हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 144 ☆ बाल-कविता  – डालों पर फल चाँदी -चाँदी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 144 ☆

☆ बाल-कविता  – डालों पर फल चाँदी – चाँदी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’☆ \

अतिशय मौसम प्यारा – प्यारा।

बिल्ली मौसी चली सैर पर

बच्चों का सँग लिए पिटारा।।

 

पेड़ों पर चाँदी है लिपटी

डालों के फल चाँदी – चाँदी।

देख चकित हैं बच्चे सारे

अद्भुत लगता आज नजारा।।

 

घर हैं चाँदी , घर हैं चंदा

चारों ओर बर्फ के बदरा।

हाथ में ले – ले खेलें होली

गिरा मौसमी देखो पारा।।

 

गिरि – पर्वत सब ढके बर्फ से

सन्नाटा हर ओर है पसरा।

मूल निवासी कैद घरों में

पानी जमा नलों में सारा।।

 

बिल्ली जैसे निरे सैलानी

धूम मचाने शिमला आए।

हुई दिक्कतें निरी वहाँ पर

लौट के बुद्धू घर को आए।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

 बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – चिरंजीव ??

मैं हूँ,

सो तुम हो,

मुझ पर ही

टिका है

तुम्हारा अस्तित्व,

‘जीती रहो’ पीड़ाओ,

खेद है-

तुम्हें ‘विजयी भव’

नहीं कह सकता मैं,

अपनी जिजीविषा को

चिरंजीव होने का आशीर्वाद

पहले ही दे चुका हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 10:40 बजे, बुधवार दि. 12 अक्टूबर 2017

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 192 ☆ आलेख – गणतंत्र के संदेश ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेखगणतंत्र के संदेश

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 192 ☆  

? आलेख  – गणतंत्र के संदेश ?

गणतंत्र दिवस सामूहिकता में व्यक्ति की शक्ति का प्रतीक है। आज अपना देश दुनियां में प्रत्येक क्षेत्र में यश अर्चन कर रहा है । ऐसे समय में देश में हमारा परस्पर सहयोग तथा व्यवहार विश्व देखता है और उसकी व्यापक स्तर पर चर्चा होती है । भारतीय रुपए की ही नहीं, योग, ज्योतिष, ज्ञान, विज्ञान और जीवन मूल्यों की वैश्विक स्थापना हेतु हमारी पीढ़ी की सजग लोकचेतना जरूरी है।

गणतंत्र दिवस पर यही कामना है कि भारतीय जन मानस की मूल राष्ट्र प्रेमी जीवन शैली और आपसी सद्भाव देश की ताकत बने। संकुचित मानसिकता का प्रदर्शन, धर्म के नाम पर राजनैतिक ध्रुवीकरण देश हित में नहीं है। देश संविधान से चलते हैं, संविधान का राष्ट्रीय पर्व ही गणतंत्र दिवस है। भारतीय संविधान दुनिया भर के संविधानो का श्रेष्ठ मिलाकर निर्मित किया गया है। समय के साथ इसमें आवश्यक संशोधन किए गए है।

वर्तमान वैश्विक परिस्तिथियो के अनुरूप भारतीय नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा का वादा हमारा संविधान देता है। हमने देखा है कि यूक्रेन की लड़ाई सहित कई अवसरों पर देश के तिरंगे ने भारतीयों की ही नहीं अन्य देशों के नागरिकों को भी दिशा दर्शन करवाया है, यह ताकत ही गणतंत्र की शक्ति है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गणतंत्रता दिवस विशेष – राष्ट्र-स्तुति के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गणतंत्रता दिवस विशेष – राष्ट्र-स्तुति के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

शोभित,सुरभित,तेजमय,पावन अरु अभिराम।

राष्ट्र हमारा मान है,लिए उच्च आयाम।।

राष्ट्र-वंदना मैं करूँ,करता हूँ यशगान।

अनुपमेय,उत्कृष्ट है,भारत देश महान।।

नदियाँ,पर्वत,खेत,वन,सागर अरु मैदान।

नैसर्गिक सौंदर्यमय,मेरा हिंदुस्तान।।

लिए एकता अति मधुर,गीता और कुरान।

दीवाली-होली सुखद,एक्यभाव-पहचान।।

सारे जग में शान है,है प्रकीर्ण उजियार।

राष्ट्र हमारा है प्रखर,परे करे अँधियार।।

मातु-पिता,गुरु,नारियाँ,पातीं नित सम्मान।

संस्कार मम् राष्ट्र की,है चोखी पहचान।।

तीन रंग के मान से,हैं हम सब अभिभूत।

राष्ट्रवंदना कर रहे,भारत माँ के पूत।।

राष्ट्रप्रेम अस्तित्व में,आया नवल विहान।

कण-कण करने लग गया,भारत का यशगान।।

रखवाली नित कर रहे,सीमाओं पर लाल।

शौर्य,वीरता देखकर,होते सभी निहाल।।

आज़ादी की वंदना,करता सारा देश।

आओ,हम रच दें यहाँ,वासंती परिवेश।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #132 – लघुकथा – “चोर !” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा  “चोर !”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 132 ☆

☆ लघुकथा – “चोर !” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

नए शिक्षक ने शाला प्रांगण में मोटरसाइकिल घुसाईं, तभी साथ चल रहे पुराने शिक्षक ने बाथरूम के ऊपर बैठे लड़के की ओर इशारा किया, “सरजी! यह रोज ही शाला भवन पर चढ़ जाता है।”

“आप उसे उतारते नहीं है?”

“इसे कुछ बोलो तो हमारे माथे आता है, यह शासकीय बिल्डिंग है आपकी नहीं।” कहते हुए वे बाथरूम के पास पहुंच गए।

“क्यों भाई, ऊपर चढ़ने का अभ्यास कर रहे हो?” नए शिक्षक ने मोटरसाइकिल रोकते हुए लड़के से कहा। जिसे सुनकर वह अचकचा गया,”क्या!” वह धीरे से इतना ही बोल पाया।

“यही कि दूसरों के भवन पर चढ़ने-उतरने का अभ्यास कर रहे हो। अच्छा है यह भविष्य में बहुत काम आएगा।”

यह सुन कर एकटक देखता रहा।

“बढ़िया है। अभ्यास करते रहो। कमाना-खाने नहीं जाना पड़ेगा।”

“क्या कहा सरजी?” वह सीधा बैठते हुए बोला।

“यही कि रात-बिरात दूसरों के घर में घुसने के लिए यह अभ्यास काम आएगा।”

यह सुनते ही लड़का नीचे उतर गया। सीधा मैदान के बाहर जाते हुए बोला, “सॉरी सर!”

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

18-10-2021 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माऊली… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

 कवितेचा उत्सव ?

☆ माऊली… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

भिंतीवरले ताटाळे

अर्धचंद्र आकाराचे

पितळेचे रोवलेले

साक्षीदार स्वातंत्र्याचे

 

देशभक्त अन्नपूर्णा

रात्रंदिवस राबते

कार्यकर्त्यांचे जेवण

न थकता बनवते

 

“वंदे मातरम्” शब्द

मनामध्ये ठसविला

प्रेरणा, शक्ती देणारा

कार्यभाग निवडला.

 

माऊली न मागे कधी

देशकार्य प्रथम ते

स्वतःच्या या कृतीतून

आदर्श पुढे ठेवते

 

घडल्या पिढ्या अशाच

सुसंस्कारी सहजच

म्हणूनी, विश्वात शोभे

“भारत देश” एकच

 

पळीभर रक्त रोज

स्वातंत्र्याच्या कामी आले

सांडशीने निखाऱ्यास

युक्तीने हुलकावले

 

सत्पात्री अमृत दान

अनेक वीर जेवले

गाजविता पराक्रम

ताटाळे सोन्याचे झाले.

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #145 ☆ आठवांच्या आसवांनी…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 145 ☆ आठवांच्या आसवांनी…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

आभाळालाही असते तुझ्या पदराची ओढ

जरी असला अंथाग तरी ममता अजोड..!

 

ओठी जेव्हा पहिलाच शब्द आई अंकुरतो

आईलाही तेव्हा तिचा शब्द आई आठवतो..!

 

आई शब्दात असतो माया ममतेचा झरा

आई शब्दानेच होतो वेदनेचा अंत सारा..!

 

जात्यावरची ही ओवी त्यात नशीबाच गाणं

काळ्या आईच्या कुशीत आई पेरते बियाण..!

 

आई स्नेहाची साऊली घाली मायेची पाखर

तिच्या साऊलीत मिळे रोज प्रेमाची भाकर..!

 

देवळात गेल्यावर लीन जाहलो भक्तीने

असो आई माझी सुखी देवा मागतो मागणे..!

 

आई विना आयुष्यची झाली आहे परवड

संकटाची रोजनिशी रोज नवी धडपड..!

 

तुच माझी जिजाविठा आहे तुलाच कदर

आठवाच्या आसवांनी तुझा भिजला पदर…!

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ भारत एक सार्वभौम राष्ट्र आणि नवे शैक्षणिक धोरण … ☆ प्रा.अरूण विठ्ठल कांबळे बनपुरीकर ☆

प्रा.अरूण विठ्ठल कांबळे बनपुरीकर

? विविधा ?

☆ भारत एक सार्वभौम राष्ट्र आणि नवे शैक्षणिक धोरण ☆ प्रा.अरूण विठ्ठल कांबळे बनपुरीकर ☆

२६ जानेवारी हा ७४ वा प्रजासता दिन साजरा करत असताना आत्मनिर्भर भारत व नवनिर्मित भारताच्या विकासासाठी शैक्षणिक धोरणातील क्रांतिकारक बदल नव्या सार्वभौम भारतासाठी नव्या वाटा घेऊन येत आहे हे निश्चितच नव्या भारतासाठी सदृढ वातावरण आहे असे वाटते .

आजचे युग हे स्पर्धांचे युग आहे. शिक्षण हे वाघिणीचे दूध आहे आणि ते पिणारा गुरगुरल्या शिवाय राहणार नाही हे तितकेच खरे आहे. आजचे आधुनिक युग डिजिटल युग म्हणूनही ओळखले जातेय . या युगात प्रत्येक सुविधा डिजिटल होत जाताहेत . जुन्या काळी साक्षर आणि निरक्षर संकल्पनेतून सामाजिक राष्ट्रीय स्तर ठरवला जायचा .आता डिजिटल साक्षर व डिजिटल निरक्षर संकल्पना मोठ्या प्रमाणात विचारात घेतली जातेय . त्यातून शिक्षणाबरोबर शिक्षण प्रक्रिया अधिक गतिमान होणेसाठी वेगवेगळे तंत्रज्ञान वापरले जातेय .शालेय शिक्षणात नर्सरी -बालवाडी – प्राथमिक – माध्यमिक – उच्च माध्यमिक – महाविद्यालयाच्या जडण घडणीत सध्या डिजिटल शैक्षणिक धोरणाचा वेगवान बदल विद्यार्थ्यांच्या तसेच शिक्षक व सामाजिक बदलावर होताना दिसून येतोय . पुढची पिढी सक्षम आणि आत्मनिर्भर होण्याच्या दृष्टीने नव्या शैक्षणिक धोरणाकडे पाहिले जातेय . युवा पिढी व त्यांच्या आकांक्षा व सामाजिक हित व सरकारी व खाजगी शिक्षण पद्धती व त्यांची अंमलबजावणी शैक्षणिक क्षेत्राला नव्या योग्य दिशेला घेऊन जाताना आढळतेय .समाजातील शैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक विषमता यामुळे दूर होण्याच्या आशा निर्माण होत आहे .

बदलत्या काळानुसार शाळांमध्ये ही बदल होणे अपेक्षित आहे .

आज लोक सहभागातून चांगल्या सुविधा मिळविण्यासाठी शिक्षक व शैक्षणिक व्यवस्था झटत आहेत . त्यातून मॉडेल स्कूल विकसित होत आहेत .

इ-लर्निंग सारख्या सुविधा खेडोपाडी उपलब्ध होत आहेत .शिक्षण तज्ञ योगी अरविंद म्हणतात की – “प्रत्येक गोष्ट शिकवता येणे शक्य नाही. मात्र प्रत्येक गोष्ट शिकता येणे शक्य आहे .” – त्यामुळे कोणतीही मुले शिक्षणापासून वंचित होऊ नयेत याविषयी शिकता येणे गरजेचे वाटते .त्यासाठी टॅब  ,स्मार्टफोन इ . माध्यमे शिक्षणाची समीकरणे बदलण्यासाठी  पूरक ठरली आहेत . स्मार्ट अभ्यासिका घरोघरी पोहोचणे आवश्यक आहे . विविध नवोपक्रमाव्दारे शिक्षक अपडेट होणे आवश्यक आहे .

नवे शैक्षणिक धोरण :

१९८६ च्या शैक्षणिक धोरणातील अनेक मुद्दे मागील ३४ वर्षात राबविले गेले. त्याचे  पूर्वावलोकन महत्वपूर्ण वाटते . त्यातून सुधारण्यासाठी अनेक संधी उपलब्ध होणे गरजेचे आहे. नवीन शैक्षणिक धोरणात २०३५ पर्यंत प्राथमिक ,माध्यमिक शिक्षणाच्या बरोबरीने उच्च शिक्षणाचे प्रमाण ५० टक्क्यापर्यंत वाढवण्याचे उदिष्ट दिसून येते.महिला, बालवाडी व व्यवसायिक शिक्षणाकडे नवीन शैक्षणिक धोरणात जादा लक्ष देण्यात आल्याची बाब चांगली आहे .गरिब व श्रीमंत यांच्यातील शैक्षणिक विषमता मिटवणे,सरकारी व खाजगी शाळेत शिक्षणाची समानता आणण्यासाठी महत्त्वपूर्ण पाऊल यातून उचलले गेले आहे .

देशातील युवा पिढीच्या आकांक्षा त्यांची स्वप्ने आणि हित लक्षात घेऊन लक्ष केंद्रित केले आहे . जग चौथ्या औद्योगिक क्रांतीच्या उंबरठ्यावर असल्यामुळे वेगाने होणारे बदल होत आहेत आणि भारत एक विकसित राष्ट्र म्हणून उदयास येत असल्यामुळे भविष्यकालीन योजना राबविणे आवश्यक आहे . राष्ट्रीय शैक्षीणक धोरण – 2020 अंतर्गत शिक्षणावर ६ टक्के खर्च व्हावा हे अपेक्षित आहे . भारताच्या भविष्यावर होणारे क्रांतिकारक बदल व शिक्षणात आंतरराष्ट्रीय दर्जाचे बदल निश्चितच देशाच्या विकासात क्रांती घडवेल असे वाटते .

बालवाडी आणि अंगणवाडी किंवा १ ली ते दुसरी पर्यंतच्या इंग्रजी शाळांचे जाळे विस्तारत असताना शालेय शिक्षण प्रशासनामार्फत नवीन बदल स्विकारून नव्या शैक्षणिक रचना तयार करण्यात येत आहेत. बहुशाखीय शिक्षण हे महाविद्यालयीन स्तरावरील शिक्षणाचे वैशिष्ट बनत आहे .यामुळे संशोधन, शिक्षण व सर्वसाधारण अभ्यासक्रम राबविले जातील .

प्राथमिक शिक्षण मातृभाषेतून देण्यावर या नव्या राष्ट्रीय धोरणात भर देण्याचा विचार करण्यात आला आहे . मातृभाषा, इंग्रजी व प्रादेशिक भाषा असे त्रिभाषीय सूत्र बनविले आहे .

शिक्षण ही निरंतर चालणारी प्रक्रिया असून त्याला कशाचेच बंधन नाही .आयुष्यभर मनुष्यप्राणी विद्यार्थीच असतो . तो प्रत्येक अनुभवातून नवनवीन बाबी शिकत असतो . प्रत्येक चांगल्या वाईट प्रसंगावर विचार करून मार्ग काढत पुढे जात असतो.वर्षानुवर्षे सुरु असणाऱ्या पारंपारिक शिक्षण पद्धतीला छेद देत नवनवीन तंत्रज्ञानाचा वापर करून शिक्षण पद्धतीत समग्र बदल होत आहेत. ग.दि.मा. यांच्या कवितेत –

 ” बिनभिंतीची उघडी शाळा लाखो इथले गुरु ” असे व्यक्त होतात .

हे नवे शैक्षणिक धोरण जाहीर झाल्याच्या वर्षापूर्तीनिमित्त बोलताना पंतप्रधान नरेंद्र मोदीजी असे म्हणाले की – ‘आपण स्वातंत्र्याच्या अमृतमहोत्सव वर्षात आहोत.एका प्रकारे नव्या शैक्षणिक धोरणाची अंमलबजावणी करणे हा आता अत्यंत महत्वाचा भाग बनला आहे. नवीन भारत आणि भविष्यासाठी तयार युवा पिढी घडवण्याच्या दृष्टीने हे धोरण महत्त्वाची भूमिका बजावणार आहे. ‘

हे २१ शतकातील सर्वात दूरदर्शी धोरण आहे – असे मत शिक्षणमंत्री धरमेन्द्र प्रधान यांनी मांडले आहे. याद्वारे प्रत्येक विद्यार्थ्याच्या क्षमतांचा योग्य वापर,शिक्षणाचे सार्वत्रिकीकरण, क्षमता विकास आणि शिक्षणाच्या माध्यमांमध्ये परिवर्तन घडून येणार आहे.

नवे शैक्षणिक धोरण 2020 हा नक्कीच एक मार्गदर्शक दस्तऐवज आहे. नव्या युगातील नवी आव्हाने लक्षात घेता विविध शैक्षणिक गरजा,संरचनात्मक असमानता आणि विद्यार्थ्यांना भविष्यासाठी तयार करण्यामध्ये येणार्‍या समस्यांचे निराकरण हे या धोरणाचे उद्दिष्ट आहे. त्यामुळे भारतासारख्या मोठ्या राष्ट्रात शिक्षण क्रांती निर्माण होणार आहे. \ सोबतच शिक्षण व्यवस्थेतील अनेक संकटांना तोंड देण्याचे सर्वात आव्हानात्मक कार्यही या धोरणाद्वारे पूर्ण करायचे आहे.

भारताच्या अफाट लोकसंख्येला शिक्षणाच्या मुख्य प्रवाहात आणणे आणि त्याद्वारे असंख्य रोजगाराच्या संधी निर्माण करणे हे या धोरणाच्या अंमलबजावणीवर ठरणार आहे. कोविड महामारीच्या काळात जलद पावले उचलून अवघड निर्णय घेऊन ते पूर्तीस नेण्याचे कौशल्य आपल्या भारताने  दाखवून दिले आहे. याच कौशल्याचा फायदा शिक्षण क्षेत्रातही होणार आहे. नव्या शैक्षणिक धोरणाची अंमलबजावणी काही राज्यांनी केली आहे तर काही राज्ये त्या प्रक्रियेतून जात आहेत. तरीही अजून लांबचा पल्ला गाठायचा बाकी आहे. याच बरोबर भारतीय प्रजासत्ताक दिनानिमित्त जनता संविधान साक्षर व्हावी यासाठी संपूर्ण भारतामध्ये संविधान साक्षर अभियान राबविणे गरजेचे आहे असे वाटते. भारत हे संपूर्ण प्रजासत्ताक राष्ट्र आहे. आज विद्यार्थ्यांच्या भविष्यासाठी निश्चितच नव्या शैक्षणिक धोरणाच्या माध्यमातून आपला भारत नवीन क्रांती घडवेल यात तिळमात्र शंका नाही असे वाटते.

२६ जानेवारी भारतीय प्रजासत्ताक दिन नवनव्या संकल्पनानी साजरा करताना सर्व भारतीय एक आहेत ही भावना प्रत्येकाच्या मनात रुजविणे आवश्यक आहे. तरच देशप्रेमाने तिरंगा अभिमानाने लहरत राहील असे मनोमन वाटते .

नव क्रांतीची मशाल हाती

उजळू अंधार अज्ञानाचा

 नवनिर्मितीने मार्ग शोधूया

 शिक्षणाचा सज्ञानाचा

               प्रजासत्ताक हे राष्ट्र आपुले

               चला उभारू देश नवा

विकसित करू राष्ट्र आपुले

शिक्षणाचा ध्यास हवा …!

जय भारत…

© प्रा.अरुण कांबळे बनपुरीकर

मु.पो.बनपुरी ता.आटपाडी जि.सांगली

९४२११२५३५७…

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ समर्थांनी केलेले गणेश स्तवन…  ☆  श्री संदीप रामचंद्र सुंकले  ☆

? विविधा ?

☆ समर्थांनी केलेले गणेश स्तवन…  ☆  श्री संदीप रामचंद्र सुंकले 

समर्थानी दासबोधाची रचना लोकविलक्षण पद्धतीने केली आहे. सामान्यपणे विघ्नहर्त्याला नमन करून ग्रंथारंभ केला जातो. परंतु समर्थानी असे न करता दासबोधात नक्की काय आहे ?  समर्थाना नक्की काय सांगायचे आहे, याचे सूतोवाच त्यांनी प्रथम समासात केले आहे. दुसऱ्या समासात मात्र समर्थ जनरीतीप्रमाणे विघ्नहर्त्या गजाननाचे यथार्थ गुणवर्णन करतात, स्तवन करतात. स्तवन करणे म्हणजे फक्त स्तुती करणे नव्हे, तर कृतज्ञता व्यक्त करणे.

श्री गणेश ही आपली आद्यदेवता आहे. कोणत्याही मंगलकार्याची सुरुवात आपण गणेशपूजनानेच करतो. श्री गणेश ओंकारस्वरूप आहे. सृष्टीची उत्पत्ती ओंकारातून झाली असे मानतात. म्हणून कोणत्याही कार्याच्या आरंभी गणपतीस आद्यपूजेचा मान दिला जातो. गणपतीची पूजा करून कार्य केल्यास संकटे येत नाहीत अशी भक्तांची श्रद्धा आहे. समर्थानी इथे आधी गणपतीतत्वाचे, अर्थात निर्गुण रूपाचे आणि पुढे  पौराणिक सगुण गणेशरूपाचे गुणवर्णन केले आहे.

श्री गणपती चौदा विद्या आणि चौसष्ट कलांचा स्वामी आहे. सर्वसिद्धी प्राप्त करून देणारा, अज्ञान दूर करणारा, ओंकाररूप असणाऱ्या गणपतीस समर्थ  सर्वप्रथम वंदन करतात. सर्व चराचर सृष्टीचे मूळ असलेल्या गणपतीस ब्रह्मा, विष्णू आणि महेश सुद्धा वंदन करतात. गणपतीची कृपा असेल तर सर्व सिद्धी प्राप्त होतातच आणि काळसुद्धा आपला गुलाम बनतो. तसेच  इतर संकटे गणपतीच्या नुसत्या नामस्मरणाने दूर पळून जातात. समर्थ पुढे अशी प्रार्थना करतात की “ अध्यात्मशास्त्राचा हा ग्रंथ लिहिण्याचा मी संकल्प केला आहे, म्हणून देवा! तुम्ही माझ्या अंतःकरणात नित्य वास करावा, जेणेकरून मला ग्रंथ लिहिणे सुलभ होईल.” या जगात जे जे उत्तम आहे त्याचे भांडार म्हणजे 

श्रीगणेश आहे. विघ्नहर्त्याचे स्मरण करून कोणतेही कर्म केल्यास मनुष्य त्यात नक्कीच यशस्वी होतो.

वक्रतुंड महाकाय कोटीसूर्यसमप्रभ ।

निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

गणपती आपली आद्यदेवता असल्यामुळे त्याचे गुणवर्णन याआधीही प्रत्येकाने आपापल्या प्रतिभेनुसार केले आहे. गणपतीच्या नुसत्या चिंतनानेदेखील आपल्याला समाधान प्राप्त होते. गणपतीचे रूप अत्यंत मनोहर आहे. गणपतीचे नृत्य पाहताना सर्व देव मंत्रमुग्ध होऊन जातात. हा गणपती सदा मदमस्त असतो, परमानंदाने सदा डुलत असतो. त्याचे वदन नेहमीच प्रसन्न असते. ते प्रसन्न वदन पाहून आपण सुद्धा आनंदित होतो. गणपती धिप्पाड आणि सर्वशक्तीमान आहे. त्याचे भाळ विशाल असून त्यावर शेंदूर लावलेला आहे. त्याची सोंड खूप मोठी असून ती सतत हलत असते. ” थबथबां गळती गंडस्थळे।…..” (दासबोध 1.1.11) गणपतीच्या गंडस्थळातून जो ‘मद’ पाझरतो तो ‘ज्ञाना’चा असतो आणि त्याभोवती ‘ज्ञानार्थी भुंगे’ गुंजारव घालत असतात, असा अनेक अधिकारी साधकांचा अनुभव आहे.

गणपतीचे डोळे अतिशय लहान असून तो त्याची सतत उघडझाप करीत असतो. त्याचे कान विशाल आहेत. मस्तकी रत्नजडीत मुकुट आहे , कानात कुंडले धारण केली आहेत आणि त्यातील निलमण्याचा प्रकाश विशेष आकर्षित करीत असतो. गणपतीने नाना अलंकार धारण केलेले आहेत. हिंदू संस्कृतीमध्ये सर्व देव आणि देवता ह्या शस्त्रधारी आहेत. गणपती चतुर्भुज असून  त्याने एका हातात परशु आणि दुसऱ्या हातात अंकुश अशी दोन शस्त्रे धारण केली आहेत. तसेच तिसऱ्या हातात कमळ आणि चौथ्या हातात मोदक आहे. आपल्याकडे अहिंसा परमधर्म मानला गेला आहे, पण ही अहिंसा बलवानाची आहे. दुर्बल मनुष्याच्या अहिंसेला काहीही किंमत नसते. बेगडी अहिंसा आपल्याच सर्वनाशाला कारणीभूत ठरते, आणि याचे दुष्परिणाम आपण आज सुद्धा भोगत आहोत. गणपतीने गळ्यात नाना प्रकारचे सुवर्ण अलंकार धारण केलेले आहेत. कंबरेला जिवंत नागाचा वेढा आहे. पितांबर नेसलेला गणपती खूप सुंदर दिसत आहे. टाळ मृदुंगाच्या तालावर गणपती अत्यंत कुशलतेने नृत्य करतो. त्याचे नृत्य पाहणे हा अनुपम्य सोहळा असतो. तसा गणपती शरीराने स्थूल आहे, त्याचे पोट मोठे आहे. पण तरीही तो अत्यंत चपल आहे. तो चालत असताना त्याच्या पायातील पैंजणांची रुणझुण कानाला गोड वाटते. गणपती जिथे जिथे जातो तेथे त्याच्या उपस्थितीमुळे, त्याच्या दिव्य, भरजरी वस्त्रांमुळे त्या सभेला,  जागेला विशेष शोभा प्राप्त होत असते. असा हा गणपती सर्वांगसुंदर आहे. त्याला समर्थ साष्टांग नमस्कार करतात. 

गणपतीच्या सगुण रुपाला विशेष अर्थ आहे असे जाणवते. गणपतीचे  बारीक डोळे मनुष्याला सूक्ष्म अवलोकन करायला सुचवितात. विशाल  कर्ण जास्तीत जास्त ऐकायला शिकवितात. मोठे पोट मानापमान पोटात घ्यायला शिकविते. गणपतीचे मुख हे हत्तीचे आहे. त्यामागे विविध कथा सांगितल्या जातात. एक तर त्याकाळी विज्ञान प्रगत होते असे म्हणता येईल आणि दुसरे म्हणजे एखाद्याला उपजत सौंदर्य नसेल किंवा पुढे अपघाताने ‘विद्रूपता’ प्राप्त झाली, तरी मनुष्य स्वतःच्या बुद्धीच्या जोरावर श्रेष्ठत्व प्राप्त करू शकतो, किर्ती मिळवू शकतो. गणपतीच्या  हातातील शस्त्र भक्ताने  शस्त्रसज्ज असावे आणि अखंड  सावधान असावे असे सुचवितात. कारण तो सेनानायक आहे. पायातील पैंजण मनुष्याच्या अंगी नाना कला (‘कळा’ नव्हे) ) असाव्यात असे सूचित करतात. दैनंदिन व्यवहारात कधी कोणती कला उपयोगी पडेल याचा नेम नाही म्हणून जे जे शक्य ते मनुष्याने शिकले पाहिजे. महाभारतात महापराक्रमी अर्जुनाला ‘बृहन्नडा’ व्हावे लागले होते. गणपती चपळ आहे कारण युद्धात चपळता जास्त कामी येते. गणपतीला मोदक आवडतो. मोदकात असलेले नारळ, गुळ आणि भात हे शरीरासाठी पोषक आहेत, तसेच ते इथल्या मातीत पिकणारे आहे. असे विविध गुण आपण गणपतीच्या सगुणरूपातून आत्मसात करू शकतो. पूर्वी शाळेत सुद्धा सर्वप्रथम “श्री गणेशाय नमः” असेच शिकवत असत.

गणपती शब्द दोन शब्दांचा समूह आहे. गण आणि पती. गण म्हणजे समूह आणि पती याचा अर्थ नेता किंवा सांभाळणारा, संचालन करणारा. म्हणून ज्याला ‘गणपती’ व्हायचे असेल म्हणजे ज्याला समूहाचे, समाजाचे नेतृत्व करायचे असेल त्याने गणपतीची उपासना करावी. समर्थांचा महंत असाच ‘गण’पती आहे. ज्याची बुद्धी मंद असेल त्याने गणपतीची उपासना करावी. गणपती सर्व इच्छा पूर्ण करणारा आणि सर्व संकटांचे हरण करणारा आहे.

आजची देशकाल परिस्थिती बघितली तर स्वामी विवेकानंद म्हणतात त्याप्रमाणे, फक्त एकाच देवीची अर्थात भारतमातेची पूजा करण्याची गरज आहे. भारतमातेची पूजा करणे म्हणजे किमान एका सामाजिक उपक्रमात सहभागी होणे. समाजाचे काम करायचे असेल , नेतृत्व करायचे असेल तर गण-पती व्हावे लागेल. किमान गणातील एक ‘ आदर्श सदस्य’ होण्याचा तरी आपण यथाशक्ती प्रयत्न करूया. उत्तम समूहसदस्यच पुढे उत्कृष्ट नेता (गणपती) होऊ शकतो.

जय जय रघुवीर समर्थ।

© श्री संदीप रामचंद्र सुंकले

अलिबाग. 

८३८००१९६७६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ सांजवेळ ☆ सुश्री स्वप्ना अभिजीत मुळे (मायी) ☆

? जीवनरंग ❤️

☆ सांजवेळ ☆ सुश्री स्वप्ना अभिजीत मुळे (मायी) ☆ 

हि बाई सतत फोनवर काय बोलते,..?आपल्या पेक्षा बरीच मोठी आहे,… इतका जर नातेवाईकांशी सम्पर्क दांडगा असेल तर इथे कशाला आली ह्या वृद्धाश्रमात,..?असे अनेक प्रश्न आशाबाईच्या उदासमनात दहा दिवसांपूर्वी आलेल्या नवीन रूम पार्टनर विषयी सुरू होते,..आज संध्याकाळी विचारूच तिला असं त्यांनी ठरवलं,..

तिन्ही सांजेला त्या छोट्याश्या रुममधल्या देवळीत दिवा लागला,..मंद धुपाने खोली दरवळली,.. खिडकीतुन नजरे आड होणारा सूर्य आणि पसरत जाणारा काळोख,..दोघींच्या खुर्च्या खिडकीजवळ होत्या,..आशाबाई म्हणल्याच आजींना,”आजी एक विचारू का खरंतर माझ्या आणि तुमच्या वयात असेल 30 एक वर्षाच अंतर मी 60 तुम्ही,..ती अंदाज लावते हे बघत आजीच हसुन म्हणल्या,मला 85 सुरू आहे ग,..आजीच्या उत्तराचा धागा पकडत आशा म्हणाली,”इतकं वय आहे मग असे राहिलेच किती दिवस म्हणुन इथे येऊन पडल्या आणि फोनवर इतक्या बोलत असता म्हणजे सगळ्यांशी तर सम्पर्क चांगला दिसतो,…कुणीही सांभाळलं असत ना,..?”

आजी हसत म्हणाल्या,”का माझी पार्टनरशीप आवडत नाही ए का तुला,..?”

तशी आशा चपापुन म्हणाली,”तसं नाही उलट मी स्वतःला तपासून बघायला लागले तुमच्याकडे बघुन,.. मला इथं आणुन सोडलं म्हणून मी रुसले, रागावले नातेवाईकांवर कोणाशी बोलत नाही फोन घेतच नाही,..पण तुम्ही तर सारख्या खुशाली विचारता,.. आशीर्वादाची फुले देता,.. म्हणून म्हंटल आज विचारावंच इथे येणं काय हौशीने का,..?”

आजी म्हणाल्या,”कसं असतं ना आशा जो पर्यंत सहज स्वीकार करायला आपण शिकत नाही तो पर्यंत आपण कशातूनच आनंद घेऊ शकत नाही,..प्रत्येकाच आयुष्य असतं ग आपण आपलं जगुन घेतो आणि पुढच्या पिढीचं जगणं आपल्या काळाशी जोडत बसतो,..खरंतर त्यांनाही समजुन स्वीकारलं तर छान पळू शकते हि नात्यांची गाडी पण जुन्या नव्याची तुलना ह्यातच निर्माण होतात दुरावे,.. अहंकारांच्या वेली फोफावत राहतात कारण आपण सोडून दयायला शिकत नाही,..मोह ग खरंतर आपला संसार सुन आली कि सम्पला हे आधी स्वीकारता आलं पाहिजे ना,..तिची सुरवात आणि आपला शेवट ह्याची सांगड घालता आली नाही कि हे वादविवाद मग त्या पिढीने कधी जगायचं,..अग जबाबदाऱ्या समजतात त्यांनाही,..आणि चुकून शिकण्यासाठी तुम्हाला आधी सोडावं लागत ना पण तुम्हीच घट्ट धरून बसता मग नाईलाजास्तव इथे येणारे वाढतात,..तू हि अश्याच वादातून आली हे कळलं आहे मला,..”

आशा आजीच्या बोलण्याने आत्मचिंतनात हरवली,..ह्या सहा महिन्यांपूर्वीच सगळं डोळ्यासमोर आलं,..दोन वर्षापूर्वी आलेली सुन आणि मग चहा पासुन ते स्वयंपाकापर्यंत आपण सतत आपलंच चालवलेलं अहं भाषण,..खरंतर नोकरी करून सगळं करत होती शिकत होती पण आपल्याला सत्ता सुटत नव्हती मग विकोपाला गेलेले वाद,..चढलेले स्वर,..सगळं मुलाच्या आवाक्या बाहेर आणि मग झालेला हा निर्णय,.. खरंच आजी म्हणते तसं स्वीकारता आलं असतं ना,..आपण आधार बनायला हवं होतं पण आपल्या सहजतेने न स्वीकारणाऱ्या स्वभावाने आपण इथे येऊन पडलो,..पण आजी ती तर स्वीकारते मग ती का इथे..?”

“आजी तू का इथे,..?” आशाचा प्रश्न ऐकून आजी म्हणाली,”मी नातसुनापर्यंत बदल स्वीकारले,..त्यामुळे आनंद घेत होते जगण्याचा पण आता शरीर साथ देत नाही,..आपल्या कडून त्यांना काही अपेक्षा नाहीत तरी आपल्याला आता तिथे त्रास होतो,..त्यांच्याकडून नाही आपलाच त्यांना,..आपलं रात्री बेरात्री होणारं जागरण,लघवीचे त्रास,..तरी सकाळी उठून आपण आरामात घरी आणि ते बिचारे जाणार नोकरीवर मग मीच हट्ट केला,..इथे चोवीस तास सेवा आहे मैत्रिणी आहे,..करमणूक,जेवण सगळं मिळतं थोडी त्यांनाही मोकळीक मिळते आपल्यापासून,..आपण जन्म दिला म्हणजे स्वतःच्या आनंदाच्या सीमा हरवून सतत आपल्याच उश्या पायथ्याशी लेकरांनी बसावं अशी मानसिकताच होऊ दिली नाही मी त्यामुळे हे इथे येणं स्वतःहून स्वीकारल कुठलेही राग,लोभ मनात न आणता,.. आपल्या मुळे कोणाचे जगणे कंटाळवाणे व्हावे असं मला मुळीच वाटत नाही उलट आपली आठवण ह्या धुपाच्या सुगंधा सारखी दरवळत राहणारी असावी ,..राख होऊन पडली आहे ग पण दरवळ मनाला आनंद देणारी,..हो ना..”

आशाने बंद करून ठेवलेला फोन सुरू केला,..”सुनबाई आलीस का ऑफिसातून,..?मी इकडे आनंदात आहे,..रोज फोन करत जाईल ठेवते फोन,…”

आजीने आशाचा हात हळुवार दाबला,..दोघी डोळ्यातून हसल्या आणि एकच श्लोक उच्चरला

“ठेविले अनंते  तैसेची राहावे

चित्ती असू द्यावे समाधान…”

धुपाची दरवळ आणि खिडकीतुन  रेंगाळत दिसणारा संधीप्रकाश बरंच काही सांगुन गेला.

© स्वप्ना अभिजीत मुळे (मायी)

औरंगाबाद 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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