(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है।
अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री मनोरमा दीक्षित जी द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत “स्मृति के झरोखे से…” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 126 ☆
☆ “स्मृति के झरोखे से…” (यात्रा वृतांत) – सुश्री मनोरमा दीक्षित ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
पर्यटन व यात्राओ को साहित्य की जननी कहा जाता है. पर्यटन के दौरान साहित्यकार का मन प्रकृति का सानिध्य पाकर स्वाभाविक रूप से उर्वर हो जाता है. नये नये अनुभव व दृश्य वैचारिक विस्फोट करते हैं. कुछ रचनाकार इस अवस्था में उपजे मनोविचारो को तुरंत बिंदु रूप में लिख लेते हैं व अवकाश मिलते ही उस पर रचना लिख डालते हैं. कुछ के मन में उपजे यात्रा जन्य विचार उमड़ते घुमड़ते हुये बड़े लम्बे अंतराल के बाद कविता, कहानी या लेख के रूप में आकार ले पाते हैं, तो अनेक बार मन में ही रचना का गर्भपात भी हो जाता है. यह सब कुछ लेखकीय संवेदनाये हैं. राहुल सास्कृत्यायन जी को घुमक्ड़ी साहित्य का बड़ा श्रेय है. इधर यात्रा साहित्य के क्षेत्र में कुछ नवाचारी प्रयोग भी किये गये हैं. लेखक समूह की किसी स्थान विशेष की यात्रायें आयोजित की गईं, फिर सभी से यात्रा वृत्तांत लिखवाया गया तथा उसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया है,मुझे ऐसी किताबें पढ़ने व उन पर चर्चा करने का सौभाग्य मिला है. मैंने पाया कि एक ही यात्रा के सहभागी लेखको की रचनाओ में उनके अनुभवो, वैचारिक स्तर के अनुसार व्यापक वैभिन्य था. अस्तु, इस सब के बाद भी हिन्दी का पर्यटन साहित्य बहुत समृद्ध नही है. ट्रेवेलाग की तरह की किताबों की बड़ी जरूरत है, जिससे पाठक के मन में पर्यटन स्थल के प्रति रुचि जागृत हो, उसे स्थल विशेष की अनुभूत जानकारियां मिल सकें तथा पर्यटन को बढ़ावा मिले. ऐसी पुस्तकें न केवल साहित्य को समृद्ध करती हैं, वरन पर्यटन को बढ़ावा देती हैं.
सुश्री मनोरमा दीक्षित
स्मृति के झरोखे से श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी की ऐसी ही अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में मेरे सम्मुख आई है. अपने जीवन काल में उन्होने जिन अनेक पर्यटन स्थलो की यात्रायें की हैं उनमें से कुछ जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, नेपाल, गंगोत्री, यमुनोत्री, हैदराबाद, अमरकंटक, कुल्लू मनाली, घृष्णेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, शिरडी, जगन्नाथपुरी, कोणार्क, द्वारिका, रामेश्वरम, तिरुपति बालाजी, सहित उनकी कार्यस्थली मण्डला से जुड़ी अनेक विभूतियों का सविस्तार वर्णन प्रस्तुत पुस्तकमें उन्होने किया है. संक्षिप्त में कहा जावे तो किताब में विषय वैविध्य है. वर्णित स्थलो का आंखों देखा हाल है. सामान्यतः आम आदमी जो यात्रायें करता है, उसके अनुभव उस तक या वाचिक परम्परा से उसके परिवार व मित्रो तक ही सीमित रह जाते हैं, किन्तु जब श्रीमती मनोरमा दीक्षित जैसी कोई विदुषी, साधन संपन्न लेखिका ऐसी यात्रायें करती है तो उनके अनुभवो का लाभ ऐसी पुस्तको के प्रत्येक पाठक को मिलता है. निश्चित ही यह श्रीमती दीक्षित का नवाचारी विचार है, हमारी हार्दिक शुभकामना लेखिका के साथ हैं, मुझे भरोसा है कि यह पुस्तक साहित्य जगत में एक नई दस्तक देगी तथा यात्रा साहित्य के समुचित पुरस्कार से स्मृति के झरोखे से को सम्मानित कर हिन्दी साहित्य जगत गौरवान्वित होगा.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – परदेश की अगली कड़ी “उल्टा पुल्टा”।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 13 – उल्टा पुल्टा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
स्वर्गीय जसपाल जी भट्टी का एक कार्यक्रम “उल्टा पुल्टा” टीवी शो बहुत प्रसिद्ध हुआ था। यहां विदेश आने पर भी आरंभ में दैनिक जीवन यापन में बहुत कुछ ऐसा ही लगा, जिसे देख कर भट्टी जी की याद आ गई। ये भी हो सकता है, उनको भी अपने उल्टा पुल्टा कार्यक्रम की प्रेरणा यहीं से प्राप्त हुई हो।
विदेश आगमन पर जब कार की आगे की सीट के बाएं भाग में स्थान ग्रहण कर रहे थे, तो देखा वहां तो स्टेयरिंग लगा हुआ है, तब मेजबान ने बताया हमारे देश में दाएं तरफ स्टेयरिंग होता है, लेकिन यहां उल्टा बाएं तरफ होता है। कार चलते ही हमें लगा गलत दिशा में चल रही है, लेकिन सभी कारें दाहिनी तरफ चल रही थी। इसी प्रकार से पैदल चलने वाले भी दाएं तरफ चल रहे थे। हमें तो पाठशाला के दिनो से ही “बायें चल” शब्द कंठस्थ करवाया गया था। कहीं, पैंसठ वर्ष तक का जीवन गलत निर्वाह तो नहीं हो गया?
रास्ते में जब गैस स्टेशन (पेट्रोल पम्प) से पेट्रोल भरवाने के लिए रुके तो बहुत ही अजीब लगा, कोई विक्रेता पूछने नहीं आया कि कितने का करना है? स्वयं ही पाइप से भरने के पश्चात कार्ड से भुगतान वो भी बिना ओ टी पी मैसेज। क्या यहां कार्ड का दुरुपयोग/ फ्रॉड नहीं होते है? या यहां की व्यवस्था राम राज्य की कल्पना को साकार कर रहा हैं।
मेज़बान से जानकारी मिली की यहां तरल पदार्थ गैलन में मापे जाते हैं। हमारे देश में तो मैट्रिक प्राणली लागू हुए कई दशक बीत गए। ये अभी दर्जन, ग्रुस, पाउंड और गैलन में ही कार्य कर रहे हैं। सब्जी और अन्य ठोस पदार्थ को वजन पाउंड में मापा जाता हैं। हमारे देश में अभी भी कुछ पुराने लोग नए पैदा हुए बच्चे या केक का वज़न पाउंड में ही पूछते हैं।
घरों में लगे हुए बिजली के बटन (स्विच) भी उल्टे कार्य करते है, ऊपर रखने से बिजली प्रवाह रुक जाता है, और नीचे करने से घर रोशन हो जाता हैं।
जैसा चल रहा है, चलने दे, हमें क्या? हम तो ठहरे परदेशी।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “प्रोफाईल फोटो”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 144 ☆
लघुकथा 🎞️ प्रोफाईल फोटो 🖥️📞
जीवा मोबाईल, फेसबुक, व्हाट्सएप, पर तरह-तरह की सुंदर तस्वीरें डाला करती थी। मम्मी – पापा भी बहुत अच्छी बड़ी सोसाइटी में रहा करते थे। इसलिए जीवा को भी सब कुछ खुली आजादी थी। शादी की बात चलने लगी। लड़के वाले देखने आते परंतु कभी वे जीवा को पसंद नहीं करते और कभी कोई जीवा को पसंद नहीं आता।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ती चली जा रही थी। छोटा भाई भी कहने लगा…. कब तक इसे घर पर रखना पड़ेगा। मम्मी-पापा कहते हैं… इस घर पर उसका भी अधिकार है। बस सब मामला यहीं पर शांत हो जाता।
छोटे भाई का एक खास दोस्त आज अपने भैया हर्ष के साथ आया। बहुत ही साधारण परिवार का था। जीवा को हर्ष अच्छा लगा और उसके जाने के बाद उसकी प्रोफाइल फोटो देखकर उसके बारे में पता लगाया।
हर्ष एक प्राइवेट कंपनी पर काम करता था। काफी विचार कर जीवा ने उसे फोन पर कहा…. क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगे। हर्ष सुनता रहा। भाई भी परेशान हो गया। इतने बड़े-बड़े घर से रिश्ते आए और जीवा ने किसी को पसंद नहीं किया और कुछ खास नहीं है हर्ष अब इसे ये पसंद आ रहा।
भाई ने जीवा की बात संभाली और उसे कहा…. जीवा मजाक कर रही थी भैया। परंतु जीवा अपनी बात पर अड़ी रही। और एक दिन जीवा अचानक हर्ष के ऑफिस पहुंच गयी। उसका यह रूप देखकर वह दंग रह गया। साधारण कपड़ों में जीवा बहुत सुन्दर लग रही थी, न गहरी लाली, न आँखें काली कजरारी।
जीवा ने हर्ष को अलग अकेले में ले जाकर कहा…. हर्ष मुझे आपके जैसा ही जीवन साथी चाहिए। आप मेरी प्रोफाइल तस्वीर पर विचार मत करना। चाहे तो आप कुछ भी शर्त रख लो मैं आपके साथ बिल्कुल आपके जैसा ही जीवन जीने के लिए तैयार हूँ। मैं आज की बडी़ सोसाइटी के बीच रहने के कारण यह सब फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपलोड करती थी। तंग आ गई हूँ मैं इस रुप से। प्लीज मुझे अपना लो और शादी के लिए हां कह दो।
यह कह कर वह रोते हुए हर्ष की बाँहों में समा गई। हर्ष सोच नहीं पा रहा था आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में और इस हाई प्रोफाइल सोसायटी पर उसकी अपनी सादी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर कैसे छा गयी।
वाचनक्षेत्र हे एक अथांग सागरासारखे अफलातून क्षेत्र आहे. ह्या वाचनातून आपल्याला कितीतरी विविध क्षेत्रातील माहिती मिळते,कधी ज्ञानात भर पडते,तर कधी भावनेला वाट मिळते, कधी खळखळून हसावसं वाटत तर कधी छान गंभीर विचारांच्या डोहात डुंबायला मिळतं. कधी कधी वाचल्यावर जाणवतं की हे खरंच छान लिहीलयं किंवा अरेच्चा आपल्याच मनातील शब्द तंतोतंत कागदावर उतरलेयं जणू.
हे वाचन करतांना काही गोष्टी आधी माहीत असलेल्या परंतु वेगळ्या शब्दांत मांडलेल्या असतात तर काहींच्या बाबतीत आपण संपूर्ण अनभिज्ञ होतो हे जाणवतं. असेच काही शब्द वाचनात येतात, हे शब्द फक्त आपण ऐकले असतात परंतु ह्याची माहिती म्हणाल तर शुन्य. मग कुतूहल जागं होतं आणि माहिती शोध मोहीम सुरू होते.काल असाच “सार्क संघटना” हा शब्द वाचनात आला.
कुठल्याही संघटना तयार होतांना त्या काहीतरी भरीव कामगिरी, चांगले उद्दिष्ट साध्य करण्यासाठी बनवितात. अशीच एक संघटना म्हणजे सार्क संघटना ,जिच्या निर्मितीची तारीख होती 8 डिसेंबर 1985.
दक्षिण आशियाई प्रादेशिक सहकार संघटना (South Asian Association for Regional Cooperation असं त्या संपूर्ण संघटनेचे नाव. त्या नावाचं संक्षिप्त रुप म्हणजे सार्क (SAARC); ही दक्षिण आशिया खंडातील 8 देशांची एक आर्थिक व राजकीय सहयोग संघटना आहे. अमेरिका व चीन खालोखाल सार्क सदस्य राष्ट्रांची एकत्रित अर्थव्यवस्था जगात तिसऱ्या क्रमांकावर असून जगातील लोकसंख्येच्या 21 टक्के लोक सार्क क्षेत्रामध्ये राहतात. भारत हा सार्कमधील सर्वात बलाढ्य देश आहे हे उल्लेखनीय. 6 जानेवारी 2006 रोजी सार्क सदस्य राष्ट्रांनी प्रादेशिक व्यापाराला चालना देण्यासाठी दक्षिण आशियाई मुक्त व्यापार कराराची निर्मिती केली.
सार्क संघटनेची कल्पना 1950 मध्ये मूळ धरू लागली. 1970 च्या सुमारास भारत, बांगलादेश,भूतान, मालदिव, पाकिस्तान,नेपाळ श्रीलंका आणि अफगाणिस्तान या देशांना एकत्रितपणे व्यापार व सहकार करण्याच्या दृष्टीने एका संस्थेची आवश्यकता भासल्याने ह्याची संकल्पना अस्तित्वात येण्याच्या दृष्टीने जोर धरु लागली. दक्षिण आशियामध्ये आर्थिक व सामाजिक प्रगती करण्याच्या उद्देशाने तसेच सांस्कृतिक विकास व विकसनशील देशाबरोबर सहकार्य करण्यासाठी सार्क संघटना एकत्रित ऊभी राहिली.
लोकसंख्या, संसाधने, लष्करी सामथ्र्य, आर्थिक आणि तंत्रज्ञानात्मक विकास, भौगोलिक स्थान या सर्व बाबींचा ऊहापोह आणि उपाययोजना ह्याबद्दल ही संघटना कार्य करते. सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रांत परस्परांच्या सहकार्याची अपेक्षा ह्यामध्ये व्यक्त करण्यात आली. तसेच महिलांचे प्रश्न व त्यांच्या शिष्यवृत्त्या, अभ्यासवृत्त्या, आर्थिक सहकार्य, महिला आणि मुले यांच्या भवितव्याचा तसेच दहशतवाद व स्त्रियांचे लैंगिक शोषण यांच्याबद्दल ठोस तजवीज ह्यामध्ये केल्या जाते.
खरंच अशा अनेक संघटना विविध कार्य करीत असतात पण आपल्याला त्याबद्दल फारच कमी माहिती असते हे ही खरे.
आठवणींच्या गाठी कधी अवचित सुटतात, कधी ती सोडत बसते. त्या कधी सुखावतात कधी मनाला विद्ध करतात . मग आठवणींची दुखरी नस ठसठसत राहते.. बराच काळ. अलीकडे तिचे असेच होते. मग ती कधी त्यातच रमून जाते, कधी एखाद्या आठवणीच्या पोळ्यावरील मधमाशा तिच्या मनाला डसत राहतात. म्हणून मला आठवणींच्या गाठी आपोआप उकलणे आणि सोडवत बसणे नकोच वाटते.. मग मी तिला त्यातून बाहेर काढण्यासाठी विषय बदलतो तसाच विषय बदलण्यासाठी मी तिला ते विचारले होते
मी विषय बदलण्यासाठी ‘आणखी काय आणायचं आहे ‘ हे विचारतोय हे तिच्या लक्षात आले तशी ती हसली. मी पटकन चहा पिऊन कप खाली ठेवला. तिने चहाचे भांडे, कप पाटीत ठेवले. मी ती पाटी उचलू लागलो तशी ती म्हणाली,
“असू दे उठून मी न्हेते बाहेर आणि धुवून टाकते.”
तिला उठायचाही त्रास होतो. गुडघे तर दुखतातच पण अलीकडे सायटीकाचा त्रास ही होतो म्हणते.. पण तरीही खाली बसून काम करणे सोडत नाही. किती वेळा म्हणले उंच ओटा बांधून घेऊया.. सिंक बसवून घेऊया.. तुलाच बरे होईल… तिचा स्पष्ट नकार. तिला स्वयंपाकगृहाच्याजवळ बाहेरच असणाऱ्या कर्दळी आणि आळु जवळ असणाऱ्या दगडावर भांडी घासायला- धुवायला आवडतं. तरी बरे त्या दारातून बाहेर पडायला एकच छोटीशी पायरी आहे.
परसदारातून परसात उतरण्यासाठी चार पायऱ्या आहेत..पण तिला त्या उतरून परसात जाणे नकोसे वाटते. ती सांगत नसली तरी तिला त्याचा त्रास होतो, पायऱ्या चढता-उतरताना असह्य वेदना होतात हे मी जाणून असतो..
मी तिला एकदा म्हणालो, ती काहीही न बोलता नुसतीच हसली, सारे काही समजल्यासारखी. आणि तेंव्हापासून संध्याकाळचा चहा मी परसदारातच पायरीवर बसून घेतो. ती दाराजवळ खुर्ची घेऊन चहा पिता पिता, माझ्याशी बोलता बोलता परस न्याहाळत बसते.. डोळ्यांत साठवून ठेवत असल्यासारखी. अलीकडे बऱ्याचदा सांजेचा चहा ही घरातच होतो. परसातली गुलाबी खुर्ची आताशा रिकामीच असते.
ती चहाचे पातेले, कप धुवून आत आली. ते जास्थानी ठेवेपर्यंत मी ते दार लावून सोप्यात आलो. ती ही पाठोपाठ सोप्यात आली. सोप्यात बसले तरी खिडकीतून दूरवरचे दिसतेच. ती कुंपणभिंतीबाहेरचा रस्ता न्याहाळत बसते. पूर्वी त्या रस्त्यावरून कधीतरी एखादी सायकल, एखादे वाहन जात- येत असायची पण आता सायकल क्वचित एखादीच दिसते पण दुचाकी, चार चाकीं, माल वाहतूकीची विविध वाहने आणि आणि अधून-मधून जाणाऱ्या-येणाऱ्या बसनी रस्ता तुडुंब भरून वाहत होता..प्रवास हेच जीवन झालंय की काय असे वाटू लागलंय.. वाहनांचे आवाज, हॉर्न चे आवाज.. यामुळे सारा परिसर अगदी पहाटेपासून रात्री नऊ दहा वाजेपर्यंत फक्त ‘आवाज की दुनिया ‘ होऊन जातो. चिमण्या-पाखरांची मनभावक किलबिल ऐकूही येत नाही.
दिवस मावळू लागला तसे घरट्याकडे परतणारे तुरळक पक्षी आकाशात दिसू लागले. पूर्वीसारखे थवे आता फारसे दिसत नाहीत…. पूर्वी असे थवे पाहिले की तिला तिचे गाणे आठवायचे आणि ती गुणगुणत राहायची.. ‘ बागळ्यांची माळफुले अजुनी अंबरात…’
आताशा तिला परदेशी झालेल्या, अनेक वर्षे घरी न आलेल्या मुलांची आठवण येते.. तिने ते कधी बोलून दाखवले नसले तरी तिच्या डोळ्यांच्या पाणावलेल्या कडा बोलून जातात. मग मी तिला, ‘ गार वारा सुटलाय नाही ? चल आत जाऊ. ‘ असे म्हणून आत तिला घेऊन आत जातो..
☆ A N G A A R… आणि एक नवीन देश निर्माण झाला… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री सुलू साबणे जोशी ☆
३ डिसेंबर १९७१ रोजी भारत आणि पाकिस्तानमध्ये पुन्हा युद्धाला तोंड फुटले…
त्यावेळी पूर्व आणि पश्चिम (आजचा बांग्लादेश) पाकिस्तानच्या समुद्री वाटा संपूर्ण तोडण्याची (complete naval blockade) महत्वाची जबाबदारी भारतीय नौदलाकडे सोपवण्यात आली.
पाकिस्तानच्या हल्ल्याला चोख सडेतोड उत्तर देण्यासाठी नौदलाच्या इतिहासातील घातक आणि धाडसी हल्ला करण्यास भारतीय नौदल सज्ज झाले.
यासाठी गरज होती योग्य वेळ साधून अचानक हल्ला करण्याची, कारण हल्ला होणार होता तो थेट पाकिस्तानच्या कराची बंदरावर ! कराची बंदर हे पाकच्या नौदलाचे व संपूर्ण व्यापाराचे प्रमुख बंदर. येथूनच पाकिस्तानला अमेरिका व ब्रिटन या देशांकडून युद्धासाठी मदत मिळत असे व पूर्व पाकिस्तानला पाठवली जात असे. असे हे कराची बंदरच नष्ट करून पाकचा कणाच मोडण्याचं ठरलं.
ह्या मोहिमेला नाव देण्यात आले “Operation Trident“.
यासाठी भारतीय नौदलाने निवड केली ती आकाराने छोट्या, तेज व चपळ अशा क्षेपणास्त्रवाहू Osa-class missile boat जहाजांची –
१) INS Nipat, २) INS Veer, ३) INS Nirghat, ४) INS Vinash, ५) INS Nashak, ६) INS Vidyut, ७) INS Vijeta, ८) INS Nirbhik
ह्या जहाजांची मर्यादा बघता ही जहाजे कराची बंदराच्या दक्षिण दिशेला दुसऱ्या जहाजांनी ओढून (TOE) नेण्याचे ठरले. तिथून पुढे हल्ला करून ती सर्व जहाजे तीन दिशांना जाणार होती. नुकतेच रशियाहून प्रशिक्षण पूर्ण करून आलेल्या, उत्तम अस्खलित रशियन भाषा बोलणाऱ्या अधिकारी वर्गाची निवड करण्यात आली. मोहिमेदरम्यान आपल्या सर्व जहाजांना रेडिओ वापरण्यास मनाई होती. गरज भासल्यास संभाषण हे रशियन भाषेतूनच करावे, जेणेकरून पाकला ह्या मोहिमेचा पत्ता लागणार नाही आणि रशियन नौदल समजून तो कोणतीही हालचाल करणार नाही, ह्या साठीचा हा डाव होता.
पहिला हल्ला :– ४ डिसेंबर १९७१ च्या रात्री ही सर्व जहाजं सौराष्ट्रच्या किनाऱ्याजवळून कराचीच्या दिशेने निघाली. कराचीजवळ येताच रडार पिंग करू लागले. त्यांना काही पाकिस्तानी जहाजं तिथे गस्त घालताना आढळली.
सुमारे १०.४५ ला INS Nirghat ला हल्ला करण्याचे आदेश मिळाले. तात्काळ पहिलं क्षेपणास्त्र सुटलं आणि जाऊन पाकिस्तानी जहाजावर धडकलं. ते जहाज होतं Battle-class Destroyer PNS Khaibar.– PNS Khaibar ने बुडता बुडता पाकिस्तानी नौदलाला रेडिओ संदेश पाठवला, “enemy aircraft attack-number one boiler hit – ship sunk…” (PNS Khaibar ला त्यांच्यावर हल्ला कुठून कसा झाला हेही समजलं नव्हतं.)
सुमारे ११.२० वाजता कराचीपासून अवघ्या ३२ मैलांवर असलेल्या INS Veer ला अजून एक जहाज दिसलं, ते होतं PNS Muhafiz (Adjutant-class mine-sweeper) — INS Veerने क्षणाचाही विलंब न करता २ क्षेपणास्त्रे PNS Muhafiz च्या दिशेने सोडली. पुढची ७० मिनिटं Muhafiz जळत होतं.
दरम्यान INS Nipat च्या अवघ्या २६ मैलावर एक जहाज टप्प्यात आलं, ते होतं venus challenger – पाकिस्तानसाठी दारुगोळा आणि हत्यारं आणतानाच नेमकं सापडलं. INS Nipat ने त्या जहाजाला तळ दाखवला.
त्याच पाठोपाठ पाकिस्तानी PNS ShahJahan (British C class destroyer) यावर हल्ला केला.
PNS ShahJahan बुडालं नाही, पण अगदीच निकामी झालं आणि INS Nipat तडक कराचीच्या दिशेने वेगात निघालं आणि अवघ्या १४ मैलांवरून कराची बंदराच्या मुख्य मार्गाच्या दिशेने क्षेपणास्त्र सोडलं. —
(जगातील युद्धाच्या इतिहासात कोणत्याही नौदलाने जहाजावरून जहाजावर मारा करण्यासाठी असलेल्या क्षेपणास्त्राचा उपयोग जमिनीवरील लक्ष्य भेदण्यासाठी आजपर्यंत केलेला नाही. भारतीय नौदलाने ते यशस्वीरित्या करून दाखवलं.) सुमारे ११.५९ वा.कराची बंदरातील भल्या मोठ्या तेलाच्या टाक्यांना त्यांनी लक्ष्य बनवलं. एक टाकी फुटताच इतर टाक्या फुटू लागल्या. संपूर्ण कराची हादरलं. मध्यरात्री भरदिवसासारखा उजेड पसरला. कराची बंदर धडधडून पेटत होतं.)
— आणि भारतीय नौदल मुख्यालयाला पहिला रेडिओ संदेश पाठवण्यात आला —-A N G A A R..
हा कोड होता दिलेली कामगिरी यशस्वीरित्या पूर्ण झाल्याचा !
दुसऱ्या दिवशी ५ डिसेंबर रोजी भारतीय वायुसेनेने उरलंसुरलं कराची ठोकून काढलं.
८ डिसेंबरच्या रात्री पुन्हा एकदा भारतीय नौदलाच्या फक्त तीन जहाजांनी Operation Pythonच्या अंतर्गत कराचीवर हल्ला चढवला. ह्या सततच्या हल्ल्यांमुळे अर्धं पाकिस्तानी नौदल रसातळाला गेलं आणि बरंचसं निकामी झालं. उरलेलं पूर्णपणे हादरून गेलं होतं.
अश्या ह्या भारतीय नौदलाच्या कामगिरीसाठी आणि ह्या विजयासाठी ‘ ४ डिसेंबर हा भारतीय नौसेना दिवस ‘ म्हणून साजरा होतो आणि ज्या जहाजांच्या ताफ्याने हा हल्ला केला, त्यांना तेव्हापासून नौदलात killer squadron संबोधलं जाऊ लागलं.
पुढे १६ डिसेंबर १९७१ ला पाकिस्तानने संपूर्ण शरणागती पत्करली आणि —-
आणि एक नवीन ‘बांग्ला देश’ निर्माण झाला…
भारतीय नौदलाच्या या अतुलनीय कामगिरीला विनम्र अभिवादन…! जय हिंद !!!
लेखक : अज्ञात
संग्राहिका : सुश्री सुलू साबणे जोशी
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈