हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 45 ☆ मुक्तक ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 45 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ज्ञान बुद्धि विनम्रता तेरे  आभूषण हैं।

सत्यवादिता प्रभुआस्था तेरे भूषण हैं।।

मत रागद्वेष कुभावना    वरण करना।

ईर्ष्या और घृणा कुमति और दूषण हैं।।

[2]

आत्मविश्वास से खुलती सफल राह है।

सबकुछ संभव यदि जीतने की चाह है।।

व्यवहार कुशलता बनती उन्नति साधक।

बाधक बनती हमारी नफरत   डाह है।।

[3]

मत  पालो  क्रोध  प्रतिशोध  बन  जाता  है।

मनुष्य स्वयं  जलता औरों  को  जलाता  है।।

प्रतिशोध   का  अंत  पश्चाताप  से  है  होता।

कभी व्यक्ति प्रायश्चित भी नहीं कर पाता है।।

[4]

विचार   आदतों   से   चरित्र  निर्माण  होता  है।

इसीसे तुम्हारा व्यक्तित्व चित्र निर्माण होता है।।

तभी बनती तुम्हारी  लोगों  के  दिल  में  जगह।

गलत राह पर केवल दुष्चरित्र निर्माण होता है।।

[5]

बस छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए  भी   कम है।

नफरत   बन   जाती   यूं   लोहे   की  जंग   है।।

बदला लेने में बर्बाद  नहीं  करें  इस  वक्त को।

तेरा सही रास्ता ही लायेगा सफलता का रंग है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 110 ☆ ग़ज़ल – “आँसू  कभी  न  टपके…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “आँसू  कभी  न  टपके…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #110 ☆  ग़ज़ल  – “आँसू  कभी  न  टपके…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जो  भी  मिली  सफलता  मेहनत  से मैंने पायी

दिन रात खुद से जूझा किस्मत से   की लड़ाई।

 

जीवन   की   राह   चलते   ऐसे   भी   मोड़   आये

जहां एक तरफ कुआं था औ’ उस तरफ थी खाई।

 

काटों   भरी   सड़क  थी, सब ओर था अंधेरा

नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ’ तनहाई।

 

सब  सहते, बढ़ते  जाना  आदत  सी  हो  गई  अब

किसी से न कोई शिकायत, खुद की न कोई बड़ाई।

 

लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिन्दगी है

चाहे   पहाड़  टूटे, चाहे  हो  बाढ़  आई।

 

आँसू  कभी  न  टपके, न  ही  ढोल गये बजाये

फिर भी सफर है लम्बा, मंजिल अभी न आई ।

 

दुनिया की देख चालें, मुझको अजब सा लगता

बेबात   की   बातों   में   दी   जाती  जब  बधाई।

 

सुख में ’विदग्ध’ मिलते सौ साथ चलने वाले

मुश्किल दिनों में लेकिन, कब कौन किसका भाई ?

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (19 दिसंबर से 25 दिसंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (19 दिसंबर से 25 दिसंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है

मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।

जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन॥

अगर आप पर ईश्वर की कृपा है तो आप सब कुछ कर सकते हैं । जो गूंगा है वह बोल सकता है और जो लंगड़ा है पर्वत पर चढ़ सकता है । इस सप्ताह अर्थात 19 दिसंबर से 25 दिसंबर 2022 तदनुसार विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी से पौष शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल  अर्थात ईश्वर की कृपा के बारे में आपको बताने का  मैं पंडित अनिल कुमार पाण्डेय प्रयास कर रहा हूं। 

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा तुला राशि में रहेगा ।वृश्चिक और धनु राशि से गोचर करता हुआ 24 दिसंबर को 6 बज के 39 मिनट रात अंत से मकर राशि में प्रवेश करेगा ।

इस सप्ताह सूर्य , शुक्र, बुध , धनु राशि में रहेंगे ।मंगल वृष राशि में वक्री रहेंगे । गुरु मीन राशि में रहेंगे । शनि मकर राशि में रहेंगे और राहु मेष राशि में गोचर करेंगे।

आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके ऊपर ईश्वर की कृपा की वर्षा हो सकती है बशर्ते आप भी प्रयास करें। कार्यालय में आपकी स्थिति पहले से अच्छी हो सकती है ।भाई बहनों से संबंध अच्छा रहेगा । धन आने का योग है । सुख में वृद्धि होगी । माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । माता जी के  गर्दन और कमर में पीड़ा हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तथा 25 दिसंबर उत्तम और सफलता दायक है । 21 और 22 को आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके लिए सफलता दायक ग्रह शनि है । शनि की मदद से आप कई कार्यों को सफलतापूर्वक कर सकते हैं । दुर्घटनाओं से सावधान रहने का प्रयास करें । धन आने का उत्तम योग है । भाई बहनों से संबंध उत्तम रहेंगे । माता और पिता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है । छात्रों की पढ़ाई में बाधा आएगी । इस सप्ताह आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए ।आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए  अद्भुत है । उनके सभी कार्य संपन्न होंगे । अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह  उत्तम है । उनके पास  विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे । प्रेम संबंधों को बढ़ाने के लिए भी यह सप्ताह उचित है । गलत रास्ते से धन आ सकता  है ।  कचहरी में विजय की उम्मीद है ।  शत्रु पराजित होंगे । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 दिसंबर फलदाई है । 21 ,22,और 25 दिसंबर को आपको सावधान रखकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को  शनि देव के मंदिर में जाकर उनकी पूजा-अर्चना करें । उन पर तेल चढ़ाएं । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा ।आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है ।आपके शत्रु का विनाश होगा । व्यवसाय में लाभ होगा । कचहरी के मामले में सफलता मिलेगी । भाग्य आपका साथ देगा । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी है, परंतु माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । धन कम आएगा । छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तथा 25 दिसंबर उत्तम और प्रभावशाली हैं ।  23 और 24  दिसंबर को आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 5 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सपा का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपके संतान की उन्नति होगी । संतान का आप को पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा ।  कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी ।  छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी ।  भाग्य से आपको बहुत कम लाभ प्राप्त होगा ।  दुर्घटनाओं से आप बचेंगे । इस सप्ताह आपको 25 दिसंबर को सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए ।  21 और 22 तारीख को आपके सुख में वृद्धि होगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगल देव की शांति का उपाय किसी योग्य ब्राह्मण से  कराएं । सप्ताह का शुभ दिन  बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए उत्तम है ।आपके लिए भी ठीक-ठाक है । आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बाधा आएगी । आपके पेट में तकलीफ हो सकती है । भाग्य आपका साथ देगा । अगर आप इलेक्शन लड़ रहे हैं तो उसमें आप जीत सकते हैं ।जनता का आपको साथ मिलेगा । आपके सुख में वृद्धि होगी । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा ।पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा । कोई दुर्घटना हो सकती है । आपको सावधान रहना चाहिए ।  23 और 24 तारीख उत्तम और  परिणाम दायक है । 21 और 22 तारीख को आपके भाई बहनों के साथ आपकी विशेष वार्तालाप हो सकती है ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पराक्रम में वृद्धि होगी । व्यापार उत्तम चलेगा ।  क्रोध की मात्रा भी बढ़ सकती है । भाग्य पूर्ण साथ देगा । पेट के रोगों से मुक्ति मिलेगी । कार्यालय में प्रतिष्ठा बढ़ेगी ।  पिताजी के स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तथा 25 तारीख उत्तम और परिणाम मूलक हैं ।  21 और 22 तारीख को आपके पास धन आने का योग है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । प्रयास करें ,धन आपके पास अवश्य आएगा । कचहरी के मामलों में उलझने से बचें । छोटी-मोटी दुर्घटनाओं से भी बचें । भाग्य कम साथ देगा । बहनों से प्रेम बढ़ेगा । संतान से सुख प्राप्त होगा ।संतान आपका सहयोग करेगी ।  इस सप्ताह आपको 19 और 20 तारीख को सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए । 21 और 22 तारीख को आपकी कई अड़चनें दूर हो सकती हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है । आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । व्यापार में वृद्धि होगी । धन भी सामान्य से अधिक आएगा । भाग्य से थोड़ा कम मिलेगा । पिताजी को कष्ट हो सकता है । शत्रु विनाश को प्राप्त होंगे । आपके संतान को थोड़ा कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख सफलता दायक है । 23 और 24 को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता प्राप्त होगी । 21 और 22 तारीख को आपको कर्जे से मुक्ति मिल सकती है और कचहरी के कार्य में सफलता प्राप्त हो सकती है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गौमाता को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपका स्वास्थ्य इस सप्ताह उत्तम रहेगा । कचहरी के कार्यों में आपके लिए सफलता का योग है । व्यापार में उन्नति होगी । अगर आप प्रयास करेंगे तो  आपको  कर्जे से मुक्ति मिल सकती है । माताजी को कष्ट हो सकता है । भाग्य कोई विशेष साथ नहीं देगा । आपके संतान की उन्नति होगी ।इस सप्ताह आपके लिए 19 ,20 और 25 दिसंबर उत्तम फलदायक है । 21 और 22 तारीख को आपके पास धन आने का योग है । 22 , 23 और 24 तारीख को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन  हनुमान जी के सामने बैठकर तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें एवं शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दीपक जलाकर पीपल की सात बार परिक्रमा करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है । आपके द्वारा किए गए थोड़े प्रयासों से ही आपको अच्छे धन की प्राप्ति हो सकती है । व्यापार ठीक चलेगा । भाग्य सामान्य है । संतान आपका साथ देगी । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । परीक्षा में सफलता का योग है । कचहरी के कार्य में सफलता मिल सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 तारीख को शासकीय कार्यों में सफलता का योग है । 25 दिसंबर को आपको सभी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह घर से निकलने के पहले अपने माता-पिता को प्रणाम करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

सप्ताह सामान्य रूप से आपके लिए अच्छा है । धन की प्राप्ति की संभावना है । आपके सभी शासकीय कार्य संपन्न हो सकते हैं । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने बॉस का अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । आपके कनिष्ठ कर्मचारी भी आपके साथ अच्छा व्यवहार करेंगे । भाग्य भी आपका ठीक-ठाक साथ देगा । धन भी ठीक-ठाक आ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख सफलता दायक है ।  19 और 20 तारीख को आपको संभल कर कार्य करना चाहिए ।   21 और 22 तारीख को आपके कुछ कार्य भाग्य के भरोसे हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह सूर्य भगवान को प्रातः काल तांबे के पात्र में जल अक्षत और लालपुष्प लेकर सूर्य के मंत्र के साथ जल अर्पण करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ पारीजात ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ पारीजात… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

आज अचानक, मनात फुलला, वृक्ष पारीजात,

गुपित कानी सांगून जाता, सुगंधित वात ||धृ.||

 

तृषार्त या धरणीवर पडता, पाऊल मेंदीचे,

मनात माझ्या मळे उमलले, ते निशिगंधाचे,

कसा पोहचला? कळले नाही, ताऱ्यांनाही हात ||१||

 

काळे काळे खडक प्रसवले, निर्झर मोत्यांचे,

निनादले कानांशी अवचित, कुजन सरीतेचे,

गंधर्वाचे थवे उतरले, प्रणयगीत गात ||२||

 

आज उराशी घट्ट बिलगले, ते स्वप्नांचे ससे,

माध्यांनीला चंद्र नभीचा, मन पंखावर बसे,

सलज्ज वदना अहा! प्रगटली, संध्या ऋतुस्नात ||३||

 

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 131 – लागलासे ध्यास ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 131 – लागलासे ध्यास ☆

लागलासे ध्यास रे।

नित्य होई भास रे।

 

रोज तुजला शोधतो

व्यर्थ मज का आस रे।

 

त्रासलो या जीवनी

गुंतलेला श्वास रे।

 

भक्त येई दर्शना

भाव माझा खास रे।

 

भेट मजशी पावना

मांडली आरास रे।

 

पाहशी का अंत रे।

कर मनी तू वास रे। 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ कौरव नंबर 101… अनामिक ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर ☆

? विविधा ?

☆ कौरव नंबर 101…  🤔 … अनामिक ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर 

मी जर महाभारत काळात जन्माला आलो असतो तर माझा समावेश कौरवांच्या पार्टीतच झाला असता.

कारण ..

श्रीकृष्णाची कधी प्रत्यक्षात गाठ पडलीच तर मी त्याला एकमेव प्रश्न हा विचारेन की ” देवाधिदेवा, भगवतगीता अर्जुनाला सांगण्याऐवजी, दुर्योधनाला आणि दु:शासनाला सांगितली असतीस तर हे महाविनाशी युध्द टाळता आले असते ना! इतका मोठा संहार झाला नसता. तू असे का केले नाहीस? भगवद्गीतेचे हे दिव्य ज्ञान कौरवांना झाले असते तर महाभारत हे युद्धाच्या तत्त्वज्ञानाऐवजी बंधुभावाच्या, प्रेमाच्या तत्त्वज्ञानाची शिकवण देणारे झाले नसते का?”

सध्यातरी कृष्णाने प्रत्यक्ष दर्शन देणे शक्य नव्हते. त्यामुळे  इंटरनेटच्या जंजाळात मी हा प्रश्न प्रसूत केला. बघताबघता हा प्रश्न प्रचंड व्हायरल झाला. फेसबुक, whatsapp, quora, युट्युब सगळीकडे या प्रश्नाने धुमाकूळ घातला आणि अखेरीस इतक्या ट्रॅफिकमुळे प्रत्यक्ष श्रीकृष्णाला त्याची दखल घ्यावी लागली.

आणि …एके दिवशी मला श्रीकृष्णाचा video कॉल आला.

अक्षयकुमार आणि परेश रावलचा OMG बघितलेला असल्यामुळे, श्रीकृष्ण अगदी साध्या वेशभूषेत येणार हे मला अगोदरच ठाऊक होते.

थेट स्वर्गातून, पृथ्वीवर कॉल लावलेला असल्यामुळे, खूप डेटा खर्च होत असणार, त्यामुळे श्रीकृष्णाने थेट मुद्द्याला हात घातला .

“ वत्सा, कशाला इतके अवघड प्रश्न नेटवर टाकतोस? सगळे ट्रॅफिक जाम झाले.”

“ देवा, हा अखिल मानवजातीच्या मार्गदर्शक धर्मग्रंथाचा प्रश्न आहे. तुम्ही हे युद्ध टाळण्यासाठी हे ज्ञान कौरवांना दिले असते तर युध्दचं झाले नसते … हा प्रश्न इंटरनेटच्या  ट्रॅफिकपेक्षा कितीतरी महत्वाचा नाही का?”

“मला उपदेश करू नकोस ” श्रीकृष्णांचा एकदम बदललेला स्वर ऐकून मी भांबावलो.

“ देवा, माझी काय बिशाद तुम्हाला उपदेश करण्याची” मी गयावया केली.

“ वत्सा …अरे तुला नाही म्हणालो.”

……..मला हायसे वाटले.

“ मला उपदेश करू नका …” असे दुर्योधन मला म्हणाला होता.

….तुला काय वाटते ? मी हे युध्द टाळण्यासाठी दुर्योधनाकडे गेलो नसेन? भग्वद्गीतेमधील न्याय अन्याय, नैतिकतेच्या गोष्टी त्याला सांगितल्या नसतील ?”

“ काय सांगताय देवा? दुर्योधनाला प्रत्यक्ष तुम्ही गीतेचे ज्ञान सांगून देखील त्याला ते कळाले नाही? तो सरळसरळ तुम्हाला उपदेश  करू नका म्हणाला?”

“ वत्सा, अगदी असेच घडले बघ.

दुर्योधन म्हणाला, .मला चांगले वाईट, पाप पुण्य, नैतिक अनैतिक सगळ्याचे ज्ञान आहे. सद्वर्तन आणि दुर्वर्तन यातील फरकही मी जाणतो. त्याचा उपदेश मला करू नका.”

“वत्सा, पाप काय आहे हे दुर्योधनच काय तुम्ही सुद्धा जाणता …पण त्यापासून दूर रहाणे तुम्हालाही जमत नाही. अनैतिकता म्हणजे काय हे दुर्योधनही अन् तुम्हीही ओळखता, पण टाळत नाही. तुमच्यासाठी चांगले काय आहे आणि वाईट काय आहे हे तुम्ही जाणता, पण तुम्ही वाईटाचीच निवड करता. दुर्योधनाने स्वत:च्या वर्तनाची अगतिकता सांगून बदल नाकारला, त्याने स्वत:चा ‘नाकर्तेपणा’ ढालीसारखा वापरला”.

आता मात्र मला दुर्योधनाच्या जागी माझा चेहरा दिसायला लागला .

“मला उपदेश करू नका” वडिलांना उद्देशून हे वाक्य मी शंभर वेळा उच्चारले असेल. मित्रांबरोबर उनाडक्या करणे चुकीचे होते हे मला माहिती होते, पण मी त्याचीच निवड करीत होतो आणि वडिलांना “उपदेश करू नका” असे सांगत होतो.

सकाळी लवकर उठून व्यायामाला जाणे माझ्या फायद्याचे होते हे मला ठावूक होते. पण अंथरुणात लोळत पडणे हे माझे वर्तन होते, आणि “लवकर उठत जा” असे सांगणाऱ्या  आईला “उपदेश करू नकोस” असे सांगणारा “दुर्योधन” मीच होतो.

“तंबाखू खाऊ नका, दारू पिऊ नका, हे उपदेश आम्हाला ऐकायचे नाहीत. त्यामुळे शरीराचे नुकसान होते हे आम्हाला ठाऊक आहे पण त्याची अंमलबजावणी आम्हाला करायची नाही कारण आम्ही ‘दुर्योधन’ आहोत. आम्ही कौरव आहोत.

अर्जुन आणि दुर्योधनात हाच फरक होता की, दुर्योधनाने समजत असूनही स्वत:चे वर्तन बदलले नाही आणि अर्जुनाने स्वत:चे वर्तन श्रीकृष्णाच्या सांगण्यावरून बदलले…

संस्कार, प्रकृती, राग, श्रेय, प्रिय, प्रतिक्रिया, कर्म याबद्दलच्या संकल्पना जाणून घ्या. कधीतरी स्वत:च्या आतल्या श्रीकृष्णाला प्रश्न विचारा …… तरच भगवद्गीता वर्तनात येईल… वाचण्याची इच्छा होईल.

इच्छा होईल तोच  सूर्योदय.

सध्यातरी मी कौरव नंबर “१०१” आहे ….

अन् तुम्ही?

रचना : अनामिक.

संग्रहिका: सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘सांज…’ – भाग – 1 ☆ श्री आनंदहरी ☆

श्री आनंदहरी

?जीवनरंग ?

 ☆ ‘सांज…’ – भाग – 1 ☆ श्री आनंदहरी  

दुपार ढळत आलेली बिछान्यावरून उठतानाच नकोसे वाटत होते. अलीकडे असेच होत होते. झोप लागते असेही नाही पण उठावं असे वाटत नाही. अलीकडे थकवा जाणवत राहतोच. कितीही नको वाटले तरी उठायला हवेच.

स्वयंपाकघरातून तिची हाक आली आणि पाठोपाठ भांड्यांचा आवाज आला.. ‘उठली वाटते.. ‘ ..मनात विचार आला. आता मात्र उठायलाच हवं. उठता उठता नकळत नजर घड्याळाकडे गेली. चार वाजायचे होते. चार ही दुपारच्या चहाची वेळ. ‘ आलो ‘ तिच्या हाकेला उत्तर दिले आणि उठून लोडाला पाठ टेकून बसलो. आता पूर्वीसारखे झटकन उठून आत जाणे जमत नाही. तिलाही आणि मलाही. तिला ते जाणवले होते त्यामुळे पूर्वीसारख्या  एका पाठोपाठ एक अशा हाका ती मारत नाही. मी स्वयंपाक घरात जाई पर्यंत वाट बघत बसते. तिचीही अवस्था तशीच आहे पण ती मला जाणवून मी काळजी करत बसू नये म्हणून आटोकाट प्रयत्न करते. मी समोर दिसलो की ठेवणीतली ताकद वापरून चटपटीतपणे वागायचा प्रयत्न करते.

मला सारेकाही ठाऊक असले तरी मी तसे तिला जाणवू देत नाही. मी आत जाऊन खुर्चीवर बसल्यावर ती चहाच्या आदणात साखर घालते. दुसऱ्या बाजूच्या गॅसवर दूध तापवत ठेवले. अलीकडे तिलाही बसाय-उठायचा त्रास होतोच. तिला किती वेळा सांगितले गॅसचा कट्टा करून घेऊया म्हणून ..  पण ठामपणे नाही म्हणाली. पूर्वी चूल होती तेंव्हा खाली बसून स्वयंपाक करावा लागत होता..तसा फूटभर उंचीचा स्वयंपाक कट्टा होताच. नंतर गॅस आला तेंव्हा गॅस साठी कट्टा करूया म्हणून किती मागे लागलो पण  गॅसवरही खाली बसूनच स्वयंपाक करायचा हट्ट काही तिने त्यावेळीही सोडला नव्हता आणि आत्ता बसाय- उठायचा त्रास हाऊ लागल्यानंतरही हट्ट सोडला नाही.

तिने तिथे बसूनच चहाचा कप माझ्या हातात दिला.

“साखर संपत आलीय. आणायला पाहिजे. “

तिने मला परत आठवण करून दिली. परवापासून तिने मला दोनदा संगितले होते. मी नुसताच हुंकार दिला.

काही महिन्यापूर्वीची गोष्ट असती तर मी लगेच जाऊन साखर आणलीही असती पण मागे एकदा फिरून की दुकानातून काहीतरी घेऊन परत येताना, नेमकं कुठून ते आठवत नाही, पण मला चक्कर आल्यामुळे एकट्याने बाहेर जाण्याएवढाही आत्मविश्वास मला वाटत नव्हता. बरे, दुकानाचे अंतरही थोडे थोडके नव्हते. मुख्य बाजार तर सोडूनच द्या पण जवळचे किराणा दुकानसुद्धा दीड-दोन किमी वर आहे.

मस्त हवेशीर घर हवं..गजबजाटापासून दूर, शांत- निवांत.. मोकळं ढाकळं आवार..स्वतःची छानशी बाग..उजेड, वारा भरपूर..  तिची घराची कल्पना तिने सांगितली तेंव्हाही मला ती आवडली होती. म्हणून तर शहरापासून दूर अशी ही जागा मिळाली तेंव्हा मलाही तिच्याइतकाच आनंद झाला होता. साधेच पण ऐसपैस घर बांधले.  पुढे छानसा व्हरांडा. व्हरांड्यात बसून, अंधाराची रजई हळूहळू हळुवारपणे दूर सारत जागी सकाळ अनुभवत, दूरवरच्या डोंगराच्या कुशीतून अलगदपणे उठत अलिप्त होणारा सूर्य न्याहाळत पहिल्या चहाचा आस्वाद घेणे दोघांनाही आवडायचे. आणि ऑफिस मधून परतल्यावर संध्याकाळचा चहा परसदारी  मावळतीच्या सूर्याच्या साक्षीने कधी नारळ, आंब्याभोवतीच्या पारावर तर कधी  परसदारी तिने खास बांधून घेतलेल्या कट्ट्यावर व्हायचा.  अगणित दिवस असेच उगवले होते आणि असेच मावळले होते.

क्रमशः…

© श्री आनंदहरी

इस्लामपूर जि. सांगली – मो  ८२७५१७८०९९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ ‘वंगण…’ – सौ विदुला जोगळेकर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ ‘वंगण…’ – सौ विदुला जोगळेकर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

सकाळच्या गडबडीत नेमकी ट्रॉली बाहेर ओढताना अडकली…धड ना आत धड ना बाहेर…वैतागच…नेमके चहा साखरेचे डबे आत अडकले…! आतल्याआत चडफड नुसती…आता सुतार बोलवावा लागणार…एवढ्याशा कामाकरता तो आढेवेढे घेणार…नाहीतर बजेट वाढवून या कशा मोडीत काढायला झाल्यात याची गाथा वाचणार…आजकाल मौड्यूलर किचन कसं जोरात चाललय…माझी इकडे कामं आणि तिकडं कामं…सगळं क्षणात मनात आणि डोळ्यासमोरुन तरळूनच गेलं. जोर देऊन जरा ओढून बघितलं तर कड्कट् आवाज काढलाच तिने. लादी पुसायला आलेल्या मावशी म्हणाल्या, खोबरेल तेलाचं बोट फिरवा ताई..कडेच्या पट्टीवर…सरकेल…तात्पुरते तरी निभावेल…!चांगली आयडिया… मी पट्कन तेलाचं बोट फिरवलं…दोन मिनिटांनी ट्रॉली मवूसरपणे आतबाहेर डोकावली…कसलं भारी काम झालं एकदम ! मी एकदम आनंदाने तिला धन्यवाद देत म्हणलं..” बरं झालं बाई वेळेत आलीस….नाहीतर… चहा पावडर विकत आणावी लागली असती…” ती हसली…” वंगण लागतय ताई…थेंबभर पुरतं…पण लागतं कधीमधी…ते मिळालं की सगळं सुरळीत होऊन जातं बघा क्षणात !”

खरंच…वंगण लागतं…!

फक्त मशीन,वस्तूंनाच नाही तर माणसालाही… अगदी त्याच्या देहाइतकच मनालाही,अगदी नात्यांनाही वंगण 

आवश्यक आहे. चार चांगल्या शब्दांचं, आश्वासक स्पर्शाचं, सदिच्छांचं, विचार वाचनाचं, सूरमैफिलींच, श्रद्धा भक्तीचं, नजरेतल्या भावाचं, योगनिद्रेचं, कलाकल्पनेचं…!की जे मनाला मोडकळीस येण्यापासून वाचवतं. मरगळ येऊन कोरड्या ठक्क पडलेल्या वृत्तीवर हे वंगण पूर्ववत जगण्याकडे अलगद घेऊन जातं.

लहानपणी आजी सगळ्या नातवंडांना ओळीत बसवून चहाबरोबर एरंडेल पाजायची…प्यायचं म्हणजे प्यायचं …कितीही आदळापट केली तरी ती तिचा हेका सोडायची नाही. पोट आतड्याचं ते वंगणच आहे…महिना दोन महिन्याने एकदा घेतलं की पोटाचं काम निर्धोक चालू राहतं…आणि तुम्ही मग आबरचबर हादडायला मोकळे…कानात तेल, नाकात दोन थेंब तूप, डोक्यावर बुदलीभर कोमट तेल… शनिवारी रात्रीचा हमखास वंगणाचा कार्यक्रम कित्येक वर्षे आमच्या पिढीने खरं तर अनुभवला. रात्री झोपल्यावर कधीतरी काशाच्या वाटीने तळपाय घासून द्यायची…शरीरातल्या उष्णतेवरचं तिचं ते वंगण होतं.खरं तर जन्मापासून हे वंगण वेगवेगळ्या रुपात आपली सोबत करत राहतं…आपले शारीरिक, आर्थिक, मानसिक मार्ग निर्धोक करत राहतं. कारण स्निग्धता हा भाव ओतप्रोत या वंगणात भरलेला आहे.

जाईल तेथे मऊपण पेरणं, कोरडेपण, गंज मिटवणं आणि पूर्वस्थितीत आणून सोडणं…. हा (स्व) भावच आहे वंगणाचा !

क्षमा, सोडून देणं, माघार घेणं, प्रसंगानुरूप मदतीला जाणं, हळूवार फुंकर घालणं, स्वच्छ शुद्ध अंतःकरणाने समोरच्याशी शांतपणे बोलणं…हेही नाती जपण्यासाठी लागणारं एक प्रकारचं वंगणच आहे.

वंगण नसतं तर जगात फक्त खडखडाटच ऐकू आला असता, असं मला नेहमी वाटतं…जीवनातले स्निग्धांश संपले तर फक्त कोरडेपण उरेल…आणि कोरडेपण क्षणात भस्मसात होऊन जातं ! त्यामुळे जगण्यात येणारे हरएक प्रकारचे वंगण जपणे, प्रसंगी ते वापरणे फार आवश्यक आहे. निर्जीव मशीनसामग्रीला जिथं त्याचं महत्व समजतं, तिथं तुमच्या आमच्यासारख्या जीवांनी ते जाणलंच पाहिजे….त्याचं जतन केलंच पाहिजे…तर जगणं लयीत..सुसह्य…होत राहील ! हो ना…?

लेखिका : सौ विदुला जोगळेकर

संग्राहिका : सौ उज्ज्वला केळकर 

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ भावाचे माहेरपण… ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? वाचताना वेचलेले ?

☆ भावाचे माहेरपण… ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे☆

 “हे काय,चक्क स्वतःचा शर्ट स्वतः इस्त्री करतोयस, यावेळी इस्त्रीवाल्याला नाही का द्यायचा..?” अनुने पर्स टेबलावर ठेवत विचारलं आणि ती पाणी पिण्यासाठी किचनकडे वळली देखील,…

अभी जाम मूडमध्ये ओरडला, ” मै मायके चला जाऊंगा तुम देखती रहीयो,..” पाणी पिताना येणारं हसू दाबत..अनुने हातानेच खुणावलं,..आणि घोट गिळत विचारलं, ” नक्की बरा आहेस ना..?”– अभी अगदी फुल मूड मध्ये,..” हम तो चले परदेस,…हम परदेसी हो गये,..”

आता अनु त्याच्याजवळ जात त्याला दटावत म्हणाली,” अभ्या नाटकं नको हं, पटकन सांग काही दौरा आहे का कम्पनीचा,..?”

“ नाही मॅडम मी खरंच माहेरी चाललोय,..पुण्याला..” अनुने लाडाने त्याला पाठीत हलकी चापट देत म्हटलं,..

” ताईंकडे चाललास ना, मग असं सांग ना,.. हे काय नवीन,.. म्हणे माहेरी चाललो,..”

अभिने शर्टची घडी केली, इस्त्री बंद केली आणि तो वळला अनुकडे, तिचा हात हातात घेऊन म्हणाला..” म्हणू दे मला, हा शब्द छान वाटतोय,..यंदा तू माहेरी गेलीस दिवाळीत,.. मग तायडी आणि माझंच राज्य होतं,.. भाऊबीजेला ओवाळलं तिने मला आणि माझ्या हातात तिने हे तिकिटाचं पाकीट ठेवलं,..” मी म्हटलं, ” अग, मला ओवाळणी देतेस काय,.?”

तर ताई म्हणाली,..” ओवाळणी नाही रे, तुला माहेरपणाला बोलावतीये,..”

मी जोरजोरात हसायला लागलो,.. तसं तिने मला जवळ घेतलं..खूप रडली गळ्यात पडून. म्हणाली, ” आई बाबा गेले आणि तू किती मोठा होऊन गेलास अभ्या,..त्यांची उणीव आम्हाला भासू न देता आमचं माहेर जपत राहिलास,..तुझ्या बायकोचं श्रेय आहे त्यात. पण तिला माहेर तरी आहे,..तुला कुठे रे माहेर,..? कधीतरी मनात खोल दडलेल्या आपल्या लहानपणीच्या आठवणी आपण ज्याच्यासोबत जगलो, त्या उजळवण्याची जागा, माहेर असते,..आई बाबा गेले की पुरुषाची ती जागा नक्कीच हरवते ना..मग मला वाटलं आपण माहेरी जाऊन आलं की तुला माहेरी बोलवायचं- म्हणजे माझ्याकडे.. अनु आली की तू निघणार आहेस..तिकीट मुद्दाम बुक करून दिलंय म्हणजे उगाचच म्हणायला नको,..गाड्यांना गर्दी आहे,..मी वाट बघेन तुझी, “ एवढं सांगून तायडी गेली,..

“ आता मी चाललो माहेरी,.. जाऊ ना राणीसरकार,..?”

अनु म्हणाली, “आता मी तुला इमोशनल ब्लॅकमेल करते,..” नको जाऊस ना माहेरी,मला करमत नाही,..प्लिज, आपण मज्जा करू,..थांब ना,..” एवढं बोलून अनु खळखळून हसायला लागली,..तसं अभिने तिला जवळ ओढलं,.. कुजबुजत्या स्वरात म्हणाला, ” खरंच नको जाऊ का ग..?” अनु म्हणाली, ” जा बाबा जा, जिले तेरी जिंदगी,..तुलाही कळेल काय असतं क्षणभर तरी माहेरी जाणं,.. आपल्या विषयी फक्त प्रेम असणाऱ्या कुशीत शिरून येणं,.. मायेचा हात, आठवणींचा पाट सतत गप्पांमधून वाहणं… सगळी भौतिक सुख एकीकडे आणि हे अनमोल सुख एकीकडे असतं,..”

अभि म्हणाला, ” अस्सं….. मग येतोच हे सुख उपभोगून,..”

अनु त्याला बसमध्ये बसवून आली,.. तिला वाटलं, खरंच भारी कल्पना आहे ही, भावाला माहेरपण करायचं,….तिने लगेच स्वतःच्या भावाला फोन लावला,.. “ ये ना दोन दिवस, अभि गावाला गेलाय, मला सोबत होईल तुझी,..” दुसऱ्या दिवशी भाऊ हजर,..

दोन्हीकडे माहेरपण रंगलं,..बहिणीच्या मांडीवर डोकं ठेवून आठवणींच्या गप्पांना ऊत आला,..कधी झरझर डोळे वाहिले तर कधी खळखळाटाने डोळे गच्च भरून आले,..एक नातं घट्ट होतं, ते आणखी विश्वासाने घट्ट झालं,..भावाचं माहेरपण बहिणीच्या अंगणी फुलून आलं.

संग्राहिका: सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ ‘स्वप्नांचे पंख’ – सुश्री शुभदा भास्कर कुलकर्णी ☆ परिचय – सुश्री गायत्री हेर्लेकर ☆

सुश्री गायत्री हेर्लेकर

 

? पुस्तकावर बोलू काही ?

 ☆ ‘स्वप्नांचे पंख’ – सुश्री शुभदा भास्कर कुलकर्णी ☆ परिचय – सुश्री गायत्री हेर्लेकर ☆ 

लेखिका :  सुश्री शुभदा भास्कर कुलकर्णी

प्रकाशक: अरिहंत पब्लिकेशन, पुणे

पृष्ठसंख्या: १९२

किंमत: रू. 290/-

परिचय – सुश्री गायत्री हेर्लेकर.

साहित्यप्रेमींचा तसेच साहित्यिकांचा आवडता, नव्हे काहीसा जिव्हाळ्याचा साहित्यप्रकार म्हणजे कथा.

छोट्यामोठ्या,वेगवेगळ्या विषयावरच्या कथा वाचकांनाही आवडतात.

अशाच कथांचा समावेश असलेला कथासंग्रह म्हणुन स्वप्नांचे पंख या कथासंग्रहाचा उल्लेख करता येईल..

लेखिका आहेत कोथरुड,पुणे येथील शुभदा भास्कर कुलकर्णी.

त्यांचा भावफुले हा काव्यसंग्रह २०१९ मध्ये प्रकाशित झाला. त्यानंतर हा कथासंग्रह.

या कथासंग्रहात लेखिकेने नुसतीच स्वप्ने दाखवली नाहीत तर त्यांची परिपूर्ती होण्यासाठी –उत्तुंग आकाशातून भरारी घेण्यासाठी  त्यांना पंखांचे बळ दिले. हे स्वप्नांचे पंख या नावावरुन दिसुन येते.

निळ्या प्रसन्न रंगातली मुखपृष्ठ आकर्षक आणि शिर्षकाला साजेसे आहे.

नाव, आशय-विषय, प्रसंग, व्यक्ती, स्थळ, काळ, भाषा या सर्वांची सहजसुंदर, मोहक गुंफण असेल तर कथा मनोवेधक होऊन वाचनाचा आनंद मिळतोच पण त्यातुन जीवनोपयोगी बोधपर संदेश मिळत असेल तर दर्जा अधिक उंचावतो.

या संग्रहातील शुभदाताईंच्या  कथा या कसोटीवर पुरेपुर उतरल्या आहेत हे आवर्जुन नमुद करावेसे वाटते ..अनेक कथा बक्षीसपात्र ठरल्या आहेत हाच त्याचा पुरावा म्हणता येईल.तरीही पुष्ट्यर्थ काही दाखले निश्चितच  देता येतील.

“स्वप्नांचे पंख”ही पहिलीच शिर्षक कथा आहे.,”एक कळी– फुलतांना”,सुवर्णमध्य”,सुखदुःख”,

“सोनेरी वळण”,”फुललेले चांदणे”

“स्मृतीगंध””,”ऊषःकाल”

अशी ही कथांची नांवे नुसतीच आकर्षक नाहीत तर कथेचा आशय -विषय प्रतित करणारी—जणु काही कथांचे आरसेच आहेत.

कथांचे प्रसंगही तसे साधेसुधे, अगदी आपल्या रोजच्या आयुष्यातले.

जसे—तारुण्यसुलभ प्रेम, लग्न, मुलांचे शिक्षण, पुढील  शिक्षणासाठी परदेशगमन, प्रवास, मुलींची छेड, मृत्यु, ई. पण शुभदाताईंनी कथेतुन ते वेगवेगळ्याप्रकारे मांडले आहेत.

त्यातुन  त्यांची चिकित्सक दृष्टी दिसते.

शांता, ईंदिरा, रमा, मुक्ता, माया, चारु, दीपा, राजश्री, मीता, श्रीराम, श्रीकांत, महेश, अनंत, आनंद, सुमित, अमित अशी नवीजुनी नावे असलेल्या वेगवेगळ्या कथेतील अनेक नव्हे सर्वच व्यक्तिरेखा आपल्याभोवती वावरणाऱ्या आहेत.असेच वाचतांना वाटते.

नव्हे आपणही त्यातलेच आहोत असेही वाटते.”स्वप्नांचे पंखमधील” –आई–मानसीचा मनातील धास्ती आपणही अनुभवलेली जाणवते. तर “गोफ–आयुष्याचा” मधील “मुलांकडे जावे की इथेच रहावे” हा निर्णय घेतांना गोंधळलेल्या आईच्या जागी कितीतरी जणी स्वतःलाच पहातील.”

“रंगबावरी” सारखी प्रेमकथा मनाला स्पर्श करुन जाते.

काही कथातुन आलेल्या, मामंजी, सासुबाई, माई, दी, आत्या अशा संबोधनांमुळे आपुलकीचे नाते निर्माण होते.

कथांची पार्श्वभुमी वेगवेगळ्या काळातील आहे. लाल आलवणाचा पदराचा बोळा तोंडात कोंबून हुंदका देणारी आत्या “स्मृतीगंध” मध्ये आपल्या डोळ्यातुन पाणी आणते. तर “सुवर्णमध्य”मधे लग्नाला ठामपणे नकार देणारी, नामांकित सॉफ्टवेअर कंपनीतली  मीता सुखावून जाते. काही कथातुन शुभदाताईंनी. आजीआजोबा.

आईबाबा, नातवंडे अशा तीन पिढ्यांची, केलेली गुंफण मनाला भावते. पण त्याचबरोबर झालेले बदल ही  योग्य प्रकारे टिपले आहेत. “घराचे जुने चिरे एक एक करुन ढासळले पण नव्याने नविन उभे राहिले.” अशा शब्दात केलेले बदलांचे समर्थन मनाला पटते. शुभदाताईंचा समृध्द अनुभवही यातुन दिसतो.

शहरातील कथा नेमक्या पध्दतीने सांगणारी शुभदाताईंची लेखणी गावाकडचे —तिथल्या स्थळांचे वर्णन करतांना जास्त खुलते. शिंगणापूर, बेलापूर अशी गावे. तिथली हिरवीगार शेती, तिथले पाण्याचे तळे, थंडगार पाण्याचा पाट, घुंगरांची गाडी, एस.टी. स्टँड, गणपती, शंभु-महादेवाची देवळे, चौसोपी वाडा, दिंडी दरवाजा, दगडी चौथरा, दारावरची पितळी फुले आणि इतके बारीकसारीक वर्णन वाचतांना ती स्थळे, दृश्य डोळ्यापुढे उभे रहातात. शुभदाताईंचे सुक्ष्म निरीक्षण आणि समर्पक शब्दांतून केलेले वर्णन —दाद देण्यासारखेच आहे.

कथांची एकंदरित बैठक घरगुती असल्यामुळे साध्या सोप्या बोली भाषेचा वापर संयुक्तिक आहे. तरीही अनेक ठिकाणी शब्दसामर्थ्य दाखवणारी वाक्येही आहेत.

“आपल्याला वाटतं त्यापेक्षा जास्तच रुजलाय हा मनात, -अन् मनाच्या गाभाऱ्यातुन हुंकार आला.” -सुवर्णमध्य.

“आयुष्याचे एक एक पदर सांभाळता ,सांभाळता हा एक धागा हातातुन निसटला”.

मध्यमवर्गीयांच्या जीवनात नित्य येणाऱ्या काही अडचणी, समस्या —कथांचा केंद्रबिंदू असल्याने काही कथा नकळत का होईना  थोडाफार संदेश देतात. “संपलं, —संपलं म्हणायच नाही”.

“आपल्या जगण्याचे निर्णय आपण इतरांमार्फत का घ्यायचे?”.

एक खास वैशिष्ठ्य म्हणुन सांगता येईल —

“सकारात्मकता हा सर्वच कथांचा स्थायीभाव आहे. मतभेद, विचारात फरक आहेत, जरुर आहेत. पण वैमनस्य, विरोधामुळे टोकाच्या भुमिका नाहीत, सामंजस्य, आणि परिस्थिती स्विकारुन पुढे आयुष्य जगणे हा महत्वाचा संदेश मिळतो.. आणि तोच सद्यपरिस्थितीत ऊपयुक्त आहे.

कौटुंबिक, सामाजिक, –सर्वच ठिकाणी अनुभवाला येणारी अस्थिरता, असमाधान, यामुळे नैराश्य आणि नकारात्मक भावना. अशावेळी सकारात्मक कथा निश्चितच भावतात. मनाला आनंदित करतात. जगण्याचा दृष्टीकोन बदलतात. म्हणुनच वाचकांच्या पसंतीस उतरेल. 

असा सुंदर कथासंग्रह वाचकांच्या हाती दिल्याबद्दल —-लेखिकेचे मनःपुर्वक अभिनंदन—

एकुण १८ कथा असलेल्या या कथासंग्रहाची पृष्ठसंख्या १९२ असुन किंमत २९०रु.आहे.अरिहंत पब्लिकेशन,*पुणे * यांनी हे पुस्तक जानेवारी २०२२ मध्ये प्रकाशित केले.

©  सुश्री गायत्री हेर्लेकर

201, अवनीश अपार्टमेंट, कोथरुड, पुणे – 411038 

दुरध्वनी – 9403862565, 9209301430 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print