श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चित्रगुप्त, भक्त और भगवान।)

?अभी अभी # 277 ⇒ चित्रगुप्त, भक्त और भगवान … ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिस तरह हर देश का संविधान है, ईश्वर का भी एक विधान है। संविधान के ऊपर कोई नहीं, इश्वर के विधान के आगे सब नतमस्तक हैं। एक तरफ कानून और भारतीय दण्ड संहिता है तो दूसरी ओर चित्रगुप्त जीव के पाप पुण्य का लेखा जोखा लिए स्वर्ग और नरक के दरवाजे पर बैठे हैं। पंडित के हाथ में गरुड़ पुराण है और भक्त के हाथ में भागवत पुराण।

सरकारी दफ्तर में अफसर भी है और बड़े बाबू भी। अफसर दौरे में व्यस्त है और बाबू फाइल में। अदालत अगर मुजरिम को फांसी का अधिकार रखती है तो राष्ट्रपति mercy petition पर निर्णय देने का। एक विधान चित्रगुप्त का तो एक विधान करुणा निधान, पतित पावन का।।

भक्त अगर एक बार शरणागति हो जाता है, तो भगवान को भी यह कहना पड़ता है कि – सब धर्मों का परित्याग करके तुम केवल मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, चिंता मत करो। क्या भक्त और भगवान के बीच कोई ऐसा गुप्त करार है जिसके बीच चित्रगुप्त के बही खाते धरे के धरे रह जाते हैं। क्या रघुपति राघव राजाराम, वाकई पतित पावन सीताराम हैं! जहां तर्क है, शंका है, वहां ईश्वर नहीं है।

ईश्वर का न्याय, ईश्वर का विधान अपनी जगह है। सज्जन लोगों की आज भी आस्था है कि कोई मुजरिम अथवा पापी भले ही कानून की नजर से बच जाए, ईश्वर की निगाह से नहीं बच सकता। क्योंकि अगर आधुनिक जगत सीसीटीवी कैमरे वाला है तो उनका हरि भी हजार हाथ वाला ही नहीं हजार आंख वाला भी है। उसकी निगाह से कोई दुष्ट, पापी बच नहीं सकता।।

वैकुंठ में एक नारायण हैं, इस भारत भूमि पर भी एक जयप्रकाश नारायण हुए हैं जिन्होंने पहले डाकुओं का आत्म समर्पण करवाया और कालांतर में जे.पी.बन संपूर्ण क्रांति का आव्हान कर देश को तानाशाही से बचाया। जब भी भक्तों ने पुकारा है, नारायण कभी विवेकानंद तो कभी नरेंद्र बन इस धरा पर अवतरित हुए हैं और इसे दुष्टों और पापियों से मुक्त किया है।

भक्त को चित्रगुप्त का पाप पुण्य का बही खाता डरा नहीं सकता। उसकी इश्वर में आस्था प्रबल है और उसके संस्कार भी पवित्र हैं। वह रोज भागवत पुराण का पाठ करता है, उसकी आरती गाता है ;

भागवत भगवान की है आरती।

पापियों को पाप से है तारती।।

चित्रगुप्त से डरें नहीं, भगत के बस में हैं भगवान ..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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