श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं  विचारणीय कविता  – “ऑनलाइन प्रेम”)

☆ व्यंग्य # 169 ☆ “ऑनलाइन प्रेम” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

वे प्रेम करते करते 

जब थक गये

उन्होंने मोबाइल का 

 नेटवर्क चेक किया

प्रेम सर्च किया

ऑनलाइन प्रेम देखा

कन्फर्म किया कि प्रेम

 ऑनलाइन  मिलता है

फिर अचानक

नेटवर्क चला गया

या गलती से भी 

ऑफलाइन हुए

अचानक प्रेम

डिलीट हो गया

सारा उत्साह

खत्म हो गया

फिर वही

पुराना प्रेम

ख्वाबों में

तैरने लगा

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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