☆ डॉ विनोद गायकवाड जी के पुरस्कृत मराठी उपन्यास ” युगांत ” का डॉ प्रतिभा मुदलियार जी द्वारा हिंदी भावानुवाद (सम्पूर्ण उपन्यास) ☆
(महाभारत के चरित्र भीष्म पितामह के जीवन पर आधारित सुप्रसिद्ध मराठी उपन्यास का हिंदी भावानुवाद)
(आप सामान्य पुस्तक की तरह ऊँगली से पृष्ठ पलट कर पुस्तक पढ़ सकते हैं अथवा पृष्ठ के दाहिने ऊपरी या निचले कोने पर क्लिक करें। आप ऊपर दाहिनी और नेविगेशन मेनू का प्रयोग भी कर सकते हैं।)
लेखक परिचय
डॉ विनोद गायकवाड
डॉ.विनोद गायकवाड़ जी मराठी के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। आपने पचास से अधिक उपन्यासों की रचना की है। महाभारत के चरित्र भीष्म पितामह पर आधारित उपन्यास “युगांत” ने कई पुरस्कार जीते हैं।हाल ही में आपने शिरडी के साईं बाबा के जीवन पर आधारित मराठी में “साईं” उपन्यास लिखा है जिसे पाठकों का भरपूर प्रतिसाद मिला है। आपका संक्षिप्त साहित्यिक परिचय निम्नानुसार है –
उपन्यास – 54 उपन्यास सुप्रसिद्ध उपन्यास –
साई – (शिर्डी साईबाबा के जीवन पर आधारित कथा ) मराठी, अङ्ग्रेज़ी, हिन्दी, कन्नड, तमिल, गुजराती व कोंकणी भाषा में अनुवाद
युगांत – (भीष्म पितामह के जीवन पर आधारित रोमहर्षक कथा) मराठी, तमिल, हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी में अनुवादित
युगारंभ – (महात्मा फुले व सवितरिबाई फुले के जीवन पर आधारित कथा ) मराठी, कन्नड व अङ्ग्रेज़ी में अनुवादित
कथा – 200 से अधिक प्रसिद्ध कहानियाँ , चार कथा संग्रह। “साप साप” कथा कर्नाटक सरकार के पाठ्य पुस्तक का भाग नाटक – 7 नाटक प्रकाशित समीक्षाएं – 6 समीक्षाएं प्रकाशित संशोधनात्मक/ आलोचनात्मक लेख – 50 से अधिक साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित अनुवाद – समकालीन कन्नड कथा शोध – आपके कृतित्व “विनोद गायकवाड के उपन्यासों का अध्ययन (मराठी)” शीर्षक पर पी एच डी पूर्ण एवं “साई” व “युगांत “पर पी एच डी पर कार्य चल रहा है।
सम्प्रति – प्राध्यापक (मराठी विभाग), रानी चन्नम्मा विद्यापीठ, बेलगांव (कर्नाटक)
डॉ प्रतिभा मुदलियार
(डॉ प्रतिभा मुदलियार जी का अध्यापन के क्षेत्र में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है । पूर्व में हांकुक युनिर्वसिटी ऑफ फोरन स्टडिज, साउथ कोरिया में वर्ष 2005 से 2008 तक अतिथि हिंदी प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत। इसके पूर्व कि मुझसे कुछ छूट जाए आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया डॉ प्रतिभा मुदलियार जी की साहित्यिक यात्रा की जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें –
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर एक कविता- मायोपिआ
वे रोते नहीं,
धरती की कोख में उतरती
रसायनों की खेप पर,
ना ही आसमान की प्रहरी
ओज़ोन की
पतली होती परत पर,
दूषित जल, प्रदूषित वायु,
बढ़ती वैश्विक अग्नि भी,
उनके दुख का
कारण नहीं, अब…,
विदारक विलाप कर रहे हैं,
इन्हीं तत्वों से उपजी
एक देह के
मौन हो जाने पर…,
मनुष्य की आँख के
इस शाश्वत मायोपिआ का
इलाज ढूँढ़ना
अभी बाकी है..!
मायोपिआ- निकट दृष्टिमत्ता जिसमें दूर का स्पष्ट दिखाई नहीं देता।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
writersanjay@gmail.com
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम साहित्यकारों की पीढ़ी ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आपने लघु कथा को लेकर कई प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत हृदयस्पर्शी एवं विचारणीय लघुकथा ‘‘किस्साए तोता मैना’’।)
जग जहान छोड़कर इस कमरे में पहले आया एक लड़का फिर आई एक लड़की। दोनों ‘लिव इन’ में रहने चले आए थे।
लड़की अपने पहले प्रेम के प्रतीक में खरीद कर लाई एक मैना और लड़का लेकर आया एक तोता सुंदर सलोना।
लड़का लड़की कमरे में और तोता मैना पिंजरे में, दोनों जोड़े प्रेम का ककहरा पढ़ रहे थे।
प्यार बढ़े तो बढ़ता ही जाए। अतृप्त होने का नाम तक न ले। समय की सीमाएं तोड़ता जाए और प्यार की नई परिभाषाएं गढ़ता जाए। तोता मैना अपने मालिकों को प्यार में भीगते देख अपने पंख फड़फड़ा कर खुशियां जाहिर करते।
दोनों के टिफिन होटल से आ रहे थे। बचा खुचा तोता मैना को भी मिल जाता। सलाद, चटनी, दही, हरी-हरी मिर्चियां।
कुछ ज्यादा दिन नहीं बीते थे। एक दिन तोता उदास होकर बोला- ‘सुन री मैना, औरत जब विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो प्यार की मर्यादा टूटने में फिर ज्यादा देर नहीं लगती है।’
मैना बोली- ‘सुन तोते, अपनी आंखें खुली रख। आदमी भी कोई दूध का धुला नहीं होता। कोई दूसरी भा जाए तो पहले प्यार को एक झटके में कच्चे सूत सा तोड़कर यह जा वह जा, न जाने कब निकल जाए।
फिर दोनों ने मिलकर जो देखा तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गई। लड़का लड़की दोनों एक दूसरे से आंखें चुरा कर बेवफाई कर रहे थे। मोबाइल पर छुप छुप कर बतिया रहे थे।
हाथ कंगन को आरसी क्या? एक दिन लड़की पिछले दरवाजे से निकल भागी। अगले दरवाजे से लड़का भी दबे पांव निकल भागा। वहां एक पक्षी जोड़ा रह गया अभागा।
दोनों ही अपने अपने मालिकों की विरह वेदना में तड़प रहे थे। बुरी तरह छटपटा रहे थे। उनके पेट में एक दाना भी नहीं गया था।
मैना आंखों में अश्रु भरकर बोली- ‘कहां तो मैं सोचती थी कि मैं भी लड़कियों की तरह दुल्हन बनती। कोई तोता मुझे ब्याहने आता। बारातियों को साह जी के बाग के मीठे मीठे अमरुद परोसे जाते। पर पकड़ लाया दुष्ट बहेलिया और सबसे बड़ी खतरनाक तो निकली यह लड़की। पिंजरे मैं मुझे कैद कर खुद फुर हो गई।’
तोता बोला _ ‘सुन मैना सुनैना, मेरे भी सपने थे। तोतियों के बीच से एक सुंदर तोती चुनता। जोड़ा बनाता। सुंदर-सुदर तोता मैना पैदा कर वंश वृद्धि में सहायक होता, पर दुर्भाग्य ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।’
मैना सिसककर बोली- ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। आ तोता, जिंदगी का आखिरी भाग प्यार की अनुभूति जगाकर मनाएं। अगले जन्म का सुखद सपना देखें और मृत्यु को गले लगाएं।’
☆ युगांत – (हिन्दी भावानुवाद) – डॉ प्रतिभा मुदलियार (मूल मराठी लेखक – डॉ विनोद गायकवाड) ☆ हेमन्त बावनकर ☆
प्रिय मित्रो,
डॉ विनोद गायकवाड जी के शब्दों में – “महाभारत यानी कभी भी खतम न होनेवाली अक्षय सुवर्ण की खान! कोई भी उसमें से कितना भी सोना निकाल कर ले जाए पर यह खान कभी खतम नहीं होती। महाभारत के दो सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व हैं ‘भीष्म पितामह’ और ‘श्रीकृष्ण’!!”
भीष्म पितामह के जीवन पर आधारित एवं डॉ विनोद गायकवाड़ जी द्वारा रचित ‘युगांत’एक अभूतपूर्व उपन्यास है। यह उपन्यास मराठी के अतिरिक्त तमिल में भी प्रकाशित हो चूका है।
डॉ प्रतिभा मुदलियार जी ने ‘युगांत’ का अत्यंत सजीव हिन्दी भावानुवाद किया। भावानुवाद की भाषा शैली पूर्णतः मौलिक एवं कालखंड के अनुरूप है जो इस उपन्यास को विश्वस्तरीय श्रेणी में अपना स्थान बनाने में पूर्णतः सफल है। आप इस उपन्यास की रोचकता का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि – जब मैंने इस 460 पृष्ठ के उपन्यास को एक बार पढ़ना प्रारम्भ किया तो पूरा उपन्यास पढ़ कर ही विराम ले सका। मेरा पूर्ण विश्वास है कि- जब आप भी इस उपन्यास को पढ़ना प्रारम्भ करेंगे तो आपको मेरी बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं लगेगी।
ई-अभिव्यक्ति में इस उपन्यास को 7 जुलाई 2020 से 7 ओक्टोबर 2020 तक धारावाहिक रूप इस 460 पृष्ठ के उपन्यास को 92 अंकों में सतत प्रकाशित किया था, जिसका प्रबुद्ध पाठकों से अत्यंत स्नेह एवं प्रतिसाद मिला।
पुस्तक को आपने धारावाहिक रूप में तो पढ़ा किन्तु, उसे डिजिटल पुस्तक (फ्लिपबुक)के रूप में पढ़ने का अनुभव अद्भुत होगा।
आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ‘युगांत’ पढ़ें और अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें।
आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
सस्नेह
हेमन्त बावनकर
पुणे (महाराष्ट्र)
28 फ़रवरी 2023
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री रिंकल शर्मा जी की पुस्तक “प्रेम चंद मंच पर” पर पुस्तक चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 130 ☆
☆ “प्रेम चंद मंच पर” – सुश्री रिंकल शर्मा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
प्रेम चंद मंच पर
रूपांतरण.. रिंकल शर्मा
कहानी नाट्य रूपांतर
प्रभाकर प्रकाशन दिल्ली
मूल्य १२५ रु
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
बीसवीं सदी के आरंभिक वर्ष प्रेमचंद के रचना काल का समय था, किन्तु अपनी सहज अभिव्यक्ति की शैली तथा जन जीवन से जुडी कहानियों के चलते उनकी कहानियां आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं. प्रेमचंद के साहित्य की कापी राइट की कानूनी अवधि समाप्त हो जाने के बाद से निरंतर अनेकानेक प्रकाशक लगातार उनके उपन्यास और कहानियां बार बार विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित करते रहे हैं.
कोई भी कथानक विभिन्न विधाओ में अभिव्यक्त किया जा सकता है. कविता में भाषाई चतुरता के साथ न्यूनतम शब्दों में त्वरित तथा संक्षिप्त वैचारिक संप्रेषण किया जाता है, तो कहानी में शब्द चित्र बनाकर सीमित पात्रों एवं परिवेश के वर्णन के संग किसी घटना का लोकव्यापीकरण होता है. ललित निबंध में अमिधा में रचनाकार अपने विचार रखता है. उपन्यास अनेक परस्पर संबंधित घटनाओ को पिरोकर लंबे समय की घटनाओ का निरूपण करता है. इसी तरह लघुकथा एक टविस्ट के साथ सीधा प्रहार करती है, तो व्यंग्य विसंगतियों पर लक्षणा में कटाक्ष करता है. नाटक वह विधा है जिसमें अभिनय, निर्देशन, दृश्य और संवाद मिलकर दर्शक पर दीर्घ जीवी मनोरंजक या शैक्षिक प्रभाव छोड़ते हैं. इन दिनों हिन्दी में ज्यादा नाटक नहीं लिखे जा रहे हैं. फिल्मो ने नाटको को विस्थापित कर दिया है.
ऐसे समय में रिंकल शर्मा ने “प्रेम चंद मंच पर ” में मुंशी प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानियों पंच परमेश्वर, नादान दोस्त, गुल्ली डंडा और कजाकी के नाट्य रुपांतरण प्रस्तुत कर अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया है. इससे पहले भी कई प्रसिद्ध रचनाओ के नाट्य रूपांतरण किये गये हैं, हरिशंकर परसाई की रचना मातादीन चांद पर के नाट्य रूपांतरण के बाद जब उसका मंचन जगह जगह हुआ तो वह दर्शको द्वारा बेहद सराहा गया. केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास कोहबर की शर्त पर फिल्म नदिया के पार भीष्म साहनी की रचना तमस पर, अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर पर आधारित ग़दर एक प्रेम कथा, धर्मवीर भारती के गुनाहों का देवता और सूरज का सातवां घोड़ा, स्वयं मुंशी प्रेमचंद जी के ही उपन्यासों गोदान, सेवासदन, और गबन पर भी फिल्में बन चुकी हैं.
किसी कहानी का केंद्र बिंदु एक कथानक होता है, पात्र होते हैं, परिवेश का किंचित वर्णन होता है, कहानी में एक उद्देश्य निहित होता है जो कहानी का चरमोत्कर्ष होता है. पात्रों के माध्यम से लेखक इस उद्देश्य को पाठको तक पहुंचाता है. नाटक की कहानी से यह समानता होती है कि नाटक में भी एक कहानी होती है, नाटक में संवाद होते हैं, पात्रों के मध्य द्वंद्व होता है. नाटक के पात्र संवादों को प्रभावशाली बना कर दर्शक तक अधिक उद्देशयपूर्ण बनाने की क्षमता रखते हैं.
किसी कहानी का नाट्य रूपांतरण करने के लिये कहानीकार की मूल भावना को समझकर बिना कहानी के मूल आशय को बदले संवाद लेखन सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है. जब मुझे रिंकल जी ने समीक्षा के लिये यह पुस्तक भेजी तो मैंने सर्वप्रथम अपनी बहुत पहले पढ़ी गई मुंशी प्रेमचंद की चारों कहानियों पंच परमेश्वर, नादान दोस्त, गुल्ली डंडा और कजाकी को उनके मूल रूप में फिर से पढ़ा, उसके बाद जब मैंने यह नाट्य रूपांतर पढ़ा तो मैंने पाया है कि रिंकल शर्मा ने इन चारों कहानियों के नाट्य रूपांतर में संवाद लेखन का दायित्व बड़े कौशल से निभाया है चूंकि वे स्वयं नाट्य निर्देशिका हैं अतः वे यह कार्य सुगमता पूर्वक कर सकी हैं. अत्यंत छोटे छोटे वाक्यों में संवाद लिखे गये हैं, इससे किशोर वय के बच्चे भी ये रूपातरित नाटक अपने स्कूलों के मंच पर प्रस्तुत कर सकेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. मैं इस साहित्यिक सुकृत्य हेतु लेखिका, कवियत्री और स्तंभ लेखिका रिंकल शर्मा की सराहना करता हूं.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 23 – चुनाव प्रचार ☆ श्री राकेश कुमार ☆
साठ के दशक में बैलों की जोड़ी और दीपक निशान युक्त बैज, सेफ्टी पिन के साथ कमीज़ में टांकते हुए हमारे देश के चुनाव प्रचार की यादें आज भी स्मृति में हैं।
आजकल तो सोशल मीडिया का समय है, इसलिए ट्विटर, फेस बुक, व्हाट्स ऐप जैसे प्रचार साधन जोरों पर हैं। समाचार पत्र, पेम्प्लेट, बैनर, होर्डिंग, भवनों की दीवारें पोस्टर और पेंटर की कूची से रंग भरना अभी भी जारी हैं।
यहां विदेश में दो फुट चौड़ा और दो फुट लंबा एक्रेलिक शीट पर लिख कर सड़क के किनारे पर खड़ा कर देते हैं। यातायात या जन जीवन पर कोई रुकावट तक नहीं होती है। हमारे देश में तो नामांकन भरने, चुनाव परिणाम सब के अलग-अलग लंबे जलूस के रूप में जाते हैं।
प्रत्याशी स्वयं भी घर-घर जाकर और सभा के माध्यम से अपना परिचय देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। समय, धन, बाहुबल का सहारा चुनाव की जीत में बैसाखी का कार्य करते हैं। इन सब से लोगों को भी अनेक परेशानियां होना स्वाभाविक है।
विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र का खिताब होने पर भी हमारे चुनाव प्रचार / व्यवस्था में ढेरों कमियां हैं। सुधार अत्यंत मंद गति से हो रहे हैं, शायद अंग्रेजी कहावत “Slow and steady wins the race.” के सिद्धांत को मानते हैं।
(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे।
हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)
☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 10 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
☆
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
☆
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
अर्थ:–
आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने। आपकी सलाह को मानकर विभीषण लंकेश्वर हुए। यह बात सारा संसार जानता है।
भावार्थ:-
सुग्रीव जी के भाई बाली ने उनको अपने राज्य से बाहर कर दिया था। बाली ने उनकी पत्नी तारा को भी उनसे छीन लिया था। इस प्रकार बाली ने सुग्रीव का सर्वस्व हरण कर लिया था। हनुमान जी ने सुग्रीव और श्री राम जी का मिलन कराया। बाद में श्री रामचंद्र जी द्वारा बाली का वध हुआ और सुग्रीव को उनका राज्य वापस मिला।
श्री हनुमान जी के द्वारा लंका में विभीषण को दी गई सलाह को उन्होंने मान लिया। रावण द्वारा लंका से भगाया जाने के बाद विभीषण श्री रामचंद्र जी के शरणागत हो गए। श्री रामचंद्र जी ने उनको लंका का राजा बना दिया।
संदेश:-
किसी के साथ अन्याय होता दिखे तो चुप बैठने की जगह श्री हनुमान जी की तरह उसकी सहायता करना ही मानवता है।
हमको सदैव अच्छे एवं नीतिज्ञ व्यक्ति का साथ देना चाहिए। अगर कोई अन्यायी या दुराचारी सत्ता पर बैठा हो तो चुप बैठने की जगह श्री हनुमान जी की तरह उसको हटाने का कार्य करना ही वीर व्यक्ति का लक्षण है।
इन चौपाइयों के बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
हनुमान चालीसा की ये चौपाइयां राजकीय मान सम्मान दिलाती है। हनुमत कृपा पर विश्वास आपको चतुर्दिक सफलता दिलाएगा।
विवेचना:-
पहली चौपाई में महात्मा तुलसीदास बताते हैं कि हनुमान जी ने सुग्रीव जी को श्री रामचंद्र जी से मिलाकर सुग्रीव जी पर उपकार किया। श्री राम चन्द्र जी द्वारा उन्हें किष्किंधा का राजा बना दिया गया। यदि श्री रामचंद्र जी और सुग्रीव की मुलाकात नहीं होती और दोनों की आपस में मित्रता की संधि नहीं होती तो सुग्रीव कभी भी बाली को परास्त कर किष्किंधा के राजा नहीं हो पाते।
संकटमोचन हनुमान अष्टक में भी इस बात का वर्णन है:-
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो |
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो
|| को० – 2 ||
अर्थात बाली के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे। एक दिन सुग्रीव ने जब श्री राम जी और श्री लक्ष्मण जी को आते देखा तो उन्हें बाली का भेजा हुआ योद्धा समझ कर भयभीत हो गए। तब श्री हनुमान जी ने ही ब्राह्मण का वेश बनाकर प्रभु श्रीराम का भेद जाना और सुग्रीव से उनकी मित्रता कराई। यह पूरा प्रसंग रामचरित मानस तथा अन्य सभी रामायणों में भी मिलता है। यह प्रसंग निम्नानुसार है:-
सुग्रीव बाली से डरकर ऋष्यमूक पर्वत पर अपने मंत्रियों और मित्रों के साथ निवास कर रहे थे। बाली को इस बात का श्राप था कि अगर वह ऋष्यमूक पर्वत पर जाएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस डर के कारण बाली इस पर्वत पर नहीं आता था। परंतु इस बात की पूरी संभावना थी कि वह अपने दूतों को सुग्रीव को मारने के लिए भेज सकता था। सुग्रीव ने एक दिन दो वनवासी योद्धा युवकों को तीर धनुष के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर आते हुए देखा।
आगे चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
सुग्रीव के यह लगा कि ये दोनों योद्धा बाली के द्वारा भेजे गए दूत हैं। सुग्रीव जी यह देखकर अत्यंत भयभीत हो गए। उनके साथ रह रहे लोगों में हनुमान जी सबसे बुद्धिमान एवं बलशाली थे। अतः उन्होंने श्री हनुमान जी से कहा तुम ब्राह्मण भेष में जाकर यह पता करो कि यह लोग कौन है?
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥
सुग्रीव इतना डरा हुआ था कि उसने कहा कि अगर यह लोग बाली के द्वारा भेजे गए हैं तो वह तुरंत ही वह इस स्थान को छोड़ देगा। यह सुनने के उपरांत हनुमान जी तत्काल ब्राह्मण वेश में युवकों से मिलने के लिए चल दिए। हनुमान जी ने उन दोनो युवकों से उनके बारे में पूछा।
यहां यह बताना आवश्यक है कि इसके पहले हनुमान जी श्री रामचंद्र जी के बाल्यकाल में उनको एक बार देख चुके थे। परंतु बाल अवस्था और युवा काल में शरीर में बड़ा अंतर आ जाता है। अतः उनको वे तत्काल पहचान नहीं सके।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4।।
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
हनुमान जी द्वारा पूछे जाने पर श्री रामचंद्र ने अपना परिचय दिया और परिचय प्राप्त करने के बाद हनुमान जी ने उनको तत्काल पहचान लिया तथा उनके चरणों पर गिर गये।
हनुमान जी को इस बात की ग्लानि हुई कि वे भगवान को पहचान नहीं पाए और तत्काल उन्होंने भगवान से पूछा कि मैं तो एक साधारण वानर हूं आप भगवान होकर मुझे क्यों नहीं पहचान पाए।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना॥
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
इस प्रकार हनुमान जी ने श्री रामचंद्र जी और श्री लक्ष्मण जी को अपना पुराना परिचय याद दिला कर सुग्रीव के लिए एक रास्ता बनाया। सुग्रीव को एक सशक्त साथी की आवश्यकता थी जो बाली को हराकर सुग्रीव को राजपद दिला सकने में समर्थ हो। हनुमान जी को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की शक्ति के बारे में पता था। अतः उन्होंने श्री रामचंद्र जी और श्री लक्ष्मण जी को सुग्रीव के पास चलने के लिए प्रेरित किया।
देखि पवनसुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला॥
नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई॥1॥
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
अर्थ:- श्रीरामचंद्र जी को अनुकूल (प्रसन्न) देखकर पवन कुमार हनुमान् जी के हृदय में हर्ष छा गया और उनके सब दुःख जाते रहे। (उन्होंने कहा-) हे नाथ! इस पर्वत पर वानरराज सुग्रीव रहते हैं, वे आपका दास है॥1॥
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे॥
सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि॥2॥
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
अर्थ:- हे नाथ! उससे मित्रता कीजिए और उसे दीन जानकर निर्भय कर दीजिए। वह सीताजी की खोज करवाएगा और जहाँ-तहाँ करोड़ों वानरों को भेजेगा॥2॥
इसके उपरांत श्री रामचंद्र जी और श्री लक्ष्मण जी को लेकर हनुमान जी सुग्रीव के पास पहुंचे और दोनों के बीच में मित्रता कराई।
तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ। पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ॥4॥
(रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड)
अर्थ:- तब हनुमान्जी ने दोनों ओर की सब कथा सुनाकर अग्नि को साक्षी देकर परस्पर दृढ़ करके प्रीति जोड़ दी (अर्थात् अग्नि को साक्षी देकर प्रतिज्ञापूर्वक उनकी मैत्री करवा दी)॥4॥
हनुमान जी ने सुग्रीव जी और श्री रामचंद्र जी के बीच में वार्तालाप होने के बाद अग्नि देव को साक्षी रख उनका पुष्प आदि से पूजन किया। इसके उपरांत श्री रामचंद्र जी और सुग्रीव के बीच में अग्नि को रखा गया। दोनों ने अग्नि की परिक्रमा की। इस प्रकार सुग्रीव और श्री राम जी की मैत्री हो गई। दोनों एक दूसरे को मैत्री भाव से देखने लगे। इस मैत्री के उपरांत बाली को मारने की योजना बनी। फिर सुग्रीव को राज्य पद प्राप्त हुआ।
इस प्रकार अगर हनुमान जी पूरी योजना बनाकर क्रियान्वित नहीं करवाते तो सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य नहीं प्राप्त हो सकता था। हनुमान जी ने यह सब किसी स्वार्थवश नहीं किया वरन महाराज बाली द्वारा किए जा रहे अन्याय को समाप्त करने का उपाय किया।
इसी प्रकार की दूसरी घटना श्रीलंका की है। जहां पर दुराचारी अत्याचारी निरंकुश शासक रावण राज्य करता था। रावण का दूसरा भाई विभीषण धार्मिक, सज्जन और ईश्वर को मानने वाला था। किन्तु शारीरिक शक्ति में वह रावण से कमजोर था। हनुमान जी ने उसको श्री रामचंद्र जी के पास पहुंचने की सलाह दी। श्री विभीषण ने बाद में इस सलाह का उपयोग किया और वह लंका का राजा भी बना।
हनुमान जी द्वारा विभीषण को सलाह देने की पूरी कहानी पर अगर हम ध्यान दें, तो हम पाते हैं कि सीता जी की खोज में लंका भ्रमण के दौरान विभीषण का महल हनुमान जी को एकाएक दिखा था। विभीषण के भवन के बाहर धनुष बाण के प्रतीक बने हुए थे। घर के बाहर लगी तुलसी के पौधे और धनुष बाण के इन्हीं प्रतीकों ने महावीर हनुमान जी को आकर्षित किया।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥
(रामचरितमानस/सुंदरकांड/दोहा क्रमांक 5)
अर्थ:— वह महल राम के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज हनुमान हर्षित हुए।
उनके मन में यह उम्मीद जगी कि यहां से उनको सहायता मिल सकती है। इसके बाद की घटना और भी आकर्षक है।
हनुमान जी ने मन ही मन में कहा और तर्क करने लगे :-
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥
और हनुमान जी ने सोचा की यह लंका नगरी तो राक्षसों के कुल की निवास भूमि है। यहाँ सत्पुरुषों का क्या काम ? इस तरह हनुमानजी मन ही मन में विचार करने लगे। इतने में विभीषण की आँख खुली।
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥
विभीषण जी ने जागते ही ‘राम! राम!’ का स्मरण किया, तो हनुमानजी ने जाना की यह कोई सत्पुरुष है। इस बात से हनुमानजी को बड़ा आनंद हुआ। हनुमानजी ने विचार किया कि इनसे जरूर पहचान करनी चहिये, क्योंकि सत्पुरुषों के हाथ कभी कार्य की हानि नहीं होती। उसके उपरांत हनुमान जी ब्राह्मण के वेश में विभीषण के सामने पहुंचे। विभीषण जी ने उनको अच्छा आदमी समझ कर अपने पास बुलाया और चर्चा की। तब हनुमान जी ने पूरा वृतांत सुनाया।
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।
(रामचरितमानस/ सुंदरकांड/ दोहा)
विभीषण के ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रामचन्द्रजी की सब कथा विभीषण से कही और अपना नाम बताया। परस्पर एक दूसरे की बातें सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गए। श्री रामचन्द्रजी का स्मरण आ जाने से दोनों आनंदमग्न हो गए।
हनुमान जी की विभीषण से दूसरी भेंट लंकापति रावण के दरबार में हुई। परंतु वहां पर हनुमान जी और विभीषण के बीच में कोई वार्तालाप नहीं हुआ। लंकापति रावण हनुमान जी को मृत्युदंड देना चाहता था जिसको विभीषण ने पूंछ में आग लगाने में परिवर्तित करवा दिया था। इस प्रकार यहां पर विभीषण जी ने हनुमान जी की मदद की।
विभीषण जी से हनुमान जी की तीसरी भेंट श्री रामचंद्र जी के सैन्य शिविर में हुई। जहां पर शरण लेने के लिए विभीषण जी पहुंचे थे। रामचंद्र जी के द्वारा सुग्रीव जी से यह पूछने पर श्री सुग्रीव ने कहा की यह दुष्ट हमारी जानकारी लेने के लिए आया है अतः इसको बांध कर बंदी गृह में रख देना चाहिए। महावीर हनुमान जी भी वहीं बैठे थे। उन्होंने कोई राय नहीं दी। श्री रामचंद्र समझ गए कि हनुमान जी की राय सुग्रीव जी की राय के विपरीत है। तब श्री रामचंद्र जी ने कहा कि नहीं शरणागत को शरण देना चाहिए। यह सुनकर हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न हो गए।
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना॥
(रामचरितमानस /सुंदरकांड)
अर्थात श्रीरामचन्द्रजी के वचन सुनकर हनुमानजी को बड़ा आनंद हुआ कि भगवान् सच्चे शरणागत वत्सल हैं (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करनेवाले)॥
विभीषण जी से लंका में पहली भेंट के समय हनुमान जी ने श्री रामचंद्र जी की प्रशंसा में कुछ बातें विभीषण जी को बताई थीं। उन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए आज विभीषण जी श्री राम जी की शरण में आए थे। विभीषण जी ने इस बात को इस प्रकार कहा :-
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥
(रामचरितमानस /सुंदरकांड/ दोहा संख्या 45)
विभीषण जी ने कहा हे प्रभु! हे भय और संकट मिटानेवाले! मै आपका सुयश सुनकर आपके शरण आया हूँ। सो हे आर्ति (दुःख) हरण हारे! हे शरणागतों को सुख देनेवाले प्रभु! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। विभीषण ने इस समय श्री रामचंद्र जी की प्रशंसा में बहुत सारी बातें कहीं। अंत में श्री रामचंद्र जी ने समुद्र के जल से विभीषण जी को लंका के राजा के रूप में राजतिलक कर दिया।
जदपि सखा तव इच्छा नहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।
(रामचरितमानस /सुंदरकांड)
श्री रामचंद्र जी ने कहा कि हे सखा! यद्यपि आपको किसी बात की इच्छा नहीं है तथापि जगत् में मेरा दर्शन अमोघ है। अर्थात् निष्फल नहीं है। ऐसा कहकर प्रभु ने विभीषण का राजतिलक कर दिया। उस समय आकाश से अपार पुष्पों की वर्षा हुई।
इस प्रकार हम पाते हैं कि सुग्रीव जी और विभीषण जी दोनों को राज्य पाने में श्री हनुमान जी सहायक हुए हैं। हनुमान जी ने सदैव ही अच्छे और सज्जन व्यक्ति का साथ दिया है। अगर किसी अन्यायी या दुराचारी ने अन्याय पूर्वक सत्ता पर कब्जा कर लिया हो तो हनुमान जी उसको सत्ता से हटा देने का कार्य करते हैं। जय हनुमान 🙏🏻
टैक्स फ्री नाटक का मंचन – विवेचना थिएटर ग्रुप का आयोजन ☆ श्री हिमांशु राय
3 मार्च 2023 शुक्रवार
शहीद स्मारक ऑडिटोरियम, गोल बाजार जबलपुर – शाम 7:30 बजे
एक अंतराल के बाद विवेचना थिएटर ग्रुप व महा. शहीद स्मारक ट्रस्ट सांस्कृतिक प्रकोष्ठ द्वारा जबलपुर में अतिथि नाट्य प्रस्तुति के अंतर्गत दिल्ली के आस्था थिएटर ग्रुप की प्रस्तुति “टैक्स फ्री” को आमंत्रित किया गया है। इसका निर्देशन कैलाश जोशी ने किया है। नाटक के लेखक चंद्रशेखर फडसालकर हैं।
यह नाटक चार दृष्टिहीनों की कहानी है जो दुर्घटनावश दृष्टिहीन हो गए हैं। उन्होंने दुनिया देखी है। वो मिलकर एक एंटरटेनमेंट क्लब बनाते हैं। नाटक बहुत मनोरंजक, रोचक और प्रेरक है।
आप सभी सादर आमंत्रित हैं । कृपया अपनी सीट व्हाट्सएप संदेश भेजकर आरक्षित करवाएं। प्रवेश प्रथम आए प्रथम पाए के आधार पर।
दर – ₹100 व ₹200
साभार – हिमांशु राय बांकेबिहारी ब्यौहार, मनु तिवारी, अनिल श्रीवास्तव,अजय धाबर्डे , व डी डी शर्मा, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक / सांस्कृतिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈