हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-7 – ताप के ताये हुए दिन‌… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-7- ताप के ताये हुए दिन‌… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(प्रत्येक शनिवार प्रस्तुत है – साप्ताहिक स्तम्भ – “मेरी यादों में जालंधर”)

इधर तीन चार दिन आप सबसे मुलाकात न कर सका! आपने नये कथा संग्रह- सूनी मांग का गीत के फाइनल प्रूफ देखने के काम में व्यस्त हो गया!

चलिए आपको फिर जालंधर लिए चलता हू। आज कुछ और मित्रों से आपका परिचय करवाता हूँ और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी बातें भी करूंगा! पंजाब साहित्य अकादमी और  बड़े भाई सिमर सदोष की यादें पहले आपको सुना चुका हूँ। आज अवतार जौड़ा और हम सभी मित्रों की संस्था विचारधारा की बात करूँगा, जिसकी बैठक हर माह में एक बार होती थी और इसमें भी दिल्ली से रमेश उपाध्याय,आनंद प्रकाश सिंह जैसे अनेक वरिष्ठ रचनाकारों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जिससे कि हमें न केवल अपने विचार बल्कि विचारधारा को समझने का अवसर मिल सके। यानी मीरा दीवानी की तरह

संतन डिग बैठि के

 मैं मीरा दीवानी हुई!

अपने से ज्यादा अनुभवी रचनाकारों से सीखने समझने की कोशिश रही। मुझे अपनी एक कहानी -देश दर्शन का पाठ करने का सुअवसर मिला था और वहाँ मौजूद मित्र व उन दिनों ‘लोक लहर’ पंजाबी समाचारपत्र से आये सतनाम माणक ने वह कहानी तुरंत मांग ली जिसे उन्होंने पंजाबी में अनुवाद कर अपने समाचारपत्र में प्रकाशित किया! इस तरह समझ लीजिये  कि हम अगर इकट्ठे बैठ कर कुछ विचार विमर्श करते  हैं तो हमारी समझ बनती है और‌ नयी राहें खुलती हैं। आज सतनाम माणक जालंधर से निकलने वाले अजीत समाचारपत्र में संपादक हैं और बीच बीच में उनकी ओर से कुछ विषयों पर लिखने का न्यौता आ जाता है। पंजाबी अजीत में भी मेरी रचनायें आज भी प्रकाशित होकर आती हैं जिन पर फोन नम्बर होने के चलते पंजाब से अनेक मित्रों की प्रतिक्रिया सुनने को मिलती है। इस तरह जालंधर से जुड़े रहने का अवसर सतनाम माणक बना देते हैं।

आगे मुझे जनवादी लेखक संघ की याद है जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध आलोचक व सौंदर्य शास्त्र के लिए जाने जाते डाॅ रमेश कुंतल मेघ थे और यही प्रिंसिपल रीटा बावा से मुलाकातें हुईं। मुझ जैसे नये रचनाकार को भी इसकी कार्यकारिणी में स्थान मिला! इसमें एक खास विचारधारा से जुड़े साहित्य पर आयोजन किये जाते! इसमें प्रसिद्ध आलोचक डाॅ शिव कुमार  मिश्र की कही बात आज भी स्मृतियों में एक सीख की तरह गांठ बांध रखी है कि प्रेमचंद ऐसे ही प्रेमचंद नहीं हो गये, उन्होंने अपने समय की खासतौर पर किसान और गांव की समस्याओं को गहरे समझ कर गोदान जैसा बहुप्रशंसित उपन्यास लिखा जो विश्व की 127 भाषाओं में अनुवादित हुआ। प्रेमचंद‌ ने बहुत सरल भाषा में बड़ी बातें कही हैं और इस तरह कठिन को सरल बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। यह भी कहा कि काले ब्लैक बोर्ड पर  सफेद चाॅक से ही कोई नयी इबारत लिखी जा सकती है यानी लेखक काले समाज को अपनी कलम से कल्याणकारी बना देता है!

कितनी बातें सीखने समझने को मिलतीं ! कुछ समय पूर्व ही पंचकूला में डाॅ रमेश कुंतल मेघ ने आखिरी सांस ली और रीटा बावा को महाविद्यालय में मिले आवास में बड़ी बेरहमी से मौत के  घाट सुला दिया गया। वे एक बार‌ हिसार‌ के फतेह चंद कन्या महाविद्यालय यूजीसी की टीम की सदस्यता के रूप में आई दी तब प्रिंसिपल डाॅ शमीम शर्मा ने मुझे बुलाया था और इस तरह वर्षों बाद‌ जनवादी लेखक संघ के दो पुराने साथी मिल पाये थे! आज के लिए शायद इतना ही काफी!

वे विचार विमर्श के ताप के ताये हुए दिन आज भी याद हैं!

क्रमशः…. 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #225 – 112 – “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ।)

? ग़ज़ल # 112 – “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़ का रोग लगा लिया,

ग़ैर को अपना बना लिया।

आफ़त तो अब तय ठहरी,

फन्दा गले में लगा लिया।

आग  जाने  कब  बुझेगी,

दामन ख़ुद ही जला लिया।

जब उसने मुँह फेर लिया,

अपने ग़म से सिला लिया।

बोए  नेकी  ने  ख़ार  भी,

आतिश सबका भला किया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बारिश ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – बारिश ? ?

देखी तो होगी

तुमने बारिश,

सारा गर्द झाड़-पोंछकर

प्रकृति का

मूल शृंगार लौटाती;

उसे हरा बनाती,

बस कुछ इसी तरह है

मेरी आँख का पानी

और उसका बरसना,

सारा गर्द धोकर

अपनों के दिए व्रण सुखाकर;

फिर भर देता है

पुतलियों में अनंत स्वप्न,

स्वप्न देखतेे रहने की

अविराम अभिप्सा

और यथार्थ कर सकने की

अदम्य जिजीविषा..!

चौकन्ना

 

सीने की ठक-ठक

के बीच

कभी-कभार

मुझे सुनाई देती है

मृत्यु की भी

खट-खट,  

ठक-ठक..

खट-खट..,

कान शायद अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ;

चल रही हैं अनवरत..,

आदमी अगर

निरंतर सुनता रहे

ठक-ठक

खट-खट

साथ-साथ;

बहुत संभव है

उसकी सोच निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..!

© संजय भारद्वाज  

(रात्रि 9 बजे, दि. 3.10.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ – Human-Snake… – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~ Human-Snake… ~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

☆ Human-Snake… ?

O’ dear Snake !

You haven’t even

become fully civilized-

You aren’t even

adept at city life…

Nor have you mastered

the guiles of city-norms…

 

May I ask you something?

Will you bother to answer?

Why haven’t  you got the

deadly  poison  as yet..?

Why haven’t you learnt

 to bite like humans, the way

they excel at backstabbing..?

 

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 298 ⇒ तलत की लत… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तलत की लत।)

?अभी अभी # 298 ⇒ तलत की लत? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आदत तो खैर अच्छी बुरी हो सकती है लेकिन किसी चीज की लत अच्छी नहीं।

जुआ, शराब, गुटका और सिगरेट, बहुत बुरी है इनकी लत, लेकिन अगर किसी दीवाने को लग जाए तलत की लत, तो वह क्या करे। एक ओर बदनाम लत और दूसरी ओर मशहूर तलत ;

क्या करूं मैं क्या करूं

ऐ गमे दिल क्या करूं।

तलत एक ऐसा गायक है, जो दिल से गाता है, और दिल भी किसका, एक वतनपरस्त गरीब का ;

मैं गरीबों का दिल हूं

वतन की जुबां।

उसे जिंदगी की तलाश है ;

ऐ मेरी जिंदगी तुझे ढूंढूं कहां

न तो मिल के गए

न ही छोड़ा निशान।

पसंद अपनी अपनी, प्यार अपना अपना। दीवानों का क्या, जो सहगल के दीवाने थे, उनके गले कोई दूसरा गायक उतरता ही नहीं था। अपना अपना नशा है भाई, अपना अपना ब्रांड। सबको झूमने की छूट है, क्योंकि यह संगीत की दुनिया है और गायकी यहां का इल्म है।।

तलत का मुसाफिर अपनी ही धुन में रहता है ;

चले जा रहे हैं किनारे किनारे, मोहब्बत के मारे।

उसकी मजबूरी तो देखिए बेचारा ;

तस्वीर बनाता हूं,

तस्वीर नहीं बनती।

एक ख्वाब सा देखा है

ताबीर नहीं बनती।

कितनी शिकायत है उसे जिंदगी देने वाले से ;

जिंदगी देने वाले सुन

तेरी दुनिया से दिल भर गया

मैं यहां जीते जी मर गया।

एक सच्चे कलाकार की भी यही त्रासदी होती है। केवल जिसे कला की पहचान है, जो तलत का कद्रदान है, वही तलत के दर्द को समझ सकता है;

शामे गम की कसम

आज गमगीन हैं हम

आ भी जा, आ भी जा

आज मेरे सनम।

आप इसे भले ही फुटपाथ की शायरी कहें, लेकिन हर कलाकार की जिंदगी फुटपाथ से ही शुरू होती है। उसकी आवाज फुटपाथ और हर गरीब के झोपड़े तक में गूंजती है। तलत ने कभी महलों के ख्वाब देखे ही नहीं।

ऐ मेरे दिल कहीं और चल

गम की दुनिया से दिल भर गया

ढूंढ लें, चल कोई घर नया

लेकिन एक आम इंसान की तरह वह भी जानता है ;

जाएं तो जाएं कहां

समझेगा कौन यहां

दिल की जुबां …

अगर आपको भी गलती से तलत की लत लग गई है, तो इसे छोड़िए मत। देखिए वे क्या कहते हैं ;

हैं सबसे मधुर वो गीत

जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं।

जब हद से गुजर जाती है खुशी

आंसू भी छलकते आते हैं।।

उन्हें जब रफी साहब का साथ मिला तो वे भी आखिर गा ही उठे ;

गम की अंधेरी रात में

दिल को न बेकरार कर

सुबह जरूर आएगी

सुबह का इंतजार कर।

और देखिए ;

गया अंधेरा, हुआ उजाला

चमका चमका, सुबह का तारा।।

जो शौकीन लोग जुबां केसरी से दो कदम आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके कानों के लिए पेशे खिदमत है, तलत की जुबां मखमली। लत हो तो तलत की।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 104 ☆ ग़ज़ल – कोई जो दे रहा है इंसानी पैगाम दुनिया को ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 104 ☆

☆ ग़ज़ल – कोई जो दे रहा है इंसानी पैगाम दुनिया को ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हम रहें न रहें यह   सिलसिला चलता रहे।

कोई तोड़े नहीं फूल हर खिला चलता रहे।।

[2]

गर चल रहा है कुछ भी गलत  कंही पर।

रोकने को उसे यह जलजला चलता रहे।।

[3]

कोई जो दे रहा है इंसानी पैगाम दुनिया को।

फांसी बेखौफ कयामत तक भला चलता रहे।।

[4]

कोशिश आदमी की  भी   कभी  कम न हों।

अंदर उसके यह पुरजोर वलवला चलता रहे।।

[5]

यह सब बात ठीक हैं लेकिन ये भी है जरूरी।

बढ़े जिससे नफ़रत नहीं वह गिला चलता रहे।।

[6]

दर्द भी सबका ही सबको बराबर महसूस हो।

नहीं कोई ज़ख्म यूं  छिला खुला चलता रहे।।

[7]

कोई आग न लगाए बस्ती में रोटी सेंकने को।

गर जले तो भी हर इक घर जला चलता रहे।।

[8]

दुनिया जलाने वाले इस दिलजले को कह दो।

हो ये कोशिश नहीं कोई दिलजला चलता रहे।।

[9]

हंस ये दुनिया बन जाएगी जन्नत जमीं पर ही।

गर सबका बस दिल से दिल मिला चलता रहे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 166 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “जमाना तुमको बुला रहा है…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “जमाना तुमको बुला रहा है..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “जमाना तुमको बुला रहा है ” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मुसीबतों से बचा वतन को जो अपने खुद को बचा न पाये

उन्हीं की दम पै हैं दिख रहे सब ये बाग औ’ घर सजे सजाये

तुम्हारे हाथों है अब ये गुलशन सब इसकी दौलत भरा खजाना

जिसे ए बच्चों बचा के रखना तुम्हें औ’ आगे इसे बढ़ाना ॥

बदलते मौसम में घिर रही हैं घने अंधेरों से सब दिशाएँ है

तेज बारिश कड़कती बिजली कँपाती बहती प्रबल हवाएँ है

भगदड़ हरेक दिशा में समाया मन में ये भारी डर है

न जाने कल क्या समय दिखाये, मुसीबतों से भरा सफर है।

 *

मगर न घबरा, कदम-कदम बढ़ निराश होके न बैठ जाना

बढ़ा के साहस, समझ के चालें, तुम्हें है ऐसे में पार पाना।

चुनौतियों को जिन्होंने जीता उन्हीं का रास्ता खुला रहा है

 बहादुरों, तुम बढ़ो निरन्तर, जमाना तुमको बुला रहा है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – पुस्तक प्रकाशन : – श्री राजीव पुजारी आणि श्री प्रदीप केळूसकर ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री राजीव पुजारी 

💐अ भि नं द न 💐

विशेषतः ‘अंतराळ-विज्ञान‘ हा सहजपणे न समजणारा विषय आपल्या सुबोध शैलीमुळे सोप्पा करून त्याची तपशीलवार माहिती आपल्या वाचकांना उपलब्ध करून देणारे आपल्या समूहातील लेखक म्हणजे श्री. राजीव पुजारी हे होत. नुकतेच त्यांनी लिहिलेले “अंतराळवेध“ हे असेच उपयुक्त माहितीपूर्ण पुस्तक प्रकाशित झाले आहे. यासाठी श्री. पुजारी यांचे आपल्या अभिव्यक्ती समूहातर्फे हार्दिक अभिनंदन, आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी मनःपूर्वक शुभेच्छा. 

श्री प्रदीप केळुसकर

💐अ भि नं द न 💐

आपल्या अभिव्यक्ती समूहासाठी वेगवेगळ्या विषयांवरच्या सुरेख कथा नियमितपणे सादर करणारे कथाकार श्री. प्रदीप केळुसकर यांच्या बक्षिसपात्र ठरलेल्या सतरा कथांचा संग्रह “माणिकमोती“ या शीर्षकांतर्गत नुकताच प्रकाशित झाला आहे. त्याबद्दल आपल्या सर्वांतर्फे श्री. केळुसकर यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन, आणि लोकप्रिय अशा विपुल साहित्य निर्मितीसाठी हार्दिक शुभेच्छा. 

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माय मराठी… ☆ प्रा. सुनंदा पाटील ☆

प्रा. सुनंदा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ माय मराठी… ☆ प्रा. सुनंदा पाटील ☆

साहित्याच्या समईमधली वात मराठी

जगण्यासाठी उजेड देते ज्योत मराठी

वर्ण स्वरांची बाग बहरली फुले उमलली

काव्य कथांचे तारांगण ही रात मराठी

*

लय तालाच्या झुडूपाचे हे पान मराठी

अलंकापुरी भावभक्तीचे दान मराठी

कितीक भाषा भगिनी तिजला जगता माजी

आई म्हणुनी अग्रपुजेचा मान मराठी

*

अभंग ओवी श्लोकामधली गेय मराठी

आर्या भारुड पोवाड्याचे श्रेय मराठी

सजे लावणी सौंदर्याला उपमा नाही

मराठीत मी जगणे मरणे ध्येय मराठी

*

मातेच्या गर्भात उमगली मला मराठी

कोण आईला दुष्ट बोलतो “बला” मराठी”

देवनागरी लिपी आमची वैभवशाली

दिक्कालाच्या पार पोचवू चला मराठी

*

साहित्याचा गिरी लंघण्या पाय मराठी

कामधेनुच्या दुग्धावरची साय मराठी

परभाषेच्या आक्रमणाने व्यथित झाली

सहोदरांनो अता वाचवू माय मराठी

गझलनंदा

© प्रा.सुनंदा पाटील

गझलनंदा

८४२२०८९६६६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मराठी माझी… ☆ सौ. प्रतिभा संतोष पोरे ☆

सौ. प्रतिभा संतोष पोरे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मराठी माझी ☆ सौ. प्रतिभा संतोष पोरे ☆

✒️

वर्णमालेची लाभे श्रीमंती

अक्षर अक्षरांची महती

उच्चाराची गोड प्रचिती

समृद्ध असे मराठी माझी।१।

✒️

संस्कृत भाषेचीच लिपी

वृत्त, अलंकार शोभती

वाक्प्रचार, म्हणी व्याप्ती

देई ज्ञान मराठी माझी।२।

✒️

नवरसांची सजे पेरणी

काव्यसुमनांची पुरवणी

अभंग ,भारूडात देखणी

 गोड गाण्यात मराठी माझी।३।

✒️

महाराष्ट्राची प्रिय मायबोली

मनामनांसी लिलया जोडी

अभ्यासे गवसेना हिची खोली

शिलालेखावरी मराठी माझी।४।

✒️

ज्ञानदेव, तुकारामांची लेखणी

एकनाथ , नामदेवांच्या गायनी

जात्यावर ओव्या गाई जनी

संतांची अभिव्यक्ती मराठी माझी।५।

✒️

मराठी परंपरेचा राखू मान

मातृभाषेचा करूया सन्मान

बोलून, लिहून वाढवू शान

अंतरात साठवू मराठी माझी।६।

शब्दसखी प्रतिभा

✒️

© सौ. प्रतिभा पोरे

पत्ता – ‘सोनतुकाई’, शांतीसागर कॉलनी, सांगली – भ्रमणध्वनी क्रमांक – ८७८८४५८६२४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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