगाम आया था ||

 

अफ़सोस किसी ने उसकी एक ना सुनी,

रिज़र्वेशन कोच से बेइज्जत कर उसे नीचे उतार दिया ||

 

लोग तमाशाबीन बने देख रहे थे,

उन्होने भी उसे ही दोषी ठहरा कर अपमानित किया ||

 

जनरल डिब्बा ठसाठस भरा हुआ था,

किसी ने भी उसे बैठने क्या खड़ा भी नहीं होने दिया ||

 

सामान की गठरी बना गैलरी में बैठ गया,

पैर समेटता रहा, आते-जाते लोगों की ठोकरे खाता रहा ||

 

सरहद पर दुश्मन गोले बरसा रहा था,

उसे जल्दी पहुंचना जरूरी था इसलिए हर जिलालत सहता रहा ||

 

पत्नी की याद में थोड़ा असहज हो रहा था,

उसका मेहंदी भरा हाथ आँखों के सामने बार-बार आ रहा था ||

 

माँ का नम आँखों से उसे विदा करना,

माँ का कांपता हाथ उसे सिर पर फिरता महसूस हो रहा था ||

-2-

पिता के बूढ़े हाथों में लाठी दिख रही थी,

सिर टटोलकर आशीर्वाद देता कांपता हाथ उसे दिख  रहा था ||

 

पत्नी चौखट पर घूंघट की आड़ में उसे देख रही थी,

उसकी आँखों से बहता सैलाब वह नम आँखों से महसूस कर रहा था ||

 

दुश्मन के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,

दुश्मन ने उसे पकड़ लिया और निर्दयता से सिर धड़ से अलग कर दिया ||

 

इतना जल्दी वापिस लौटने का पैगाम आ जाएगा,

विश्वास ना हुआ, बाहर भीड़ देखकर घर में सब का दिल बैठ गया ||

 

नई नवेली दुल्हन अपने मेहँदी के हाथ देखने लगी,

किसी ने खबर सुनाई उसका जांबाज पति देश के काम आ गया ||

 

कांपते हाथों से माँ ने बेटे के सिर पर हाथ फेरना चाहा,

देखा सिर ही गायब था, माँ-बहू का हाल देख पिता भी घायल  हो  गया ||

 

पिता ने खुद को संभाला फिर माँ-बहू को संभाला,

कांपते हाथों से सलामी दी, कहा फक्र है मुझे मेरा बेटा देश के काम आया ||

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 74 – हे ईश्वरा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 74 ☆

☆ हे ईश्वरा ☆

किती स्वप्ने, दुःस्वप्ने पडतात नित्य..

 

परवरदिगारा….मसिहा….

जगाच्या नियंत्या…विश्वकर्मा…

कुठे चाललो आहोत आपण…

मनीचे भय कसे जाते निघून…

शिरावे सहज त्या अंधारगुहेत तसे ….

 

अन उमगते मग आलो कुठे हे…

दबा धरून होते…

कुणी तरी तेथे…..

 

हे ईश्वरा सख्या तूच बनतोस वाली…

आणि सर्व काही फक्त तुझ्याच हवाली!

 

मी अष्टभैरवांना घालीत साद होते,

शिवशक्तिला उराशी घेऊन नित्य होते!

गुरूपावलांना वंदित फक्त  होते!

 

हे नास्तिक्य आस्तिक्य येथे विरून जाते….

भक्तीचा मार्ग मिळता सारे तरून जाते…

ना जात, धर्म बंधन….श्रद्धा अतूट आहे…

 

गोरक्षनाथास मी रक्ष रक्ष म्हणते! तेहतीस कोटी देवांस हृदयी पाचारण करते .

या अल्लाह…ही विनवते…प्रभू देवबापास प्रार्थिते अन् सारे सुखी, सुखरूप रहाता सदा!

मी “आमेन ” उद् गारते अन् पराधीन मानवाला निष्ठेत बांधते!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 59 ☆ साँचा ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “साँचा”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 59 ☆

साँचा ☆

उसकी नीली आँखों को

उसके गोरे हाथों को

उसके झूमते पांवों को

डाल दिया गया सांचे में

और फिर उन सांचों को

कई दिनों तक जकड़कर रख दिया

ताकि

वो वही देखे जहां उसकी आँखों की दिशा तय की गयी थी,

वो वही काम करे जहां उसके हाथों को ढाला गया था,

वो वहीँ कदम रखे जिस ओर उसके पाँव को दिशा दी गयी थी…

 

इन सांचों में ढालते वक़्त

समाज यह भूल गया

कि उसकी नाक को, उसके दिमाग को

किसी सांचे में नहीं ढाला जा सकता था

वो तो स्वच्छंद थे…

 

वो आँगन में खड़ी-खड़ी

ख़्वाबों की वो सुगंध सूँघती

जो उसे देती एक नया अनुभव

और जिसकी ओर वो खिंची चली जाती…

 

वो ऐसी कथाएँ वाचती

जो उसको दे देते पर

और वो

कभी आसमान को चूमती

कभी धनक के झूलों में बैठती

और परिंदों सी फिरती रहती!

 

समाज को जब मालूम हुआ

कि वो इस तरह उड़ने लगी है,

उन्होंने पूरी की पूरी कोशिश की

कि उसे समूचा ही सांचे में ढाल दिया जाए-

पर तब तक उसके परों में

इतनी जान आ गयी थी

कि वो तोड़कर साँचा उड़ गयी

और देखने वाले,

देखते ही रह गए!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #83 ☆ लघुकथा – फ्री वाली चाय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक विचारणीय एवं सार्थक कविता  ‘फ्री वाली चाय। इस सार्थक एवं अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्री विवेक रंजन जी  का  हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 83 ☆

☆ लघुकथा फ्री वाली चाय ☆

देवेन जी फैक्ट्री के पुराने कुशल प्रबंधक हैं. हाल ही उनका तबादला कंपनी ने अपनी नई खुली दूसरी फैक्ट्री में कर दिया.

देवेन जी की प्रबंधन की अपनी शैली है, वे वर्कर्स के बीच घुल मिल जाते हैं, इसीलिये वे उनमें  लोकप्रिय रहते हुये, कंपनी के हित में वर्कर्स की क्षमताओ का अधिकाधिक उपयोग भी कर पाते हैं. नई जगह में अपनी इसी कार्य शैली के अनुरूप वर्कर्स के बीच पहचान बनाने के उद्देश्य से देवेन जी जब सुबह घूमने निकले तो फैक्ट्री के गेट के पास बनी चाय की गुमटी  में जा बैठे. यहां प्रायः वर्कर्स आते जाते चाय पीते ही हैं. चाय वाला उन्हें पहचानता तो नही था किन्तु उनकी वेषभूषा देख उसने गिलास अच्छी तरह साफ कर उनको चाय दी. बातचीत होने लगी. बातों बातों में देवेन जी को पता चला कि दिन भर में चायवाला लगभग २०० रु शुद्ध प्राफिट कमा लेता है. देवेन जी ने उसे चाय की कीमत काटने के लिये ५०० रु का नोट दिया, सुबह सबेरे चाय वाले के पास फुटकर थे नहीं. अतः उसने नोट लौटाते हुये पैसे बाद में लेने की पेशकश की.

उस दिन देवेन का जन्मदिन था, देवेन जी को कुछ अच्छा करने का मन हुआ. उन्होने प्रत्युत्तर में  नोट लौटाते हुये चायवाले से कहा कि वह  इसमें से अपनी आजीविका के लिये  दिन भर का प्राफिट २०० रु अलग रख ले और सभी मजदूरों को निशुल्क चाय पिलाता जाये. चायवाले ने यह क्रम शुरू किया, तो दिन भर फ्री वाली चाय पीने वालों का तांता लगा रहा. मजदूरों की खुशियो का पारावार न रहा.

दूसरे दिन सुबह सुबह ही एक पत्रकार इस खबर की सच्चाई जानने, चाय की गुमटी पर आ पहुंचा, जब उसे सारी घटना पता चली तो उसने चाय वाले की फोटो खींची और जाते जाते अपनी ओर से मजदूरों को उस दिन भी फ्री वाली चाय पिलाते रहने के लिये ५०० रु दे दिये. बस फिर क्या था फ्री वाली चाय की खबर दूर दूर तक फैलने लगी. कुछ लोगों को यह नवाचारी विचार बड़ा पसंद आ रहा था, पर वे ५०० रु की राशि देने की स्थिति में नहीं थे, अतः उनकी सलाह पर चाय वाले ने  काउंटर पर एक डिब्बा रख दिया, लोग चाय पीते, और यदि इच्छा होती तो जितना मन करता उतने रुपये डिब्बे में डाल देते. दिन भर में डिब्बे में पर्याप्त रुपये जमा हो गये. अगले दिन चायवाले ने डिब्बे से निकले रुपयों में से अपनी आजीविका के लिये २०० रु अलग रखे और शेष रु गिने तो वह राशि ५०० से भी अधिक निकली. फ्री वाली चाय का सिलसिला चल निकला. अखबारों में चाय की गुमटी की फोटो छपी, चाय पीते लोगों के मुस्कराते चित्र छपे. सोशल मीडिया पर  फ्री वाली चाय वायरल हो गई. देवेन ने मजदूरों के बीच सहज ही  नई पहचान बना ली, अच्छाई के इस विस्तार से देवेन मन ही मन मुस्करा उठे.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 70 – लघुकथा – आंवला भात☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  आंवला/इच्छा नवमी पर विशेष लघुकथा  “आंवला भात।  हमारी संस्कृति में प्रत्येक त्योहारों का विशेष महत्व है। वैसे ही यदि हम गंभीरता से देखें तो  आंवला नवमी / इच्छा नवमी पर्व हमें पारिवारिक एकता, वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देते हैं। ऐसे में ऐसी कथाएं हमें निश्चित ही प्रेरणा देती हैं।  शिक्षाप्रद लघुकथाएं श्रीमती सिद्धेश्वरी जी द्वारा रचित साहित्य की विशेषता है।  सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिपेक्ष्य में रचित इस सार्थक  एवं  भावनात्मक लघुकथा  के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 70 ☆

☆ आंवला/इच्छा नवमी विशेष ☆ लघुकथा – आंवला भात ☆

पुरानी कथा के अनुसार आंवला वृक्ष के नीचे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला वृक्ष की पूजन करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है। आज आंवला नवमी को पूजन करते हुए कौशल्या और प्रभु दयाल अपने आंगन के आंवला वृक्ष को देखते हुए बहुत ही उदास थे। कभी इसी आंगन पर पूरे परिवार के साथ आंवला भात बनता था। परंतु छोटे भाई के विवाह उपरांत खेत और जमीन जायदाद के बंटवारे के कारण सब अलग-अलग हो गया था।

प्रभुदयाल के कोई संतान नहीं थे। यह बात उनके छोटे भाई समझते थे। परंतु उनकी पत्नी का कहना था कि “हम सेवा जतन नहीं कर पाएंगे।” छोटे भाई के तीनों बच्चो की परवरिश में कौशल्या का हाथ था।

अचानक छत की मुंडेर पर कौवा कांव-कांव की रट लगा इधर-उधर उड़ने लगा। प्रभुदयाल ने कौशल्या से कहां “अब कौन आएगा हमारे यहां सब कुछ तो बिखर गया है।” गांव में अक्सर कौवा बोलने से मेहमान आने का संदेशा माना जाता था। अचानक चश्मे से निहारती कौशल्या दरवाजे की तरफ देखने लगी। दरवाजे से आने वाला और कोई नहीं देवर देवरानी अपने दोनों पुत्र और बहूओं के साथ अंदर आ रहे थे। प्रभुदयाल सन्न सा खड़ा देखता रहा।

छोटे भाई ने कहा – “आज हमारी आंखें खुल गई भईया। मेरे बेटों ने कहा.. कि हम दोनों भाइयों का भी बंटवारा कर दीजिए क्योंकि अब हम यहां कभी नहीं आएंगे। आप लोग समझते हैं कि आप त्यौहार अकेले मनाना चाहते हैं तो मनाइए। हम भी अपने दोस्त यार के साथ शहर में रह सकते हैं। हमें यहां क्यों बुलाया जाता है।”

“मुझे माफ कर दीजिए भईया। परिवार का मतलब बेटे ने अपनी मां को बहुत खरी खोटी सुनाकर समझाया है। वह दोनों हमसे रिश्ता रखना नहीं चाहते। वे आपके पास रहना चाहते हैं। इसलिए अब सभी गलतियों को क्षमा कर। आज आंवला भात हमारे आंगन में सभी परिवार समेत मिलकर खाएंगे।”

देवरानी की शर्मिंदगी को देखते हुए कौशल्या ने आगे बढ़ कर गले लगा लिया और स्नेह से आंखे भर रोते हुए बोली -“आज नवमी (इच्छा नवमी) मुझे तो मेरे सब सोने के आंवले मिल गए। इन्हें मैं सहेज कर तिजोरी में रखती हूं।” सभी बहुत खुश हो गए।

प्रभुदयाल अपने परिवार को फिर से एक साथ देख कर इच्छा नवमी को मन ही मन धन्यवाद कर प्रणाम करते दिखें।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 73 ☆ गीत – लावणी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 73 ☆

☆ गीत – लावणी

यूट्यूब लिंक >>  रंगणार विडा नक्की

स्वर : सावनी रविंद्र :: संगीत : सागर – संतोष :: गीत ‌ : अशोक भांबुरे

रंगमहाली बैठक जमली

पानविड्यांनी मैफिल रंगली

 

चुना लावला, कात पेरला, त्यात सुपारी पक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… धृ

 

पान मनाचं माझ्या कोर

नाजूक देठाच हिरवं गार

अलगद घ्याना तळहातावर

थोडं केशर घाला त्यावर

लवंग टोचा, प्रेमाने खोचा, आत सुपारी कच्ची

रंगणार, राया विडा हा नक्की… १

 

नेसून आले पैठणी कोरी

रागू- मैनेची नक्षी भारी

अवतीभवती होत्या पोरी

तरी दिलाची झालीच चोरी

कुठं शोधावं, काही कळेना, झाले मी वेडी पक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… २

 

हवा तेवढा देईल मोका

ईश्काचा दोघे घेऊ झोका

चुकेल माझ्या काळजाचा ठोका

द्याल कधी जर मजला धोका

तक्रार देईल, चौकीत नेईल, पिसाया लागल चक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… ३

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

कभी विहंसती सी  लगे, कभी खिले मुस्कान।

मुख मंडल मुझको प्रिये, लगता जलज समान।।

 

गोधूली में दृष्टिगत, होता चारु  स्वरूप।

कभी झलकती राधिका,कभी कृष्ण का रूप।।

 

वृंदावन उच्चारते, सजलित होते प्राण।

युग से प्यासी दृष्टि को, यही मिलेगा त्राण।।

 

वह शब्दों की माधुरी, वह आंगिक संवाद।

अपने को भूला मगर, सिर्फ वही है याद।।

 

किशमिश रंगी रूप का, चखा चक्षु ने स्वाद।

तृप्ति कपूरी जो मिली, अब तक है वह याद।।

 

प्राण प्रिया की याद में, व्याकुल है मन-मीन।

कितना धौंऊं नयन पट, अब भी बहुत मलीन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 25 – एक उलझी वंचना का… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “एक उलझी वंचना का…। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 25– ।। अभिनव गीत ।।

एक उलझी वंचना का...

 

विजय सा ।

एक चुटकी भर बचा था

दोस्त मुझ में

सहमता, मेरी पड़ोसिन

के हृदय सा ॥

 

एक उलझी वंचना का

था सुखद निक्षेप भर जो ।

लड़ रहा खुद में अपरिचित

द्वंद्व की ही खेप भर जो ।

 

एक बस पच्चीस प्रतिशत

रास्ते के संतुलन में ।

जगमगाती दिया-बाती के

अनौखे चुप समय सा ॥

 

यही हैं जो अंजुरी भर

बचे मौसम के सुनहरे ।

शब्द जिनके बिम्ब पानी में

हुये है  हरे बिखरे ।

 

बस यही बालिश्त भर का

सुख रहा है पास मेरे  ।

जो सदा चलता रहा है

अति नमनशीला विनय सा॥

 

किसी मौलिक वजह का

प्रतिपाद्य है जो सुफलवाला ।

प्रीति कर भी है अनिश्चित

संतुलन की कार्यशाला ।

 

बहुत ऊहापोह में गुजरी

सदी के आचरण को ।

परिस्थितियों से कटा है

सौख्य के अभिनव तनय सा॥

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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