हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – [1] भारत की नारी [2] हे! भोले भंडारी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – [1] भारत की नारी [2] हे! भोले भंडारी  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

☆ [1] भारत की नारी 

नारी सदा स्वयंसिद्धा है,कर्म निभाता नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता नारी जीवन ।।

*

कर्म निभाती है वो तत्पर,हर मुश्किल से लड़ जाती।

गहन निराशा का मौसम हो,तो भी आगे बढ़ जाती।।

पत्नी,माँ के रूप में सेवा,तो क्यों खलता नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

संस्कार सब उससे चलते,धर्म नित्य ही उससे खिलते।

तीज-पर्व नारी से पोषित,नीति-मूल्य सब उसमें मिलते।।

आशा और निराशा लेकर,नित ही पलता नारी जीवन।

 देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

वैसे तो हैं दो घर उसके,पर सब लगता यह बेमानी।

फर्ज़ और कर्मों से पूरित,नारी होती सदा सुहानी।। 

त्याग और नित धैर्य,नम्रता,संघर्षों में नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

कभी न हिम्मत हारी उसने,योद्धा-सी तो वह लगती।

लिए हौसला भिड़ जाती है,हर विपदा भय खाकर भगती।।

धर्म-कर्म के पथ की राही,हर हालत में वह मुस्काती।।

[2] हे! भोलेभंडारी

हे त्रिपुरारी,औघड़दानी,सदा आपकी जय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

*

देव आप, भोले भंडारी, हो सचमुच वरदानी

भक्त आपके असुर और सुर, हैं सँग मातु भवानी

*

देव करूँ मैं यही कामना ,मम् जीवन में लय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

       * 

लिपटे गले भुजंग अनेकों, माथ मातु गंगा है

जिसने भी पूजा हे! स्वामी, उसका मन चंगा है

*

हर्ष,खुशी से शोभित मेरी,अब तो सारी वय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

        *

सारे जग के आप नियंता,नंदी नियमित ध्याता,

जो भी पूजन करे आपका, वह नव जीवन पाता

*

पार्वती के नाथ,परम शिव,मेरे आप हृदय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

*

कार्तिकेय,गणपति की रचना, दिया जगत को जीवन

तीननेत्र,कैलाश निवासी, करते सबको पावन

*

जीवन हो उपवन-सा मेरा,अंतस तो किसलय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #222 ☆ – हाइकू … – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  हाइकू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 222 – साहित्य निकुंज ☆

हाइकू… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

मन को भाया

पिया को अपनाया

मन का मीत।

 

लाया है चाँद

अपने सुहाग की

 जीवंत ख़ुशी।

 

करवा चौथ

आती है हर बार

जगती ख़ुशी

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #205 ☆ संतोष के दोहे… रामलला ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे .. रामललाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 204 ☆

☆ संतोष के दोहे.. रामलला ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राम लला के दरश बिन, हमें न आता चैन

लगी आस दिल में बहुत, चैन नहीं दिन-रैन

*

चैन नहीं दिन-रैन, अवध है हमको जाना

प्यासे हमरे नैन, दरश का दिल में ठाना

*

कहते कवि संतोष, बनें सबके काम भला

काम करो वह खूब, साथ सब के रामलला

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पुजारी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पुजारी ? ?

मैं और वह

दोनों काग़ज़ के पुजारी,

मैं फटे-पुराने,

मैले-कुचलेे,

जैसे भी मिलते

काग़ज बीनता, संवारता,

करीने से रखता,

वह इंद्रधनुषों के पीछे भागता,

रंग-बिरंगे काग़ज़ों के ढेर सजाता,

दोनों ने अपनी-अपनी थाती

विधाता के आगे धर दी,

विधाता ने

उसके माथे पर अतृप्त अमीरी

और मेरे भाल पर

समृद्ध संतुष्टि लिख दी!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #37 ☆ कविता – “इश्क़…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 37 ☆

☆ कविता ☆ “इश्क़…☆ श्री आशिष मुळे ☆

इश्क़ को कब समझोगे

अपने आप से कितना उलझोगे

असीमित को और कितना सीमित करोगे

जिंदगी का और कितना इंतज़ार करोगे

 

ये न कोई करार

न ये कोई व्यवहार

ये न सिर्फ़ इजहार

न ये होना फरार

 

ये वो शरार-ए-इंसानियत

ये वो अरार-ए-शब

ये वो जुबां-ए-कायनात

ये वो दास्तां-ए-हयात

 

ये वो ज़ुल्फों की छांव

या हो दिल की नाव

ये वो खयालों की हवा

या हो लफ्जों की दुआ 

 

ये कभी हाथ में आता है

कभी आंखों में सिमटता है

ये कभी गालों पे खिलता है

कभी बस मन में ही बसता है

 

इससे अनदेखा न करना

कभी इससे दूर न जाना

ये वो अमृत है

जिससे कभी होंठ न चुराना…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 196 ☆ बाल गीत – चंदा और सूरज ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 196 ☆

बाल गीत – चंदा और सूरज ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

एक सीध में चंदा , सूरज

हमको लगे दुलारे।

एक चमकते स्वर्णिम – से हैं

एक दूधिया न्यारे।।

 

पश्चिम सूरज , प्राची चंदा

कैसा जोड़ा है प्यारा।

माँ के दोनों बेटे अनुपम

गगन घूमते हैं सारा।।

 

दोनों मिलकर पूरे जग में

करते हैं उजियारे।।

 

एक तपस्वी सबको देता

कर प्रकाश जीवन धारा।

दूजा शीतल किरण बिखेरे

सबका ही अतिशय प्यारा।।

 

दोनों कितने हैं उपकारी

हरते कष्ट हमारे।।

 

होते नहीं सृष्टि में दोनों

जग में तम ही गहराता।

सब्जी , दालें , फल ना होते

कभी न जीवन चल पाता।।

 

करें सार्थक हम भी जीवन

बनें आँख के तारे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #220 – कविता – ☆ दो मुक्तक -चाह शहद की है तो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  दो मुक्तक -चाह शहद की है तो…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #219 ☆

☆ दो मुक्तक -चाह शहद की है तो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चाह शहद की है तो,

मधुमक्खियाँ पालना होगा

मधुर रहे संबंध

व्यर्थ संवाद टालना होगा

शीत घाम बरसात

निभाना होगा हर मौसम को,

है गुलाब की चाह

कंटकों को संभालना होगा।

*

चाह शहद की है तो,

मधुमक्खीयाँ जरूरी है

बिना कष्ट अनुभूति

सुखों की चाह अधूरी है

बीच कंटकों के

गुलाब आभा बिखराता है,

पाना है निष्कर्ष

बात चीत बहुत जरुरी है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 44 ☆ एक गीत वसंत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “एक गीत वसंत…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 43 ☆  एक गीत वसंत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पीत वसन हुई धरा

और मौसम हल्दिया

किसने आकर गाल पर

रँग वसंती मल दिया।

 

आम बौराया फिरे

गंध महुए से चुए

वन के कारोबार सारे

टेसू-सेमल के हुए

 

बैठ कोयल डाल पर

गा रही पिया-पिया।

 

स्नेह हरियाली लिए

खेत आँचल पसारे

पहन स्वर्णिम बालियाँ

रूप धरती सँवारे

 

बाँध सपने आँख से

प्रीति ने मन छू लिया।

 

तान बैठा चँदोबा

मस्तियों की ले गुलाल

आ गया मनचला फागुन

बाँटते सुख के रुमाल

 

बहकी-बहकी हवा ने

गंध से मुँह धो लिया ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विपथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विपथ ? ?

चलो शुरू करें

वहीं से यात्रा;

जहाँ तुमने

छोड़ दिया था साथ,

ख़बरदार!

इस मुगालते में

मत रहना कि

मैं टूट गया हूँ

तुम्हारे विश्वासघात से

और फिर हिस्सा बन जाऊँगा

तुम्हारे उस ‘यूज एण्ड थ्रो’ का,

मैं तो बस ,

एक और

अवसर देना चाहता हूँ तुम्हें;

ताकि तुम

किसी गंतव्य तक तो पहुँचो,

मेरा क्या है,

मैं तो शाश्वत चल रहा हूँ;

पर स्मरण रखना,

साथ छोड़ने वाले

कभी यात्रा पूरी नहीं कर पाए;

स्वाभाविक है कि वे

कभी पथिक भी नहीं कहलाए!

© संजय भारद्वाज  

(रात्रि 9: 45 बजे, 3 जून 2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़मज़दा बोलिये हैं किस ग़म से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ग़मज़दा बोलिये हैं किस ग़म से“)

✍ ग़मज़दा बोलिये हैं किस ग़म से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

बेरुखी आप क्यों दिखाते हैं

खुद न  आते न ही बुलाते हैं

 *

एक वादा नहीं किया पूरा

आप मिस खूब पर बनाते हैं

 *

ग़मज़दा बोलिये हैं किस ग़म से

बेवज़ह इतना मुस्कराते हैं

 *

हाथ अपना भी दोसती को बढ़ा

सिलसिला हम ही हम चलाते हैं

 *

नाम उनका कभी नहीं मिटता

जो लहू देश को बहाते हैं

 *

रब्त जो प्यार का नहीं हमसे

रात भर रोज़ क्यों जगाते हैं

 *

रिज़्क़ दे ज़ीस्त में जो इंसा को

इल्म ऐसा नहीं सिखाते हैं

 *

अब चुनावों में जीत हो उनकी

दाम का जोर जो लगाते हैं

 *

ए अरुण इल्म बह्र का न हमें

शाइरी करते गुनगुनाते हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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