मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ बंधने ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है एक अप्रतिम रचना  “बंधने )

 

 ☆  बंधने ☆

 

वृत्त –स्त्रग्विणी

लगावली – गालगा गालगा गालगा गालगा

 

माणसे का अशी ? , तोडती बंधने

वागणे स्वैर ते…. खोलती बंधने.

 

पाकळ्या जाहल्या,  गंध वेडी मने

बोलकी वेदना. . .  सोलती बंधने .

 

वाजते बासरी, आठवे राधिका .

प्रेम शब्दासही. . . तोलती बंधने.

 

मोह मायेपरी, जीव जाई फुका

पोर ही आपली  बोलती बंधने .

 

वेचले दुःख मी, वाचली माणसे

वाट का वाटते ,  टोकती बंधने ?

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म सदृश रक्षक नहीं, धर्म सदृश ना ढाल ।

धर्म विहारी का सदा, धर्म रहे रखवाल ।।

आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (15) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अर्जुन उवाच

पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् ।

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ।। 15।।

अर्जुन ने कहा –

देव तुम्हारी देह में बसा , सकल संसार

एक साथ सब देवता , अपलक रहे निहार

कमलासन पर जगत्पति , ब्रम्हा रहे विराज

ऋषि मुनियों की भीड़ है ,साथ वृहत अहिराज ।। 15।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ।। 15।।

 

I behold all the gods, O God, in Thy body, and hosts of various classes of beings; Brahma, the Lord, seated on the lotus, all the sages and the celestial serpents!।। 15।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 29 – Half ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Half.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 29

☆ Half  ☆

 

The frozen evening is buckling her thoughts,

Long emptiness covers the eyelids-

She is afraid to leave it open,

Lest it attack the world with a vengeance,

And if she closes it,

The void powerfully sucks her body,

Fragmenting her into pieces!

 

She leaves it half-open,

Doing everything partly is the fad of the era;

Words you wish to snarl

Lose their velocity as they glue to your lips,

You dare not let them be free for fear of reactions,

Nor do you let them remain within for the hurt they cause,

And they voicelessly stutter on the pink edges…

 

Following the trend has only been an easy option,

Only she doesn’t know what to do with the swollen heart

That has accumulated emotions all around!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Courage ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  हौसला ”  published today as संजय  दृष्टि – हौसला    We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆ Courage – by Captain Pravin  Raghuwanshi ☆

 

I asked my sorrows

Are you infinite?

Fear enveloped,

in their eyes…

Astonished

I looked around;

Behind me

Was standing

my courage…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशंका ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आशंका* ☆

मनुष्य जाति में

होता है एकल प्रसव,

कभी-कभार जुड़वाँ

और दुर्लभ से दुर्लभतम

तीन या चार..,

आशंकित हूँ

ये निरंतर

प्रसूत होती लेखनी

और जन्मती रचनाएँ

कोई अनहोनी न करा दें,

मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( प्रकाशनाधीन कविता संग्रह से )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 38 ☆ बिजली और राजनीति ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  विचारणीय आलेख  “बिजली और राजनीति”।  राष्ट्रीय स्तर पर रेल, पोस्ट, दूरसंचार, इंटरनेट सेवाएं और टैक्स पर भी एक सामान दर है तो फिर  इस श्रेणी से बिजली अलग क्यों और उसपर राजनीति क्यों ?  श्री विवेक रंजन जी  को इस  सार्थक एवं विचारणीय आलेख के लिए बधाई। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 38 ☆ 

☆ बिजली और राजनीति ☆

 हमारे संविधान में बिजली केंद्र व राज्य दोनो की संयुक्त सूची में है, इसी वजह से बिजली पिछले कुछ दशको से  राजनीति का विषय बन चुकी है. जब संविधान बनाया गया था तब बिजली को विकास के लिये  ऊर्जा के रूप में आवश्यक माना गया था अतः उसे केंद्र व राज्यो के विषय के रूप में बिल्कुल ठीक रखा गया था. समय के साथ एक देश एक रेल, एक पोस्ट, एक दूरसंचार, एक इंटरनेट, अब एक टैक्स के कानसेप्ट तो आये किंतु बिजली से आम नागरिको के सीधे हित जुड़े होने के चलते वह राजनीति और सब्सिडी, के मकड़जाल में उलझती गई.

कुछ दशकों पहले बिजली का उत्पादन कम था, तब बिजली कटौती से जनता परेशान रहती थी, बिजली सप्लाई को लेकर  पक्ष विपक्ष के राजनीतीज्ञ आंदोलन करते थे. चुनावों के समय दूसरे राज्यों से बिजली खरीदकर विद्युत कटौती रोक दी जाती थी, बिजली वोट में तब्दील हो जाती थी. समय के साथ निजी क्षेत्र का बिजली उत्पादन में प्रवेश हुआ. बिजली खरीदी के करारो के जरिये  राजनीतिज्ञो को आर्थिक रूप से निजी कंपनियो ने उपकृत भी किया. दुष्परिणाम यह हुआ कि अब जब बिजली को संविधान संशोधन के जरिये एक देश एक बिजली की नीति के लिये केवल केंद्र का विषय बना दिया जाना चाहिये, तब कोई भी राजनैतिक दल इस सुधार हेतु तैयार नही होगा.  बिजली की दरें राज्य के विद्युत  नियामक आयोग तय करते हैं, और सब्सिडी के खेल से सरकारें वोट बना लेती हैं.  चिंता का विषय है कि बिजली ऐसी कमोडिटी बनी हुई है, जिसकी दरें मांग और आपूर्ति के इकानामिक्स के सिद्धांत से सर्वथा विपरीत तय किये जाते हैं. चुनावों के समय  बिजली को विकास का संसाधन मानकर बिजली सामाजिक मुद्दा बना दिया जाता है तो चुनाव जीतते ही बिजली कंपनियो को कमर्शियल आर्गनाईजेशन बता कर उसमें कार्यरत कर्मचारियो को सरकारो द्वारा सरे आम रेवेन्यू बढ़ाने के लिये प्रताड़ित किया जाने लगता है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही एक ट्वीट कर कहा कि “मुझे खुशी है कि सस्ती बिजली राष्ट्रीय राजनीति में बहस का मुद्दा बन चुका है। दिल्ली ने दिखा दिया कि निशुल्क या सस्ती बिजली उपलब्ध कराना संभव है। दिल्ली ने दिखा दिया कि इससे वोट भी मिल सकते हैं। 21वीं सदी के भारत में 24 घंटे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध होनी चाहिए।”

दिल्ली के चुनावों में हम सबने केजरीवाल सरकार द्वारा फ्री बिजली का प्रलोभन देकर जीतने का करिश्मा देखा ही है.

पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार के चुनाव आसन्न हैं.दिल्ली सरकार की तर्ज पर पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है। अपने फैसले में ममता सरकार ने कहा है कि तीन महीने में 75 यूनिट बिजली की खपत करने वालों से बिल नहीं लिया जाएगा। दिल्ली की केजरीवाल सरकार लोगों को 200 यूनिट तक फ्री बिजली दे रही है।

झारखंड सरकार भी दिल्ली की तरह झारखंड में घरेलू उपयोग के लिए फ्री बिजली देने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऊर्जा विभाग 100 यूनिट फ्री बिजली का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनावी घोषणा में शामिल है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी बिजली पर सब्सिडी देने संबंधी प्रस्ताव विचाराधीन है. म. प्र. सरकार में  भी निश्चित सीमा तक फ्री बिजली दी जा रही है. अन्य राज्यो की सरकारें भी कम ज्यादा सब्सिडी के प्रलोभन देकर जनता को दिग्भ्रमित कर रही हैं. केवल बिजली ही ऐसी कमोडिटी है जिसकी दरो में देश में क्षेत्र के अनुसार, उपयोग के प्रकार तथा खपत के अनुसार व्यापक अंतर परिलक्षित होता है. आज आवश्यक हो चला है कि एक देश एक बिजली की नीति बनाकर बिजली की दरो में सबके लिये समानता लाई जावे. क्या कारण है कि केंद्र की नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन, पावर ग्रिड, नेशनल हाईडल पावर कारपोरेशन, एटामिक पावर आदि संस्थान जहां नवरत्न कंपनियो में लाभ अर्जित करने वाले संस्थान हैं वहीं प्रायः राज्यो की सभी बिजली कंपनियां बड़े घाटे में हैं. इस घाटे  से इन संस्थानो को निकालने का एक ही तरीका है कि बिजली को लेकर हो रही राजनीति बंद हो.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 10 ☆ ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे।  इस समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 10 ☆

☆ ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे

ऊँट किस करवट बैठेगा ये कोई नहीं जानता पर तुक्का लगाने में सभी उस्ताद होते हैं। आखिर बैठने के लिए उचित धरातल भी होना चाहिए अन्यथा गिरने का भय रहता है। जैसे -जैसे हम बुद्धिजीवी होते जा रहे हैं वैसे- वैसे हमें अपनी जमीन मजबूत करने की फिक्र कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। आखिर  बैठना कौन नहीं चाहता पर हम ऊँट थोड़ी ही हैं जो हमें रेतीली माटी नसीब हो और अलटते – पलटते रहें। हमें तो बस कुर्सी रख सकें इतनी ही जगह चाहिए। और हाँ कुछ ऐसे लोग भी चाहिए जो इस कुर्सी की रक्षा कर सकें भले ही साम दाम दंड भेद क्यों न अपनाना पड़ जाए। कुर्सी की एक विशेषता ये भी है कि ये समय – समय पर अपना भार बदलती रहती है। इस पर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत भी लगता है। ग्रहों के बदलते ही इसका भार बदल जाता है। वैसे तो बदलाव हमेशा ही सुखद मौसम लाता है। देखिए न पतझड़ के मौसम में  भी बासंती रंग, तरह- के फूल, सेमल, टेसू, पलाश सभी अपने जोर पर जाते हैं। आम्र बौर  की छटा व सुगंध तो मनभावन होती ही है । बस यही बदलाव तो कोयल को चाहिए, इसी मौसम में तो वो अपना राग गुनगुनाने लगती है। अरे ऊँट की चिंता करते- करते  कहा कोयल पर अटक गये। बस ये अपने धरातल की खोज जो न करवाये वो थोड़ा है। पुराने समय से ही ऊँट पर कई मुहावरे चर्चा में हैं। जहाँ  मात्रा या संख्या बल घटा,  बस समझ लो ऊँट के मुख में जीरा जैसे ही अल्पसंख्यक समस्या जोर पकड़ने लगती है। अरे ये संख्याबल की इतनी  हिमाकत केवल लोकतंत्र की वजह से ही है क्योंकि यहाँ गुणवत्ता नहीं संख्या पर जोर दिया जाता है। जैसे ही जोड़- तोड़ का गणित अनुभवी गणितज्ञ के पास पहुँचा बस गुणा भाग भी दौड़ पड़ते हैं पाठशाला की ओर। मौज मस्ती आखिर कितने दिनों तक चलेगी  परीक्षार्थियों को परीक्षा तो देनी ही होगी। रिजल्ट चाहें कुछ भी हो पुनर्जीवन तो मेहनत करने वाले को मिलेगा ही। सबको पता है कि अंत काल में केवल सत्कर्म ही साथ जाते हैं फिर भी जर, जोरू, जमीन की खोज में मन भटकता ही रहता है। मजे की बात इतना बड़ा प्राणी जो रेगिस्तान का जहाज कहलाता है उसकी चोरी भी लोग चोरी छुपे करने की हिमाकत करते हैं। इसी को बघेली में कहा जाता है ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे  अर्थात झुक – झुक कर। खैर देखते हैं कि क्या – क्या नहीं होता ; आखिरकार मार्च का महीना तो सदैव से ही परीक्षा का समय रहा है। इस समय हिन्दू नववर्ष का आगमन होता है, साल भर जो लेखा – जोखा व अध्ययन किया है उसका परीक्षण भी होता है। उसके बाद देवी-  देवताओं  से मान मनौती की जाती है ताकि परिणाम सुखद हो।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 18 ☆ कविता – महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 18 ☆

☆ महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ 

वीर सुभाष कहाँ खो गए

वंदेमातरम गा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

कतरा-कतरा लहू आपका

काम देश के आया था

इसीलिए ये आजादी का

झण्डा भी फहराया था

गोरों को भी छका-छका कर

जोश नया दिलवाया था

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान मान करवाया था

 

सत्ता के भुखियारों को अब

कुछ तो सीख सिखा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

नेताजी उपनाम तुम्हारा

कितनी श्रद्धा से लेते

आज तो नेता कहने से ही

बीज घृणा के बो देते

वतन की नैया डूबे चाहे

अपनी नैया खे लेते

बने हुए सोने की मुर्गी

अंडे भी वैसे देते

 

नेता जैसे शब्द की आकर

अब तो लाज बचा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

जंग कहीं है काश्मीर की

और जला पूरा बंगाल

आतंकी सिर उठा रहे हैं

कुछ कहते जिनको बलिदान

कैसे न्याय यहाँ हो पाए

सबने छेड़ी अपनी तान

ऐक्य नहीं जब तक यहां होगा

नहीं हो सकें मीठे गान

 

जन्मों-जन्मों वीर सुभाष

सबमें ऐक्य करा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

लिखते-लिखते ये आँखें भी

शबनम यूँ हो जाती हैं

आजादी है अभी अधूरी

भय के दृश्य दिखातीं हैं

अभी यहाँ कितनी अबलाएँ

रोज हवन हो जाती हैं

दफन हो रहा न्याय यहाँ पर

चीखें मर-मर जाती हैं

 

देखो इस तसवीर को आकर

कुछ तो पाठ पढ़ा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 40 – बेनाम रिश्ता ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा  “बेनाम रिश्ता। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 40 ☆

☆ लघुकथा – बेनाम रिश्ता ☆

 

ट्रेन में चढ़ते ही रवि ने कहा, “ले बेटा ! मूंगफली खा.”

“नहीं पापाजी ! मुझे समोसा चाहिए” कहते हुए उस ने समोसा बेच रहे व्यक्ति की और इशारा किया.

“ठीक है” कहते हुए रवि ने जेब में हाथ डाला.  “ये क्या ?” तभी दिमाग में झटका लगा. किसी ने बटुआ मार लिया था.

“क्या हुआ जी ?”

घबराए पति ने सब बता दिया.

“अब ?”

“उस में टिकिट और एटीएम कार्ड भी था ?” कहते हुए रवि की जान सूख गई .

सामने सीट पर बैठे सज्जन उन की बात सुन रहे थे. कुछ देर बाद उन्हों ने कहा “आप लोगों का वहां जाने और खाने का कितना खर्च होगा ?”

“यही कोई १५०० रूपए .”

” लीजिए” उन सज्जन ने कहा,” वहां जा कर इस पते पर वापस कर दीजिएगा.”

“धन्यवाद” कहते ही रवि की आँखे में आंसू आ गए.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

Please share your Post !

Shares