श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्पर्श (Sense of touch)”।)

?अभी अभी # 141 ⇒ स्पर्श (Sense of touch) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

एक पौधा होता है छुईमुई का (Mimosa pudica), जिसे छुओ, तो मुरझा जाता है, और थोड़ी देर बाद पुनः पहले जैसी स्थिति में आ जाता है। हर पालतू प्राणी, स्पर्श का भूखा होता है, इंसान की तो बात ही छोड़िए। छेड़ा मेरे दिल ने तराना तेरे प्यार का, किसी वाद्य यंत्र के तार मात्र को छूने से वह झंकृत हो जाता है, स्पर्श की महिमा जानना इतना आसान भी नहीं।

हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां हैं, आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा ! वैसे तो कर्मेंद्रियां भी पांच ही हैं, लेकिन त्वचा ही वह ज्ञानेंद्रिय है, जहां हमें कभी सुई तो कभी कांटा चुभता है, और गर्मागर्म चाय जल्दी जल्दी सुड़कने से जीभ जल जाती है। चाय का जला, कोल्ड्रिंक भी फूंक फूंक कर पीता है।।

बड़ों के पांव छूना, हमारे संस्कार में है। मंदिर में प्रवेश करते ही, हमारे हाथ एकाएक जुड़ जाते हैं। हमारी इच्छा होती है, मूर्ति के करीब जाकर प्रणाम करें, वह तन का ही नहीं, मन का भी स्पर्श होता है। कुछ भक्त तो अपने इष्ट के सम्मुख साष्टांग प्रणाम भी करते हैं, जिसमें शरीर के सभी अंग(पेट को छोड़कर) ठुड्डी, छाती, दोनों हाथ, घुटने, पैर और पूरा शरीर धरती को स्पर्श करता है। इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम भी कहते हैं। अहंकार त्यागकर स्वयं को अपने इष्ट अथवा ईश्वर को सौंप देना ही साष्टांग दंडवत प्रणाम का अर्थ है।

समय के साथ मानसिक स्पर्श अधिक व्यावहारिक हो चला है। मुंह से बोलकर अथवा चिट्ठी पत्री में ही पांव धोक, प्रणाम और दंडवत होने लग गए हैं। हृदय पर हाथ रखकर भी आजकल प्रणाम किया जाने लगा है। नव विवाहित युगल जब बड़ों को प्रणाम करता था तो दूधों नहाओ और पूतों फलो तथा मराठी में महिलाओं को अष्टपुत्र सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता था।।

हैजा एक संक्रामक बीमारी है। महामारी की बात छोड़िए, हाल ही में, मानवता ने कोरोनावायरस जैसी त्रासदी का सामना किया है, जिसके आगे विज्ञान क्या, ईश्वरीय शक्ति भी नतमस्तक हो गई थी। इंसान इंसान से दूर हो गया था, मंदिर का भगवान भी अपने भक्त से दूर हो गया था। लेकिन सृजन और प्रलय सृष्टि का नियम है, आज मानवता पुनः खुली हवा में सांस ले रही है। प्रार्थना और पुरुषार्थ में बल है। God is Great !

स्पर्श एक नैसर्गिक गुण है। इसे भौतिक सीमाओं में कैद नहीं कर सकते। डाली पर खिला हुआ एक फूल हमारे मन को स्पर्श कर जाता है। फूलों का स्पर्श अपने इष्ट को, अपने आराध्य को और अपनी प्रेमिका को, कितना आनंदित और प्रसन्न कर जाता है। पत्रं पुष्पं, नैवेद्यं समर्पयामी ! एक फूल तेरे जूड़े में, कह दो तो लगा दूं मैं; गुस्ताखी माफ़।।

एक नवजात, फूल जैसे बालक का स्पर्श, एक बालक का अपने गुड्डे गुड़ियों और आज की बात करें तो टैडी बच्चों की पहली पसंद होती है। मिट्टी के खिलौनों में बच्चों का स्पर्श जान डाल देता है। आज हमारे हाथ का मोबाइल और डेस्कटॉप महज कोई हार्डवेयर अथवा सॉफ्टवेयर नहीं, अलादीन का चिराग है। मात्र स्पर्श से खुल जा सिम सिम।

अब बहुत पुरानी हो गई स्पर्श की थ्योरी, जब आंखों आंखों में ही बात हो जाती है और दिल से दिल टकरा जाता है, मत पूछिए क्या हो जाता है। नजरों के तीर से दिल घायल होता है, फिर भी कोई शिकवा शिकायत नहीं, कोई एफआईआर नहीं।।

किसी के मन को छूना आज जितना आसान है, उतना ही कठिन है, किसी के मन को पढ़ पाना। कोई गायक किसी गीत को अपने होठों से मात्र छू देता है और वह गायक और गीत अमर हो जाता है। ये किसने गीत छेड़ा।

स्पर्श शरीर की नहीं, मन की वस्तु है। केवल सच्चे मन से मीठा बोला जाए, तो रिश्तों में चाशनी घुल जाए। किसी तन और मन से बीमार व्यक्ति को संजीदा शब्दों का स्पर्श भी कभी कभी संजीवनी का काम करता है। और कुछ नहीं है, स्पर्श चिकित्सा अथवा spiritual healing, कुछ दिल से दिल की बात कही, और रो दिए। लोगों पर हंसना छोड़िए, किसी के आंसू पोंछिए, रूमाल से नहीं, अपने शब्दों के स्पर्श से॥ 

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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