हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 58 ☆ संस्मरण – हमारे मित्र डॉ लालित्य ललित जी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर संस्मरण “हमारे मित्र  डॉ लालित्य ललित जी।  श्री विवेक जी ने  डॉ लालित्य ललित जी  के बारे में थोड़ा  लिखा  ज्यादा पढ़ें की शैली में बेहद संजीदगी से यह संस्मरण साझा किया है।। इस संस्मरण  को हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने के लिए श्री विवेक जी  का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 58 ☆

 

☆ संस्मरण –  हमारे मित्र डॉ लालित्य ललित जी ☆

खाने के शौकीन, घुमक्कड़, मन से कवि,  कलम से व्यंग्यकार हमारे मित्र  लालित्य ललित जी!

गूगल के सर्च इंजिन में किसी खोज के जो स्थापित मापदण्ड हैं उनमें वीडियो, समाचार, चित्र, पुस्तकें प्रमुख हैं.

जब मैंने गूगल सर्च बार पर हिन्दी में लालित्य ललित लिखा और एंटर का बटन दबाया तो आधे मिनट में ही लगभग ३१ लाख परिणाम मेरे सामने मिले. यह खोज मेरे लिये विस्मयकारी है. यह इस तथ्य की ओर भी इंगित करती है कि लालित्य जी कितने कम्प्यूटर फ्रेंडली हैं, और उन पर कितना कुछ लिखा गया है.

सोशल मीडिया पर अनायास ही किसी स्वादिष्ट भोज पदार्थ की प्लेट थामें परिवार या मित्रो के साथ  उनके  चित्र मिल जाते हैं. और खाने के ऐसे शीौकीन हमारे लालित्य जी उतने ही घूमक्कड़ प्रवृत्ति के भी हैं. देश विदेश घूमना उनकी रुचि भी है, और संभवतः उनकी नौकरी का हिस्सा भी. पुस्तक मेले के सिलसिले में वे जगह जगह घूमते लोगों से मिलते रहते हैं.

मेरा उनसे पहला परिचय ही तब हुआ जब वे एक व्यंग्य आयोजन के सिलसिले में श्री प्रेम जनमेजय जी व सहगल जी के साथ व्यंग्य की राजधानी, परसाई जी की हमारी नगरी जबलपुर आये थे. शाम को रानी दुर्गावती संग्रहालय के सभागार में व्यंग्य पर भव्य आयोजन संपन्न हुआ, दूसरे दिन भेड़ागाट पर्यटन पर जाने से पहले उन्होने पोहा जलेबी की प्लेटस के साथ तस्वीर खिंचवाई और शाम की ट्रेन से वापसी की.

मुझे स्मरण है कि ट्रेन की बर्थ पर बैठे हम मित्र रमेश सैनी जी ट्रेन छूटने तक लम्बी साहित्यिक चर्चायें करते रहे थे.

इसके बाद उन्हें लगातार बहुत पढ़ा, वे बहुप्रकाशित, खूब लिख्खाड़ लेखक हैं. व्यग्यम की गोष्ठियो में हम व्यकार मित्रो ने उनकी किताबों पर समीक्षायें भी की हैं. मैं अपने समीक्षा के साप्ताहिक स्तंभ में उनकी पुस्तक पर लिख भी चुका हूं. वे अच्छे कवि, सफल व्यंग्यकार तो हैं ही सबसे पहले एक खुशमिजाज सहृदय इंसान हैं, जो यत्र तत्र हर किसी की हर संभव सहायता हेतु तत्पर मिलता है. अपनी व्यस्त नौकरी के बीच इस सब साहित्यिक गतिविधियो  के लिये समय निकाल लेना उनकी विशेषता है.

वे बड़े पारिवारिक व्यक्ति भी हैं, भाभी जी और बच्चो में रमे रहते हुये भी निरंतर लिख लेने की खासियत उन्ही में है. इतना ही नही व्यंग्ययात्रा व्हाट्सअप व अब फेसबुक पर भी समूह के द्वारा देश विदेश के ख्याति लब्ध व्यंग्यकारो को जोड़कर सकारात्मक, रचनात्मक, अन्वेषी गतिविधियों को वे सहजता से संचालित करते दिखते हैं.

मैं उनके यश्स्वी सुदीर्घ सुखी जीवन की कामना करता हूं, व अपेक्षा करता हूं कि उनका स्नेह व आत्मीय भाव दिन पर दिन मुझे द्विगुणित होकर सदा मिलता रहेगा.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 9 – मागोवा ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘मागोवा

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 9 ☆ 

☆ मागोवा  

आज घेताना मागोवा

जुनी वाट झाकोळावी

दूर धुक्यातून कोणी

जुनी कथा रेखाटावी.

 

आज व्हावा डोळाबंद

रंगरूप पळसाचे

जागवावे भाव मनी

भोळ्या खुळ्या शेवंतीचे

 

अर्धखुल्या पापणीत

स्वप्न सारे साठवावे.

कण क्षण सोशिलेले

दिठीदिठीत मिटावे.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 54 ☆ देहाची शाल ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “देहाची शाल।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 54 ☆

☆ देहाची शाल☆

 

ती सुगंध उधळित यावी मी मलाच उधळुन द्यावे

ती लाजत मुरडत जाता डोळ्यांत साठवुन घ्यावे

 

तो वसंत येतो जेव्हा ती फूल होउनी जाते

श्वासात उतरते तेव्हा माझाच श्वास ती होते

 

चंद्राचे रूप धवल हे त्या मुखकमळावर येते

ती प्रकाशकिरणे त्यातिल मज जाता जाता देते

 

पाहतो किनारा आहे किती व्याकुळतेने वाट

ती फेसाळत मग येते होऊन प्रीतीची लाट

 

तिमिराचा डाव उधळण्या काजवे घेउनी आलो

ती प्रसन्न व्हावी म्हणुनी मी वात दिव्याची झालो

 

प्रीतीच्या झाडावरती राघुने बांधले घरटे

मैना जे घेउन येते नसतेच गवत ते खुरटे

 

देहाची शाल करावी नि तिला लपेटुनी घ्यावे

मी भ्रमर होउनी अमृत त्या गुलाबातले प्यावे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

 

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 51 – कविता – मिले न  मुझको मेरे राम ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम अध्यात्म पर आधारित विरह गीत “मिले न  मुझको मेरे राम।   कविता की प्रथम पंक्ति ही कविता का सार है और शेष है  विरह एवं प्रतीक्षा के भाव।  इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 51 ☆

☆ कविता  – मिले न  मुझको मेरे राम

 

हाथों की लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।

ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।

 

वन उपवन  राह निहारी उनका आठो याम

फिरते फिरते नैना  हारी  मिले न मुझको मेरे राम।

 

पंछी घोसला बना लिए चुन चुन तिनका सारा।

कैसे बनाऊं आशियाना मिले न  मुझको मेरे राम।

 

व्याकुल हिरनी सी भटकूं करती रही उनका इंतजार।

ढूंढ – ढूंढ ताल तलैया दिखे न मुझको मेरे राम।

 

सांझ ढले बिरहा की मारी दिनका व्याकुल मन।

अंतस मन लिए शांत बैठी नैनों में समाए राम।

 

हाथों के लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।

ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 6 – मुंबई के ये डिब्बे वाले  … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “मुंबई के ये डिब्बे वाले  …”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #6 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ मुंबई के ये डिब्बे वाले  …. ☆

 

आधी बस्ती

जिनके हवाले

मुम्बई के ये

डिब्बे वाले

 

लेकर के भूख

भरी कश्तियाँ

ढोते रहते

अनंत तृप्तियाँ

 

अपनी आजानु

बाहुओं में ले

धौंडु -पांडुरंग

के निवाले

 

बिना चूक डिब्बा

जिस का उसको

समय नहीं इतना

कि पूछ   सको

 

औाखों की सीमा

में जो कुछ है-

पहुँचेगा, वाशी

या रिवाले

 

कोई बोनस या

बख्शीस नहीं

सिर्फ मजूरी

कोई फीस नहीं

 

बस सफेद टोपी

कुर्ता कमीज

पाजामे में

चलें उजाले

 

अनुशासित बिना

किसी बंधन के

चर्चित यह दूत

हैं प्रबंधन के

 

ये खुद के सच्चे

उदाहरण

सेवा की ध्वजा

हैं सम्हाले

 

आधी बस्ती

जिनके हवाले

मुम्बई के ये

डिब्बे वाले

 

© राघवेन्द्र तिवारी

09-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय–

ऐसा प्राय: देखने में आया है कि आप अपनी रचना में जहां सबसे मूल्यवान कथ्य का सम्प्रेषण कर रहे होते हैं, वहां बहुत कम देर रुकते हैं, इन क्षणों में आपका गद्य अचानक बहुत संक्षिप्त और उसकी गति अत्याधिक त्वरित हो उठती है। एक लेखक के रूप में अपने इन उत्कर्ष क्षणों में स्वंय को सचेत रूप में अनुपस्थित कर देने का यह गुण आपकी मानवीय विनम्रता का सहज गुण है या सयास निर्मित एक रचना कौशल ?

 

हरिशंकर परसाई-

यह मेरी विनम्रता नहीं है,बात असल में ये है कि ये कौशल भी नहीं है। मैं वास्तव में उस बिंदु तक आते-आते परिस्थितियों का, वक्तव्यों का ऐसा वातावरण निर्मित कर लेता हूं कि उनमें से इस प्रकार की अभिव्यक्ति निकलनी ही चाहिए,जो कि निष्कर्ष रूप में होती है, लेकिन उसकी भूमिका मैं लम्बी बनाता हूं, और उस लम्बी भूमिका के बाद उस निष्कर्ष का क्षण आता है, यदि निष्कर्ष के उस क्षण को मैं लम्बा कर दूं तो मेरे लेखन का प्रभाव नष्ट हो जावेगा। मुझे संक्षिप्त में ही उसे एकदम से कहकर आगे बढ़ जाना चाहिए,कारण कि पाठक का दिमाग तो तैयार हो गया तब तक। तो एक दो वाक्य चलते फिरते कह देने भर से वह पूरी की पूरी बात ग्रहण कर लेता है। यदि मैं उसको ४-६-८ वाक्यों में समझाऊं तो इसका मतलब कि मेरी पहले की बनाई भूमिका बेकार हो जावेगीऔर उसका प्रभाव भी नहीं रह पायेगा, इसलिए मैं ऐसा करता हूं।

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेष कुशल # 8 ☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की…. ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक  व्यंग्य “कई पेंच हैं फ्लॉयड की….।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 8 ☆

☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की….

मिनिसोटा, अमेरिका से एक काल्पनिक रपट:

“गवर्नर टिम वॉल्ज ने मरहूम जार्ज फ्लॉयड के घर पर उनकी पत्नी और बेटी से मुलाकात की. उन्होंने मृतक की विधवा को पचास हजार डॉलर की सहायता, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने और फ्लॉयड पर जो क़र्ज़ था उसे माफ़ करने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिये गये हैं. पुलिस अधिकारी डैरेक शॉविन को हिरासत में लेकर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है. तीन अन्य पुलिस अधिकारियों को पुलिस मुख्यालय में अटैच किया गया है. उन्होंने दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करने का भी आश्वासन दिया है.

उधर अमेरिकी राष्ट्रपति, जो रिपब्लिकन पार्टी से आते हैं, ने बढ़ते विरोध प्रदर्शन को देखते हुये मामले की जांच एफबीआई को सौंप दी है, जिसने प्राथमिक जांच शुरू भी कर दी है. जांच दल की टीम के एक सदस्य ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा है कि फ्लॉयड के अर्बन …… होने के सबूत मिले हैं. उसकी हत्या …… की आपसी रंजिश का नतीज़ा भी हो सकती है. उसके कम्पयूटर में ……वादी साहित्य मिला है. एजेंसी अब फ्लॉयड के संपर्कों को खंगाल रही है. हम उसके तार टुकड़े टुकड़े गैंग से जुड़े होने की संभावना पर भी काम कर रहे हैं. फ्लॉयड जिस एनजीओ से जुड़ा था उसके लेनदेन की भी जांच की जा रही है. अगर इस बारे में और सबूत मिले तो फ्लॉयड की पत्नी की गिरफ्तारी संभव है.

घटना में एक नया मोड़ तब आया जब पार्टी के अन्दरखाने कुछ नेताओं ने टिम वॉल्ज को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की.  आपको बता दें कि फ्लॉयड डेमोक्रेटिक पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता और चुनाव जीतने तक वॉल्ज का नज़दीकी था. सम्मानजनक पद नहीं मिलने के कारण कुछ समय से नाराज़ चल रहा था. राज्य के कुछ  डेमोक्रेट्स फ्लॉयड के परिवार को न्याय दिलाने की आड़ में ट्वीट्स करके टिम वॉल्ज पर निशाना साध रहे हैं.

इस बीच शॉविन के परिवार ने वीडियो की फोरेंसिक जांच की मांग की है. शॉविन के वकील ने कहा है वो वीडियो डॉक्टर्ड है जिसमें उनके मुवक्किल घुटने से फ्लॉयड की गर्दन को दबाये हुये दिखाई पड़ रहे हैं. शॉविन लम्बे समय से ‘नी-लॉक’ की बीमारी से ग्रस्त हैं, वे घुटना मोड़ नहीं सकते. उन्हें राजनीतिक कारणों से बलि का बकरा बनाया जा रहा है. शॉविन के परिवार ने पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट में छेड़छाड़ का आरोप भी लगाया है. जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ता और फ्लॉयड के वकील बेंजामिन क्रंप ने शॉविन पर फर्स्ट डिग्री यातना का अभियोग चलाने की मांग की है. इस पर ट्रोल्स ने क्रंप को देशद्रोही कहना शुरु कर दिया है. वे कहते हैं मानवाधिकार तो पुलिस के भी होते हैं, एक्टिविस्ट उनकी बात क्यों नहीं उठाते ?

जहाँ एक ओर फ्लॉयड की हत्या पर देश में उबाल है वहीं इस पर जातिगत राजनीति भी शुरू हो गयी है. एक वर्ग विशेष फ्लॉयड को दलित बता रहा है तो कुछ लोग उसके दलित होने पर ही संदेह व्यक्त कर रहे हैं. घटना पर सोशल मीडिया में ट्रोल्स सक्रिय हो गये हैं. ट्रोल्स ने पुलिस से कहा है कि उन्हें घुटने के बल बैठकर माफ़ी मांगने की बजाये प्रदर्शनकारियों के घुटने तोड़ देने चाहिये. कुछ ने पुलिस को ऐसे मामले में सार्वजानिक रूप से हत्या करने की बजाये चुपचाप एनकाउंटर में निपटा देने के सुझाव दिये हैं. ट्रोल्स ने प्रदर्शनकारियों पर यूएपीए लगाने की मांग कर डाली है. ‘आई कांट ब्रीद’  पर एक ट्रोल ने लिखा है – ‘इनको पड़ोस के देश भेज देना चाहिये. देयर ही केन ब्रीद कार्बन-डाई-ऑक्साईड. इस देश का खाते हैं, यहाँ रहते हैं और कहते हैं यहाँ ब्रीद नहीं कर पा रहे, शेम.’ एक मीम में गब्बरसिंह की ड्रेस में शॉविन कह रहे हैं – ‘फ्लॉयड ये सांस मुझे दे दे’. हैश टैग ‘सेव शॉविन’ जमकर ट्रेंड हो रहा है.

बहरहाल, कई पेंच हैं फ्लॉयड की हत्या में, लेकिन इतना अवश्य है कि इस पूरे प्रकरण में अमेरिका की छबि खराब होती नज़र आ रही है. कहा जा रहा है कि जिनकी पुलिस से एक आम नागरिक की हत्या नहीं संभाली जाती वे काहे के लोकतान्त्रिक और काहे के विकसित देश. अमेरिकी प्रशासन को भारत आकर प्रशिक्षण लेने की जरूरत है.”

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #1 ☆ पितृ दिवस विशेष – बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज पितृ दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है  “बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा”। ) 

☆ पितृ दिवस विशेष – बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा ☆ 

ऊंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया

जब भी गिरा तुमने उठाया

दौड़ने का साहस बढ़ाया

जब थक गया तो

अपने कांधे पर बिठाया

वो बचपन के दिन

मैं कैसे भूल पाऊंगा?

 

याद है मुझको स्कूल में

मेरा पहला दिन

रोते रहना, बिलखना तुम बिन

गिनती सिखाई

कांच की गोलियां गिन गिन

टाॅफियां खिलाई मां से छिन छिन

तुम्हारे सबक से ही तों

हमेशा जीवन में अव्वल आऊंगा।

 

पढ़ाई में मेरी सब कुछ लगा दिया

जो भी था गांठ में वो गंवा दिया

खुद भूखे  रहकर रोटी मुझे खिला दिया

कुछ बनने की जिद

मुझमें जगा दिया

इस जिद से ही तों

मैं ऊंचाइयों पर चढ़ पाऊंगा।

 

आशीर्वाद से तुम्हारे

जीवन में बहार है

छोटा सा सुखी संसार है

हर कदम पर जीत है

ना कोई हार हैं

बस आज तुम नहीं हो

ये दुःख अपार है

तुम्हें खोने का ग़म

आंखों में कैसे छिपाऊंगा?

 

भारी व्यस्तताओं मे भी अवकाश लिया है

तुम्हारी बरसी पर तुम्हें याद किया है

पूजा कर एक प्रण लिया है

तुमसा बनने का बच्चों को वादा किया है

सोच में डूबा हूं

क्या मै तुमसा बन पाऊंगा?

बाबा! मैं तुम्हें न भूल पाऊंगा।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ पितृ दिवस विशेष – बाप..☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है पितृ दिवस के अवसर पर उनकी भावप्रवण कविता “बाप.. ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ 

☆ पितृ दिवस विशेष – बाप.. ☆

 

काटा पायात रुततो

तरी तो तसाच राहतो

कुटुंब पोसण्या बाप

अजन्म लढत असतो…०१

 

काट्याचे कुरूप जाहले

बापाचा पाय सडला

रुतणाऱ्या काट्याने

पिच्छा नाही सोडला…०२

 

एक वेळ अशी येते

पायच तोडल्या जातो

उभ्या आयुष्याचा तेव्हा

स्तंभ सहज ढासळतो…०३

 

तरी हा पोशिंदा बाप

लढत पडत राहतो

त्याच्या रक्तात कधी

दुजा भावच नसतो…०४

 

पूर्ण आयुष्य बापाने

डोई भार वाहिला

कुटुंबास पोसण्या

दिस-वार ना पहिला…०५

 

ना रडला कधी बाप

ना कधी व्यथा मांडल्या

मोकळे आयुष्य जगतांना

कळा भुकेच्या सोसल्या…०६

 

असा बाप तुमचा आमचा

अहोरात्र झुंजला गांजला

का कुणास ठाऊक मात्र

बाप शापित गंधर्व का ठरला…०६

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – प्रेम के सन्दर्भ में दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं।

आज 21 जून परम आदरणीय गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के जीवन का अविस्मरणीय दिवस है। उनकी सुपुत्री डॉ भावना शुक्ल जी  एवं डॉ हर्ष तिवारी जी स्मरण  करते हैं  कि –  यदि आज आदरणीय माता जी स्व डॉ गायत्री तिवारी जी साथ होती तो हम सपरिवार उनके विवाह की 55वीं सालगिरह मनाते, योग दिवस मनाते।

? हम सब की और से पितृ दिवस पर उन्हें सादर चरण स्पर्श एवं इस अविस्मरणीय दिवस हेतु हार्दिक शुभकामनायें ?

 

 ✍  लेखनी सुमित्र की – प्रेम के सन्दर्भ में दोहे  ✍

 

नाम रूप क्या प्रेम का, उत्तर किसके पास।

प्रेम नहीं है और कुछ, केवल है अहसास।।

 

निराकार की साधना, कठिन योग पर्याय।

योग शून्य का शून्य में, शून्य प्रेम – संकाय ।।

 

गोप्य  प्रेम बहुमूल्य है, जैसे परम विराग ।

प्रकट प्रेम की व्यंजना, जैसे ठंडी आग ।।

 

आयु वेश की परिधि में, बंधे न बांधे प्यार ।

सागर रहता संयमित, रुके न रोके ज्वार ।।

 

सृष्टि समाहित प्रेम में, प्रेम अलौकिक गीत।

प्रेमिलता अनुभव करें, हृदयों का संगीत ।।

 

गोपनीय है प्रेम यदि, जाने केवल व्यक्ति ।

सहज प्रेम की सदा ही, होती है अभिव्यक्ति ।।

 

अंधा कहते प्रेम को, वही नयन विहीन।

दृष्टि दिव्य  हैं प्रेम की, करती ताप विलीन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

9300121702

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