(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक हृदयस्पर्शी लघुकथा “कम्बल…”।)
☆ तन्मय साहित्य #212 ☆
☆ लघुकथा – कम्बल…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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जनवरी की कड़कड़ाती ठंड और ऊपर से बेमौसम की बरसात। आँधी-पानी व ओलों के हाड़ कँपाने वाले मौसम में चाय की चुस्कियाँ लेते हुए घर के पीछे निर्माणाधीन अधूरे मकान में आसरा लिए कुछ मजदूरों के बारे में चिंतित हो रहा था रामदीन।
“ये मजदूर जो बिना खिड़की-दरवाजों के इस मकान में नीचे सीमेंट की बोरियाँ बिछाये सोते हैं, इस ठंड को कैसे सह पाएँगे। इन परिवारों से यदा-कदा एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।”
ये सभी लोग एन सुबह थोड़ी दूरी पर बन रहे मकान पर काम करने चले जाते हैं और शाम को आसपास से लकड़ियाँ बीनते हुए अपने इस आसरे में लौट आते हैं। अधिकतर शाम को ही इनकी आवाजें सुनाई पड़ती है।
स्वावभाववश रामदीन उस मजदूर बच्चे के बारे में सोच-सोच कर बेचैन हो रहा था, इस मौसम को कैसे झेल पायेगा वह नन्हा बच्चा!
शाम को बेटे के ऑफिस से लौटने पर रामदीन ने उसे पीछे रह रहे मजदूरों को घर में पड़े कम्बल व अनुपयोगी हो चुके कुछ गरम कपड़े देने की बात कही।
“कोई जरूरत नहीं है पापाजी, उन्हें कुछ देने की”
पता नहीं किस मानसिकता में उसने रामदीन को यह रूखा सा जवाब दे दिया।
आहत मन लिए रामदीन बहु को रात का खाना नहीं खाने का कह कर अपने कमरे में आ गया। न जाने कब बिना कुछ ओढ़े, सोचते-सोचते बिस्तर पर नींद के आगोश में पहुँच गया पता ही नहीं चला।
सुबह नींद खुली तो अपने को रजाई और कम्बल ओढ़े पाया। बहु से चाय की प्याली लेते हुए पूछा-
“बेटा उठ गया क्या?”
“हाँ उठ गए हैं और कुछ कम्बल व कपड़े लेकर पीछे मजदूरों को देने गए हैं, साथ ही मुझे कह गए हैं कि, पिताजी को बता देना की समय से खाना खा लें और सोते समय कम्बल-रजाई जरूर ओढ़ लिया करें।”
यह सुनकर रामदीन की आज की चाय की मिठास और उसके स्वाद का आनंद कुछ और ही अधिक बढ़ गया।
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पतंगों से दिन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “रूबरू आ गए और चल भी दिए…“)
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of n
ational and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “तुम लिखो कविता! ”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)
Yesterday my five-year-old grandson asked me “Dadu, you too have your dad.
I said yes, I have also.
Then where is he, dadu?
He is no more dear Bo-Bo.
Why he is no more, he asked curiously.
With a five-year bright grandson, full of life, I can’t explain him, what is death. So, I told him that my dad has become a Star.
But he was not convinced and said ” Men cannot fly because they don’t have wings.so he cannot be a star. I was unable to convince his logical questions.
Ultimately, I told him that my dad is in India and when you visit India, I will show you, his Photograph.
But can I meet your dad and touch him, innocent but curious child asked.
No, you cannot meet him.
Why, “the repeated queries doesn’t end.”
Because my dad is invisible so no one can touch him,
Why he is invisible?
I have no answer because I don’t want to discuss or talk about death, to a kid full of life.
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गाय और गौ ग्रास…“।)
अभी अभी # 254 ⇒ गाय और गौ ग्रास… श्री प्रदीप शर्मा
(Cow and grass)
गाय को हम गौ माता मानते हैं, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह हमें दूध देती है। हम गौ सेवा इसलिए भी करते हैं, कि वेदों के अनुसार गाय में ३३ कोटि देवताओं का वास होता है। इन ३३ प्रकार के देवताओं में १२ आदित्य, ८ वासु, ११ रुद्र और २ आदित्य कुमार हैं। केवल एक गाय की सेवा पूजा से अगर ३३ कोटि देवताओं का पूजन संपन्न हो जाता है, तो यह सौदा बुरा नहीं है।
अन्य चौपायों की तरह गाय भी पशुधन ही है और घास ही खाती है, कोई चाउमिन नहीं।
हमने बचपन में कहां वेद पढ़े थे। बस गाय पर निबंध ही तो पढ़ा था।
घरों में पहली रोटी गाय की बनती थी, और आज भी बनती चली आ रही है। एक रोटी से कहां गाय का पेट भरता है। पेट तो उसका भी घास से ही भरता है। उसके लिए हमारी रोटी, ऊंट के मुंह में जीरे के समान, एक ग्रास ही तो है। कई अवसरों पर भोजन के पहले गऊ ग्रास भी निकाला जाता है। लेकिन प्रश्न भाव और संतुष्टि का है।
इसे संयोग ही कहेंगे कि घास को अंग्रेजी में भी ग्रास ही कहते हैं। घास से भले ही गौ माता का पेट भरता हो, लेकिन मन तो उसका भी, उसके लिए एक ग्रास जितनी, एक रोटी से ही भरता है। आप गाय को अगर रोज घास नहीं खिला सकते, तो कम से कम गौ ग्रास तो खिला ही सकते हैं।।
बचपन में हमने कहां वेद पढ़े थे। हमारे मोहल्ले में पाठशाला थी, गुरुकुल नहीं। हर मकर सक्रांति को पिताजी के साथ जाते और नन्दलालपुरा से धडी भर नहीं, छोड़ के गट्ठर के गट्ठर, साइकिल के पीछे बांधकर ले आते। हमारे लिए तो छोड़ हमेशा ही आते थे, लेकिन ये छोड़ विशेष रूप से गाय के लिए आते थे।
हम तब भाग्यशाली थे, तब सड़कों पर वाहन से अधिक गाय नजर आती थी। हमारी बालबुद्धि समझ नहीं पाती। गाय को छोड़ खिलाना है, खिलाओ, लेकिन छोड़ के दाने तो निकाल लो। लेकिन हमारी मां हमें समझाती, ये छोड़ गाय के लिए हैं, तुम्हारे लिए अलग से रखे हैं।।
आज घर में मां नहीं है, मकर सक्रांति के दिन, छोड़ खिलाने के लिए आसपास गाय भी नहीं है। गौ शालाओं में गाय की अच्छी सेवा हो रही है और हम तिल गुड़ खाकर और मीठा मीठा बोलकर उत्सव मना रहे हैं।
स्मार्ट सिटी बनने जा रहे महानगर की बहुमंजिला इमारतों की खिड़कियों से जितना आसमान दिख जाए, देख लो, जितनी पतंगें लोग उड़ा सकते हैं, उड़ा ही रहे हैं। पतंग काटने का सुख, और कटने का दुख, दोनों कितने अच्छे लगते हैं। समय कहां रुकता है, जीवन चलने का ही तो नाम है। अच्छे दिन आज भी हैं, फिर भी किशोर कुमार का यह गीत गुनगुनाने का मन करता है ;
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – श्राद्ध।)
दरवाजे पर लगातार जोर-जोर से थप-थप की आवाज आ रही थी उसकी थपथपाहट में बेचैनी का एहसास हो रहा था। दरवाजा खुलते ही खुलते ही एक युवक की शक्ल दिखाई दी, उसे देखते ही चतुर्वेदी जी ने कहा अरे तुम तो जाने पहचाने लग रहे? बेटा तुम मेरे मित्र के बेटे हो तुम्हारी शक्ल में मुझे मेरा मित्र दिखाई दे रहा है।
अंकल प्रणाम आपने मुझे पहचाना मैं पांडे जी का बेटा हूं।
खुश रहो बेटा ।
मैं तुम्हें खूब पहचानता हूँ, तुम्हें देखकर मेरी आत्मा तृप्त हो गई। बुरा मत मानना बेटा तुम तो मुंबई भाग गये थे, अपने बूढ़े लाचार पिता को छोड़कर। अकेले हम दोस्तों के सहारा छोड़ दिया था, तू तो घर भी बेचने वाला था। यदि हम लोग पांडे का साथ ना देते तो क्या होता क्या तूने कभी सोचा?
मेरे मित्र पंडित बेचारा तेरी याद में मर गये ।
हम लोगों के खबर देने पर ही तो तू आया था उनके क्रिया कर्म करने को।
अरे अंकल गुस्सा क्यों होते हो?
हां मैं समझ रहा हूं तुम्हें मेरी बात बुरी लग रही है?
आपने भी तो पिताजी की तरह भाषण देना शुरू कर दिया। पिताजी की बरसी है मंदिर में पूजा पाठ रखा है और भंडारा भी रखा है आपको बुलाने आया हूं आप सब मित्र को लेकर आ जाइएगा?
सब व्यवस्था मैंने कर ली है। गया जी जहां पर पितृ लोगों का तर्पण पंडित जी लोग करते हैं। उनका तर्पण भी कर दिया, परसों ही लौटा हूं।
चतुर्वेदी जी ने कहा -चलो अच्छा किया!
भगवान ने तुझे अकल तो दी जो तूने कुछ काम किया?
चलो ! मैं अपने मित्र मंडली के साथ तुमसे मिलाता हूं।
तुम्हारा भंडारा देखता हूं ?
जीते जी तो नहीं कुछ किया तुमने?
आज की युवा पीढ़ी अच्छी नौटंकी कर लेती हैं, वृद्धावस्था तो सभी को आती है उम्र के इस पड़ाव में आज मैं हूं कल तुम होंगे मेरी यह बात को गांठ बांध लेना।
उसे युवक ने बड़ी शीघ्रता से हाथ जोड़कर कहा अंकल तो मैं मंदिर में आपका इंतजार करूंगा?
चतुर्वेदी जी जब शाम के 4:00 बजे मंदिर में अपने मित्र मंडली के साथ पहुंचते हैं। सभी लोग बहुत खुश थे और कह रहे थे बाबा पांडे जी का बेटे ने एक काम तो अच्छा किया है। तभी अचानक उनकी दृष्टि मंदिर के आंगन में पड़ती है और वह सभी भौंचक्का रह जाते हैं।
वहां पर पंचायत बैठी थी और उनका बेटा घर बेचने की तैयारी में लगा था कि कौन ज्यादा पैसे देगा उसे ही वह घर बेचेगा।
वाह बेटा बहुत अच्छा काम किया शाबाश!
अब मैं समझ गया तुम्हारा प्रेम का कारण?
अंकल जी आपको तो पता है कि बिना कारण कुछ काम नहीं होता भगवान ने भी तो यही सिखाया है हमें कि हर मनुष्य को काम करना चाहिये।
मैं तो कहता हूं अंकल आप भी मेरे साथ शहर चलो?
आपका भी घर बेच देता हूं, इस भावुकता में कुछ नहीं रखा है मैं आपके रहने की व्यवस्था हरे राम कृष्ण मंदिर में कर देता हूं आराम हरि भजन करना। रोज खाना बनाने की कोई टेंशन नहीं रहेगी वहां आपको योग कराएंगे और सात्विक भोजन भी मिलेगा और महीने में एक बार डॉक्टर आपका चेकअप भी करेगा।
मेरी चिंता तो छोड़ तो अपनी चिंता कर और यह बात बता बेटा हरे राम कृष्ण मंदिर में कितने लोगों को तूने उनकी जायदाद बेचकर रखा है क्या अब वहां से भी तुझे कुछ मिलने लगा क्या कमीशन?
मेरी एक बात को ध्यान से सुन तू कमाता है तो क्या अपनी कमाई का सारा हिस्सा तू ही खाता है प्रकृति और पशु पक्षी से तूने कुछ नहीं सीखा तुझसे अच्छे तो वे है।
मेरा मित्र तो अब इस दुनिया से चला गया जाने किस रूप में अब वह है उसकी यादें यहां है खैर तेरे पिताजी हैं तुम जैसा चाहो वैसे उनका श्राद्ध करो तुम्हारा उनसे खून का रिश्ता है पर मुझे ऐसा श्रद्धा नहीं करना है।
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-७ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(चेरापुंजी की गुफायें और बहुत कुछ कुछ!)
प्रिय पाठकगण,
आपको बारम्बार कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
अब हम चेरापूंजी तक आए हैं, तो पहले यहाँ के गुह्य स्थानों के अन्वेषण करने चलें! यहाँ हैं कई रहस्यमयी गुंफायें! चलिए अंदर, देखें और ढूंढें अंदर के अँधेरे में आखिरकार क्या छुपा है!
मावसमई गुफा (Mawsmai Cave)
मेघालय की एक खासियत यानि भूमिगत गुफाओं का विस्तीर्ण मायाजाल, कुछ तो अभीतक मिली ही नहीं, तो कुछ में चक्रव्यूह की रचना, अंदर चले जाओ, लेकिन बाहर आने की कोई गैरंटी नहीं! कुछेक की राहें एकदम ख़ास, सिर्फ ख़ासियोंके बस की! अब तो सुना है एक ३५ किलोमीटर लम्बी गुफा की खोज हुई है! हम बस सुनते रहें ये फ़साने, मित्रों! मावसमई गुहा सोहरा (चेरापुंजी) से पत्थर फेंक अंतर पर (स्टोन्स थ्रो) और इसी नाम के छोटेसे गांव में है (शिलाँग से ५७ किलोमीटर)| यह गुम्फा कभी सुंदर, आश्चर्यचकित करनेवाली, कभी भयंकर, कभी भयचकित करनेवाली, ऐसा कुछ जो मैंने बस एक बार ही देखा, रोमांचकारी तथा रोमहर्षक! यहाँ हम गए तब (मेरे भाग अच्छे थे इसलिए) यात्रियों का जमघट था, फायदा यह कि वापस जाना मुश्किल, और उसमें गुफा के अंदर का सफर केवल २० मिनट का| अब तक मेरा साथ निभानेवाले ट्रेकर्स शूज, बाहर ही रखे| नंगे पैर और खाली दिमाग से जाने का फैसला किया| मोबाइल का कोई उपयोग नहीं था, क्योंकि यहाँ खुद को ही सम्हालना बड़ा कठिन था| छोटे बड़े पाषाण, कहीं पानी, शैवाल, कीचड़, अत्यंत टेढ़ी मेढ़ी राह, कभी संकरी, कभी एकदम बंद होने की कगार पर, कभी तो एकदम झुककर जाओ, नहीं तो माथे पर पाषाणों का भीषण प्रहार झेलना पक्का! कुछ जगहों पर अंदर के दियों का प्रकाश, तो कुछ जगहों पर हमने (टॉर्च) का थोडासा प्रकाश डालना चाहिए, इसलिए एकदम अँधेरे में डूबी हुईं! मैं ट्रेकर नहीं हूँ, परन्तु इस गुफा का यह संपूर्ण अंतर मैंने कैसे पार किया, यह मैं अबतक खुद भी समझ नहीं पा रही हूँ! (पाठकों, इस लेख के अंत में गुफा के सौंदर्य का (!) किसी एक ने यू ट्यूब पर डाला विडिओ जरूर देखिये!)
मात्र वहां जिन जिन का स्मरण कर सकती थी उन्हीं भगवानों का नाम लेते लेते, मेरी सहायता करने दौड़ी आयी दो लड़कियां (हैद्राबाद की)! उनसे मेरी जान न पहचान, मेरी फॅमिली पीछे थी, इन लड़कियों और उनकी माताओंने जैसे मेरा पूरा भार अपने ऊपर वहन कर लिया! एक छोटीसी बच्ची को जैसे हाथ पकड़ कर चलना सिखाया जाता है, उससे भी अधिक ममता दिखाते हुए उन्होंने मुझे अक्षरशः चलाया, उतारा और चढ़ाया| जैसे मैं वहां अकेली थी और ये दोनों बिलकुल राम लक्ष्मण के जैसे एक आगे और एक पीछे, ऐसा मेरा साथ निभा रही थीं! मित्रों, बाहर आकर मेरे आँखोमें गंगाजमनी जल भरा था, ऐसी भावुक हो उठी थी मैं! मेरी फॅमिलीने उनके प्रति आभार प्रकट किये, हमारा हमेशा का सेलेब्रेशन खाने के इर्द-गिर्द घूमता है, इसलिए मैंने उन्हें गुफा से बाहर आते ही कहा “चलो कुछ खाते हैं!” उन्होंने इतना सुन्दर उत्तर दिया, “नानी, आप बस हमें blessings दीजिये!” १४-१५ साल की ये लड़कियां, ये उनके संस्कार बोल रहे थे! (ग्रुप फोटो में बैठी हुईं दाहिने तारफ की दोनों)! उन्हें कहाँ ज्ञान था कि गुफा के संपूर्ण गहन, गहरे गर्भगृह में मैं उन्हीं को मन ही मन ईश्वर मान कर चल रही थी, आशीर्वाद देनेकी मेरी औकात कहाँ थी? मित्रों, आपकी कभी यात्रा के दौरान में ऐसे ईश्वरों से भेंट हुई है? इस वक्त यह लिखते हुए भी उन दोनों बड़ी ही प्यारीसी खिलती कलियों जैसी अनजान बच्चियों को मैं भावभीने ह्रदय से जी भर कर बहुत सारे blessings दे रही हूँ!!! जियो!!!
आरवाह गुहा (Arwah Cave)
चेरापुंजी बस स्थानक से ३ किलोमीटर अंतर पर है आरवाह गुफा, यह बड़ी गुफा Khliehshnong इस क्षेत्र में है| इसमें खास देखने लायक है चूना पत्थर (लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म, अत्यंत घनतम जंगल से घिरी हुई, साहसी ट्रेकर्स तथा पुरातत्व तत्वों पर प्रेम करने वालों के लिए तो बेशकीमत खजाना ही समझिये! यह गुफा मावसमई गुफा से बड़ी है, लेकिन उसका थोड़ासाही हिस्सा पर्यटकोंको देखने के लिए खुला है| ३०० मीटर देखने के लिए २०-३० मिनट लगते हैं| परन्तु यहाँ गाईड जरुरी है, गुफा में गहरे तिमिर का साम्राज्य, तो कहीं कहीं अत्यंत संकरे सुरंग से, कभी फिसलन भरे पथरीले रास्ते से, तो कभी पानी के शीतल प्रवाह के बीच से आगे सरपट सरकते हुए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है! डरावने माहौल में और टॉर्च के धीमे उजाले में अनेक कक्ष दिखाई देते हैं, उनमें गुम्फा की दीवारों पर, छतपर और पाषाणों पर जीवाश्म (मछलियां, कुत्तेकी खोपड़ी इत्यादी) नजर आते हैं| यहाँ के चूना पत्थर(लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म लाखों वर्षों पूर्व के हो सकते हैं| प्रिय पाठकों, यह जानकारी मेरे परिवारजनों द्वारा प्रदान की गई है| गुफा तक ३ किलोमीटर सीढ़ियों का रास्ता, संपूर्ण क्षेत्र में घनी हरितिमा का वनवैभव, मैं गुफा के द्वार के मात्र ५० मीटर अंतर पर ही रुक गई| मुझे गुफा का दर्शन अप्राप्य ही था| इस सिलसिले में वहां का गाइड और हमारे आसामी(ऐसा-वैसा बिलकुल नहीं हाँ!) ड्रायव्हर अजय, इन दोनों की राय बहुत महत्वपूर्ण थी! घर की मंडली गुफा के दर्शन कर आई, तबतक मैं एक व्ह्यू पॉईंट से नयनाभिराम स्फटिकसम शुभ्र जलप्रपात, मलमल के पारदर्शी ओढ़नी जैसा कोहरा, गुलाबदान से छिड़के जाने वाले गुलाबजल के नाजुक छींटे की फुहार जैसी वर्षा की हल्की बूंदा बांदी और मद्धम गुलबदन संध्याकालीन क्षणों का अनुभव ले रही थी! मित्रों, जिनके लिए यह करना मुमकिन है, वे अवश्य इस दुर्गम गुफा का रहस्य जानने की कोशिश करें!
रामकृष्ण मिशन, सोहरा
यहाँ की पहाड़ी की चोटी पर रामकृष्ण मिशन का कार्यालय, मंदिर, संस्था का स्कूल और छात्रावास बहुत ही खूबसूरत हैं। वैसे ही यहाँ उत्तरपूर्व भागोंकी विभिन्न जनजातियों, उनकी विशिष्ट वेशभूषा, उनकी बनाई कलाकृतियों और बांस की कारीगरी से उत्त्पन्न वस्तुओं की जानकारी देनेवाला एक संग्रहालय बहुत सुंदर है| साथ ही मेघालय की तीन प्रमुख जनजातियां, गारो, जैंतिया तथा खासी जनजातियों पर केंद्रित कलाकृतियां, मॉडेल्स और उनकी विस्तृत जानकारी एक कमरे में संग्रहित है, वह भी देखते ही बनती है| रामकृष्ण मिशन के कार्यालय में यहाँ की खास चीजों, अलावा इसके, रामकृष्ण परमहंस, शारदा माता और स्वामी विवेकानंद के फोटो और अन्य वस्तुएं तथा परंपरागत चीजों की बिक्री भी होती है| हमने यहाँ बहुतसी सुन्दर चीज़ें खरीदीं|
रामकृष्ण परमहंस मंदिर में सम्पन्न हुई सांध्यकालीन आरती हम सब को एक अलग ही भक्तिरस से आलोकित वातावरण में ले गई| हमारे सौभाग्यवश उस आरती की परमपावन बेला मानों हमारे लिए ही संयोग से समाहित थी, अत्यंत प्रसन्नता से हमने इस पवित्र वास्तूका दर्शन किया! कुल मिलाकर देखें तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, यह अत्यंत रमणीय, भावभीना और भक्तिरस से परिपूर्ण स्थान पर्यटकोंने अवश्य देखना चाहिए| (संग्रहालय की समयसारिणी की अग्रिम जानकारी लेना जरुरी है)
मेघालय दर्शन के अगले भाग में आपको मैं ले चलूंगी मावफ्लांग Mawphlang,सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए! तैयार हैं ना आप पाठक मित्रों?
तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|
मेघालय, मेघों की मातृभूमि! “सुवर्ण जयंती उत्सव गीत”
(Meghalaya Homeland of the Clouds, “Golden Jubilee Celebration Song”)