हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रंग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – रंग ? ?

रंग मत लगाना

मुझे रंगों से परहेज़ है;

उसने कहा था,

अलबत्ता

उसका चेहरा

चुगली खाता रहा,

आते-जाते;

चढ़ते-उतरते;

फिकियाते-गहराते;

खीझ, गुस्से,

झूठ, दंभ,

दिवालिया संभ्रांतपन के

अनगिनत रंग

जताता रहा,

मैं द्रवित हो उठा,

विसंगति उसे क्या बताऊँ

जो रंगों में आकंठ डूबा हो

उसे और रंग क्या लगाऊँ..?

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 180 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 180 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 180) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 180 ?

☆☆☆☆☆

देख दुनिया की बेरूखी

न पूछ ये नाचीज़ कैसा है

हम बारूद पे बैठें हैं

और हर शख्स माचिस जैसा है

☆☆

Seeing the rudeness of the world

Ask me not how worthless me is coping

I’m sitting on pile of explosives

And every person is like a fuse…

☆☆☆☆☆

शहरों का यूँ वीरान होना

कुछ यूँ ग़ज़ब कर गया…

बरसों से  पड़े  गुमसुम

घरों को आबाद कर गया…

☆☆

Desolation of the cities

Did something amazing…

Repopulated the houses

Lying deserted for years…

☆☆☆☆☆

सारे मुल्क़ों को नाज था

अपने अपने परमाणु पर

क़ायनात बेबस हो गई

एक छोटे से कीटाणु पर..!!

☆☆

Every country greatly boasted of

Being a nuclear super power…

Entire universe was rendered

Grossly helpless by a tiny virus…!

☆☆☆☆☆

कितनी आसान थी ज़िन्दगी तेरी राहें

मुशकिले हम खुद ही खरीदते है

और कुछ मिल जाये तो अच्छा होता

बहुत पा लेने पे भी यही सोचते है…

☆☆

O life! How simple were your ways…

We only bought slew of difficulties on our own

Kept craving continuously, even after acquiring a lot,

How nice it would be if only I could get something more

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 179 ☆ मुक्तिका : रूप की धूप ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मुक्तिका : रूप की धूप)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 179 ☆

☆ मुक्तिका : रूप की धूप ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

रूप की धूप बिखर जाए तो अच्छा होगा

रूप का रूप निखर आए तो अच्छा होगा

*

दिल में छाया है अँधेरा सा सिमट जाएगा

धूप का भूप प्रखर आए तो अच्छा होगा

*

मन हिरनिया की तरह खूब कुलाचें भरना

पीर की पीर निथर आए तो अच्छा होगा

*

आँख में झाँक मिले नैन से नैना जबसे

झुक उठे लड़ के मिले नैन तो अच्छा होगा

*

भरो अँजुरी में ‘सलिल’ रूप जो उसका देखो

बिको बिन मोल हो अनमोल तो अच्छा होगा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… होली… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… होली☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(अमृतध्वनि छंद)

होली के त्यौहार में, खेले रंग अबीर ।

मीत मिले हिय ढूँढ़ता, नैना सहते पीर ।।

नैना सहते , पीर तड़पते, आना सजना ।

रोते नैना, खोते चैना, अब जग तजना ।।

खिल अमराई, बनी जुदाई ,हिय को खोली ।

कोयल बोले, मन जो डोले, खेले होली ।।1!!

कहते रंगों को उड़ा, जीवन का मधुमास ।

रंग बिरंगे मुँह दिखे, फागुन गाते खास ।।

फागुन गाते, सब हर्षाते, चलती टोली ।

खेले होली, जो हमजोली, भर-भर झोली ।।

है मनभावन, सदा सुहावन, अहता रहते।

प्यारा भारत, श्रेष्ठ सुहावत, महता कहते ।।2!!

नृप हिरण्यकश्यप हुआ, दुष्ट बड़ा ही भूप ।

जनम लिया प्रहलाद ने, सुंदर सज्जित रूप ।।

सुंदर सज्जित, रूप सुवासित ,जीवन जीता ।

हरि का दर्शन, हिय कर अर्पन, अंतस रीता ।।

पितु जो रोधी, बनते शोधी, वत्स त्याग दृप ।

अंतस क्रोधित ,अंहम लोभित, ऐसे थे नृप ।।3!!

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #228 – 115 – “कहता जंग जीती है मैंने, अरे जीतकर हारा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल कहता जंग जीती है मैंने, अरे जीतकर हारा है…” ।)

? ग़ज़ल # 114 – “कहता जंग जीती है मैंने, अरे जीतकर हारा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ये हमने  जो गुजारा है,

ये जीवन है या कारा है।

*

न आज़ाद  परिंदों जैसा,

देह  घरौंदा  हमारा  है।

*

क्यों अब तू हैरान रहता,

यही  पिंजर  गवारा है।

*

प्यार कभी  न ठुकराना,

न फिर मिलना दुबारा है।

*

यहीं   झगड़ेंगे  उलझेंगे,

न  कोई  दूसरा चारा है।

*

कहता जंग जीती है मैंने,

अरे  जीतकर  हारा  है।

*

है आतिश की क़िस्मत वही,

बुझना  सबको  न्यारा  है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मृत्यु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मृत्यु ? ?

बूढ़ा हो चला हूँ;

कभी भी मर जाऊँगा,

बुज़ुर्ग का संवाद जारी था..,

मेरी आँखों में

उतरने लगे दृश्य-

सड़क-दुर्घटनाओं में

नौजवान बाइक सवारों की

नित होनेवाली

आकस्मिक मृत्यु के,

रैगिंग, आपसी संघर्ष

लेन-देन, क्रोध और

अधिकांशतः अकारण

नये खून की हत्याओं के किस्से,

परीक्षा-नौकरी-प्रेम में

असफलता के चलते;

मौत के गले लग जानेवाले

युवाओं के समाचार,

यहाँ तक कि

कुछेक को कोख में भी

मरणांतक पीड़ाएँ होती,

बूढ़ा होना, मरने की

अनिवार्य शर्त नहीं होती!

© संजय भारद्वाज  

(22 अगस्त 2016, रात्रि 8:57 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 107 ☆ मुक्तक – ।। बीत गई सदियां होली जैसा कोई उपहार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 107 ☆

☆ मुक्तक – ।। बीत गई सदियां होली जैसा कोई उपहार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हर रंग है मस्त   फाग   की फुहार है।

हर रंग से रंगीन   रंगों  की बौझार है।।

भंग की गोली  हुरियारों की है टोली।

लाल पीला नीला सा  हर क़िरदार है।।

[2]

भीग कर भी आदमी हो रहा निहाल है।

कपड़ों का सबके हो   रहा बुरा हाल है।।

गिर रही दीवार   गले   मिल रहें हैं लोग।

अब मनमुटाव का  बचा नहीं सवाल है।।

[3]

छोटे बड़ेआज सबका ही ऊंचा जलाल है।

होलिका नफरत दहन करने का ख्याल है।।

हर गम भुला दिया है होली   के धमाल में।

उड़ रहा हर ओर ही   गुलाल ही गुलाल है।

[4]

नशीली रंगभरी बयारी छा जाती है होली में।

हर आदमी पर खुमारी छा लाती है होली में।।

बेल बूटे हर फूल पत्ते पर झूमती है नई रंगत।

हर किसी पर मस्त सवारी छा पाती है होली है।।

[5]

सीने में किसी के मलाल सवाल बाकी नहीं है।

कोई भी धमाल    होली में रहता बाकी नहीं है।।

सारी फिजा बन जाती है एक खूबसूरत नजारा।

दिलों में नफरती मैला गुलाल रहता बाकी नहीं है।।

[6]

पवित्र पावन पर्व होली जैसा कोई त्यौहार नहीं है।

दिल को दिल से जोड़ने वाला कोई व्यवहार नहीं है।।

होली स्नेह प्रेम मिलन का है नायाब अनोखा उत्सव।

बीत गई सदियां होली    जैसा कोई  उपहार नहीं है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 169 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बड़ा कौन है?…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “बड़ा कौन है?..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बड़ा कौन है?” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

बड़ा नहीं बनता है कोई पद से या अधिकार से

बड़ा कहा जाता है मानव मन के सोच-विचार से।

 *

जिनके मन में दयाभाव औ करुणा का आगार है

उनका आदर करता आया सदा सकल संसार है।

 *

महावीर, गौतम औ’ गाँधी तीनों बड़े उदार थे

इससे माने जाते सबसे बड़े संत संसार के ।

 *

मिला बड़प्पन कभी न राजा, सिंहासन या ताज को

दिया बड़प्पन दुनिया ने मन की मीठी आवाज को।

 *

कभी झलकता नहीं बड़प्पन कोई आकार प्रकार से

पर सौंदर्य निखरता दिखता मन के ममता-प्यार से।

 *

छोटा हो भी बड़ा वही है जिसकी प्रेमल रहा

जिसके मन परिवार पड़ौसी औ’ जग की परवाह।

 *

छोटा-बड़ा हुआ करता है मानव निज व्यवहार से

नहीं कभी भी धन संग्रह से, पद से या अधिकार से।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “ऋतु बसंत…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “ऋतु बसंत” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

बसंत ऋतुमें बोयेंगे बीज

खुशियों के,खुशहाली के,

प्यार की फसल लहरायें,

रिश्तों की गहराई में!

आओ,सृष्टी के सृजन का

सुस्वागतम्, मिल के करे,

प्रकृती की ये प्रसन्नता,

तन-मन में, भर के झूमें!

ताल-सुर की ये मिलाप, 

सुनकर कोयल भी चौंकै,

फल-फूलों की बहार का उत्सव,

उम्मीदों का करें !

   ☆        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #224 ☆ – बसंत… – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  आपकी कविता बसंत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 224 – साहित्य निकुंज ☆

☆ बसंत… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

बसंत आता है

मन को लुभाता है

चहुँ ओर

फ़ैल रही है हरियाली

झूम रही है डाली डाली

धरती ने हरीतिमा का किया शृंगार

मन में उठी उमंग की फुहार

प्रेम प्यार की कोपलें फूटी

खिलने लगे फूल और कलियाँ

छा गई सब ओर खुशियाँ

फ़ैली है बसंत की महक

गूंज रही पक्षियों की चहक

जीवन में खिलने लगे नये रंग

लगा लिया कलियों ने अंग

देखो आ गया बसंत

आ गया बसंत।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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