हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 38 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 38 ??

केदारनाथ-

उत्तराखंड के चार तीर्थस्थानों की देवभूमीय चार धाम के रूप में प्रतिष्ठा है। इनमें बद्री विशाल तो हैं ही, साथ में केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री सम्मिलित हैं। इन तीर्थों की यात्रा वामावर्त होती है अर्थात बाईं ओर आरंभ कर आगे चला जाता है।

केदारनाथ उत्तराखंड के गुप्तकाशी क्षेत्र में स्थित है। पौराणिक आख्यान के अनुसार महिष का रूप धारण कर भगवान शंकर जब पाताल-लोक में प्रवेश करने लगे तो परिजनों की हत्या के पाप से पांडुकुल को मुक्त करने के लिए भीम ने महेश का पृष्ठ भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन देकर पापमुक्त किया। इस स्थान पर महिष के पृष्ठ भाग के रूप में प्राकृतिक शीला में विराजमान महादेव के विग्रह की आराधना होती है। यह वैदिक संस्कृति की एकात्मता ही है जो कभी महिष में ईश्वरीयता का दर्शन कर अवतरित होती है तो कभी ईश्वर, वराह का अवतार लेते हैं।

गंगोत्री-

गंगोत्री अमृतवाहिनी गंगा जी का उद्गम स्थल है। यह क्षेत्र उत्तरकाशी में है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भागीरथी ने इसी स्थान पर पृथ्वी को स्पर्श किया था। प्राचीन समय में यहाँ गंगा जी की साकार स्वरूप में ही पूजा होती थी। कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ। इस क्षेत्र में नदियों की धारा का प्रवाह अकल्पनीय है। उल्लेखनीय है कि  एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी  1977 में कोलकाता से बद्रीनाथ तक गंगा जी के प्रवाह के विरुद्ध जलमार्ग से यात्रा करने के अभियान पर निकले थे। नंदप्रयाग के बाद गंगा जी के अद्भुत जलप्रवाह के आगे नतमस्तक होकर हिलेरी ने अपना अभियान रोक दिया था।

यमुनोत्री-

यमुनोत्री पावन यमुना जी का उद्गम स्थल है। यह क्षेत्र उत्तरकाशी में है। यमुनोत्री हिमनद से लगभग 5 मील नीचे गर्म पानी के स्रोत मिलते हैं। ऐसे दो स्रोतों के बीच एक शिला पर स्थित है यमुनोत्री का मंदिर। इन स्रोतों में पानी इतना गर्म होता है कि  प्रसाद के रूप में सूर्यकुंड में आलू या चावल पकाने की परंपरा है।

सनातन संस्कृति माटी, जल, अग्नि, आकाश, वायु को काया का घटक मानती है। जलस्रोतों का सम्मान और मानवीकरण, उदार व सदाशय वैदिक एकात्मता का साक्षात उदाहरण है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा #112 – “एकता और शक्ति” – श्री अमरेन्द्र नारायण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अमरेंद्र नारायण जी की पुस्तक “एकता और शक्ति”  की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆

☆ “एकता और शक्ति” – श्री अमरेन्द्र नारायण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

Unity And Strength

एकता और शक्ति 

लेखक… अमरेन्द्र नारायण

प्रकाशक :  राधाकृष्ण प्रकाशन,राजकरल प्रकाशन समूह, 7/31 अंसारी रोड दरयागंज, नई दिल्ली  

अमेज़न लिंक >> एकता और शक्ति

एकता और शक्ति उपन्यास स्वतंत्र भारत के शिल्पकार  लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम योगदान पर आधारित कृति है। इस उपन्यास की रचना  गुजरात के रास ग्राम के एक सामान्य कृषक परिवार को केन्द्र में रख कर की गयी है।श्री वल्लभभाई पटेल के महान  व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हजारो लोग खेड़ा सत्याग्रह के दिनों से ही उनके अनुगामी हो गए थे और उनकी संघर्ष यात्रा के सहयोगी बने थे।पुस्तक में सरदार पटेल के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पक्षों को और उनके अद्वितीय योगदान का प्रामाणिक रूप से वर्णन किया गया है।

महान स्वतंत्रता सेनानी… कर्मठ देशभक्त…  दूरदर्शी नेता… कुशल प्रशासक…! सरदार वललभभाई पटेल के सन्दर्भ में ये शब्द विशेषण नहीं हैं। ये दरअसल उनके व्यक्तित्व की वास्तविक छबि है.   स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद अनेक समस्याओं से जूझते हुए भारतवर्ष को संगठित करने, उसे सुदृढ़ बनाने और नवनिर्माण के पथ पर अग्रसर कराने में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही है। ‘एकता और शक्ति’ स्वतंत्र भारत के इस महान शिल्पी को लेखक की विनम्र श्रद्धांजली  है। यह उपनयास एक सामान्य कृषक परिवार  के किरदार से सरदार की कार्य -कुशलता, उनके प्रभावशाली नेतृत्व और अनुपम योगदान का का ताना-बाना बुनता है।उपन्यास सरदार श्री के जीवन से सबंधित कई अल्पज्ञात या लगभग अनजान पहलुओं को भी नये सिरे और नये नजरिये से छूता है। 

यह उपन्यास सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम जीवन से  नयी पीढ़ी में राष्ट्रनिर्माण की अलख जगाने का कार्य कर सकता है. आज की पीढ़ी को सरदार के जीवन के संघर्ष से परिचित करवाना आवश्यक है, जिसमें यह उपन्यास अपनी महती भूमिका निभाता नजर आता है.  

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का भारत में त्वरित विलय कराने, स्वाधीन देश में उपयुक्त प्रशासनिक व्यवस्था बनाने और कई कठिनाइयों से जूझते हुए देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कराने में, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान अप्रतिम रहा है। वे लाखों लोगों के लिए अक्षय प्रेरणा-स्रोत हैं। एकता और शक्ति, सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान पर आधारित एक ऐसा उपन्यास है जिसमें एक सामान्य कृषक परिवार की कथा के माध्यम से, सरदार श्री के प्रभावशाली कृशल नेतृत्व का एवं तत्कालीन घटनाओं का वर्णन किया गया है। साथ ही, एक सम्पन्न एवं सशक्त भारत के निर्माण हेतु उनके प्रेरक दिशा-निर्देशों पर भी प्रकाश डाला गया है।

श्री अमेरन्द्र नारायण

अमेरन्द्र नारायण एशिया एवं प्रशान्त क्षेत्र के अन्तरराष्ट्रीय दूर संचाार संगठन एशिया पैसिफिक टेली कॉम्युनिटी के भूतपूर्व महासचिव एवं भारतीय दूर संचार सेवा के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। उनकी सेवाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने स्वर्ण पदक से और संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष एजेंसी अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन ने टेली कॉम्युनिटी को स्वर्ण पदक से और उन्हें व्यक्तिगत रजत पदक से सम्मानित किया।

श्री नारायण के अंग्रेजी उपन्यास—“फ्रैगरेंस बियॉन्ड बॉर्डर्स”  का उर्दू अनुवाद “खुशबू सरहदों के पास” नाम से प्रकाशित हो चुका है। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम अब्दुल कलाम साहब, भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने इस पुस्तक की सराहना की है। महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह और फिजी के प्रवासी भारतीयों की स्थिति पर आधारित उनका संघर्ष नामक उपन्यास काफी लोकप्रिय हुआ है। उनकी पाँच काव्य पुस्तकें—सिर्फ एक लालटेन जलती है, अनुभूति, थोड़ी बारिश दो, तुम्हारा भी, मेरा भी और श्री हनुमत श्रद्धा सुमन पाठकों द्वारा प्रशंसित हो चुकी हैं। श्री नारायण को अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है।

 श्री अमरेन्द्र नारायण जी  के इस प्रयास की व्यापक सराहना की जानी चाहिये. यह विचार ही रोमांचित करता है कि यदि देश का नेतृत्व लौह पुरुष सरदार पटेल के हाथो में सौंपा जाता तो आज कदाचित हमारा इतिहास भिन्न होता. पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ मोबाइल है, या मुसीबत – भाग – 2 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”

आज प्रस्तुत है संस्मरणात्मक आलेख – “मोबाइल है, या मुसीबतकी अगली कड़ी। )

☆ आलेख ☆ मोबाइल है, या मुसीबत  – भाग – 2 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

विगत दिनों करीब दो वर्ष के पश्चात भारतीय रेल से दिल्ली की यात्रा की। मोबाइल से अग्रिम टिकट करवाना भूल चुके हैं, IRCTC का ID आदि भी मेमोरी से डिलीट हो गए है। विचार किया स्टेशन पर पहुंच कर टिकट लेकर बैठ जायेंगे। पांच घंटे की तो यात्रा है, Covid के कारण ट्रेन भी खाली ही चल रहीं होंगी, परंतु जब स्टेशन पहुंचे तो पता चला no room है। मरता क्या ना करता, साधारण टिकट लेकर बिना रिजर्वेशन वाले कोच में प्रवेश किया तो देखकर आश्चर्यचकित हो गए। एकदम शमशान भूमि जैसी शांति, कोई चिल्ल-पों नहीं हो रही। एक बैठे हुए यात्री से पूछा ये कौन सी क्लास का डिब्बा है। तो वो कान से यंत्र को निकलते हुए बोला, “जो हर क्लास में फेल हो वो यहां आ जाते हैं। हम समझ गए सही जगह आए हैं।”

सब अपने अपने मोबाइल में कुछ देख रहे थे या सुन रहे थे, बाकी के बोल रहे थे। कोई राजनैतिक, व्यवस्था विरोधी या सामाजिक चर्चा नहीं कर रहा था। नौकरी के दिन याद आ गए जब फर्स्ट क्लास में यात्रा करते थे तो सभी अंग्रेजी पेपर से अपना चेहरा छुपाकर बैठे रहते थे। Excuse me जैसा शब्द हमने वहीं पर सुना था। हमने अपना मोबाइल बंद करके रख दिया था, क्योंकि उसकी बैटरी  अधिकतम तीस मिनट ही चल पाती थी। उसके बाद उसे वेंटीलेटर पर लेना पड़ता था। स्टेशन पर कोई पेपर /पत्रिका बेचने वाला भी नहीं दिखा था, हां चार्जिंग पॉइंट पर लंबी लाइन लगी हुई थी। लाइन में लगे एक व्यक्ति से पूछा – “आपको कौन सी गाड़ी में जाना है?” तो वो बोला “पहले मोबाइल चार्ज हो जाए, फिर उसके बाद किसी भी गाड़ी से चले जाएंगे।”

दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन पर उतर कर हमेशा की तरह हम पंडित चाय वाले के यहां गए, तो पंडितजी नहीं दिख रहे थे। एक युवा जो कि कान में यंत्र लगा कर चाय बना रहा था ने इशारा किया। हमने “एक कट फीकी चाय” बोला तो उसके समझ में नहीं आया, झुंझलाते हुए उसने कान से wire निकालकर हमको ऐसे घूर कर निहारा जैसे हमसे कोई बड़ी गलती हो गई हो। वो बोला “उधर बेंच में बैठ जाओ, आपकी बारी आएगी तो बताना।” मैंने पूछा “पंडितजी नहीं दिख रहे?” तो उसने एक माला पहनी हुई फोटो दिखाई और बोला “वो covid में सरक गए।” पहले समय में पंडितजी पूछते थे “कचोरी गर्म है, चाय के साथ लोगे या बाद में” अब वो युवा तो कानों में यंत्र डाल कर संगीत की दुनिया के मज़े ले रहा था। हमने भी अपनी फीकी चाय पी और चल पड़े ! युवक अभी भी अपनी मोबाइल की दुनिया में खोया हुआ था और उसको  पैसे लेने की भी याद नहीं थी। शायद इसी को “मोबाइल में मग्न” होना कहते है।

📱

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 119 – कविता – कभी बनी ममता की मूरत… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कभी बनी ममता की मूरत”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 119 ☆

☆ कविता – कभी बनी ममता की मूरत 

कर्तव्यों का बोझ उठाती

संसार की हर एक नारी

नए वंश को जन्म देकर

बनी हुई सृष्टि पर लाचारी

 

कभी बनी ममता की मूरत

आंचल लिए स्नेह का गागर

कभी धरी देवी की सूरत

डुबाई गई नदिया सागर

 

भोर से उठकर करती काम

सब रिश्तो का संभाले भार

रख सांझ दीपक तुलसी चौरा

कहती सबको देना तार

 

सबका पेट भरती रहती

अन्नपूर्णा का रूप संभाले

करती रहती सबकी चाकरी

वफादारी का बोझ उठा ले

 

दिन-रात वो सेवा करती

पराया घर अपना बनाती

फिर भी मनुज नहीं थका

बेचारी अबला नार कहाती

 

अगर मिले थोड़ा सा मान

बनती नहीं वह पाषाण

दुख दर्द सारे भूल जाती

बिगड़ी बात बनाती आसान

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (6 – 10) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

दिया राम ने शत्रुघ्न को समुचिंत आदेश।

मुनियों के कल्याण हित हो निर्विघ्न प्रदेश।।6।।

 

हर विशेष, सामान्य से निश्चित होता नेक।

अतः शत्रु-संहार हित रघुकुल का कोई एक।।7।।

 

चले शत्रुघ्न राम का लेकर आशीर्वाद।

रथ पर चढ़ निर्भीक मन पुष्प पूर्ण भू-भाग।।8।।

 

राक्षस-बध हित शत्रुध्न ही तो थे पर्याप्त।

किन्तु राम ने सेना भी देना समझा आप्त।।9।।

 

राह दिखाते मुनि चले रथ अति शोभावान।

बालखिल्य से सूर्य का रथ ज्यों दिखे महान।।10।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २९ मार्च – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆  २९ मार्च -संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

पांडुरंग गोविंदशास्त्री पारखी.

पां.गो.पारखी हे मागच्या शतकातील मराठीतील कवी व निबंधकार होते. त्यांनी पुणे येथे संस्कृत पाठशाळेत अध्ययन केले होते.

कालिदासाचे संस्कृत ॠतूसंहार वर आधारित त्यांनी षड़्ऋतूवर्णन हे पुस्तक लिहिले.तसेच अनेक ताम्रपट, शिलालेख, चिनी प्रवाशांचे ग्रंथ इत्यादीचा अभ्यास करून निबंधलेखन केले आहे.त्यांनी भावगुप्तपद्म या टोपणनावाने काव्य लेखनही केले आहे.

पांडुरंग शास्त्री यांची ग्रंथसंपदा:

बाणभट्ट याच्या संस्कृत ‘कादंबरी’चे भाषांतर.

काव्य– अलंकारार्पण, कृष्णकुमारी,बोधामृत, श्रीकृष्णलीला

कादंबरी– मंजुघोषा,मुक्तामाला,

निबंध– बाणभट

याशिवाय अनेक इंग्रजी ग्रंथांची निर्मिती त्यांनी केली आहे.

 29मार्च1911रोजी पांडुरंग गो. पारखी यांचे निधन झाले.

 

 डाॅ.पद्माकर विष्णू वर्तक:

श्री.वर्तक हे  व्यवसायाने डाॅक्टर होते. एम.बी.बी.एस.झाल्यानंतर त्यांनी प्रिव्हेंटिव्ह मेडिसिन या विषयामध्ये एम.डी.केली.शल्यचिकित्सका अभ्यास केला. काही काळ वैद्यकीय व्यवसाय केल्यावर त्यांनी रामायण आणि महाभारताचे संशोधन यावर पूर्ण लक्ष केंद्रित केले. ऋग्वेद,महाभारत यांचा अभ्यास करून रामायणाचा काळ ठरवला. त्यांनी अध्यात्म व योग यांच्या संशोधनेसाठी ‘अध्यात्म संशोधन मंदिर’ स्थापन केले. तसेच प्राचीन भारतीय विज्ञानाचा शोध घेण्यासाठी ‘वेद विज्ञान मंडळ’ स्थापन केले.

वर्तक यांची ग्रंथसंपदा:

वास्तव रामायण

स्वयंभू(महाभारतावर आधारित)

तेजस्विनी द्रौपदी

युगपुरूष श्रीकृष्ण

पातंजल योग

दास मारूती? नव्हे, वीर हनुमान

संगीत दमयंती परित्याग(नाटक) इत्यादी

29मार्च2019 ला श्री.वर्तक यांचे निधन झाले.

 

शंकर नारायण जोशी :

श्री.शंकर नारायण जोशी यांचा जन्म सातारा जिल्ह्यातील पाचवड येथे झाला.त्यांचे शिक्षण  पाचवड,कुरंदवाड,जमखंडी येथे झाले.परंतु वडिलांच्या निधनामुळे त्यांना इंग्रजी तिसरीतच शिक्षण सोडावे लागले.नंतर पुणे येथे ज्ञानप्रकाश  व आर्यभूषण छापखान्यात त्यांना मुद्रित तपासणीचे काम मिळाले. या कामामुळेच त्यांना वाचनाची व विशेषतः इतिहास वाचनाची गोडी लागली.त्यांचा लोकमान्य टिळकांशी संबंध आला.लोकमान्यांच्या दौ-याच्या वेळी ते लोकमान्यांचे स्वयंसेवक म्हणून काम करू लागले.1916 मध्ये भारत इतिहास संशोधन मंडळात त्यांना काम मिळाले व त्यांचा इतिहासाचा अभ्यास सुरू झाला.इतिहास विषयक सूची व शकावल्या तयार करण्याचे किचकट काम त्यांनी उत्तम प्रकारे पार पाडले.मध्ययुगीन ग्रामव्यवस्था,वतनदार,

राज्यव्यवस्था याविषयी संशोधन करून शोधनिबंध सादर केले.याशिवाय शिवाजी महाराजांवर व अनेक थोर व्यक्तींवर त्यांनी अनेक ठिकाणी भाषणे दिली.

शं. ना. जोशी यांची ग्रंथसंपदा:

मुळशी पेट्यासंबंधी ऐतिहासिक माहिती

राजवाडे लेखसंग्रह(संपादन)

राजवाडे लेख संग्रह संकीर्ण निबंध भाग 1 व 2

शिवकालीन पत्रसारसंग्रह खंड 3

शिवचरित्र साहित्य खंड 5

संभाजी कालीन पत्रसारसंग्रह

मराठेकालीन समाजदर्शन इ.इ.

 

कै.शं.ना.जोशी,पद्माकर वर्तक व पांढरा.गो.पारखी यांचा आज  स्मृतीदिन.या तीनही अभ्यासू,संशोधक साहित्यिकांच्या स्मृतीस विनम्र अभिवादन ! 🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कोणीतरी माझ्यासाठी ☆ सौ .कल्पना कुंभार ☆

सौ .कल्पना कुंभार

? कवितेचा उत्सव ?

☆ कोणीतरी माझ्यासाठी ☆ सौ .कल्पना कुंभार ☆

कोणीतरी कोणासाठी

पाठीशी उभं असतं..

जे पडताना सावरतं

चुकताना आवरतं..

 

 नात्याच ना गोत्याच

पण काहीतरी देऊन जातं

‘आयुष्य हे एकदाच मिळतं’

हे सहज शिकवून जातं..

 

डोळ्यांतली आसवं

सहज ते पुसून  जातं..  

   “दृष्टी बदलून बघ जगाकडे”

 जगण्याचा धडा गिरवून घेतं..

 

कोण असतं ते कोणीतरी??

कधी वडील कधी आई

कधी शाळेतल्या बाई..

पाठीवर हात ठेविता

जग जिंकल्याची उर्मी येई..

 

कधी भाऊ कधी बहीण

कधी मित्र  कधी मैत्रीण

कधी निसर्ग कधी प्राणी

कधी अनोळखी कोणी

तर कधी ओळख जुनी..

आयुष्याच्या वाटेवर

माझ्यासाठी…कोणीतरी..

 

💞मनकल्प 💞

© सौ .कल्पना कुंभार

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 131 ☆ वाळवंट ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 131 ?

☆ वाळवंट ☆

ह्या पाकळ्या फुलांच्या गळतात फार लवकर

पण ठेवती जपूनी अनमोल त्यात केशर

 

रात्रीत फूल झाले कळले कुठे कळीला

नेसून काल होती रंगीत छान परकर

 

शेतातलाच माझ्या कापूस शुभ्र नेला

तोट्यातलाच सौदा सुनसान जाहले घर

 

पाषाण हृदय माझे ठरवून लोक गेले

दगडात वाहणारा दिसला कुणा न पाझर

 

हे वाळवंट झाले माझ्या कधी मनाचे

उडतोय फक्त धुरळा माझ्या इथे मनावर

 

गावातले जुने घर कौले उडून गेली

भिंतीस तोडुनीया बाहेर येइ दादर

 

येऊन पूर गेला मी कोरडाच आहे

मातीत पालथी का आहे अजून घागर ?

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ मेंदूचा व्यायाम….अनामिक ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? विविधा ?

☆ मेंदूचा व्यायाम….अनामिक ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर 

मेंदूचा व्यायाम.

शरीर सुदृढ राहावं म्हणून आपण सगळेच व्यायाम करतो. वजन वाढलं की वजन कमी करण्यासाठी व्यायाम करतो. खेळाडू सतत सराव करत राहतात. अभिनेता किंवा अभिनेत्री चेहऱ्यावरचे तेज टिकवण्यासाठी व्यायामासकट वेगवेगळे उपाय करत राहतात. म्हातारी होत चाललेली माणसं तरुण दिसण्यासाठी धडपडत असतात. पण मेंदू तरुण राहावा, मेंदू तल्लख राहावा, विचार चपळ राहावेत यासाठी मेंदूचे व्यायाम कोणीच करत नाही.

मेंदू हा इतर अवयवांसारखाच आहे. वापरला तर धावतो, नाही वापरला की गंज चढतो. आठवा, मोबाईल हातात येण्यापूर्वीचे दिवस. कमीत कमी १०० ते २०० टेलिफोन नंबर सहज लक्षात राहायचे. आता जेमतेम २० ते २५ नंबर लक्षात राहतात.

आज आम्ही तुम्हाला मेंदू तल्लख, चपळ, तरतरीत आणि यंग फॉरेव्हर राहण्यासाठी काही व्यायाम सुचवतो आहे.

१. वाद्य वाजवायला शिका एखादे वाद्य वाजवायला शिका. होतं काय, हे शिकताना अनेक सरगम (नोटेशन्स) लक्षात ठेवायला लागतात. सोबतच एखादा स्वर ऐकल्यानंतर तो कोणत्या नोटेशनचा भाग आहे, हे पण लक्षात ठेवावं लागतं.

उदाहरणार्थ, ‘सागर किनारे’ हे गाणं ऐकल्यावर मुकेशचं ‘यही है तमन्ना तेरे घर के सामने’ हे गाणं आठवणं ही नोटेशन लक्षात असण्याची खूण आहे. किंवा एखादी सुरावट ऐकल्यावर जुन्या स्मृती चाळवल्या जाणं ही पण नोटेशन लक्षात असण्याची खूण आहे. याखेरीज महत्वाचा मुद्दा असा की वाद्य वाजवताना मेंदू आणि हात या दोन्हीमध्ये समन्वय राहतो.

२. तोंडी हिशोब करा. कॅल्कुलेटर आल्यानंतर तोंडी गणितं करण्याचं आपण सगळेच विसरलो आहोत. कोपऱ्यावरचा भाजीवाला जो हिशोब तोंडी करू शकतो, तो तोंडी हिशोब चार डिग्र्या असणारी माणसं सुद्धा करू शकत नाहीत. बघा स्वतःची परीक्षा घ्या. १९ चा किंवा २३ चा किंवा २९ चा पाढा आठवतोय का? नसेल आठवत तर आजच पुन्हा एकदा पाढे पाठ करायला सुरुवात करा. यामुळेही मेंदू तल्लख राहतो.

३. गत आयुष्यातील प्रसंगांना आठवून बघा. कधीतरी एखाद्या रविवारी आठवून बघा आपल्या गत आयुष्यातील अनेक प्रसंगांना!! उदाहरणार्थ, २६ जुलैचा पूर आला तेव्हा तुम्ही कुठे होता आणि घरी कसे पोहोचलात? तेव्हा तुमच्यासोबत कोण होतं? तुम्ही किती वाजता घरी पोहोचलात? सगळं आठवण्याचा प्रयत्न करा आणि एखाद्या कागदावर नोंद करा. यामुळे मेंदूचा झोपी गेलेला भाग खडबडून जागा होईल. अर्थातच अशा व्यायामाने जुनी नावं, ठिकाणं, नाती, सगळं काही आठवायला लागेल. मेंदूला पुन्हा एकदा स्मरणशक्ती ताजी ठेवण्याची सवय लागेल.

४. नवीन भाषा शिका. आता असा एक उपाय बघू ज्यामुळे मेंदूची क्षमता वाढत जाईल. यासाठी सोपा व्यायाम आहे नवीन भाषा शिकण्याचा. भाषेतले शब्द हे मनावर उच्चारातून आघात करतात. त्यामुळे जुने शब्द, जुनी भाषा, यांचे संवर्धन तर होतेच, सोबत नवीन भाषेचे शब्द स्मरणशक्ती वाढवतात. स्वर्गीय विनोबा भावे यांना चौदाहून अधिक भाषा लिहिता वाचता येत होत्या. त्यांचे चरित्र वाचले तर असे लक्षात येईल की त्यांच्या शेवटच्या दिवसापर्यंत त्यांची स्मरणशक्ती तरतरीत होती.

५. एरोबिक व्यायाम करा. मेंदूच्या चलनवलनाचा सर्व भर प्राणवायू आणि शुद्ध रक्त यावर असतो. आपल्या अन्नातून मिळणाऱ्या उर्जेपैकी २५ टक्के उर्जा एकटा मेंदू खर्च करत असतो. यासाठी रोज एखादा एरोबिक व्यायाम करणे जरुरी आहे.

६. चित्रकला, विणकाम, यासारखा एखादा व्यायाम करा. दृष्टी आणि हात यांचा समन्वय राहावा म्हणून चित्रकला, विणकाम, यासारखा एखादा व्यायाम करावा. हे शक्य नसल्यास रोज एक शब्दकोडे सोडवा. त्यामुळे मोटर स्कील वाढीस लागते. पन्नाशी पुढच्या सर्वांनी हा व्यायाम नक्की करा.

७. स्वयंपाक करायला शिका. एखादी पाककृती करताना दृष्टी, गंध, चव या तिन्हीची गरज असते. म्हणजे स्वयंपाक करायला शिकलात, तर पाचपैकी चार इंद्रियं कामाला लागतात.

येणाऱ्या स्पर्धात्मक युगात जर टिकून राहायचे असेल तर हे मेंदूचे व्यायाम अत्यंत आवश्यक आहेत.

 

©️ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ कोसी- सतलज एक्सप्रेस -भाग-4 – डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधुरी ☆ अनुवाद – सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

? जीवनरंग ❤️

☆ कोसी- सतलज एक्सप्रेस -भाग-4 (भावानुवाद) – डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधुरी ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर ☆

(कथासूत्र :सौदा पक्का झाला, असं मी समजतो, असं म्हणून तो माणूस गर्दीत हरवून गेला…….)

कटिहारहून हॅरिसनगंजला रोज दोन गाड्या येतात. दिल्लीला जाणारी गाडी फलाटाला लागताक्षणी लोकांनी एकच गर्दी केली. काही जणांच्या डोक्यावर संसाराच्या चीजवस्तूंची गाठोडी आहेत. काही जण,आपल्याकडे होतं -नव्हतं ते सगळं पत्र्याच्या  ट्रंकेत घालून,त्या ट्रंका डोक्यावर घेऊन  चालले आहेत.आपली वडिलोपार्जित घरं सोडून ते जीवनाच्या नव्या क्षेत्राच्या शोधात चालले आहेत. त्यात बरेचसे तरुण आणि मध्यमवयीन लोक आहेत. त्या गर्दीत काही म्हातारेही आहेत.फक्त थोडेच लोक सहपरिवार चालले आहेत. या मोहमयी आयुष्यात त्यांना एकत्रच पोहायचं आहे. बोटी उलटल्याच, तर सगळ्यांनी बरोबरच बुडून मरूया, असं त्यांना वाटतं. जीवन वा मरण – याला एकत्र राहूनच तोंड द्यायचं आहे.

वाल्मिकी ऋषींनी रामवनवासाविषयी लिहिलं. महाभारतासारख्या महाकाव्याचे कवी वेदव्यास यांनी पांडवांच्या वनवासाची गाथा लिहिली. पण या हजारो दुःखी माणसांच्या हद्दपारीविषयी कोण लिहिणार? एवढी आग, एवढे अश्रू पेलायची ताकद कोणाच्या लेखणीत आहे?

‘बा, आपण जाऊन तायडीला घेऊन येऊ या.’ बापाच्या घामेजलेल्या पाठीला मुरली चेहरा पुसतो.

‘ही गाडीपण सुटेल. ते जेवणाची पाकिटं घेऊन कधी येणार कोणास ठाऊक!’ माधोच्या पोटात कावळे कोकलताहेत. तो उतावीळपणे बापाच्या सदऱ्याच्या बाहीला हिसका देतो.

‘ते जीप नायतर ट्रकमधून येणार. गाडीतून नाही.’ मोठा मुरली धाकट्या भावाला दिलासा द्यायचा प्रयत्न करतो.

बिरोजा उठतो. तिघेही कालव्याकडे जायला निघतात. इकडे असणाऱ्या दहांपैकी नऊ लोक सद्या तिथेच राहत आहेत.

जनकदुलारी सगळ्यात धाकट्या भावाच्या -छोटूच्या -डोळ्यांच्या खालच्या कडेला काजळ लावत आहे. या तिघांना येताना बघताक्षणीच ती त्यांच्याकडे धावते. भावांच्या कानात कुजबुजत ती विचारते,’मला वाटतं, आज ते तिकडे वाटणार आहेत. हो ना?’

‘म्हणूनच आम्ही आलो आहोत. चल. लवकर चल.’

मुरली आणि माधो लहान असले, तरी त्यांना चांगलंच ठाऊक आहे – फलाटावर खिचडी वाटणार आहेत, याचा सुगावा इतर कोणालाही लागता कामा नये. ही बातमी फुटली, तर यांचंच नुकसान होणार. त्यामुळे इकडे येतानाच बिरोजा त्यांना पुन्हापुन्हा   आठवण करून देत होता, ‘कोणालाही काहीही सांगू नका.’ त्यामुळे जरी त्यांची तोंडं बंद असली, तरी ही सुखद अपेक्षा त्यांच्या डोळ्यांत काठोकाठ भरली आहे. आणि त्यांची बहीण ती पटकन ओळखते.

‘माय , छोटूला घे.’ जनकदुलारी भावाला आईच्या मांडीवर ठेवते आणि ‘आम्ही लगेचच परत येतो’ असं सांगून त्यांच्याबरोबर निघते.

ती चौघं स्टेशनवर येतात, त्यापूर्वीच  मदतीच्या सामानाचा ट्रक येऊन पोहोचलेला असतो. इतरांपूर्वी, थोडासा का होईना, पण आपला वाटा मिळावा, म्हणून स्त्री-पुरुष रेटारेटी करत असतात. झोंबाझोंबी, शिवीगाळ, मारामारी चालूच आहे. असाहाय्यता आणि भूक यापुढे  माणुसकी थिटी पडते आहे.

कोणालाच धीर धरवत नाही. ते थाळीतून खायला सुरुवात करतात. मुरली म्हणतो,’माय , आजा , आजीसाठी काहीतरी नेऊया.’

‘हो.’ बिरोजा म्हणतो. पण तो उठायच्या आतच त्याला पुन्हा त्याच्या खांद्यावर पकड जाणवते. तो माणूस त्याच्या मागेच उभा असतो. तो डोळे मिचकावून बिरोजाला इशारा देतो. बिरोजा थाळी माधोकडे सरकवतो आणि त्या माणसाच्या पाठोपाठ जातो. तो माणूस फलाटाच्या टोकापर्यंत जातो. बिरोजा भारलेल्या सापासारखा त्याच्या मागून जातो.

‘यार, बघ. ही कोसी सतलज एक्सप्रेस कोणत्याही क्षणी सुटेल.हे ठेव. साडेचार हजार आहेत. काळजी करू नकोस.नंतर तू तुझ्या मुलीला कधीही भेटू शकतोस.’ तो माणूस बिरोजाच्या हातात एक गठ्ठा द्यायला जातो. बिरोजा हात मागे घेतो.

‘नको नको. भलतंच काहीतरी काय बोलतोयस? मी -मी नाही घेणार हे.’ बिरोजा गोंधळला आहे. त्याच्या आवाजात दम नाही. एवढे पैसे!एकगठ्ठा!देवानेच धाडल्यासारखे. भगवंता !वाचव मला.

‘चल.ठेव हे. बघ, विचार कर. एवढ्या पैशात तुझ्या कुटुंबाला किती दिवस रोजचं चारीठाव जेवण देऊ शकशील!अरे बाबा, भरल्या पोटावर ढेकर कसा येतो, ते तरी आठवतंय का तुला?’ तो माणूस बिरोजाचा हात पकडतो आणि त्यात जबरदस्तीने पैसे कोंबतो.

क्रमश: ….

 मूळ इंग्रजी कथा – ‘कोसी- सतलज एक्सप्रेस’ मूळ लेखक – डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधुरी 

अनुवाद : सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

संपर्क –  1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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