हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 127 ☆ सॉनेट ~ शुभेच्छा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  सॉनेट “~ शुभेच्छा ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 127 ☆ 

सॉनेट ~ शुभेच्छा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नहीं अन्य की, निज त्रुटि लेखें।

दोष मुक्त हो सकें ईश! हम।

सद्गुण औरों से नित सीखें।।

काम करें निष्काम सदा हम।।

नहीं सफलता पा खुश ज्यादा।

नहीं विफल हो वरें हताशा।

फिर फिर कोशिश खुद से वादा।।

पल पल मन में पले नवाशा।।

श्रम सीकर से नित्य नहाएँ।

बाधा से लड़ कदम बढ़ाएँ।

कर संतोष सदा सुख पाएँ।।

प्रभु के प्रति आभार जताएँ।।

आत्मदीप जल सब तम हर ले।

जग जग में उजियारा कर दे।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-२-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #156 ☆ भोजपुरी गीत  – नेह के बाती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 156 ☆

☆ भोजपुरी गीत  – नेह के बाती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

दीप दुआरे अंगना बारा,

जरै नेह के बाती से।

जगमग जोत जरै घर आंगन,

प्रेमवां उपजै छाती से।

 

छप्पर छानी   महल अटारी,  

कहीं अन्हेरिया रहि ना जाय।

आपस में मिल खुशी मनावा,

जाति धरम से बाहर आय।।

दीप दुआरे अंगना… ।।०१।।

 

ओकर घर उंजियार करा,

जेकरे घर  में अन्हियारा बा।

भईया बना सहारा ओकर,   

जेकरे नाहीं सहारा बा।

साथे साथे खुशी मनावा,  

बाटा आउर मिठाई।

औ दुश्मन  के भी गले लगावा,  

हिया मिला के भाई।।

दीप दुआरे…।।०२।।

 

जब अइसन माहौल बनी,

त सच में खुशी मनइबा।

थोड़ा थोड़ा खुशी बांट के,

जादा खुशी तूं पइबा।

सबके आशीर्वाद से,  

जिनगी, तोहार बन जाई।।

दीप दुआरे…।।०३।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(1-09-2021)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ झाला फांदीचा चमचा… ☆ श्री प्रमोद जोशी ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ?  झाला फांदीचा चमचा…  ?  श्री प्रमोद जोशी ☆

झाला फांदीचा चमचा,

नवनीत झाले ढग!

अशा लोण्याच्या ओढीने,

झाले बालकृष्ण जग!

कृष्ण रांगत येणार,

आली चमच्या पालवी!

अशा चित्रामुळे कळे,

जग कन्हैय्या चालवी!

निळ्या अनंतासमोर,

असे दिसताच लोणी!

सांगा बालकृष्णाविणा,

दुजे आठवे का कोणी?

चराचर बघे वाट,

कुठुनही यावा कान्हा!

निळ्या निळ्या आकाशाला,

पुन्हा पुन्हा फुटो पान्हा!

धुके लावी विरजण,

वारा घुसळतो दही!

निळ्या कागदावरती,

फांदी..ईश्वराची सही!

लोण्यावर किरणांची,

आहे नजर तेजस्वी!

वाट पहात कान्ह्याची,

त्यांची प्रतिक्षा ओजस्वी!

अनंताच्या भुकेसाठी,

घास व्यापतो आकाश!

सूर्य निरांजन होतो,

मग सात्विक प्रकाश!

चित्रकारा नमस्कार,

त्याची दृष्टी शोधी दिव्य!

साध्या फांदी नि ढगाना,

गोकुळाचे भवितव्य!

© श्री प्रमोद जोशी

देवगड.

9423513604

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #177 – 63 – “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…”)

? ग़ज़ल # 63 – “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जब मुलाकात हुई तो की बेकार की बात,

कर लेते तुम हमसे थोड़ी प्यार की बात।  

क्यों बदलती इश्क़ की तासीर मौसम जैसी,

कभी इनकार की तो कभी इकरार की बात।

पास आकर बैठो कभी तो फ़ुरसत से तुम,

ताज़ा कर लें हम पहले इज़हार की बात।

हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते,

हमेशा परवान चढ़ी है दिलदार की बात।

मेरी बातें तुम अक्सर क्यों भूल जाते हो,

मगर याद रहती तुम्हें रिश्तेदार की बात। 

कीमतें चीजों की यूँ ही नहीं गिरती-चढ़तीं,

सियासत तय करती शेयर बाजार की बात।

फ़कत वादों के दम पर ज़िन्दगी नहीं चलती,

आतिश अक्सर सच लगी मयख्वार की बात।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 55 ☆।।सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 55 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सच्चे  रिश्तों  के  लिए एहसास जरूरी  है।

हर   रिश्ते  को  मानना  खास  जरूरी  है।।

दिल   से  दिल  का  तार   मिला कर चलो।

रिश्तों में और कुछ नहीं विश्वास जरूरी है।।

[2]

दोस्ती  का  अपना  एक  अंदाज  होता  है।

हर  सवाल का  देना      जवाब  होता  है।।

दोस्ती खून का नहीं  है यकीन का रिश्ता।।

ये एक रिश्ता हर एक से लाजवाब होता है।।

[3]

कभी अपने के आंख में आंसू न आने देना।

कभी किसी दोस्त को यूं मत गवानें देना।।

प्रेम की  नाजुक डोरी बहुत  होती मजबूत।

कभी  इस पर कोई दाग मत लगाने देना।।

[4]

सच्चा रिश्ता प्रभु की दी हुई नियामत होता है।

आपकी  खुशियों  की  वह  जमानत होता है।।

दोस्ती  कभी   टिकती  नहीं बिना निभाने के।

रखना संभाल कि अनमोल अमानत होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 119 ☆ ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #119 ☆  ग़ज़ल  – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अब आ गई है दुनिया ये ऐसे मुकाम पै

जो खोखला है, बस टिका है तामझाम पै।।

दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये

कई तो बहुत ही बौने हैं पैसे के नाम पै।।

युनिवर्सिटी में इल्म की तासीर नहीं है

अब बिकती वहाँ डिग्रियाँ सरेआम दाम पै।।

आफिस हैं कई काम पै होता नहीं कोई

कुछ लेन देन हो तो है सब लोग काम पै।।

बाजारों में दुकानें है पर माल है घटिया

कीमत के हैं लेबल लगे ऊँचे तमाम पै।।

नेता है वजनदार वे रंगदार जो भी है

रंग जिनका सुबह और है, कुछ और शाम पै।।

तब्दीलियों का सिलसिला यों तेज हो गया

विश्वास बदलने लगे केवल इनाम पै।

सारी पुरानी बातें तो बस बात रह गई

अब तो सहज ईमान भी बिकता है दाम पै।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 140 – मंद वारा सुटला होता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 140 – मंद वारा सुटला होता

मंद वारा सुटला होता, गंध फुलांचा दाटला होता।

आज तुझ्या आठवांनी कंठ मात्र दाटला होता।।धृ।।

हिरव्या गार वनराईला चमचमणारा ताज होता।

मखमली या कुरणांवरती मोतीयांचा साज होता।

चिमुकल्यां चोंचीत माझ्या,तुझ्या चोंचिचा आभास होता।।१।।

पहाटेलाच जागवत होतीस , झेप आकाशी घेत होतीस ।

अमृताचे कण चोचीत ,आनंदाने भरवत होतीस।

आमच्या चिमण्या डोळ्यांत ,स्वप्न फुलोरा फुलत होता ।।२।।

आनंद नद अपार होता, खोपा स्वर्ग बनला होता।

विधाताही लपून छपून , कौतुक सारे पाहात होता।

आज कसा काळाने वेध तुझा घेतला होता।।३।।

आता बाबा पहाटेला ऊठून काम सारं करत असतो।

लाडे लाडे बोलत असतो गाली गोड हसत असतो।

आज त्याच्या डोळ्यांचा कडं मात्र ओला होता।।४।   

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ क्लिक ट्रिक – अर्चना देशपांडे जोशी ☆ परिचय – सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर ☆

सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर

 

 

 

☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ 

☆  क्लिक ट्रिक – अर्चना देशपांडे जोशी ☆ परिचय – सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर ☆ 

लेखिका : अर्चना देशपांडे जोशी. 

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन 

पृष्ठसंख्या : १२६ 

किंमत : रु. १७५/-  

सध्याच्या मोबाईलच्या जगात सर्वच जण फोटो काढत असतात आणि लाईक मिळवत असतात. “फोटो काढणे” हा एक खेळ झाला आहे. अशावेळी मनात शंका येते,  “फोटोग्राफी” ही कला म्हणून आता अस्तित्वात आहे का? याचे उत्तर आपल्याला अर्चना देशपांडे जोशी यांच्या ‘क्लिक ट्रिक’ या पुस्तकात मिळते. खरी फोटोग्राफी, मोबाईल फोटोग्राफी आणि आपले आयुष्य यांचा मेळ घालत, बत्तीस ललित लेखांची मालिका असलेले हे पुस्तक. ‘छायाचित्र कलेवरच सोप्पं भाष्य’ असे सांगत प्रस्तावनेलाच सुधीर गाडगीळसरांनी पुस्तकाविषयी उत्सुकता निर्माण केली आहे. तर विनायक पुराणिक सरांनी या पुस्तकाचे योग्य शब्दात वर्णन केले आहे. फोटो काढण्याची एक वेगळी नजर या पुस्तकातून मिळते, असे ते सांगतात. तर यापुढे जाऊन मला वाटते, फक्त फोटोच नाही, तर जीवनातील विविध प्रसंगाना वेगळ्या नजरेने बघण्याची दृष्टी यातून मिळते. ‘मनाला मुग्ध करणाऱ्या फोटोंचे मंत्र’ सांगतानाच लेखिकेने ‘आपल्या लक्षात न येणारे सध्याच्या मोबाईल फोटोग्राफीचे तोटे’ यावरही खरपूस भाष्य केले आहे.

हल्ली क्लिक करणे खूप सोप्पे झाले आहे. हवे तेवढे, हवे तसे दशसहस्र क्लिक सारेच सतत करत असतात. पण त्यातील उत्तम क्लिक कोणता झाला? या एका क्लिकचे महत्व आणि तो कसा घ्यायचा, कोणत्या गोष्टींकडे लक्ष द्यायचे .. प्रत्येक लेखातून याचा परिचय होत जातो.

सावली, प्रतिछाया, आपली प्रतिमा. एकच शब्द. अनेक वळणे घेत आपल्या समोर येतो. ‘आधीच उल्हास’ या लेखात फोटोच्या विषयाएवढेच, त्याच्या सीमारेखेचे महत्व सांगितले आहे. फोटोत जिवंतपणा आणण्यासाठी गरज असते थोडा विचार करण्याची आणि शोधक नजरेची. फोटो कंपोझीशनप्रमाणेच त्याच्या बॅकग्राऊंडचा देखील विचार केला पाहिजे. ट्रॅंगल कंपोझिशनची युक्ती स्टील लाईफ फोटोग्राफीप्रमाणे फूड फोटोग्राफीत देखील वापरली जाते. ‘झाले मोकळे आकाश’ या लेखातून वाईल्ड आणि टेली लेन्स मधला फरक सांगताना, लेखिका चिवड्याचे गंमतीशीर उदाहरण देते. कॅमेरा हा कॅनव्हास आणि लेन्स हा ब्रश आहे, हे जर लक्षात आले तर आपले आपणच कलात्मक, सुबक देखणे फोटो काढू शकतो. फोटो एकतर चांगला असतो किंवा नसतो. हल्ली बऱ्यापैकी फोटो सगळेच काढत असतात. फोटो तिथे आधीपासून असतो. तो काढण्यासाठी  नजरेबरोबर आपल्या बुध्दीला श्रम घ्यावे लागतात. म्हणजे नेमका फोटो काढल्याचा आनंद आपल्याला मिळतो, असे ‘तो तिथे आहे’ यामधून समजते. ‘जाड्या-रड्या’ तून फोटोग्राफीमधील वेट बॅलन्स म्हणजे काय? हे लेखिकेने नमूद केले आहे. निसर्गात चौकट जागोजागी असते. त्याचा योग्य उपयोग फोटोची चौकट ठरवताना केला पाहिजे. ‘प्रत्येक फोटो काढताना आधी विचार करावा लागतो. हल्ली फोटो काढून झाल्यावर विचार करत बसतात.’ ‘आखीव रेखीव’ मधील लेखिकेचे हे वाक्य आपल्याला विचार करायला लावते. नियम बनवावे लागतात कारण कोणीतरी नियमबाह्य वर्तन केलेले असते म्हणून. ब्रेकींग रूल्स फक्त कुठे आणि किती करायचे असतात, हे सत्य फक्त फोटोग्राफीत नाही तर जीवनात देखील शिकणे आवश्यक आहे. याची जाणीव ‘नियमातील अनियम’ यातून होते. आपल्याला ज्या ठिकाणी जायचे आहे, तिथला गृहपाठ करणे जरुरीचे आहे. आपल्याला ट्रिपला जायचे असेल तर हे जितके आवश्यक, तितकेच फोटोप्रवासासाठी कोणती सावधगिरी बाळगायाची हे लक्षात घेतले पाहिजे. पावसाळयात फोटोग्राफी करताना कोणती काळजी घ्यायची, याबद्दल लेखिकेने टिप्स दिल्या आहेत. स्ट्रीट फोटोग्राफी म्हणजे घटनेपलिकडे बघण्याची दृष्टि. ॲग्रीकल्चरल, आर्किटेक्चर आणि इंटीरीयर, मॉडेल, कल्चरल फोटोग्राफी आणि टुरिझम, ऐतिहासिक वास्तू, शिल्प व जंगल असे फोटोग्राफीतील विविध प्रकार आहेत. फोटोक्राफ्ट व कॅन्डीड फोटोग्राफी वाचून आपल्याला आश्चर्य वाटते.

फोटो येण्यासाठी प्रकाशयोजना, कंपोझीशन, ॲंगल, लेन्स, उत्तम गृहपाठ, आपली बुध्दी, विचार, कल्पनाशक्ती आणि नशीबाची साथ लागते. तरीही सर्वोत्तम फोटोसाठी उत्तम कॅमेरा हाच फोटोग्राफरचा उजवा हात असतो, असे लेखिका नमूद करते.

काळ नेहमी पुढे धावत असतो, पण फोटोग्राफीच्या कलेमध्ये काळाला पकडून ठेवायची कला आहे. कलेने ‘आपल्याला श्रीमंत व्हायचे आहे की समृध्द’ असा विचार आपल्याला करायला लावत, लेखिका समेवर येते. प्रत्येक कलेचा मान राखायला आपण सर्वांनी शिकले पाहिजे.

मोबईलला ठेवलेले फोटोबाईल हे नाव, योग्यच वाटते. नवीन तंत्रज्ञानाच्या युगात कलेतील सौंदर्य लोप पावत आहे, याची खंत लेखिकेला आहे. यासाठी तिने कॅमेऱ्याच्या माध्यमातून काढलेल्या फोटोंसाठी ‘फोटोफ्राय’ स्पर्धा सुरू केलेली आहे.

एखाद्या विस्तृत कुरणावर ससा मनसोक्त बागडत असतो तशी लेखिका आपल्या लेखात सर्वत्र पळताना दिसते. प्रत्येक लेखात एकेका शब्दांचे अर्थ लिहिताना अनेक अर्थ सहजपणे उलगडले आहेत. आणि त्यातून लेखिका अगदी नकळतपणे आयुष्यातील सत्य सांगून जाते. म्हणूनच फक्त फोटोग्राफी शिकणाऱ्या लोकांनी नव्हे तर आपण सर्व जण हे पुस्तक वाचू शकतो. 

फोटोग्राफी इतकाच लेखिकेचा मराठी कविता, चित्रकला याविषयांवर भरपूर अभ्यास झालेला दिसतो.

© सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर

लोअर परेल, मुंबई

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #170 ☆ अनुकरणीय सीख ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख अनुकरणीय सीख। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 170 ☆

☆ अनुकरणीय सीख

‘तुम्हारी ज़िंदगी में होने वाली हर चीज़ के लिए ज़िम्मेदार तुम ख़ुद हो। इस बात को जितनी जल्दी मान लोगे, ज़िंदगी उतनी बेहतर हो जाएगी’ अब्दुल कलाम जी की यह सीख अनुकरणीय है। आप अपने कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी हैं, क्योंकि जैसे कर्म आप करते हैं, वैसा ही फल आपको प्राप्त होता है। सो! आपके कर्मों के लिए दोषी कोई अन्य कैसे हो सकता है? वैसे दोषारोपण करना मानव का स्वभाव होता है, क्योंकि दूसरों पर कीचड़ उछालना अत्यंत सरल होता है। दुर्भाग्य से हम यह भूल जाते हैं कि कीचड़ में पत्थर फेंकने से उसके छींटे हमारे दामन को भी अवश्य मलिन कर देते हैं और जितनी जल्दी हम इस तथ्य को स्वीकार कर लेते हैं; ज़िंदगी उतनी बेहतर हो जाती है। वास्तव में मानव ग़लतियों का पुतला है, परंतु वह दूसरों पर आरोप लगा कर सुक़ून पाना चाहता है, जो असंभव है।

‘विचारों को पढ़कर बदलाव नहीं आता; विचारों पर चलकर आता है।’ कोरा ज्ञान हमें जीने की राह नहीं दिखाता, बल्कि हमारी दशा ‘अधजल गगरी छलकत जाय’ व ‘थोथा चना, बाजे घना’ जैसी हो जाती है। जब तक हमारे अंतर्मन में चिन्तन-मनन की प्रवृत्ति जाग्रत नहीं होती; भटकाव निश्चित् है। इसलिए हमें कोई भी निर्णय लेने से पूर्व उसके सभी पक्षों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। यदि हम तुरंत निर्णय दे देते हैं, तो उलझनें व समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसलिए कहा गया है ‘पहले तोलो, फिर बोलो’ क्योंकि जिह्वा से निकले शब्द व कमान से निकला तीर कभी लौटकर नहीं आता। द्रौपदी का एक वाक्य ‘अंधे की औलाद अंधी’ महाभारत के युद्ध का कारण बना। वैसे शब्द व वाक्य जीवन की दिशा बदलने का कारण भी बनते हैं। तुलसीदास व कालिदास के जीवन में बदलाव उनकी पत्नी के एक वाक्य के कारण आया। ऐसे अनगिनत उदाहरण विश्व में उपलब्ध हैं। सो! मात्र अध्ययन करने से हमारे विचारों में बदलाव नहीं आता, बल्कि उन्हें अपने जीवन में धारण करने पर उसकी दशा व दिशा बदल जाती है। इसलिए जीवन में जो भी अच्छा मिले, उसे अपना लें।

अनुमान ग़लत हो सकता है, अनुभव नहीं। यदि जीवन को क़ामयाब बनाना है, तो याद रखें – ‘पांव भले ही फिसल जाए, ज़ुबान को कभी ना फिसलने दें।’ अनुभव जीवन की सीख है और अनुमान मन की कल्पना। मन बहुत चंचल होता है। पल-भर में ख़्वाबों के महल सजा लेता है और अपनी इच्छानुसार मिटा डालता है। वह हमें बड़े-बड़े स्वप्न दिखाता है और हम उनके पीछे चल पड़ते हैं। वास्तव में हमें अनुभव से काम लेना चाहिए; भले ही वे दूसरों के ही क्यों न हों? वैसे बुद्धिमान लोग दूसरों के अनुभव से सीख लेते हैं और सामान्य लोग अपने अनुभव से ज्ञान प्राप्त करते हैं। परंतु मूर्ख लोग अपना घर जलाकर तमाशा देखते हैं। हमारे ग्रंथ व संत दोनों हमें जीवन को उन्नत करने की सीख देते और ग़लत राहों का अनुसरण करने से बचाते हैं। विवेकी पुरुष उन द्वारा दर्शाए मार्ग पर चलकर अपना भाग्य बना लेते हैं, परंतु अन्य उनकी निंदा कर पाप के भागी बनते हैं। वैसे भी मानव अपने अनुभव से ही सीखता है। कबीरदास जी ने भी कानों-सुनी बात पर कभी विश्वास नहीं किया। वे आंखिन देखी पर विश्वास करते थे, क्योंकि हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती और उसका पता हमें उसे परखने पर ही लगता है। हीरे की परख जौहरी को होती है। उसका मूल्य भी वही समझता है। चंदन का महत्व भी वही जानता है, जिसे उसकी पहचान होती है, अन्यथा उसे लकड़ी समझ जला दिया जाता है।

यदि नीयत साफ व मक़सद सही हो, तो यक़ीनन किसी न किसी रूप में ईश्वर आपकी सहायता अवश्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप आपकी चिंताओं का अंत हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि परमात्मा में विश्वास रखते हुए सत्कर्म करते जाओ; आपका कभी भी बुरा नहीं होगा। यदि हमारी नीयत साफ है अर्थात् हम में दोग़लापन नहीं है; किसी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष व स्व-पर का भाव नहीं है, तो वह हर विषम परिस्थिति में आपकी सहायता करता है। हमारा लक्ष्य सही होना चाहिए और हमें ग़लत ढंग से उसे प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। यदि हमारी सोच नकारात्मक होगी, तो हम कभी भी अपनी मंज़िल पर नहीं पहुंच पाएंगे; अधर में लटके रह जाएंगे। इसके साथ एक अन्य बात की ओर भी मैं आपका ध्यान दिलाना चाहूंगी कि हमारे पाँव सदैव ज़मीन पर टिके रहने चाहिए। उस स्थिति में हमारे अंतर्मन में अहं का भाव जाग्रत नहीं होगा, जो हमें सत्य की राह पर चलने को प्रेरित करेगा और भटकन की स्थिति से हमारी रक्षा करेगा। इसके विपरीत अहं अथवा सर्वश्रेष्ठता का भाव हमें वस्तुस्थिति व व्यक्ति का सही आकलन नहीं करने देता, बल्कि हम दूसरों को स्वयं से हेय समझने लगते हैं। अहं दौलत का भी भी हो सकता है; पद-प्रतिष्ठा व ओहदे का भी हो सकता है। दोनों स्थितियाँ घातक होती हैं। वे मानव को सामान्य व कर्त्तव्यनिष्ठ नहीं रहने देती। हम दूसरों पर आधिपत्य स्थापित कर अपने स्वार्थों की पूर्ति करना चाहते हैं।यह अकाट्य सत्य है कि ‘पैसा बिस्तर दे सकता है, नींद नहीं; भोजन दे सकता है, भूख नहीं: अच्छे कपड़े दे सकता है, सौंदर्य नहीं; ऐशो-आराम के साधन दे सकता है, सुक़ून नहीं। सो! दौलत पर कभी भी ग़ुरूर नहीं करना चाहिए।’

अहंकार व संस्कार में फ़र्क होता है। अहंकार दूसरों को झुकाकर खुश होता है; संस्कार स्वयं झुक कर खुश होता है। इसलिए बच्चों को सुसंस्कृत करने की सीख दी जाती है; जो परमात्मा में अटूट आस्था, विश्वास व निष्ठा रखने से आती है। तुलसीदास जी ने भी ‘तुलसी साथी विपद् के विद्या, विनय, विवेक’ का संदेश दिया है। जब भगवान हमें कठिनाई में छोड़ देते हैं, तो विश्वास रखें कि या तो वे तुम्हें गिरते हुए थाम लेंगे या तुम्हें उड़ना सिखा देंगे। प्रभु की लीला अपरंपार है, जिसे समझना अत्यंत कठिन है। परंतु इतना निश्चित है कि वह संसार में हमारा सबसे बड़ा हितैषी है। इंसान संसार में भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर जाता है। अक्सर लोग कहते हैं कि इंसान खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। परंतु वह अपने कृत-कर्म लेकर जाता है, जो भविष्य में उसके जीवन का मूलाधार बनते हैं। इसलिए रहीम जी कहते हैं कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा।’

सो! संसार में मन की शांति से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है। महात्मा बुद्ध शांत मन की महिमा का गुणगान करते हैं। ‘दुनियादारी सिखा देती है मक्कारियां/ वरना पैदा तो हर इंसान साफ़ दिल से होता है।’ इसलिए मानव को ऐसे लोगों से सचेत व सावधान रहना चाहिए, जिनका ‘तन उजला और मन मैला’ होता है।’ ऐसे लोग कभी भी आपके मित्र व हितैषी नहीं हो सकते। वे किसी पल भी आपकी पीठ में छुरा घोंप सकते हैं। ‘भरोसा है तो चुप्पी भी समझ में आती है, वरना एक-एक शब्द के कई-कई अर्थ निकलते हैं।’ इसलिए छोटी-छोटी बातों को बड़ा न कीजिए; ज़िंदगी छोटी हो जाती है। ‘गुस्से के वक्त रुक जाना/ ग़लती के वक्त झुक जाना/ फिर पाना जीवन में/ सरलता और आनंद/ आनंद ही आनंद।’ हमारी सोच, विचार व कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं। कुछ लोग किस्मत की तरह होते हैं, जो दुआ की तरह मिलते हैं और कुछ लोग दुआ की तरह होते हैं, जो किस्मत बदल देते हैं। ऐसे लोगों की कद्र करें; वे भाग्य से मिलते हैं। अंत में मैं कहना चाहूंगी कि मानव स्वयं अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है और उस तथ्य को स्वीकारना ही बुद्धिमानी है, महानता है। सो! अपनी सोच, व्यवहार व विचार सकारात्मक रखें; वे ही आपके भाग्य-निर्माता व भाग्य-विधाता हैं।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #169 ☆ गीत – धरा ने ओढ़ी है… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत धरा ने ओढ़ी है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 169 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – धरा ने ओढ़ी है…

धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया ,

हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया

 

बौराई है आज देखो  अमवा की डाली ।

गेहूं की झूम रही खेतों में बाली।

लहलहा उठी अब  तो मोरी डगरिया

धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया

हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया।।

 

चहक रहे विहाग आज भाव से भरे

गा रही बयार आज सुगंध को धरे

झूम उठी अब तो  मोरी    नगरिया

धरा ने ओढ़ी है  धानी     चुनरिया

 

 झूम झूम के गीत गा रहा है गगन

 खिल रही है प्यार से उषा की किरण

बसंती रंग में भीगी मोरी चदरिया

धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया

हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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