हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#142 ☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…2 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1”)

☆  तन्मय साहित्य # 142 ☆

☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध… 2 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

भीतर   हिंसक  बाघ  है,   बाहर दिखते गाय।

कहे बात कुछ और ही, रहता कुछ अभिप्राय।।

 

भीतर में  प्रतिशोध है, बाहर में  अनुराग।

ले कागज के फूल को, कहते प्रीत पराग।।

 

चेहरे,  चाल,  चरित्र  से,  हैं  पूरे  संदिग्ध।

रंग बदलने में निपुण, गिरगिट जैसे सिद्ध।।

 

इक – दूजे  के  सामने, वे  हैं  खड़े  विरुध्द।

आपस के इस द्वंद्व में, पथ-विकास अवरुद्ध।।

 

झंडों  में  डंडे  लगे,  डंडों  का  आतंक।

दीमक बन कुर्सी चढ़ें, चरें देश निःशंक।।

 

बहुरुपियों  के  वेश  से,  भ्रमित हुआ  इंसान।

असल-नकल के भेद को, कौन सका पहचान।।

 

बुद्धू  सारे  हो रहे, दाँव – पेंच से  बुद्ध।

बैठे हैं मन मार कर, वें जो शुद्ध- प्रबुद्ध।।

 

मुफ्तखोर निष्क्रियपना, पनप रहा यह रोग

विमुख कर्म से हो रहे, सुविधाभोगी लोग।।

 

लोकतंत्र की नाव में, अगणित छिद्र-दरार।

मनोरोग   से   ग्रस्त   हैं,  इसके   खेवनहार।।

 

साँठ-गाँठ  भीतर  चले,  बाहर  प्रत्यारोप।

षड्यंत्रों का दौर यह, फैला घृणित प्रकोप।।

 

कुर्सी  पर  वंशानुगत,   बना  रहे  अधिकार।

धनबल भुजबल युक्तिबल, तकनीकी संचार।।

 

लोकतंत्र में बो दिए, संशय के विष बीज।

वे ही हैं सम्मुख खड़े, जिनमें नहीं तमीज।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ After all, it’s life only… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem After all, it’s life only. We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

After all, it’s life only… ?
(Inspiration: Gulzar)

I often keep stopping

while crossing your way

But, only  to  find

waiting for myself…

 

O’ life, why do you  go

on teaching so much

As if I am going to

live here for ever..!

 

Who  says  that

I don’t  lie  at all

Try asking me once

about my well-being…

 

They do burn a lot 

much deeper inside,

Complaints, those

don’t get mentioned…

 

Just try darning

it  a  little  bit,

Will look new again

After all, it’s life only…

 

Every night I put all the

desires to sleep before me

But, Alas! Every morning,

they wake up before me…

 

It sure is so reassuring

to see self in the mirror

Atleast someone knows 

me  in  this  world…!

 

Looks like life is

somewhat upset today

Let’s leave it, after all

It  isn’t  the first time…!

~Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दो लघुकथाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – लेखन : दो लघुकथाएँ ??

एक 

न दिन का भान, न रात का ठिकाना। न खाने की सुध, न पहनने का शऊर।…किस चीज़ में डूबे हो ? ऐसा क्या कर रहे हो कि खुद को खुद का भी पता नहीं।

…कुछ नहीं कर रहा इन दिनों, लिखने के सिवा।

दो  

सुनो, बहुत हो गया यह लिखना-लिखाना। मन उचट-सा गया है। यों भी पढ़ता कौन है आजकल?….अब कुछ दिनों के लिए विराम। इस दौरान कलम को छूऊँगा भी नहीं।

फिर…?

कुछ अलग करते हैं। कहीं लाँग ड्राइव पर निकलते हैं। जी भरके प्रकृति को निहारेंगे। शाम को पंडित जी का सुगम संगीत का कार्यक्रम है। लौटते हुए उसे भी सुनने चलेंगे।

उस रात उसने प्रकृति के वर्णन और सुगम संगीत के श्रवण पर दो संस्मरण लिखे।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ ग़ज़ल – ‘‘माना कि उलझे उलझे से हैं दस्तूर ज़िंदगी के…’’ ☆ सुश्री लीना मित्तल खेरिया ☆

सुश्री लीना मित्तल खेरिया 

संक्षिप्त परिचय

शिक्षा – एम बी ए

सम्प्रत्ति – हिन्दी कवितायें लिखने का बहुत शौक है।

प्रकाशन – आपके दो काव्य संग्रह ‘Direct दिल से ‘ एवं ‘सफर एहसासों का’ प्रकाशित। अनेकोनेक रचनायें सॉंझा संकलन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित ।

पुरस्कार/ सम्मान – आपको कई पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत/ सम्मानित। इनमें प्रमुख हैं प्राईड ऑफ विमेन अवार्ड, स्टार डायमंड अचीवर्स अवार्ड, अटल साहित्य गौरव सम्मान, शहीद स्मृति सम्मान, मातृ भूमि सम्मान, नवीन कदम वीणापाणी सम्मान, लिटरेरी कैप्टन अवार्ड, आयाति साहित्य सम्मान आदि।

☆ ग़ज़ल – ‘‘माना कि उलझे उलझे से हैं दस्तूर ज़िंदगी के…’’ ☆ सुश्री लीना मित्तल खेरिया ☆

क्यूँ फ़िज़ूल ही दिलो जाँ को जलाया जाए

चलो आज से जी भर कर मुस्कुराया जाए

 

मन के अलाव पर पकता रहा कुछ न कुछ

चलो कुछ ज़ायक़ेदार बना के खाया जाए

 

क्यूँ कैद हैं नफ़रतों की आँधियाँ हर मन में

बेमुरव्वत जज़्बों का जनाजा उठाया जाए

 

थक गए इशारों पर कठपुतली से नाचते

चलो इस रंग मंच का पर्दा गिराया जाए

 

उँगली उठाने वाले ख़ुद भी देख लें आईना

उसके बाद ही फिर औरों को दिखाया जाए

 

माना कि उलझे उलझे से हैं दस्तूर ज़िंदगी के

कोशिश है पूरी शिद्दत से उन्हें निभाया जाए

 

ज़हन में कौंधती हैं बिजली सी यादें उनकी

चलो फिर नये सिरे से उनको भुलाया जाए

 

ताश के पत्तों सा बिखरा आशियाना अपना

चलो अब एक नया ही घरौंदा बनाया जाए

 

ना ही वो दावतें न वो मेहमान नवाज़ी बाकी

अब किसके लिए दस्तरख़ान बिछाया जाए

 

मजलिस में बैठ कर जुगनू सारे हैं सोच रहे

मनसूबा है कि चाँद सूरज को हटाया जाए

 

आख़िर ख़ुद से ही तू क्यूँ आजिज़ है लीना

चलो ख़ुद ही से हर फ़ासला मिटाया जाए

(अलाव- आंच, बेमुरव्वत- बेरहम, शिद्दत- ईमानदारी, दस्तरख़ान- मेज़पोश, मजलिस- सभा, मनसूबा- इरादा, आजिज़- परेशान)

©  सुश्री लीना मित्तल खेरिया 

बोड़कदेव, अहमदाबाद, गुजरात 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 42 – प्रशिक्षण कार्यक्रम – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव  ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक मज़ेदार व्यंग्य श्रंखला  “प्रशिक्षण कार्यक्रम…“ की प्रथम कड़ी ।)   

☆ व्यंग्य  # 42 – प्रशिक्षण कार्यक्रम – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

ये भी बैंकों की सामान्य प्रक्रिया का ही अंग है जो अपने स्टाफ को अद्यतन करने या फिर विशेष असाइनमेंट के लिये तैयार करने के लिए दिया जाता है.अक्सर इसका प्रभाव कोविड वेक्सीन के समान ही होता है याने जो सावधानियां वेक्सीनेशन के पहले ली जाती आई हैं, वही वैक्सीनेशन के बाद भी ली जानी है. आत्मा वही रहती है अर्थात आत्मा में परिवर्तन होता नहीं है चाहे प्रशिक्षार्थी कोई भी रहे, पर प्रशिक्षण फिर भी आवश्यक है जैसे बी.ए.की डिग्री पाना. होता जाता कुछ नहीं है पर आप मोहल्ले में बता सकते हो क्योंकि लोगों के जीवन में हास्यरस हमेशा महत्वपूर्ण है.

व्यक्तिगत रूप से इसके ज्ञान पाने के अलावा भी बहुत फायदे हैं. इस अवधि में शाखा या कार्यालय के काम से छुट्टी मिल जाती है. जो छड़े हैं या कुंवारे हैं, उन्हें खाने की और स्वाद की चिंता से मुक्ति मिल जाती है. जो विवाहित हैं, वे “नून तेल लकड़ी” के गृहस्थ जीवन से पीरियाडिक राहत पा लेते हैं. पति पत्नी के संबंधों में यह प्रशिक्षण रूपी विरह काल, माधुर्य उत्पन्न कर देता है. फरमाइशें विलंबित हो जाती हैं और सिर्फ ये गाना “तुम लौट के आ जाना, पिया याद रखोगे कि भूल जाओगे” सुनाई देता है. पर याद रखें कि कवि के लिखे इस गीत पर आंख बंद कर विश्वास मंहगा पड़ सकता है. ये गीत फिल्मों के लिये लिखा गया था जहाँ गीतकार, गायक, संगीतकार और हीरो हीरोइन सब बाकायदा पेमेंट लेकर ऐसा अभिनय कर रहे थे. अगर सिकंदर के समान खाली हाथ लौटे तो घर पर खाना “कपूर एंड संस इंदौर वाले” नहीं बनाने वाले. जो कुंवारे प्रशिक्षु होते हैं, हो सकता है वे अपनी प्रेमिका या मंगेतर के लिये मंहगी गिफ्ट ले जाने की चाहत रखें पर बैंक खुले हाथ खर्च करने लायक वेतन देती नहीं हैं. फिर रात्रिकालीन प्रि-डिनर सेशन का भी तो देखना पड़ता है.

सुबह की बेड टी से, प्रशिक्षण केंद्र का बंदा जब जगाता है तो मीठे सपने अपना विराम पाते हैं और अच्छे अच्छे गुड बॉय भी बेड टी जरूर पीते हैं. सबसे शानदार ब्रेकफास्ट का सेशन रहता है जब लोग सुबह की असली शुरुआत करते हैं, एक दूसरे से हल्का फुल्का परिचय प्राप्त करते हैं और डायनिंग टेबल पर पूरी सजगता और क्षमता से वो सब हासिल करते हैं जो बैंक की रुटीन लाइफ में सौ प्रतिशत संभव नहीं हो पाता. सामान्यतः नुक्स निकालने लायक कुछ होता नहीं है पर फिर भी कुछ आ ही जाते हैं जो ब्रेड, ऑमलेट और शाकाहारी आइटम में कुछ ढूंढ ही लेते हैं, कुछ तो फलों में भी पर केंटीन के बंदे पक्के अनुभवी होते हैं तो वो बड़ी कुशलता से ऐसी स्थितियां हेंडल कर लेते हैं. चाय और कॉफी दोनों का ऑप्शन होता है याने टेबल पर मौजूद रहते हैं. पर चाय पीने के बाद अगर पसंद न आये तो कॉफी भी बेधड़क पी जा सकती है और अगर कॉफी कड़वी लगे तो टेस्ट सुधारने के लिये फिर से चाय का सहारा लेने से रोकता कौन है. ब्रेकफास्ट की टेबल तक पहुंचने के लिये पंक्चुअल होना बहुत जरूरी है वरना लेट होने पर “खाली खाली तंबू है, खाली खाली डेरा है, बिना चिड़िया का बसेरा है, न तेरा है न मेरा है” याने बाजार खाली भी मिल सकता है. अगला भोजन रूपी स्टेशन का दो बजे के पहले नहीं आता और इस अवधि में क्लास भी तो अटैंड करनी है जो शाखा जाने से भी ज्यादा अनिवार्य होती है.

प्रशिक्षण का पहला सत्र, औपचारिक परिचय का सत्र होता है. सेवाकाल के प्रथम प्रशिक्षण काल में अधिकतर तो लोग अनजाने होते हैं पर हर प्रशिक्षण में कुछ बहुत अच्छे मित्र बन जाते हैं जो कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है. ये मित्रता के संबंध प्रायः दीर्घकालिक होते हैं और बहुत सी स्मृतियों का खजाना भी समेटे रहते हैं. क्लास में प्रवेश के बाद स्थान ग्रहण करने के लिये पंक्ति याने लाइन का चयन और समीप बैठने वाले सहपाठी से अभिन्नता बहुत कुछ पर्सनैलिटी टेस्ट भी होती है. जो सबसे अगली कतारों में बैठते हैं, वो स्कूल कॉलेज का माइंडसेट ही लेकर बैठते हैं, कुछ अनुभवी इसलिए भी बैठते हैं कि दिया तले अंधेरा हमेशा होता है तो पढाने वाले सर की नज़रों से बचा जा सकता है. वैसे नींद आने पर इंक्रिमेंट रुकने या जवाब देने की बाध्यता नहीं होती पर आखिर संस्कार भी कुछ होते हैं जो मिडिल आर्डर में बैठते हैं, वो प्रायः हर जगह बैक बोन ही होते हैं और ओपनर्स के जल्दी आउट होने पर पारी संभालने जैसा रोल भी शाखाओं और कार्यालयों में करते हैं. जब मधुशाला रूपी पार्टियों में कोई ऑउट होने लगता है तो उसे भी यही संभालते हैं. लॉस्ट बट नाट दी लीस्ट टाइप वाले बैठते तो अंतिम कतारों में हैं पर कमजोर नहीं  “बड़े वो” वाले होते हैं पीछे डबल क्लास चलती है, एक तो वो जो प्रशिक्षक पढ़ा रहे हैं और दूसरी वो जो ये खुद चलाते हैं याने एक दूसरे को पढाते हैं. इन लोगों के पास मजे लेने का रेगुलेटर होता है अर्थात इनके रिवाल्वरों में साइलेंसर लगे होते हैं. यहां जो इन बैक बैंचर्स का सानिध्य पाता है ,वह बैंकिंग के अलावा दुनियादारी भी सीखता है. ये बैक बेंचर्स, दर असल बैंचमार्क होते हैं जो मल्टी टास्किंग के बंदे तैयार करते हैं. इनसे प्रशिक्षण प्राप्त बंदे शाखा प्रबंधक बनने पर कस्टमर, स्टाफ और हेडऑफिस सबको बड़ी कुशलतापूर्वक हैंडल करते हैं.

प्रशिक्षण काल का पहला दिन पहला सत्र है, आगे भी प्रशिक्षण जारी रहेगा. उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है, आगे भी रहेगा अतः दिल पर न लें.

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मार्गदर्शक चिंतन॥ -॥ अप्पदीपो भव ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ मार्गदर्शक चिंतन

☆ ॥ अप्पदीपो भव ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

‘अप्पदीपोभव’– यह उपदेश था महात्मा बुद्ध का अपने शिष्यों को। इस सूत्र वाक्य का अर्थ है- अपना दीपक आप बनो। संसार में जीवनपथ अज्ञात है, अंधकारपूर्ण है। कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा। मनुष्य को यदि ऐसे अंधेरे मार्ग पर यात्रा करनी है, जो अनिवार्य है, तो उसे प्रकाश की बड़ी आवश्यकता है। प्रकाश दीपक से मिलता है। इसलिये उन्होंने उपदेश दिया कि अपना दीपक खुद बनो। किसी अन्य का सहारा चाहना उचित नहीं होगा। दूसरा तो थोड़ी दूर तक ही साथ दे सकेगा। अपने खुद के दीपक से सतत् संपूर्ण रास्ता प्रकाशित करने का भरोसा किया जा सकता है। खुद का प्रकाश होने पर आत्मविश्वास से चला जा सकता है। इस छोटे से गुरुमंत्र में बड़ा अर्थ भांभीर्य है। इस पर जितना चिंतन और इसका मंथन किया जाय उतना ही विस्तृत अर्थ निकलता है, उतना ही आनंद की अनुभूति होती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। कार्यक्षेत्र कोई भी हो, काम करने वाले को स्वत: ही अपनी समझदारी से उस कार्य को संपन्न कर सफलता पानी होती है। दूसरे तो केवल दर्शक होते हैं। परिश्रम और आत्मविश्वास ही सफलता दिलाते हैं। इसके लिये काम की सारी तैयारी अपने ज्ञान के प्रकाश में खुद को ही करनी होती है। इसीलिये ज्ञान को प्रकाश का पर्याय कहा गया है। ज्ञान की साधना करना विवेचना कर वास्तविकता को समझना ही अपने ज्ञानदीप को प्रकाशित करना या जगाना है। इसी ज्ञान के प्रकाश में बढक़र जीवन यात्रा के लक्ष्य को पाना आनंददायी होता है। अपना रास्ता खोजने को, खुद ज्ञान प्राप्त करो और उसके प्रकाश में आगे निर्भीक रूप से बढ़ो। ज्ञान ही मुक्ति प्रदाता है। इसलिये आप स्वत: अपना दीपक जलाओ। ज्ञान के समान सहायक और कोई नहीं है। गीता में भी कहा गया है-

‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रं इह विद्यते।’

जो कुछ महात्मा बुद्ध ने अपने अनुभव से अपने शिष्यों को उपदेश में कहा है, प्रकारान्तर से गीता में भी वही बात स्पष्टत: कही गई है-

उद्धरेतात्मना आत्मानं न आत्मानं अवसादयेत्।

आत्मैव हि आत्मनो बन्धु: आत्मैव रिपु आत्मन:॥

अर्थ है- अपना उद्धार खुद करना चाहिये, खुद को पतन के गर्त में गिराना नहीं चाहिये। मनुष्य स्वत: ही अपना मित्र है और स्वत: ही अपना शत्रु है। कठिनाई में, जैसे मित्र अपने मित्र की सहायता कर उसका हित करता करता है वैसे ही अपनी सहायता हिम्मत के साथ खुद करें तो मनुष्य अपना मित्र है और इसके विपरीत, निराश हो कुछ न कर अपनी अवनति का कारण बने तो खुद का शत्रु है। समान परिस्थितियों में दो भिन्न व्यक्तियों के व्यवहारों में यह इस संसार में साफ दिखाई देता है। एक हिम्मत से काम ले सफलता या यश पाता है और दूसरा हिम्मतहार कर चुप बैठ जाता है और विफलता से अपयश का भागी होता है।

व्यक्ति की बुद्धि और कर्म ही उसे ऊंचा उठाते हैं या गिराते हैं। इसलिये मनुष्य को सही ज्ञान का सहारा ले आत्मविश्वास से सोच समझ कर जीवन पथ पर बढऩा चाहिये- अपना दीपक आप बनना चाहिये। ‘मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।’ मनस्वी अपने ज्ञान की ज्योति के प्रकाश में ही आगे बढ़ युग में नया इतिहास रचते हैं।

 © प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, म.प्र. भारत पिन ४६२०२३ मो ७०००३७५७९८ apniabhivyakti@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २७ जुलै – संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? ई-अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २७ जुलै -संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

शरद्चंद्र पुराणिक ( इ.स. १९३३९ – २७ जुलै २०१६ )

शरद्चंद्र पुराणिक यांनी संस्कृत विषयात बी.ए., एम. ए. केलं. पुढे इंग्रजी विषय घेऊनही एम. ए. केलं आणि महाविद्यालयात इंग्रजीचे प्राध्यापक म्हणून रुजू झाले. चिपळूण, खेड, अलिबाग इ. ठिकाणी नोकरी करून ते शेवटी चाळीसगावला स्थिरावले. त्यांचे इंग्रजी विषयावर प्रभुत्व होते. इंग्रजी नाटकातील संवाद व स्वागते ते तोंडपाठ म्हणून दाखवत. ते विद्यार्थीप्रिय प्राध्यापक होते.

शरद्चंद्र पुराणिक यांना वाचनाची आणि लेखनाचीही प्रचंड आवड होती. त्यांची १६ पुस्तके प्रकाशित झालीत. ८ पुस्तके लिहून तयार आहेत पण ती अद्याप प्रकाशित व्हायची आहेत.

शरद्चंद्र पुराणिक यांची पुस्तके –

इतिहास क्षेत्राशी निगडीत अशी त्यांची बरीच पुस्तके आहेत. उदा.  १.पहिला बाजीराव- पूर्वार्ध, उत्तरार्ध, २.मराठ्यांचे स्वातंत्र्य समर- छत्रपती संभाजी, छत्रपती राजाराम , ३. ऋषितर्पण , ४.मराठी इतिहासाच्या अभ्यासकांचे व्यक्तिदर्शन- इ. ८च्या वर त्यांची पुस्तके आहेत. रियासतकार सरदेसाई, राजवाडे, विष्णुशास्त्री , श्री. म. माटे इ. व्यक्ती आणि त्यांचे कार्य सांगणारीही त्यांची पुस्तके आहेत.

पुरस्कार

त्यांच्या ‘रामदास’ या पुस्तकाला पुणे नगर वाचन मंदिरचा तर, ‘तुळाजी आंग्रे’ या पुस्तकाला मुंबई मराठी ग्रंथसंग्रहालयाचा पुरस्कार मिळाला आहे. २०१० साली महाराष्ट साहित्य परिषदेच्या १०४ व्या वर्धापन दिनाच्या निमित्ताने त्यांना ‘मृत्युंजय’ पुरस्कार देण्यात आला.

शरद्चंद्र पुराणिक यांचा आज स्मृतीदिन. त्यानिमित्ताने त्यांना विनम्र अभिवादन.? 

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई

💐अ भि नं द न 💐

वंचित विकास संचलित ‘निर्मळ रानवारा’ कथास्पर्धेत आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखिका श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई यांच्या बालकथेस द्वितीय क्रमांक प्राप्त झाला आहे. ई अभिव्यक्ती समुहातर्फे त्यांचे हार्दिक अभिनंदन!💐💐

💐 श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई यांचे ई अभिव्यक्ती मराठी समुहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील लेखनासाठी शुभेच्छा 💐

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वास्तव… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ 📌वास्तव… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

अनेक मरणे बघुन सुद्धा

अजुन आहे जगतो मी

कर्म भोग तो कुणास चुकला

त्यासाठी तर उरलो मी

       

अस्तीत्वा च्या साठीच केवळ

कितीक लढाया लढलो मी

कपटजाल ते मला न कळ ले

स्वकियांकडूनच हरलो मी

 

नाते गोते माया ममता

या साठी किती झुरलो मी

खस्ता खाऊन जीर्ण होऊनी

वस्त्रासम   जणु विरलो मी

 

सुख स्वप्नांची झाली शकले

जोडीत तुकडे फिरलो मी

वेड्यापरी या निळ्या नभाला

ठिगळे लावीत बसलो मी

 

ते तर केवळ मृगजळ होते

शोधीत ज्याला फिरलो मी

वास्तव म्हणजे ज्वलंत विस्तव

इतुके नक्कीच शिकलो मी

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 143 ☆ गझल ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 143 ?

☆ गझल… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सांज झाली, संपली की प्रार्थना

एवढे  आता  तरी  तू   ऐकना

 

नाखवा नाही कुणीही सोबती

जीवनाची नाव ही चालेचना

 

पैलतीरा पोचण्याची आस रे

 सागरा आहेस तू आथांग ना

 

 वादळी वाटा कशा मी आक्रमू

तोल जातो चालताना मोहना

 

तार तू वा मार आता या क्षणी

तूच आहे संगती ही भावना

 

ईश्वरा आहेस तू सर्वात्मका

शेवटाची हीच रे आराधना

 

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- sonawane.prabha@gmail.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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