श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 43 ☆

☆ कविता ☆ “वोह…☆ श्री आशिष मुळे ☆

खेल खेल में क्या सीखे

बने राजा फ़िर भी हारे

उसे कभी समझ ना पाए

खेल सारा वोह चलाए

 *

वोह चाहे उसको जिताए

चाहें मर्जी किसीको रुलाए

एक नज़र में जहां भुलाए

बर्फ़ को भी आग बनाए

 *

वोह देखें तो भी मौत

ना देखें तो भी मौत

इतनी ताकत किसमे होत

बगैर उसके जिंदगी रोत

 *

आलम दुनिया उसकी दीवानी

हर नक्श में उसकी निशानी

है औरत या है कहानी

हर रास्ते की मंज़िल सुहानी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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