हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 185 ☆ विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 185 विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ?

न चोरहार्यं न च राजहार्यं

न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धते एव नित्यं

विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

जिसे चोर चुरा नहीं सकता, राजा छीन नहीं सकता, भाई बांट नहीं सकता, जिसका किसी तरह का कोई अतिरिक्त भार अनुभव नहीं होता, व्यय करने पर जो नित्य बढ़ता है, ऐसा विद्या रूपी धन सभी प्रकार के धनों में श्रेष्ठ है।

विद्या-धन से समृद्ध होना अर्थात केवल काग़ज़ पर छपा पढ़कर रट्टू तोता बनना नहीं होता। विद्या-धन वह, जो जानकारी से होते हुए ज्ञान तक ले जाए। यदि विद्या यह यात्रा नहीं कराती तो साक्षर व्यक्ति भी अज्ञानी ही कहलाता है।

एक लोकप्रिय प्रसंग है। एक साक्षर विद्वान, यात्रा पर थे। उन दिनों पदयात्रा हुआ करती थी। मार्ग में उन्हें तीव्र प्यास लगी। वे समीप के गाँव में पहुँचे। एक महिला कुएँ पर पानी भर रही थी।

विद्वान ने महिला से पीने के लिए जल मांगा। महिला ने कहा, “जल तो मिल जाएगा परंतु मैंने आपको आज से पूर्व कभी गाँव में नहीं देखा। कृपा करके अपना परिचय दीजिए।” ग्रामीण महिला को अपना परिचय देना विद्वान को अपमानास्पद लगा। तथापि सूखते कंठ की विवशता थी। किसी तरह स्वयं को नियंत्रित रखते हुए कहा, “मैं अतिथि हूँ।” महिला हँस पड़ी। बोली, “अतिथि तो दो ही होते हैं, धन और यौवन।” विद्वान महोदय कुछ विस्मित हुए। तब भी साक्षरता का अहंकार झुकने को तैयार नहीं था। तनिक झुंझला कर बोले,”मैं सहनशील हूँ।”। महिला फिर हँसी। बोली, “संसार में सहनशील तो दो ही हैं। एक पृथ्वी माता जो सारे अत्याचार सहकर, सबका बोझ उठाकर भी अन्न देती है। दूसरा वृक्ष जो पत्थर की चोट खाकर भी फल देता है।”

विद्वान की झुंझलाहट और हठ दोनों ही बढ़ चले। इस बार कहा, “सुनो, मैं हठी हूँ।” महिला ने ठहाका लगाया। बोली, “जगत में हठी तो दो ही हैं, हमारे नाखून और बाल। कितना ही काटो, फिर-फिर बढ़ जाते हैं। इनके हठ के आगे अन्य सारे हठ तुच्छ हैं।” अंतत: विद्वान को अपनी लघुता की अनुभूति हुई। इस बार विनम्रता से कहा, “देवी सत्य कहूँ, मुझे लगता है कि साक्षरता के अहंकार में ज्ञान से मैं वंचित रहा। वास्तविक ज्ञानी तो आप हैं। अब मुझे अपना परिचय मिला है। वस्तुत: मैं अज्ञानी हूँ।” विद्वान को आश्चर्य हुआ कि महिला इस बार भी हँसी। कहा, “जगत में अज्ञानी दो ही हैं। ऐसा राजा या राजवंशी जो बिना किसी योग्यता के राज करना चाहता है। दूसरे वे दरबारी जो राजा के अनुचित निर्णय में भी उसे प्रसन्न रखने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं।”

साक्षर अब ज्ञानमार्ग पर प्रशस्त हुआ। इस प्रसंग के पात्रों का उल्लेख अनेकदा महान कवि कालिदास और माँ सरस्वती के बीच संवाद के रूप में भी होता है।

प्रसंग नहीं, प्रसंग से प्राप्त प्रेरणा, प्रेरित होकर ज्ञानार्जन के पथ पर चलना महत्वपूर्ण है। ज्ञान का पथ अविराम है। ज्ञान का पथ ज्ञान की अकूत संपदा तक ले जाता है।

विद्या के सार्थक ग्रहण ओर समुचित क्रियान्वयन से उपजी ज्ञान की संपदा शाश्वत होती है। एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी, एक युग से अगले युग, उसके अगले युग तक, समय के आरंभ से समय के विराम तक बची रहती है ज्ञान की जननी विद्या। इसीलिए कहा गया है, ‘विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।’

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

💥 अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक 💥

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी ⇒ जलकुकड़ी/जल मुर्गी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब और कैलेण्डर”।)  

? अभी अभी ⇒ जलकुकड़ी/जल मुर्गी? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमारा बचपन गोकुल की कुंज गलियों में नहीं,शहर के गली मोहल्लों में गुजरा !

पनघट ना होते हुए भी गुलैल से निशाना साधकर मटकी की जगह,फलदार वृक्षों से आम, इमली तोड़ना हमारे बाएं हाथ का खेल था। लड़ने झगड़ने और छेड़छाड़ के लिए हमें कभी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।

लड़ने की यही विशेषता बड़े होकर चुनाव लड़ने में हमारे बहुत काम आई।

आज पक्की दोस्ती,तो कल बोलचाल बन्द। तू चुगलखोर तो तू जलकुक्कड़। कट्टी तो कट्टी,साबुन की बट्टी। ला मेरे पैसे,जा अपने घर। लेकिन आज अगर वही कोई बचपन का दोस्त मिल जाए,तो ये लगता है, कि जहां,मिल गया।।

हम आज भी आपस में एक दूसरे को देखकर कभी खुश होते हैं,तो कभी जल भुन जाते हैं। महिलाओं की किटी पार्टियों की खबरें उड़ती उड़ती आखिर हम तक भी पहुंच ही जाती है। मत पूछो, मिसेज डॉली के बारे में,वह तो बड़ी जल कुकड़ी है। बहुत दिनों बाद जब यह शब्द सुना,तो शब्दकोश याद आया। अरे,यह तो एक पक्षी है, White breasted Hen, यानी जल मुर्गी।

अगर मछली जल की रानी है,तो हमारी मुर्गी भी तो महारानी है। अगर मुर्गे को (Cock) कॉक कहते हैं तो मुर्गी को Hen कहते हैं। अंग्रेजी के अक्षर ज्ञान में हमने पढ़ा है। The Cock is crowing.

मुर्गा ही बांग देता है,मुर्गी तो बस, पक पक,किया करती है। बड़ी विचित्र है यह अंग्रेजी भाषा। अगर cock के आगे pea लग जाए तो वह peacock,यानी मोर हो जाता है। Crow से याद आया,कौए को भी crow ही कहते हैं,लेकिन वह बांग नहीं देता,सिर्फ कांव कांव किया करता है।।

कुछ लोग गाय पालते हैं तो कुछ कुत्ता ही पाल लेते हैं। गोशाला और अश्व शाला तो ठीक,कुत्ते के लिए तो उसके मालिक का घर ही उसकी पाठशाला है। पालन पोषण पुण्य का काम है। लेकिन पापी पेट के लिए इंसान को मत्स्य पालन और कुक्कुट पालन भी करना पड़ता है। गाय को चारा और मछलियों को चारे में जमीन आसमान का ना सही,जल और थल का अंतर तो है ही। इस पर हम ज्यादा नहीं लिखेंगे क्योंकि जीव: जीवस्य भोजनं और वैदिक हिंसा,हिंसा न भवति।

बड़ा अजीब है,यह जल शब्द भी। इसी जल से ही तो जीवन है। गर्मी में जहां यह शीतल जल अमृत है,वहीं जब सीने में जलन होती है तो आंखों में तूफान सा आ जाता है। जलते हैं जिसके लिए, तेरी आंखों के दिये।।

यही जल कहीं आग है,तो कहीं पानी है। जो आग दिल में जली हुई है,वही तो मंजिल की रोशनी है। लेकिन जब यही आग,यही जलन ईर्ष्या,द्वेष और नफरत की होती है तो जिंदगी में तूफान आ जाता है। किसी की खुशी से,उन्नति से,सफलता से जलना,अच्छी बात नहीं है। जल कुकड़ी बनें तो जल मुर्गी की तरह। और अगर आप जलकुक्कड़ हैं,तो भले ही आप पर घड़ों ठंडा पानी डाल दिया जाए,आप एक जल मुर्गी नहीं बन सकते।

अगर जलाएं तो अपना दिल नहीं,दिल का दीया जलाएं,जिससे आपका घर भी रोशन हो,और रोशन हो ये जहान,जिसमें हम रहते हैं यहां।।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 133 ☆ दोहा सलिला – मन के दोहे… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  दोहा सलिला – मन के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 133 ☆ 

☆ दोहा सलिला – मन के दोहे ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन जब-जब उन्मन हुआ, मन ने थामी बाँह.

मन से मिल मन शांत हो, सोया आँचल-छाँह.

*

मन से मन को राह है, मन को मन की चाह.

तन-धन हों यदि सहायक, मन पाता यश-वाह.

*

चमन तभी गुलज़ार हो, जब मन को हो चैन.

अमन रहे तब जब कहे, मन से मन मृदु बैन.

*

द्वेष वमन जो कर रहे, दहशत जिन्हें पसंद.

मन कठोर हो दंड दे, मिट जाए छल-छंद.

*

मन मँजीरा हो रहा, तन कीर्तन में लीन.

मनहर छवि लख इष्ट की, श्वास-आस धुन-बीन.

*

नेह-नर्मदा सलिल बन, मन पाता आनंद.

अंतर्मन में गोंजते, उमड़-घुमड़कर छंद.

*

मन की आँखें जब खुलीं, तब पाया आभास.

जो मन से अति दूर है, वह मन के अति पास.

*

मन की सुन चेता नहीं, मनुआ बेपरवाह.

मन की धुन पूरी करी, नाहक भरता आह.

*

मन की थाह अथाह है, नाप सका कब-कौन?

अंतर्मन में लीन हो, ध्यान रमाकर मौन.

*

धुनी धूनी सुलगा रहा, धुन में हो तल्लीन.

मन सुन-गुन सुन-गुन करे, सुने बिन बजी बीन.

*

मन को मन में हो रहे, हैं मन के दीदार.

मन से मिल मन प्रफुल्लित, सर पटके दीवार.

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८.७.२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बाल कविता  – काले रंग की महिमा☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

श्री अखिलेश श्रीवास्तव 

(विज्ञान, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक श्री अखिलेश श्रीवास्तव जी 1978 से वकालत एवं स्थानीय समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य में सलग्न । स्वांतः सुखाय समसामयिक विषयों पर लेख एवं कविताएं रचित/प्रकाशित। प्रस्तुत है आपकी बच्चों के लिए रचित एक  कविता काले रंग की महिमा।)

☆ बाल कविता  – काले रंग की महिमा ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

काले रंग की महिमा का

अजी सुनो गुणगान

काले रंग से तुम घृणा

नहीं करो इंसान।।

 

काला तिल है चेहरे पर

सुंदरता की पहचान

काले कजरारे नैनौं पर

लुट जाता है इंसान।।

 

नज़र से बचने के लिए

काला लगे निशान

काले लम्बे बाल ही

हैं महिला की आन।।

 

काली काली मूंछ ही

 है मर्दों की शान

महिला काली साड़ी में

सबका खींचें ध्यान।।

 

काले मोती की माला

का मंगलसूत्र महान

सुहागिन नारी की

यही एक पहचान।।

 

सात रंग सुन्दर लगें

सब करते हैं बखान

काले रंग के फेरते

मिट जाती पहचान।।

 

काली करतूतें समाज में

करती है बदनाम

काले कर्मों की सज़ा

देता है भगवान।।

 

काले मेघा देखकर

खुश हो जाये किसान

बुरी नज़र से बचाये

काला धागा महान।।

 

काले बोर्ड से शुरू हुआ

है शिक्षा का ज्ञान

काले कोट से मिल रहा

हमें न्याय वरदान।।

 

काले  भगवन् कृष्ण थे

काले थे श्री राम

दोनों की स्तुति से

सुखी रहे इंसान।।

 

© श्री अखिलेश श्रीवास्तव

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ उत्तर प्रदेश पत्रिका का मन्नू भंडारी विशेषांक

मन्नू भंडारी की याद किसे नहीं और कौन भूल सकता है इन्हें ? ‘रजनीगंधा’ फिल्म की याद है ? यह उन्हीं की कहानी पर आधारित थी । ‘रजनी’ जैसा लोकप्रिय धारावाहिक मन्नू भंडारी ने लिखा । ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसे उपन्यास भी इनके खूब चर्चित रहे । ‘आपका बंटी’ उपन्यास प्रसिद्ध लेखक मोहन राकेश के जीवन पर आधारित है और वे भी कुछ न कह सके ! राजेंद्र यादव के साथ बरसों रहने के बाद जीवन के आखिरी दौर में अलग होने का साहस दिखाया । छह गज साड़ी और लाल बिंदी से दूर से ही पहचानी जाती थीं । बेटी रचना यादव ने आखिर अपनी मां पर स॔स्मरण लिखा – छह गज का अनंत विस्तार ! ये सब पढ़ने को मिलेगा उत्तर प्रदेश नामक पत्रिका में जिसका मन्नू भंडारी विशेषांक आया है । सुधा अरोड़ा जैसी वरिष्ठ कथाकार ने एक प्रकार से ठान लिया था कि यह विशेषांक बिना रचना यादव के संस्मरण के नहीं जायेगा । और वे सफल रहीं क्योंकि मौसी जो हैं रचना की ! सुधा अरोड़ा की कवितायें भी खूब है मन्नू भंडारी पर । दोनों कोलकाता से हैं लेकिन मज़ेदार बात कि कभी कोलकाता में नहीं मिलीं । दिल्ली में मिलीं । दोनों में जो प्रेम और समर्पण है वह आज लेखक बिरादरी में देखने को नहीं मिलता । वैसे इस अंक में ममता कालिया का संस्मरण भी बहुत खूबसूरत है- मन्नू भंडारी ने अपने शीर्ष रचनात्मक वर्षों में कमतर और कमज़ोर लेखिकाओं को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व पर हावी होते देखा । कम दवा से कोई नहीं मरता, कम प्रेम से जरूर मर जाता है । यह बहुत बड़ा सच लिख दिया ममता कालिया ने ! सुधा अरोड़ा का संसमरण – मेरी डायरी के पन्नों में मन्नू दी भी बहुत शानदार है । यह अंक सचमुच पठनीय है । संग्रहणीय है । जिसने भी मुझे यह भेजा उसको दिल से आभार।

हिमालय मंच : हिमाचल की सीमाओं से बाहर तक फैले हैं कथाकार एस आर हरनोट । शिमला जब भी इन वर्षों में जाना हुआ, हरनोट से मुलाकात और विचार विमर्श जरूर हुआ । किताबों का आदान प्रदान भी । बुक कैफे के बंद होने पर भी खूब आंदोलन किया । वे हिमालय साहित्य मंच नाम से पिछले बारह वर्षों से जैसे एक आंदोलन ही चले रहे हैं । कभी रेल साहित्य यात्रा से तो कभी गेयटी थियेटर में तो कभी रोटरी हाॅल में ! कभी विनोद गुप्ता के साथ ! कुछ न कुछ क्रियेटिव करते रहते हैं । सचमुच आज हिंदी साहित्य को ऐसे एक्टिविस्ट चाहिएं जो न सिर्फ लिखें बल्कि नयी पीढ़ी को भी आगे बढ़ाने में सहयोग दें । हरनोट यह काम बहुत खूबसूरती से कर रहे हैं । शुभकामनाएं।

हरियाणा साहित्य व सांस्कृतिक अकादमी : डाॅ कुलदीप अग्निहोत्री को हरियाणा साहित्य व संस्कृतिक अकादमी का कार्यकारी उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है और उन्होंने कार्यभार भी संभाल लिया । वे इससे पहले केंद्रीय विद्यालय, धर्मशाला के कुलपतिपंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं । पंजाब के नवांशहर के गांव मुकंदपुर के मूल निवासी डां अग्निहोत्री एक समाचार एजेंसी के प्रमुख भी रहे । पत्रकारिता और साहित्य से जुडे व्यक्तित्व । बधाई ।

भिवानी में नाटयोत्सव : मीरा कल्चरल सोसायटी की ओर से विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर तीन दिवसीय नाट्योत्सव आयोजित किया गया । तीनों दिन नाटक तो मंचित हूए और एक एक व्यक्तित्व को सम्मानित भी किया गया जिसमें खुशकिस्मती से मैं भी एक रहा और दूसरे रहे महेश वाशिष्ठजगबीर राठीसोनू रोंझिया की कोशिश को सलाम । कोरोना के बाद यह आयोजन कर पाये और आगे जारी रखने की घोषणा की है । पार्क और रामसजीवन की प्रेम कथा जैसे नाटक मंचित किये गये । खुद सोनू ने रामसजीवन की प्रेम कथा का निर्देशन किया । कुरूक्षेत्र के विकास शर्मा ने पहले दिन पार्क का मंचन किया । इस तरह हिसार के बाद भिवानी का नाटयोत्सव भी खूब चर्चा में है ।

राजगढ़ में लघुकथा सम्मेलन: राजस्थान के राजगढ़ जैसे छोटे से शहर में राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है । देश भर से सक्रिय लघुकथाकार आमंत्रित हैं । देखिये कैसा आयोजन होता है । फिलहाल तो शुभकामनायें !

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तळ्याकाठी… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ तळ्याकाठी… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆ 

निळ्या तळ्याच्या कडेला

 माझे हेलावे अंतर

लाट धडके लाटेला

काटा माझ्या अंगावर

 

तळ्यातले पाणी होई

माझ्या मनाचा आरसा

कोंदटले मन माझे

इथे टाकते उसासा

 

झाड पाण्यात निरखी

आपलेच प्रतिबिंब

माझ्या काळजात खिळे

एक सय ओली चिंब

 

पाण्यावरी ओनावता

 दिसे माझाच चेहरा

 पाठमोऱ्या सावलीचा

 रंग झाला गोरा गोरा

 

गंधाळला रानवारा

येतो वाजवीत पावा

माझ्या ध्यानीमनी घुमे

तुझ्या सादाचा पारवा

 

आठवता सारे सारे

माझी ओलावे पापणी

भर घालते तळ्यात

थेंब भर खारी पाणी

 

माझ्या तुझ्या आसवांची

अशी पडे गळामिठी

वाट पाहतो कधीचा

बसुनीया तळ्याकाठी

 

आला घोंगावत वारा

तुझा सुवास घेऊन

उठलेल्या तरंगानी

गेली प्रतिमा वाहुनी

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रुणझुण पैंजणाची… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रुणझुण पैंजणाची… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

क्षितीजावर सांजरंग

आज का उदासले

विराणीचे सूर असे

ओठावरी उमटले

 

याद तुझी दाटूनिया

मनासी या छळतसे

चांदणेही पसरलेले

आज मज जाळतसे

 

वेड्या मना पानोपानी

होती तुझेच भास

जीव व्याकूळ असा

मनाला तुझीच आस

 

 रुणझुण पैंजणाची

मना घाली उखाणे

नको रे तुझे सख्या

सारेच ते बहाणे

 

वाटेचे तुझ्या सखया

करिते फिरूनी औक्षण

तुझ्याविना युग भासे

मजसी रे क्षण क्षण

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ चोरीचा मामला…… लेखक – सु. ल. खुटवड ☆ प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे ☆

श्री मेघःशाम सोनवणे

?जीवनरंग ?

☆ चोरीचा मामला…… (सु. ल. खुटवड) ☆ प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे ☆ 

मध्यरात्री दोनच्या सुमारास घराची बेल वाजली…

तायडे, आम्ही आलोय गं! बाहेरून आवाज आल्याने संगीता जागी झाली. तायडे असा आवाज आल्याने आपल्या माहेरचंच कोणीतरी आलं असावं याची खात्री संगीताला पटली. तिने आयव्होलमधून पाहिले. तिघेजण पावसात भिजल्याने कुडकुडत उभे होते. तिने पटकन दार उघडून तिघांनाही आत घेतले.

एवढ्या रात्री कोठं गेला होतात? तिने विचारले. आमच्या कामधंद्याची हीच वेळ असते त्यातील टोपीवाला बोलला. मी तुम्हाला ओळखलं नाही पण तुम्ही माहेरच्या नावाने हाक मारली म्हणून दरवाजा उघडला संगीताने खुलासा केला. तुमचा धाकटा भाऊ मन्या, जलसंपदा खात्यात नोकरीला असणारा. आमचा लई जिगरी दोस्त आहे. तसेच तुमचा थोरला भाऊ सुधीर. जातेगावला शिक्षक असणारा, आम्ही लहानपणी एकत्रित खेळलोय. बागडलोय.. शिवाय तुमची धाकटी बहीण सुषमा… एका दाढीवाल्याने एवढी माहिती दिल्यावर संगीताचा त्यांच्यावर विश्वास बसला.

ती त्यांना चहा करायला किचनमध्ये गेली. चहाचे कप त्यांच्या हातात दिल्यावर ती म्हणाली, तुम्ही माझ्या माहेरची सगळी माहिती बरोबर सांगितली पण गावात तुम्हाला मी कधी पाहिलं नाही! संगीताने आश्चयनि म्हटले. आम्ही एका जागेवर कशाला राहतोय? आमचा येरवड्याला इंग्रजाच्या काळातला मोठा वाडा आहे. आम्ही वर्षातील सात-आठ महिने तिथं काढतो. तिथं आमचं गणगोत बी लई मोठं हाये, तेथून बाहेर पडल्यावर राज्यभर बिझनेससाठी फिरतीवर असतो. टोपीवाल्याने माहिती दिली.

माझे पती नेमके आज सकाळीच परगावी गेले आहेत संगीताने सांगितले. आम्हाला माहिती आहे. कंपनीच्या कामासाठी ते कोल्हापूरला स्विफ्ट या मोटारीने गेले आहेत. त्याच्या गाडीचा नंबरही आम्हाला पाठ आहे. परवा रात्री नऊ वाजेपर्यंत ते घरी येणार आहेत टोपीवाल्याने माहिती पुरवली.

माझ्या सासूबाईंनी तुम्हाला ओळखलं असतं. त्यांचं पण माहेर आमचंच गाव आहे. पण नेमक्या त्याही आज घरी नाहीत संगीताने माहिती पुरवली. शिरूरला तुमच्या नणंदेकडे त्या गेल्या आहेत. नणंदेचं दुसरं बाळंतपण गेल्याच आठवड्यात झालंय. त्यांची चिमुकली परी फार गोंडस आहे  दाढीवाल्याने म्हटले.

तुम्हाला एवढी अपडेट माहिती कशी काय? संगीताने आश्चर्यानं विचारले. अशा माहितीच्या जोरावरच तर आमच्या बिझनेसची बिल्डिंग उभी आहे… दाढीवाल्याने हसत उत्तर दिले. असं म्हणून त्याने सुषमाच्या गळ्याला चाकू लावला.

घरात जेवढी रोकड आणि दागिने असतील, तेवढे मुकाट्याने आणून दे! दाढीवाल्याने असं म्हटल्यावर तिला घाम फुटला. तिने पैसे आणि दागिने त्यांच्या हातात दिले. तुझ्या वाढदिवसाला नवऱ्याने दिलेला हिऱ्याचा हार कोठंय? तो दे! टोपीवाल्याने दरडावून म्हटले. त्यानंतर तिने तोही दिला. तुझ्या धाकट्या भावाने रक्षाबंधनाला दिलेला ‘आयफोन- १३’ दे! दाढीवाल्याने म्हटले. संगीताने तो फोनही देऊन टाकला.

या दागिन्यांमध्ये राणीहार दिसत नाही. वटपौर्णिमेच्या दिवशी तो घातला होता. तो कोठाय? तिसऱ्याने आवाज चढवत विचारले. संगीताने कपाटातून काढून तोही दिला. जेजुरीला जाताना पंचवीस हजारांची पैठणी नेसली होतीस. ती पण दे! टोपीवाल्याने दरडावले. ती दिल्यानंतर संगीताला रडू यायला लागलं. सासूबाई आणि नणंदेला अंधारात ठेवून, एवढ्या वर्षात आपण दागदागिने व मौल्यवान वस्तू करून ठेवल्या होत्या. एका क्षणात त्याचं होत्याचं नव्हतं झालं होतं.

माझ्याकडचा सगळा पैसा अडका, सोनं नाणं तुम्ही लुटलंत पण माझ्या घरातील एवढी सविस्तर माहिती तुम्ही कशी मिळवलीत?  संगीताने विचारलं. तायडे, आम्ही सगळे तुझे फेसबुक फ्रेंड आहोत… तिघांनीही एका सुरात उत्तर दिले.

👆🏻

जरुर बोध घ्यावा.

लेखक – सु. ल. खुटवड

संग्राहक – मेघःशाम सोनवणे

मो 9325927222

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “केवळ तुम्ही आहात म्हणून…” ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

??

☆ “केवळ तुम्ही आहात म्हणून…” ☆ सौ राधिका भांडारकर

“Thank God! मी हा निर्णय घेतला-‘

‘बापरे! थोडा जरी उशीर झाला असता तर..?’

“देवा! या वेळेस साथ दे —’

‘कसे अगदी वेळेवर आलात!’

‘तरी मला वाटलंच होतं!—’

‘काय करावे समजत नाही, नक्की कुठे जावं कळत नाही. कोणती दिशा पकडू? हा दिवा मालवू की तो?’

“खरं सांगू? केवळ तुम्ही आहात म्हणूनच मी हे करू शकले.’

हे आणि असे सहज उमटलेले,  अंतरंगाच्या क्षितिजावर आलेले सहजोद्गार असतात.  कधी ते ओठावर येतात तर कधी पोटातच वास करतात.  पण भावनांची ही प्रतिक्षिप्त क्रिया आहे.  ती ओढून ताणून येत नाही.  ठरवूनही येत नाही.  भावनांच्या वादळात, व्यक्ती जेव्हा द्विधा मनस्थितीत असते तेव्हां त्यातून बाहेर पडताना, एखाद्या जलभाराने फुटलेल्या ढगासारखे, हे शब्दतरंग झरतात.

“तुम्ही आहात म्हणून”  या तीन शब्दात खूप काही दडलेलं आहे.  हे तीन शब्द जितके आधारभूत आहेत तितकेच ते कृतज्ञता दर्शक ही आहेत.  तसेच ते स्थितीदर्शक आहेत.  अंधारातून प्रकाशाची वाट सापडलेल्या, भेलकांडलेल्या, तावून सुलाखून बाहेर पडलेल्या,  श्वास कोंडला असता  प्राणवायू मिळालेल्या, भरकटलेल्या, गोंधळलेल्या, जीवात्म्याला दिशा सापडल्यानंतर, त्याच्या अंतरंगातून उलगडलेली ही शब्दांची लड आहे.  आता प्रश्न येतो तो हा की “तुम्ही आहात म्हणून..” या वाक्यातले “तुम्ही” नक्की कोण?  ज्यांचा त्याक्षणी आधार वाटला, ज्यांनी खरा हात दिला, ऐनवेळी सकारात्मक मदत केली म्हणून हे घोडं गंगेत नहालं!

हे “तुम्ही”  खरोखरच विविध आहेत.  वेगवेगळ्या टप्प्यांवर भेटलेले सहस्त्र हातांचे हे “तुम्ही”  आहेत.  ते एकरंगी नसून विविध रंगी आहेत.  कधी ते सगुण  तर कधी ते निर्गुण आहेत.  कधी ते ज्ञात आहेत तर कधी ते अज्ञात आहेत.  दूर आहेत, निकटही आहेत.  सावली देणारे आहेत उन्हाचा तडका ही जाणवणारे आहेत.  रानातल्या चकव्यासारखे आहेत तर “भिऊ नको! मी तुझ्या पाठीशी आहे.” म्हणणारेही आहेत.  कणा  मोडलेल्या पाठीवर हात ठेवून, “लढ.” म्हणणारेही आहेत. सॉक्रेटिसच्या विषाच्या पेल्यात हे “तुम्ही” आहेत. कृष्णाच्या बासरीत  ते आहेत.  आकाशातल्या ग्रहताऱ्यात , झऱ्यात , नदीत , पर्वतातही आहेत,  अर्जुनाच्या बाणात , भीमाच्या बाहुबलात,  युधिष्ठिराच्या सत्यप्रियतेत, युगंधराच्या गीतेत,  संतांच्या वचनात,   गांधारीच्या डोळ्यावरच्या पट्टीत,  कुंतीच्या  वेदनेतही आहेत.

“राऊळाच्या कळसाला लोटा कधी म्हणू नये”  या काव्यपंक्तीत आहेत. सुरात, लयीत,  प्रेमात,  रागात,  रंगात आहेत.  दृश्य आणि अदृश्य स्वरूपातले हे “तुम्ही”  अनंत अथांग आहेत.  आणि कधीतरी अवचित ते आपल्यासमोर असल्याचे जाणवते आणि मग आपण म्हणतो,

“केवळ तुम्ही आहात म्हणून…”

आपण साधे एका ठिकाणाहून दुसऱ्या ठिकाणी प्रवासास निघतो तेव्हा आपली केवढी धांदल उडालेली असते ! प्रवासात  लागणाऱ्या अनेक संभाव्य साहित्याची आपण विचारपूर्वक जमवाजमव  करतो.  शेवटच्या क्षणापर्यंत, आपण आपला प्रवास सुखकर व्हावा म्हणून प्रवासी बॅकपॅक मध्ये काही ना काही कोंबतच असतो. आणि सुरक्षित, सुखद वाटचालीची खात्री बाळगतो. 

मग जीवन ही तर लांबलचक सहलच आहे. कुठले विराम, कुठली  स्थानकं, कुठला मार्ग याविषयी आपण तसे अनभिज्ञच असतो नाही का?  मग या प्रवासासाठी लागणारे साहित्य नेमकं कुठलं  आणि कसं घ्यायला हवं? 

या प्रवासी पेटीत अनेक कप्पे आहेत, खण आहेत. काही गुप्त जागाही आहेत. काही उघडे आहेत, काही बंद आहेत.  आतही आहेत, बाहेरही आहेत. ज्या ब्रम्हांडापासून जीवनाच्या प्रवासाची सुरुवात होते,  तेव्हा काही कप्पे भरलेले असतातच. त्यात काही नातीगोती असतात काही गुणदोष असतात.स्थल, कालदर्शक असं बरंच काही असतं. पण बाकीच्या अनेक रिकाम्या जागा या सहलीच्या दरम्यान, कधी कळत नकळत तर कधी जाणीवपूर्वक भराव्या  लागतात.  वाटेत   खूप सिग्नल्स असणार आहेतच. कधी लाल, हिरवे,  तर पिवळे ही. 

मला इथे सहज एक आठवलं म्हणून उदाहरणादाखल सांगते—

एखादी, पदार्थ बनवण्याची स्पर्धा असते. स्पर्धेपूर्वी कुणी कुठला पदार्थ बनवायचा, हे ठरलेले असते.  बाजूच्या टेबलवर अनेकविध पाकक्रियेचे साहित्य ठेवलेले असते.  आणि त्यातून आपल्याला जे हवे ते नेमके उचलायचे असते.  वाटते तितके हे सोप्पे नसते बरं का?  स्पर्धक काहीतरी विसरतोच.  आणि मग ठरलेला पदार्थ बनवताना त्याची प्रचंड धावपळ होते. 

जगण्याच्या स्पर्धेतही नेमके हेच घडते.  ब्रह्मदेवाने आपल्यासमोर अफाट पसरून ठेवलेले आहे.  आणि नेमके त्यातलेच आपल्यासाठी योग्य असलेले ” वेचायचे आहे.  या प्रवासात “तुम्ही” ही  एक संज्ञा आहे.  त्याची अनंत रूपे आहेत. रंग,रस आहेत. तुम्हाला कुठली रूपं हवी आहेत ते तुम्हीच ठरवा.  पंचमहाभूते आहेत, षड्रिपू आहेत.  ध्येय, चिकाटी, जिद्द, स्वाभिमान ,स्वावलंबन, परिश्रम, सत्य, नीती, चातुर्य, बुद्धी असे सहस्त्र गुणही आहेत.  हे सारेच तुमच्या मार्गातले “तुम्ही” आहेत.  एकदा त्यांची निवड तुम्ही केलीत की ती योग्य आहे की अयोग्य, हे तुमच्या मुखातून प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्षपणे उमटणाऱ्या,

” तुम्ही आहात म्हणून”  या कृतज्ञतापूर्वक उद्गारातूनच ठरेल.  म्हणूनच हे “तुम्ही” तुमचे तुम्हीच निवडा. आणि जीवनाची सफर, सफल  संपूर्ण करा.

धन्यवाद !

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गौरी तृतीया (तीज), आणि मत्स्य जयंती (चैत्र शुद्ध तृतीया.) ☆ संग्रहिका: श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई ☆

श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई 

? इंद्रधनुष्य ? 

☆ गौरी तृतीया (तीज), आणि मत्स्य जयंती (चैत्र शुद्ध तृतीया.) ☆ संग्रहिका: श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई ☆

महाराष्ट्रात चैत्र महिन्यात शुक्ल पक्षात तृतीयेला चैत्रगौर बसविली जाते. या दिवशी देवघरातच किंवा आपल्या सोयीनुसार इतर पवित्र ठिकाणी गौरीची स्थापना केली जाते. 

तृतीयेपासून चैत्र गौर बसविली जाते. या दिवसाला गौरी तीज असेही म्हणतात .देवातल्या अन्नपूर्णा देवीला झोपाळ्यात बसवून महिनाभर म्हणजे वैशाख शुद्ध तृतीया (अक्षय तृतीया ) पर्यंत तिची पूजा केली जाते. शिवपत्नी पार्वतीची ही गौरी रूपातील पूजा होय. हा चैत्र महिन्यातील मराठी स्त्रिया साजरा करीत असलेला एक पारंपरिक सोहळा आहे. स्त्रिया आपापल्या घरी हा सोहळा साजरा करतात. एका छोट्या सुंदर पाळण्यामध्ये गौरीची स्थापना करतात. या दिवशी आंब्याची डाळ,कैरीचे पन्हे,बत्तासे,भिजवलेले हरभरे,टरबूज,कलिंगड यासारखी फळे असा नैवेद्य देवीला अर्पण करण्याची पद्धत आहे. महिनाभरातल्या कोणत्याही एका दिवशी आजूबाजूच्या स्त्रियांना हळदीकुंकवाला बोलावतात.काही ठिकाणी घरी आलेल्या स्त्रिया आणि कुमारिका यांचे पाय धुवून त्यांच्या हातावर चंदनाचा लेप लावतात. भिजवलेले हरभरे,फळे यांनी त्यांची ओटी भरतात आणि कैरीचे पन्हे,आंब्याची डाळ देऊन त्यांचे स्वागत करतात. काही ठिकाणी चैत्र गौरीपुढे शोभिवंत आरास मांडण्याची पद्धत आहे. या महिन्यात गौरी आपल्या माहेरी येते . आपल्या आईकडून सर्व प्रकारची कौतुके करून घेते. मैत्रिणींबरोबर खेळते. झोपाळ्यावर बसून झोके घेते आणि अक्षय तृतीयेला परत सासरी जाते अशी कल्पना आहे. या निमित्ताने महिनाभर घराच्या अंगणात रांगोळीने चैत्रांगण काढले जाते. या चैत्रांगणाच्या रांगोळीत देवीची शस्त्रे, तिची वाहने , तिची सौभाग्याची लेणी,स्वस्तिक , कमळ , सूर्य , चंद्र , गोपद्म यासारखी शुभ चिन्ह काढली जातात. रांगोळीत मध्यभागी झोपाळ्यात बसलेल्या देवीचे चित्र,राधाकृष्ण , तुळशी वृंदावन अशी चित्रे काढली जातात . हीच ती चैत्रांगणाची रांगोळी.

मत्स्य जयंती, चैत्र शुद्ध तृतीया.

हिंदू वर्षाचा तिसरा दिवस म्हणजेच चैत्र शुद्ध तृतीया . हा दिवस मत्स्य जयंती म्हणून ओळखला जातो. विष्णूच्या प्रमुख दशावतारांपैकी पहिला अवतार म्हणजे मत्स्य अवतार. हा मत्स्य या दिवशी अवतीर्ण झाला असे मानतात. पुराणकथेनुसार पृथ्वीला प्रलयापासून वाचविण्यासाठी भगवान विष्णूंनी हा अवतार घेतला अशी कथा आहे.

राजा सत्यव्रत नदीत स्नान करून जलांजली देत असताना त्यांच्या ओंजळीत एक मासा आला. त्या माशाच्या विनंतीवरून राजा त्याला घरी घेऊन गेला. हा मासा दररोज असाधारण रीतीने मोठा होऊ लागल्याने राजाने त्याला मूळ रुपात दर्शन देण्याची विनंती केली. तेव्हा भगवान विष्णू प्रकट झाले. पुढे सात दिवसांनी होणाऱ्या प्रलयाची कल्पना त्यांनी राजाला दिली पुढे त्यांनी राजाला प्राणी आणि सप्तर्षी यांना घेऊन माझ्या नावेतून चल असे सांगितले. या नावेतून जाताना मत्स्याने राजाला जी माहिती दिली ती मत्स्य पुराण म्हणून प्रचलित आहे. सत्यवत राजाने वाचविलेल्या काही प्रमुख लोकांपैकी राजा चाक्षुष हा राजा पुढे मनू म्हणून प्रसिद्धीस आला. याच मनूचे वंशज म्हणजे मानव किंवा मनुष्य, म्हणजेच आपण मानव.

या मत्स्य जयंतीच्या दिवशी “ओम मत्स्याय मनुपालकाय नम:” या मंत्राने मत्स्य अवतार प्रतिमेची किंवा भगवान विष्णूची पूजा करण्याची प्रथा आहे.

मत्स्य अवतारामागे हयग्रीव राक्षसाची पण कथा आहे. या राक्षसाने ब्राम्हदेवांचे सारे वेदांचे ग्रंथ चोरले.  त्यामुळे सर्वत्र अज्ञानाचा अंध:कार पसरला. अशा वेळी भगवान विष्णूंनी मत्स्य अवतार धारण करून हयग्रीवचा वध केला आणि वेद सुरक्षितपणे ब्रम्हदेवांकडे पोहोचवले असे सांगतात.

संग्रहिका : श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई

संपर्क – ‘अनुबंध’, कृष्णा हॉस्पिटल जवळ, सांगली, 416416.        

मो. – 9561582372, 8806955070.

 ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares