(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘वाह रे इंसान !’डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस विचारणीय लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 77 ☆
☆ लघुकथा – वाह रे इंसान ! ☆
शाम छ: बजे से रात दस बजे तक लक्ष्मी जी को समय ही नहीं मिला पृथ्वीलोक जाने का। दीवाली पूजा का मुहूर्त ही समाप्त नहीं हो रहा था। मनुष्य का मानना है कि दीवाली की रात घर में लक्ष्मी जी आती हैं। गरीब- अमीर सभी घर के दरवाजे खोलकर लक्ष्मी जी की प्रतीक्षा करते रहते हैं। खैर, फुरसत मिलते ही लक्ष्मी जी दीवाली- पूजा के बाद पृथ्वीलोक के लिए निकल पडीं।
एक झोपडी के अंधकार को चौखट पर रखा नन्हा – सा दीपक चुनौती दे रहा था। लक्ष्मी जी अंदर गईं, देखा कि झोपडी में एक बुजुर्ग स्त्री छोटी बच्ची के गले में हाथ डाले निश्चिंत सो रही थी। वहीं पास में लक्ष्मी जी का चित्र रखा था, चित्र पर दो-चार फूल चढे थे और एक दीपक यहाँ भी मद्धिम जल रहा था। प्रसाद के नाम पर थोडे से खील – बतासे एक कुल्हड में रखे हुए थे।
लक्ष्मी जी को याद आई – ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी की बूढी स्त्री। जिसने उसकी झोपडी पर जबरन अधिकार करनेवाले जमींदार से चूल्हा बनाने के लिए झोपडी में से एक टोकरी मिट्टी उठाकर देने को कहा। जमींदार ऐसा नहीं कर पाया तो बूढी स्त्री ने कहा कि एक टोकरी मिट्टी का बोझ नहीं उठा पा रहे हो तो यहाँ की हजारों टोकरी मिट्टी का बोझ कैसे उठाओगे ? जमींदार ने लज्जित होकर बूढी स्त्री को उसकी झोपडी वापस कर दी। लक्ष्मी जी को पूरी कहानी याद आ गई, सोचा – बूढी स्त्री तो अपनी पोती के साथ चैन की नींद सो रही है, जमींदार का भी हाल लेती चलूँ।
जमींदार की आलीशान कोठी के सामने दो दरबान खडे थे। कोठी पर दूधिया प्रकाश की चादर बिछी हुई थी। जगह – जगह झूमर लटक रहे थे। सब तरफ संपन्नता थी ,मंदिर में भी खान – पान का वैभव भरपूर था। उन्होंने जमींदार के कक्ष में झांका, तरह- तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाने के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी। कीमती साडी और जेवरों से सजी अपनी पत्नी से बोला – ‘एक बुढिया की झोपडी लौटाने से मेरे नाम की जय-जयकार हो गई, बस यही तो चाहिए था मुझे। धन से सब हो जाता है, चाहूँ तो कितनी टोकरी मिट्टी भरकर बाहर फिकवा दूँ मैं। गरीबों पर ऐसे ही दया दिखाकर उनकी जमीन वापस करता रहा तो जमींदार कैसे कहलाऊँगा। यह वैभव कहाँ से आएगा, वह गर्व से हँसता हुआ मंदिर की ओर हाथ जोडकर बोला – यह धन – दौलत सब लक्ष्मी जी की ही तो कृपा है।‘
जमींदार की बात सुन लक्ष्मी जी गहरी सोच में पड गईं।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीय आलेख ‘अमेरिका में छुट्टियाँ’। इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 124 ☆
अमेरिका में छुट्टियाँ
अभी सालभर में मात्र 11 छुट्टियाँ अमेरिका में है ।
इन छुट्टियों को इस तरह डिज़ायन किया गया है की कम छुट्टियों में याद सबको कर लिया जाए.
अमेरिका के सारे राष्ट्रपतियों की याद में प्रेसिडेंट डे मना लिया जाता है.
सिवल वार में शहीद हुये लोगों के लिए मेमोरीयल डे होता है.
सैनिकों को सम्मान देने के लिए वेटरन डे.
श्रम शक्ति के लिए लेबर डे , कोलंबस डे , मूल निवासी रेड इंडियन्स को धन्यवाद देने के लिए थैंक्स गिविंग डे. क्रिसमस, न्यू year और स्वतंत्रता दिवस है ही.
इन छुट्टियो में भी कई फ़िक्स डेट में नहीं होतीं , बल्कि सोमवार या शुक्रवार को मना ली जाती हैं. जैसे कोलंबस डे 8 ऑक्टोबर से 14 के बीच जो सोमवार हो, उसमें माना जाएगा. रविवार छुट्टी होती ही है साथ में सोमवार भी छुट्टी हो गई तो फ़ायदा यह होता है कि लोगों को लम्बा वीकेंड मिल जाता है,
इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है ।
ईस्टर , गुड फ़्राइडे आदि की छुट्टी वहाँ नहीं होती ।
छुट्टियों के मामले में इतने न्यून दिवस वाले देश अमेरिका में संसद में विधेयक आया है कि दीपावली को राष्ट्रीय छुट्टी घोषित किया जाए.
यद्यपि हिंदू अमेरिका में बमुश्किल 1 % हैं , पर सांसद का तर्क है कि दीवाली विश्व का त्योहार है. बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधेरे पर उजाले की जीत.
अतः , हर अमेरिकन को यह रोशनी का पर्व मनाना चाहिए.
अमेरिका इसीलिए विश्व मे सर्वोच्च है क्योंकि वे अच्छी बात सीखने और स्वीकार करने में नहीं हिचकते. सारी दुनिया की अच्छाई स्वीकार कर उसे अमेरिकन कर देते हैं.
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जीद्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “रिव्यू के व्यू”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 75 – रिव्यू के व्यू ☆
आजकल किसी भी कार्य की गुणवत्ता उसकी रेटिंग के आधार पर तय होती है। लोगों ने क्या रिव्यू दिया ये सर्च करना कोई नहीं भूलता। इसे साहित्यकारों की भाषा में समीक्षा कह सकते हैं। हमारे कार्यो को कसौटी पर कसा जाता है। हम लोग तो भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण तक के गुण दोषों का आँकलन करने से नहीं चूकते तो भला इंसानी गतिविधियों को कैसे छोड़ दें।
वैसे इसका सबसे अधिक उपयोग पार्सल वाली सर्विसेज में होता है।कोई होटल सर्च करने से लेकर कपड़े, किताबें, ट्रैवेल एजेंसी या खाना मंगवाना आदि में पहले लोगों के विचारों को पढ़ते हैं कितनी रेटिंग मिली है उसी आधार पर दुकानों का चयन होता है। मजे की बात है कि डॉक्टर व हॉस्पिटल भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। मैंने एक डॉक्टर का नाम जैसे ही गूगल पर डाला तो सैकड़ों कमेंट उसकी बुराइयों में आ गए, पर मन तो बेचारा है वो वही करता है जो ठान ले। बस फिर क्या उसी के पास पहुँच गए दिखाने के लिए। बहुत सारी जाँचों के बाद ढेर सारी दवाइयाँ लिखी गयीं पर सब बेअसर क्योंकि डॉक्टर रोग को समझ ही नहीं पाए थे। तब जाकर समझ में आया कि रेटिंग की वेटिंग पीछे थी और रिव्यू कमजोर थे पर अब तो रिस्क ले लिया था सो मन मार कर रह गए।
ऐसा ही पुस्तकों के सम्बंध में भी होता है, जिसकी ज्यादा चर्चा हो उसे ही अमेजॉन से आर्डर कर दिया जाता है। सबसे ज्यादा बिकनी वाली पुस्तकें व उसके लेखक सचमुच योग्य होते हैं। बेचने की कला ने ही विज्ञापन को जन्म दिया है और उसे खरीदने पर विवश हो जाना वास्तव में समीक्षा का ही कमाल होता है।
पत्र पत्रिकाओं में सबसे पहले लोग पुस्तक चर्चा ही पढ़ते थे। अपनी तारीफ करवाने हेतु बूस्ट पोस्ट कोई नई बात नहीं है। आखिर जब तक लोगों को जानकारी नहीं होगी वे कैसे सही माल खरीदेंगे। साहित्य में तो आलोचना का विशेष महत्व है कई लोग स्वयं को आलोचक के रूप में स्थापित करके ही आजतक विराजित हैं। जब चिंतन पक्ष में हो तो समीक्षा की परीक्षा अच्छी लगती हैं किंतु जब विपक्ष में बैठना पड़े तो मन कसैला हो जाता है। खैर जो भी हो गुणवत्ता का ध्यान सभी को अवश्य रखना चाहिए।
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “विजय”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 94 ☆
☆ लघुकथा — विजय ☆
“पापाजी! आपके पास इतनी रीवार्ड पड़े हैं, आप इनका उपयोग नहीं करते हो?”
“बेटी! मुझे क्या खरीदना है जो इनका उपयोग करुँ,” कहते हुए पापाजी ने बेटी की अलमारी में भरे कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन वाले सामान के ढेर को कनखियों से देखा। जिनमें से कई एक्सपायर हो चुके थे।
“इनमें 25 से लेकर 50% की बचत हो रही है। हम इसे दूसरों को बेचकर 50% कमा सकते हैं।”
” हूं।” धीरे से करके पापाजी रुक गए।
तब बेटी ने कहा,” आप मुझे अपना फोन दीजिए। मैं आपको 50% की बचत करके देती हूं।”
” मेरे लिए कुछ मत मंगवाना। मुझे बचत नहीं करना है,” पापाजी ने जल्दी से और थोड़ी तेज आवाज में कहा,” मैं इतनी सारी बचत कर के कहां संभालता फिरूंगा।”
यह सुनते ही बेटी का पारा चढ़ गया, ” पापाजी, आप भी ना, रहे तो पुराने ही ख्यालों के। आप को कौन समझाए कि ऑनलाइन शॉपिंग से कितना कमा सकते हैं?”
” हां बेटी, तुम सही कहती हो। पुराने जमाने के हम लोग यह सब करते नहीं हैं, नए जमाने वाले सभी यही सोचते हैं कि वे खरीदारी करके 50% कमा रहे हैं,” कहते हुए पापा जी ने बेटी को अपना मोबाइल पकड़ा दिया, ” बेटी, तुझे जो उचित लगे वह मंगा लेना। मुझे तो अब इस उम्र में कुछ बचाना नहीं है।”
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे ।
आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत “बीते बचपन की यादें ”
आज ११ नोव्हेंबर — लेखक आणि संपादक म्हणून, आणि त्याचबरोबर लोकनेते, पत्रकार आणि स्वातंत्र्यसैनिक म्हणूनही सुप्रसिद्ध असणारे अनंत काशिनाथ भालेराव यांचा आज जन्मदिन. (११/११/१९१९–२६/१०/१९९१ )
भारताचा स्वातंत्र्यसंग्राम, हैद्राबाद मुक्तिसंग्राम, आणि नंतर संयुक्त महाराष्ट्र चळवळ या सर्व लढ्यांमध्ये सक्रीय असणाऱ्या श्री. भालेराव यांनी, त्यासाठी फक्त तुरुंगवासच नाही, तर सक्तमजुरीची शिक्षाही भोगलेली होती. पुढे त्यांनी काही काळ शिक्षक म्हणून काम केले. नंतर औरंगाबादच्या दैनिक मराठवाडामधून ‘ देशाचा विकास आणि समाजहित ‘ या विषयावर त्यांनी सातत्याने लेखन केले. १९७७ साली देशात लागू झालेल्या आणीबाणीच्या काळात त्यांनी पत्रकार म्हणून काम करायला सुरुवात केली. आधी साप्ताहिक असणाऱ्या ‘ मराठवाडा ‘चे दैनिक झाले, आणि आधी सहसंपादक असणारे श्री. भालेराव संपादक म्हणून कार्यरत झाले. हैदराबादमधील पत्रकार-संघाचे ते सहा वर्षे अध्यक्ष होते. पुरोगामी आणि विकासात्मक पत्रकारिता, आणि लोकहिताचे प्रश्न, यासाठी त्यांनी सातत्याने एक मंच उपलब्ध करून दिला होता. म्हणूनच, “ पत्रकार आणि साहित्यिक यांची एक पिढी घडवण्याच्या कामात त्यांचे मोलाचे योगदान होते “ असे त्यांच्याबद्दल गौरवाने म्हटले जाते.
याबरोबरच साहित्य चळवळीतही त्यांचा मोठा सहभाग होता. साहित्य-परिषदेतली वेगवेगळी पदे त्यांनी भूषवलेली होती. त्यांच्या दैनिकाच्या माध्यमातून त्यांनी नव्या जाणिवांचे प्रवाह साहित्यात आणणाऱ्या साहित्यिकांना सतत प्रोत्साहन दिले. एकीकडे त्यांचे स्वतःचे लेखनही जोमाने सुरू होते. आलो याच कारणासी, कावड, हे त्यांचे लेखसंग्रह– पळस गेला कोकणा हे प्रवासवर्णन–मांदियाळी या शीर्षकाने व्यक्तिचित्रे — तसेच, स्वातंत्र्यसंग्रामाच्या आठवणी– पेटलेले दिवस, आणि, हैद्राबादचा स्वातंत्र्यसंग्राम आणि मराठवाडा ,—- असे त्यांचे विपुल लिखाण प्रसिद्ध झालेले होते.
‘ अनंत भालेराव– काळ आणि कर्तृत्व, ‘ आणि ‘ समग्र अनंत भालेराव ‘ ( दोन खंड ) ही, त्यांचे एकूण सगळेच कार्यकर्तृत्व उलगडणारी पुस्तकेही प्रसिद्ध झालेली आहेत.
लेखक, कलावंत, पत्रकार आणि सामाजिक कार्यकर्ते यांना दिल्या जाणाऱ्या “ अनंत भालेराव स्मृती पुरस्काराने “ आजपर्यंत ग.प्र.प्रधान, संवादिनी-वादक आप्पा जळगावकर, नरेंद्र दाभोळकर, मंगेश पाडगावकर, ना.धों. महानोर, विजय तेंडुलकर, मृणाल गोरे, मेधा पाटकर, अभय बंग, अनिल अवचट, चंद्रकांत कुलकर्णी, अशा विविध क्षेत्रातील मान्यवरांचा गौरव केला गेला आहे.
स्व. अनंत भालेराव यांना आजच्या त्यांच्या जन्मदिनी आदरपूर्वक वंदन.
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आज डॉ.श्री. जनार्दन वाघमारे यांचाही जन्मदिन.( जन्म : ११/११/१९३४ )
मराठीबरोबरच इंग्लिशमधूनही सकस लेखन करणारे, आणि नांदेड इथे स्थापन झालेल्या मराठवाडा विद्यापीठाचे पहिले कुलगुरू असणारे श्री. वाघमारे हे सुरुवातीला इंग्रजी साहित्याचे प्राध्यापक होते. नंतर कॉलेजचे प्राचार्य म्हणूनही कार्यरत होते. निग्रो साहित्याचे भाष्यकार, दलित पुरोगामी साहित्य चळवळीचे अभ्यासक आणि शिक्षणतज्ज्ञ म्हणून ख्यातनाम असणाऱ्या श्री. वाघमारे यांची राज्यसभेचे खासदार म्हणूनही नियुक्ती झाली होती.
बखर एका खेड्याची, मंथन, मातीवरच्या ओळी, यमुनेचे पाणी, राज्यसभेतील सहा वर्षे, सहजीवन, असे त्यांचे ललित-लेख-संग्रह प्रसिद्ध झालेले आहेत. मूठभर माती, आणि चिंतन एका नगराध्यक्षाचे, या आत्मचरित्रात्मक कादंबऱ्या, तसेच, महर्षी दयानंद सरस्वती– विचार, कार्य और कृतित्व, समाज परिवर्तनकी दिशाएं, यासारखे सात अनुवादित ग्रंथही त्यांनी लिहिलेले आहेत. त्यांनी खूप सारे वैचारिक लेखनसुद्धा केले आहे. जसे की— ‘ अमेरिकन निग्रो – साहित्य आणि संस्कृती ‘, ‘ आजचे शिक्षण– स्वप्न आणि वास्तव ‘, दलित साहित्याची वैचारिक पार्श्वभूमी, ‘ बदलते शिक्षण- स्वरूप आणि समस्या ‘, ‘ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर आणि जातीअंताचा लढा ‘, महाराष्ट्रातील राजकारण आणि समाजकारण, हाक आणि आक्रोश, ‘ प्राथमिक शिक्षण– यशापयश आणि भवितव्य ‘, इत्यादी– असे त्यांचे लेख अभ्यासनीय म्हणून प्रशंसनीय ठरलेले आहेत.
डॉ. जनार्दन वाघमारे यांना आजच्या जन्मदिनी सादर प्रणाम आणि हार्दिक शुभेच्छा.
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“ ती पहा, ती पहा, बापूजींची प्राणज्योती, तारकांच्या सुमनमाला देव त्यांना वाहताती “ ही शाळेत शिकलेली कविता आणि पुस्तकातला कवितेच्या अलीकडच्या पानावरचा गांधीजींचा काठी हातात घेऊन चालतांनाच आडवा फोटो, आणि त्या फोटोत दूरवर दिसणारी तेवत्या पणतीची ज्योत— हे सगळं माझ्याप्रमाणेच बऱ्याच वाचकांना नक्कीच आठवत असेल. या अजरामर कवितेचे कवी, म्हणजे — ‘ लोककवी मनमोहन ‘ म्हणून प्रसिद्ध असलेले गोपाळ नरहर तथा मनमोहन नातू यांचा आज जन्मदिन. ( ११/११/१९११ – ७/५/१९९७ ) काव्यरसिकांच्या थेट मनापर्यंत पोहोचतील अशा कितीतरी कविता त्यांनी लिहिल्या. आणि त्या खूप गाजल्याही.—– “ शव कवीचे जाळू नका हो, जन्मभरी तो जळतच होता । फुलेही त्यावर उधळू नका हो, जन्मभरी तो फुलतच होता ।।” ही अतिशय हळुवार भावना व्यक्त करणारी कविता, “ मैत्रिणींनो सांगू नका नाव घ्यायला “ ही भावगीत म्हणून प्रसिद्ध झालेली कविता, “ मी मुक्तांमधला मुक्त आणि तू, कैद्यांमधला कैदी “ ही जराशी अबोध वाटणारी पण सुंदर कविता, “ आमुचे नाव आसू गं “ अशी मनाला भिडणारी कविता —-ही त्यांच्या कवितांची काही उदाहरणे. त्यांची आवर्जून सांगायला हवी अशी एक कविता म्हणजे —- “कसा गं बाई झाला, कुणी गं बाई केला, राधे तुझा सैल अंबाडा “– सुरुवातीला या कवितेवर “अश्लील“ असा शिक्का मारून, ती लोकांसमोर सादर करायला विनाकारण आक्षेप घेतला गेला होता. पण त्यावेळचे सुप्रसिद्ध संगीतकार आणि गायक श्री. गजानन वाटवे यांनी या कवितेला स्वतः चाल लावून स्वतःच्या भावगीत-गायनाच्या जाहीर कार्यक्रमांमध्ये ती सादर करायला बेधडकपणे सुरुवात केली, आणि ही कविता अतिशय लोकप्रिय झाली.
‘ सुनीतगंगा ‘, असे काव्यसंग्रह, आणि ‘ बॉम्ब ‘ सारख्या काही दीर्घकविताही प्रसिद्धीप्राप्त ठरलेल्या आहेत.
मनमोहन नातू हे फक्त कवी नव्हते, तर, लघुकथा, कादंबऱ्या , ललित लेख असे त्यांचे इतरही विपुल लेखन प्रसिद्ध झालेले होते. छत्रपती संभाजी, छत्रपती शाहू, छत्रपती राजाराम, संभवामि युगे युगे, अशी चरित्रात्मक पुस्तके, तसेच तोरणा, प्रतापगड, आग्र्याहून सुटका, सूर्य असा मावळला, अशा त्यांच्या कादंबऱ्या प्रसिद्ध झालेल्या आहेत.
‘ मीनाक्षी दादरकर ‘ या टोपणनावानेही त्यांनी काही रचना केल्या होत्या, ५००० मंगलाष्टके रचली होती, लिखित रूपात भविष्ये लिहिली होती, ही त्यांची रसिकांना माहिती असावी अशी माहिती.
कविवर्य श्री. मनमोहन यांना त्यांच्या आजच्या जन्मदिनी मनःपूर्वक आदरांजली.
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सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे
ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ
मराठी विभाग
संदर्भ : – १) कऱ्हाड शिक्षण मंडळ “ साहित्य-साधना दैनंदिनी. २) माहितीस्रोत — इंटरनेट
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈