हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 95 ☆ ’’शरणागतम् …!” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “शरणागतम् …!”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 96 ☆ शरणागतम् …!” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे दीन बन्धु दयानिधे आनन्दप्रद तव कीर्तनम्   

हमें दीजिये प्रभु शरण तव शरणागतम् शरणागतम् ||

 

हो विश्व आधार तुम, हर भक्त के संसार तुम

हितकर कृपा जगदीश तव, शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

मन है बँधा सब ओर से भ्रम की अपावन डोर से

हम मुक्ति हित, देवेश, तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

जलनिधि सी अस्थिर साधना, धरती सी उर्वर वासना

तुम प्रभु असीमाकाश, तव शरणागतम् शरणागतम्

 

 हर दिन नई छोटी बड़ी कोई समस्या है खड़ी

विपदा विनाशक नाथ तव शरणागतम् शरणागतम्  ॥

 

मन में न कोई अभिमान हो, इतना हमें प्रभु ध्यान दो

हे विश्वनाथ महान् तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

माया का फैला जाल है हर पंथ में जंजाल है

सत्पथ का दो निर्देश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

तुम गुणों के आगार हो, करुणा के पारावार हो

जग नियंता विश्वेश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

रख तव चरण पै दो सुमन, प्रभु वन्दना में लीन मन

सर्वज्ञ त्वाम् नमाम्यहम् शरणागतम् शरणागतम् ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #146 ☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 146 – साहित्य निकुंज ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने

विनती मेरी प्रभु सुनो,

      दे दो मुझको ज्ञान।

युद्ध नहीं करना हमें,

       रख लो सबका मान।।

 

उपदेश दिया कृष्ण ने ,

   सुनते अर्जुन मान।

चलो सत्य की राह पर,

    अंतर्मन पहचान।।

 

 पीड़ा मन में हो रही,

      कैसे समझें आप।

युद्ध भूमि में सामने,

     हो जाए ना पाप।।

 

अपने जो अपने नहीं,

  करो नहीं तुम मोह।

सच को तुम पहचान लो,

    करना नहीं  विमोह।।

   

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #133 ☆ जन्माष्टमी विशेष … मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “जन्माष्टमी विशेष…मोरे केशव कुँज बिहारी। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 133 ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष… मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राधा के हैं श्याम मनोहर, मीरा के गिरधारी

ललना पुकारें माँ यसोदा, देवकि के अवतारी

नन्दबाबा के प्रभु गोपाला, सखियन कृष्ण मुरारी

ग्वाल-बाल सखा सब टेरें, कह कह कर बनवारी

वृजवासी कन्हैया कहते, कर चरणन बलिहारी

चरण शरण “संतोष” चाहता, रखियो लाज हमारी

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दुधारी तलवार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि –  दुधारी तलवार ??

स्मृतियाँ जितना दबाओ,

उतना उभर आती हैं,

उभारो तो निर्वासन

को मचल जाती हैं,

दुधारी तलवार है

नेह की पीड़ा,

कहीं से भी थामो,

कलेजा चीर कर

निकल जाती है..!

© संजय भारद्वाज

2 जनवरी 2021, रात्रि 11.12 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 123☆ गीत – वंदेमातरम गाओ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 123 ☆

☆ गीत – वंदेमातरम गाओ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।

घर – घर फहरे आज तिरंगा

पावन पर्व मनाओ।।

 

बलिदानों की गौरव गाथा

भारतवासी भूल न जाना

प्राण लुटाए हँसते – हँसते

वंदेमातरम बोल गाना

 

ऐक्य भाव से बढ़ती समृद्धि

मातृभूमि बलि जाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

   

जो भी अच्छा कर सकते हम

सदा देश हित जीवन जीएँ

याद भी करना भगत सिंह को

जीवन सत्य , प्रेम रस पीएँ

 

भोगवाद में डूब न जाना

निज कर्तव्य निभाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

जातिवाद और क्षेत्रवाद को

तूल नहीं देना है अच्छा।

भाषा तो सब ही हैं प्यारी

संस्कृति करे सभी की रक्षा।।

 

देश बढ़ेगा हिंदी से ही

निज भाषा अपनाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

राजनीति से उठकर देखो

हिंसा , दंगा मत फैलाओ।

मानवता के लिए जीएँ सब

कर्तव्यों को सभी निभाओ।।

 

मानव हैं तो अच्छा सोचें

सबको मित्र बनाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#146 ☆ गीत – देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय अप्रतिम रचना “देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम…”)

☆  तन्मय साहित्य # 146 ☆

☆ गीत – देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अमर रहे जनतंत्र

शक्ति संपन्न रहे भारत अपना

सोने की चिड़िया फिर

जगतगुरु हो ये सब का सपना

देश बने सिरमौर जगत में

ये दिल में अरमान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

युगों युगों तक लहराए

जय विजयी विश्व तिरंगा ये

अविरल बहती रहे, पुनीत

नर्मदा, जमुना, गंगा ये,

सजग  जवान, सिपाही, सैनिक

खेत और खलिहान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 34 ☆ पावस ऋतु… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत  “पावस ऋतु… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 34 ✒️

? पावस ऋतु… — डॉ. सलमा जमाल ?

 पावस ऋतु आगमन।

नाच उठा मयूर मन।।

 

तृप्त हुए चर – अचर,

मनमोद करते विचर- विचर,

हरीतिमा डगर – डगर,

वृक्ष गए संवर – संवर,

ओढ़कर हरी चुनर,

झूम उठे वन उपवन।

नाच उठा मयूर मन।।

 

काली-काली बदलियां,

कड़क रहीं हैं बिजलियां,

मोर की अठखेलियां,

कोयल की रंगरेलियां,

नृत्य करतीं तितलियां,

रिमझिम – रिमझिम सावन।

नाच उठा मयूर मन।।

 

पायल की मधुर रुनझुन,

बज उठे चूड़ी कंगन,

दुल्हन बैठी है बनठन,

मिल रहा धरती गगन,

बरस उठे श्याम घन,

प्रेमियों का है मिलन।

पावस ऋतु आगमन।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 46 – गीत – लाल किले पर खड़ा तिरंगा…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष पर एक भावप्रवण गीत “लाल किले पर खड़ा तिरंगा….। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 46 – गीत – लाल किले पर खड़ा तिरंगा….🇮🇳

लाल किले पर खड़ा तिरंगा,

बड़े शान से लहराता।

आजादी की गौरव गाथा,

स्वयं देश को बतलाता।

त्याग और बलिदान कहानी ,

जन-जन तक है पहुँचाता।

गांधी जी का सत्याग्रह हो,

चन्द्रशेखर का शंखनाद।

भगत सिंह का फाँसी चढ़ना ,

नेता जी का क्रांतिनाद।

अहिंसावाद क्रांतिवाद का ,

फर्क नहीं कुछ बतलाता ।

सावरकर की अंडमान का ,

चित्र उभरकर छा जाता।

विस्मिल तिलक खुशीराम का ,

पन्ना पुनः पलट जाता ।

सबने मिलकर लड़ी लड़ाई,

गौरव गाथा कह जाता।

कितने वीर सपूतों ने हँस,

फाँसी का फंदा झूला ।

कितनों ने खाईं हैं गोली ,

ना उपकारों को भूला ।

अमर रहे बलिदान सभी का,

इसका मतलब समझाता ।

सबसे ऊपर केसरिया रंग ,

बलिदानी गाथा लिखता।

बीच श्वेत रंग लिए हुए वह,

शांतिवाद जग को कहता।

हरा रंग वह हरितक्राँति को,

पावन सुखद बना जाता ।

कीर्ति चक्र को बीच उकेरा,

प्रगतिवाद का है दर्शन।

उन्नति और विकास दिशा में ,

हित सबका है संवर्धन।

तीन रंग से सजा तिरंगा,

यह संदेश सुना जाता।

अमरित पर्व महोत्सव आया,

घर घर झंडे लहराना ।

सबको आजादी का मतलब ,

प्रेम भाव से समझाना ।

छोड़ सभी सत्ता का लालच,

कर्तव्यों को बतलाता ।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सब पर भारी-अटलबिहारी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि – सब पर भारी-अटलबिहारी ??

भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी की स्मृति को नमन 🙏🏻

20 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने बस से लाहौर की यात्रा कर इतिहास रचा था। इस दौरान चर्चा में आने के लिए पाकिस्तानी लेखिका अतिया शमशाद ने कश्मीर की एवज में अटलजी से विवाह का प्रस्ताव किया था। उक्त प्रस्ताव के संदर्भ में उन दिनों उपजी और चर्चित रही यह रचना साझा कर रहा हूँ-

बरसों का तप

दर्शकों के सिद्धांत भी टल गए

पाकिस्तानी बाला के

विवाह प्रस्ताव से

अटलजी भी हिल गए।

 

जीवन की संध्या में

ऐसा प्रस्ताव मिलना

नहीं किसी अलौकिक प्रकार से कम है

लेकिन अटल जी का व्यक्तित्व

क्या किसी चमत्कार से कम है ?

 

सोचा, प्रस्ताव पर

गौर कर लेने में क्या हर्ज है

साझा संस्कृति में

बड़प्पन दिखाना ही तो फर्ज़ है,

कवि मन की संवेदनशील आतुरता

राजनेता की टोह लेती सतर्कता

प्रस्ताव को पढ़ने लगी-

आप कुँवारे-मैं कुँवारी

आप कवि, मैं कलमनवीस

आप हिन्दुस्तानी, मैं पाकिस्तानी

क्यों न हम एक दिल हो जाएँ

बशर्त सूबा-ए-कश्मीर हमें मिल जाए !

 

उत्साह ठंडा हो गया

भावनाएँ छिटक कर दूर गिरीं

सारी उमंग चकनाचूर हुई

अनुभव को षडयंत्र की बू हुई।

माना कि जमाना बदल गया है

दहेज का चलन दोनों ओर चल गया है

पहले केवल लड़के वाले मॉंगा करते थे

अब लड़की वाले भी मॉंग रख पाते हैं

पर ये क्या; रिश्ते कि आड़ में

आप तो मोहब्बत को ही छलना चाहते हैं!

 

और मॉंगा भी तो क्या

कश्मीर…..?

वह भी अटल जी से…..?

शरीर से आत्मा मॉंगते हो

पुरोधा से आत्मबल मांगते हो

बदन से जान चाहते हो

अटल के हिंदुस्तान की आन चाहते हो?

 

मोहतरमा!

इस शख्सियत को समझी नहीं

चकरा गई हैं आप

कौवों की राजनीति में

राजहंस से टकरा गयी हैं आप।

 

दिल कितना बड़ा है

जज़बात कितने गहरे हैं

इसे समझो,

सीमाओं को तोड़ते

दिलों को जोड़ते

ज्यों सरहद की बस चलती है

नफरत की हर आंधी

जिसके आवेग से टलती है,

मोहब्बत की हवाएँ

जिसका दम भरती हैं

पूछो अपने आप से

क्या तुम्हारे दिलों पर

अटल की हुकूमत नहीं चलती है?

 

युग को शांति का

शक्तिशाली योद्धा मिला है

इस योद्धा के सम्मान में गीत गाओ,

नफरत और जंग की सड़क पर

हिन्दुस्तानी मोहब्बत और

अमन की बस आती है

इस बस में चढ़ जाओ।

बहुत हुआ

अब तो मन की कालिख धो लो

शांति और खुशहाली के सफर में

इस मसीहा के संग हो लो।

 

काश! शादी करके यहॉं बसने का

आपका खयाल चल पाता

हमें तो डर था

कहीं घर जवाई होने का

प्रस्ताव न मिल जाता।

 

प्रस्ताव मिल जाता तो

हमारा तो सब कुछ चला जाता

पर चलो तुम्हारा

तो कल सुधर जाता

यहॉं का अटल

वहां भी बड़ी शान से चल जाता।

 

सारी दुनिया आज दुखियारी है

हर नगरी अंधियारी है

अंधेरे मे चिंगारी है

सब पर जो भारी है

हमें दुख है हमारे पास

केवल एक अटलबिहारी है।

 

वैसे भी तुम्हारे हाल तो खस्ता हैं

ऐसे में अटलजी से

रिश्ता जोड़ने का खयाल अच्छा है।

वाजपेयी जी!

सौगंध है आपको

हमें छोड़ मत जाना

क्योंकि अगर आप चले जायेंगे

तो-

वेश्या-सी राजनीति

गिद्धों-से राजनेताओं

और अमावस-सी अंधेरी व्यवस्था में

दीप जलाने हम

दूसरा अटल कहॉं से लायेंगे ?

 

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 101 – गीत – 15 अगस्त… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में  एक विचारणीय गीत – 15 अगस्त…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 101 – गीत – 15 अगस्त✍

आजादी की याद दिलाने पंद्रह अगस्त फिर आया है,

और गवाही देने हमने ध्वज तिरंगा फहराया है।

 

अब आजादी के बावजूद जन-गण-मन है दुखी त्रस्त,

भरे हुए मन  से कहते हैं स्वागत है  पंद्रह अगस्त।

 

आजादी कैसे पाई है अब तो सिर्फ कहानी है,

आजादी है राजकुमारी जनता राजा रानी  हैं।

 

आजादी की कीमत हमने अभी नहीं पहचानी  है,

यह वीरों के बलिदानों की जीवित अमर कहानी है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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