झाल्या. पोरांच्या स्वतःच्या पोटाला मिळणं मुश्किल होतं तिथं आईवडिलांना कुठून आयतं देणार? म्हातारपणी बुवा गाडी बैलांचं भाडं मिळवू लागला पण आयुष्यभर वाडवडिलांच्या जीवावर बसून खाल्लेलं आता काम पचनी पडेना. शेवटी धुरपीला पण रोजगारास जाणं भाग पडलं,गोदीला तर पहिलीच सवय होती.
पण आयुष्यभर शरीर थोडेच साथ देते? आधीच हाडाची काडं झालेलं शरीर आता साथ देईना,रोजगार नाही तर खायला नाही ;पण भूक थोडीच थांबणार? कोण नसलेलं बघून गोदी इकडून तिकडून भाकरी तुकडा मागून पदराआड लपवून खायची. पण म्हणतात ना,माणूस माणसाचा वैरी असतो तो दुसऱ्यांस सुखी बघू शकत नाही !गोदीची चहाडी कुणीतर केलीच ! आता तिच्यावर नजर राहू लागली. शिल्लक राहिलेलं तेव्हढंच खाण्याची शिक्षा तिला मिळाली. कोर अर्धी वाळून गेलेली भाकरी गोदाबाई पाण्यात कालवून चापलायची. नजर अधू झालेली,दात पडून गेलेले,कुणीतरी नजर चुकवून तिला वाटीभर आमटी नाहीतर घरात शिल्लक राहिलेला चवीचा घास पुढ्यात टाकत होतं. गोठ्याच्या दारापाशी बसून ती धुण,भांडी करत बसायची,कोंबड्या राखत बसायची. कधी सुनांची पण भांडी कपडे धुवायची मग कोण नसताना सुना पोटभर खाऊ घालायच्या.
आणि एके दिवशी सकाळी सकाळी अंगणात चुलीला जाळ घालत असता जाळ बाहेर येऊन गोदाबाईच्या लुगड्यांने पेट घेतला. अंधुक नजरेनं तिच्या लक्षात काहीच आले नाही, तिनं आरडाओरडा केला पण लुगड्याने वरपर्यंत पेट घेतला होता. कुणीतरी धावत येऊन लुगडं सोडवण्याचा प्रयत्न केला पण कमरेला चिंधकाची बसलेली नीरगाठ लवकर सुटली नाही ;तोपर्यन्त कुणीतरी पाणी ओतलं. गोदाबाईच्या जीवाची,शरीराची तगमग होऊ लागली. कुणीतर बैलगाडी जोडली,चादर अंथरून त्यावर गोदाबाईला झोपवलं अन तालुक्याला नेलं पण रस्त्यातच गोदाबाईचा अवतार सम्पला होता.
डॉक्टरने मृत घोषित केले. गाडी तशीच माघारी फिरली. गोदाबाईचा जीव मुक्त झाला. गोदाबाई गेली पण जाताना कितीतरी प्रश्नांचे पायरव ठेऊन गेली –गोदाबाई खरेच वांझ असेल? गोदाबाईचा पुनर्जन्म होईल? झाला तर तिला कोणता जन्म मिळेल? या जन्मातल्या तिच्या सर्व अतृप्त इच्छा पुढील जन्मी पूर्ण होतील? तिला पोटभर खायला मिळेल? आयुष्यभर तिच्या जीवाची झालेली परवड पुढील जन्मी तरी थांबेल?
“सुटली एकदाची जाचातून गोदा !” आया बाया बोलू लागल्या. पण गोदीचं नशीबच फ़ुटकं ! जीवनाने गोदाबाईची परवड केलीच पण मृत्यूने देखील तिची परवड केली होती! आयुष्यभर आतून बाहेरून तडपत राहिलेल्या गोदाला मृत्यूने देखील तडपडायला लावूनच तिच्या जीवनाची सुटका केली होती!
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “लहरों से पृथक कहीं…”।)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता “मेरा गांव”।)
☆ कविता # 136 ☆ मेरा गांव ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे ।
आज प्रस्तुत है मातृ दिवस पर माँ को समर्पित रचना आपकी एक भावप्रवण गीत “माँ ठंडी पुरवइया रे”.
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# गोलू का गुल्लक #”)
साहित्य जगत में ग्रामीण क्षेत्र से उभरती प्रतिभा – श्रीमती योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ – अभिनंदन
श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’, झिगिराघाट अंजनिया, मंडला, मध्यप्रदेश के बहुत ही छोटे से गाँव से हैं। आप स्व. विजय चौरसिया (पिता), श्रीमति रजनी देवी चौरसिया (माता) की सुपुत्री एवं श्री योगेश चौरसिया जी की अर्धांगिनी अपना व्यापार संभालते हुए सामाजिक व साहित्यिक सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती है।
आपने बहुत ही कम उम्र में कई मुकाम हासिल किए हैं। विगत दिनों आपने ‘भारत जानो’ पुस्तक पर राजस्थान से संबन्धित होते हुए दोहे व चौपाई से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कविसम्मेलन द्वारा मंत्रमुग्ध कर दिया। हाल ही में दिल्ली में सम्मान समारोह में हमारे देश के भारतरत्न साझा संकलन में डाँ. अब्दुल कलाम जी पर स्वरचित रचना जो गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में चयनित हुई है, नई दिल्ली में सम्मानित किया जाएगा।
आपने कई साझा संकलन पर काम किया है। दो सौ से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। जिसमे कोरोना सम्मान, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रमुख है।
वर्तमान में आपके ‘प्रेमिल सृजन काव्य कलश 1’ नामक दोहा-छंद संग्रह व ‘विविध प्रकार के छंद काव्य कलश-2’ प्रकाशनधीन है।
आप कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत अपने हृदयभावों को विश्व के समक्ष रखने का प्रयास करती है। स्वयं को जोगन मान बहुत सी रचनाओं द्वारा शब्दाजंली अपने माधव को अर्पित करती है।
आपकी रचनाएँ (गीत, गज़ल, छंदबद्ध, छंदमुक्त, कहानी, लघुकथा, संस्मरण आदि) विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं में सतत् प्रकाशित होती रहती हैं।
आपकी लेखनी का उद्देश्य समाज की व्यथा को उजागर करना व समाज में चेतना का संचार करना। हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करना।
साहित्यिक जगत में एकल काव्य पाठ, दोहा शिक्षक व समीक्षक साथ ही संस्थागत दायित्व कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष अदि पदों का निर्वहन भी कर रही हैं।
आप समाजिक कार्यकर्ता के रुप में नारी समिति संस्था मंडला, आदर्श महिला क्लब मंडला, चौरसिया सेवा ट्रेस्ट मध्यप्रदेश, से जुड़ी है।
प्रेमिल सृजन :
विधा – नरहरि छंद
आज योगिता जोगन है, बावरी।
कृष्ण रंग मैं रँगती बन, साँवरी।।
हृदय धरे चलती अब जो, सार है।
दर्श आस रख अश्रु बहे, धार है ।।1!!
विरह वेदना करती है, सामना ।।
आ जाओ बंशी धारी, कामना ।
हृदय पीर बढ़ती है अब, साजना ।
सुनो प्रार्थना करती हूँ, साधना ।।2!!
सदा प्रीत ही जीत बने, हार कर ।
करें जिंदगी न्यौछावर, वार कर ।।
मीत अनोखे कृष्ण बने, खास हैं ।
हृदय पटल पर जो रचते, रास हैं ।।3!!
– योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’
मंडला म.प्र.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈