हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #43 ☆ कविता – “वोह…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 43 ☆

☆ कविता ☆ “वोह…☆ श्री आशिष मुळे ☆

खेल खेल में क्या सीखे

बने राजा फ़िर भी हारे

उसे कभी समझ ना पाए

खेल सारा वोह चलाए

 *

वोह चाहे उसको जिताए

चाहें मर्जी किसीको रुलाए

एक नज़र में जहां भुलाए

बर्फ़ को भी आग बनाए

 *

वोह देखें तो भी मौत

ना देखें तो भी मौत

इतनी ताकत किसमे होत

बगैर उसके जिंदगी रोत

 *

आलम दुनिया उसकी दीवानी

हर नक्श में उसकी निशानी

है औरत या है कहानी

हर रास्ते की मंज़िल सुहानी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 200 ☆ बाल गीत – काश ! परी यदि मैं बन जाता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 200 ☆

बाल गीत – काश ! परी यदि मैं बन जाता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

काश ! परी यदि मैं बन जाता।

अपने नाना से मिल आता।।

 *

नाना मेरे बड़े दुलारे।

मेरे हैं आँखों के तारे।।

 *

खेल खेलता मैं मुस्काता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

मेरे नाना इतने अच्छे।

वे बिल्कुल बन जाते बच्चे।।

 *

मैं तो अपने पास सुलाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

मम्मा पार्क नहीं ले जातीं ।

देर रात तक मुझे जगातीं।

 *

नाना के सँग दौड़ लगाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।

 *

नाना जगते सुबह – सकारे।

योग कराएँ न्यारे – न्यारे।।

 *

लप्पा लोरी सँग – सँग गाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

नाना मेरे कभी न डाँटें।

मम्मा झट से मारे चाँटे।।

 *

संग – साथ में भोजन खाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

नाना सपनों में आ जाते।

मुझ पर अपना प्यार लुटाते।।

 *

मेरा सपना सच हो जाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #226 – कविता – ☆ आदमी सूरजमुखी सा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता आदमी सूरजमुखी सा” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #226 ☆

☆ आदमी सूरजमुखी सा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हवाओं के साथ, रुख बदला नया है

आदमी, सूरजमुखी  सा हो गया है।

*

दोष देने में लगे हैं,  खेत को ही

घून खाए बीज, कोई  बो  गया है।

*

सोचना, नीति-अनीति व्यर्थ है अब

संस्कृति संस्कार घर में खो गया है।

*

संयमित हो कर, घरों  में  ही  रहें

खिड़कियों के काँच मौसम धो गया है।

*

सियासत का फेर, कारागार में

बढ़ गई बेशर्मियाँ, जो भी गया है।

*

फेन, फ्रिज, कूलर, सभी  चालु तो है

कौन सा भय फिर कमीज भिगो गया है।

*

अब बचा नहीं पाएँगे, मन्तर  उसे

रात उसकी छत पे उल्लू रो गया है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 49 ☆ नभ उड़ानों पर लिया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नभ उड़ानों पर लिया…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 49 ☆ नभ उड़ानों पर लिया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

 साधकर पर पाखियों ने

 नभ उड़ानों पर लिया।

 

 क्या करें आखिर

 कटे जो पेड़ थे

 चल पड़े कुछ लोग

 जो बस भेड़ थे

 पिया अमृत घट जिन्होंने

 कंठ भर कर विष दिया।

 

 डालियों पर बाँध

 अपनी हर व्यथा

 लिख वनस्पतियों में

 जीवन की कथा

 स्वर मिलाकर स्वरों से

 दर्द सारा पी लिया।

 

 चोंच में भरकर

 आशा की किरन

 पाँव में भटके

 ठिकानों की चुभन

 फड़फड़ाते रास्तों पर

 गीत कोई गा लिया।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हरापन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

रमते कणे कणे, इति राम:.. जो कण-कण में रमता है, वह (श्री) राम है। श्रीरामनवमी की हार्दिक बधाई। 

? संजय दृष्टि – हरापन ? ?

शादीब्याह में

हरी साड़ी

हरी चूड़ियाँ

यहाँ तक कि

अंतिम प्रयाण में भी

हरे वस्त्र,

महत्वपूर्ण है

स्त्री का हरा होना

हरा रहना..,

 

हरी घास

हरी पत्तियाँ

हरे पेड़

हरी काई

प्रकृति की

अक्षत सौंध है

हरा होना..,

 

पेड़-पत्तियाँ

निर्दय संहार के

शिकार हैं

पानी के अभाव में

काई पर

भ्रूण हत्या की मार है..,

 

मखमली घास पर

बलात लाद दी गई हैं

हजारों टन की इमारतें..,

 

चैनल बता रहे हैं

तलाक में

साढ़े तीन सौ

प्रतिशत की वृद्धि

लिव-इन

सिंगल पेरेंट

बलात्कार

विकृत यौन अत्याचार

और भी बहुत कुछ वीभत्स..,

 

दम जैसे

घुट-सा रहा है

हरापन हमसे

छूट-सा रहा है।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ घोषणा पत्र – आचार्य भगवत दुबे ☆ दृष्ट-श्रव्यांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

आचार्य भगवत दुबे

(आज प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी की एक समसामयिक विषय पर आधारित व्यंग्य कविता “घोषणा पत्र”श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी ने उनकी कविता को अपने मोबाईल में डिजिटल रूप से दृष्ट-श्रव्यांकित कर हमें प्रेषित किया है।)    

आप आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  

संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी अस्सी पार होने के बाद भी सक्रियता के साथ निरन्तर साहित्य सेवा में लगे रहते हैं । अभी तक उनकी पचास से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी है। बचपन से ही उनका सानिध्य मिला है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन पी एच डी ( चौथी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा दो एम फिल  किए गए हैं। स्व. डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य जी की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

ई-अभिव्यक्ति में प्रस्तुत है चुनाव के माहौल में आचार्य भगवत दुबे जी की बहुचर्चित एवं लोकप्रिय व्यंग्य रचना घोषणा पत्र –

✍  व्यंग्य कविता – घोषणा पत्र ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आचार्य भगवत दुबे 

संपर्क – शिवार्थ रेसिडेंसी, जसूजा सिटी, पो गढ़ा, जबलपुर ( म प्र) – 482003 मो 9691784464

दृष्ट-श्रव्यांकन एवं प्रस्तुति – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ खूँ ज़िगर का निचोड़ ले लिखने… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “खूँ ज़िगर का निचोड़ ले लिखने “) 

✍ खूँ ज़िगर का निचोड़ ले लिखने… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

एक लट्टू सा ये घुमाती हैं

ज़िन्दगीं कितना आज़माती है

 *

फिर न अंजाम सोचा है मैंने

बात जब दोस्ती की आती है

 *

हिचकियाँ फिर नहीं रुकी उसकी

याद जब जब मुझे सताती है

 *

आबरू घर की ढांप लेती माँ

मुफ़लिसी रंग जब दिखाती है

 *

सोचकर तुम हो दिल धड़क जाता

जब हवा द्वार खटखटाती है

 *

गर्दिशों में न साथ दे कोई

आस दुनिया से क्यों लगाती है

 *

बद्गुमानी न पाल सोच अरुण

ये बुलंदी से बस गिराती है

 *

ये है मेहमान इसकी कर खातिर

बेटी डोली में चढ़के जाती है

 *

कैसे भी पेट सारे घर का भरे

सब्र खा भूख माँ मिटाती है

 *

वश चले मेरा तो मैं बन जाऊँ

लट तेरे रुख पे आती जाती है

 *

वो है नादां गरीब की बेटी

ख्वाब युवराज के सजाती है

 *

खूँ ज़िगर का निचोड़ ले लिखने

शायरी रंग तब ही लाती है

 *

अय अरुण तुझसे है कपूत कई

सिर्फ़ नागिन ही बच्चे खाती है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 49 – तुम्हारी याद का सावन… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुम्हारी याद का सावन।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 49 – तुम्हारी याद का सावन… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

करम तेरी निगाहों का जरा-सा जो इधर रहता 

तो क्या, घर में मेरे, तनहाइयों का जानवर रहता

*

वहाँ मौसम बदलते हों, यहाँ तो एक ही ऋतु है 

तुम्हारी याद का सावन, बरसता सालभर रहता

*

हवायें कब, संदेशा मौत का, लेकर के आ जायें 

इसी से, घर के दरवाजे, हमेशा खोलकर रहता

*

उसे, मैं भूल भी जाऊँ, मगर वह याद रखता है 

मेरे हालात से, इक पल नहीं वह बेखबर रहता

*

गिला, शिकवा-शिकायत, भूलकर भी मैं नहीं करता 

भले, माने न वह, लेकिन मैं अपना मानकर रहता

*

इशारा यदि जरा-सा भी, मुझे ‘आचार्य’ कर देते 

तो मैं ताजिन्दगी जाकर उन्हीं के द्वार पर रहता

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 125 – नव संवत्सर आ गया… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “नव संवत्सर आ गया…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 125 – नव संवत्सर आ गया… ☆

नव संवत्सर आ गया, खुशियाँ छाईं द्वार ।

दीपक द्वारे पर सजें, महिमा अपरंपार ।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।

धरा प्रकृति मौसम हवा, सबको करता हर्ष।।

 *

संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ।

ब्रम्हा की इस सृष्टि की, गणना का है खंभ।।

 *

नवमी तिथि में अवतरित, अवध पुरी के राम ।

रामराज्य है बन गया, आदर्शों का धाम ।।

 *

राज तिलक उनका हुआ, शुभ दिन थी नव रात्रि।

राज्य अयोद्धा बन गयी, सारे जग की धात्रि ।।

 *

मंगलमय नवरात्रि को, यही बड़ा त्योहार।

नगर अयोध्या में रही, खुशियाँ पारावार।।

 *

नव रात्रि आराधना, मातृ शक्ति का ध्यान ।

रिद्धी-सिद्धी की चाहना, सबका हो कल्यान ।।

 *

चक्रवर्ती राजा बने, विक्रमादित्य महान ।

सूर्यवंश के राज्य में, रोशन हुआ जहान ।।

 *

बल बुद्धि चातुर्य में, चर्चित थे सम्राट ।

शक हूणों औ यवन से,रक्षित था यह राष्ट्र।।

 *

स्वर्ण काल का युग रहा, भारत को है नाज ।

विक्रम सम्वत् नाम से, गणना का आगाज ।

 *

मना रहे गुड़ि पाड़वा, चेटी चंड अवतार ।

फलाहार निर्जल रहें, चढ़ें पुष्प के हार।।

 *

भारत का नव वर्ष यह, खुशी भरा है खास।

धरा प्रफुल्लित हो रही, छाया है मधुमास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मानदंड ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मानदंड ? ?

सफेद कैनवास पर

बिखर जाते हैं रंग

कैनवास रंगमिति से

उर्वरा हो जाता है

सृजन की बधाई देने

समूह पहुँचता है…..

सफेद साड़ी पर

भूल से छितर जाती है

रंग की एकाध बूँद,

आँचल तनिक फहराता है

हाहाकार मच जाता है,

घुटते रहने की हिदायतें देने

समूह पहुँचता है…..

कलमकार स्वप्न देखता है-

काश! फ्रेम पर

तान देता सफेद साड़ी

और औरत को

ओढ़ा पाता कैनवास!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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