(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष— सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “खोज रहा सुख को दर-दर है…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #276 ☆
☆ खोज रहा सुख को दर-दर है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “जाएँ तो कहाँ?” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 100 ☆ जाएँ तो कहाँ? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी
प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
We present Capt. Pravin Raghuvanshi ji’s amazing poem “~ Whispers of Silence…~”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)
~ Whispers of Silence… ~
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Sometime, let sprightly colours dance in soul’s soothing rain, Let the myriad rainbow hues make your heart whole again
*
With countless vibrant tones, Paint the life’s canvas bright, Let your divine beauty shine with your inner most light
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Sometime, craft a soulful picture with words unsaid, Let masterpiece of stark silence, and emotions be deeply fed
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Let brushstrokes of stillness create a splendid scene, Where beauty of unseen reigns, making it supremely serene
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Sometime, listen to the rich voice of deep reticence, A gentle whisper that brings a sense of gratifying essence
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In the quietude of nights, when words are few and still, Let inner silence’s wisdom shine, and wisdom’s voice fulfill
*
Sometime, read the mystic missive of silence so deep, A letter from the soul, penned in quiet sound sleep
*
Sometime in the stillness, hear the heartbeat of divine, A language that transcends words, and makes us align
(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”
☆ दस्तावेज़ # 23 – महाकुंभ 2025 – एक अविस्मरणीय अनुभव☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो मन पर स्थायी छाप छोड़ जाते हैं। वे केवल दृश्य नहीं होते, वे जीवन के भाव बन जाते हैं। महाकुंभ 2025 के अवसर पर तीर्थयात्रा हमारे लिए ऐसा ही एक अनुभव थी—एक दिव्य यात्रा, जो शरीर से अधिक आत्मा को स्पर्श कर गई।
हम तीर्थराज प्रयागराज पहुंचे, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर पवित्र महाकुंभ का आयोजन हो रहा था। यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था, बल्कि जीवन में एक बार मिलने वाला दुर्लभ संयोग था, क्योंकि ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा संयोग अब 144 वर्षों बाद ही होगा। यह जानकर ही मन रोमांचित हो जाता है कि हम इस दुर्लभ अवसर के साक्षी बन पाए।
हमने स्नान से पहले ही तय कर लिया था कि हमें सूर्योदय से पहले संगम तक पहुंचना है। सुबह-सुबह अंधेरे में हमने ई-रिक्शा लिया और फिर एक युवक की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर बोट क्लब तक पहुंचे। ठंडी हवा, गहराता अंधकार और भीतर उठती श्रद्धा की लहरें—सब मिलकर एक अद्भुत वातावरण बना रहे थे।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर संगम में अप्रतिम सूर्योदय का विहंगम दृश्य )
नाव की यात्रा अपने आप में एक ध्यान-साधना बन गई थी। गंगा की लहरों पर तैरती हमारी छोटी सी नाव, आकाश में लालिमा बिखेरता सूरज, और बादलों के बीच से झांकती किरणें—यह सब किसी स्वप्न जैसा लग रहा था। नाव चलाने वाला नाविक साधारण पर बहुत अनुभवों से भरा हुआ था। उसके चेहरे पर शांति थी, बातों में अपनापन। वह वर्षों से यही करता आया था—श्रद्धालुओं को संगम तक ले जाना और वापस लाना। उसकी हर बात में जीवन की सादगी और गहराई थी।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर नाव यात्रा का अद्भुत अनुभव )
नाव धीरे-धीरे संगम की ओर बढ़ रही थी, और हमारा मन जैसे विचारों से मुक्त होता जा रहा था। जल का विशाल विस्तार, उसकी गहराई और तेज बहाव ने हमें भीतर तक छू लिया। जब हम संगम पहुंचे और डुबकी लगाई, तो वह सिर्फ एक स्नान नहीं था। वह एक आत्मिक अनुभव था। जैसे वर्षों से जमी हुई कोई चिंता, कोई संशय उसी क्षण जल में घुलकर बह गया हो। डुबकी लगाने के बाद एक अनकही शांति भीतर उतर आई। हमें यह जानकर संतोष हुआ कि हम केवल दर्शक नहीं रहे, हमने इन पुण्य पलों को जिया है।
(महाकुंभ 2025 के अवसर पर यमुना नदी पर साइबेरियाई पक्षी)
इसके बाद हम जब वापसी कर रहे थे, तो मन बार-बार उसी प्रश्न में उलझता रहा—क्या सच में यह केवल परंपरा है, या इसके पीछे कोई और गहरा आकर्षण है? तभी हमें संगम घाट की ओर बढ़ती वह अंतहीन मानव श्रृंखला दिखी। लोग पैदल चले आ रहे थे—महिलाएं, पुरुष, बुज़ुर्ग, बच्चे—हर उम्र, हर वर्ग के लोग। चेहरों पर थकावट नहीं, बस एक अपूर्व आस्था का भाव।
इनमें से कई लोग पढ़े-लिखे नहीं थे, साधनहीन थे, लेकिन उनके विश्वास में कोई कमी नहीं थी। न उनके पास रहने की निश्चित व्यवस्था थी, न भोजन की। फिर भी वे चले आ रहे थे—क्यों? क्योंकि उन्हें भरोसा था कि ईश्वर रास्ता बनाएगा, और धर्म की राह में कोई अकेला नहीं होता। यह आस्था देख कर हमारी आंखें नम हो गईं। हम सोचने लगे—क्या यही वह अदृश्य शक्ति है जो करोड़ों लोगों को इस महासंगम की ओर खींच लाती है?
प्रशासन ने अपनी ओर से व्यवस्थाएं की थीं—रास्ते में रैन बसेरे बनाए गए थे, जहां तीर्थयात्री निशुल्क ठहर सकते थे। जगह-जगह भंडारे लगे थे, जहां सेवाभाव से भोजन मिल रहा था। अस्थायी शौचालयों की भी व्यवस्था थी, ताकि लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो सकें। जो लोग ये साधन जुटाने में असमर्थ थे, उनके लिए यह किसी वरदान से कम नहीं था। पर फिर भी जब करोड़ों लोग एक साथ किसी छोटे शहर में उतरते हैं, तो किसी भी तैयारी की सीमाएं झलकने लगती हैं।
हम भी भीड़ के साथ-साथ पैदल चलते रहे, धूप तेज़ हो चुकी थी लेकिन लोग रुक नहीं रहे थे। हमने कोशिश की कि उनके मन को समझें, उनकी भावनाओं को महसूस करें, पर एक गहराई थी जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। उलटे हमारी अपनी जिज्ञासा और बढ़ती चली गई, और साथ ही अध्यात्म के प्रति आस्था भी।
एक लम्बी यात्रा के बाद हम एक डिजिटल म्यूज़ियम पहुंचे, जहां महाकुंभ 2025 को आधुनिक तकनीक के माध्यम से दर्शाया गया था। वहां छोटे-छोटे वृत्तचित्रों के माध्यम से कुंभ मेले का इतिहास और उसका महत्व बताया गया। यह देखना सुखद अनुभव था कि परंपरा और तकनीक कैसे साथ चल सकते हैं।
शाम को बोट क्लब क्षेत्र के काली घाट पर लेज़र और ड्रोन शो का भी आनंद लिया। रौशनी और रंगों से सजी वह प्रस्तुति जैसे कुंभ की भव्यता को एक नए रूप में जीवंत कर रही थी।
संगम क्षेत्र और टेंट सिटी भीड़ से खचाखच भरी थी, लेकिन हम भाग्यशाली रहे कि प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके में हम ठहरे थे। यह क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत था और वहां अच्छे रेस्टोरेंट, शॉपिंग आउटलेट्स और पीवीआर सिनेमा हॉल भी मौजूद थे। हमने विशेष रूप से ‘एल चिको’ रेस्टोरेंट में भोजन का आनंद लिया, जो हमारे दिन की थकान को सुकून में बदल गया।
प्रयागराज से रवाना होने के पहले हमने तय किया कि पास के ऐतिहासिक अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में श्रद्धा सुमन अर्पित करें, जहां देशभक्ति की वह ज्वाला आज भी जीवित लगती है।
इस पूरी यात्रा के अंत में हमारे मन में एक ही भाव रह गया—
“हे ईश्वर, इस महाकुंभ की आध्यात्मिक ऊर्जा से हमारे जीवन में शांति, प्रेम और समरसता बनी रहे।”
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक, चंद कविताएं चंद अशआर” शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – अपनी दौलत, शोहरत पे गुरूर न करना…।)
अपनी दौलत, शोहरत पे गुरूर न करना… ☆ श्री हेमंत तारे ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण ग़ज़ल “दौलते और शुहरतें सब हैं…“)
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सैटेलाइट…“।)
अभी अभी # 656 ⇒ सैटेलाइट श्री प्रदीप शर्मा
सैटेलाइट कृत्रिम उपग्रह को भी कहते हैं। हमारा मन भी तो एक तरह का सैटेलाइट ही है, जिसके जरिए हमने अपने चैनल सेट किये हुए हैं। किसी का मन २४ घंटे न्यूज में लगा है तो किसी का राजनीति में। कहीं सनसनी, सीआईडी और क्राइम पैट्रोल चल रहा है तो कहीं खाना खजाना।
स्पोर्ट्स चैनल में किसी को धोनी नजर आ रहा है तो किसी को नेटफ्लिक्स पर कोई बेहतरीन फिल्म। कुछ बड़े बूढ़े स्त्री पुरुष आस्था, संस्कार और सत्संग पर आँखें गड़ाए बैठे हैं तो कुछ युवा “पॉप पॉर्न” चबा रहे हैं।
वर्णाश्रम के अनुसार कभी जीवन के चार आश्रम होते थे। कलयुग में भी चार आश्रम ही होते हैं, जिनमें से तीन आश्रम तो आम व्यक्ति के लिए होते हैं, अनाथाश्रम, गृहस्थाश्रमऔर वृद्धाश्रम। चौथा आश्रम तो सिर्फ साधु महात्मा, महा मंडलेश्वर, जगद्गुरु और संन्यासियों का होता है।।
एक कुंआरा, शादीशुदा गृहस्थ होते होते, कब रिटायर हो जाता है, पता ही नहीं चलता। ५० वर्ष से ७५ वर्ष के बीच की एक अवस्था होती है, जिसे वानप्रस्थ कहा जाता है। अगर शास्त्र की मानें तो संन्यास अवस्था तो वानप्रस्थ के भी बाद की अवस्था है, क्योंकि तब मनुष्य की औसत आयु सौ वर्ष मानी जाती थी।
पचास वर्ष के बाद की आयु, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को समर्पित होती थी। तब कहां आज की तरह भौतिकवाद, वैज्ञानिक सोच, डिजिटल जीवन और हिन्दू मुसलमान होता था।
बस भगवान का नाम लेते रहो, क्या पता कब प्राण पखेरू उड़ जाएं। अंतिम सांस तक अगर नारायण का स्मरण है तो मुक्ति यानी मोक्ष अर्थात् जन्म मरण के बंधन से गारंटीड छुटकारा।।
मेरे पास भी मन रूपी सैटेलाइट है, जिस पर अक्सर मेरा म्यूजिक चैनल ही चला करता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। नहाते वक्त मैं रफी साहब का यह गीत गुनगुना रहा था ;
तुम एक बार मुहब्बत का इम्तहान तो लो
मेरे जुनूँ मेरी वहशत का इम्तहान तो लो …
(फिल्म बाबर १९६०)
इधर मैं गीत गुनगुना रहा था और उधर रेडियो पर यह गीत बज रहा था ;
मैने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है।
अजनबी सी हो,
मगर गैर नहीं लगती हो वहम से भी जो हो नाज़ुक वो यकीं लगती हो …
(बरसात की रात १९६०)
मुझे आश्चर्य हुआ, जो गीत मैं गुनगुना रहा हूं, उसी मूड का, उसी गायक का गीत उस समय रेडियो पर बज रहा था। यानी मेरे मन के सैटेलाइट और रेडियो की तरंगों में आपस में कुछ तो संबंध होगा ही।
ऐसी आकस्मिक घटनाओं को हम टेलीपैथी कहकर टाल देते हैं। लेकिन मेरी और रेडियो के बीच कैसी टेलीपेथी! ये दोनों गीत विलक्षण हैं, जिनकी धुन भी मिलती जुलती ही है और दोनों फिल्में सन् १९६० की ही हैं। इन दोनों गीतों के गीतकार साहिर लुधियानवी हैं, और संयोगवश इन दोनों फिल्मों के संगीतकार भी रोशन ही हैं। इसी मूड के और भी कई गीत होंगेे रफी साहब की आवाज में। मेरा मन का सैटेलाइट कभी ना कभी खोज ही निकालेगा, संगीत के सागर में गोता मारकर। आखिर हाथ तो मुझे मोती ही लगना है।।
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – आत्मनिर्भरता।)
पंद्रह दिन हो गये दुबे जी का निधन हुए. सारे रिश्तेदार अपने घर लौट गए. बेटा बहू परसों ही बैंगलोर जाने वाले हैं।
वे माँ से बोले – आप भी चलो। आप अकेले यहां रहकर क्या करोगी?पड़ोस के वर्मा अंकल और भी कई लोग मकान हमारा खरीदना चाहते हैं, अच्छे पैसे भी दे रहे हैं। यह मकान बेच देंगे।
– मकान बेचने के विचार से पहले कम से कम एक बार मुझसे चर्चा तो करना था । इस मकान की मालकिन तुम्हारे पापा ने मुझे बनाया है। उन्होंने यह मेरे नाम से ही खरीदा था। हम दोनों ने इसे बड़े प्यार से सजाया है।
कमल जी गुमसुम छत पर बैठकर आगे के जीवन की उधेडबुन मे लगी थी।
कैसै कटेगा यह शेष जीवन? दुबे जी मुझे कभी कुछ करने नहीं दिया। हर काम में हमेशा मेरा साथ दिया। अब अकेले क्यों छोड़ कर चले गए?
पडोसन सखी रागिनी आई और बोली- क्या हुआ बहन जी आप यहां छत पर अकेले क्यों बैठी हो? कुछ खाना खाया या नहीं। चलो साथ में थोड़ा पार्क में घूमते हैं।
कुछ सोचते हुए कमल ने पडोसन से कहा – रागिनी तुम कह रही थी कि पास में इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चे घर मकान ढूंढ रहे हैं। वह पेइंग गेस्ट की तरह रहना चाहते हैं। क्या उन्हें तुम मेरे घर बुला लाओगी। मैं उन्हें अपने घर में रखूंगी। ध्यान देना लड़कियां होनी चाहिए। देखो रागिनी तुम मेरी मदद करना।
चलो मैं अभी उनसे मिला देती हूं वह तीन लड़कियां पास में बंटी की मम्मी के यहां रहती हैं वह उन्हें बड़ा परेशान करती है।
– बेटी निशा तुम लोग घर ढूंढ रही हो ना यह आंटी का घर पार्क के पास है देखा है ना। क्या वहां पर तुम लोग रहोगे? जितना पैसा यहां देते हो उतना ही वहां पर देना पड़ेगा और तुम्हें आराम रहेगा।
– ठीक है आंटी हम थोड़ी देर बाद अपना सामान लेकर आप बोलो तो घर आ जाते हैं क्योंकि यह आंटी तो हमसे घर खाली करा रही हैं।
– चलो बेटा साथ में घर देख लो।
घर देख कर वे बोलीं – आपका घर तो बहुत अच्छा है हम तीनों लड़कियां 5000 आपको देगी।
तभी बेटे अविनाश ने कहा – माँ, यह क्या नाटक लगा के रखा है?
– देखो अविनाश मैं तुम्हारे घर जाकर नहीं रहूंगी। तुम लोगों का जितना दिन मन करता है इस घर में रहो बाकी मैं अपना खर्चा चला लूंगी। तुम लोगों से एक पैसा नहीं मांगूंगी। तुम्हारे दरवाजे पर नहीं जाऊंगी और अपना घर भी नहीं बेचूंगी ।
जिंदगी भर कभी काम नहीं किया पर मैं अब आत्मनिर्भर बनूंगी।