श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब और कैलेण्डर”।)  

? अभी अभी ⇒ जलकुकड़ी/जल मुर्गी? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमारा बचपन गोकुल की कुंज गलियों में नहीं,शहर के गली मोहल्लों में गुजरा !

पनघट ना होते हुए भी गुलैल से निशाना साधकर मटकी की जगह,फलदार वृक्षों से आम, इमली तोड़ना हमारे बाएं हाथ का खेल था। लड़ने झगड़ने और छेड़छाड़ के लिए हमें कभी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।

लड़ने की यही विशेषता बड़े होकर चुनाव लड़ने में हमारे बहुत काम आई।

आज पक्की दोस्ती,तो कल बोलचाल बन्द। तू चुगलखोर तो तू जलकुक्कड़। कट्टी तो कट्टी,साबुन की बट्टी। ला मेरे पैसे,जा अपने घर। लेकिन आज अगर वही कोई बचपन का दोस्त मिल जाए,तो ये लगता है, कि जहां,मिल गया।।

हम आज भी आपस में एक दूसरे को देखकर कभी खुश होते हैं,तो कभी जल भुन जाते हैं। महिलाओं की किटी पार्टियों की खबरें उड़ती उड़ती आखिर हम तक भी पहुंच ही जाती है। मत पूछो, मिसेज डॉली के बारे में,वह तो बड़ी जल कुकड़ी है। बहुत दिनों बाद जब यह शब्द सुना,तो शब्दकोश याद आया। अरे,यह तो एक पक्षी है, White breasted Hen, यानी जल मुर्गी।

अगर मछली जल की रानी है,तो हमारी मुर्गी भी तो महारानी है। अगर मुर्गे को (Cock) कॉक कहते हैं तो मुर्गी को Hen कहते हैं। अंग्रेजी के अक्षर ज्ञान में हमने पढ़ा है। The Cock is crowing.

मुर्गा ही बांग देता है,मुर्गी तो बस, पक पक,किया करती है। बड़ी विचित्र है यह अंग्रेजी भाषा। अगर cock के आगे pea लग जाए तो वह peacock,यानी मोर हो जाता है। Crow से याद आया,कौए को भी crow ही कहते हैं,लेकिन वह बांग नहीं देता,सिर्फ कांव कांव किया करता है।।

कुछ लोग गाय पालते हैं तो कुछ कुत्ता ही पाल लेते हैं। गोशाला और अश्व शाला तो ठीक,कुत्ते के लिए तो उसके मालिक का घर ही उसकी पाठशाला है। पालन पोषण पुण्य का काम है। लेकिन पापी पेट के लिए इंसान को मत्स्य पालन और कुक्कुट पालन भी करना पड़ता है। गाय को चारा और मछलियों को चारे में जमीन आसमान का ना सही,जल और थल का अंतर तो है ही। इस पर हम ज्यादा नहीं लिखेंगे क्योंकि जीव: जीवस्य भोजनं और वैदिक हिंसा,हिंसा न भवति।

बड़ा अजीब है,यह जल शब्द भी। इसी जल से ही तो जीवन है। गर्मी में जहां यह शीतल जल अमृत है,वहीं जब सीने में जलन होती है तो आंखों में तूफान सा आ जाता है। जलते हैं जिसके लिए, तेरी आंखों के दिये।।

यही जल कहीं आग है,तो कहीं पानी है। जो आग दिल में जली हुई है,वही तो मंजिल की रोशनी है। लेकिन जब यही आग,यही जलन ईर्ष्या,द्वेष और नफरत की होती है तो जिंदगी में तूफान आ जाता है। किसी की खुशी से,उन्नति से,सफलता से जलना,अच्छी बात नहीं है। जल कुकड़ी बनें तो जल मुर्गी की तरह। और अगर आप जलकुक्कड़ हैं,तो भले ही आप पर घड़ों ठंडा पानी डाल दिया जाए,आप एक जल मुर्गी नहीं बन सकते।

अगर जलाएं तो अपना दिल नहीं,दिल का दीया जलाएं,जिससे आपका घर भी रोशन हो,और रोशन हो ये जहान,जिसमें हम रहते हैं यहां।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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