श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कभी बनी ममता की मूरत”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 119 ☆

☆ कविता – कभी बनी ममता की मूरत 

कर्तव्यों का बोझ उठाती

संसार की हर एक नारी

नए वंश को जन्म देकर

बनी हुई सृष्टि पर लाचारी

 

कभी बनी ममता की मूरत

आंचल लिए स्नेह का गागर

कभी धरी देवी की सूरत

डुबाई गई नदिया सागर

 

भोर से उठकर करती काम

सब रिश्तो का संभाले भार

रख सांझ दीपक तुलसी चौरा

कहती सबको देना तार

 

सबका पेट भरती रहती

अन्नपूर्णा का रूप संभाले

करती रहती सबकी चाकरी

वफादारी का बोझ उठा ले

 

दिन-रात वो सेवा करती

पराया घर अपना बनाती

फिर भी मनुज नहीं थका

बेचारी अबला नार कहाती

 

अगर मिले थोड़ा सा मान

बनती नहीं वह पाषाण

दुख दर्द सारे भूल जाती

बिगड़ी बात बनाती आसान

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments