हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 32 – आओ कविता-कविता खेलें….☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी द्वारा रचित एक व्यंग्यात्मक कविता  “आओ कविता-कविता खेलें….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 32☆

☆ आओ कविता-कविता खेलें…. ☆  

 

आओ कविता-कविता खेलें

मन से या फिर बेमन से ही

एक, दूसरे को हम झेलें।

 

गीत गज़ल नवगीत हाइकु

दोहे, कुण्डलिया, चौपाई

जनक छन्द, तांका-बांका

माहिया,शेर मुक्तक, रुबाई,

 

लय,यति-गति,मात्रा प्रवाह संग

वर्ण गणों के कई झमेले। आओ कविता….

 

छंदबद्ध कुछ, छंदहीन सी

मुक्तछंद की कुछ कविताएं

समकालीन कलम के तेवर

समझें कुछ, कुछ समझ न पाएं

 

आभासी दुनियां में, सभी गुरु हैं

नहीं कोई है चेले। आओ कविता……..

 

वाह-वाह करते-करते अब

दिल से आह निकल जाती है

इसकी उधर, उधर से इसकी

कॉपी पेस्ट चली आती है,

 

रोज समूहों से मोबाइल

सम्मानों के खोले थैले। आओ कविता….

 

उन्मादी कवितायें, प्रेमगीत

कुछ हम भी सीख लिए हैं

मंचों पर पढ़ने के मंतर

मनमंदिर में टीप लिए हैं,

 

साथी कई और भी हैं इस

मेले में हम नहीं अकेले।  आओ कविता….

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ठूँठ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – ठूँठ

हर ठूँठ

उगा सकता है

हरी टहनियाँ

अबोध अंकुर

खिलखिलाती कोंपले

और रंग-बिरंगे फूल,

चहचहा सकें जिस पर

पंछियों के झुंड..,

बस चाहिए उसे

थोड़ी सी खाद

थोड़ा सा पानी

और ढेर सारा प्यार,

कुछ यूँ ही-

हर आदमी चाहता है

पीठ पर हाथ

माथा सहलाती अंगुलियाँ

स्नेह से स्निग्ध आँखें

और हौसला बढ़ाते शब्द,

अपनी-अपनी भूमिका है,

तुम सब जुटे रहो

ठूँठों को हरा करने की मुहिम में

और मैं कोशिश करूँगा

कोई कभी ठूँठ हो ही नहीं!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 13 – हिन्द स्वराज से (गांधी जी और शिक्षा) ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “हिन्द स्वराज से  (गांधी जी और शिक्षा)”.)

☆ गांधी चर्चा # 13 – हिन्द स्वराज से  (गांधी जी और शिक्षा) ☆

अंग्रेजी  के शिक्षण पर : करोड़ो लोगों को अंग्रेजी की शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी। उसने इसी इरादे से अपनी योजना बनाई थी, ऐसा मैं नहीं सुझाना चाहता। लेकिन उसके काम का नतीजा यही निकला। हम जब एक दुसरे को पत्र लिखते हैं तब गलत अंग्रेजी में लिखते हैं। अंग्रेजी शिक्षा से दंभ, राग, जुल्म वगैरा बढे हैं। अंग्रेजी शिक्षा पाए हुए लोगों ने प्रजा को ठगने में, उसे परेशान करने में कुछ उठा नहीं रखा। यह क्या कम जुल्म की बात है कि अपने देश में अगर मुझे इन्साफ पाना हो तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना चाहिए। यह कुछ कम दंभ है? यह गुलामी की हद नहीं तो और क्या है? हिन्दुस्तान को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग ही हैं।

लेकिन अंग्रेजी शिक्षा जरूरी भी है इसे सिद्ध करने के लिए गांधीजी कहते हैं कि : हम सभ्यता के रोग में ऐसे फंस गए हैं कि अंग्रेजी शिक्षा बिलकुल लिए बिना अपना काम चला सकें ऐसा समय अब नहीं रहा। जिसने वह शिक्षा पायी है,वह उसका अच्छा उपयोग करे। जो लोग अंग्रेजी पढ़े हुए हैं उनकी संतानों को पहले तो नीति सिखानी चाहिए,उनकी मातृभाषा सिखानी चाहिए। बालक जब पुख्ता (पक्की) उम्र के हो जाएँ तब भले ही वे अंग्रेजी शिक्षा पायें, और वह भी उसे मिटाने के इरादे से, न कि उसके जरिये पैसे कमाने के इरादे से। ऐसा करते हुए हमें यह भी सोचना होगा कि हमें अंग्रेजी में क्या सीखना चाहिए और क्या नहीं सीखना चाहिए। कौन से शास्त्र पढने चाहिए, यह भी हमें सोचना होगा।

प्रश्न: तब कैसी शिक्षा दी जाए

उत्तर: मुझे तो लगता है कि हमें अपनी सभी भाषाओं को उज्जवल शानदार बनाना चाहिए। हमें अपनी भाषा में ही शिक्षा लेनी चाहिए – इसके क्या मानी हैं, इसे ज्यादा समझाने का यह स्थान नहीं है। जो अंग्रेजी पुस्तकें काम की हैं उनका हमें अपनी भाषाओं में अनुवाद करना होगा। बहुत से शास्त्र सीखने का दंभ और वहम हमें छोड़ना होगा। सबसे पहले तो धर्म की शिक्षा या नीति की शिक्षा दी जानी चाहिए। हरेक पढ़े लिखे हिन्दुस्तानी को अपनी भाषा का, हिन्दू को संस्कृत का, मुसलमान को अरबी का और पारसियों को फारसी का और सबको हिन्दी का ज्ञान होना चाहिए। कुछ हिन्दुओं को अरबी और कुछ मुसलमानों और पारसियों को संस्कृत सीखनी चाहिए। उत्तरी और पश्चिमी हिन्दुस्तान के लोगों को तमिल सीखनी चाहिए। सारे हिन्दुस्तान के लिए जो भाषा होनी चाहिए, वह तो हिन्दी ही होनी चाहिए। उसे उर्दू या नागरी लिपि में लिखने की छूट रहनी चाहिए। हिन्दू-मुसलमान के सम्बन्ध ठीक रहें, इसलिये बहुत से हिन्दुस्तानियों का इन दोनों लिपियों को जाँ लेना जरूरी है। ऐसा होने से हम आपस के व्यवहार में अंग्रेजी निकाल सकेंगे।

प्रश्न: जो धर्म की शिक्षा की बात कही वह बड़ी कठिन है।

उत्तर : फिर भी उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। हिन्दुस्तान कभी नास्तिक नहीं बनेगा। हिन्दुस्तान की भूमि में नास्तिक फल फूल नहीं सकते। बेशक, यह काम मुश्किल है। धर्म की शिक्षा का ख्याल करते ही सिर चकराने लगता है। धर्म के आचार्य दम्भी और स्वार्थी मालूम होते हैं। उनके पास पहुँचकर हमें नम्र भाव से समझाना होगा। उसकी कुंजी मुल्लों, दस्तूरों और ब्राह्मणों के हाथ है। लेकिन अगर उसमे सद्बुद्धि पैदा न हो, तो अंग्रेजी शिक्षा के कारण हममें जो जोश पैदा हुआ है, उसका उपयोग करके हम लोगों  को नीति की शिक्षा दे सकते हैं। यह कोई मुश्किल बात नहीं है। हिन्दुस्तानी सागर के किनारे ही मैल जमा है । उस मैल से जो गंदे हो गए हैं उन्हें साफ़ होना है। हम लोग ऐसे ही हैं और खुद ही बहुत कुछ साफ हो सकते हैं। मेरी यह टीका करोड़ों लोगों के बारे में नहीं है। हिन्दुस्तान को असली रास्ते पर लाने के लिए हमें ही असली रास्ते पर आना होगा। बाकी करोड़ों लोग तो असली रास्ते पर ही हैं। उसमे सुधार, बिगाड़, उन्नति, अवनति समय के अनुसार होते रहेंगे। पश्चिम की सभ्यता को निकाल बाहर करने की हमें कोशिश करनी चाहिए। दूसरा सब अपने आप ठीक हो जाएगा।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ तो सारी दुनियाँ हो एक इकाई ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(प्रस्तुत है  हमारे आदर्श  गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा वसुधैव कुटुम्बकम  के सिद्धांत पर आधारित कविता  ‘तो सारी दुनियाँ हो एक इकाई‘। ) 

 

 ☆ तो सारी दुनियाँ हो एक इकाई ☆ 

 

प्रभात किरणें हटा अँधेरा क्षितिज पै आ मुस्कुरा रही हैं

प्रगति की चिड़िया हरेक कोने में बाग के चहचहा रहीं है।

मगर अजब हाल है जिंदगी का, कि पाके सब कुछ विपन्नता है-

भरे हुये वैभव में भी घर में, झलकती मन की ही  खिन्नता है ।।1।।

 

बढ़े तो आवागमन के साधन, घटी भी दुनियाँ की दूरियाँ हैं-

कठिन बहुत पर है कुछ भी पाना, बढ़ी कई मजबूरियाँ हैं

सिकुड़ के दुनियाँ हुई है छोटी, मगर है मैला हरेक कोना-

रहा मनुज छू तो आसमाँ को, विचारों में पर अभी भी बौना ।।2।।

 

सराहना कम है सद्गुणों की, पसरती ही दिखती है बुराई

कमी है सहयोग की भावना की, अधिक है मतभेद तथा लड़ाई ।

दुखी है मानव, मनुष्य से ही, मनुष्य ही उसका है भारी  दुश्मन,

अधर में छाई है मधुर मुस्कान पै विष छुपाये हुये ही है मन ।।3।।

 

सरल और  सीधे हैं दिखते आहत, जो चाहते ममता प्यार मल्हम

विचारना है मनुष्यता को कि उनके दुख दर्द  सब कैसे हों कम

अगर सही सोच की सर्जना हो, तो इस धरा पै सुख- शान्ति आये

समाज में यदि हो संवेदना तो यही धरा स्वर्ग का रूप पायें ।।4।।

 

बदलनी होगी प्रवृत्ति मन की, मिटाने होंगे सब शस्त्र और बम

न हो कहीं भी जो ‘‘तू-तू – मैं-मैं‘‘ सभी का नारा हो एक हैं हम

कहीं न मन में हो भेद कोई तो न कहीं भी हो कोई लड़ाई

मिटेंगे सारी बनाई सीमायें, हो सारी दुनिया बस एक इकाई ।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 34 – ग़ज़ल ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी अतिसुन्दर  “ग़ज़ल .  सुश्री प्रभा जी की  ग़ज़ल वास्तव में जीवन दर्शन है। यह तय है कि हम अकेले हैं और अकेले ही जायेंगे। यही जीवन है। इस सम्पूर्ण जीवन यात्रा का सार उनकी ग़ज़ल की अंतिम पंक्ति में समाया लगता है। यदि किसी को ईश्वर मन है तो उसे ईश्वर ही मानो क्योंकि वह पत्थर हो ही नहीं सकता। अर्थात यह विश्वास की पराकाष्ठा है।  फिर इस जीवन यात्रा में  एक स्त्री का जीवन तब  भी परिवर्तित होता है जब वह अपना घर छोड़ कर नए घर को अपना घर बना लेती है। ऐसी परिकल्पना सुश्री प्रभा जी ही कर सकती हैं ।इस अतिसुन्दर गजल के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। 

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 34 ☆

☆ गझल  ☆ 

 

एकटी जाणार आहे,कोणता वावर नसो

तो जिव्हारी  लागणारा, जीवघेणा  स्वर नसो

 

तू दिलेले सर्व काही सोडुनी आले इथे

कोंडुनी जे मारते ते दुष्टसे सासर नसो

 

शांत वाटे या घडीला , मी इथे आनंदले

धूळ होणे ठरविले , ते  देखणे  अंबर नसो

 

मी कशी स्वप्ने उद्याची रंगवू वा-यावरी ?

वास्तवाचे प्रश्न मोठे त्या भले उत्तर  नसो

 

ही कशाने तृप्तता आली मला या जीवनी

सुख  असो वा दुःख आता त्यामधे अंतर नसो

 

कोणत्याही वादळाची शक्यता टाळू नको

जे मिळे ते युग सुखाचे त्यास मन्वंतर नसो

 

आपल्या ही आतला आवाज  आहे सांगतो

देव ज्याला मानले तो नेमका पत्थर नसो

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ श्री गणेश जयंती विशेष – मोरया रे ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज  प्रस्तुत है श्री गणेश जयंती पर विशेष कविता / गीत   “ मोरया रे।)

☆ श्री गणेश जयंती विशेष – मोरया रे☆

 

मोरया रे मोरया रे बाप्पा मोरया रे

चमक तुझ्या बुद्धीची जणू सूर्या रे ॥ध्रु॥

 

आदि शक्ती आदि भक्ती सर्व कार्या रे

रिद्धी आणि सिद्धी दोन्ही तुझ्या भार्या रे ॥1॥

 

किती खाशी मोदक, मस्तकी दुर्वा रे

लंबोदरामधे तुझ्या जणू दर्या रे ॥2॥

 

धाव घेशी सज्जनांच्या शुभ कार्या रे

दुर्जनांचा वाजवशी तूच बोर्‍या रे ॥3॥

 

लोभस वाटे मजला तुझी चर्या रे

माताही लाभली तुला एक आर्या रे ॥4॥

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है  मराठी गीत श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू । )

 ☆  श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू ☆

(भावगीत)

एकदंत तू ,वरद विनायक, वंदन हे स्वीकार

कार्यारंभी करतो पूजन तुझाच जय जय कार .

 

तिलकुंदाचे केले लाडू, गुंफीयेला जास्वंदीचा हार

दुर्वादल ते लक्ष अर्पिले , देवा  आळवीत ओंकार.

 

सहस्त्र रूपे ,तुझी दयाळा ,  सृजनशील दरबार

माघ चतुर्थी ,जन्मोत्सव हा, शोभे निर्गुण निराकार.

 

गाणपत्य तू ,बुद्धी दाता, करीशी चराचरी संचार

कृपा असावी आम्हावरती ,  कर जीवन हे साकार .

 

अक्षर अक्षर दैवी देणे, मूर्त शारदा शब्दाकार

गणराया तू, ईश गुणांचा, देवा कलागुण स्वीकार .

 

तुला पूजिले, देहमंदिरी , देना  जीवनाला आधार

जन्मा आला, जगत नियंता ,देवा शब्दपुष्प स्वीकार .

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 10 ☆ कविता – संस्कार ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता  “संस्कार।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 10 ☆

☆ संस्कार ☆

 

कल जहाँ   से   चली   थी   वहाँ  आई  है

उसकी  किस्मत  कहाँ   से  कहाँ  लाई  है

 

ये    जरूरी   नहीं     रक्त   संबंधी   हों

जो   हिफाजत   करे  वो  मिरा  भाई  है

 

कैसी  बेसुध  हुई   आज   तरुणाईयाँ

देख  लज्जा  जिन्हें आज  सकुचाई है

 

जिसके कंधों पे है भार दुनिया का वो

हाँ वो  पीढ़ी  स्वयं  आज  अलसाई है

 

अब  हे  ईश्वर   बचा   संस्कारों को  तू

वरना निश्चित प्रलय की ही अगुआई है

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – ☆ आइये सीखें – हास्य योग कैसे करें? – Video #4 ☆ – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ आइये सीखें – हास्य योग कैसे करें? ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #4

हास्य-योग करने की शुद्ध विधि इस विडियो में सुन्दर व सरल ढंग से समझायी गयी है. इसे देखकर आप सही ढंग से हास्य-योग करना सीख सकते  हैं और सिखा सकते हैं.

How to do Laughter Yoga? (Tutorial in Hindi)

This video explains in a simple and beautiful manner how to do Laughter Yoga in the correct manner. After watching this video, you can learn and teach the four basic steps of Laughter Yoga.

हास्य-योग करने की शुद्ध विधि इस विडियो में सुन्दर व सरल ढंग से समझायी गयी है. इसे देखकर आप सही ढंग से हास्य-योग करना सीख सकते हैं और सिखा सकते हैं. हास्य-योग के चार चरणों को इस विडियो में समझाया गया है. ये चार चरण हैं:

१. ताली बजाना
२. गहरी सांस
३. बच्चों की तरह मस्ती
४. हास्य व्यायाम

This video explains in a simple and beautiful manner how to do Laughter Yoga in the correct manner. After watching this video, you can learn and teach the four basic steps of Laughter Yoga.

The four steps of Laughter Yoga are:

1. Clapping and chanting
2. Deep breathing
3. Child like playfulness
4. Laughter Exercises

हास्य-योग बिना किसी कारण हंसी और प्राणायाम का मिश्रण है. कोई भी बिना चुटकुलों के, यहाँ सिर्फ हास्य व्यायामों के माध्यम से देर तक लगातार हंस सकते हैं. बच्चों की तरह मस्ती और नज़रें मिलने से हंसी वास्तविक हंसी में परिवर्तित हो जाती है और एक-दूसरे की देखा-देखी सब खुलकर हंसने लगते हैं.

Laughter Yoga is a unique concept of prolonged voluntary laughter created by an Indian physician Dr Madan Kataria in the year 1995 in Mumbai. We begin laughter as an exercise and it soon becomes contagious by eye contact and childlike playfulness.

(This video is excerpted from 2-day Certified Laughter Yoga Leader training conducted in Indore on the 10th and 11th of July 2015 by Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht, Certified Laughter Yoga Master Trainers and assisted by Sai Kumar Mudaliar, Certified Laughter Yoga Teacher.)

आभार:
श्री राम किशन जी, मन पसंद पार्क लाफ्टर क्लब, इंदौर
Grateful Thanks:
Shri Ram Kishan ji, Man Pasand Laughter Club, Indore.
For providing us the video clips and permission to use them for the benefit of all.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्‌ ।

असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।3।।

अजर अमर परमात्मा हॅू जिसे मैं देता ज्ञान

वह ज्ञानी संसार में है निष्पाप महान।।3।।

भावार्थ :  जो मुझको अजन्मा अर्थात्‌ वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान्‌ ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान्‌ पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।।3।।

He who knows Me as unborn and beginningless, as the great Lord of the worlds, he, among mortals, is undeluded; he is liberated from all sins. ।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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