डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘वाह रे इंसान!’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 130 ☆

☆ लघुकथा – वाह रे इंसान! ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

लक्ष्मी जी दीवाली-पूजा के बाद पृथ्वीलोक के लिए निकल पड़ीं। एक झोपड़ी के पास पहुँचीं, चौखट पर रखा नन्हा- सा दीपक अमावस के घोर अंधकार को चुनौती दे रहा था। लक्ष्मी जी अंदर गईं, देखा एक बुजुर्ग स्त्री छोटी बच्ची के गले में हाथ डाले निश्चिंत सो रही थी। वहीं पास में लक्ष्मी जी का चित्र रखा था उस पर दो- चार फूल चढ़े थे और एक दीपक यहाँ भी मद्धिम जल रहा था। प्रसाद के नाम पर थोड़े से खील – बतासे एक कुल्हड़ में रखे हुए थे।

लक्ष्मी जी को ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी की बूढ़ी स्त्री याद आ गई- ‘जिसने जबरन उसकी झोपड़ी हथियाने वाले जमींदार से चूल्हा बनाने के लिए झोपडी में से एक टोकरी मिट्टी उठाकर देने को कहा था।‘ लक्ष्मी जी ने फिर सोचा – ‘बूढ़ी स्त्री तो अपनी पोती के साथ चैन की नींद सो रही है, अब जमींदार का भी हाल लेती चलूँ।‘

जमींदार की आलीशान कोठी के सामने दो दरबान खड़े थे। कोठी पर दूधिया प्रकाश की चादर बिछी हुई थी। जगह- जगह झूमर लटक रहे थे। सब तरफ संपन्नता थी, मंदिर में भी खान -पान का वैभव भरपूर था। लक्ष्मी जी ने जमींदार के कक्ष में झांका, तरह- तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाने के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी। कीमती साड़ी और जेवरों से सजी अपनी पत्नी से वह कह रहा था –‘एक बुढ़िया की झोपड़ी लौटाने से दुनिया में मेरे नाम की जय-जयकार हो गई। यही तो चाहिए था मुझे, लेकिन गरीबों पर ऐसे ही दया दिखाकर उनकी जमीन वापस करता रहा तो यह वैभव कहाँ से आएगा। एक बार दिखावा कर दिया, बस बहुत हो गया।’ वह घमंड से हँसता हुआ मंदिर की ओर हाथ जोड़कर बोला– ‘यह धन–दौलत सब लक्ष्मी जी की ही तो कृपा है।‘ 

जमींदार की बात सुन लक्ष्मी जी सोच में पड़ गईं।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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