श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता “मेरा गांव”।)  

☆ कविता # 136 ☆ मेरा गांव ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

भीषण गरमी

तेज धूप, 

सूरज जलता

है मेरे गांव में

*

ताल तलैया

सूख गए हैं

लू का झोंका

है मेरे गांव में

*

पंखा झलते

पिता दुखी हैं

जहर भर गया

है मेरे गांव में

*

अविदित संकट

मंहगी मंहगाई

झगड़ा झंझट

है मेरे गांव में

*

सूखी फसल

भूखे बच्चे

खेल रहे

हैं मेरे गांव में

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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