हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विवेक की कविता – बसन्त… अभी अभी ☆ श्री विवेक चतुर्वेदी

श्री विवेक चतुर्वेदी 

☆  कविता ☆ विवेक की कविता – बसन्त… अभी अभी ☆ श्री विवेक चतुर्वेदी ☆ 

अभी अभी…धूल में लोट गए हैं

शरीफ बच्चे

आम के पेड़ से बोल उठा है

एक अनाम शकुन्त

धूप में किसी ने

हथेली की ओट ली है

आ गिरी है छत पर

न जाने किस पते की अधरंगा*

हवा में उड़ती दो चोटियां

मुरम की सड़क से होकर गुजर गई हैं

बसन्त आया है इस नगर में… अभी अभी।।- विवेक

* अधरंगा- दो रंगों की पतंग के लिए इस अंचल में प्रचलित संज्ञा

© श्री विवेक चतुर्वेदी जबलपुर (मध्य प्रदेश)

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 35 ☆ काश दिल का हाल पहले ही जान जाते ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता काश दिल का हाल पहले ही जान जाते। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 35 ☆

☆ काश दिल का हाल पहले ही जान जाते ☆

काश ख्वाब हकीकत में बदल जाते,

जिंदगी खुशनुमा बन जाती ||

 

काश सबके मन की बात पहले ही जान पाते,

दिलों में दरारें आने से बच जाती ||

 

काश दिलों को हम पहले ही समझ लेते,

जिंदगी नफरतों का घरोंदा बनने से बच जाती ||

 

काश दिल का हाल जान मैं ही एक पहल कर लेता,

जिंदगी के खुशनुमा लम्हें यूं ही जाया होने से बच जाते ||

 

काश दिल का हाल पढ़ हम कुछ गम पी जाते,

हम गलतफहमियों के शिकार होने से बच जाते ||

 

काश हम एक दूसरे के दुःख दर्द महसूस कर पाते,

रिश्ते गलतफहमियों के शिकार होने से बच जाते ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६०॥ ☆

 

शब्दायन्ते मधुरम अनिलैः कीचकाः पूर्यमाणाः

संरक्ताभिस त्रिपुरविजयो गीयते किंनराभिः

निर्ह्रादस ते मुरज इव चेत कन्दरेषु ध्वनिः स्यात

संगीतार्थो ननु पशुपतेस तत्र भावी समग्रः॥१.६०॥

 

जहां वेणुवन मधु पवन के मिलन से

सुरीली सतत सौम्य ! वंशी बजाता !

सुसंगीत में रत जहाँ किन्नरीदल

कि त्रिपुरारि शिव के विजय गीत गाता

वहाँ यदि मुरजताल सम गर्जना तव

गुहा कन्दरा में गँभीरा ध्वनित हो

तो तब सत्य प्रिय पशुपति अर्चना में

सुसंगीत की विधि सकल पूर्ण इति हो

 

शब्दार्थ .. मुरजताल… एक प्रकार के वाद्य की आवाज , ढ़ोल या मृदंग की ध्वनि

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 72 ☆ एक कहानी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता एक कहानी। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 72 ☆

☆ एक कहानी ☆

चिलमन भी उठा

वो पास भी आए

पर नूर नज़र न आया

थे फ़िक्र के गहरे साये

 

गुम-गश्ता था माजी

कल पर कहाँ ऐतबार?

लकीरें थीं ही नहीं

कैसे महकता प्यार?

 

लबों से लब मिले तो

पर दिल एक न हुए

ज़हन में कसक थी

सिर्फ जिस्म थे छुए हुए

 

किसी ने कुछ न कहा

ज़िंदगी चलती रही

सुबह भी आती रही

शाम ढलती रही

 

हर शबनमी सुबह

आँखें कुछ नम रहीं

ज़िंदगी की आस भी

मानो, कुछ कम रही

 

एक केसरिया शाम

जीवन ढलने वाला था…

पर उसने आँखें खोलीं तो

हर ओर उजाला था

 

अपनी रूह से मिलने

वो अपनी राह निकल गयी

अँधेरे रौशनी में बदले

उसकी भी काया बदल गयी

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूची ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – सूची ☆

तय हैं कुछ नाम

जो मेरी अर्थी को

कांधा देंगे..,

कुछ मेरे समकालीन

कुछ मेरे अग्रज भी हैं

इस सूची में,

बशर्ते

वे मुझसे पहले न जाएँ,

पर मित्र

आज मैंने

वंचित

या यूँ समझो

मुक्त कर दिया तुम्हें

उस अधिकार से;

इसलिए नहीं कि

मैं तुम्हारे बाद भी रहूँ,

इसलिए कि तुमने

हड़बड़ी कर दी

और जीते-जी

मेरे.. शायद हमारे

विश्वास को

अर्थी पर लिटाने का

प्रयास कर,

छोटी सूची

और छोटी कर दी!

 

©  संजय भारद्वाज

(21.1.2016, प्रात: 9:11बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘अनुवादक’… श्री संजय भरद्वाज (भावानुवाद) – ‘Translator…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “अनुवादक ”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज 

☆ संजय दृष्टि –  अनुवादक ☆

हर बार परिश्रम किया है

मूल के निकट पहुँचा है

मेरी रचनाओं का अनुवादक,

इस बार जीवट का परिचय दिया है

मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,

पाठक ने जितनी बार पढ़ा है

उतनी बार नया अर्थ मिला है,

पता नहीं

उसका अनुवाद बहुआयामी है

या मेरा मौन सर्वव्यापी है…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 10.40 बजे, 19.01.2020

☆ Translator… ☆

Every time, through diligence,

the translator of my compositions,

could reach close to the original…

 

But this time, he has surpassed

all the limits of gumption

As he has translated

my silence…

 

Each time, a reader

reads it,

a new meaning emerges

Knoweth not,

the translation is multi-dimensional or my

silence is ubiquitously all-encompassing…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५९॥ ☆

 

तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासम अर्धेन्दुमौलेः

शश्वत सिद्धैर उपचितबलिं भक्तिनम्रः परीयाः

यस्मिन दृष्टे करणविगमाद ऊर्ध्वम उद्धूतपापाः

कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः॥१.५९॥

 

वहाँ शिला अंकित , सतत सिद्ध पूजित ,

चरण चिन्ह शिव के परम भाग्यकारी

करना परीया विनत भावना से

वे हैं पुण्यदायी सकल पापहारी

जिनके दरश मात्र से भक्तजन पाप

से मुक्त हो , जगत से मुक्ति पाते

तज देह को , मृत्यु के बाद दुर्लभ

अमरगण पद प्राप्ति अधिकार पाते

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#39 – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  शीत ऋतू पर आधारित आपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #39 – दोहे  ✍

स्वेटर का मैं क्या करूं, धूप प्रिया धनवान ।

यादों की है अरगनी, मन का बना मचान।।

 

बौने जैसे दिन हुए, आदमकद -सी रात ।

दिन सूरज के खिल रहे, आंखों में जल जात ।।

 

शरद शिशिर का आगमन, मनसिज का अवदान।

जब पूजा का विस्मरण, खजुराहो का ध्यान ।।

 

शीत कंपाए अंग को, मन में बसे अनंग।

दुविधा मिटती द्वैत की, सज्जित रंग बिरंग।।

 

कथरी में छुपता नहीं, दुर्बल पीत शरीर ।

शीत चलाता जा रहा, दोबारा शमशीर ।।

 

औ रे ऋतु के देवता, आकर तनिक निहार।

उघडा धन कैसे सहे, तेरे सुमन प्रहार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 38 – अलकों में अनमनी दिखी … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “अलकों में अनमनी दिखी … … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 38 ।। अभिनव गीत ।।

☆ अलकों में अनमनी दिखी …  ☆

 

अलकों में अनमनी दिखी

कुंतला अलकनंदा

सूख गई छज्जे पर सिमटी

व्याकुल मधुछन्दा

 

अगहन में अपराधबोध से

घिरती अग्नि शिखा

या पड़ौस में पूस ठिठुरता

सब को वहाँ दिखा

 

तितर वितर जैसे हो तारे

गुम हैं अम्बर में

और चाशनी में आ डूबा

चुप चंचल चन्दा

 

मौन मुँडेरों से मिट्टी के

माधव सरक गये

ननद, नई भाभी के कैसे

रिश्ते दरक गये

 

गति के गलियारे में गुमसुम

गमन गंध का भी

जान नहीं पाया बेशक बह

कुम्हलाया बन्दा

 

थकी थकी सी दिखी प्रभा की

आभा हीन किरन

जैसे दावानल से बाहर आया

एक हिरन

 

उस की आँखों में व्यापारिक

चित्र उभर कर भी

बता रहे बाजार अभी

भी होगा कुछ मन्दा

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

02-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समग्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – समग्र ☆

जब कभी

मेरा कहा

आँका जाय,

कहन के साथ

मेरा मौन भी

बाँचा जाय।

©  संजय भारद्वाज

दोपहर 12:18, 17.2.2018

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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