हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव वर्ष विशेष – स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की नव वर्ष पर कविता  ‘स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा‘। ) 

 

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा जन-जन को हर्षाने वाले

जग के कोने कोने में हे! मधु मुस्काने लाने वाले।

उषा की उज्जवल शुभ किरणें तुम सारे जग में फैलाओ-

खुशियाँ पायें वे सब निर्बल जो हैं दुख में रहने वाले ।।1।।

 

ऐसा वातावरण बनाओ जिससे हो घर-घर खुशहाली

जहाँ उदासी पलती आई वहाँ पर भी आये जीवन लाली।

उपजे मन में सदाचार सद्भाव प्रेम की शुभ इच्छायें-

कहीं कोई मन प्रेम शांति सुख खुशियों से अब रहे न खाली ।।2।।

 

प्रगति सभी को सदा साथ दे, कहीं कोई न हो कठिनाई

सुख-दुख की घड़ियों में सारे  लोग रहें ज्यों भाई-भाई।

अधिकारों के साथ सभी को कर्तव्यों का बोध सदा हो-

निष्ठा और विश्वास आपसी सबके हित नित हो सुखदायी ।।3।।

 

कर्म- धर्म की रीति नीति से भूले भटके जो रहवासी

सही राह पर चल सकने को वे बन जायें उचित विश्वासी।

ऐसा करो प्रयास कि दुनियाँ फुलवारी  सी हो सुखकारी-

कभी विफल हो न निराश हो कर्म मार्ग का कोई प्रत्याशी ।।4।।

 

सबके हित मंगलकारी हो तन आगमन हे आने वाले!

समझदार हो हर एक मानव, नित अपना कर्तव्य संभाले ।।

 

प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव ’विदग्ध’, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव वर्ष विशेष – नव वर्ष पर एक नव गीत ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी   नव वर्षाभिनंदन पर  नवीन कविता     “नव वर्ष पर एक नव गीत। )

☆ नव वर्ष पर एक नव गीत

आज पर विमर्श लिखें…….

 

चलो, नया वर्ष लिखें

स्वागत – वन्दन करते

अभिनव चिंतन करते

प्रमुदित मन,हर्ष लिखें।

 

बीते से,  सीखें   हम

नये कुछ,सलीके हम

हो चुकी अगर भूलें

करें नहीं,उनका गम

नव प्रभात किरणों से

आज पर, विमर्श लिखें,

चलो, नया वर्ष ——–।

 

संक्रमणित हलचल का

कुटिल,कौरवी  दल का

देव – भूमि भारत में

अंश न बचे,छल, का,

राष्ट्र हितैषी मिल कर

विजयी, निष्कर्ष लिखें

चलो, नया वर्ष———।

 

समता के, भाव जगे

भेद – भाव, दूर, भगे

धर्म, जाति-भेद भूल

निश्छल मन, गले लगें,

अन्तर स्थित सब के

उस प्रभु का दर्श लिखें

चलो, नया वर्ष———।

 

संकल्पित हों,जन-जन

देश-प्रेम हित,  चिन्तन

करुणामय धर्म-ध्वजा

फहरे,जल-थल व गगन,

नव-विवेक, शुचिता से

मंगल उत्कर्ष लिखें

आज पर विमर्श लिखें—-।।

 

सुरेश कुशवाहा तन्मय

बी – 101, महानंदा ब्लॉक, विराशा हाइट्स, दानिशकुंज ब्रिज, कोलार रॉड भोपाल

मो. 9893266014

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कविता
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #28 ☆ नव वर्ष विशेष – कालगणना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 28 ☆

☆ कालगणना ☆

वर्ष बीता, गणना की हुई निर्धारित तारीखें बीतीं।  पुराना कैलेंडर अवसान के मुहाने पर खड़े दीये की लौ-सा फड़फड़ाने लगा, उसकी जगह लेने नया कैलेंडर इठलाने लगा।

वर्ष के अंतिम दिन उन संकल्पों को याद करो जो वर्ष के पहले दिन लिए थे। याद आते हैं..? यदि हाँ तो उन संकल्पों की पूर्ति की दिशा में कितनी यात्रा हुई? यदि नहीं तो कैलेंडर तो बदलोगे पर बदल कर हासिल क्या कर लोगे?

मनुष्य का अधिकांश जीवन संकल्प लेने और उसे विस्मृत कर देने का श्वेतपत्र है।

वस्तुतः जीवन के लक्ष्यों को छोटे-छोटे उप-लक्ष्यों में बाँटना चाहिए। प्रतिदिन सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले उस दिन का उप-लक्ष्य याद करो, पूर्ति की प्रक्रिया निर्धारित करो। रात को बिस्तर पर जाने से पहले उप-लक्ष्य पूर्ति का उत्सव मना सको तो दिन सफल है।

पर्वतारोही इसी तरह चरणबद्ध यात्रा कर बेसकैम्प से एवरेस्ट तक पहुँचते हैं।

शायर लिखता है- ‘शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पर जीते हैं कि मर जाते हैं।’

मरने से पहले वास्तविक जीना शुरू करना चाहिए। जब ऐसा होता है तो तारीखें, महीने, साल, कुल मिलाकर कैलेंडर ही बौना लगने लगता है और व्यक्ति का व्यक्तित्व सार्वकालिक होकर कालगणना से बड़ा हो जाता है।

उप-लक्ष्य के माध्यम से लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(30.12.16, प्रातः 8ः03)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

 

वर्ष बीता, गणना की हुई निर्धारित तारीखें बीतीं।  पुराना कैलेंडर अवसान के मुहाने पर खड़े दीये की लौ-सा फड़फड़ाने लगा, उसकी जगह लेने नया कैलेंडर इठलाने लगा।

वर्ष के अंतिम दिन उन संकल्पों को याद करो जो वर्ष के पहले दिन लिए थे। याद आते हैं..? यदि हाँ तो उन संकल्पों की पूर्ति की दिशा में कितनी यात्रा हुई? यदि नहीं तो कैलेंडर तो बदलोगे पर बदल कर हासिल क्या कर लोगे?

मनुष्य का अधिकांश जीवन संकल्प लेने और उसे विस्मृत कर देने का श्वेतपत्र है।

वस्तुतः जीवन के लक्ष्यों को छोटे-छोटे उप-लक्ष्यों में बाँटना चाहिए। प्रतिदिन सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले उस दिन का उप-लक्ष्य याद करो, पूर्ति की प्रक्रिया निर्धारित करो। रात को बिस्तर पर जाने से पहले उप-लक्ष्य पूर्ति का उत्सव मना सको तो दिन सफल है।

पर्वतारोही इसी तरह चरणबद्ध यात्रा कर बेसकैम्प से एवरेस्ट तक पहुँचते हैं।

शायर लिखता है- ‘शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पर जीते हैं कि मर जाते हैं।’

मरने से पहले वास्तविक जीना शुरू करना चाहिए। जब ऐसा होता है तो तारीखें, महीने, साल, कुल मिलाकर कैलेंडर ही बौना लगने लगता है और व्यक्ति का व्यक्तित्व सार्वकालिक होकर कालगणना से बड़ा हो जाता है।

-संजय भारद्वाज
[email protected]

(30.12.16, प्रातः 8ः03)

उप-लक्ष्य के माध्यम से लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव वर्ष विशेष – नव वर्ष ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

( सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  की नव वर्ष पर प्रस्तुत है एक कविता  नव वर्ष ।

☆ नव वर्ष  ☆ 

 

नव वर्ष की नयी उमंग ,

लायी है सूरज की पहली सुरमयी किरण ,

जो बीत गया उसे सँवारने ,

आयी है नयी सोच की लहर सलंग ,

हर पल जीना है उत्साह से ,

यही है इस नव वर्ष का प्रण ,

हर मददग़ार की मदद करना ,

यहीं पर हुआ है इस नयी सोच का उत्पन्न ,

साँझ जैसा ढल रहा है बीता साल ,

उगते सूरज सा है नए साल का आगमन ,

अपने- पराये सब भेदभाव छोड़ छाड़  के ,

करना है इस नयी लहर का स्वागतं ,

छोटो की भूल चूक करके माफ़ ,

बड़ो के आशीर्वाद से करना है साल का प्रारम्भ ,

“मुस्कान”  की तो यही है आशा ,

नव वर्ष हो सबके लिए अन्न-जल-धन से संपन्न ,

नव वर्ष की नयी उमंग ,

लायी है सूरज की पहली सुरमयी किरण . . .

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 30 – जन्म सोहळा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी अतिसुन्दर कविता  “जन्म सोहळा.  आखिर नव वर्ष का शुभारम्भ किसी जन्म उत्सव से कम तो नहीं है न ? 

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 30 ☆

☆ जन्म सोहळा ☆ 

 

वृत्त-आनंद कंद

गागाल गालगागा  गागाल गालगागा

 

आहेत चांदण्याचे माझ्या घरी पसारे

मोहात पाडती ते  शब्दातले इशारे

 

मी रंगले कधीची स्वप्नामधेच माझ्या

सा-या खुणा सुखाच्या आहेत नित्य ताज्या

 

मी वेगळीच आहे, जेव्हा मला कळाले

तेव्हाच दुःख माझे एका क्षणी जळाले

 

मी कोणत्या कुळाची,आले कुठून येथे

माझे मला कळेना ही वाट कोणती ते

 

मी मंत्रमुग्ध झाले पाहून त्या सुखाला

हातात येत गेले आकाश, मेघमाला

 

वर्षाव कौतुकाचा मी ओंजळीत घेता

आजन्म तृप्त झाले या सोहळ्यात आता

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ☆ नव वर्ष विशेष -आज ह्या इंग्रजी वर्षाचा शेवटचा दिवस… ☆ – सुश्री आरुशी दाते

सुश्री आरुशी दाते

( नव वर्ष की पूर्व संध्या पर  सुश्री आरूशी दाते जी  का  एक आलेख आज ह्या इंग्रजी वर्षाचा शेवटचा दिवस… )

 

☆ आज ह्या इंग्रजी वर्षाचा शेवटचा दिवस…  

 

ह्या वर्षी जीवनात अनेक चढ उतार पाहिले, भिन्न भिन्न लोकांना भेटले, काही लोकं सोडून गेले(का ते मला माहित नाही), काही नवीन लोक जोडले गेले, काही जुनेच लोक नव्याने समोर आले…

खूप सारे अनुभव गाठीशी आले, कोणी चिखलफेक केली तर कोणी कौतुकाची फुलं उधळली, खूप गोष्टी शिकायला मिळाल्या… मला माझा छंद जोपासता आला… अपेक्षित, अनपेक्षीत प्रसंगांना सामोरं जावं लागलं, कधी कधी पार खचून गेले, कधी कधी तब्येतीनं नाराजी व्यक्त केली…

हाती घेतलेली काही कामं सोडून द्यावी लागली, तर नवीन कामांची जबाबदारी खांद्यावर घ्यावी लागली… पण हा प्रवास कुठेही थांबला नाही… मानसिक, शारीरिक, भावनिक आणि आर्थिक बाजू सांभाळताना होणारी ससेहोलपट आठवली की अंगावर शहारा येतो… अनेक संकटे आली तरी, सुखाच्या क्षणांनी संकटांना तोंड देण्यासाठी पंखात बळ दिले…

ह्याच सुखाच्या क्षणांना सोबत घेऊन आणि हे सुखाचे क्षण माझ्या आयुष्यात आणणारे माझे पती, माझी मुलगी, सासरचे कुटुंबीय, माहेरचे कुटुंबीय, नातलग आणि जीवश्च कठश्च मित्र मैत्रिणी ह्यांच्या सोबतीने पुढील वर्षात पदार्पण करते…

तुम्हा सर्वांचे आभार मानते आणि तुमच्या ऋणात राहू दे हेच मागणे मागते…

आपणासर्वांना नवं वर्ष सुखाचे जावो हीच ईश्वरचरणी प्रार्थना !

 

लोभ असावा,

 

© आरुशी  दाते 

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ नव वर्ष विशेष – नव वर्ष पर ☆ श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

( नव वर्ष पर प्रस्तुत है श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव जी का विशेष आलेख “नव वर्ष पर”।)

☆ नव वर्ष पर ☆

नवल वर्ष का धवल दिवस यह,  राही तुमको मंगलमय हो

कीर्ति मान यश से परिपूरित, जीवन का आलोक अमर हो

नये साल के पहले दिन सूरज की पहली किरण हम सबके जीवन में, सारे विश्व के लिए शांति, सुरक्षा, प्रसन्नता, समृद्धि और उन्नति लेकर आये यही कामनायें हैं. यद्यपि चिंतन योग्य शाश्वत सच तो यह है कि सूरज तो हर दिन उसी ऊर्जा के साथ ऊगता है, दरअसल यह हम होते हैं जो किसी तारीख को अपने व्यवहार और कामो से स्वर्ण अक्षरो में अंकित कर देते हैं, या फिर उस पर कालिख पोत डालते हैं. ये स्वर्णाक्षरों में अंकित दिन या कालिमा लिये हुये तारीखें इतिहास के दस्तावेजी पृष्ठ बन कर रह जाते हैं.

नववर्ष का अर्थ होता है  कैलेंडर में साल का बदलाव. समय को हम सेकेण्डों, मिनटों, घंटों, दिनों, सप्ताहों, महीनों और सालों में गिनते हैं. वर्ष जिसकी तारीखो के साथ हमारी  जिंदगी चलती है.  जिसके हिसाब से हम त्यौहार मनाते हैं, कैलेण्डर उन तिथियो का हिसाब रखता है. प्रकृति और मौसम में बदलाव के साथ हमारा खान पान, पहनावा,रहन सहन  बदलता रहता है,प्रकृति सदा से बिना किसी कैलेण्डर के नियमित और व्यवस्थित परिवर्तन की अनुगामी रही है, वास्तविकता तो यह है कि प्रकृति स्वयं ही एक सुनिश्चित नैसर्गिक कैलेण्डर है.  प्रकृति और मौसम के इस बदलाव को कैलेंडर महीनो और तारीखो में  गिनता है.  बैंको में वित्तीय वर्ष अप्रैल से शुरू होता है, तो भारतीय पंचांग की अपनी तिथियां होती हैं. विश्व के अलग अलग हिस्सो में अलग अलग सभ्यताओ के अपने अपने कैलेंण्डर हैं पर ग्रेगेरियन कैलेण्डर को आज वैश्विक मान्यता मिल चुकी है,  और इसीलिये रात बारह बजते ही जैसे ही घड़ी की सुइयां नये साल की ओर आगे बढ़ती हैं दुनिया हर्ष और उल्लास से सराबोर हो जाती है, लोग खा पी कर, नाच गा कर अपनी खुशी को व्यक्त करते हैं . परस्पर शुभकामनाओ तथा उपहारो  का आदान प्रदान करके अपने मनोभावो को अभिव्यक्त करते हैं .  हर कोई अपने जानने वालों को बधाई देता है और आने वाले समय में उसके भले  और सफलता की कामना करता है, मैं भी आप सबके साथ पूरे विश्व के प्रत्येक प्राणी की भलाई की कामना में शामिल हूँ. ईश्वर करे कि हम सबकी शुभकामना पूरी हो और यह जो प्रकृति जिसे हम परमात्मा की छाया कहते हैं उसका स्वरूप और सुंदर बन पाए. सब प्राणी एक-दूसरे का भला मांगते हुए, भला करते हुए प्रगति पथ पर अग्रसर हों, यही  प्रार्थना है.

लेकिन इस सबके साथ ही नये साल का मौका  वह वक्त भी होता है जब हमें अपने आप  से एक साक्षात्कार करना चाहिये. अपने पिछले सालो के कामो का हिसाब खुद अपने आप से मांगना चाहिये.अपने जीवन के उद्देश्य तय करने चाहिये. क्या हम केवल खाने पीने के लिये जी रहे हैं या जीने के लिये खा पी रहे हैं ? हमें अपने लिये  नये लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये और उन पर अमल करने के लिये निश्चित कार्यक्रम बनाना चाहिये. स्व के साथ साथ  समाज के लिये सोचने और कुछ करने के संकल्प लेने चाहिये. अपना, और अपने बच्चो का हित चिंतन तो जानवर भी कर लेते हैं, यदि हम जानवरो से भिन्न सोचने समझने वाले  सामाजिक प्राणी हैं तो हमें अपने परिवेश के हित चिंतन के लिये भी कुछ करना ही चाहिये, अपने सुखद वर्तमान के लिये हम अपने पूर्वजो के अन्वेषणो और आविष्कारो के लिये  समाज के ॠणी हैं, अतः  समाज के प्रति हमारी भी जबाबदारी बनती है और नये साल पर जब हम आत्म चिंतन करें तो हमें सोचना  चाहिये  कि अपने क्रिया कलापों से किस तरह हम समाज के इस ॠण से मुक्त हो सकते हैं. हमें समझना चाहिये कि पाने के सुख से देने का सुख कहीं अधिक महत्वपूर्ण और दीर्घजीवी होता है.

आइये नये साल के इस पहले दिन हम ढ़ृड़ संकल्प करें कि हम आगामी समय में अपने बुरे व्यसन छोड़ेंगे. महिलाओ का सम्मान करेंगे. अपने कार्य व्यवहार से देश भक्ति का परिचय देंगे. अपने परिवेश में सवच्छता रखेंगे और आत्म उन्नति के साथ साथ अपने परिवेश की प्रगति में मददगार बनेंगे. भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में स्वयं का हर संभव योगदान देंगे. निहित स्वार्थों के लिये नियमो से समझौते नही करेंगे. मेरा विश्वास है कि यदि हम इन बिंदुओ पर मनन चिंतन कर इन्हें कार्य रूप में परिणित करेंगे तो अगले बरस जब हम नया साल मना रहे होंगे तब हमें अपनी आंखों में आँखें डालकर स्वयं से बातें करने में गर्व ही होगा. पुनः पुनः इन संकल्पों के सक्षम क्रियांवयन के लिये अशेष मंगलकामनायें.

 

श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव वर्ष विशेष – नव वर्ष का नव सोपान है ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  की  नव वर्ष 2020 पर एक कविता  नव वर्ष का नव सोपान है .) 

 

 

☆ नव वर्ष का नव सोपान है ☆ 

 

नव प्रात लिए, नव आस लिए

नव वर्ष का नव सोपान है

नव प्रीत लिए, नव भाव लिए

पुरातन का अवसान है ।

 

है बीता जो भी अशुभ उसे

रखना नहीं है स्मरण में

नव ऊर्जा धारण करना है और

नव उत्ताप भी नव जागरण में ।

 

हो मन में स्नेह का नव अंकुर

नव उच्छ्वास का मलय बहे

क्रोध, अहं, द्वेष, विराग छोड़

नर-नार जगत में सदय रहे ।

 

ज्ञान, चेतना, मति की धारा

नव श्रृंखला में प्रवाहित हो

नव उद्दोग से नव वर्ष में

जन-जन उन्नत, पुलकित हो ।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 28 – ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी के आयु के 71 वर्ष के शुभारंभ पर कविता   “साठोत्तरीय…….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 28☆

☆ साठोत्तरीय……. ☆  

 

इकहत्तर की वय में, वही चेतना, प्राण वही है

परिवर्तित मौसम में भी, मन में अरमान वही है।

 

है, उमंग – उत्साह, बदन  में  चाहे  दर्द  भरा  हो

पीड़ा की पगडंडी यदि, मंजिल का एक सिरा हो

पा लेंगे चलते – चलते, जो सोचा यहीं कहीं है.

परिवर्तित———-

 

आत्म शक्ति और  संकल्पों का, लेते हुए सहारा

आशाओं के बल पर, टिका हुआ विश्वास हमारा

शिथिल शिराएं हुई, किन्तु हम शक्तिहीन नहीं हैं

परिवर्तित———–

 

कई   तरंगे  रंग  बिरंगी, अन्दर   दबी  पड़ी  है

जग को कुछ नूतन देने को, तत्पर चाह खड़ी है

सब उतार दें कागज पर, जो अबतक नहीं कही है

परिवर्तित————

 

पाया जो जग से अब तक, लौटाने की है बारी

देखें  कर्ज चुकाने की, क्या की  हमने   तैयारी

सींचें उन्हें और, जिनसे जीवन रसधार बही है

परिवर्तित————

 

आदर्शों  की  लिखें  वसीयत  नवपीढ़ी के  नाम  करें

अबतक अपने लिए जिये, आगे कुछ ऐसे काम करें

नीर क्षीर हों पावन, जीने का ये मार्ग सही है

परिवर्तित————-

 

महकाएं  इस  मनमंदिर को, मुरझाने  से पहले

तन्मय हो निर्मल सरिता बन, अंतर्मन में बह लें

द्रष्टा बनें स्वयं के, बाहर के प्रपन्च सतही है

परिवर्तित मौसम में——

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 10 – हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ”.)

☆ गांधी चर्चा # 10 – हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ☆ 

गांधीजी दो बातें कहते हैं .हिन्दुस्तान से कारीगरी जो करीब-करीब ख़तम हो गयी, वह मैनचेस्टर का ही काम है और मशीनें यूरोप को उजाड़ने लगी हैं। निश्चय ही  गांधीजी के मन में यह विचार युरोप की औद्योगिक क्रांति के, जो अठारहवीं सदी के अंत व उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में हुई थी और इसने सारे यूरोप को प्रभावित किया था, दुष्परिणामों को देखते हुए आया होगा। आरंभ में यह क्रान्ति वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण से हुई,  और फिर तरह तरह की मशीनों की खोज हुई। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने भाप  की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु  से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी युरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी।कच्चे माल को पाने के लिए यूरोप ने सारे विश्व में अपने उपनिवेश बनाए जो इन देशों की गुलामी का कारण बने। मशीनों ने उत्पादन बढ़ाया तो माल की खपत इन्ही उपनिवेश देशों में हुई फलत वहाँ के लघु उद्योग चौपट हो गये, माल बेचने से प्राप्त धन यूरोप मे अमीरी और औपनवेशिक देशों में गरीबी का कारण बना।औद्योगिक क्रान्ति के कारण आपसी मानवीय सम्बन्ध खराब हुए और नैतिक मूल्यों में गिरावट आई। गांधीजी जब यंत्रों का विरोध करते हैं तो वे तत्कालीन भारत की इन्ही कठनाइयों के परिप्रेक्ष्य में यह बात करते हैं।  जब गांधीजी कहते हैं कि गरीब हिन्दुस्तान तो गुलामी से छूट सकेगा, लेकिन अनीति से पैसेवाला बना हुआ हिन्दुस्तान गुलामी से कभी नहीं छूटेगा तो मुझे देश के वर्तमान हालात दीखते हैं। भारत के औद्योगिक व व्यवसायिक घरानों ने, राजनीतिज्ञों व सरकारी अफसरों से गठजोड़ कर अनीतिपूर्वक जो धन कमाया है अंतत: उसकी परिणीती कालेधन में हुई है। इस काले धन ने सारे सिस्टम को तहस नहस कर दिया है, भ्रष्टाचार के फलने फूलने में इसी औद्योगिकरण का हाँथ है,    नोटबंदी जैसे प्रयास भी हमें इसके दुष्चक्र से मुक्ति नहीं दिला पाए हैं, आयकर विभाग, ईडी आदि लाख छापे मारें पर कभी कभार ही सफल होते दिखाई पढ़ते हैं। यही नैतिक पतन है जिसे गांधीजी ने एक सौ दस वर्ष पूर्व ही महसूस कर लिया था, और हमें चेताने की कोशिश की थी। उनकी चेतावनी का यह अर्थ कदापि न था कि हम यंत्रीकरण न करे उद्योगों की स्थापना न करे। वे तो बस इसके उचित बढ़ावे के पक्षधर थे। मशीनीकरण के अन्धानुकरण ने हमारे स्वास्थ को प्रभावित किया है। इससे भला कौन इनकार कर सकता है। हमने पैदल चलना और श्रम करना तो लगभग छोड़ ही दिया है। हमारे बच्चे इतने आलसी हो गए हैं कि वे सौ कदम भी नहीं चलना चाहते। उन्हें नजदीक के स्थान जाने के लिए भी वाहन चाहिए।  यही हमारे गिरते हुए स्वास्थ का कारण है।जब गान्धीजी यह कहते हैं कि  मैनचेस्टर के कपडे के बजाय हिन्दुस्तान की मिलों को प्रोत्साहन देकर भी हम अपनी जरूरत का कपड़ा हमें अपने देश में ही पैदा कर लेना चाहिए तब वे स्वदेश में मशीनों व यंत्रो के उपयोग के पक्षधर दिखाई देते हैं। वे चाहते हैं कि हम बजाय विदेशी माल खरीदने के देश में ही यंत्रो का प्रयोग कर अपनी जरूरतों के मुताबिक़ उत्पादन करें।गांधीजी जब कहते हैं कि  समय और श्रम की बचत तो मैं भी चाहता हूँ, पर वह किसी ख़ास वर्ग की नहीं बल्कि सारी मानव जाति की होनी चाहिए तो वे मशीनों व यंत्रों के उपयोग के समर्थन की बात करते हैं व उसका उपयोग मानव कल्याण के लिए करना चाहते हैं। गांधीजी बार बार कहते हैं कि  यंत्रों की खोज और विज्ञान लोभ के साधन नहीं रहने चाहिए, मजदूरों से उनकी ताकत से ज्यादा काम नहीं लिया जाना चाहिए और यंत्र रुकावट बनने के बजाय मददगार होने चाहिए। जब वे कहते हैं कि  ‘मेरा उद्देश्य तमाम यंत्रों का नाश करने का नहीं है, बल्कि उनकी हद बाँधने का है‘। वे तो कहते हैं कि ऐसे यंत्र नहीं होने चाहिए, जो काम न रहने के कारण आदमी के अंगों को जड़ और बेकार बना दें।इन बातों को अगर हम ध्यान से सोचे तो पायेंगे कि  वे यंत्रों के विरोधी नहीं हैं ।

यंत्रों का उपयोग मानव कल्याण के लिए हो ऐसी गान्धीजी  की भावना का पता हमें उनके इस कथन  से चलता है: “हाँ, लेकिन मैं इतना कहने की हद तक समाजवादी तो हूँ ही कि ऐसे कारखानों का मालिक राष्ट्र हो या जनता की सरकार की ओर से ऐसे कारखाने चलाये जाएँ। उनकी हस्ती नफे के लिए नहीं, बल्कि लोगों के भले के लिए हो। लोभ की जगह प्रेम को कायम करने का उसका उद्देश्य हो। मैं तो चाहता हूँ कि मजदूरों की हालत में कुछ सुधार हो। धन के पीछे आज जो पागल दौड़ चल रही है वह रुकनी चाहिए। मजदूरों को सिर्फ अच्छी रोजी मिले, इतना ही बस नहीं है। उनसे हो सके ऐसा काम उन्हें रोज मिलना चाहिए। ऐसी हालत में यंत्र जितना सरकार को या उसके मालिक को लाभ पहुंचाएगा, उतना ही लाभ उसके चलाने वाले मजदूर को पहुंचाएगा। मेरी कल्पना में यंत्रों के बारे में जो कुछ अपवाद हैं,उनमे से एक यह है। सिंगर मशीन के पीछे प्रेम था,इसलिए मानव-सुख का विचार मुख्य था। उस यंत्र का उद्देश्य है कि मानव श्रम की बचत। उसका इस्तेमाल करने के पीछे मकसद धन के लोभ का नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रामाणिक रीति से दया का होना चाहिए। मसलन, टेढ़े तकुवे को सीधा बनाने वाले यंत्र का मैं बहुत स्वागत करूंगा। लेकिन लोहारों का तकुवे बनाने का काम ही ख़तम हो जाय, यह मेरा उद्देश्य नहीं हो सकता। जब तकुवा टेढा हो जाय तब हरेक कातने वाले के पास तकुवा सीधा कर लेने के लिए यंत्र हो, इतना ही मैं चाहता हूँ। इसलिए  लोभ की जगह हम प्रेम को दें। तब फिर सब अच्छा ही अच्छा होगा।”

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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