हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – गद्य क्षणिका – पराये भी अपने… – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय गद्य क्षणिका “– पराये भी अपने…” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ — पराये भी अपने — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

दिवाली से चार दिन पहले हमारे पड़ोसी नंदलाल के घर में मृत्यु हुई थी। शोकातुर घर के लिए हमारे घर से खाना जाता था। वहाँ दिवाली के चिराग नहीं जले। मेरे पिता ने दिन के वक्त ही हमसे कहा था हम दो ही चिराग जलायेंगे। हमने ऐसा ही किया। शोकग्रस्त नंदलाल के घर के उधर के पड़ोसी ने भी दो ही दीये जलाये। मेरे पिता ने इस बार कहा था, “पड़ोसी ऐसा ही होना चाहिए।”

 © श्री रामदेव धुरंधर

19 — 04 — 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 285 – शेष.. विशेष…अशेष! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 285 शेष.. विशेष…अशेष! ?

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

संत कबीर का यह दोहा अपने अर्थ में सरल और भावार्थ में असीम विस्तार लिए हुए है। जैसे वृक्ष से झड़ा पत्ता दोबारा डाल पर नहीं लगता, वैसे ही मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती। मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती अर्थात दुर्लभ है। जिसे पाना कठिन हो, स्वाभाविक है कि उसका जतन किया जाए। देह नश्वर है, अत: जतन का तात्पर्य सदुपयोग से है।

ऐसा भी नहीं कि मनुष्य इस सच को जानता नहीं पर जानते-बूझते भी अधिकांश का जीवन पल-पल रीत रहा है, निरर्थक-सा क्षण-क्षण  बीत रहा है।

कोई हमारे निर्रथक समय का बोध करा दे या आत्मबोध उत्पन्न हो जाए तो प्राय: हम अतीत का पश्चाताप करने लगते हैं। जीवन में जो समय व्यतीत हो चुका, उसके लिए दुख मनाने लगते हैं। पत्थर की लकीर तो यह है कि जब हम अतीत का पश्चाताप कर रहे होते हैं, उसी समय   तात्कालिक वर्तमान अतीत हो रहा होता है।

अतीतजीवी भूतकाल से बाहर नहीं आ पाता, वर्तमान तक आ नहीं पाता, भविष्य में पहुँचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अपनी एक कविता स्मरण हो आ रही है,

हमेशा वर्तमान में जिया,

इसलिए अतीत से लड़ पाया,

तुम जीते रहे अतीत में,

खोया वर्तमान,

हारा अतीत

और भविष्य तो

तुमसे नितांत अपरिचित है,

क्योंकि भविष्य के खाते में

केवल वर्तमान तक पहुँचे

लोगों की नाम दर्ज़ होते हैं..!

अपने आप से दुखी एक अतीतजीवी के मन में बार-बार आत्महत्या का विचार आने लगा था। अपनी समस्या लेकर वह महर्षि रमण के पास पहुँचा। आश्रम में आनेवाले अतिथियों के लिए पत्तल बनाने में महर्षि और उनके शिष्य व्यस्त थे। पत्तल बनाते-बनाते  महर्षि रमण ने उस व्यक्ति की समस्या सुनी और चुपचाप पत्तल बनाते रहे। उत्तर की प्रतीक्षा करते-करते व्यक्ति खीझ गया। मनुष्य की विशेषता है  जिन प्रश्नों का उत्तर स्वयं वर्षों नहीं खोज पाता, किसी अन्य से उनका उत्तर क्षण भर में पाने की अपेक्षा करता है।

वह  चिढ़कर महर्षि से बोला, ‘आप पत्तल बनाने में मग्न हैं।  एक बार इन पर भोजन परोस दिया गया, उसके बाद तो इन्हें फेंक ही दिया जाएगा न। फिर क्यों इन्हें इतनी बारीकी से बना रहे हैं, क्यों इसके लिए इतना समय दे रहे हैं?’

महर्षि मुस्कराकर शांत भाव से बोले, ‘यह सत्य है कि पत्तल उपयोग के बाद नष्ट हो जाएगी। मर्त्यलोक में नश्वरता अवश्यंभावी है तथापि मृत्यु से पहले जन्म का सदुपयोग करना ही जीवात्मा का लक्ष्य होना चाहिए। सदुपयोग क्षण-क्षण का। अतीत बीत चुका, भविष्य आया नहीं। वर्तमान को जीने से ही जीवन को जिया जा सकता है, जन्म को सार्थक किया जा सकता है, दुर्लभ मनुज जन्म को भवसागर पार करने का माध्यम बनाया जा सकता है। इसका एक ही तरीका है, हर पल जियो, हर पल वर्तमान जियो।’

स्मरण रहे, व्यतीत हो गया, सो अतीत हो गया। अब जो शेष है, वही विशेष है। विशेष पर ध्यान दिया जाए, जीवन को सार्थक जिया जाए तो देह के जाने के बाद भी मनुष्य रहता अशेष है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 232 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 232 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 232) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 232 ?

☆☆☆☆☆

ज़रा सी कैद से ही

घुटन होने  लगी…

तुम तो पंछी पालने

के  बड़े  शौक़ीन थे…

☆☆

Just a little bit of confinement

Made you feel so suffocated

 But keeping the birds caged

 You were so very fond of…!

☆☆☆☆☆

अधूरी कहानी पर ख़ामोश

लबों का पहरा है

चोट रूह की है इसलिए

दर्द ज़रा गहरा है….

☆☆ 

 Silent lips are the sentinels

 Of  the  unfulfilled fairytale…

 Wound is of the spirited soul

 So the pain is rather intense….

☆☆☆☆☆

हंसते हुए चेहरों को गमों से

आजाद ना समझो साहिब

मुस्कुराहट की पनाहों में भी

हजारों  दर्द  छुपे होते  हैं…

☆☆

O’ Dear, Don’t even consider that

Laughing faces are free of sorrow

Innumerable  pains are  hidden

Even behind the walls of a smile…

☆☆☆☆☆

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफर में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस  गुमराह  हो  गए…

☆☆

  Was walking peacefully

  In  the  journey of the life

  Just casting a glance on you

  Made my journey go astray…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – फर्ज़ ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा।  आज प्रस्तुत है  एक लघुकथा “फर्ज़”। )  

☆ लघुकथा – फर्ज़ ☆

( इंडिया टुडे में प्रकाशित सत्य घटना पर आधारित)

शैलेंद्र भैया आज होते तो कितने खुश होते? भाई को याद कर ज्योति के नेत्र नम हो गए। बड़ी मुश्किल से वह अपने आँसू रोक पा रही थी। यही स्थिति घर के सभी लोगों की थी। कोई किसी से कुछ भी नहीं कह पा रहा था। सभी अपने आंसुओं के सैलाब को रोक कर विवाह के रस्मों को निभाने का प्रयास कर रहे थे।

अचानक एक गाड़ी आकर रुकती है। धड़धड़ाते हुए कुछ फौजी अपने शोल्डर बैग लेकर उतरते हैं। घर-परिवार के सब लोग विस्मित नेत्रों से देखते हैं। अरे! इनमें से कुछ तो शैलेंद्र के मित्र हैं, जो उसकी निर्जीव देह तिरंगे में लपेट कर लाये थे।

सब लोगों के साथ बाबूजी भी स्तब्ध थे। तभी उन फ़ौजियों में से एक ने आगे बढ़कर बाबूजी के चरण स्पर्श करते हुए कहा – “बाबूजी, हम शैलेंद्र के मित्र हैं, आपके बेटे और ज्योति बहन के भाई।”

बाबूजी के नेत्र भर आए और उसे गले लगाकर रो पड़े। शैलेंद्र के मित्रों की आँखें भी भर आईं थीं। तभी एक और मित्र आगे बढ़ा और बाबूजी के कंधे पर हाथ रखकर बोला – “बाबूजी, ऐसे दिल छोटा नहीं करते। चलिये हम सब मिलकर शादी की रस्में पूरी करते हैं।”  

और फिर देखते ही देखते शादी का माहौल ही बदल गया।

यह बात बिजली की तरह सारे गाँव में फैल गई।

सारे गाँव ने और यहाँ तक कि दूल्हे के परिवार ने भी देखा कि कैसे शैलेंद्र के मित्रों ने बढ़ चढ़ कर शादी की एक एक रस्म निभाने का भरसक प्रयत्न किया जो एक भाई को निभानी होती हैं।    

शैलेंद्र के पिताजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। वे मन ही मन सोच रहे थे कि – “आज मेरा बेटा इस दुनिया में नहीं है किन्तु, ईश्वर ने मुझे इतने बेटे दिये हैं जो मेरे सुख और दुख में शामिल होने के लिए सदैव तैयार हैं।”

दूसरी ओर शैलेंद्र के मित्र नम नेत्रों से अपने मित्र को याद कर रहे थे और सोच रहे थे – “ईश्वर हमें शक्ति दें, ताकि हम देश की सुरक्षा के साथ ही अपने भाइयों के सुख दुख में शामिल हो सकें।”

© हेमन्त बावनकर

पुणे 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 231 – पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 231 ☆

☆ पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

प्रभु को भज पा परमानंद

गुरु पद रज पा परमानंद

.

पंचतत्व-पंचेंद्रिय देह

पंचामृत पा परमानंद

.

बहा स्वेद, कर श्रम-पूजन

कलरव सुन पा परमानंद

.

नदी जननि रखना निर्मल

पौध लगा पा परमानंद

.

जा दरिद्र नारायण तक

सेवा कर पा परमानंद

.

कविता शारद की बिटिया

चरण-शरण पा परमानंद

.

शब्द ब्रह्म आराधन कर

 सत्-शिव भज पा परमानंद

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५.४.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 अप्रैल से 27 अप्रैल 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 अप्रैल से 27 अप्रैल 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

वक़्त की नब्ज़ पे पकड़ रखना,

हाथ में अपने ये हुनर रखना

फ़िक्र करना ज़माने की लेकिन,

यार अपनी भी कुछ ख़बर रखना।

यह हिंदी के मशहूर गजलकार श्री लक्ष्मण गुप्ता जी की गजल है और इसकी अंतिम पंक्ति में उन्होंने कहा है की आपको अपनी खबर भी रखना चाहिए। इस सप्ताह आपको अपकी खबर बताने के लिए मैं पंडित अनिल पांडे आज आपके साथ 21 अप्रैल से 27 अप्रैल 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल जिसमें मैं आपके स्वास्थ्य आपके अच्छे और बुरे दिनों आदि के बारे में बताऊंगाके साथ उपस्थित हूं।

इस सप्ताह सूर्य मेष राशि में, मंगल कर्क राशि में, बुध, शुक्र, शनि और वक्री राहु मीन राशि में, तथा गुरु वृष राशि में गमन करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके माताजी और जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको सहयोग प्राप्त होगा। कचहरी के कार्य में विजय प्राप्त होगी। व्यापार में लाभ प्राप्त होगा। आपकी संतान आपके साथ सहयोग कर सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 तथा 27 अप्रैल कार्यों को करने के लिए उत्तम है 25 और 26 तारीख को आपको कार्य को करने के पहले पूर्ण सावधानी बरतना चाहिए इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन गाय को हरा चारा खिलाएं सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माताजी, पिताजी और जीवन साथी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। धन आने का अद्भुत योग है। आपको धन प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। वगैर प्रयास के आपको धन की प्राप्ति नहीं होगी। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। एक भाई के साथ तनाव बढ़ सकता है। आपको अपने संतान से कम सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 अप्रैल कार्यों को करने हेतु फलदायक हैं। 27 अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और पिताजी का शास्त्र नरम-गरम चलता रहेगा। धन आने की उत्तम संभावना है। कार्यालय के कार्यों में आपको थोड़ी परेशानी और ज्यादा उत्साह मिलेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। धन आने के मार्ग में कुछ बाधाएं हैं। उनको आपको अपने परिश्रम से दूर करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 अप्रैल कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। 21 और 22 अप्रैल को आप कार्यों के प्रति सावधान रहे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके माता जी और आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। धन आने का सामान्य योग है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। व्यापार ठीक चलेगा। भाग्य से आपको मदद मिलेगी परंतु आपको परिश्रम भी करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 अप्रैल कार्यों को करने हेतु परिणाम दायक हैं। 23 और 24 अप्रैल को आपको कार्यों के प्रति सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को थोड़े से प्रयास की उपरांत प्राप्त कर सकते हैं। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। आपका, आपके माता जी का और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में ब्लड प्रेशर या रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 अप्रैल कार्यों को करने हेतु उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहकर कार्य करना है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीबों के बीच में चावल का दान करें तथा शुक्रवार को मंदिर में जाकर पुजारी जी को सफेद वस्त्रो का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य सामान्य तौर पर ठीक रहेगा। अगर आप नौकरी हेतु प्रयास रत हैं तो इस सप्ताह आपको नौकरी मिल सकती है। आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य नरम रहेगा। व्यापार उत्तम चलेगा। भाग्य से सामान्य मदद मिलेगी। आपको अपने संतान से पूर्ण मदद प्राप्त होगी। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 अप्रैल कार्यों को करने हेतु शुभ हैं। 23 24 और 27 अप्रैल को आपको पूरी सावधानी से ही विभिन्न कार्यों का निपटान करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें। तथा शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

तुला राशि

 यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अत्यंत उत्तम रहेगा। उनके क्रोध की मात्रा में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। आपको मानसिक तनाव हो सकता है। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। कार्यालय में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। भाग्य से आपको कम मदद मिलेगी। परिश्रम पर आपको ज्यादा विश्वास करना पड़ेगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 तथा 27 अप्रैल कार्यों को करने हेतु अच्छे हैं। 25 और 26 अप्रैल को आपको अपने कार्यों को करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

 इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्यालय में आपका कार्य सुचारू रूप से चलेगा। भाग्य से मदद मिलने में थोड़ी परेशानी हो सकती है। आपको कोई भी कार्य अपने परिश्रम से ही संपन्न करना पड़ेगा। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग मिल सकता है। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 अप्रैल परिणाम मूलक है। 27 अप्रैल को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

 इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और पिताजी के स्वास्थ्य में छोटी-मोटी समस्या आ सकती है। आपके संतान को यश लाभ हो सकता है। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। जनता के बीच में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। कोई बड़ी वस्तु आप खरीद सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 अप्रैल विभिन्न कार्यों हेतु उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

 इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जनता के बीच में आपके लिए अच्छे विचार उत्पन्न होंगे। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक ही रहेंगे। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है परंतु भाग्य से बहुत ज्यादा मदद की उम्मीद ना करें। आपको अपनी संतान से सामान्य सहयोग प्राप्त होगा। आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 अप्रैल तथा 27 अप्रैल कार्यों को करने हेतु उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

 इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है। भाई बहनों के साथ संबंध अच्छा रहेगा। आपका और आपके जीवन साथी माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य भी करीब करीब ठीक ही रहेगा। भाग्य से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कचहरी के कार्यों को सावधानी पूर्वक करने पर सफलता का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 अप्रैल कार्यों को करने हेतु सफलता दायक है। 21 और 22 अप्रैल को आपको कठिन परिश्रम के बाद ही सफलता मिल पाएगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

 अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम है। विवाह के प्रस्ताव आएंगे। व्यापार उत्तम चलेगा। इस सप्ताह आपके पास धन आएगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 अप्रैल कार्यों को करने हेतु फलदायक हैं। 23 और 24 अप्रैल को आपको अपने कार्यों में अधिक परिश्रम लगाना चाहिए अन्यथा काम असफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासीनी ☆ सुखद सफर अंदमानची… मड व्होल्कॅनो – भाग – ४ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

सौ. दीपा नारायण पुजारी

? मी प्रवासीनी ?

☆ सुखद सफर अंदमानची… मड व्होल्कॅनो – भाग – ४ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

मड व्होल्कॅनो 

व्होल्कॅनो अर्थातच ज्वालामुखी हा तसा परिचित शब्द. पण मड व्होल्कॅनो हा काहीसा वेगळा शब्द. आमचं कुतूहल चांगलंच चाळवलं गेलं होतं. आज अंदमानच्या मुक्कामाचा शेवटचा दिवस होता. रामनं, (आमचा टूर लिडर) रात्री झोपताना निक्षून सांगितलं होतं की भल्या पहाटे तीन वाजता आपण हॉटेल मधून बाहेर पडणार आहोत. जो बरोबर तीन वाजता बस मध्ये नसेल त्याला न घेता बस निघेल.पावणेतीन वाजताच आम्ही सगळे हॉटेल लाऊंजमध्ये हजर होतो. 

वीर सावरकरांना मानवंदना करून, बाप्पाच्या जयजयकारात प्रवास सुरू झाला. आमच्या हॉटेलपासून साधारण अडीच तास प्रवास करुन आम्ही मध्य अंदमानला आलो. इथं जलडमरु बॉर्डरवर बाराटांगला जाण्यासाठी गेट आहे. हे गेट सकाळी सहा वाजता व नऊ वाजता उघडते. दुपारी तीन वाजता ते बंद होते. बारटांगला जाणारा रस्ता जंगलाच्या अशा भागातून जातो जेथे आदिवासी लोकांचा भाग आहे. जारवा जातीच्या या आदिवासींच्या सुरक्षिततेकरता हा भाग प्रतिबंधित आहे. गेटवर आधारकार्ड (परदेशी प्रवाशांना पासपोर्ट ) दाखवावे लागते. मगच प्रवेश करता येतो. 

आपण फार लवकर आपली झोप सोडून आलोय.  गेटवर आपलीच बस पहिली असेल हा भ्रमाचा भोपळा तिथं पोचतात फुटला. आमच्या पुढे एकशे छत्तीस गाड्या होत्या. रस्त्याच्या दुतर्फा चहाचे स्टॉल्स होते. गरमागरम मेदूवडे आणि डाळवडे तयार होते. पट्टीचे खाणारे मात्र हवेत. 

आदिवासी पाड्यातील जारवा लोक रस्त्यात दिसण्याची शक्यता होती. ते लुटारू आहेत असं ऐकलं होतं. या रस्त्यावर बसच्या वेगाला मर्यादा आहे. कारण क्वचित एखादा प्राणी रस्त्यावर आलेला असू शकतो. जारवांना बघून उत्साहित होऊन काही करायचं नाही. हात हलवायचा नाही. थांबायचं नाही. फोटो काढायचा नाही. त्यांना काही खाऊ द्यायचा नाही. अशा सूचनांचे फलक रस्त्यावर लावलेले आहेत. आम्हाला कोणताच वाईट अनुभव आला नाही. परतीच्या प्रवासात आम्हाला जारवांचे बच्चू दिसले. एक दोन नाही तर सहा बच्चू. काळीकुळकुळीत, उघडबंब, कोरीव शिल्पासमान ती सहा कोकरं रस्त्याच्या कडेला ओळीनं उभी होती. हसरे चेहरे, काळेभोर टप्पोरे डोळे बसकडे मोठ्या आशेनं बघतायत का? 

खूप कडक सूचना दिल्या गेल्या होत्या. आम्ही सर्वांनी त्या पाळल्या. 

जारवा ही आदिवासी भागात राहणारी जमात. दक्षिण आणि मध्य अंदमानच्या पश्चिम किनारपट्टीवरील जंगलात यांची वस्ती आहे. बांबू, नारळाच्या झावळ्या, काठ्या यापासून घरं बांधून राहतात. घर नव्हे खरंतर झोपडीवजा आडोसा म्हणावा. हे निसर्गाशी एकरूप होऊन गेले आहेत. निसर्गाचे नियम त्यांना मान्य आहेत आणि ते काटेकोरपणे पाळले जातात. त्सुनामी मध्ये हे लोक मृत्युमुखी पडले नाहीत. या संकटाची कल्पना त्यांना आधीच आली असावी. फळं कंदमुळं मासे हे त्याचं प्रमुख अन्न. न शिजवता कोणतीही प्रक्रिया न करता हे लोक अन्न खातात. मीठ मसाला तेल यांचा वापर न करता आपण ज्याला ब्लाण्ड म्हणतो तसं अन्न ते घेतात. आपल्या जगातील आधुनिक तंत्रज्ञानापासून कोसो दूर आहेत हे लोक. त्यांना त्याची काही गरजही नाही. पण भारत सरकार त्यांना मुख्य प्रवाहात आणण्यासाठी प्रयत्न करत आहे. अलिकडेच एकोणीस जारवांना त्यांचे ओळख पत्र दिले गेले आहे. 

जेटीवर पोचतात आम्ही बसमधून उतरलो आणि एका मोठ्या क्रूझ मध्ये चढलो. आमची बस आणि काही गाडय़ा या क्रूझमध्ये चढवल्या गेल्या. चारशे पाचशे माणसं बसू शकतील अशी क्रूझ अर्धा पाऊण तास प्रवास करुन बारतांग बेटाला लागली. तिथून पुढे आम्ही छोट्या छोट्या जीपनं बॅरन बेटावर गेलो. जाताना वाटेत आदिवासी आणि त्यांची वस्ती दिसत होती. आता साधारण पंधरावीस मिनिटांचा ट्रेक होता. टेकडीवजा रस्त्यानं चढ चढून आम्ही माथ्यावर पोचलो. आजूबाजूला चढताना थोडी झाडी होती. पण दाट जंगल नव्हते. माथ्यावर पोहोचल्यावर मात्र स्तंभित झालो आम्ही. कारण समोर ठिकठिकाणी चिखलाचे ज्वालामुखी दिसत होते. हे ज्वालामुखी सक्रिय नव्हते. तरी त्यातून हळुहळू बुडबुडे येताना दिसत होते. काही लहान काही मोठे. चिखलाचे लहान मोठे डोंगर किंवा ढीग म्हणावेत . आणि प्रत्येक डोंगराच्या टोकावरून हलकेच येणारे बुडबुडे. निसर्गातला हा चमत्कार बघताना मन थक्क होतं. निसर्ग पोटात काही ठेवून घेत नाही. काही सजीवांचे निर्जीव घटकांचे पृथ्वीच्या पोटात खोल कुठेतरी विघटन होत आहे. त्या विघटनात उत्सर्जित होणारे काही वायू बाहेर पडताना स्वतःबरोबरच तिथला थंड झालेला चिखलाचा ज्वालामुखी घेऊन बाहेर पडतात. विश्वंभरानं किती विचार करून हा खेळ मांडला आहे. किती जटील आणि गुंतागुंतीची रचना केली आहे. आणि ती जटीलता सोपी करण्याचे मार्ग देखील तयार केले आहेत. गुंतागुंतीची कोडी तितक्याच हलक्या हातानं नाजूक बोटांनी कुशलतेने सोडवली आहेत. म्हणूनच तर आपण सुरक्षित आनंदी जीवन जगत आहोत. धन्य धन्य हो प्रदक्षिणा सद्गुरुरायाची… 

– क्रमशः भाग चौथा

© सौ. दीपा नारायण पुजारी

इचलकरंजी

9665669148

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२२ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२२ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

आंजनेय पर्वत पर सीढ़ियों खत्म होते ही सामने हनुमान जी का मंदिर है। एक दरवाजे से सीधे मंदिर में प्रवेश करके दूसरे द्वार से बाहर निकलते हैं तो मंदिर के पीछे एक बड़ी पानी की टंकी में नल लगा हुआ है। वही जल आपके पीने योग्य है। जिसमें नीचे से मोटर द्वारा तुंगभद्रा नदी का पानी भरता रहता है। वहीं नज़दीक नारियल की नट्टी निकालने वालों की बैठक है। वे नट्टी, छूँछ और गूदा अलग करके रखते जाते हैं। उनसे पूछने ओर ज्ञात हुआ कि इस कार्य हेतु ठेका दिया गया है। इन चीजों का औद्योगिक उपयोग किया जाता है। ठेके से प्राप्त रकम मंदिर न्यास में जाती है।

पहाड़ी पर मंदिर से थोड़ी दूर महंत विद्यादास जी महाराज का आश्रम नुमा छोटा सा मकान बना है। राजेश जी की व्यवस्था अनुसार महंत जी की गादी के पीछे रामायण केंद्र का बैनर लगा दिया गया। सबसे पहले महंत जी ने हम श्रद्धालुओं को आरती के समय मंदिर में दर्शन कराए। वापस उनके आश्रम में उनके प्रवचन उपरांत राजेश जी और रामायण केंद्र के प्रतिनिधियों ने विचार प्रकट किए।

मंदिर के दाहिनी तरफ़ चार महिलाएं दाल-भात तैयार करने में लगी थीं। तब तक तीन बज चुके थे। वहीं नज़दीक स्टील थालियाँ का ढेर था। एक नल से पानी की व्यवस्था भी थी। महंत जी का आदेश हुआ कि प्रसाद ग्रहण किया जाए। अभी तक भूखे पेट भजन हो रहा था। कहने भर मी देर थी। सभी तीर्थ यात्री तुरंत पालथी मार कर बैठ गए। कोई परस करने वाला नहीं दिखा तो हम दो तीन लोगों ने अपनी थाली सहित सभी को भात-दाल परसना शुरू किया ही था, तभी वहाँ प्रसाद हेतु आतुर श्रद्धालु भीड़ आ पहुँची। महंत जी ने उन्हें रुकने का इशारा किया। हम लोगों ने पेट भर भोजन किया। उसी समय सामने की खुली जगह में चार लोग खिचड़ी के बड़े कढ़ाव लेकर आ पहुँचे। उन्होंने पत्तलों में खिचड़ी प्रसाद बाँटना शुरू किया। भक्तों की भीड़ खिचड़ी पर टूट पड़ी। जब खिचड़ी समाप्त हुई तब बचे खुचे भक्तों ने आश्रम की तरफ़ रूख किया। हम लोगों ने भोजन समाप्त होने तक प्रसाद वितरण कर धर्म लाभ कमाया। भोजन ग्रहण करने वाले तृप्त हुए फिर भी भोजन बचा रहा।

भोजन उपरांत तो भजन होने से रहा। भोजन से तृप्त मन और आलस्य पूर्ण देह ने दरी पर पसरने को मजबूर किया। कुछ लोग पसर गए। कुछ आसपास घूमने लगे। जब मन और देह से तृप्त आलस्य दूर हुआ तो हनुमान जी पर चर्चा चल पड़ी।

एक साथी बोले – कुछ सालों तक महिलाओं को हनुमान जी की पूजा की मनाही थी। महिलाएं  हनुमान मंदिर नहीं जाती थीं। अब तो गर्भग्रह में महिलाओं की भारी भीड़ है।

दूसरे बोले – हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं। इसलिए शायद यह व्यवस्था रही होगी।

चर्चा में भाग लेते हुए, उन्हें बताया – सनातन संस्कृति सतत परिवर्तन शील है। हनुमान जी कलयुग के सबसे उपास्य देव बनकर उभरे हैं। सांस्कृतिक विकास समझने हेतु हमें राजनीतिक इतिहास की तरह धर्म का इतिहास भी समझना चाहिए।

मूर्ति शिल्प के विकास में गुप्त काल (35-550 ईस्वी) का महत्वपूर्ण योगदान है। जब शिल्प कला का विकास आरम्भ हुआ था। भारत में विष्णु और शिव की प्रस्तर मूर्तियाँ उसी काल से गढ़ना आरम्भ हुई थीं। इसके पूर्व अनगढ़ मूर्तियां होती थीं। रामधारी सिंह दिनकर ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में लिखा है कि शिव आराधना आर्यों और अनार्यों में कुछ भेद के साथ उपलब्ध थी। कालांतर में दोनों संस्कृति ने शिव को अनादि देव स्वीकार कर लिया। भारतीय संस्कृति का समन्वयात्मक स्वरूप अस्तित्व में आने लगा था। गुप्त कालीन पुराण युग के बाद बारहवीं-तेरहवीं सदी में विष्णु और उनके अवतारों की पूजा शुरू होती है, तब से भक्ति युग आरंभ होता है। उसके बाद सूरदास और मीरा ने कृष्ण भक्ति की अलख जगाई और सोलहवीं सदी में तुलसीदास ने राम भक्ति को जनता में प्रचारित किया। राम दरबार के साथ हनुमान भी पूजित होने लगे।

तुलसीदास ने हनुमान चालीसा लिखा। वे जहाँ भी प्रवचन को जाते, वहाँ हनुमान जी की प्रस्तर मूर्ति स्थापित करते थे। उन्होंने पहला हनुमान मंदिर राजापुर में स्थापित किया था। इसके बाद उत्तर भारत में हनुमान मंदिर स्थापित होना शुरू हुए। दक्षिण भारत में हनुमान मंदिर नहीं के बराबर हैं। पूरी हम्पी में आंजनेय पर्वत को छोड़कर कहीं हनुमान जी का मंदिर नहीं दिखता। तुलसीदास जी ने हनुमान जी को अखाड़ों से जोड़कर पहलवानी से संबद्ध कर दिया। विधर्मियाँ से निपटने हेतु शक्ति का आव्हान और कसरत अनिवार्यता थी। अखाड़ों में नगधडंग पहलवानों के समझ देवी स्थापना तो की नहीं जा सकती थी। वैसे भी देवी पूजन का वैष्णवों में कोई विधान नहीं था। शाक्त देवी पूजते थे। शाक्त बंगाल तक सीमित थे। इस तरह उत्तर भारत में हनुमान शक्ति के देवता स्थापित हो गए। महिलाएं ब्रह्मचर्य के प्रतीक हनुमान जी के सामने जाने में संकोच करती थीं।

इसका एक और कारण समाज का अर्थ प्रधान होता जाना है। आज़ादी के बाद हर वर्ग धनोपार्जन को लालायित हुआ। शिक्षा का उद्देश्य भी धनोपार्जन होने लगा। हनुमान बल, बुद्धि और विवेक के प्रतीक हुए। वे युवकों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के उपास्य देव बन गए। वे शनिदेव की साढ़े साती और अढ़ैया दशा का निवारण करने में भी सक्षम सहायक हैं।

समाज शास्त्रियों द्वारा मानवीय जीवन के सम्पूर्ण  जीवन वृत्त का अध्ययन करने पर एक नया सिद्धांत पाया गया ‘मध्य जीवन संकट’। मध्य जीवन संकट (मिड ऐज क्राइसिस) की परिभाषा जीवन में परिवर्तन की अवधि है जहां कोई व्यक्ति अपनी पहचान और आत्मविश्वास के साथ संघर्ष करता है। यह 40 वर्ष से लेकर 60 वर्ष की आयु के बीच कहीं भी होता है। पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है। मध्य आयु संकट कोई विकार नहीं है बल्कि मुख्यतः मनोवैज्ञानिक पहलू है।

मनुष्य की चालीस से साठ वर्ष की उम्र में एक तरफ़ माँ-बाप बीमारी बुढ़ापा ग्रसित हो मृत्यु का ग्रास बनने की कगार पर होते हैं। वहीं दूसरी ओर बच्चों की ज़िम्मेदारियों का बोझ सर्वाधिक महसूस होने लगता है। मनुष्य को खुद स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलें दरपेश होने लगती हैं। उसे भी स्वयं की मृत्यु का बोध सताने लगता है। इसमें यदि आय पर कुछ संकट होता दिखे तो मनुष्य टूटने लगता है। उसे किसी संबल की ज़रूरत होती है।

मध्य आयु संकट के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। आम तौर पर, उनमें चिंता, बेचैनी, जीवन से असंतोष और महत्वपूर्ण जीवन परिवर्तनों की तीव्र इच्छा की भावनाएँ शामिल हो सकती हैं।

मध्य जीवन संकट और अवसाद के कुछ सामान्य लक्षण हैं, जिनमें ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और लापरवाह व्यवहार शामिल हैं। यदि लक्षण लगातार बने रहते हैं और हर दिन दिखाई देते हैं, तो यह अवसाद होने की अधिक संभावना है। यदि स्थिति साढ़े साती शनि बनकर सामने आती है। शनि के प्रभाव को कम करने हेतु हनुमान जी से उत्तम औषधि कुछ नहीं है। जीवन संग्राम में हनुमान सर्वाधिक पूज्य देव बनकर उभरे हैं। इसमें महिला-पुरुष का भेद खत्म हुआ है, क्योंकि महिलाएं भी तेजी से कमाई करके परिवार का आर्थिक केंद्र बनती जा रही हैं। उन्हें भी हनुमान रक्षा कवच की आवश्यकता महसूस हुई है। यही सब चर्चा करते पहाड़ी से नीचे के लुभावने दृश्य देखते रहे।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 156 ☆ मुक्तक – ।। परदा गिरने के बाद भी ताली यूं ही बजती रहे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 156 ☆

☆ मुक्तक – ।। परदा गिरने के बाद भी ताली यूं ही बजती रहे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

स्वीर इक दिन, दीवार पर टंग जाना है।

दुनिया से दूर हमें सितारों, सा रंग जाना है।।

कर जाएं सार्थक जीवन, अपना सत्कर्मों से।

बस यही सब ही उपर, हमारे संग जाना है।।

=2=

यह न जलती है और, यह न ही गलती है।

दुयाओं की यह दौलत, कभी नहीं मरती है।।

मत संकोच करो कभी, दुआ लेने और देने में।

जिंदगी के साथ और, बाद भी यह चलती है।।

=3=

इत्र की महक दामन में, नहीं किरदार में लाओ।

काम आकर सबके आदमी, दिलदार कहलाओ।।

नेकी बदी सब जिंदा रहती , हर एक दिल में।

बन कर जिंदगी के तुम, वफादार ही जाओ।।

=4=

अहम गरुर चाहत सब, इक राख बन जाती है।

मिट्टी की देह इक दिन, बस खाक बन जाती है।।

धन दौलत शौहरत नहीं, जबान मीठी है भाती।

यही चलकर तेरा नाम, सम्मान नाक बन जाती है।।

=5=

कर जाओ ऐसा, कि डोली यादों की सजती रहे।

मिलने को यह दुनिया, राह तेरी तकती रहे।।

हर दिल में जगह बन जाए, जरूर तेरे नाम की।

परदा गिरने के बाद भी, ताली यूं ही बजती रहे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #221 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – अनुपम भारत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – अनुपम भारत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 221

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अनुपम भारत…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

अपने में आप सा है, भारत हमारा प्यारा

जग में चमकता जगमग जैसे गगन का तारा।

*

हैं भूमि भाग अनुपम नदियाँ-पहाड़ न्यारे

उल्लास से तरंगित सागर के सब किनारे ।

*

ऋतुएँ सभी रंगीली, फल-फूल सब रसीले

इतिहास गर्वशाली, आँचल सुखद सजीले।

*

है सभ्यता पुरानी, परहित की भावनाएँ

सत्कर्ममय हो जीवन है मन की कामनाएँ।

*

गाँवों में भाईचारे का सुखद स्नेह व्याप्त था।

हवाएँ नरम थीं, मौसम सुहावना था।

*

लोगों में सरलता है दिन-रात सब सुहाने

त्यौहार प्रीतिमय हैं, अनुराग सिक्त गाने।

*

रामायण और गीता ज्ञान की अद्वितीय पुस्तकें हैं जो

मन को विचलित नहीं होना, बल्कि स्थिर रहना सिखाती हैं।

*

ये देश है सुहाना, धर्मों का यहां पर मेला

असहाय भी न पाता, खुद को जहाँ अकेला।

*

आध्यात्मिक है चिन्तन, धार्मिक विचारधारा

संसार से अलग है, भारत पुनीत प्यारा।

*

है ‘एकता विविधता में’ लक्ष्य अति पुराना

भारत ‘विदग्ध’ जग का आदर्श है सुहाना ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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