प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “जमाना तुमको बुला रहा है..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “जमाना तुमको बुला रहा है ” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मुसीबतों से बचा वतन को जो अपने खुद को बचा न पाये

उन्हीं की दम पै हैं दिख रहे सब ये बाग औ’ घर सजे सजाये

तुम्हारे हाथों है अब ये गुलशन सब इसकी दौलत भरा खजाना

जिसे ए बच्चों बचा के रखना तुम्हें औ’ आगे इसे बढ़ाना ॥

बदलते मौसम में घिर रही हैं घने अंधेरों से सब दिशाएँ है

तेज बारिश कड़कती बिजली कँपाती बहती प्रबल हवाएँ है

भगदड़ हरेक दिशा में समाया मन में ये भारी डर है

न जाने कल क्या समय दिखाये, मुसीबतों से भरा सफर है।

 *

मगर न घबरा, कदम-कदम बढ़ निराश होके न बैठ जाना

बढ़ा के साहस, समझ के चालें, तुम्हें है ऐसे में पार पाना।

चुनौतियों को जिन्होंने जीता उन्हीं का रास्ता खुला रहा है

 बहादुरों, तुम बढ़ो निरन्तर, जमाना तुमको बुला रहा है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments