हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 165 ☆ वृन्त से झर कर कुसुम… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना वृन्त से झर कर कुसुम। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 165 ☆

☆ वृन्त से झर कर कुसुम… ☆

हार तो हार होती है, पर यदि सही चिंतन किया जाय तो ये हार हार में बदल कर आपके गले की शोभा बनेगी। आवश्यकता है, तो केवल सकारात्मक दृष्टिकोण की अपनी असफलताओं से विचलित होने के बजाए ये सोचना चाहिए कि हम किस बिंदु पर कमजोर हैं, कहाँ सुधार किया जाना चाहिए।

हार से उदास होकर या जीत से खुश होकर जो लोग चुपचाप बैठे जाते हैं, उनकी सफलता का ग्राफ वहीं रुक जाता है। अतः जिस तरह दिन- रात का क्रम अनवरत चलता रहता है, ठीक उसी प्रकार आपकी कर्म गति भी निरंतर चलती रहनी चाहिए। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण प्रकृति के चक्र का एक हिस्सा हैं, पर ये कभी दिन- रात की प्रक्रिया में बाधक नहीं बनते। पूरे दृढ़ निश्चय के साथ अपने कार्यों को करते रहें एक न एक दिन मंजिल आपके कदमों में होगी और लक्ष्य आपके माथे का गौरव बन आपके उज्ज्वल भविष्य की राह प्रशस्त करेगा।

हिम्मत से करना सदा, जीवन में सब काज।

राहें गर हों सत्य की, मुश्किल नहीं सुकाज। ।

अक्सर ऐसा होता है, आप किसी के लिए लड़ रहे होते हैं परन्तु लोग आपको ही दोषी बना देते हैं, यहाँ तक कि उस व्यक्ति के भी आप अपराधी बन जाते हैं, तो इस स्थिति में क्या हम नेकी करना छोड़ दें, जो सच है उसका साथ न दें, देखकर भी अनजान बने, स्वविवेक को भूल केवल नजरें झुका कर अपना दायित्व निर्वाह करें…?

 ये सब बहुत ही साधारण से प्रश्न हैं जिनसे लगभग सभी व्यक्तियों को आये दिन गुजरना पड़ता है, कुछ तो टूट कर राह बदल लेते हैं, कुछ मौन हो अपना कार्य करते रहते हैं, कुछ अपमान की आग में जलते हुए बदला लेने की फ़िराक में रहते हैं।

 इनमें से आप कौन हैं ?ये तय करें फिर पूरी दृढ़ता से अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता रखते हुए सफलता की सीढ़ी को देखें और लोग क्या कहेंगे, करेंगे या सोचेंगे इसे भूल कर अपना अस्तित्व तलाशें, इस मानव जन्म को सार्थक करें। अपने भविष्य के निर्माता आप स्वयं हैं इसलिए केवल लक्ष्य देखें मान अपमान से परे जाकर।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – व्यंग्य ☆ “डंकोत्सव का आयोजन…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ व्यंग्य ☆ “डंकोत्सव का आयोजन…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

मैंने अपनी सगी सहेली ? “”ख्याति” से कहा–यार मुझे “डंका”” शब्द बहुत भाता है। बहुत प्यार है इससे। उच्चारण करते ही लगता है कि इसकी गूँज ब्रह्माण्डव्यापी हो गई है और सारी ध्वनियां इसमें समा गई हैं। शब्द में भारी वज़न है।

अब देखो ना, इसमें से “आ” की मात्रा माइनस कर दो तो बन जाता है “डंक”। बिच्छू और ततैया ही नहीं डंक तो कोई भी मार सकता है।

“जो डंकीले हैं वो डंकियाते रहते हैं।”  उन्हें इस पराक्रम से कौन रोक सकता है भला। और हां डंक शब्द का एक अर्थ “निब” भी तो होता है।

ख्याति छूटते ही बोली– ये प्यार व्यार सब फालतू बाते हैं। इससे कुछ हासिल नहीं होता। बस बजाना आना चाहिए।

—- पर मुझे तो नहीं आता। डंकावादकों की तर्ज पर कोशिश तो की थी पर नतीजा सिफर। मेरे प्यार को तुम प्लेटोनिक लव जैसा कुछ कुछ कह सकती हो।

—- सर्च करो रानी साहिबा– बजाना सिखानेवाली क्लासेस गली गली मिल जायेंगी। वह भी निःशुल्क।

— ऐसा क्यों ?

— क्योंकि यह राष्ट्रीय उद्यम है। जो देशभक्त है, वही डंका बजाने की ट्रेनिंग लेता है। सारा मीडिया अहोरात्र डंका बजाने में मशगूल है। बात सिर्फ इतनी सी है कि डंका बजाओ या बजवाओ। दोनों ही सूरत में ध्वनि का प्रसारण होना है। किसी में तो महारत हो।एक तुम हो “जीरो बटा सन्नाटा।”

चलो मैं तुम्हें विकल्प देती हूं। डंका नहीं तो “ढोल ” बजाओ !

— ‘ख्याति मुझे ढोल शब्द से सख्त नफरत है। कितना बेडौल शब्द है। अव्वल तो पहला अक्षर “ढ” है। मराठी में, बोलचाल में ढ यानी गधा।

—- ठीक है बाबा। ढोल नहीं तो डंका पीटो पर तबीयत से पीटो। फिर भी पीटना न आये तो पीटनेवाले या पिटवानेवाले की व्यवस्था करो।और रही बात डंके की कीमत तो इतनी ज्यादा भी नहीं है कि तुम अफोर्ड न कर सको।

लोकतंत्र में कुछ भी पीटने की आजादी सभी को है।

“डंका पीटोगी तभी तो औरों की लंका लगेगी ना।”

देखो सखी अभी अभी मेरे दिमाग में एक धांसू आइडिया आया है। तुम “डंकोत्सव का आयोजन”  क्यों नहीं करतीं। उसमें डंका शब्द की व्युत्पत्ति पर शोध पत्र का वाचन करो। उसमें डंके की चोट पर कुछ उपाधियों का वितरण करो यथा—- “डंकेन्द्र”, “डंकाधिपति”, “डंकेश”, “डंकाधिराज”, “डंकेश्वर”, “डंका श्री”, “डंका वाचस्पति”, “डंका शिरोमणि”, “डंका रत्न” आदि आदि।

सोचो सखी, शिद्दत से सोचो। नेकी और पूछ पूछ, जुट जाओ आयोजन में। डंके में शंका न करो।

—- ‘इतना ताम झाम करके भी डंका ठीक से न बजा तो–‘

— बेसुरा ही सही पर बजाओ—बजाते रहो—बजाते रहो। जब तक जां में जां है। डंका कभी निष्फल नहीं जाता।

डंकाधिपति की जय हो।

♡♡♡♡♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्थक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सार्थक ??

कुछ हथेलियाँ

उलीचती रहीं

दलदल से पानी,

सूखी धरती तक

पहुँचाती रहीं

बूँद-बूँद पानी,

जग हँसता रहा

उनकी नादानी पर..,

कालांतर में

मरुस्थल तो

तर हुआ नहीं पर

दलदल की जगह

उग आया

लबालब अरण्य..,

साधन की कभी

बाट नहीं जोहते,

संकल्प और श्रम

कभी व्यर्थ नहीं होते!

© संजय भारद्वाज 

14.9.20, रात्रि 12.07 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना- 30 अगस्त 2023 को सम्पन्न हुई। हम शीघ्र ही आपको अगली साधना की जानकारी देने का प्रयास करेंगे। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 141 ⇒ स्पर्श (Sense of touch) ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्पर्श (Sense of touch)”।)

?अभी अभी # 141 ⇒ स्पर्श (Sense of touch) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

एक पौधा होता है छुईमुई का (Mimosa pudica), जिसे छुओ, तो मुरझा जाता है, और थोड़ी देर बाद पुनः पहले जैसी स्थिति में आ जाता है। हर पालतू प्राणी, स्पर्श का भूखा होता है, इंसान की तो बात ही छोड़िए। छेड़ा मेरे दिल ने तराना तेरे प्यार का, किसी वाद्य यंत्र के तार मात्र को छूने से वह झंकृत हो जाता है, स्पर्श की महिमा जानना इतना आसान भी नहीं।

हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां हैं, आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा ! वैसे तो कर्मेंद्रियां भी पांच ही हैं, लेकिन त्वचा ही वह ज्ञानेंद्रिय है, जहां हमें कभी सुई तो कभी कांटा चुभता है, और गर्मागर्म चाय जल्दी जल्दी सुड़कने से जीभ जल जाती है। चाय का जला, कोल्ड्रिंक भी फूंक फूंक कर पीता है।।

बड़ों के पांव छूना, हमारे संस्कार में है। मंदिर में प्रवेश करते ही, हमारे हाथ एकाएक जुड़ जाते हैं। हमारी इच्छा होती है, मूर्ति के करीब जाकर प्रणाम करें, वह तन का ही नहीं, मन का भी स्पर्श होता है। कुछ भक्त तो अपने इष्ट के सम्मुख साष्टांग प्रणाम भी करते हैं, जिसमें शरीर के सभी अंग(पेट को छोड़कर) ठुड्डी, छाती, दोनों हाथ, घुटने, पैर और पूरा शरीर धरती को स्पर्श करता है। इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम भी कहते हैं। अहंकार त्यागकर स्वयं को अपने इष्ट अथवा ईश्वर को सौंप देना ही साष्टांग दंडवत प्रणाम का अर्थ है।

समय के साथ मानसिक स्पर्श अधिक व्यावहारिक हो चला है। मुंह से बोलकर अथवा चिट्ठी पत्री में ही पांव धोक, प्रणाम और दंडवत होने लग गए हैं। हृदय पर हाथ रखकर भी आजकल प्रणाम किया जाने लगा है। नव विवाहित युगल जब बड़ों को प्रणाम करता था तो दूधों नहाओ और पूतों फलो तथा मराठी में महिलाओं को अष्टपुत्र सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता था।।

हैजा एक संक्रामक बीमारी है। महामारी की बात छोड़िए, हाल ही में, मानवता ने कोरोनावायरस जैसी त्रासदी का सामना किया है, जिसके आगे विज्ञान क्या, ईश्वरीय शक्ति भी नतमस्तक हो गई थी। इंसान इंसान से दूर हो गया था, मंदिर का भगवान भी अपने भक्त से दूर हो गया था। लेकिन सृजन और प्रलय सृष्टि का नियम है, आज मानवता पुनः खुली हवा में सांस ले रही है। प्रार्थना और पुरुषार्थ में बल है। God is Great !

स्पर्श एक नैसर्गिक गुण है। इसे भौतिक सीमाओं में कैद नहीं कर सकते। डाली पर खिला हुआ एक फूल हमारे मन को स्पर्श कर जाता है। फूलों का स्पर्श अपने इष्ट को, अपने आराध्य को और अपनी प्रेमिका को, कितना आनंदित और प्रसन्न कर जाता है। पत्रं पुष्पं, नैवेद्यं समर्पयामी ! एक फूल तेरे जूड़े में, कह दो तो लगा दूं मैं; गुस्ताखी माफ़।।

एक नवजात, फूल जैसे बालक का स्पर्श, एक बालक का अपने गुड्डे गुड़ियों और आज की बात करें तो टैडी बच्चों की पहली पसंद होती है। मिट्टी के खिलौनों में बच्चों का स्पर्श जान डाल देता है। आज हमारे हाथ का मोबाइल और डेस्कटॉप महज कोई हार्डवेयर अथवा सॉफ्टवेयर नहीं, अलादीन का चिराग है। मात्र स्पर्श से खुल जा सिम सिम।

अब बहुत पुरानी हो गई स्पर्श की थ्योरी, जब आंखों आंखों में ही बात हो जाती है और दिल से दिल टकरा जाता है, मत पूछिए क्या हो जाता है। नजरों के तीर से दिल घायल होता है, फिर भी कोई शिकवा शिकायत नहीं, कोई एफआईआर नहीं।।

किसी के मन को छूना आज जितना आसान है, उतना ही कठिन है, किसी के मन को पढ़ पाना। कोई गायक किसी गीत को अपने होठों से मात्र छू देता है और वह गायक और गीत अमर हो जाता है। ये किसने गीत छेड़ा।

स्पर्श शरीर की नहीं, मन की वस्तु है। केवल सच्चे मन से मीठा बोला जाए, तो रिश्तों में चाशनी घुल जाए। किसी तन और मन से बीमार व्यक्ति को संजीदा शब्दों का स्पर्श भी कभी कभी संजीवनी का काम करता है। और कुछ नहीं है, स्पर्श चिकित्सा अथवा spiritual healing, कुछ दिल से दिल की बात कही, और रो दिए। लोगों पर हंसना छोड़िए, किसी के आंसू पोंछिए, रूमाल से नहीं, अपने शब्दों के स्पर्श से॥ 

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 227 ☆ कविता – प्रतिबिंब… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  – प्रतिबिंब)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 227 ☆

? कविता – प्रतिबिम्ब?

हर बार एक नया ही चेहरा कैद करता है कैमरा मेरा …

खुद अपने आप को अब तक

कहाँ जान पाया हूं, 

खुद की खुद में तलाश जारी है

हर बार एक नया ही रूप कैद करता है कैमरा मेरा

प्याज के छिलकों की या

पत्ता गोभी की परतों सा

वही डी एन ए किंतु

हर आवरण अलग आकार में ,

नयी नमी नई चमक लिये हुये

किसी गिरगिट सा,

या शायद केलिडेस्कोप के दोबारा कभी

पिछले से न बनने वाले चित्रों सा 

अक्स है मेरा .

झील की अथाह जल राशि के किनारे बैठा

में देखता हूं खुद का

प्रतिबिम्ब .

सोचता हूं मिल गया मैं अपने आप को

पर

जब तक इस खूबसूरत

चित्र को पकड़ पाऊं

एक कंकरी जल में

पड़ती है

और मेरा चेहरा बदल जाता है

अनंत

उठती गिरती दूर तक

जाती

लहरों में गुम हो जाता हूं मैं .

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 174 ☆ बाल कविता – जीवन है अनमोल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 174 ☆

☆ बाल कविता – जीवन है अनमोल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

टमटम में बैठे हम सब ही

चले शहर की ओर।

पों – पों – पीं – पीं गाड़ी करतीं

अति का होता शोर।।

 

भालू जी की बाइक की थी

बहुत तेज रफ्तार।

मोबाइल से बात कर रहे

जा टकराए कार।

 

बाइक टूटी गिरे जोर से

दुख गई पोर- पोर।।

 

शेर, लोमड़ी गीदड़ उनको

अस्पताल में लाए।

हाल अजब अपना था पाया

जब वे होश में आए।

 

नहीं करूँ मनमानी अब मैं

जीवन है अनमोल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ प्रलेस के महा-अधिवेशन में ‘अंतरात्मा का जन्तर मन्तर’ का हुआ लोकार्पण ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री अनूप श्रीवास्तव

🌹 प्रलेस के महा-अधिवेशन में ‘अंतरात्मा का जन्तर मन्तर’ का हुआ लोकार्पण🌹 साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस ) का शीर्ष व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को समर्पित अट्ठारहवां राष्ट्रीय सम्मेलन में चप्पे चप्पे पर परसाई छाए हुए थे। हरिशंकर परसाई नगर में आयोजित त्रिदिवसीय समारोह में परसाई जी छाए हुए थे। दीवारों से लेकर मंच तक परसाई के चित्रों, उनके व्यंग्य वचनों के पोस्टर सजे हुए थे। देश और विदेशों से समारोह में आये साहित्यकारों की जबान पर परसाई का ही नाम था। मंच के बाहर पंडाल में लगे स्टालों पर परसाई और राहुल सांस्कृत्यायन, प्रेमचंद, नागार्जुन की पुस्तकें धड़ाधड़ बिक रहीं थीं। आलम यह था कि अट्टहास का परसाई विशेषांक दो घण्टे में ही बिक गया। इसके बाद परसाई विशेषांक को पुनः पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का आश्वासन देना पड़ा। 

20 से 22 अगस्त, 2023 को जबलपुर में प्रगतिशील लेखक संघ का 18वाॅं राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित हुआ, जिसमें देश भर से आए पांच सौ से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी हुई।

20अगस्त को उदघाटन सत्र में परसाई जी पर केंद्रित अट्टहास पत्रिका का धूमधाम से विमोचन हुआ, 21अगस्त को विचार विमर्श सत्र के दौरान ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार,कवि, एवं चर्चित अट्टहास पत्रिका के प्रधान संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ‘अंतरात्मा का जन्तर मन्तर’ का विमोचन देश भर से जुटे नामी-गिरामी साहित्यकारों की उपस्थिति में हुआ।

कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी दूरदर्शन के रिट. डीडीजी श्री राजीव शुक्ल ने किया एवं मंच पर देश के दिग्गज साहित्यकार सर्वश्री नरेश सक्सेना, प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव श्री खुखदेव सिंह सिरसा, श्री विभूति नारायण राय,डॉ कुंदन सिंह परिहार,नथमल शर्मा, श्री वीरेन्द्र यादव, कुलदीप सिंह दीप, श्री प्रियदर्शन मालवीय, जैसे नामी-गिरामी लेखक उपस्थित थे।

महान साहित्यकार और साहित्य के संसार में जबलपुर की सर्वाधिक प्रखर पहचान हरिशंकर परसाई के जन्मदिन और जन्मशती के साथ यह सम्मेलन रांगेय राघव, शंकर शैलेन्द्र, हबीब तनवीर, मृणाल सेन और गीता मुखर्जी की याद को भी समर्पित था, क्योंकि इन विभूतियों की जन्मशताब्दी भी चल रही है। यह भी एक सुखद संयोग था कि 20 अगस्त को महान प्रगतिशील कवि त्रिलोचन की जयंती थी।  21 अगस्त को उर्दू की सबसे बेबाक और हिम्मती लेखिकाओं में एक इस्मत चुग़ताई की और 22 अगस्त को परसाई जी के साथ हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि गिरिजा कुमार माथुर की भी जयंती थी। पुस्तक विमोचन स्थल पर पंकज दीक्षित, बालेंदु परसाई और राजेश दुबे द्वारा निर्मित परसाई जी की सूक्तियों पर आधारित पोस्टरों और कार्टून पोस्टरों का प्रदर्शन इस आयोजन की एक और बड़ी उपलब्धि थी।

साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ‘अंतरराष्ट्रीय लघु कथा प्रतियोगिता’ में पुरस्कृत – अभिनंदन ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ‘अंतरराष्ट्रीय लघु कथा प्रतियोगिता’ में पुरस्कृत – अभिनंदन ☆

रतनगढ़, 30 अगस्त, 2023। रतनगढ़ निवासी श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी को अंतरराष्ट्रीय लघु कथा प्रतियोगिता सीजन 2 में 11वां स्थान प्राप्त हुआ है। यह प्रतियोगिता स्टोरी मिरर द्वारा आयोजित की गई थी। श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ने अपनी लघुकथा “भिखारी कहीं का” के लिए यह सम्मान प्राप्त किया है।

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ने बताया कि उन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अपनी लघुकथा पोस्ट की थी, लेकिन उसे प्रसारित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं था कि उनकी लघुकथा का चयन होगा। हालांकि, पाठकों की पसंद के आधार पर श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी की लघुकथा को 52 सर्वश्रेष्ठ लघुकथाओं में से 11वां स्थान प्राप्त हुआ। इसके लिए उन्हें एक सम्मानित प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया।

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ने कहा कि यह सम्मान उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा है। उन्होंने कहा कि वह भविष्य में भी लेखन के क्षेत्र में काम करना जारी रखेंगे।

विस्तृत विवरण:

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी की लघुकथा “भिखारी कहीं का” एक विकलांग युवक की कहानी है जो गरीबी और अभाव से जूझ रहा है। लघुकथा में परिवार के संघर्ष और उनके जीवन के संघर्षों को दिखाया गया है।

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी ने अपनी लघुकथा को लिखने के लिए विकलांग युवक की कहानियों से प्रेरणा ली है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी लघुकथा में विकलांग युवक की वास्तविक जिंदगी को दिखाने की कोशिश की है।

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी का कहना है कि वह भविष्य में विकलांग युवक की कहानियों पर आधारित लघुकथाएँ लिखना जारी रखेंगे।

💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी को इस विशिष्ट सम्मान के लिए हार्दिक बधाई 💐

– श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ संपर्क तुटला, संकल्प नाही… ☆ श्री राहूल लाळे ☆

श्री राहूल लाळे

? कवितेचा उत्सव ?

संपर्क तुटला, संकल्प नाही… ☆ श्री राहूल लाळे

संपर्क तुटला, संकल्प नाही

खचून जाणारे आम्ही नक्कीच नाही

 

विक्रमाने हुलकावणी दिली

तरी प्रज्ञाना ची साथ सोडणार नाही

 

चंद्राचे आहे जुनेच आकर्षण..

श्रीरामाला ही त्याने घातली भुरळ

प्रेमाचे आमच्या तो प्रतीक आहे

शास्त्रज्ञांसाठी कुतूहल आहे

 

हनुमंताचे भक्त आम्ही

चंद्रच काय सुर्यालाही गवसणी घालू

वेडे प्रेमवीर आम्ही

पुन्हा पुन्हा फिरुन येऊ

 

तो तिथेच कायम असेल

 निर्धार आमचा दशपट होईल

 

संपर्क तुटेल, संकल्प नाही

खचून जाणारे आम्ही निश्चितच नाही

© श्री राहुल लाळे

०७-०९-२०१९

पुणे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ चांद्रयानाचे मनोगत… ☆ सौ कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये ☆

सौ कुंदा कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ? 

चांद्रयानाचे मनोगत ☆ सौ कुंदा कुलकर्णी

चांद्रयानाने चंद्रावर

तिरंगा फडकला तेव्हाचे मनोगत

 

आनंदी आनंद गडे

हर्षाचा उन्माद चढे

देश/ विदेश नाही वावडे

लक्ष साऱ्यांचे माझ्याकडे(१)

 

चंदा मामा खूष झाला

तिरंगा त्याने डोई मिरवला

इस्रोचा त्याने सन्मान केला

दक्षिण ध्रुवावर उतर म्हणाला(२)

 

प्रवासाचा शीण कुठला

भरपूर कामे आहेत मजला

खूप सांगायचंय या मामाला

अपडेट पाठवीत राहीन तुम्हाला (३)

 

आशिष तुमचे हवेत मजला

कामगिरी फत्ते संशय कसला

ही तर नांदी सुवर्ण क्षणांची

 शान वाढवू भारतमाॅंची

© सौ. कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये

क्यू 17,  मौर्य विहार, सहजानंद सोसायटी जवळ कोथरूड पुणे

मो. 9527460290

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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