हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 180 – याद के संदर्भ में दोहे… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपके अप्रतिम दोहे – याद के संदर्भ में दोहे।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 180 – याद के संदर्भ में दोहे …  ✍

याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास।

अपना तो यह हाल है, यादें बने लिबास।।

*

 फूल तुम्हारी याद के, जीवन का एहसास।

 वरना है यह जिंदगी, जंगल का रहवास।।

*

 यादों की कंदील ने ,इतना दिया उजास।

 भूलों के भूगोल ने, बांच लिया इतिहास ।।

*

बादल आकर ले गए ,उजली उजली धूप ।

अंधियारे में कौंधते, यादों वाले स्तूप।।

*

 सांसो की सरगम बजे, किया किसी ने याद।

 शब्दों का है मौन व्रत, कौन करे संवाद ।।

*

यादों के आकाश में,फूले खूब बबूल ।

सांसों की सर फूंद भी, अधर रही है झूल ।।

*

सांसों का संकीर्तन, मिलन क्षणों की याद।

 मन – ही – मन से कर रहा, एकाकी संवाद।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 181 – “पहिन धूप ढूंढती-…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  “पहिन धूप ढूंढती-...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 181 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पहिन धूप ढूंढती-...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

अधबहियाँ छाँव

के सलूके

पहिन धूप ढूंढती-

छेद कुछ रफू के

 

आ बैठी रेस्तराँ

 दोपहरी

देख रही मीनू को

टिटहरी

 

हैं यहाँ तनाव

फालतू के

 

स्वेद सनी गीली

बहस सी

सभी ओर असुविधा

उमस सी

 

मैके में मौसमी

बहू के

 

श्वेत- श्याम धरती

के द्वीपों

गरमी है खुले

अन्तरीपों

 

पेड़ सभी बन गये

बिजूके

 

इधर- उधर भटकी

छायायें

अब उन्हें कहो कि

घर चली जायें

 

बादल शौकीन

कुंग-फू के

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-11-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पदचाप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पदचाप ? ?

मेरी पदचाप,

तुम्हारी पदचाप,

इंसानी पदचाप..,

इसकी पदचाप,

उसकी पदचाप,

भेड़ियाई पदचाप..,

शनै:-शनै:

इंसानी पदचाप

दबती गई,

भेड़ियाई पदचाप

उभरती गई,

दबना हमेशा

ख़त्म होना नहीं होता,

दबना और दबे रहना

निष्क्रिय होना होता है,

यही समय है;

बटोरकार सारी इंसानियत

कदमताल करो,

निश्चय का महामंत्र पढ़ो;

पदचाप बढ़ाओ,

आगे बढ़ो,

शाश्वत सत्य है-

मनुष्य के अंगदी

पैरों की पकड़ के आगे

चौपायों की  गद्देदार

पकड़ टिकती नहीं है,

सक्रिय मानवता के आगे

दानवता ठहरती नहीं है..!

© संजय भारद्वाज  

(16 जून 2017, प्रातः 7:53 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ – Inside Me… – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~Inside Me…~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

☆ Inside Me… ?

Knoweth not how many

souls reside inside me

But really puzzlingly wonder

where has mine gone…

*

I only desired my wounds

could heal in quickly

But I got filled in with

countless more wounds only…

*

I was a moment only that

consumed many a millennia

Though I’ve been witnessing

epochs passing through me…

*

Just a few traces of me

is only left inside me

Since it’s mostly you,

Who’s buried inside me!

*Jaichand…the worst traitor of the known human history of India…

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। ई -अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार आप आत्मसात कर सकेंगे एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  – “व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय)

☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆

“व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

कवि, व्यंग्यकार, सम्पादक श्रीबाल पाण्डेय जी का जन्म 19जुलाई1921 को नरसिंहपुर जिले के बिलहरा गांव में हुआ था,उनका पहला काव्य संग्रह 1958 में प्रकाशित हुआ था, ‘जब मैंने मूंछ रखी’ निबंध संग्रह के अलावा कुछ व्यंग्य संग्रह भी प्रकाशित हुए और पसंद किए गए, व्यंग्य संग्रह ‘तीसरा कोना जुम्मन मियां का कहना है’के अलावा ‘माफ कीजिएगा हुजूर’ और ‘साहिब का अर्दली’ खूब चर्चित हुए थे। मानवीय संवेदनाएं उनकी कविताओं में कूट-कूट कर भरीं थीं,होटल में काम कर रहे छोटे से लड़के पर लिखी गई कविता पढ़कर हर पाठक की आंखें नम हो जातीं हैं, कविता में एक जगह आया है….

आज तक इसने चांद को देखा नहीं है,

हाथ में इसके सौभाग्य की कोई रेखा नहीं है,

श्रीबाल पाण्डेय जी ने साहित्यिक पत्रिका ‘सुधा’ का सम्पादन किया और ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की चर्चित पत्रिका ‘वसुधा’के प्रबंध सम्पादक रहे।वे लेखन के मामले में किसी के सामने कभी झुके नहीं, कभी किसी की पराधीनता स्वीकार नहीं की। वे हरिशंकर परसाई जी के बहुत करीबी थे। श्रीबाल पाण्डेय जी के बारे में लिखते हुए याद आ रहा है जब  हम लोगों ने भारतीय स्टेट बैंक की तरफ से श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान किया था।

साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘रचना’ के संयोजन में जबलपुर के मानस भवन में हर साल मार्च माह में अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन आयोजित किया जाता था। जिसमें देश के हास्य व्यंग्य जगत के बड़े हस्ताक्षर शैल चतुर्वेदी, अशोक चक्रधर,शरद जोशी, सुरेन्द्र शर्मा, के पी सक्सेना जैसे अनेक ख्यातिलब्ध अपनी कविताएँ पढ़ते थे। रचना संस्था के संरक्षक श्री दादा धर्माधिकारी थे सचिव आनंद चौबे और संयोजन का जिम्मा हमारे ऊपर रहता था। देश भर में चर्चित इस अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन के दौरान हम लोगों ने जबलपुर के प्रसिद्ध हास्य व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय का सम्मान करने की योजना बनाई, श्रीबाल पाण्डेय जी से सहमति लेने गए तो उनका मत था कि उन्हें सम्मान पुरस्कार से दूर रखा जाए तो अच्छा है फिर ऐनकेन प्रकारेण परसाई जी के मार्फत उन्हें तैयार किया गया।

इतने बड़े आयोजन में सबका सहयोग जरूरी होता है। लोगों से सम्पर्क किया गया बहुतों ने सहमति दी, कुछ ने मुंह बिचकाया, कई ने सहयोग किया। स्टेट बैंक अधिकारी संघ के पदाधिकारियों को समझाया। उस समय अधिकारी संघ के मुखिया श्री टी पी चौधरी ने हमारे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकारा। तय किया गया कि स्टेट बैंक अधिकारी संघ ‘रचना’ संस्था के अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन के दौरान श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान करेगी।

हमने परसाई जी को श्रीबाल पाण्डेय के सम्मान की तैयारियों की जानकारी जब दी तो परसाई जी बहुत खुश हुए और उन्होंने श्रीबाल पाण्डेय के सम्मान की खुशी में तुरंत पत्र लिखकर हमें दिया।

श्रीबाल पाण्डेय जी उन दिनों बल्देवबाग चौक के आगे  के एक पुराने से मकान में रहते थे। आयोजन के पहले शैल चतुर्वेदी को लेकर हम लोग उस मकान की सीढ़ियाँ चढ़े, शैल चतुर्वेदी डील – डौल में तगड़े मस्त – मौला इंसान थे, पहले तो उन्होंने खड़ी सीढ़ियाँ चढ़ने में आनाकानी की फिर हमने सहारा दिया तब वे ऊपर पहुंचे। श्रीबाल पाण्डेय जी सफेद कुर्ता पहन चुके थे और जनाना धोती की सलवटें ठीक कर कांच लगाने वाले ही थे कि उनके चरणों में शैल चतुर्वेदी दण्डवत प्रणाम करने लोट गए। श्रीबाल पाण्डेय की आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी पर वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे चूंकि उनकी जीभ में लकवा लग गया था। उस समय गुरु और शिष्य के अद्भुत भावुक मिलन का दृश्य देखने लायक था। श्रीबाल पाण्डेय शैल चतुर्वेदी के साहित्यिक गुरु थे।

मानस भवन में हजारों की भीड़ की करतल  ध्वनि के साथ श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान हुआ। मंच पर देश भर के नामचीन हास्य व्यंग्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया था पर उस दिन मंच से शैल चतुर्वेदी अपनी रचनाएँ नहीं सुना पाये थे क्योंकि गुरु से मिलने के बाद नेपथ्य में चुपचाप जाकर रो लेते थे और उनका गला बुरी तरह चोक हो गया था।

स्वर्गीय श्रीबाल पाण्डेय जी अपने जमाने के बड़े हास्य व्यंग्यकार माने जाते थे।जब परसाई जी  ‘वसुधा’ पत्रिका निकालते थे तब वसुधा पत्रिका के प्रबंध सम्पादक पंडित श्रीबाल पाण्डेय हुआ करते थे। उनके “जब मैंने मूंछ रखी”, “साहब का अर्दली” जैसे कई व्यंग्य संग्रह पढ़कर पाठक अभी भी उनको याद करते हैं। उन्हें सादर नमन।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 313 ⇒ व्यंग्य की धार… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “व्यंग्य की धार।)

?अभी अभी # 313 ⇒ व्यंग्य की धार? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मुझे तरस आता है उनकी बुद्धि पर, जो आलोचना को भी साहित्य की एक विधा मानते हैं। इससे तो हमारी राजनीति अच्छी, जब चाहो, जहां चाहो, मुंह उठाकर किसी की भी आलोचना कर दो। इधर आम शिकायत है कि आज के व्यंग्य में शरद और परसाई जैसी धार कहां, और उधर पत्नी की भी शिकायत है कि न तो घर की कैंची में धार है और न ही सब्जी काटने वाले चाकुओं में।

धार से याद आया, मोहल्ले में एक धार करने वाला व्यक्ति आया करता था, जिसके पास चाकू छुरियों को तेज करने वाला एक साइकिल के पहिए जैसा लोहे का उपकरण था, जिससे रगड़ने पर चिंगारियां निकलती थी और औजारों की धार तेज हो जाती थी। चक्कू छुरियां तेज करा लो, जैसे फिल्मी गाने की प्रेरणा भी वहीं से ली गई है।।

हमारे घरों में हथियार के नाम पर शायद चाकू छुरी और कैंची ही मिले। पत्नी की शिकायत पर मेरी हिम्मत नहीं हुई यह कहने की, कि जबान के रहते आपको कैंची की क्या जरूरत, फिर खयाल आया रसोई में तो बेलन जैसा एक हथियार और है, जिसे धार करवाने की जरूरत ही नहीं पड़ती और जिसका प्रयोग कभी भी अस्त्र के रूप में, पत्नी द्वारा किया जा सकता है।

पहले छुरी कैंची लोहे की आती थी, जिनका स्थान अब स्टील ने ले लिया है। कैसी उल्टी गंगा बह रही है आजकल, लोगों की जबान तो कैंची की तरह चल रही है, लेकिन कैंची जबान की तरह नहीं चल रही। घर गृहस्थी और बच्चों के घर में अगर चाकू छुरी में धार कम हो तो एक तरह से ठीक ही है। उंगली वगैरह कटने का अंदेशा कम ही होता है।।

व्यंग्य को धारदार बनाने में राजनीति का बहुत योगदान रहा है। वैसे भी विसंगति और राजनीति में कोई विशेष फर्क नहीं। राजनीति ने कभी व्यंग्य को

गंभीरता से नहीं लिया लेकिन व्यंग्य ने राजनीति को काफी गंभीरता से लिया है। मन्नू भंडारी का महाभोज हो अथवा श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी। परसाई और शरद द्वारा भी राजनीति को नहीं बख्शा गया।

लेकिन जब से राजनीति ने व्यंग्य को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है, व्यंग्य की धार भी भोथरी हो चली है। अब राजनीति पर सीधे वार करने का जमाना गया। आखिर व्यंग्य को छपना भी होना होता है और पुरस्कृत भी होना पड़ता है। गन्ने को वैसे भी जड़ से कौन उखाड़ता है।।

आज व्यंग्य पर राजनीति हावी है। जो धार आज राजनीति में है, वह व्यंग्य में नहीं। आज का व्यंग्य धार नहीं देखता, तेल देखता है, तेल की धार देखता है। व्यंग्य की धार इतनी पैनी भी ना हो, जो खुद अपना ही हाथ कटा बैठे।

सबकी अपनी अपनी घर गृहस्थी है। धार उतनी ही हो, जो किसी पर वार ना कर सके। काश व्यंग्य की धार पैनी करने का भी कोई दादी मां का घरेलू नुस्खा होता। राजनीति पर व्यंग्य कसने के दिन अब लद गए।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 169 ☆ # भूख # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# भूख #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 169 ☆

☆ # भूख #

थानेदार ने

उस मासूम बच्चे से पूछा ?

तुमने ब्रेड और रोटी

क्यों चुराई  ?

तुममें इस उमर में

कैसे आयी यह बुराई  ?

क्या तुम नहीं जानते हो ?

कानून को नहीं मानते हो ?

यह गुनाह है, जुर्म है

क्या तुम्हें नहीं

कोई शर्म है?

तुम्हें सजा हो सकती है

तुम्हें जेल भी

हो सकती है

वह मासूम

अपने आंसू

पोंछते हुए बोला –

साहिब!

यह सब मैं

नहीं जानता हूं

पर कानून को जरूर

मानता हूं

घर में,

मेरी मां बीमार पड़ी है

जीवन भर वो भी

भूख से लड़ी है

दो छोटे भाई बहन

रोटी के लिए

तड़प रहे है

भूख से लड़ रहे हैं

साहिब! मै नहीं जानता

क्या सही, क्या चूक है ?

मेरे आंखों के आगे

तो बस

उन सबकी

भूख है, भूख है, भूख है …….? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘वंदे मातरम्,वंदे मातरम्….’।)

☆ कविता – वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆

सिर पर ताज हिमालय का है,

 सागर चरण पखारता,

गंगा यमुना की बाहों की,

 अंबर चमक निहारता,

 देश के हर कोने से उठता,

 हर स्वर यही पुकारता,

 वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

 राम कृष्ण की भूमि है ये,

इस मिट्टी की शान है,

सभी देवता गोद में खेले,

 भारत भूमि महान है,

एक बंधन में हम सब आएं

एक ही सुर में मिलकर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

आओ मिलकर शपथ उठाएं,

भारत मां की आन की,

कभी शान ना झुकने पाए,

भारत मां की शान की,

भारत मां का दर्शन पाएं

सभी देवता सस्वर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – सुश्री दीप्ती कुलकर्णी – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

💐अ भि नं द न 💐

शब्दसेतू साहित्य मंच, पुणे यांनी मराठी भाषा गौरव  दिनानिमित्त आयोजित केलेल्या काव्यस्पर्धेत भावगीत या प्रकारात, आपल्या समुहातील ज्येष्ठ  साहित्यिका सुश्री दीप्ती कुलकर्णी यांना प्रथम क्रमांक पुरस्कार प्राप्त झाला आहे.

💐 ई-अभिव्यक्ती परिवारातर्फे सुश्री दीप्ती कुलकर्णी यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील वाटचालीसाठी हार्दिक शुभेच्छा. 💐

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माझी माय मराठी… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

माझी माय मराठी… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

काव्यप्रकार (भावगीत)

(शब्दसेतू साहित्य मंच, पुणे महाराष्ट्र राज्य आयोजित राज्यस्तरीय काव्यलेखन स्पर्धा पुरस्कार प्राप्त कविता)

माझी माय मराठी

अभिमाने येते ओठी ||धृ||

*

शारदेस मी आळविते

अन वीणा झंकारिते

आगमने‌ हर्षित होते

नतमस्तक मी बनते ||१||

*

कवितेसह हर्षे‌ मेते

भारुड,गवळण गाते

पोवाड्यातुनी ही रमते

ओव्यामधूनी ती सजते ||२||.    

*

विश्वात कथेच्या फुलते

शब्दालंकारे खुलते

वास्तवास न्याय ही देतै

आविष्कारातुनी नटते ||३||

*

कधी कादंबरी ही बनते

अन‌ शब्दांसह डोलते

भेदक,वेधक ती‌ठरते

सकलांना‌काबिज करते ||४||

*

लालित्ये ही मांडिते

संवादानी उलगडते

तेजोन्मेषे नि पांडित्ये

मोहिनी जणू घालिते‌ ||५||

*

सारस्वतासी जी स्फुरते

नाट्यातुनी ही प्रगटते

नवरसातुनी दर्शविते

विश्वाला स्पर्शही करते ||६||

© सुश्री दीप्ती कोदंड कुलकर्णी

हैदराबाद.

भ्र.९५५२४४८४६१

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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