डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-६ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मेघजल से सरोबार चेरापूंजी (सोहरा) और भी कुछ कुछ)

प्रिय पाठकगण,

आज भी फिरसे कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

डॉकी नदी पर बांग्ला देशवासी नौकाओंको, यानि मोटर बोटों को देखने के बावजूद मुझे हमारी चप्पा चप्पा चलने वाली नौका अधिक सुखकारक लगी! क्योंकि प्रकृति की हरीतिमा और नीलिमा को और गौर से देखने का और इस स्वर्गसुख को और अधिक क्षणों के लिए अनुभव करने का सौभाग्य मिला| मित्रों, आप भी नौका नयन करने का मौका मिले तो कभी कभी मोटर बोटों की स्पीड को नकारते हुए मन्द-मन्द, मद्धिम चाल से चप्पू चलने वाले नाविकों की नावों में बैठने का स्वर्गसुख अवश्य महसूस करें! इस नौकाविहार की स्मृतियाँ संजोकर हम बढे चेरापूंजी की ओर!

मेघजलसुंदरी चेरापुंजी! (यहाँ की जनजातियों में सोहरा नाम से ही प्रसिद्ध!) 

मेघालय को भेंट देते समय नयनरम्य चेरापुंजी पर्यटकों का आकर्षण रहना ही है, ऐसी है इसकी ख्याति! शिलाँग से ५६ किलोमीटर अंतर पर स्थित यह स्थान यानि अनगिनत झरने, कभी कोहरे में खोया हुआ तो कभी कोहरे के तरल होने पर हमें दर्शन देता हुआ! यहाँ वर्षभर जलधरों की मर्जी के अनुसार और उनकी लय पर थिरकती हुई जलधाराओं का नृत्य जारी रहता है! वृक्षवल्लरियों की हरितिमा में पुष्पों की कढ़ाई से समृद्ध शाल ओढ़े हुए पर्वतों के प्राकृतिक सौंदर्य से निखरा रोमांचक चेरापुंजी(सोहरा)! यह स्थान समुद्र तल से १४८४ मीटर ऊंचाई पर है| जगत में सर्वाधिक वर्षा होने वाले स्थान के रूप में प्रसिद्ध चेरापुंजीने सर्वाधिक वर्षा को झेलने के रिकॉर्ड समय समय पर दर्ज किये हैं, गुगल गुरु इसकी जानकारी देते रहते हैं!

अब इस गांव के नाम के बारे में बताती हूँ| करीबन १८३० वर्ष के दशक में अंग्रेजों ने सोहरा को उनका प्रादेशिक मुख्यालय बनाया था, उन्हें इसमें स्कॉटलंड की छबि नजर आ रही थी| वर्षा का पानी और कोहरा इस छोटे से गांव को ढंक लिया करता था, इसलिए उन्होंने इस गांव को “पूर्व का स्कॉटलंड” ऐसी उपाधि दे डाली| मात्र उन्हें इसके नाम का उच्चारण करने में बहुत परेशानी होती थी! फिर क्या, सोहरा का चेहरा/चेरा बना| किन्हीं बंगाली नौकरशाहों उसमें पुंजो (यानि झुंड) यह और परिशिष्ट जोड़ा और गांव का नामकरण “चेरापुंजी” हुआ| चेरापुंजी का दूसरा अर्थ है संतरे का गांव| परन्तु जाहिर था कि खासी लोगों को यह बदलाव मंजूर नहीं था, इस नाम के खातिर काफी आंदोलन किये गए| स्थानीय लोग इस गांव को सोहरा ही कहते हैं| आश्चर्य की बात यह है कि, यहाँ इतनी अधिक वर्षा के रहते भी स्थानीयों को पेयजल की कमी महसूस होती है| मित्रों यहाँ पर भी मातृसत्ताक पद्धति है, स्त्रियों को स्वातंत्र्य है तथा उन्होंने विविध क्षेत्रों में अपना स्थान निर्माण किया है, शिक्षा और आर्थिक स्वातंत्र्य ही खासी स्त्रियों के सक्षमीकरण होने का मूल कारण है!

हम चेरापुंजी यहाँ के क्लीफ साइड होम स्टे (cliffside home stay) में कुल दो दिन रहे| इस घर की मालकिन है अंजना! उनके पति का देहांत होने के बाद उन्होंने आत्मबल के बलबूते बच्चों को बड़ा किया| अत्यंत कर्तव्यदक्ष, समर्पित और आत्मविश्वास से भरपूर इस अंजना की मैं प्रशंसक बन गई हूँ| उनका होम स्टे है काँक्रीट का, घर की दीर्घा और खिड़की से चेरापूंजी के मेघाच्छादित तथा कोहरे के आलिंगन में बद्ध क्षेत्र का अद्भुत नजारा देख नैनों की प्यास बुझ गई! अलावा इसके, उन्होंने जब एक रात को खुद बड़ी मेहनत और चाव से पकाया हुआ गरमागरम खाना हमें परोसा, तो वह हमारे लिए “खासमखास” मेहमाननवाजी ही हो गई! प्रिय अंजना, कितने धन्यवाद दूँ तुम्हें! मात्र दो दिनों के लिए आए हम जैसे पर्यटकों के लिए तुम्हारी यह आत्मीयता भला कैसे भूल सकूंगी मैं!

मित्रों, चेरापुंजी की वर्षा का प्रमोद कुछ निराला ही है! कुछ ठिकाना न रहना, यहीं उसका स्थायी भाव है| हमने थोडेसे बून्दनीयों के बूँद झेलने के बाद रेनकोट पहना कि यह अदृश्य होगा  और धूप को देखकर छाता या रेनकोट के बगैर बाहर आए तो यह बेझिझक बरसेगा| मेहमानों को कैसे मज़ा चखाया, ऐसा इसका बर्ताव! पाठकों, मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे पुणे की वेधशाला से इसने स्पेशल कोर्स किया होगा! हम यहाँ दो दिन ही थे, उसमें हमने सेव्हन सिस्टर्स फॉल्स (Nohsngithiang Falls/Mawsmai Falls) देखे| सप्तसुरों के समान दुग्धधवल धाराओं को पूर्व खासी पर्वतश्रृंखला से गिरते हुए देखना यानि दिव्यानुभव! १०३३ फ़ीट से कल कल बहते ये जलप्रपात भारत के सर्वाधिक ऊंचाई से गिरने वाले झरनों में से एक हैं! मौसमयी गांव से १ किलोमीटर दूरी पर इनकी झूमती और लहराती मस्ती देखनी चाहिए वर्षा ऋतु में ही, याद रहे, बाकी दिनों में ये थोड़े मुरझाये से रहते हैं! हम खुशकिस्मत थे इसलिए हमें यह प्राकृतिक शोभा देखने को मिली| नहीं तो यौवन के दहलीज़ पर खड़ी सौंदर्यवती “घूंघट की आड़ में” जैसे अपना मुखचंद्र छुपाती है वैसे ही ये जलौघ घनतम कोहरे की आड़ में छुप जाते हैं और बेचारे पर्यटक निराश होते हैं| कोहरे की ओढ़नी की लुकाछिपी का अनुभव हमने भी कुछ कालावधि के लिए लिया! (यू ट्यूब का एक विडिओ शेअर किया है)

कॅनरेम झरना(The Kynrem Falls) पूर्व खासी पर्वत आईएएस जिले में,चेरापुंजी से १२ किलोमीटर अंतर पर है| थान्गखरांग पार्क के अंदर स्थित यह झरना ऊंचाई में भारत के सकल झरनों में ७ वे क्रमांक पर है| क्यनरेम झरना त्रिस्तरीय झरना है| उसका जल 305 मीटर(१००१ फ़ीट) की ऊंचाई से गिरता है! (इसका विडिओ लेख के अंतमें शेअर किया है)

प्रिय पाठकों, अगले प्रवास में हम चेरापुंजी और मेघालय के और कुछ स्थानों का अद्भुत प्रवास करेंगे| तैयारी में रहें!!!

तब तक के लिए फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

डॉ. मीना श्रीवास्तव                                                     

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें  और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ,

चेरापुंजी (सोहरा) का मेघमल्हार!

https://photos.app.goo.gl/aFDhbS2nQToY21eQ9

कॅनरेम त्रिस्तरीय झरना (Kynrem three tier Waterfalls)

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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