हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #37 ☆ कविता – “इश्क़…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 37 ☆

☆ कविता ☆ “इश्क़…☆ श्री आशिष मुळे ☆

इश्क़ को कब समझोगे

अपने आप से कितना उलझोगे

असीमित को और कितना सीमित करोगे

जिंदगी का और कितना इंतज़ार करोगे

 

ये न कोई करार

न ये कोई व्यवहार

ये न सिर्फ़ इजहार

न ये होना फरार

 

ये वो शरार-ए-इंसानियत

ये वो अरार-ए-शब

ये वो जुबां-ए-कायनात

ये वो दास्तां-ए-हयात

 

ये वो ज़ुल्फों की छांव

या हो दिल की नाव

ये वो खयालों की हवा

या हो लफ्जों की दुआ 

 

ये कभी हाथ में आता है

कभी आंखों में सिमटता है

ये कभी गालों पे खिलता है

कभी बस मन में ही बसता है

 

इससे अनदेखा न करना

कभी इससे दूर न जाना

ये वो अमृत है

जिससे कभी होंठ न चुराना…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ बाल कथा- रहस्यमयी संदूक ☆ इंजी. ललित शौर्य ☆

इंजी. ललित शौर्य

साहित्यिक परिचय

समकालीन हिंदी बाल साहित्य में जो नाम अत्यंत प्रभावी स्तर पर दस्तक दे रहे है, उनमें इंजी. ललित शौर्य अत्यंत उल्लेखनीय है। मुवानी, पिथौरागढ़, उत्तराखंड में 16 जून 1990 को जन्में इंजी. ललित शौर्य की अभिरुचि अध्ययन काल से ही साहित्य में रही है। ललित ने बरेली से बीटेक किया है। श्री जगत सिंह राठौर एवं श्रीमती द्रोपदी राठौर के सुपुत्र इंजी. ललित शौर्य ने कालान्तर में बाल-साहित्य को अपनी रचनाशीलता का केंद्र बनाया और पिछले पांच वर्षों से लगातार लेखन के साथ इस क्षेत्र की श्रीवृद्धि करते आ रहे हैं। उनकी अनेक कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं और लोकप्रियता हासिल करती रही हैं। इसमें बाल भारती, चम्पक, नंदन, देवपुत्र, साहित्य अमृत, बाल किलकारी, बालभूमि, बाल भास्कर, बच्चों का देश, बाल प्रहरी, बच्चों की प्यारी बगिया, उजाला, हंसती दुनिया, वात्सल्य, बाल प्रभात, उदय सर्वोदय, आजकल , हरदौल वाणी, पर्वत पीयूष, प्रमुख हैं।  इसके अतिरिक्त प्रमुख समाचार पत्रों दैनिक जागरण, नई दुनिया, अमर उजाला, सहारा समय, हिंदुस्तान दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, प्रभात खबर आदि में भी नियमित रूप से उनके लेख, लघु कथाएं, व्यंग्य, बाल कहानियां प्रकाशित होती रहती हैं। उनकी बाल कहानी संग्रह ‘दादाजी की चौपाल’ एवं कोरोनाकाल में लिखा गया देश का पहला बाल कहानी संग्रह ‘कोरोना वॉरियर्स’ पर्याप्त चर्चित रहा। इसके अतिरिक्त उनके द मैजिकल ग्लब्ज, फॉरेस्ट वॉरियर्स, स्वच्छता ही सेवा, जल की पुकार, स्वच्छता के सिपाही, जादुई दस्ताने,  गंगा के प्रहरी, गुलदार दगड़िया, परियों का संदेश, बाल तरंग बाल कहानी संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। इंजी ललित शौर्य पूर्ण रूप से बाल साहित्य को समर्पित हैं। उन्होंने “ बच्चों को मोबाईल नहीं, पुस्तक दो” अभियान चलाया है। जिसके माध्यम से अब तक शौर्य विभिन्न माध्यमों से तीस हजार बच्चों तक बाल साहित्य वितरित कर चुके हैं।

बाल साहित्य के प्रति उनकी रचना सक्रियता को समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक संगठनों ने सम्मानित किया है। इनमें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, भाऊ राव देवरस न्यास द्वारा प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान, माध्यम साहित्यिक संस्थान लखनऊ द्वारा ‘सारस्वत सम्मान’, बाल वाटिका पत्रिका का वैभव कालरा राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान, राष्ट्रीय हिंदी परिषद मेरठ द्वारा ‘हिंदी भूषण सम्मान’, माँ सेवा संस्थान लखनऊ द्वारा ‘ ध्रूव सम्मान’, स्वदेशी जागरण मंच उत्तराखंड द्वारा ‘हिंदी सेवा रत्न सम्मान’, बाल प्रहरी द्वारा ‘साहित्य सृजन सम्मान’, राजा राममोहन सेवा आश्रम एवं पर्यावरण सोसायटी द्वारा ‘पर्यावरण मार्तण्ड’ प्रमुख हैं।

इंजी. ललित शौर्य अब तक उन्नीस किताबें लिख चुके हैं। जिनमें 12 बाल कहानी संग्रह, छ: साझा संकलनों का सम्पादन, एक व्यक्तिगत काव्य संग्रह ‘सृजन सुगन्धि’ सम्मिलित है।

1- अपने रचनाकर्म को क्यों अपनाया है?

उत्तर: लेखन में रुझान बचपन से ही रहा है। कहानियां, कविताएं पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता था, पढ़ने की आदत आज भी बनी हुई है। साथ ही लेखन कार्य भी सतत जारी है। मैं बाल कहानी लेखन में अधिक समय दे रहा हूँ। रचना कर्म अपनाने का मंतव्य यही है कि अधिक से अधिक बच्चों तक बाल साहित्य पहुंचा सकूं। आधुनिक मोबाइल वाली पीढ़ी के हाथों में बाल साहित्य की किताबें भी हूँ इसी उद्देश्य से कलम उठाई है। उसी ओर अग्रसर हूँ। अब तक मैंने मोबाइल नहीं, पुस्तक दो अभियान के तहत विभिन्न माध्यमों से 30 हजार से अधिक बच्चों तक बाल साहित्य पहुँचाने का प्रयास किया है।

2- आप भविष्य में इस क्षेत्र में क्या करना चाहते हैं और प्रबुद्ध पाठकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?

उत्तर: बाल साहित्य में अभी करने को बहुत कुछ है। व्यक्तिगत रूप से मुझे अभी बहुत कुछ सीखना। मैं अभी बाल कहानियां, बाल एकांकी , बाल कविताएं लिख रहा हूँ। भविष्य में बाल उपन्यास लिखने का भी मन है।

बाल साहित्यकारों के पाठक प्रायः बच्चे होते हैं।(वैसे तो बड़े भी बाल साहित्य बड़े चाव से पढ़ते हैं।) बच्चों के लिए यही संदेश है कि अधिक से अधिक बाल साहित्य पढ़ें। इससे उनके भीतर पढ़ने और सीखने की आदत विकसित होगी। जो उनके स्वर्णिम भविष्य के लिए मददगार साबित होगी।

☆ बाल कथा- रहस्यमयी संदूक ☆ इंजी. ललित शौर्य

चंपकवन में रहस्यमयी संदूक की बात जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी। सभी जानवर उस संदूक को देखने के लिए उत्सुक थे। नदी किनारे पड़ा वह संदूक आठवां अजूबा बन चुका था।

“मुझे तो वह संदूक जादुई जान पड़ता है। ना बा ना मैं तो उसके पास बिल्कुल भी नहीं जाऊंगा। उसे पैर से छुउंगा भी नहीं। ना ही अपनी प्यारी पूंछ के बाल उस पर लगने दूँगा। क्या पता उसे छूते ही मैं खरगोश बन जाऊं। फिर चीकू की तरह कान खड़े कर ईधर उधर भागना पड़े।” संदूक के पास खड़े जिफर घोड़े ने कहा।

“छूना तो मुझे भी नहीं है। क्या पता उसमें से कोई जादुई राक्षस निकले और उसके गुस्से से मैं घोड़ा बन जाऊं। फिर जिंदगी भर जिफर की तरह मुझे भी दुलत्ती चलानी पड़ेगी।” चीकू ने भी चुटकी ली।

“अरे तुम दोनों बहस करना छोड़ो। ये सोचो कि उस संदूक में आखिर क्या हो सकता है। कहीं उसमें खाने पीने की चींजें तो नहीं हैं। या फिर वह हीरे मोतियों से तो नहीं भरा हुआ है।” सिप्पी सियार बोला।

“ये भी हो सकता है। लेकिन हमें इन सबके सामने उस संदूक को नहीं खोलना है। जब सब यहां से चले जाएंगे तभी हम उसे हाथ लगाएंगे।” बैडी लोमड़ सिप्पी के कान में फुसफुसाया।

यह सुनकर सिप्पी की आंखों में चमक आ गई। उसने जोर से चिल्लाना शुरू किया, ” कोई भी इस संदूक को हाथ नहीं लगाएगा। इसमें कोई भूतिया चीज लगती है। या फिर गोला बारूद भी हो सकता है। सब इससे दूर रहेंगे। हम महाराज शेरसिंह को इस बारे में जानकारी देकर आते हैं। वही इस बात का निर्णय लेंगे की संदूक का क्या करना है।”

सभी जानवर यह बात सुनकर वहां से चले गए। सिप्पी और बैडी वहीं बने रहे। जब चारों ओर कोई नहीं बचा तो सिप्पी ने मौका देख बैडी से कहा, “खोलो संदूक।”

“मैं…मैं… कैसे खोलूं, तुम खोलो।” बैडी ने डरते हुए कहा।

“तुम ही तो बोल रहे थे इसमें हीरे मोती हो सकते हैं।” सिप्पी ने कहा।

“अगर राक्षस या फिर बारूद हुआ तो। मेरी हड्डियों का क्या होगा। मेरी तो यहीं समाधि लग जायेगी।” बैडी ने कहा।

“डरो नहीं। चलो मिलकर खोलते हैं। अगर कीमती सामान निकला तो अपना। नहीं तो संदूक यहीं छोड़कर भाग निकलेंगे।” सिप्पी ने संदूक की ओर बड़ते हुए कहा।

“रुको। किसी लकड़ी की सहायता से संदूक का दरवाजा खोलते हैं। हाथ लगाने का जोखिम उठाना ठीक नहीं है।” बैडी ने अक्लमंदी दिखाई।

बैडी और सिप्पी लकड़ी की सहायता से संदूक का दरवाजा खोलने लगे। बहुत प्रयासों के बाद दरवाजा खुला। दरवाजा खुलते ही उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसमें  लंबी-लंबी जटाएं थी। कुछ कटे हुए सिर थे। संदूक खुलते ही बंद हो गया। एक जटा बक्से से बाहर निकल गई। बैडी यह सब देखकर थरथर कांपने लगा। सिप्पी की सिट्टी पिट्टी भी गुल हो गई। दोनों वहां से दुम दबाकर भागे। उन्होंने सारा हाल राजा शेर सिंह को बता दिया। शेर सिंह भी यह सुनकर चौंक पड़े। उन्होंने तुरंत सेनापति हेवी हाथी को बुलाया। उसे साथ लेकर संदूक को देखने चल पड़े। जब यह बात जंगल के अन्य जानवरों को पता चली तो वे भी साथ हो लिए। थोड़ी ही देर में शेर सिंह, हेवी जिफर, सिप्पी, चीकू, बैडी सभी जानवर उस संदूक के पास पहुंच गए। उन सबने भी संदूक पर लटकती जटा को देखा।

“ये जरूर किसी राक्षस की जटा है। संदूक खुलते ही वह नींद से जाग जाएगा। हमे इस सन्दूक को फौरन जंगल से बाहर कर देना चाहिए।” जिफर हिनहिनाते हुए बोला।

“पहली बार जिफर ने सही बात की है। कहीं इस सर कटे राक्षस ने हमारे सरों का भी फुटबॉल बना दिया तो बड़ी आफत आ जायेगी।” चीकू ने कहा।

सभी जानवर अपनी- अपनी राय रख रहे थे। राजा शेर सिंह और हेवी सभी को बड़ी ध्यान से सुन रहे थे।

अचानक शेर ने दहाड़ मारी। चारों ओर सन्नाटा छा गया। शेरसिंह ने कहा, “हेवी तुम कुछ सुझाव दो।इस संदूक का क्या करना है।”

हेवी ने मुस्कुराते हुए सूंड उठाते हुए कहा, “महाराज अभी इस संदूक का दरवाजा खोल देता हूँ दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।”

“ठीक है। जल्दी करो।” शेरसिंह ने कहा।

हेवी ने जैसे ही संदूक का दरवाजा खोला तो सभी वहां से भागने लगे। लेकिन हेवी जोरजोर से हंसने लगा। उसने सूंड से एकएक कर संदूक में रखी चींजें बाहर निकाली। उसमें राक्षसों के मुखौटे, जटाएं, दाड़ी-बाल रखे हुए थे।

“महाराज लगता है। यह संदूक इंसानी बस्ती से यहां आया है। इसमें उनके द्वारा नाटक में प्रयोग किये जाने वाले मुखौटे हैं। कोई भूत या राक्षस नहीं है।”हेवी ने एक मुखौटा अपने माथे पर रखते हुए कहा।

यह देखकर शेर सिंह भी हंसने लगा। सभी जानवर वापस आ गए। सभी उन मुखौटों और जटाओं को अपने चेहरे पर लगाकर नाचने लगे। राजा शेरसिंह ने ऐलान किया इस बार  जंगल उत्सव में इन्हीं मुखौटों का प्रयोग कर के नाटक किया जाएगा। हेवी की सूझबूझ से संदूक का रहस्य खुल चुका था।

© इंजी. ललित शौर्य

साभार : श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 196 ☆ बाल गीत – चंदा और सूरज ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 196 ☆

बाल गीत – चंदा और सूरज ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

एक सीध में चंदा , सूरज

हमको लगे दुलारे।

एक चमकते स्वर्णिम – से हैं

एक दूधिया न्यारे।।

 

पश्चिम सूरज , प्राची चंदा

कैसा जोड़ा है प्यारा।

माँ के दोनों बेटे अनुपम

गगन घूमते हैं सारा।।

 

दोनों मिलकर पूरे जग में

करते हैं उजियारे।।

 

एक तपस्वी सबको देता

कर प्रकाश जीवन धारा।

दूजा शीतल किरण बिखेरे

सबका ही अतिशय प्यारा।।

 

दोनों कितने हैं उपकारी

हरते कष्ट हमारे।।

 

होते नहीं सृष्टि में दोनों

जग में तम ही गहराता।

सब्जी , दालें , फल ना होते

कभी न जीवन चल पाता।।

 

करें सार्थक हम भी जीवन

बनें आँख के तारे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ स्त्री… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ स्त्री… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

स्त्री जन्मा ही तुझी कहाणी

अबोल होते माझी वाणी

बाल्य अवस्था गोजिरवाणी

कशी मोठी झाली  फुलराणी

*

भाग्य लाभले स्त्री जन्माचे

समर्पित भाव भोगण्याचे

उजळीत पणती सौभाग्याची

गायलीस तू ती पण गाणी

*

तुझ्या उदरी रामकृष्ण ही

तुझ्याच कुक्षी छत्रपती ही

झाशीची तू लढलीस राणी

तूच लिहली तुझी कहाणी

*

कधी कधी मग ह्रदय द्रवते

काळीज आतून का फाटते

निर्भया रस्त्यात जिवंत जळते

जीवन होते मग अनवाणी

© प्रो डॉ प्रवीण उर्फ जी आर जोशी

ज्येष्ठ कवी लेखक

नसलापुर  बेळगाव

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ खेड्यातील स्त्री जीवन… ☆ सौ.वनिता संभाजी जांगळे ☆

सौ.वनिता संभाजी जांगळे

🌸 विविधा 🌸

खेड्यातील स्त्री जीवन… ☆ सौ.वनिता संभाजी जांगळे ☆

कुटूंबाचा भक्कम आधार मानली जाणारी खेड्यातील स्त्री ही नोकरी करणार्‍या अथवा शहरी स्त्रीच्या दोन पावले पुढेच असते .आपला देश हा शेतीप्रधान देश मानला जातो. तसे पाहिले तर शेतीविषयक ग्रामीण स्त्रीचे योगदान खुपच अमुल्य आहे. खेड्यातील स्त्री ही जास्त करून आपल्या रानात रमलेली असते.तिच्या कष्टाळू आणि धैर्यवान वृत्तीतून ती आपले घर आणि शेत दोन्ही सावरत असते .खेड्यातून पाहिले तर जास्त करून कुटुंबाचे प्रतिनिधित्व हे त्या कुटुंबातील स्त्रीच करते. कुटुंबाचे पालनपोषण  , तसेच आर्थिक नियोजन या गोष्टी ग्रामीण स्त्री मोठ्या धैर्याने पार पाडते.

खेड्या-पाड्यातून पाहिले तर सरसकट स्त्रीया या शेतावर राबताना दिसतात. यातील बर्‍याचजणी तर दुसर्‍याच्या शेतावर मोलमजूरी करून आपल्या कुटुंबाचे पालनपोषण करतात. आपल्या कुटुंबावर येणाऱ्या प्रत्येक संकटांचा सामना त्या मोठ्या धैर्याने करत असतात. पिकणाऱ्या शेतमालातून  किंवा मोलमजूरीतून, तसेच दुग्ध व्यवसाय, कुक्कुटपालन इत्यादी मार्गातून पैसा उपलब्ध करून खेड्यातील स्त्री आथिर्क नियोजन करते.   आपल्या कुटुंबाची आर्थिक नियोजनाची घडी ती उत्तम बसवते.

ग्रामीण भागातून निरीक्षण केले तर काही अपवाद ओघळता ग्रामीण स्त्रीच आर्थिक व्यवहार संभाळताना निदर्शनास येते. त्यामुळेच तीआपल्या कुटुंबाचा भक्कम आधार असते. मोठ्या चतुराईने आणि नियोजनबद्ध नेतृत्व यातून ती आपले कुटूंब आर्थिकदृष्टय़ा सुरळीत चालविते. कुटूंबाची काही कारणाने विस्कटलेली घडी  ,सुरळीत करणे हे कौशल्य जणू ग्रामीण स्त्रीच्या अंगी रूळलेले असते. त्यानुसार ती स्वतःला आपल्या कुटुंबासाठी सर्वस्व वाहून देते.

खेड्यातील स्त्री ही फक्त कष्टाळूच असते असे नाही. ती प्रेमळ, मनमिळाऊ सुध्दा असते. शेतावर एकत्र राबताना एक भाजी चारचौघीत वाटून खाण्याची तिला सवय झालेली असते. त्यामुळे ग्रामीण स्त्रीमध्ये मदतीचा हात पुढे करण्याची भावना शहरातील स्त्रीयांच्या तुलनेत जास्त असते.  एकमेकींच्या प्रसंगाना, गरजेला उभे रहाण्यास त्या क्षणाचाही विचार करत नाहीत. अनेक सण , उत्सव , सांस्कृतिक कार्यक्रम खेड्यातील स्त्रीया एकत्र येऊन साजरे करतात. यासर्वाचा आनंद देखील घेतात. या सर्वात त्यांचा  सहभाग आणि आनंदाचा वाटा जास्त असतो. हे सर्व त्यांना शेतीवाडीने दिलेले असते. शेतात टोकणी,भांगलण ,सुगी करत असताना  अनेकजणी एकत्र येतात. शेतात राबताना एकमेकींजवळ व्यक्त होतात.एक दुसरीच्या सुख-दुःखाच्या भागीदार होतात. हे सर्व शहरातील स्त्रियाच्या वाट्याला येत नसते. शहरातील स्त्रीचे जीवन एका विशिष्ट चाकोरीतून जाते.तिला घड्याळाकडे पाहून कामे करण्याची सवय झालेली असते. ग्रामीण स्त्रीच्या जगण्याचा परीघ विस्तृत असतो.  पहाटेला उठून ती आपल्या दैनंदिनीत मग्न होते सकाळपासून ते दिवस मावळेपर्यत तिचे हात रानासी बांधलेले असतात.  आलेल्या संकटाना तोंड देतादेता या तिच्या संघर्षमय जीवनवाटाच तिला खंबीर , साहसी कष्टाळू, चातुर्यवान बनवितात.

खेड्यातील स्त्री कोणत्याच परिस्थितीत आपल्या कुटुंबाची वाताहात होऊन देत नाही. कुटुंबाला आर्थिकदृष्ट्या प्रबल ठेवण्यास तिची धडपड असते. ती काटकसर करून आर्थिक नियोजन ठेवते. येणारे सण, उत्सवात मोठेपणाची अवाढव्यता न दाखविता ती आपल्या ऐपतीनुसार सण साजरे करते. यामध्ये ती स्वतः आनंदात रहाते आणि आपल्या कुटुंबालासुध्दा आनंदी ठेवण्याचा प्रयत्न करते. आजची ग्रामीण स्त्री ही आपल्या मुलांच्या शिक्षणाच्या बाबतीत सुध्दा तत्पर झाली आहे. त्यामुळेच खेड्यातील मुले सुध्दा आज उच्चशिक्षित होत आहेत इतकेच नाहीआपल्या मुलीच्या शिक्षणाचा सुध्दा ती सकारात्मक विचार करत असते. अर्थात ग्रामीण स्त्रीदेखिल प्रगतशील वाटचाल करत आहे.  ती आपले कुटूंब एकसंध मायेच्या धाग्यात बांधून ठेवते.

आपले दुःख  ,वेदना  ,येणारी संकटे याचा ग्रामीण स्त्री कधी त्रागा करत नाही. यासगळ्याची घुटकी घेऊन ती जगत असते.  तिला तशा जगण्याची जणू सवय झालेली असते. त्यामुळे येणारी संकटे झेलण्याची क्षमता ग्रामीण स्त्रीमध्ये जास्त असते. तिचा बहुतांश वेळ शेतावर जातो. आपले कुटुंब  ,शेती  ,पाऊस या गोष्टीत ती रमलेली असते. फडक्यात बांधून आणलेली भाजी भाकरी ती शेताच्या बांधावर बसून समाधानात खाते.

कुणास ठाऊक ‘ जागतिक महिला दिन ‘ त्या खेड्यातील,  रानात राबणाऱ्या बाईला  माहित आहे की नाही. तिच्यासाठी प्रत्येक दिवस कष्टाला सोबत घेऊन उगवतो आणि रानासोबत समाधानाने मावळतो. “येणारा प्रत्येक दिवस जी अनेक बुध्दीकौशल्यानी  आपलासा करते , तिच्या कार्यास सलाम असो आणि तिच्या आयुष्यातील प्रत्येक दिवसाला खुप खुप शुभेच्छा ”

“जागतिक महिला दिनाच्या ” सर्व महिलांना शुभेच्छा

© सौ.वनिता संभाजी जांगळे

जांभुळवाडी-पेठ, ता. वाळवा, जि. सांगली, दुरभाष्य क्रमांक-९९२२७३०८१५

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ वेंकीचा सल्ला— भाग-२ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली ☆

श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

? जीवनरंग ❤️

☆ वेंकीचा सल्ला— भाग-२ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

(एका वाटणीच्या संदर्भात एक पंच म्हणून गेलो होतो आणि भरीस भर म्हणून ह्याच दरम्यान माझा ‘सल्ला’ मागण्यासाठी तू हे पत्र लिहालंस. नाही तर अस्मादिकांस कोण विचारतो? असो.) – इथून पुढे 

पहिल्यांदाच खुलासा करतो, पत्रातील हा मजकूर म्हणजे एखाद्या पोक्त व्यक्तीचा सल्ला वगैरे आहे असा गैरसमज करून घेऊ नकोस. माझा सल्ला फक्त मित्रत्वाचा सल्ला असेल. साप्ताहिकांतून व्यावसायिक दृष्ट्या चटपटीत वाटणारा ‘वहिनींचा सल्ला’ वा ‘ताईंचा सल्ला’ नव्हे हे लक्षात ठेव. केवळ तुझ्यासाठी म्हणून हा पत्र प्रपंच. 

खरं सांगायचं झालं तर, संसाराचा गाडा सुरळीत चालवण्याचा रामबाण उपाय अजूनपर्यंत तरी कुणालाही सापडलेला नाही. प्रत्येक माणसाच्या हाताचे ठसे जसे वेगळे असतात तसा प्रत्येकाचा संसारही वेगळा असतो. अमुक एखाद्याचा संसार सुरळीत चालेल की रखडत राहील हे कधीच सांगता येत नाही. 

कॅलिडोस्कोपमध्ये एखादा काचेचा तुकडा टाकून हलवला तर आतील रंग आणि नक्षीकाम बदलत जातात. माणसांची व्यक्तिमत्वे देखील कॅलिडोस्कोप मधील काचेच्या तुकड्यांसारखे प्रत्येक भूमिकेनुसार रंग बदलत जातात. 

ऑफिसात खडूस म्हणून ख्याति असलेला पुरूष घरात बायको आणि मुलांशी फार प्रेमाने वागतो. आई बाबांची लाडकी, भावाची प्रेमळ बहीण आणि सगळ्याच नात्यांत प्रिय असणारी स्त्री, नवर्‍याची पत्नी म्हणून आदर्श असेलच असे नाही. बाहेर मनमिळावू असलेला पुरूष घरात आदर्श पति असेलच असे नाही. कारण माणूस हा यंत्र नाही. त्यामुळे तो कधी कसे वागेल हे सांगता येत नाही. 

पत्नी किंवा पती ही एक व्यक्ति आहे. तिला आणि त्याला स्वतंत्र भावभावना, आवडीनिवडी, अपेक्षा  असतात बहुतेक लोक हेच विसरतात आणि दोघांमधला ‘स्व’ जागृत झाला की, विसंवाद सुरू होतो. सूर जुळले तर मैफल जशी रंगत जाते, तसंच संसारातही सूर जुळावे लागतात. 

ज्या जोडीदारांत समंजसपणा असतो त्यांच्यात वाद कमी प्रमाणात होतात. पण कधीच भांडण किंवा एकमेकात मतभेद झालेले नाहीत, असे जोडपे या भूमंडलावर सापडणे अवघड आहे हे मात्र नक्की. दोन भिन्न वातावरणात वाढलेल्या व्यक्ती एकत्र आल्या की, प्रत्येक गोष्टीत फरक असणारच. संसार ही एक तडजोड असते. कधी त्याला तर कधी तिला थोडंफार बदलावेच लागते.

यशस्वी वैवाहिक जीवन हे योग्य जोडीदारावर अवलंबून नसून आपण स्वत: चांगला जोडीदार असणं किंवा होण्याचा प्रयत्न करणे यावरही संसाराची यशस्विता असते. लग्नगाठी स्वर्गात बांधल्या जातात असे म्हणतात पण स्वर्ग काही कुणी पाहिलेला नसतो. तो इथेच निर्माण करायचा असतो. हाती आलेला डाव नीट मांडला तर कोणत्याही प्रकारचं लग्न यशस्वी होऊ शकते. मात्र ही आनंद टाळी एका हाताने वाजत नाही.

आज सौ. वहिनी देखील नोकरी करतात. घर आणि नोकरी ही दोन्ही अवधानं सांभाळताना त्यांची किती त्रेधातिरपिट उडत असेल याचा कधी विचार केलायस का? नाही, अर्थात ती तुझी वृत्ती नाही. तुलाही परिस्थितीनुसार थोडं बदलायला हवं. लग्नाआधी तुला प्रत्येक गोष्टीत स्वतःच निर्णय घ्यायची सवय असेल. पण लग्नानंतर मी म्हणेन तीच पूर्व दिशा असं म्हणणार्‍या जोडीदारासोबत कुणाचंच पटत नाही. एकमेकांचं म्हणणं शांतपणे ऐकून निर्णय घेणं तर गरजेचं आहे. तुमची मतं कुठं जुळत नाहीत त्यावर दोघं मिळून चर्चा करा. त्यामुळे कदाचित आपली ताठर भूमिका लवचिक होण्याची शक्यताही असते. 

तुम्ही बोलायला कशी सुरुवात करता त्यावर त्याचा शेवट अवलंबून असतो. उद्धटपणे बोलण्याने समस्येतून तोडगा निघण्याची शक्यताच नसते. कित्येकदा पती-पत्नीतील वादाचं कारण इतकं क्षुल्लक असतं की त्यावर त्यांनी शांतपणे विचार केला की आपण विनाकारण ह्या गोष्टींसाठी भांडत बसलो हे त्यांच्या लक्षात येते.   

जिथे आई-वडीलांमध्ये वैचारिक सामंजस्य असते त्या घरातील मुले मनाने निकोप असतात. पती-पत्नीच्या संबंधातील ताणतणावाचे पडसाद मुलांवर पडतातच. मुलांच्या अभ्यासाकडे लक्ष देणं ही तुझीदेखील जबाबदारी आहे. काचेच्या वस्तूंना तडा जाऊ नये म्हणून ‘ग्लास, हॅंडल विथ केअर’ अशी सूचना असते, तसंच कुटुंबातील आनंद टिकवून ठेवण्यासाठी दोघांनीही काळजी घ्यायला हवी.

कुणाच्या सल्ल्याने कुठलेही संसार तरत नसतात. आपला मार्ग आपणच काढावा. या पत्र वाचनाच्या शिक्षेनंतर यापुढे तरी ‘वेंकीचा सल्ला’ टाळशील अशी अपेक्षा करून रजा घेतो. पत्रोत्तराची वाट पाहतो. 

चार ओळीत या पत्राचं उत्तर आलं. ‘आम्ही उभयता तुमचे आभारी आहोत. यापुढे ह्या विषयावर तुमच्या सल्ल्याची आवश्यकता भासणार नाही ह्याची खात्री देतो. सहकुटुंब नागपूरला या. तुमचे स्वागत करायला आम्हाला आवडेल.’ 

त्यानंतर मात्र माझा सल्ला कुणी मागितला नाही. मागितले असते तर याच पत्राची छायांकन प्रत पाठवून दिली असती.  

मागच्या वर्षी वसंता सहकुटुंब दक्षिण भारत सहलीला चालला होता. आधीच कळवल्याने बेंगलूरू स्टेशनवर त्यांची भेट घेतली. अर्ध्या तासाच्या भेटीत त्या उभयतांना काय बोलू अन काय नको असं झालं होतं. मी सहज विचारलं, ‘वसंता प्रमोशनसाठी प्रयत्नच केला नाहीस वाटतं.’ 

त्यावर वसंता म्हणाला, ‘हे बघ वेंकी, माणसाला काय हवं असतं रे? आम्ही दोघेही कमावतो. वसुधासारखी समंजस जोडीदार मिळाली. चांगल्या मार्कांनी पास होणारी मुलं आहेत, स्वत:चं असं एक छोटेसे घर आणि महत्वाचे म्हणजे माझ्या आईवडिलांचं कृपाछत्र माझ्या डोक्यावर आहे ह्यातच मी समाधानी आहे.’ 

तितक्यात गाडीने शिट्टी दिली. एवढ्या प्रवासाच्या दगदगीत देखील वहिनींच्या चेहर्‍यावर एक असीम तृप्ती दिसत होती. वसंताचे आई वडील नातवांशी गप्पा मारण्यात मश्गुल होते. गाडीने गती घेतली. थोड्याच वेळेत वसंताचा हेलकावणारा हात माझ्या नजरेआड झाला. त्यानंतर आमची भेट झाली नाही. परंतु वसंता व्हॉट्सअपच्या सौजन्याने, मला कित्येक  उपदेशपर संदेश नियमितपणे पाठवत असतो.

– समाप्त –

© श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

बेंगळुरू

मो ९५३५०२२११२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “पिवळं विमान…” ☆ श्री मंगेश मधुकर ☆

श्री मंगेश मधुकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ “पिवळं विमान…” ☆ श्री मंगेश मधुकर 

अपघातामुळे सक्तीची विश्रांती घ्यावी लागली.प्रचंड बोर झालेलो पण नाईलाज.मित्राचा फोन आला “काय रे,काय उद्योग करून घेतला.”

“विशेष नाही.छोटासा अक्सीडेंट झाला”

“काही सीरियस नाही ना”

“अं हं,मुका मार जास्त लागलाय.”

“नक्की काय झालं.” 

“पिवळ्या विमानानं धावती भेट घेतली.”

“कुठल्या विमानानं??”

“पिवळ्या.रोज सकाळी लेकीला शाळेत सोडायला जातोस तेव्हा पाहिलं असशीलच की….”

“कशाला डोक्याची मंडई करतोस.नीट सांग नाहीतर फोन ठेवतो”मित्र वैतागला.

“अरे स्कूल व्हॅनची धडक बसली”

“असं स्पष्ट बोल की,उगीच विमान वगैरे कशाला??”

“बस,व्हॅन,रिक्षा रस्त्यावर सकाळी विमानाच्या स्पीडनं तर पळतात.” 

“हो रे,कशाही गाड्या चालवतात.भीतीच वाटते.खरंच रस्त्यावरची विमानच.काहीतरी करायला पाहिजे.”

“एक कल्पना आहे.तुझी मदत पाहिजे”

“नक्की!!काय करायचे ते बोल.”

“व्हिडिओ शूट करायचयं.कुठं,कधी,कसं ते सांगतो.आपल्या भागातील प्रसिद्ध शाळेच्या प्रिन्सिपलची अपॉईटमेंट मिळालीय.सोबत येतोस का”

“डन,काळजी हे”मित्राने फोन ठेवला.ठरल्याप्रमाणं प्रिन्सिपलांना भेटलो.उपक्रमाची माहिती दिली.त्यांनीसुद्धा लगेचच  सहकार्य करण्याची तयारी दाखवली आणि कार्यक्रम ठरला. 

रविवारी सकाळी शाळेच्या हॉलमध्ये प्रिन्सिपल,शिक्षक,पालक प्रतिनिधी आणि सुमारे पंचवीस स्कूल बस,व्हॅन,रिक्षाचे ड्रायव्हर जमले होते.नक्की कसला कार्यक्रम आहे याविषयी सर्वांच्या चेहऱ्यावर उत्सुकता होती.“पिवळं विमान” व्हाटसप ग्रुपमध्ये ऍड केल्याचं प्रत्येकाच्या मोबाईलवर नोटिफिकेशन आल्यावर आपसात चर्चा सुरू झाल्या.तितक्यात प्रिन्सिपल मॅडमनी बोलायला सुरवात केली.“आज सुट्टी असूनही आपण उपस्थित राहिलात त्याबद्दल खूप खूप आभार.एका चांगल्या कारणासाठी ग्रुप तयार केलाय.कृपया कोणीही ग्रुपमधून बाहेर पडू नये.आज इथं का जमलोय,काय करायचं सर्व प्रश्नांची उत्तरे मिळतील.जास्त वेळ घेणार नाही.”प्रिन्सिपल मॅडमनी थोडक्यात प्रास्ताविक करून कार्यक्रमाची सूत्र माझ्याकडं दिली.वॉकरच्या आधारानं उभं राहत बोलायला सुरवात केली. “पुन्हा एकदा तुमचे खूप खूप धन्यवाद!!नवीन ग्रुपवर शॉर्ट व्हिडिओज पाठवलेत ते आधी पहा.नंतर बोलू” व्हिडिओ बघितल्यावर चूळबुळ सुरू झाली. 

“हे काय आहे”वैतागलेल्या एकानं विचारलं.

“आपल्याच शाळेच्या गाड्यांचे गेल्या आठ दिवसातले व्हीडिओज.” माझ्या उत्तरावर एकदम गदारोळ सुरू झाला. काही ड्रायव्हर तावातावानं,ओरडून बोलायला लागले. 

“आम्ही आमचं काम प्रामाणिक पणे करतो आहोत.उगीच चुकीची माहिती पसरवू नका.”

“बदनामी करण्यासाठी बोलावलंयं का?तसं असेल तर आम्ही पण गप्प बसणार नाही.”

“सगळी पोरं सेफ आहेत.तरी सुद्धा असले विडिओ कशाला दाखवता”

“रस्ता म्हटल्यावर किरकोळ गोष्टी होणारच.आम्ही व्यवस्थितच गाड्या चालवतो.”

“पोटच्या पोरांइतकीच गाडीतल्या मुलांची काळजी घेतो.”

“उगीच शाळेच्या आणि पालकांच्या मनात काहीबाही भरून देऊ नका”

“तुम्ही कोण कुठले.शाळेशी काय संबंध” चिडलेले ड्रायव्हर संतापून बोलत होते.प्रिन्सिपल मॅडमनी विंनती केल्यावर सगळे शांत झाले.मी पुन्हा बोलायला सुरवात केली“सर्वप्रथम एक गोष्ट क्लियर करतो की इथं कोणाला दोष देण्यासाठी किवा जाब विचारण्यासाठी हा कार्यक्रम नाहीये.”

“मग हे व्हिडिओ कशासाठी?.मुलांची काळजी घेतो.त्यांचे लाड करतो ते दिसलं नाही का?”एकाच्या बोलण्यावर बाकीच्यांनी ‘बरोबरयं’ म्हणत माना डोलावल्या. 

“तुमच्याविषयी तक्रार नाही परंतु हे व्हिडिओज सुद्धा वस्तुस्थिती आहे.”

“आधी तुम्ही कोण ते सांगा.”

“पंधरा दिवसांपूर्वी सकाळी स्कूल व्हॅननं मला उडवलं. नशीब बलवत्तर म्हणून पायावर निभावलं.”

“रस्त्यावर अपघात होणारच.नेहमी दोष ड्रायव्हरचा नसतो”

“शंभर टक्के मान्य.माझ्या केसमध्ये ड्रायव्हर खूप घाईत,मोबाइलवर बोलत गाडी चालवत होता.”

“मग त्याच्यावर कारवाई करायची.”

“पण त्यानं मूळ प्रश्न सुटणार नाहीये.”

“एकानं चूक केली म्हणून सगळे वाईट नसतात.”

“रोज रिस्क घेऊन ओव्हरटेक करता,गरज नसताना कट मारता,रॉंग साइडनं गाडी घुसवता,गाडी सोबत फोनही चालूच असतो.हे खूप धोक्याचं आहे.आतापर्यंत काही गंभीर घटना झाली नाही परंतु यापुढे कधीच होणार नाही ही खात्री नाही.त्यात गाडीत लहान मुलं असतात.बेफाम गाडी चालवून त्यांच्यासमोर काय आदर्श ठेवत आहोत.याचा जरा विचार करा.सर्वांना विनंती आहे की विनाकारण जीव धोक्यात घालू  नका.” 

“पुढे काय होईल याची गॅरंटी कोणीच देऊ शकत नाही.” 

“करेक्ट पण काळजी घेणं तर आपल्या हातात आहे.वेळ गाठण्याससाठी म्हणून मन मानेल तशी गाडी चालवणं बरोबर नाही.स्वतःबरोबर  अनेक पालकांचा काळजाचा तुकडा तुमच्यासोबत असतो त्याचाही जीव पणाला लावता.” बोलण्याचा परिणाम तात्काळ दिसला.हॉलमध्ये चिडिचूप शांतता पसरली.

“माफ करा.साहेब.तुमचं बोलणं ऐकून डोळे उघडले.”एकजण हात जोडत म्हणाला. 

“तुम्ही माफी मागावी म्हणून नाही तर बेदरकारपणे सुसाट वेगानं जाणाऱ्या गाड्या पाहून पोटात गोळा येतो.तसंही आता घराबाहेर पडलं की जीव मुठीत घेऊनच फिरावं लागतं.हे अनेकांचं मत आहे.मला ठेच लागल्यावर लक्षात आलं की नुसती चडफड करण्यापेक्षा तुमच्याशी एकदा संवाद साधावा म्हणून हा कार्यक्रम आयोजित केला.कोणावरही टीका करण्याचा हेतू नाही.कृपया गैरसमज करून घेऊ नये, ही नम्र विनंती आणि मनपूर्वक धन्यवाद!!”

“साहेब,आजपासून आम्ही काळजी घेऊ.हा ग्रुप आता आम्ही चालवू.आमच्या गाड्यांना तुम्ही दिलेलं “पिवळं विमान” नाव भारीयं.आता गाडीचा स्पीड वाढला की हे नाव नक्की आठवेल आणि आपसूकच कंट्रोल होईल.”ड्रायव्हरच्या दिलखुलास बोलण्यावर ‘हो, हो’ म्हणत सगळे मोठ्यानं हसले.

© श्री मंगेश मधुकर

मो. 98228 50034

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ अमीन सयानी — ☆ श्री प्रसाद जोग ☆

श्री प्रसाद जोग

🌈 इंद्रधनुष्य 🌈

☆ अमीन सयानी — ☆ श्री प्रसाद जोग ☆

अमीन सयानी

नुकतीच अमीन सयानी यांचं वयाच्या ९१ व्या वर्षी हृदयविकाराच्या धक्याने निधन झाल्याची बातमी आली आणि बिनाका गीतमालाचे दिवस आठवले.

अमीन सयानी यांचा ‘बहनों और भाईयों ’ हा आवाज रेडिओमधून आला की दर बुधवारी लोक सरसावून बसायचे ,कारण बिनाका गीतमाला सुरु व्हायची. कोणताही कार्यक्रम असुदे , तो रंगतदार व्हायला पाहिजे तर त्याचा निवेदक देखील तसाच हुशार, अभ्यासपूर्ण असला पाहिजे म्हणजे कार्यक्रम उत्तरोत्तर रंगत जातोच जातो.

एके काळी याच अमीन सयानीनी ‘आवाजकी दुनियाके दोस्तो’ अशी स्नेहपूर्ण साद घालून रसिकांच्या मनावर आणि हृदयावर ‘बिनाका गीतमाला’ या प्रचंड लोकप्रिय कार्यक्रमाच्या माध्यमातून अनेक वर्ष राज्य गाजवलं होत. तोच लाघवी, आर्जवी आवाज अजूनही मंत्रमुग्ध करतो.गेली कित्येक वर्ष मा.अमीन सयानी हे पडद्यामागे राहूनच श्रोत्यांचं मनोरंजन करत होते.

नभोवाणीवरील निवेदकांच्या बाबतीत जेव्हा चर्चा सुरू होते तेव्हा एका नावापुढे सर्वजण नतमस्तक होतात तो आवाज असतो अमीन सयानीचा. “जी हाँऽऽ प्यारे बहेनों और भाईयों, तो अब अगली पायदानपर पेश होने जा रहा है…” असा आवाज ऐकला, की आजही तो काळ सर्रकन डोळ्यांपुढे चमकून जातो. थोडीथोडकी नाही तब्बल ४२ वर्षे त्यांनी ‘बिनाका गीतमाला’चे प्रसारण केले.

आकाशवाणीच्या इतिहासातील हा सर्वात लोकप्रिय कार्यक्रम ठरला. या माध्यमातून भारतीय सिनेमाला घराघरापर्यंत पोचवण्यात अमीन सयानींचा फार मोठा सहभाग होता . त्यांनी रेडीओवर अनेक प्रायोजित कार्यक्रम केले. त्या काळातील सर्वच कार्यक्रम ‘लाजवाब’ होते. एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा, सॅरीडॉन के साथी, शालीमार सुपरलॅक जोडी, बोर्नव्हिटा क्वीज कॉन्टेस्ट, मराठा दरबार की महकती बाते, रिको मुस्कुराहटे.

जाहिरात आणि विपणन या शब्दांची जादू समाजापर्यंत पोचायच्या कितीतरी वर्षे अगोदर अमीन सयानी यांनी ती आयडिया यशस्वी करून दाखवली होती. १९५२ सालापासून रेडिओ सिलोनवर त्यांचा ‘बिनाका गीतमाला’ हा कार्यक्रम सुरू झाला. आजच्या पिढीला कदाचित खोटे वाटेल पण प्रत्येक बुधवारी रात्री ८ वाजता रस्ते निर्मनुष्य असायचे. सारा देश त्यावेळी फक्त आणि फक्त बिनाका ऐकत असायचा. श्रोत्यांशी मनापासून साधलेला संवाद, सोपी-सुलभ भाषाशैली, उत्कंठा वाढवणारे रसाळ निवेदन आणि सोबतीला सिनेमाच्या अस्सल सुवर्णकाळातील गाणी! रसिकांचे या स्वराशी नाते जुळले ते कायमचेच.

साठच्या दशकात एकदा ‘बिनाका’ सादर करताना एका पित्याने त्यांना पाठवलेले पत्र त्यांनी वाचून दाखवले. त्या पित्याचा एकुलता एक मुलगा काही कारणाने रुसून घर सोडून गेला होता. आईवडील खूप दु:खात होते. त्या काळात संपर्काची माध्यमे अतिशय कमी होती. त्या कुटुंबाला ‘बिनाका’ ऐकायची भारी आवड होती. त्या पित्याने अमीनभाईंना विनंती केली, की जगाच्या पाठीवर माझा मुलगा कुठेही असला तरी बिनाका ऐकल्याशिवाय राहणार नाही. तुम्ही या कार्यक्रमातून त्याला घरी परतण्याचा सल्ला द्या. तो जरूर तुमचे ऐकेल. अमीन सयानी यांनी ते पत्र वाचून दाखवले. आणि काय आश्चर्य! महिन्याभरात त्या पित्याचे पत्र आले, मुलगा सुखरूप परत घरी आल्याचे.

त्या वेळेस तर गाणी ऐकण्याची साधने कमी होती . गाणी ऐकायची तर सिनेमाला जाऊन बसायचं नाही तर रेडिओ सिलोन ऐकायचा, कारण केंद्रीय माहिती व नभोवाणी खात्याचे मंत्री डॉक्टर बी. व्ही. केसकर यांनी ऑल इंडिया रेडिओवर सिनेसंगीत वाजवण्यास बंदी घातली होती. त्याचाच फायदा सिलोनला मिळाला.’’हिंदी चित्रपट संगीताच्या इतिहासात बिनाका गीतमाला ‘माइलस्टोन’च्या रूपाने उभी आहे आणि अमीन सयानी त्याचे अविभाज्य घटक. ३ डिसेंबर १९५२ ला बिनाका गीतमाला सुरु झाली आणि चित्रपटसंगीताची थक्क करून सोडणारी अफाट लोकप्रियता जगासमोर आली.

मा.अमीन सयानी  सांगत असायचे  ‘‘त्या वेळेस ‘हिट परेड’ नावाचा इंग्लिश कार्यक्रम रेडिओ सिलोनवर होत असे. सहज एक कल्पना निघाली, हाच कार्यक्रम हिंदीतून पेश केला तर! एक प्रयोग म्हणून गीतमाला सुरू झाली. सात-आठ गाणी वाजवायची त्यांची क्रमवारी बदलून, लोकप्रियतेनुसार त्यांना नंबर देऊन ऐकणाऱ्यांनी जॅकपॉट जिंकायचा. त्या वेळेस टपाल, पत्रं एवढं एकच माध्यम होतं. रेडिओ सिलोनच्या अधिकाऱ्यांनी चाळीस ते पन्नास पत्रांची अपेक्षा ठेवत यंत्रणा सज्ज केली होती. प्रत्यक्षात नऊ हजार पत्रं आली. हा धक्का जोरदार होता आणि पहिलं वर्ष संपता संपता पत्रांचा आकडा प्रत्येक आठवडय़ाला साठ हजारांपर्यंत पोहोचला.’’

बिनाका गीतमालाचा इतिहास मा.अमीन सायानी यांना पाठ होता . शंकर जयकिशन, नौशादपासून मदनमोहन पर्यंत आणि सचिनदेव बर्मन पासून राहुलदेव बर्मन पर्यंत त्यांच्यापाशी आठवणींचा खजिना होता.  

याच संगीतकारांच्या अमर्याद कर्तृत्वाच्या छायेत मा.अमीन सायानी यांचे व्यक्तिमत्व फुलले होते.

याच संगीतकारांच्या अमर्याद कर्तृत्वाच्या छायेत मा.अमीन सायानी यांचे व्यक्तिमत्व फुलले होते.

 जुन्या काळात तुमचे आमचे सर्वांचे आयुष्य आनंदी करणाऱ्या अमीन सयानी यांना विनम्र अभिवादन.

© श्री प्रसाद जोग

सांगली

मो ९४२२०४११५०   

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ जात… – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ जात… – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

जातीचं काय घेऊन बसलात राव .. अरे जात म्हणजे काय ? 

माहित तरी आहे का..?

अरे कपडे शिवणारा शिंपी, !

तेल काढणारा तेली, !

केस कापणारा न्हावी.!

लाकूड तोडणारा सुतार.!

दूध टाकणारा गवळी.!

गावोगावी भटकणारा बंजारा.!

पुजा-अर्चा, पौरोहित्य करणारा ब्राह्मण.!

वृक्ष लावणारा माळी.!

आणि लढाई लढणारा क्षत्रिय.!

*

आलं का काही डोस्क्यात..?

आरं काम म्हणजे जात.

आता भांडत बसण्यापेक्षा जाती बदला.

आता इंजीनीयर ही नवी जात .

कॉम्प्यूटर, केमिकल ही पोटजात.

“सी. ए” ही पोटजात,

“एम. बी. ए” ही नवी जात.

*

बदला की राव कवाचं तेच धरुन बसलात!

घरीच दाढी करता नवं? 

मग काय न्हावी का?

बुटाला पालीश करता नव्हं?

मग काय चांभार का?

गैलरी टेरेस वर झाडे लावता ना !

मग माळी का?

घरच्या घरीच पुजा-अर्चा करता नव्ह?..,,मग ब्राम्हण का ?

दूध टाकणारा मुलगा गवळी का?

*

आरं बायकोच्या धाकानं का हुईना संडास साफ करता नव्हं?

*

आता अजून बोलाया लावू नका !

आरं कोण मोठा कोण छोटा? 

ह्याला बी दोन हात त्याला बी दोनच नव्हं?

ह्यालाबी खायला लागतं आणि त्याला पण?

*

आरं कामानं मोठं व्हा जातीनं न्हाय!

आरं तुम्ही ह्या जातीत जन्माला आला, 

हा काय तुमचा पराक्रम हाय व्हय?

मंग कशाला उगीचच बोंभाटा करता राव ?

*

सगळ्याला आता काम हाय!

सगळ्याला शिक्षण हाय!

शिकायचं कामं करायचे!

पोट भरायचे!

की हे नसते उद्योग करायचे!

*

*एक नवीन विचारधारा ! 

कवी – अज्ञात

संग्राहक : अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, kelkaramol.blogspot.com

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ आकाशाशी जडले नाते… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? आकाशाशी जडले नाते?  सुश्री वर्षा बालगोपाल 

पद न वाजवता गूपचूप येऊन का

नभ सख्याने ठरवले डोळे झाकायचे?

पद गात होती धरा सखी तन्मयतेने

भाळला आणी विसरला जे करायचे॥

*

लहर आली त्याला ठरवले होते जणू

खोडी काढून तिची थोडे उचकवायचे

लहर प्रितीची आली, पहातच राहिले

मुग्ध होऊन  विसरले भान जगताचे॥

*

कर घेतले करात नकळत नभाने

शपथेने म्हणे जन्मांतरी ना  सोडायचे

कर माझ्याशी लग्न वदे धरा प्रेमे मग

आकाशाशी जडले नाते धरणी मातेचे॥

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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