रक्षा बंधन विशेष
श्री मच्छिंद्र बापू भिसे
(रक्षा बंधन के विशेष पर्व पर प्रस्तुत है श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी अपनी बहनों के लिए रचित कविता “राखी की सौंधी सुगंध“। इस रचना के बारे श्री भिसे जी के ही शब्दों में
“मेरी सगी बहन तो नहीं है परंतु मेरी ५ चचेरी बहनों का बहुत प्यार मिला. अब वह तो सरुराल चली गई. कभी वह आती हैं तो कभी पतियाँ. परंतु राखी के पर्व पर भाई का इंतजार करना बहन के लिए सौगात से कम नहीं होता है. अपनी बहनों के इंतजार में रची यह रचना. आपको पसंद जरुर आएगी. यह संदेश मेरी उन सभी बहनाओं के लिए है जो अपने भाई से दूर तो है परंतु दिल के करीब…..” – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे)
? राखी की सौंधी सुगंध ?
मेरी प्यारी बहना,
एक ऐसी राखी जरुर ले आना,
बचपन की यादों की,
सौंधी सुगंध मुझको तू दे जाना.
राखी का उत्साह देखा था मैंने,
सुबह उठकर जल्दी माँ से
तोतले बोल रूपए माँगे थे तूने,
याद है आज भी मुझे,
राखी न दे पाई बेबस माँ,
सफ़ेद धागे को कुमकुम कर,
बांध दिया था हाथ पर तूने,
वो राखी का अनुबंद खो गया है कहीं,
वो वापस इस भाई के वास्ते जरुर ले आना
बचपन की …….
ढल गया बचपन यौवन हमारे द्वार खड़ा,
यह भाई ही लगता था एक आधार बड़ा,
अब माँ के पास नहीं था कोई बहाना,
राखी के दिन अब एक आँसू नहीं था बहाना,
लाई तू एक राखी मोर पंख से बनी,
नहीं था तेज उसपर था तेरे मुख पर,
देखा जब आरती की थाल जो बनी,
वो राखी के पंख और थाल आज लगती है सूनी
उजड़े सारे रंग उनके वो रंग वापस ले आना,
बचपन की ….
हाथ पीले कर एक दिन अपने गाँव तू चली,
राखी पर इंतजार में खड़ा मैं,
प्यार की अपनी वहीँ पुरानी गली,
शाम ढले तू न आई, आई बस एक पाति,
चूमा मैंने, सिर पर ले धरा चिपकाया छाती,
बहना का प्यार उमड़ आया ह्रदय में,
अठखेली देख यह पाति भी गीत है गाती,
‘भाई के प्यार में एक बहना आँसू है बहाती’,
बहना वहीँ पीली हथेली में तेरी मुस्कान ले आना,
बचपन की ….
जिम्मेदारियाँ आ गई तुझपर और,
मुझपर भी कुछ आए बंधन,
चाहे बहें मेरी आँखें याद से तेरी,
सिंचाई करना उससे तेरा जीवन हो नंदन,
राखी के दिन याद तू जरुर करेगी मुझको,
एक ही तो भाई है दिल सताएगा तुझको,
संभालकर रिश्तों की डोर दोनों घर की,
लाँघकर परिधि यादें और जज्बात से निकलकर,
वहीँ बचपन की प्यारी बहना जरुर तू ले आना,
बचपन की….
© मच्छिंद्र बापू भिसे
भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
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