मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 11 – रात रुपेरी ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘रात रुपेरी’ 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 11 ☆ 

☆ रात रुपेरी

 

मिटून गेल्या निळ्या नभातील कमलपाकळ्या

डाळींबाच्या डालीवरती झुलू लागल्या स्वप्नकळ्या.

 

शिथील झाले दिशादिशांचे दिवसभराचे ताण

थकल्या वाटा माग टाकीत उडे चिमुकला प्राण.

 

वाऱ्यावरूनी स्वर सनईचे ठुमकत मुरडत आले

अंबर अवघे झुंबर होऊन झुलले झळझळाळे.

 

घेरत आली सर्वांगाला रुमझुमणारी रात रुपेरी

खिडकीमधल्या चंद्रावळीला देह जाहला जडभारी .

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 7 ☆ परोपकार ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है पितृ दिवस के अवसर पर उनकी भावप्रवण कविता “परोपकार”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 7 ☆ 

☆ परोपकार ☆

 

एक फुलपाखरू मला

स्पर्श करून गेलं

अचानक बिचारं ते

माझ्यावर आदळलं

कसेतरी स्वतःला

सावरत सावरत

उडण्याचा स्व-बळे,

प्रयत्न करू लागलं.

त्याला मी जवळ घेतलं

स्नेहाने अलगद ओंजळीत भरलं

झाडाच्या फांदीवर

हळूच सोडून दिलं…

त्याला सोडलं जेव्हा, तेव्हा

ओंजळ माझी रंगली

पाहुनी त्या रंगाला मग

कळी माझीच खुलली

हसू मला आलं विचार सुद्धा आला,

ना मागताच मला फुलपाखराने त्याचा रंग विनामूल्य बहाल केला,

परोपकार कसा असावा याचा निर्भेळ पुरावा मला मिळाला…!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 50 – आम्ही भाग्यवंत ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण  कविता  ” आम्ही भाग्यवंत”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 50 ☆

☆ आम्ही भाग्यवंत ☆

 

नुरलिसे जीवा खंत।

धन्य आम्ही भाग्यवंत।।१।।

 

प्रेम संस्काराने न्हालो

यशवंत आम्ही झालो  ।।२।।

 

ओठी अमृताची गोडी

जन मना नित्य जोडी।।३।।

 

संगे गोपाळांचा मेळा

विठू जणू हा सावळा।।४।।

 

लुटे ज्ञानाची शिदोरी

वसे शिष्यांच्या आंतरी।।५।।

 

घाली मायेची पाखर।

बाणा परि कणखर ।।६।।

 

यशवंत भविष्याची।

गुरुकिल्ली शिक्षणाची  ।।७।।

 

उभा पाठी हिमालय।

बाबा जणू देवालय ।।८।।

 

प्रेम कोष उधळून।

गेला निर्मोही सोडून ।।९।।

 

साद घाली वेडे मन

यावे तोडुनी बंधन।।१०।।

 

माय पित्याविन दीन

होऊ कशी पायी लीन।।११।।

 

रंजना लसणे

आखाडा बाळापूर

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 18 ☆ सांगावे कुणा. ? ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है  उनका एक बालगीत  “सांगावे कुणा. ?“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 18 ☆

☆ सांगावे कुणा. ?

 

हसत हसत आला उन्हाळा

हसत हसत गेला हिवाळा

रडत म्हणे पावसाळा

येईन मी पुन्हा.!!

 

थंडीमधे सकाळची काळ वाटे शाळा

टिचर म्हणे प्रार्थनेची रोज वेळ पाळा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ?  !!हूंऽऽहूंऽऽ

 

पावसात रिमझिम त्या थंडगार धारा

आई म्हणे ,भिजू नका,खाऊ नका गारा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ? !!हूंऽऽ हूंऽऽ

 

उन्हाळ्यात शाळेला सुट्टी किती मजा

पप्पा म्हणे उन्हामधे खेळू नको राजा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ? !!हूंऽऽहूंऽऽ

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ सुजित साहित्य – लाॅकडाउन….! ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “लाॅकडाउन….!”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆  सुजित साहित्य  –  लाॅकडाउन….! ☆ 

तू तिथे.. .

मी इथे.. .

सारं काही लाॅकडाउन लाॅकडाउन..

फेसबुक आणि व्हाॅट्सअप वरती

भेटतो आपण येऊन जाऊन..

 

हातामध्ये तुझा हात

बाईकवरचा आपला थाट

रोजची आपली तीच वाट….

आता सारं काही

लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

 

नाक्यावरची ती काँफी

काँफीवरची ती वाफ

आणि वाफेवरती रंगत जाणारे

गप्पाचे ते…..तासन तास..

आता सारं काही

लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

 

दिवसभर तुझी साथ

माझे शब्द तुझी दाद..

कवितेची मग रंगते मैफल

समारोपाला रोजचा ऊशीर

आता सारं काही..

लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

 

मधाळलेली सायकांळ

अंधाराला घाई फार

मनामध्ये दोघांच्याही

निरोपाचा एकच ताल..

आता सारं काही..

लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

 

रोजचा उशिर आणि

रोजची गडबड

घरातल्यांची ती नुसती बडबड

ठरलेले रोज तेच उत्तर

आता सांर काही..

लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

 

तू तिथे.. .

मी इथे.. .

सारं काही लाॅकडाउन लाॅकडाउन…!

फेसबुक आणि व्हाॅट्सअप वरती

भेटतो आपण येऊन जाऊन. !

भेटतो आपण येऊन जाऊन. !

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य – विडंबन रचना – वाट वाकडी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक विडंबन रचना “वाट वाकडी )

☆ विजय साहित्य – विडंबन रचना – वाट वाकडी ☆

☆मुळ  गीत☆

 

गर्द सभोती रान साजणी,  तू तर चाफेकळी

काय हरवले सांग, शोधिशी त्या यमुनेच्या जळी

 

ती वनमाला ,म्हणे नृपाळा,हे तर माझे घर

पाहत बसते मी तर येथे, जललहरी सुंदर

 

रात्रीचे वनदेव पाहुनी,भुलतील रमणी तुला

तु वनराणी दिसे भुवन, या तुझिया रूपा तुला

 

अर्ध स्मित तव मंद मोहने, पसरे गालावरी

भुलले तुजला ह्रदय साजणी, ये चल माझ्या घरी

 

गीतकार  बालकवी

संगीत  जितेंद्र  अभिषेकी

नाटक संगीत मत्स्य गंधा

गायक आशालता वाफगावकर

 

☆ वाट वाकडी ☆

 

मर्द देखणे,तुझ्या सभोती, तू तर नवदेखणी

काय गवसले ,सांग षोडशे ,आवडला का कुणी ?

 

ती दचकोनी म्हणे तयाला ,अपुला रस्ता धर

करू नको तू वाट वाकडी,  वळणावर सुंदर.

 

खात्रीचे ना दिसे कुणी ग,फसवतील हे तुला

तू फुलराणी ,गंध भारली, प्राशून घेतो तुला .

 

कडाडली ती दुर्गा होऊन , प्रसाद गालावरी

पादत्राणे घेत गरजली,  जा पळ अपुल्या घरी.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 52 – आसरा…! ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “आसरा…!”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #52 ☆ 

☆ आसरा…! ☆ 

इवलासा जिव

फिरे गवोगाव

आस-याचा ठाव

घेत असे..

 

पावसाच्या आधी

बांधायला हवे

घरकुल नवे

पिल्लांसाठी..

 

पावसात हवे

घर टिकायला

नको वहायला

घरदार..

 

विचाराने मनी

दाटले काहूर

आसवांचा पूर

आटलेला..

 

पडक्या घराचा

शोधला आडोसा

घेतला कानोसा

पावसाचा..

 

बांधले घरटे

निर्जन घरात

सुखाची सोबत

होत असे..

 

घरट्यात आता

रोज किलबिल

सारे आलबेल

चाललेले..

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

दिनांक  27/3/2019

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 56 – कसे यायचे पंढरपूरा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  पंढरपुर न आ पाने की पीड़ा बयां करती  हुई प्रार्थना  कसे यायचे पंढरपूरा । सुश्री प्रभा जी की यह नवीन रचना वास्तव में उन सभी पंढरपुर वारी (विट्ठल भक्त पदयात्रियों) की मनोभावनाएं हैं। हम आशा एवं प्रार्थना करते हैं कि भगवान् विट्ठल हम सबकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करेंगे एवं अगले वर्ष से अपने भक्तों को पुनः पदयात्रा पूर्ण कर अपने दर्शन के अवसर अवश्य देंगे। सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित  इस भावप्रवण रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 56 ☆

☆ कसे यायचे पंढरपूरा ☆ 

 

अरे विठ्ठला  कसे यायचे पंढरपूरा

नको वाटते जिणेच सारे या घटकेला

तुझ्या कृपेची छाया राहो आयुष्यावर

नको कोणते आरोप झुटे दिन ढळल्यावर

 

पापभिरू मी सदा ईश्वरा तुलाच भ्याले

आणि विरागी वस्त्रच भगवे की पांघरले

कोणी माझे नव्हते येथे मी एकाकी

संकटकाळी तुला प्रार्थिले असेतसेही

 

अशी जराशी झुळूक आली आनंदाची

आणि वाटले जन्मभरीची हीच कमाई

भ्रमनिरास  होता व्यर्थच की सारे काही

दूर  पंढरी दूर दूर तो विठ्ठल राही

 

निष्क्रिय वाटे,नसे उत्साह का जगताना

विठुराया तुज शल्य कळेना माझे आता

भेटीस तुझ्या आतुरले मन येई नाथा

अस्तिकतेचा भरलेला घट माझा त्राता

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य – पाणी – ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

अब आप सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी के साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य को प्रत्येक बुधवार आत्मसात कर सकेंगे । आज प्रस्तुत है आपकी एक  विनोदपूर्ण कविता पाणी.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य – पाणी – ☆

शावरसर  झरझरते  घामट, चिकट  अंगावर

लहरलहर झुळझुळते  सुखाची साय मनावर।

 

चकचकीत टाईल्सच गंधभारलं बाथरूम।

शांपू, साबणाचा फेस मुलायम फुलारतो दरदरून.

 

फेसाळ, बक्कळ पाणी जाळीतून वाहून जातं

नळ्यांचा प्रवास करून फुक्कट गटारगंगा होतं.

 

अनेक फ्लॅट-बंगल्यातून  राजभोगी असली स्नानं.

तिकडे  टिचभर खोल्याझोपड्यात कोरडी, रिती रांजणं.

 

बादल्या,घागरी, गाडगीमडकी लांब रांगा रस्तोरस्ती.

तासन् तास माणसं उभी फक्त एका घागरीसाठी.

 

तिकडे खड्डा, इकडे धो धो  अपराधी शावरसर.

सुरु करतं जलसंधारण एखादं शहाणं घर.

 

काटकसरीचा दुवा दुवा साखळी अश्शी गुंफली तर.

भर उन्हात बरसेल श्रावण, भरेल ‘त्यांची ‘  ठक्क  घागर.

 

देवाचं देणं असतं पाणी, हवी सर्वांना समान वाटणी.

एकाने डुंबाव, दुसर्ऱ्याने वाळाव कशी गावी आनंदगाणी.

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 55 ☆ श्वासांची दरी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता  श्वासांची दरी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 55 ☆

☆ श्वासांची दरी☆

 

का तुझ्या माझ्यात श्वासांची दरी ?

लाव ओठी तू जराशी बासरी

 

सूर कानी मधुर आले कोठुनी

राधिका होते पुन्हा ही बावरी

 

अर्पिली देवा तुला मी ही फुले

अन् सुगंधी होत आहे टोकरी

 

राउळी गेलोच नाही मी कधी

रोज येतो सूर्यनारायण घरी

 

विठ्ठलू जाते जनीचे फिरवितो

भक्तिची माया असे ही ईश्वरी

 

माणिकाचे घालु का मी लोणचे ?

पोट भरण्या लागते रे भाकरी

 

ग्रीष्म मातीने किती हा सोसला

धाडल्या आता सरी तू भूवरी

 

ईद्र देवाची कृपा ही जाहली

रानभर होती पसरली बाजरी

 

घाबरावे अंधकारा का तुला ?

धीर देते ही प्रभा तर केशरी

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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