योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga has made me a better human being ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga has made me a better human being ☆

Laughter Yoga has made me a better human being in many respects. I can now relate to people more warmly and add some joy to their lives. The hesitation has gone. I look forward to meeting and greeting people. The people also sense my inner warmth and respond smilingly. My inter-personal skills have improved tremendously.

As a person, I have matured and mellowed to a great extent. Just as Sachin Tendulkar seems to have all the time in the world to play his cricketing shots, I find more time to respond to a situation and the quality of response has certainly improved. All the stress and tension is gone. There is a feeling of tranquility and trust that things will go right. There are no worries and unnecessary apprehensions. I have gained the confidence that I can handle things smoothly. I feel more relaxed.

I find a greater meaning in my life. I add value and joy to the lives of scores of human beings with each sunrise and feel fulfilled in my heart as the sun sets. There is a mission to which I am devoted whole-heartedly and feel rewarded in my pursuit. It is a great experience touching the lives of young children and the elderly people. There can be nothing more satisfying.

In my journey of Laughter Yoga, I have come close to several people and institutions and realized that I can contribute a lot. I have become a more understanding and compassionate human being, inclined to acts that usher sunshine into dark areas. I am able to see more clearly what needs to be done for the under-privileged and find myself in a position to do something about it.

I am a trainer and facilitator at my workplace. Now, I can walk into any class and break the ice spontaneously. I can have heart-to-heart talks, full of intimacy, and impart lessons of authentic happiness in a subtle, yet effective, manner. I can lead any group to joyful singing, dancing, laughter and play whenever required to enhance their training experience. I have something in my armoury to give it to them which will have a lot of back-home utility in enriching their lives and the lives of their near and dear ones.

I spread the message of health, happiness and peace wherever I go. I make it a point to meet as many people as possible and laugh with them. I prefer to spend more and more quality time with human beings rather than indulging in fleeting, worldly pleasures. The entire focus of my life has shifted to contributing my bit for the good of human beings.

I have become more caring and loving for those around me. I communicate better, feel fearless and more effective. Laughter Yoga is gradually transforming me to a better and better human being everyday.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (71) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।

निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ।।71।।

 

सब इच्छायें त्याग नर जो निर्भय निर्भीक

अंहकार से रहित वह पाता शक्ति अलीक।।71।।

 

भावार्थ :   जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर ममतारहित, अहंकाररहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शांति को प्राप्त होता है अर्थात वह शान्ति को प्राप्त है।।71।।

 

The man attains peace, who, abandoning all desires, moves about without longing, without the sense of mine and without egoism. ।।71।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 33 – ☆ हमारे सम्माननीय साहित्यकार – सम्मान/अलंकरण ☆ – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 33                

? हमारे सम्माननीय साहित्यकार – सम्मान/अलंकरण ?

हमारे ई-अभिव्यक्ति संवाद में मैं आपको ई-अभिव्यक्ति परिवार से जुड़े कई सम्मानित साहित्यकार सदस्यों की विगत कुछ समय पूर्व प्राप्त उपलब्धियों के बारे में अवगत कराना चाहूँगा। जब हमारे परिवार के सदस्य गौरवान्वित होते हैं तो हमें भी गर्व भी का अनुभव होता।

नीलम सक्सेना चंद्रा –

नीलम सक्सेना चन्द्र जी को 1 मार्च 2019 को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सोहनलाल द्विवेदी सम्मान से नवाजा गया। यह उनकी किशोर/किशोरियों की कहानी की पुस्तक “दहलीज़” हेतु मिला। यह सम्मान माननीय विनोद तावड़े जी, केबिनेट मंत्री महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रदान किया गया।

56वीं पुस्तक Authorpress India द्वारा प्रकाशित काव्य  एक कदम रौशनी की ओर नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित बच्चों की चित्रकथा “कसम  मटमैले मशरूम की । इस चित्रकथा की 20,000 प्रतियाँ प्रकाशित

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ –

प्रसिद्ध साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कादंबरी, जबलपुर द्वारा “स्व. शिवनारायण पाठक सम्मान”। इसके अतिरिक्त आपको नई दुनिया के ‘जबलपुर साहित्य रत्न’ सहित अनेक स्थानीय, प्रादेशिक एवं राज्यस्तरीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त।  आपका काव्य संग्रह किसलय के काव्य सुमन एवं दोहा संग्रह किसलय मन अनुराग काफी चर्चित रहे हैं।

 

सुश्री मीनाक्षी भालेराव, पृथा फ़ाउंडेशन, पुणे –

सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी को ‘इंस्पायर: बियॉन्ड मदरहुड’ अवार्ड 2019 से प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री मानसी जोशी-राय द्वारा सम्मानित किया गया।
पृथा  फाउंडेशन महाराष्ट्र में जरूरतमंद अनाथ लड़कियों की शिक्षा के लिए ग्रामीण गरीबों और साहित्यिक योगदान की मदद के लिए काम कर रहा है। यह कार्यक्रम इंस्पायर इंस्टीट्यूट की  निरुपमा और प्रेरणा सिन्हा द्वारा आयोजित किया गया था।

 

रोटरी क्लब सिंघगढ़ शाखा द्वारा “द अंटोल्ड स्टोरी ऑफ जोंटी रोड्स” में “सोशल इंपेक्ट” पर आयोजित कार्यक्रम में श्री टीकम शेखावत जी द्वारा प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी जोंटी रोड्स के साक्षात्कार के कार्यक्रम में सामाजिक कार्यों के लिए का सम्मान।

 

सुश्री श्वेता सक्सेना जी द्वारा वुमेन्स टी वी की ओर से सामाजिक कार्यों के लिए सम्मान

 

 

कविराज विजय यशवंत सातपुते –

 

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मशाल न्यूज़ नेटवर्क/चैनल, पालघर द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय “एकपात्री स्पर्धा – 2019 – द्वितीय स्थान

 

सुश्री रंजना मधुकरराव लसणे –

 

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मशाल न्यूज़ नेटवर्क/चैनल, पालघर द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय “कविता स्पर्धा – 2019 – द्वितीय स्थान

 

सुश्री आरुशी दाते –

सुश्री आरुशी दाते जी को हाल ही में  साहित्य संपदा द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय काव्यलेखन स्पर्धा में उनकी कविता “वसंत” को द्वितीय  पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

 

e-abhivyakti परिवार की ओर से आप सभी सम्माननीय साहित्यकारों को नमन करता है एवं कामना करता है कि आप और उन्नति के शिखर पर पहुंचे। स्वस्थ एवं सकारात्मक साहित्य का सृजन करें। पुनः बधाई एवं शुभकामनायें।

मैंने उपरोक्त जानकारी आपके लिए संकलित करने की चेष्टा की है। संभव है कि इन्हें इसके अतिरिक्त भी सम्मान/अलंकरण प्राप्त हुए हों जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ। यदि आप मुझसे ऐसे सम्मान/अलंकरण की जानकारी साझा करेंगे तो मुझे पाठकों से जानकारी साझा करने में प्रसन्नता होगी।

और हाँ एक बात तो आपसे बताना ही भूल गया आज इन पंक्तियाँ लिखे जाते तक आपके स्नेह से आपकी वेबसाइट के विजिटर्स की संख्या 17000+ हो गई है। इस स्नेह के लिए आभार।

आज के लिए बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

11 मई 2019

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ एक मुकदमा ☆ – श्री संदीप तोमर

श्री संदीप तोमर 

☆ एक मुकदमा ☆

(e-abhivyakti में श्री संदीप तोमर जी का स्वागत है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजन कार्य किया है और कई सम्मानों एवं अलंकरणों से सुशोभित हैं। आपके उपन्यास “थ्री गर्ल्सफ्रेंड्स” ने आपको चर्चित उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया। हम भविष्य में ई-अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए और भी साहित्य की अपेक्षा करते हैं।)

 

ऐतिहासिक मुकदमा था। कोर्ट परिसर लोगो से अटा पड़ा था। न्यायाधीश ने कहा-“सानन्द जी, आपने जो केस फाइल किया, उसमें आपने अपनी माँ की मृत्यु अस्थमा से बताई है, लेकिन साथ ही आपका कहना है कि आपकी माँ की की हत्या हुई है, आप क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिये।”

“माता जी दीवाली पर सदा परेशान रहती थी। मेरा घर कालोनी के ऊपर के माले पर है, नीचे बमों की लड़ी, और बम पटाखों का धुआं सीधा ऊपर आता था। जज साहब यकीन करिये , माँ का  दम घुटने लगता था। वो  80 वर्ष की थी, मेरी माता जी का क्या हाल होता होगा, आप अंदाजा लगा सकते है। वो तड़पती थी।“

लेकिन आप जाकर बोल सकते थे, पुलिस के पास जा सकते थे।“-न्यायधीश ने कहा।

“दीवाली पर किसे नीचे जाकर बोलता जज साहब कि बंद करो ये सब, मेरी माँ को तकलीफ है और नीचे ही क्यो? धुंआ तो पूरे इलाके में है, पूरे शहर में ये ही आलम है, माँ चद्दर लेकर मुँह ढक लेती थी, लेकिन राहत कहाँ मिलती उसे।“

“एक आपकी माँ ही बुजुर्ग नहीं शहर में बहुत बुजुर्ग हैं।“

“शायद दुनिया के सारे बुजुगों को ऐसा महसूस नही होता होगा, पर मेरी माँ को होता था।  पूरी रात बैचैन रहती थी माँ।“

“ठीक है, लेकिन बिमारी के चलते उनकी मृत्यु हुई आप उसे हत्या कैसे कह सकते हैं”

“जज साहब वो रात बड़ी भयानक थी, लोग दीपावली की खुशियाँ मना रहे थे, जैसे-जैसे पटाखों का धुआं और शोर बढ़ता जाता था, उसकी साँस फूलती जाती थी, वो तकलीफ अपने आँखों से देखी थी,  मैं बार बार बालकनी तक आता था, माँ को नुबेलाइज करता और सोचता था  अब बंद हो पटाखें, लेकिन रात जैसे जैसे सबाब पर आती गयी आतिशबाजी बढती गयी, माँ ने आँखें बंद कर ली, वो चली गयी जज साहब, वो चली गयी।“

लेकिन ये एक धर्म पर आरोप का मामला हुआ।“

“नहीं जज साहब, वो सब्बेबारात, गुरुपरब, गुड फ्राइडे सब दिन ऐसे ही जीती-मरती रहती थी।“

“हाँ सानन्द आपने अब मेरी मुस्किल आसान कर दी,  कोर्ट के फैसले का इन्तजार कीजिये।“

“जी जज साहब, आप इन्साफ करेगे इसका मुझे विश्वास है लेकिन मेरे भारत में मायलार्ड को गाली देने वालो की कमी नही है। कोर्ट में बैठे मेरे कई साथी मुझसे असहमत होंगे, मुझे उनसे कोई शिकायत नही, मैं स्वार्थी हूँ, मुझे आज भी अपनी माँ की वो तस्वीर, उसका चेहरा याद आता है तो तकलीफ होती है, किसी भी धर्म का मेरी बात से लेना-देना नही है। मैंने तो बम-पटाखों से फैलते धुंए की वजह से अपनी माँ की तकलीफ से, कोर्ट को अवगत कराया है। निस्वार्थी और बम पटाखों के प्रबल समर्थकों और धर्म के रखवालों से माफी चाहूँगा, आज मेरी माँ नही है, मुझे उसकी तकलीफें है, कल आपको भी होगी।“

सानन्द बोले जा रहे थे।

जज साहब ने टाइपिस्ट को फैसला टाइप करने का इशारा किया।

© श्री संदीप तोमर 

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ क्या उस नर को परिणय का अधिकार है? ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

☆ क्या उस नर को परिणय का अधिकार है? ☆

 

जो निज बल पर निज जीवन जी न पाए,

जो माता-पिता और  दूसरों पर बोझ रहे,

सामर्थ्यहीन, ज्ञानहीन, और मानहानि होए,

क्या उस नर को परिणय का अधिकार है?

 

जो स्वयं दहेज मांगे सौदागर बन जाए,

जो पत्नी पर हांथ उठाए पशु बन जाए,

जिसकी नजरों में पत्नी भोग्या बन जाए,

पत्नी की चिकित्सा हेतु पत्नी संग न जाए,

क्या उस – – – – – – – – – – – – – अधिकार है?

 

जो रात में देर से लौटे भोरे ही चला जाए,

ऐयासी, मदिरा, जुंए का व्यसनी हो जाए,

वस्तु समझ पत्नी का मन ही मारता जाए,

वाणी  मधुर हो पर ह्रदय विष से भर जाए,

क्या उस – – – – – – – – – – – – – अधिकार है?

 

दहेज की कार में यारों संग पर्यटन जाए,

फेसबुक में  गैरों संग ही घूमते देखा जाए,

जो गर्भपात का दोष पत्नी पर ही डाले,

निज त्रुटियां न देख पत्नी को बांझ बुलाए,

क्या उस – – – – – – – – – – – – अधिकार है?

 

जो पत्नी का नित अपमान ही करता जाए,

पत्नी के गुण न देखे अवगुण गिनता जाए,

पत्नी उसके ही भरोसे आई समझ न पाए,

पत्नी के माता-पिता की निंदा करता जाए,

क्या उस – – – – – – – – – – – – – अधिकार है?

 

© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ नदी की मनोव्यथा ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

☆ईस्‍टर के शुभ पर्व पर श्री लंका में हुये विस्‍फोट पर ☆

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा  रचित  एक भावप्रवण  कविता  “नदी की मनोव्यथा”।)

जो मीठा पावन जल देकर हमको सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी और जलधारा हम सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिनकी होती है पूजा
वही नदी माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है
पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें ही डाले जाते हैं
जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट और घाटों में
सैर सपाटे वाले यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में
ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में
प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के हैं अभिलाषी
तुम सब मुझको माँ कहते , तो माँ को बेटों सा प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम  मेरे सब दुख दर्द हरो
सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो , कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ नासमझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं
प्रकृति आज है घायल , मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का , अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल , निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन , जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?
प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें ,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी , जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार , स्वच्छता रखो , प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो
गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा , छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण , तो हों सुखी सभी प्राणी !!

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? सज्ञान रंग ? –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? सज्ञान रंग ?

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की  एक भावप्रवण कविता ।  )

 

रंगात कोरड्या मी भिजणार आज नाही

रंगात ओल ज्या ते गालास लाव दोन्ही

 

ठेवीन हात धरुनी हातात मीच क्षणभर

तो स्पर्श मग स्मृतींचा राहो सदैव देही

 

छळतील डाग काही सोसेल मी तयांना

हे रंग जीवनाचे नुसते नको प्रवाही

 

ते रंग कालचे तर बालीश फार होते

सज्ञान रंग झाला सज्ञान आज मीही

 

जातीत वाटलेले आहेत रंग जे जे

ते रंग टाळण्याची मज पाहिजेल ग्वाही

 

ते पावसात भिजले आकाश सप्तरंगी

त्यातील रंग मजवर उधळून टाक तूही

 

रंगात रंग मिळता जन्मेल रंग नवखा

येथे नव्या दमाने खेळेल रंग तोही

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga and Diabetes ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga and Diabetes ☆

November 14 is observed as World Diabetes Day to spread awareness about the silent killer.

Diabetes is emerging as a major health hazard worldwide. In India, the situation is grimmer as diabetes is often coupled with hypertension and cardiac problems which make it deadly.

Japanese scientist Murakami conducted several experiments over a period of time to ascertain the effect of laughter on blood sugar levels. He reached the conclusion that laughter has a definite lowering impact on blood sugar. During the course of his research, he found that 23 genes are activated with vigorous laughter. Often the production of insulin in the pancreas is affected due to poor immune system in diabetic patients. Laughter yoga strengthens and stabilizes immune system. Laughter also reduces the stress hormone cortisol responsible for increase in blood sugar level.

Vishwamohan, a member of a laughter club in Vijaywada suffered from chronic diabetes, diabetic neuropathy, high blood pressure and cardiac problems for a long time. His pain was never ending until he joined laughter club after which he gradually started feeling good. He now celebrates the day he joined laughter club as his birthday. Aruna Kalway and D C Rathi, members of my laughter club suffered from diabetes. I am happy they are now out of it and need no medication.

Laughter Yoga does help in diabetes. If you are not able to make it to the park and join a laughter club, you can now laugh from the cozy comfort of your home or on the move on your cell phone by connecting to Skype Laughter Club and laughing with people from all over the world.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (70) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्‌।

तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।70।।

जैसे भरे समुद्र में नदियाँ आती आप

वैसे शांति समुद्र में खोते सब संताप।।70।।

भावार्थ :   जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण, अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं।।70।।

 

He attains peace into whom all desires enter as waters enter the ocean, which, filled from all sides, remains unmoved; but not the man who is full of desires. ।।70।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ कविता ☆ – श्री रमेश सैनी

श्री रमेश सैनी

☆  कविता ☆

(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध वरिष्ठ  साहित्यकार  श्री रमेश सैनी जी  की  जी की सार्थक कविता “कविता ”।  कविता के सृजन की पृष्ठभूमि  पर सृजित एक कविता।) 

 

कविता को गढ़ना नहीं पड़ता

कविता रचती है अपने आपको

रचती है अपने समय को

तोड़ती है भ्रम

कवि होनें का

कविता बनाती है, अपना संसार

जिसमें बसती है,असंख्य रचनाये

 

मां ने देखा है

असहनीय दर्द के बाद

पहली बार नर्स की गोद में

अभी- अभी जन्में शिशु को

 

पहली बारिश में भीगते हुए

देखता है,  चुम्बकीय नजरों से

जवान होता हुआ लड़का

सोलह साल की लड़की को

 

जरा सी आहट होने पर

पकड़े जाने के भय से

छुपा लेती है किताब को

जवान लड़की, क़ि कोई

पढ़ न ले छुपा प्रेमपत्र

 

चिड़िया चहक उठती है

चूजे की पहली उड़ान पर

कुहुक उठती है कोयल

आम में जब आते है बौर

 

कविता फूटती है, जब

किसान करता है,  आत्महत्या

मौसम के बेईमान होने पर

 

लड़की मार दी जाती है

करती है,  जब किसी से प्रेम

 

नहीं रोक पाती है, जब कविता

जब रोका जाता है,  किसी को

पानी भरने से

गांव के एकमात्र कुएं से

 

पानी तो पानी,पर उसमें भी

खींच दी जाती है लकीर

पर कविता नहीं खींच पाती

अपने बीच कोई रेखा

 

कविता स्पर्श करना चाहती है

ऐसे क्षणों को

जिनमे प्यार हो,दुःख हो,सुख हो

और हो अपनापन।

 

© रमेश सैनी , जबलपुर 

मोबा . 8319856044

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