प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – [1] भारत की नारी [2] हे! भोले भंडारी  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

☆ [1] भारत की नारी 

नारी सदा स्वयंसिद्धा है,कर्म निभाता नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता नारी जीवन ।।

*

कर्म निभाती है वो तत्पर,हर मुश्किल से लड़ जाती।

गहन निराशा का मौसम हो,तो भी आगे बढ़ जाती।।

पत्नी,माँ के रूप में सेवा,तो क्यों खलता नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

संस्कार सब उससे चलते,धर्म नित्य ही उससे खिलते।

तीज-पर्व नारी से पोषित,नीति-मूल्य सब उसमें मिलते।।

आशा और निराशा लेकर,नित ही पलता नारी जीवन।

 देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

वैसे तो हैं दो घर उसके,पर सब लगता यह बेमानी।

फर्ज़ और कर्मों से पूरित,नारी होती सदा सुहानी।। 

त्याग और नित धैर्य,नम्रता,संघर्षों में नारी जीवन।

देकर घर भर को उजियारा,क्यों मुरझाता  नारी जीवन ।।

*

कभी न हिम्मत हारी उसने,योद्धा-सी तो वह लगती।

लिए हौसला भिड़ जाती है,हर विपदा भय खाकर भगती।।

धर्म-कर्म के पथ की राही,हर हालत में वह मुस्काती।।

[2] हे! भोलेभंडारी

हे त्रिपुरारी,औघड़दानी,सदा आपकी जय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

*

देव आप, भोले भंडारी, हो सचमुच वरदानी

भक्त आपके असुर और सुर, हैं सँग मातु भवानी

*

देव करूँ मैं यही कामना ,मम् जीवन में लय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

       * 

लिपटे गले भुजंग अनेकों, माथ मातु गंगा है

जिसने भी पूजा हे! स्वामी, उसका मन चंगा है

*

हर्ष,खुशी से शोभित मेरी,अब तो सारी वय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

        *

सारे जग के आप नियंता,नंदी नियमित ध्याता,

जो भी पूजन करे आपका, वह नव जीवन पाता

*

पार्वती के नाथ,परम शिव,मेरे आप हृदय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

*

कार्तिकेय,गणपति की रचना, दिया जगत को जीवन

तीननेत्र,कैलाश निवासी, करते सबको पावन

*

जीवन हो उपवन-सा मेरा,अंतस तो किसलय हो।

करो कृपा,करता हूँ वंदन,यश मेरा अक्षय हो।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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